Uttarakhand has potential to attract tourists from all over the country: PM Modi

Published By : Admin | February 12, 2017 | 23:21 IST
QuoteAtal ji created three states - Chhattisgarh, Jharkhand & Uttarakhand. Both Chhattisgarh & Jharkhand have progressed under BJP: PM
QuoteDev Bhoomi can attract tourists from all over the country. This land has so much potential for tourism sector to flourish: PM Modi
QuoteWe want Uttarakhand to be connected with the entire country with all-weather roads. We have allotted Rs.12,000 crore for Char Dham: PM
QuoteWorld is moving towards holistic healthcare. Uttarakhand has much potential to contribute to this sector: PM Modi
QuoteCongress made mockery of One Rank, One Pension scheme. It was only after we assumed office, the scheme was implemented: Shri Modi
QuoteWon’t step back in taking decisions that benefit poor, will face every difficulty but won't let anyone play with their aspirations: PM

जय बद्री विशाल। बाबा केदारनाथ की जय। भाइयों बहनों और प्यारे बच्चों। जय बद्री विशाल। देवभूमि, गढ़वाल का केंद्र बिंदु श्रीनगर मा दूर दूर बटियाआं आप लोगों का ऐ चुनावी सभा में स्वागत छे...।

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, संसद में मेरे साथी श्रीमान भूवन चंद्र खंडूरी जी, राष्ट्रीय सचिव श्रीमान तीरथ सिंह रावत जी, अनिल बलूनी जी, मनोहर कांत ध्यानी जी, भास्कर नैथानी जी, राजेंद्र अटवाल जी, मुकेश रावत जी, अत्तर सिंह तोमर अत्तर सिंह अथवाल जी, विरेंद्र सिंह बिष्ट जी, अनिल नौटियार जी और इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार श्रीनगर से डाक्टर संत सिंह रावत जी, चोपटाखाल से श्रीमान सतपाल महाराज जी, कर्णप्रयाग से श्रीमान सुरेंद्र सिंह नेगी जी, पौढ़ी से श्रीमान मुकेश कौली जी, केदारनाथ से शैलारानी रावत जी, रूद्र प्रयाग से भरत सिंह चौधरी जी, हराली से श्रीमान मगनलाल जी, देव प्रयाग से विनोद कंडारी जी, और सब मेरे साथ बोलिए। भारत माता की जय। दोनों मुट्ठी ..., पूरी ताकत से बोलिए। भारत माता की जय। भारत माता की जय।

मैं सबसे पहले तो उत्तराखंड भारतीय जनता पार्टी के सभी नेताओं का कार्यकर्ताओं का ह्रदय से अभिनंदन करता हूं। मैं कल्पना नहीं कर सकता हूं कि पहाड़ों में इतनी जल्दी इतना बड़ा जनसैलाब, इतनी बड़ी भीड़, मैं उधर उधर पहाड़ों की चोटियों पर, घरों पर खड़े हैं, देख रहा हूं, पूरा रास्ता भरा हुआ है, देख रहा हूं। उन्हें सुनाई भी नहीं देता होगा। उसके बावजूद भी, इतनी बड़ी तादात में आप आशीर्वाद देने के लिए आए। मैं ह्रदय से बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूं। मैं एक और बात को गर्व के साथ उल्लेख करना चाहूंगा। मैं नहीं जानता हूं कि ये टीवी वाले क्या दिखांएगे और क्या नहीं दिखाएंगे। लेकिन बड़ी मात्रा में महिलाओं की हाजरी गजब किया है आपने। दूसरी बात आम सभा में महिलाओं को किसी कोने में बिठा देते हैं। ये उत्तराखंड के लोगों ने सबसे आगे बिठा दिया। इसके लिए डबल अभिनंदन। माताओं बहनों का सम्मान। ये नजर आ रहा है मुझे। मैं इसलिए पार्टी के सब लोगों को ह्रदय से उनका अभिनंदन करता हूं। मैं माताएं बहनें आपको भी नमन करता हूं क्योंकि आप हमें आशीर्वाद देने आए हैं। मां के आशीर्वाद में बहुत बड़ी ताकत होती है, बहुत बड़ी रक्षा होती है, बहुत बड़ा सकून होता है। और इसलिए मैं तो आज श्रीनगर की घरती पर गदगद हो गया हूं। आपके आशीर्वाद के लिए।

भाइयों बहनों।

उत्तराखंड का चुनाव तेज गति से आगे बढ़ रहा है। आज 12 फरवरी है। 12 मार्च को आज जो सरकार है, वो भूतपूर्व बन जाएगी और 11 मार्च को जो नतीजे आएंगे वो अभूतपूर्व हो जाएंगे।

भाइयो-बहनों।

अटल बिहारी वाजपेयी जी ने हमारे देश को तीन राज्य दिए, तीन राज्य। मध्यप्रदेश से निकला हुआ छत्तीसगढ़. बिहार से निकला हुआ झारखंड और उत्तर प्रदेश से निकला हुआ उत्तराखंड। क्या कारण है कि छत्तीसगढ़, छोटा सा राज्य आदिवासियों की जनसंख्या, माओवादियों का खूनखराबा, नक्सलवाद, ये  सबकुछ होने के बाद भी, वहां की जनता ने लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाई। आज छत्तीसगढ़ हिन्दुस्तान की तेज गति से आगे बढ़ने वाले राज्यों में उसने अपना झंडा गाड़ दिया। झारखंड जंगल है, आदिवासी बस्ती है, पिछड़ा इलाका है। बिहार में भी, जब वह बिहार का हिस्सा था सबसे पिछड़ा इलाका था। आज वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। कोई कल्पना नहीं कर सकता है कि झारखंड जैसे राज्य में पूंजीनिवेश के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर की समिट होती हो, देश और दुनिया के बड़े-बड़े उद्योगकार, झारखंड की राजधानी रांची आते हों और झारखंड में पूंजी निवेश के लिए आगे बढ़ते हों। क्या कारण है कि मेरा उत्तराखंड पीछे रह गया। क्या कारण है भाइयों। उत्तराखंड बर्बाद हुआ। उसका कारण क्या है ...? जरा पूरी ताकत से बताइए। कौन कारण है ...?  कौन कारण है ...?  कौन कारण है ...? जब तक उसको नहीं हटाओगे, उत्तराखंड का भला होगा क्या ...? भला होगा क्या ...? भला होगा क्या ...? और, वो लोग जो कभी कहते थे कि हमारी लाश पर उत्तराखंड बनेगा। उनको उत्तराखंड से कोई प्यार हो सकता है क्या ...? हम मरेंगे लेकिन उत्तराखंड नहीं बनने देंगे। ये वर्तमान मुख्यमंत्री कहते थे कि नहीं कहते थे ...। अरे ऐसे मुख्यमंत्री ...उत्तराखंड की जनता में दम होना चाहिए, ये पिछले दरवाजे से घुस गए हैं अन्यथा जनता उनको कभी सीएम कभी बनने नहीं देती। कभी बनने नहीं देती। क्योंकि उत्तराखंड के बलिदानों पर, उत्तराखंड की जनता के घावों पर नमक छिड़कने का, एसिड छिड़कने का पाप किया था। ये तो यहां तक कह देते थे कि अलग डवलप आथोरिटी बना दिया जाए, अलग यूटी बना दिया जाए लेकिन उत्तराखंड का राज्य नहीं बनाया जाए। आपको याद है। आज जो मुख्यमंत्री है उन्होंने उत्तराखंड की रचना के विरुद्ध में क्या कुछ नहीं किया था। जिस व्यक्ति के दिल में उत्तराखंड के प्रति प्यार न हो, लगाव ना हो। क्या वो आपका कभी भला कर सकता है क्या ...? पूरी ताकत से जवाब दो। ऐसे व्यक्ति पर कभी भरोसा कर सकते हैं क्या …? ये कांग्रेस पार्टी देखिए।

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आप मुझे बताइए।

जब उत्तराखंड में आंदोलन चल रहा था, अलग उत्तराखंड के लिए। नौजवान सड़कों पर आए थे। माताएं-बहनें यातनाएं झेल रही थी। समाजवादी पार्टी की सरकार थी उत्तर प्रदेश में। यहां पर समाजवादी पार्टी के दरोगा बैठे हुए थे। ये रामकोटद्वार क्या हुआ था भाई। हमारी माताओं-बहनों के साथ बलात्कार हुआ था कि नहीं हुआ था ...। बलात्कार हुआ था कि नहीं हुआ था ...। अत्याचार हुए थे कि नहीं हुए थे ...। गोलियां चलायी गयी थी कि नहीं चलाई गई थी ...। ये चलाने वाले कौन थे। समाजवादी पार्टी की सरकार थी, जिसने ये जुल्म किया था। ये कांग्रेस पार्टी देखिए आज उसी समाजवादियों की गोद मे जाकरके बैठ गई है भाइयों। यही समाजवादियो और कांग्रेस ने मिलकरके, उत्तराखंड में भी पर्दे के पीछे समाजवादी और कांग्रेस मिलकरके आज आपके साथ खेल खेल रहे हैं।

...और इसलिए भाइयों बहनों।

इसलिए मैं आज आपसे आग्रह करने आया हूं। ये चुनाव सिर्फ यहां की सरकार हटे इसके लिए नहीं है। ये चुनाव सिर्फ मुख्यमंत्री को सजा दे दे, इतने से पूरा नहीं होने वाला है। ये चुनाव इसलिए है कि हमें उत्तराखंड का भाग्य बदलना है भाइयों बहनों। कौन कहता है बदलाव किया नहीं जा सकता है। हर बार, यहां ऐसे नेता रहे जो प्रकृति को दोष देते रहे। यहां तो ये दिक्कत है, यहां तो वो दिक्कत है। अरे आप दोष मत दीजिए। ये तो सामर्थ्य की भूमि है, संकल्प की भूमि है। ये तपस्या की भूमि है। जितना सामर्थ्य इस धरती पर है, शायद ही कहीं और है। यहां इतना सामर्थ्य है कि ये पूरे हिन्दुस्तान की रक्षा करता है। हिमालयन स्टेट में आप जरा सिक्किम जाकर के देखिए। वहां भी हिमालयन पहाड़ी है। हिमालयन रेंजेज है। वहां भी रास्तों की कठिनाई है। वहां भी जमीन ढह जाती है। लेकिन आज जाकर के देखिए। सिक्किम 7-8 लाख लोगों की जनसंख्या। 20 लाख से ज्यादा टूरिस्ट आते हैं वहां, 20 लाख से ज्यादा। हिन्दुस्तान का पहला ऑर्गेनिक स्टेट सिक्किम बन गया।

भाइयो-बहनों।

यहां तो सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानी जीवन में कभी न कभी मां गंगाजी की डुबकी लगाने के लिए आना चाहते हैं। चार धाम की यात्रा करनेके लिए आना चाहते हैं। सुविधा हो न हो या न हो, कष्ट पड़े तो पड़े तो भी, यहां तक आने के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी, अटक से कटक हर हिन्दुस्तानी यहां आने के लिए लालायित रहता है। इस देवभूमि को किसी यात्री को बुलाने के लिए किसी को एडवर्टाइज करने की जरूरत नहीं होती है जी। मैं तो हैरान हूं। यहां तो ऐसी सरकार है तो जब कपाट बंद हो जाते हैं केदारनाथ, बद्रीनाथ के। तो टीवी पर एडवर्टाइजमेंट शुरू हो जाती है कि बद्रीनाथ केदारनाथ के दर्शन के लिए आइए। मैं समझा पा रहा हूं आपको। जब कपाट बंद हो जाते हैं तो ये टीवी पर एडवरटाइजमेंट देते हैं। जब कपाट बंद हो जाते हैं तो उस क्या लाभ, ये पैसे किसके हैं, क्यों खर्च करते हो भई। जब कपाट खुले हों, दर्शन हो रहे हों तब तो विज्ञापन दो, देशभर के लोगों को मैं समझ सकता हूं। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि देवभूमि पर आने के लिए इस देश के किसी व्यक्ति को समझाना पड़े, इसकी जरूरत ही नहीं है। सिर्फ यहां व्यवस्थाएं खड़ी करो। देश के लोगों का आना शुरू हो जाएगा।

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भाइयों बहनों।

टूरिज्म की सफलता दो बातों पर होती है। एक आने का मन कर जाए, दूसरा रहने का दिल कर जाए। वो जितनी रात ज्यादा रुकेगा, उतना ज्यादा खर्चा करेगा, उतनी ज्यादा यहां की इकोनॉमी बढ़ेगी। अगर रात को रूकता है तो खाना खाएगा, जहां रूकेगा वहां पैसा देगा। सुबह चाय पीएगा तो खर्चा करेगा। लेकिन आते ही कार से उतरा, भगवान को मत्था टेका और भाग गया तो टूरिज्म डेवलप नहीं होता है।

...और इसलिए भाइयों बहनों।

हम उत्तराखंड में प्रवासन की, पर्यटन की हर व्यवस्था को प्राथमिकता देना चाहते हैं। और ये जिम्मेदारी सिर्फ उत्तराखंड सरकार की नहीं होगी। केंद्र में आपने मुझे  बिठाया है। मैं भी अपनी जिम्मेदारी निभाउंगा।

भाइयों बहनों।

चार धाम यात्रा। बारहमासी रास्ता, ऑल वेदर रोड। क्या आजादी 70 साल के बाद नहीं हो सकता था क्या? अरे जो यात्री आते हैं ना। पिछले 70 साल में जो यात्री आते हैं उनके सामने एक डिब्बा रख देते, दान पेटी। और लोगों से कहते, उत्तम से उत्तम रास्ता बनाने के लिए दस-दस रुपया दान देते जाइए। मैं समझता हूं कि देशवासियों ने इतना दान दिया होता कि ये रास्ते बन गए होते। लेकिन इनको ये सूझी नहीं।

भाइयों बहनों।

हमने 12 हजार करोड़ रुपया। कितने ...। जरा सब के सब बोलो। कितने ...। कितने ...। 12 हजार करोड़ रुपए की लागत से चार धाम की 12 मासी रोड बनाने का फैसला किया है। ये उत्तराखंड को ही नहीं, पूरे हिन्दुस्तान का सपना पूरा करने का हम काम कर रहे हैं जी। बारहमासी रास्ते बनने के बाद, यहां के लोगों को कितना रोजगार मिलेगा, कितनी यात्रियों की संख्या बढ़ जाएगी। कितने प्रकार के व्यवसाय शुरू हो जाएंगे।

भाइयों बहनों।

उत्तराखंड में इतनी ताकत है कि यहां का पहाड़ हो, यहां का पानी हो, यहां की जवानी हो, ताकत से भरा हुआ है भाइयों बहनों। और इसलिए हम रेलवे में भी बहुत बड़ा काम करना चाहते हैं। आप जानते हैं। रेलवे का काम तेज गति से चल रहा है और रेलवे का नेटवर्क भी पहाड़ों में भी खड़ा हो सकता है और हमारी सरकार उस बात को भी आगे बढ़ाना चाहती है। रेल बनने तक हजारों लोगों को रोजगार देती है और बनने के बाद नए रोजगारों को जन्म देती है।

भाइयों बहनों।

हम नहीं चाहते कि उत्तराखंड का हर जवान को, उसको उत्तराखंड को छोड़कर जाना पड़े। उत्तराखंड के किसी गांव में जाओ। जरा यहां के मुख्यमंत्री जवाब दें ...। पिछले 5 साल में कितने गांव खाली हो गये। अरे किसी गांव में जाएं। किसी भी घर में पूछें कि कोई नौजवान है। जरा बात करनी है, वो कहेंगे। जवाब मिलेगा नहीं, नहीं। वो तो रोजी रोटी कमाने के लिए कहीं चला गया है। साल में एक दो बार आता है। इतना बड़ा उत्तराखंड। यहां के नौजवान को अपना गांव, यहां खेत खलिहान, अपने बूढ़े मां बाप, अपने यार दोस्त, ये छोड़कर के जाना क्यों पड़े। अरे पूरे हिन्दुस्तान को यहां लाने की ताकत जिस राज्य में हो, यहां के लोगों को कहीं जाना न पड़े। ऐसा राज्य बनाने की जरूरत है। और बन सकता है। बन सकता है भाइयों। कोई कठिन काम नहीं है। मकसद चाहिए, संकल्प चाहिए, समर्पण चाहिए। जनता जनार्दन का साथ चाहिए। सबका साथ, सबका विकास होके रहता है।

भाइयों बहनों।

जिस प्रकार से यात्रियों के लिए इसका आकर्षण है। सदियों से है। कष्ट झेलकरके भी लोग आते हैं। आज पूरा विश्व योग के लिए आकर्षित हुआ है। दुनिया के 190 से ज्यादा देश योग को अपना बना रहे हैं। और हर किसी को जब योग की बात तो भारत की तरफ ध्यान जाता है। तो भारत की तरफ जब ध्यान जाता है तो उनको सबसे पहले हरिद्वार-ऋषिकेश की तरफ ध्यान जाता है। पूरी दुनिया में योग के लिए लोगों को आकर्षित करने की ताकत ये उत्तराखंड के हर चोटी है, हर पहाड़ी पर है, हर गांव में वो सामर्थ्य है। हम योग का ऐसा नेटवर्क बना सकते हैं विश्व में जिसको योग सीखना हो वो उत्तराखंड के छोटे-छोटे गांव में जाकरके भी, प्राकृतिक वातावरण में रहकरके भी, गांव के अच्छे-अच्छे शिक्षकों के द्वारा योग सीख सकता है। और पूरा विश्व योग टूरिज्म को बढ़ाने के लिए उत्तराखंड के लिए एक अवसर है। योग टूरिज्म को बढ़ावा देना है।

भाइयों बहनों।

आज हिन्दुस्तान का नौजवान टीवी देखता है। दुनियाभर की चैनल देखता है। उसको भी लगता है कुछ एडवेंचर, दुस्साहस करें। उत्तराखंड के पहाड़ों से बड़ा, यहां के गंगा के घोत से बड़ा एडवेंचर टूरिज्म के लिए कोई जगह नहीं हो सकती है। पूरे हिन्दुस्तान की और दुनिया के नौजवानों को साहसिक टूरिज्म के लिए, एडवेंचर टूरिज्म के लिए निमंत्रित कर सकते हैं। हेल्थ टूरिज्म के लिए निमंत्रित कर सकते हैं। रिक्रिएशन और इंटरमेंट टूरिज्म के लिए आकर्षित कर सकते हैं। ये बालीवुड ...। बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग के लिए है, उन्हें बाहर जाना क्यों पड़ रहा है? क्या हमारे उत्तराखंड में वो सौंदर्य नहीं है, जहां हमारी फिल्में बन सकती है। यहां के नौजवानों को रोजगार नहीं मिल सकता है। लेकिन उसके लिए एक दृष्टि चाहिए, एक विजन चाहिए। पूरे बालीवुड को उत्तराखंड को लाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, व्यवस्था विकसित कर सकते हैं भाइयों बहनों।

...और इसलिए भाइयों बहनों।

प्रवासन, पर्यटन, ये उत्तराखंड के विकास को नई ऊंचाइयों पर ले जाता है। और इसलिए भाइयों बहनों। उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की सरकार विकास के मुद्दे पर आपसे वोट मांग रही है। विकास के मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए वोट मांग रही है। यहां की दूसरी ताकत है पर्यावरण। पर्यावरण की रक्षा भी होनी चाहिए। आप देखिए, हमारे पड़ोस में एक देश है भूटान। पर्यावरण क्षेत्र में एक नमूना कायम किया है। वो भी हिमालय की पहाड़ियों में है। छोटा सा देश है।

भाइयों बहनों।

हमारा उत्तराखंड भी पूरे विश्व के लिए पर्यावरण की दृष्टि से एक बहुत बड़ा आकर्षण का केंद्र बन सकता है। पर्यावरण की ताकत के साथ, यहां के पुरुषों में जैसा दम है, वैसा ही यहां की मातृशक्ति भी पूरी इकोनॉमी को चलाती है जी। उत्तराखंड की इकोनॉमी को बढ़ाने का काम ये हमारी माताएं बहनें कर रही है। उनका कौशल्य सामर्थ्य, उनके हाथों में हुनर अद्भूत है। भाइयों बहनों। पुरुष सीमा में जाकरके मां भारती के लिए मर मिटता है। और माताएं बहनें यहां की आर्थिक जीवन को चलाने का सामर्थ्य दिखाती है। ऐसा अद्भत, अद्भूत समाज है। ये देव दुर्लभ समाज है। देवभूमि में ये दुर्लभ समाज है। यही तो हमारी सबसे बड़ी ताकत है।

भाइयों बहनों।

जैसे समाज शक्तिशाली है, यहां का पौधा भी उतना ही सामर्थ्यवान है। पर्यटन का सामर्थ्य है, पर्यावरण का सामर्थ्य है। पौधे का भी सामर्थ्य है। यहां का हर पौधा जड़ी-बूटी है। और भाइयों बहनों। हिमालय की जड़ी-बूटी का तो सदियों से उल्लेख आ रहा है। कोई ऐसा ग्रंथ नहीं होगा जिसमें इसकी चर्चा नहीं होगी। भाइयों बहनों। आज पूरा विश्व होलिस्टिक हेल्थ केयर की ओर आगे बढ़ रहा है। आज पूरा विश्व प्राकृतिक उपचार की ओर बढ़ रहा है। साइड इफेक्ट न हो, केमिकल खाना न पड़े। ऐसी दवाइयों की तलाश में दुनिया है। हिमालय का हर पौधा कोई न कोई जड़ी-बूटी से जुड़ा है।

भाइयों बहनों।

हम उसको बल देना चाहते हैं। जैसे यहां का पर्यावरण यहां की अर्थव्यवस्था को बदलेगा। यहां का  पर्यटन अर्थव्यवस्था को बदलेगा। यहां का पौधा भी यहां की अर्थव्यवस्था की ताकत बनेगा। जैसे यहां का पर्यटन, यहां का पर्यावरण, यहां का पौधा वैसे ही यहां का पानी भी पानीदार है। यहां के पानी में पानी है, दम है। हम पंचेश्वर के प्रोजेक्ट के लिए नेपाल के साथ काम आगे बढ़ा रहे हैं। पंचेश्वर का काम पूरा करने के लिए 34 हजार करोड़ रुपये लगेंगे। इस तरफ के लोगों को रोजगार मिलने की पूरी संभावना है। ऐसी बिजली तैयार होगी तो जो बिजली न सिर्फ उत्तराखंड को बल्कि हिन्दुस्तान के बड़े हिस्से का अंधेरा दूर करने की ताकत रखती है भाइयों। यहां के पानी में ऊर्जा है। यहां के पानी में सामर्थ्य है। पर्यटन में दम है। पर्यावरण में दम है। पौधे में दम है। यहां के पानी में भी दम है।

इसलिए भाइयों बहनों।

इन ताकतों को जोड़ दें कि कोई हमें बताएं कि उत्तराखंड से पलायन रूकेगा कि नहीं रूकेगा ...। पलायन रूकेगा कि नहीं ...। ये चार तत्व इतने ताकतवर हैं कि यहां से कभी पलायन नहीं हो सकता है।

और इसलिए भाइयों बहनों।

हम एक निश्चित विजन के साथ उत्तराखंड का भाग्य बदलने के लिए काम कर रहे हैं और इसलिए आपके पास आया हूं। विकास करने के लिए वोट मांगने आ हूं। यहां नौजवानो का जीवन सुनिश्चित करने के लिए यहां आया हूं।

भाइयों बहनों।

अभी हमारे खंडूरी जी वन रैंक वन पैंशन की बात कर रहे थे। कांग्रेस वालों ने 40 साल तक वन रैंक वन पेंशन के मामले को लटकाए रखा। मैं ये तो समझ सकता हूं कि उनके पास पैसे ना हों और न कर पाएं हो। मैं ये भी समझ सकता हूं कि उनकी प्रायोरिटी हो और ना कर पाए हों। दुख तो इस बात का है कि प्रधानमंत्री बनते के बाद मैंने इस काम को हाथ मे लिया। खंडूरी जी बार-बार मुझसे मिलते थे। इसको बात को लेकर वो लगातार मुझसे बात कर रहे थे। मैंने डिपार्टमेंट को कहा, जरा भाई बताइए मुझे बताइए क्या हाल है इसका। आप हैरान हो जाएंगे 6-8 महीने तक, सरकार के पास निवृत्त सैनिक, कितना पैंशन, कितना वन रैंक वन पैंशन होगा। इसका कोई हिसाब-किताब ही नहीं था। इससे बड़ी कोई बेईमानी नहीं हो सकती। आप दो न दो, अलग बात है। कम से कम फाइल तो देखते कि क्या प्रोब्लेम है। कम से कम जो जवान आपसे मिलते थे, उसको गंभीरता से लेकरके डिपार्टममेंट को काम तो देते।

भाइयों बहनों।

बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि कई ऐसे निवृत्त सैनिक हैं जिनका पता ढूंढ़ने में भी मुझे आंखों में पानी हो गया। कोई हिसाब किताब ही नहीं था। अरे देश के लिए जान की बाजी लगा दी। अपनी जवानी खपा दी अब घर में निवृत्त होकरके बुढ़ापा गुजार लगा रहा है और सरकार को पता ही नहीं है। मैंने सारे डिपार्टमेंट को लगा दिया। गांव-गांव जाकरके, पुराने सारे रिकॉर्ड निकालकर के हिसाब लगाया। जब मैंने हिसाब किताब लगाया तो ये कांग्रेस वाले ऐसी मजाक उड़ाई है। फौजियों की ऐसी मजाक उड़ायी है। जब ये सर्जिकल स्ट्राइक हुआ ना ...। आपने देखा होगा ना, सारे नेता मैदान में आ गये सुबह-सुबह। पाकिस्तान बोले उससे पहले हमारे लोगों ने बोलना चालू कर दिया। बोले, मोदीजी सबूत दो..., सबूत दो सबूत। क्या हमारे देश फौजियों के पराक्रम का सबूत मांगना पड़ता है क्या ...। ये फौजियो का अपमान है कि नहीं है ...। भाइयों जरा बताइए ये फौजियों का अपमान है कि नहीं है ...।

और इसलिए भाइयों बहनों।

उन्होंने वन रैंक वन पेंशन में भी फौज को मजाक का विषय बनाया है। ये उनके जेहन में है। इसी के कारण ये दुर्दशा हुई है। आपको हैरानी होगी अगर आपका बच्चा भी घर में अगर कहीं जाना चाहता है, सिनेमा देखने जाता है या कोई खिलौना खरीदने जाना है उसको तो उसे पता है ये 20 रुपया में मिलता है। खाना के लिए बाहर जाना है, उसे मालूम है कि 25 रुपए में मिलता है। अगर मां-बाप उसको अगर दो रुपये पांच रुपये पकड़ा देंगे तो मां बाप के प्रति उनके मन में क्या भाव जगेगा। उसके मन में मजाक आएगा कि नहीं। उसके मन में आएगा कि नहीं, खिलौना 20 रुपए में मिलता है, मां-पापा दो रुपए दे रहे हैं। फौजियों के साथ उन्होंने ऐसा ही व्यवहार किया। वन रैंक वन पेंशन सिर्फ 500 करोड़ रुपया कहा कि हम लगाएंगे। 500 करोड़ रुपया।

भाइयों बहनों।

इसका मतलब था कि उनको कुछ पता नहीं था। वन रैंक वन पैंशन क्या होता है। निवृत्त फौजी कितने हैं। कितना पैंशन जाता है। वन रैंक वन पैंशन करने के बाद कितना आर्थिक खर्च आता है। कोई हिसाब-किताब नहीं था। मैंने आकरके जब हिसाब किताब शुरू किया। आप जानकर हैरान होंगे 12.5 हजार करोड़ से भी ज्यादा देने का निकला। 12.5 हजार करोड़। कहां 500 हजार करोड़ कहां 12.5 हजार करोड़।

लेकिन भाइयों बहनों।

चुनाव में मैंने वादा किया था कि ये काम मैं करके रहूंगा। आज मुझे खुशी है कि 12 हजार करोड़ से भी ज्यादा रकम देकरके वन रैंक वन पैंशन लागू कर दिया। अब तक 6 हजार करोड़ से ज्यादा का भुगतान कर चुके हैं। और बाकी इस बजट में प्रावधान कर दिया है, वो भी पहुंच जाएगा। फौज के साथ सम्मान का भाव क्या होता है। ये हमारी सरकार ने करके दिखाया है।

भाइयों बहनों।

हमने सर्जिकल स्ट्राइक किया। देश के सेना के जवान कब तक मार झेलते रहेंगे, कब तक दुश्मनों का वार झेलते रहेंगे। भाइयों बहनों। वक्त बदल चुका है। दिल्ली में सरकार बदल चुका है। अब देश का फौजी वार नहीं करेगा प्रतिवार करेगा, प्रतिवार करेगा।

भाइयों बहनों।

आप मुझे बताइए। हमारे देश में, जरा पूरी ताकत से जवाब देना, दूर-दूर से जवाब देना। आप मुझे बताइए कि हमारे देश को भ्रष्टाचार ने बर्बाद किया है कि नहीं किया है ...। भ्रष्टाचार ने तबाह किया है कि नहीं किया है ...। भ्रष्टाचार जाना चाहिए कि नहीं चाहिए। भ्रष्टाचार जाना चाहिए कि नहीं चाहिए।

भाइयों बहनों।  

इन भ्रष्टाचारियों ने कालाधन और भ्रष्टाचार की जुगलबंदी की। जिसको पद मिला, उसने लूटने का मौका नहीं छोडा। इस देवभूमि को भी इन लोगों ने लूट भूमि बना दिया, लूट भूमि बना दिया। और कैमरा के सामने पकड़े गये। लेती-देती की चर्चा कर रहे थे। अवैध खनन, शराब माफिया, शराब के ठेके, यही उनके उद्योग हो गये। तबादला उद्योग, ट्रांसफर उद्योग, पोस्टिंग का उद्योग, बदली का उद्योग, शराब ठेके का उद्योग, अवैध खनन का उद्योग ...।

भाइयों बहनों।

जब हमने नोटबंदी की। 8 तारीख रात को 8 बजे। इनके छक्के छूट गये। थप्पे के थप्पे भरके रखे थे कि ...। तीन महीने हो गये मोदी को गाली देना बंद नहीं कर रहे। जहां भी जाते हैं ...।

मुझे बताइए भाइयों बहनों।

जिन्होंने गरीबों को लूटा है, उनको लौटाना चाहिए कि नहीं लौटाना चाहिए ...।  मध्यमवर्ग को लूटा है उनको लौटाना चाहिए कि नहीं लौटाना चाहिए ...।

भाइयों-बहनों

मैं आपको वादा करता हूं कि मैं जब तक बैठूंगा न चैन से बैठूंगा न इनको चैन से बैठने दूंगा। क्या कर लेंगे ये। क्या कर लेंगे। अनाप-शनाप मोदी पर आरोप लगाएंगेतकलीफें पैदा करेंगे। अरे सबकुछ झेल लूंगा। देश के गरीबों के लिए ये सब झेलने का हमें गर्व होता है। ये लड़ाई बंद होने वाली नहीं है।

भाइयों बहनों।

इस देश की तबाही किसी व्यापारी के कारण नहीं आयी है। कोई छोटा व्यापारी होगा, गांव का कोई छोटा डाक्टर होगा, कोई छोटा वकील होगा। हो सकता है 1000 की जगह 1200 रुपया की फीस ले ली होगी। हो सकता है कि सरकार को 100 रुपया देना होगा और 90 रुपए दिया होगा। लेकिन वो लोग हैं, जिन्होंने अपने पसीने से कमाया है।छोटा व्यापारी होगा तो भी उसने अपने पसीने से कमाया है। आढ़ती होगी तो भी दुकान खोलकरके बैठा होगा तब जाकरके कमाया होगा। उन्होंने देश को लूटा नहीं है। देना चाहिए उतना शायद नहीं दिया होगा। देश को उन लोगों ने लूटा है जिन्होंने पद पर बैठकर पद का दुरुपयोग किया है। चाहे बाबू लोग हो, चाहे नेता लोग हों, चाहे थानेदार हो।

भाइयों-बहनों।

पद पर बैठकरके जिन्होंने लूटा है, उनकी लूट की पाई-पाई देश के चरणों में लाकर रखनी है इसलिए लड़ाई चली है। ये लड़ाई छोटी नहीं है। ये 70 साल तक जिन्होंने जमा किया है। और जमा करने वाले तने ताकतवर हो गये कि एक चाय वाला क्या कर सकता है इनको। बड़े ताकतवर लोग हैं।

लेकिन भाइयों बहनों।

सवा सौ करोड़ लोगों का आशीर्वाद है इसलिए ये चायवाला भी ये बड़े-बड़े चमरबंदी के खिलाफ मैदान में उतरकर आया है।

भाइयों बहनों।

ये मेरे लिए राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है। राजनीति करने के लिए मैंने नोटबंदी नहीं की है। मैं गरीबी में पैदा हुआ हूं, गरीबी में पला हूं। मैंने गरीबी को जीया है। और इसलिए मैं गरीबों के लिए जंग कर रहा हूं भाइयों। इसलिए गरीबों के लिए जंग कर रहा हूं। मुझे आपके आशीर्वाद चाहिए। पूरी ताकत से मुझे आपके आशीर्वाद चाहिए भाइयों बहनों। इस देश को भ्रष्टाचार और काले धन से मुक्त होना है। भ्रष्टाचार की लड़ाई में सफल होना है।

भाइयों बहनों।

विकास की नयी ऊंचाईयों तक देश को ले जाना है। मेरी माताएं बहनें यहां बैठी हैं। मैंने अभी हमारे यहां खादी विभाग के लोगों को काम दिया है। सोलर इनर्जी से चलने वाला चरखा, सूर्य शक्ति से चलने वाला चरखा, जो माताएं-बहनें पहाड़ों में तो यही काम ज्यादा करते हैं, उनको जिस दिन ये चरखा में पहुंचा पाऊंगा। अगर आज वो एक दिन में 200 रुपया कमाती है तो 500 रुपया कमाना शुरू कर देगी। कुछ स्थानों पर तो प्रयोग के तौर पर काम शुरू हो गया है। जैसे ही उसका परफेक्ट व्यवस्था हो जाएगी, उत्तराखंड के पहाड़ों पर रहने माताओं-बहनों को उसका लाभ मिलनेवाला है।

भाइयों बहनों।

आप मुझे बताइए। हर मां-बाप को, हर बहन को अपने घर में गैस का चूल्हा हो, ये उसकी जरूरत है कि नहीं है ...। गैस का चूल्हा मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए ...। गैस का सिलेंडर मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए ...। पहले मिलता था क्या ...। एक एमपी को 25 कूपन मिलते थे। और उसको कहते थे कि आपके इलाके के 25 लोगों को आप गैस का कनेक्शन दिलवा सकते थे, मुफ्त में नहीं। और लोग नेताजी के पीछे पीछे दौड़ते थे। और नेता जी कहते थे कि अभी नहीं, अगले साल के कोटा में देखेंगे। ये हाल था भाइयों बहनों। मैंने आकरके निर्णय किया कि मेरे देश के 5 करोड़ परिवार जो गरीबी रेखा से नीचे जीते हैं, जंगलों से लकड़ी काट कर लाते हैं। लकड़ी का चूल्हा जलाकरके खाना पकाते हैं। और एक मां जब लकड़ी का चुल्हा जलाकरके खाना पकाती है तो एक दिन में 400 सिगरेट का धुआं उसके शरीर में जाता है, 400 सिगरेट का। आप मुझे बताइए कि इन माताओं के शरीर में रोजाना 400 सिगरेट का धुआं जाएगा तो उस मां की तबीयत का हाल क्या होगा? उसके घर मे जो बच्चे पैदा होंगे, उनकी तबीयत का हाल क्या होगा।जो नन्हें नन्हें बच्चे जो घर में खेलते हैं, चूल्हा जलता है, धुआं निकलता है, उन बच्चों की तबीयत का क्या हाल होता होगा। कहिए भाइयों बहनों। गरीब माताओं को इस कष्ट से मुक्ति मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए ...। पूरी ताकत से बताइए। गरीब माताओं को इस कष्ट से मुक्ति मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए ...। माताओं को मदद मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए ...। क्या इसमें राजनीति होनी चाहिए ...।

भाइयों-बहनों।

आपने मुझे प्रधानमंत्री बनाया और हमने कहा था कि मेरी सरकार गरीबों को समर्पित है, गरीबों को। और इसलिए हमने तय किया है 5 करोड़ गरीब परिवार जिनके पास आज गैस का चूल्हा नहीं है, गैस का कनेक्शन नहीं है। तीन साल के भीतर उनको गैस का कनेक्शन, गैस का चूल्हा दे दिया जाएगा। मुझे खुशी है कि ये बातें नहीं, ये वादे नहीं। 4-5 महीने से काम शुरू किया है। अब तक 1 करोड़ 80 लाख घरो में गैस का चूल्हा आ गया, गैस कनेक्शन आ गया और लकड़ी का चूल्हा बंद भी हो गया। भाइयों बहनों। जंगलों को बचाना है तो उत्तराखंड के घर-घर में गैस का चूल्हा पहुंचाना होगा। ये काम हम कर के दिखाएंगे। ये मैं आपको वादा करता हूं।

भाइयों बहनों।

ये उत्तराखंड, हरदा टैक्स। हरदा टैक्स मैं तो हैरान हूं। न दिल्ली सरकार का कोई ऐसा टैक्स है और न ही हिन्दुस्तान में कहीं भी इस तरह का टैक्स नहीं है। ये गंगा की धरती है, ये ऋषिमुनियों की धरती है। कुछ तो शर्म करो, कुछ तो शर्म करो। भाइयों बहनों। ये लूट चली है, इससे उत्तराखंड को बचाना है। और इसलिए आपसे आग्रह करने आया हूं। ऐसा बहुमत दीजिए ताकि कांग्रेस को पता चले। किसी भी राजनेता को गलत काम करने के लिए हिम्मत न पड़े। आप साफ कर दीजिए। मैं आपको वादा करता हूं उत्तराखंड को 5 साल के भीतर नयी ऊंचाइयों तक ले जाऊंगा।

भाइयों बहनों।

हमारे परिवार में हम इस बात को बराबर समझते हैं कि घर में जब बालक 16 साल का होता है, तब तक तो मां-बाप कहते हैं अच्छा ठीक है। खेलो, दौड़ो, खेलो, मौज करो, ये करो, वो करो। लेकिन जब 16 साल का हो जाता है ना, बेटा हो या बेटी। मां और बाप बारीकी से उसको देखते रहते हैं। क्या पढ़ रहा है, क्या कर रहा है, कहां जा रहा है, किससे बात कर रहा है, जल्दी आया कि नहीं आया, ठीक से खा रहा है कि नहीं खा रहा है, जैसा शरीर होना चाहिए वैसा है कि नहीं है, हर चीज पर नजर रहती है। हर चीज मां-बाप देखते हैं कि नहीं देखते हैं ...। देखते हैं कि नहीं देखते हैं। बेटा या बेटी 16 साल का हो जाता है तो आपका विशेष ध्यान जाता है ना ...। खास परवरिश करनी पड़ती है। हर मां बाप को पता है कि बच्चा और बेटी, 16 से 21 साल में ठीक से अगर उसकी परवरिश हो गयी तो फिर कभी पीछे देखना नहीं पड़ता है भाइयों। ये मेरा उत्तराखंड भी अब 16 साल का हो गया है। ये 16 से 21 साल, ये पांच साल विशेष परवरिश की जरूरत है उत्तराखण्ड को।

और भाइयों और बहनों।

उत्तराखंड के परवरिश का दायित्व लेने के लिए मैं आया हूं आपके पास। ये 16 से 21 वर्ष की उमर, उत्तराखंड के जीवन के महत्वपूर्ण उमर है। इस पांच साल में उत्तराखण्ड जिस करवट बैठेगा। आने वाले 100 साल की नींव इस पांच साल में लगने वाली है।

और इसलिए भाइयों बहनों। कोई गलती नहीं होनी चाहिए। अच्छे से अच्छा परवरिश हो, हमारा उत्तराखंड को ऐसी ताकत को प्राप्त करे कि सौ साल तक कभी किसी को उत्तराखंड को मदद की जरूरत न पड़े। इसलिए आप भारतीय जनता पार्टी को वोट दीजिए। 15 तारीख को भारी मतदान कीजिए। पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दीजिए। हर पोलिंग बूथ वाला तय करे कि अगर पिछले साल 600 पड़े थे तो 700 से कम नहीं होंगे। पिछली बार 700 वोट पड़े थे तो इस बार 800 वोट से कम न पड़ेंगे। इस प्रकार से आप करें। और ये तो पहाड़ है, ठंड होती है। उसके बाद भी मैं कहूंगा, पहले मतदान, फिर जलपान। पहले मतदान फिर जलपान। 15 तारीख को कमल के निशान पर बटन दबाकरके उत्तराखंड के भाग्य बदलने के लिए फैसला कीजिए। मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए। भारत माता की जय। भारत माता की जय। भारत माता की जय। बहुत बहुत धन्यवाद।

 

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May 27, 2025
QuoteTerrorist activities are no longer proxy war but well thought out strategy, so the response will also be in a similar way: PM
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QuoteToday we have around two lakh Start-Ups ,most of them are in Tier2-Tier 3 cities and being led by our daughters: PM
QuoteOur country has immense potential to bring about a big change, Operation sindoor is now responsibility of 140 crore citizens: PM
QuoteWe should be proud of our brand “Made in India”: PM

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

क्यों ये सब तिरंगे नीचे हो गए हैं?

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

मंच पर विराजमान गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्र में मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, सी आर पाटिल जी, गुजरात सरकार के अन्य मंत्री गण, सांसदगण, विधायक गण और गुजरात के कोने-कोने से यहां उपस्थित मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

मैं दो दिन से गुजरात में हूं। कल मुझे वडोदरा, दाहोद, भुज, अहमदाबाद और आज सुबह-सुबह गांधी नगर, मैं जहां-जहां गया, ऐसा लग रहा है, देशभक्ति का जवाब गर्जना करता सिंदुरिया सागर, सिंदुरिया सागर की गर्जना और लहराता तिरंगा, जन-मन के हृदय में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम, एक ऐसा नजारा था, एक ऐसा दृश्य था और ये सिर्फ गुजरात में नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने में है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में है। शरीर कितना ही स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन अगर एक कांटा चुभता है, तो पूरा शरीर परेशान रहता है। अब हमने तय कर लिया है, उस कांटे को निकाल के रहेंगे।

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साथियों,

1947 में जब मां भारती के टुकड़े हुए, कटनी चाहिए तो ये तो जंजीरे लेकिन कांट दी गई भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए। और उसी रात पहला आतंकवादी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की इच्छा थी कि पीओके वापस नहीं आता है, तब तक सेना रूकनी नहीं चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात मानी नहीं गई और ये मुजाहिदीन जो लहू चख गए थे, वो सिलसिला 75 साल से चला है। पहलगाम में भी उसी का विकृत रूप था। 75 साल तक हम झेलते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ जब युद्ध की नौबत आई, तीनों बार भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। और पाकिस्तान समझ गया कि लड़ाई में वो भारत से जीत नहीं सकते हैं और इसलिए उसने प्रॉक्सी वार चालू किया। सैन्‍य प्रशिक्षण होता है, सैन्‍य प्रशिक्षित आतंकवादी भारत भेजे जाते हैं और निर्दोष-निहत्थे लोग कोई यात्रा करने गया है, कोई बस में जा रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई टूरिस्‍ट बन कर जा रहा है। जहां मौका मिला, वह मारते रहे, मारते रहे, मारते रहे और हम सहते रहे। आप मुझे बताइए, क्या यह अब सहना चाहिए? क्या गोली का जवाब गोले से देना चाहिए? ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए? इस कांटे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए?

साथियों,

यह देश उस महान संस्कृति-परंपरा को लेकर चला है, वसुधैव कुटुंबकम, ये हमारे संस्कार हैं, ये हमारा चरित्र है, सदियों से हमने इसे जिया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हम अपने पड़ोसियों का भी सुख चाहते हैं। वह भी सुख-चैन से जिये, हमें भी सुख-चैन से जीने दें। ये हमारा हजारों साल से चिंतन रहा है। लेकिन जब बार-बार हमारे सामर्थ्य को ललकारा जाए, तो यह देश वीरों की भी भूमि है। आज तक जिसे हम प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते हैं। और इसका कारण है, जब आतंकवाद के 9 ठिकाने तय करके 22 मिनट में साथियों, 22 मिनट में, उनको ध्वस्त कर दिया। और इस बार तो सब कैमरा के सामने किया, सारी व्यवस्था रखी थी। ताकि हमारे घर में कोई सबूत ना मांगे। अब हमें सबूत नहीं देना पड़ रहा है, वो उस तरफ वाला दे रहा है। और मैं इसलिए कहता हूं, अब यह प्रॉक्सी वॉर नहीं कह सकते इसको क्योंकि जो आतंकवादियों के जनाजे निकले, 6 मई के बाद जिन का कत्ल हुआ, उस जनाजे को स्टेट ऑनर दिया गया पाकिस्तान में, उनके कॉफिन पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए, उनकी सेना ने उनको सैल्यूट दी, यह सिद्ध करता है कि आतंकवादी गतिविधियां, ये प्रॉक्सी वॉर नहीं है। यह आप की सोची समझी युद्ध की रणनीति है। आप वॉर ही कर रहे हैं, तो उसका जवाब भी वैसे ही मिलेगा। हम अपने काम में लगे थे, प्रगति की राह पर चले थे। हम सबका भला चाहते हैं और मुसीबत में मदद भी करते हैं। लेकिन बदले में खून की नदियां बहती हैं। मैं नई पीढ़ी को कहना चाहता हूं, देश को कैसे बर्बाद किया गया है? 1960 में जो इंडस वॉटर ट्रीटी हुई है। अगर उसकी बारीकी में जाएंगे, तो आप चौक जाएंगे। यहाँ तक तय हुआ है उसमें, कि जो जम्मू कश्मीर की अन्‍य नदियों पर डैम बने हैं, उन डैम का सफाई का काम नहीं किया जाएगा। डिसिल्टिंग नहीं किया जाएगा। सफाई के लिए जो नीचे की तरफ गेट हैं, वह नहीं खोले जाएंगे। 60 साल तक यह गेट नहीं खोले गए और जिसमें शत प्रतिशत पानी भरना चाहिए था, धीरे-धीरे इसकी कैपेसिटी काम हो गई, 2 परसेंट 3 परसेंट रह गया। क्या मेरे देशवासियों को पानी पर अधिकार नहीं है क्या? उनको उनके हक का पानी मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए क्या? और अभी तो मैंने कुछ ज्यादा किया नहीं है। अभी तो हमने कहा है कि हमने इसको abeyance में रखा है। वहां पसीना छूट रहा है और हमने डैम थोड़े खोल करके सफाई शुरू की, जो कूड़ा कचरा था, वह निकाल रहे हैं। इतने से वहां flood आ जाता है।

साथियों,

हम किसी से दुश्मनी नहीं चाहते हैं। हम सुख-चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। हम प्रगति भी इसलिए करना चाहते हैं कि विश्व की भलाई में हम भी कुछ योगदान कर सकें। और इसलिए हम एकनिष्ठ भाव से कोटि-कोटि भारतीयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। कल 26 मई था, 2014 में 26 मई, मुझे पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का अवसर मिला। और तब भारत की इकोनॉमी, दुनिया में 11 नंबर पर थी। हमने कोरोना से लड़ाई लड़ी, हमने पड़ोसियों से भी मुसीबतें झेली, हमने प्राकृतिक आपदा भी झेली। इन सब के बावजूद भी इतने कम समय में हम 11 नंबर की इकोनॉमी से चार 4 नंबर की इकोनॉमी पर पहुंच गए क्योंकि हमारा ये लक्ष्य है, हम विकास चाहते हैं, हम प्रगति चाहते हैं।

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और साथियों,

मैं गुजरात का ऋणी हूं। इस मिट्टी ने मुझे बड़ा किया है। यहां से मुझे जो शिक्षा मिली, दीक्षा मिली, यहां से जो मैं आप सबके बीच रहकर के सीख पाया, जो मंत्र आपने मुझे दिए, जो सपने आपने मेरे में संजोए, मैं उसे देशवासियों के काम आए, इसके लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि आज गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष, 2005 में इस कार्यक्रम को किया था। 20 वर्ष मनाने का और मुझे खुशी इस बात की हुई कि यह 20 साल के शहरी विकास की यात्रा का जय गान करने का कार्यक्रम नहीं बनाया। गुजरात सरकार ने उन 20 वर्ष में से जो हमने पाया है, जो सीखा है, उसके आधार पर आने वाले शहरी विकास को next generation के लिए उन्होंने उसका रोडमैप बनाया और आज वो रोड मैप गुजरात के लोगों के सामने रखा है। मैं इसके लिए गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री जी को, उनकी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

हम आज दुनिया की चौथी इकोनॉमी बने हैं। किसी को भी संतोष होगा कि अब जापान को भी पीछे छोड़ कर के हम आगे निकल गए हैं और मुझे याद है, हम जब 6 से 5 बने थे, तो देश में एक और ही उमंग था, बड़ा उत्साह था, खासकर के नौजवानों में और उसका कारण यह था कि ढाई सौ सालों तक जिन्होंने हम पर राज किया था ना, उस यूके को पीछे छोड़ करके हम 5 बने थे। लेकिन अब चार बनने का आनंद जितना होना चाहिए उससे ज्यादा तीन कब बनोगे, उसका दबाव बढ़ रहा है। अब देश इंतजार करने को तैयार नहीं है और अगर किसी ने इंतजार करने के लिए कहा, तो पीछे से नारा आता है, मोदी है तो मुमकिन है।

और इसलिए साथियों,

एक तो हमारा लक्ष्य है 2047, हिंदुस्तान विकसित होना ही चाहिए, no compromise… आजादी के 100 साल हम ऐसे ही नहीं बिताएंगे, आजादी के 100 साल ऐसे मनाएंगे, ऐसे मनाएंगे कि दुनिया में विकसित भारत का झंडा फहरता होगा। आप कल्पना कीजिए, 1920, 1925, 1930, 1940, 1942, उस कालखंड में चाहे भगत सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो, नेताजी सुभाष बाबू हो, वीर सावरकर हो, श्यामजी कृष्ण वर्मा हो, महात्मा गांधी हो, सरदार पटेल हो, इन सबने जो भाव पैदा किया था और देश की जन-मन में आजादी की ललक ना होती, आजादी के लिए जीने-मरने की प्रतिबद्धता ना होती, आजादी के लिए सहन करने की इच्छा शक्ति ना होती, तो शायद 1947 में आजादी नहीं मिलती। यह इसलिए मिली कि उस समय जो 25-30 करोड़ आबादी थी, वह बलिदान के लिए तैयार हो चुकी थी। अगर 25-30 करोड़ लोग संकल्पबद्ध हो करके 20 साल, 25 साल के भीतर-भीतर अंग्रेजों को यहां से निकाल सकते हैं, तो आने वाले 25 साल में 140 करोड़ लोग विकसित भारत बना भी सकते हैं दोस्तों। और इसलिए 2030 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, मैं समझता हूं कि हमने अभी से 30 में होंगे, 35… 35 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, हमने अभी से नेक्स्ट 10 ईयर का पहले एक प्लान बनाना चाहिए कि जब गुजरात के 75 होंगे, तब गुजरात यहां पहुंचेगा। उद्योग में यहां होगा, खेती में यहां होगा, शिक्षा में यहां होगा, खेलकूद में यहां होगा, हमें एक संकल्प ले लेना चाहिए और जब गुजरात 75 का हो, उसके 1 साल के बाद जो ओलंपिक होने वाला है, देश चाहता है कि वो ओलंपिक हिंदुस्तान में हो।

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और इसलिए साथियों,

जिस प्रकार से हमारा यह एक लक्ष्य है कि हम जब गुजरात के 75 साल हो जाए। और आप देखिए कि जब गुजरात बना, उस समय के अखबार निकाल दीजिए, उस समय की चर्चाएं निकाल लीजिए। क्या चर्चाएं होती थी कि गुजरात महाराष्ट्र से अलग होकर क्या करेगा? गुजरात के पास क्या है? समंदर है, खारा पाठ है, इधर रेगिस्तान है, उधर पाकिस्तान है, क्या करेगा? गुजरात के पास कोई मिनरल्स नहीं, गुजरात कैसे प्रगति करेगा? यह ट्रेडर हैं सारे… इधर से माल लेते हैं, उधर बेचते हैं। बीच में दलाली से रोजी-रोटी कमा करके गुजारा करते हैं। क्‍या करेंगे ऐसी चर्चा थी। वही गुजरात जिसके पास एक जमाने में नमक से ऊपर कुछ नहीं था, आज दुनिया को हीरे के लिए गुजरात जाना जाता है। कहां नमक, कहां हीरे! यह यात्रा हमने काटी है। और इसके पीछे सुविचारित रूप से प्रयास हुआ है। योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाएं हैं। हमारे यहां आमतौर पर गवर्नमेंट के मॉडल की चर्चा होती है कि सरकार में साइलोज, यह सबसे बड़ा संकट है। एक डिपार्टमेंट दूसरे से बात नहीं करता है। एक टेबल वाला दूसरे टेबल वाले से बात नहीं करता है, ऐसी चर्चा होती है। कुछ बातों में सही भी होगा, लेकिन उसका कोई सॉल्यूशन है क्या? मैं आज आपको बैकग्राउंड बताता हूं, यह शहरी विकास वर्ष अकेला नहीं, हमने उस समय हर वर्ष को किसी न किसी एक विशेष काम के लिए डेडिकेट करते थे, जैसे 2005 में शहरी विकास वर्ष माना गया। एक साल ऐसा था, जब हमने कन्या शिक्षा के लिए डेडिकेट किया था, एक वर्ष ऐसा था, जब हमने पूरा टूरिज्म के लिए डेडिकेट किया था। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी सब काम बंद करते थे, लेकिन सरकार के सभी विभागों को उस वर्ष अगर forest department है, तो उसको भी अर्बन डेवलपमेंट में वो contribute क्या कर सकता है? हेल्थ विभाग है, तो अर्बन डेवलपमेंट ईयर में वो contribute क्या कर सकता है? जल संरक्षण मंत्रालय है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? टूरिज्म डिपार्टमेंट है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? यानी एक प्रकार से whole of the government approach, इस भूमिका से ये वर्ष मनाया और आपको याद होगा, जब हमने टूरिज्म ईयर मनाया, तो पूरे राज्य में उसके पहले गुजरात में टूरिज्म की कल्पना ही कोई नहीं कर सकता था। विशेष प्रयास किया गया, उसी समय ऐड कैंपेन चलाया, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में, एक-एक चीज उसमें से निकली। उसी में से रण उत्‍सव निकला, उसी में से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बना। उसी में से आज सोमनाथ का विकास हो रहा है, गिर का विकास हो रहा है, अंबाजी जी का विकास हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स आ रही हैं। यानी एक के बाद एक चीजें डेवलप होने लगीं। वैसे ही जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया।

और मुझे याद है, मैं राजनीति में नया-नया आया था। और कुछ समय के बाद हम अहमदाबाद municipal कॉरपोरेशन सबसे पहले जीते, तब तक हमारे पास एक राजकोट municipality हुआ करती थी, तब वो कारपोरेशन नहीं थी। और हमारे एक प्रहलादभाई पटेल थे, पार्टी के बड़े वरिष्ठ नेता थे। बहुत ही इनोवेटिव थे, नई-नई चीजें सोचना उनका स्वभाव था। मैं नया राजनीति में आया था, तो प्रहलाद भाई एक दिन आए मिलने के लिए, उन्होंने कहा ये हमें जरा, उस समय चिमनभाई पटेल की सरकार थी, तो हमने चिमनभाई और भाजपा के लोग छोटे पार्टनर थे। तो हमें चिमनभाई को मिलकर के समझना चाहिए कि यह जो लाल बस अहमदाबाद की है, उसको जरा अहमदाबाद के बाहर जाने दिया जाए। तो उन्होंने मुझे समझाया कि मैं और प्रहलाद भाई चिमनभाई को मिलने गए। हमने बहुत माथापच्ची की, हमने कहा यह सोचने जैसा है कि लाल बस अहमदाबाद के बाहर गोरा, गुम्‍मा, लांबा, उधर नरोरा की तरफ आगे दहेगाम की तरफ, उधर कलोल की तरफ आगे उसको जाने देना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन का विस्तार करना चाहिए, तो सरकार के जैसे सचिवों का स्वभाव रहता है, यहां बैठे हैं सारे, उस समय वाले तो रिटायर हो गए। एक बार एक कांग्रेसी नेता को पूछा गया था कि देश की समस्याओं का समाधान करना है तो दो वाक्य में बताइए। कांग्रेस के एक नेता ने जवाब दिया था, वो मुझे आज भी अच्छा लगता है। यह कोई 40 साल पहले की बात है। उन्होंने कहा, देश में दो चीजें होनी चाहिए। एक पॉलीटिशियंस ना कहना सीखें और ब्यूरोक्रेट हां कहना सीखे! तो उससे सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। पॉलीटिशियंस किसी को ना नहीं कहता और ब्यूरोक्रेट किसी को हां नहीं कहता। तो उस समय चिमनभाई के पास गए, तो उन्‍होंने पूछा सबसे, हम दोबारा गए, तीसरी बार गए, नहीं-नहीं एसटी को नुकसान हो जाएगा, एसटी को कमाई बंद हो जाएगी, एसटी बंद पड़ जाएगी, एसटी घाटे में चल रही है। लाल बस वहां नहीं भेज सकते हैं, यह बहुत दिन चला। तीन-चार महीने तक हमारी माथापच्ची चली। खैर, हमारा दबाव इतना था कि आखिर लाल बस को लांबा, गोरा, गुम्‍मा, ऐसा एक्सटेंशन मिला, उसका परिणाम है कि अहमदाबाद का विस्तार तेजी से उधर सारण की तरफ हुआ, इधर दहेगाम की तरफ हुआ, उधर कलोल की तरह हुआ, उधर अहमदाबाद की तरह हुआ, तो अहमदाबाद की तरफ जो प्रेशर, एकदम तेजी से बढ़ने वाला था, उसमें तेजी आई, बच गए छोटी सी बात थी, तब जाकर के, मैं तो उस समय राजनीति में नया था। मुझे कोई ज्यादा इन चीजों को मैं जानता भी नहीं था। लेकिन तब समझ में आता था कि हम तत्कालीन लाभ से ऊपर उठ करके सचमुच में राज्य की और राज्य के लोगों की भलाई के लिए हिम्मत के साथ लंबी सोच के साथ चलेंगे, तो बहुत लाभ होगा। और मुझे याद है जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया, तो पहला काम आया, यह एंक्रोचमेंट हटाने का, अब जब एंक्रोचमेंट हटाने की बात आती हे, तो सबसे पहले रुकावट बनता है पॉलिटिकल आदमी, किसी भी दल का हो, वो आकर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसको लगता है, मेरे वोटर है, तुम तोड़ रहे हो। और अफसर लोग भी बड़े चतुर होते हैं। जब उनको कहते हैं कि भई यह सब तोड़ना है, तो पहले जाकर वो हनुमान जी का मंदिर तोड़ते हैं। तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है कि कोई भी पॉलिटिशयन डर जाता है, उसको लगता है कि हनुमान जी का मंदिर तोड़ दिया तो हो… हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। उस समय हमारे …..(नाम स्पष्ट नहीं) अर्बन मिनिस्टर थे। और उसका परिणाम यह आया कि रास्ते चौड़े होने लगे, तो जिसका 2 फुट 4 फुट कटता था, वह चिल्लाता था, लेकिन पूरा शहर खुश हो जाता था। इसमें एक स्थिति ऐसी बनी, बड़ी interesting है। अब मैंने तो 2005 अर्बन डेवलपमेंट ईयर घोषित कर दिया। उसके लिए कोई 80-90 पॉइंट निकाले थे, बडे interesting पॉइंट थे। तो पार्टी से ऐसी मेरी बात हुई थी कि भाई ऐसा एक अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा, जरा सफाई वगैरह के कामों में सब को जोड़ना पड़ेगा ऐसा, लेकिन जब ये तोड़ना शुरू हुआ, तो मेरी पार्टी के लोग आए, ये बड़ा सीक्रेट बता रहा हूं मैं, उन्होंने कहा साहब ये 2005 में तो अर्बन बॉडी के चुनाव है, हमारी हालत खराब हो जाएगी। यह सब तो चारों तरफ तोड़-फोड़ चल रही है। मैंने कहा यार भई यह तो मेरे ध्यान में नहीं रहा और सच में मेरे ध्यान में वो चुनाव था ही नहीं। अब मैंने कार्यक्रम बना दिया, अब साहब मेरा भी एक स्वभाव है। हम तो बचपन से पढ़ते आए हैं- कदम उठाया है तो पीछे नहीं हटना है। तो मैंने मैंने कहा देखो भाई आपकी चिंता सही है, लेकिन अब पीछे नहीं हट सकते। अब तो ये अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा। हार जाएंगे, चुनाव क्या है? जो भी होगा हम किसी का बुरा करना नहीं चाहते, लेकिन गुजरात में शहरों का रूप रंग बदलना बहुत जरूरी है।

|

साथियों,

हम लोग लगे रहे। काफी विरोध भी हुआ, काफी आंदोलन हुए बहुत परेशानी हुई। यहां मीडिया वालों को भी बड़ा मजा आ गया कि मोदी अब शिकार आ गया हाथ में, तो वह भी बड़ी पूरी ताकत से लग गए थे। और उसके बाद जब चुनाव हुआ, देखिए मैं राजनेताओं को कहता हूं, मैं देश भर के राजनेता मुझे सुनते हैं, तो देखना कहता हूं, अगर आपने सत्यनिष्ठा से, ईमानदारी से लोगों की भलाई के लिए निर्णय करते हैं, तत्कालीन भले ही बुरा लगे, लोग साथ चलते हैं। और उस समय जो चुनाव हुआ 90 परसेंट विक्ट्री बीजेपी की हुई थी, 90 परसेंट यानी लोग जो मानते हैं कि जनता ये नहीं और मुझे याद है। अब यह जो यहां अटल ब्रिज बना है ना तो मुझे, यह साबरमती रिवर फ्रंट पर, तो पता नहीं क्यों मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था। कई कार्यक्रम थे, तो मैंने कहा चलो भई हम भी देखने जाते हैं, तो मैं जरा वो अटल ब्रिज पर टहलने गया, तो वहां मैंने देखा कुछ लोगों ने पान की पिचकारियां लगाई हुई थी। अभी तो उद्घाटन होना था, लेकिन कार्यक्रम हो गया था। तो मेरा दिमाग, मैंने कहा इस पर टिकट लगाओ। तो ये सारे लोग आ गए साहब चुनाव है, उसी के बाद चुनाव था, बोले टिकट नहीं लगा सकते मैंने कहा टिकट लगाओ वरना यह तुम्हारा अटल ब्रिज बेकार हो जाएगा। फिर मैं दिल्ली गया, मैंने दूसरे दिन फोन करके पूछा, मैंने कहा क्या हुआ टिकट लगाने का एक दिन भी बिना टिकट नहीं चलना चाहिए।

साथियों,

खैर मेरा मान-सम्मान रखते हैं सब लोग, आखिर के हमारे लोगों ने ब्रिज पर टिकट लगा दिया। आज टिकट भी हुआ, चुनाव भी जीते दोस्तों और वो अटल ब्रिज चल रहा है। मैंने कांकरिया का पुनर्निर्माण का कार्यक्रम लिया, उस पर टिकट लगाया तो कांग्रेस ने बड़ा आंदोलन किया। कोर्ट में चले गए, लेकिन वह छोटा सा प्रयास पूरे कांकरिया को बचा कर रखा हुआ है और आज समाज का हर वर्ग बड़ी सुख-चैन से वहां जाता है। कभी-कभी राजनेताओं को बहुत छोटी चीजें डर जाते हैं। समाज विरोधी नहीं होता है, उसको समझाना होता है। वह सहयोग करता है और अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। देखिए शहरी शहरी विकास की एक-एक चीज इतनी बारीकी से बनाई गई और उसी का परिणाम था और मैं आपको बताता हूं। यह जो अब मुझ पर दबाव बढ़ने वाला है, वो already शुरू हो गया कि मोदी ठीक है, 4 नंबर तो पहुंच गए, बताओ 3 कब पहुंचोगे? इसकी एक जड़ी-बूटी आपके पास है। अब जो हमारे ग्रोथ सेंटर हैं, वो अर्बन एरिया हैं। हमें अर्बन बॉडीज को इकोनॉमिक के ग्रोथ सेंटर बनाने का प्लान करना होगा। अपने आप जनसंख्या के कारण वृद्धि होती चले, ऐसे शहर नहीं हो सकते हैं। शहर आर्थिक गतिविधि के तेजतर्रार केंद्र होने चाहिए और अब तो हमने टीयर 2, टीयर 3 सीटीज पर भी बल देना चाहिए और वह इकोनॉमिक एक्टिविटी के सेंटर बनने चाहिए और मैं तो पूरे देश की नगरपालिका, महानगरपालिका के लोगों को कहना चाहूंगा। अर्बन बॉडी से जुड़े हुए सब लोगों से कहना चाहूंगा कि वे टारगेट करें कि 1 साल में उस नगर की इकोनॉमी कहां से कहां पहुंचाएंगे? वहां की अर्थव्यवस्था का कद कैसे बढ़ाएंगे? वहां जो चीजें मैन्युफैक्चर हो रही हैं, उसमें क्वालिटी इंप्रूव कैसे करेंगे? वहां नए-नए इकोनॉमिक एक्टिविटी के रास्ते कौन से खोलेंगे। ज्यादातर मैंने देखा नगर पालिका की जो नई-नई बनती हैं, तो क्या करते हैं, एक बड़ा शॉपिंग सेंटर बना देते हैं। पॉलिटिशनों को भी जरा सूट करता है वह, 30-40 दुकानें बना देंगे और 10 साल तक लेने वाला नहीं आता है। इतने से काम नहीं चलेगा। स्टडी करके और खास करके जो एग्रो प्रोडक्ट हैं। मैं तो टीयर 2, टीयर 3 सीटी के लिए कहूंगा, जो किसान पैदावार करता है, उसका वैल्यू एडिशन, यह नगर पालिकाओं में शुरू हो, आस-पास से खेती की चीजें आएं, उसमें से कुछ वैल्यू एडिशन हो, गांव का भी भला होगा, शहर का भी भला होगा।

उसी प्रकार से आपने देखा होगा इन दिनों स्टार्टअप, स्टार्टअप में भी आपके ध्यान में आया होगा कि पहले स्‍टार्टअप बड़े शहर के बड़े उद्योग घरानों के आसपास चलते थे, आज देश में करीब दो लाख स्टार्टअप हैं। और ज्यादातर टीयर 2, टीयर 3 सीटीज में है और इसमें भी गर्व की बात है कि उसमें काफी नेतृत्व हमारी बेटियों के पास है। स्‍टार्टअप की लीडरशिप बेटियों के पास है। ये बहुत बड़ी क्रांति की संभावनाओं को जन्म देता है और इसलिए मैं चाहूंगा कि अर्बन डेवलपमेंट ईयर के जब 20 साल मना रहे हैं और एक सफल प्रयोग को हम याद करके आगे की दिशा तय करते हैं तब हम टीयर 2, टीयर 3 सीटीज को बल दें। शिक्षा में भी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज काफी आगे रहा, इस साल देख लीजिए। पहले एक जमाना था कि 10 और 12 के रिजल्ट आते थे, तो जो नामी स्कूल रहते थे बड़े, उसी के बच्चे फर्स्ट 10 में रहते थे। इन दिनों शहरों की बड़ी-बड़ी स्कूलों का नामोनिशान नहीं होता है, टीयर 2, टीयर 3 सीटीज के स्कूल के बच्चे पहले 10 में आते हैं। देखा होगा आपने गुजरात में भी यही हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे छोटे शहरों के पोटेंशियल, उसकी ताकत बढ़ रही है। खेल का देखिए, पहले क्रिकेट देखिए आप, क्रिकेट तो हिंदुस्तान में हम गली-मोहल्ले में खेला जाता है। लेकिन बड़े शहर के बड़े रहीसी परिवारों से ही खेलकूद क्रिकेट अटका हुआ था। आज सारे खिलाड़ी में से आधे से ज्यादा खिलाड़ी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज गांव के बच्चे हैं जो खेल में इंटरनेशनल खेल खेल कर कमाल करते हैं। यानी हम समझें कि हमारे शहरों में बहुत पोटेंशियल है। और जैसा मनोहर जी ने भी कहां और यहां वीडियो में भी दिखाया गया, यह हमारे लिए बहुत बड़ी opportunity है जी, 4 में से 3 नंबर की इकोनॉमी पहुंचने के लिए हम हिंदुस्तान के शहरों की अर्थव्यवस्था पर अगर फोकस करेंगे, तो हम बहुत तेजी से वहां भी पहुंच पाएंगे।

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साथियों,

ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक ऐसे ही इकोसिस्टम ने जमीनों में अपनी जड़े ऐसी जमा हुई हैं कि भारत के सामर्थ्य को हमेशा नीचा दिखाने में लगी हैं। वैचारिक विरोध के कारण व्यवस्थाओं के विकास का अस्वीकार करने का उनका स्वभाव बन गया है। व्यक्ति के प्रति पसंद-नापसंद के कारण उसके द्वारा किये गए हर काम को बुरा बता देना एक फैशन का तरीका चल पड़ा है और उसके कारण देश की अच्‍छी चीजों का नुकसान हुआ है। ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। अब आप देखिए, हमने शहरी विकास पर तो बल दिया, लेकिन वैसा ही जब आपने दिल्‍ली भेजा, तो हमने एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट, एस्पिरेशनल ब्लॉक पर विचार किया कि हर राज्य में एकाध जिला, एकाध तहसील ऐसी होती है, जो इतना पीछे होता है, कि वो स्‍टेट की सारी एवरेज को पीछे खींच ले जाता है। आप जंप लगा ही नहीं सकते, वो बेड़ियों की तरह होता है। मैंने कहा, पहले इन बेड़ियों को तोड़ना है और देश में 100 के करीब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उनको identify किया गया। 40 पैरामीटर से देखा गया कि यहां क्या जरूरत है। अब 500 ब्‍लॉक्‍स identify किए हैं, whole of the government approach के साथ फोकस किया गया। यंग अफसरों को लगाया गया, फुल टैन्‍यूर के साथ काम करें, ऐसा लगाया। आज दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुका है और जो डेवलपिंग कंट्रीज हैं उनको भी लग रहा है कि हमारे यहां विकास के इस मॉडल की ओर हमें चलना चाहिए। हमारा academic world भारत के इन प्रयासों और सफल प्रयासों के विषय में सोचे और जब academic world इस पर सोचता है तो दुनिया के लिए भी वो एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में काम आता है।

साथियों,

आने वाले दिनों में टूरिज्म पर हमें बल देना चाहिए। गुजरात ने कमाल कर दिया है जी, कोई सोच सकता है। कच्छ के रेगिस्तान में जहां कोई जाने का नाम नहीं लेता था, वहां आज जाने के लिए बुकिंग नहीं मिलती है। चीजों को बदला जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचा स्टैच्यू, ये अपने आप में अद्भुत है। मुझे बताया गया कि वडनगर में जो म्यूजियम बना है। कल मुझे एक यूके के एक सज्‍जन मिले थे। उन्होंने कहा, मैं वडनगर का म्यूजियम देखने जा रहा हूं। यह इंटरनेशनल लेवल में इतने global standard का कोई म्यूजियम बना है और भारत में काशी जैसे बहुत कम जगह है कि जो अविनाशी हैं। जो कभी भी मृतप्राय नहीं हुए, जहां हर पल जीवन रहा है, उसमें एक वडनगर हैं, जिसमें 2800 साल तक के सबूत मिले हैं। अभी हमारा काम है कि वह इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर कैसे आए? हमारा लोथल जहां हम एक म्यूजियम बना रहे हैं, मैरीटाइम म्यूजियम, 5 हजार साल पहले मैरीटाइम में दुनिया में हमारा डंका बजता था। धीरे-धीरे हम भूल गए, लोथल उसका जीता-जागता उदाहरण है। लोथल में दुनिया का सबसे बड़ा मैरीटाइम म्यूजियम बन रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इन चीजों का कितना लाभ होने वाला है और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तों, 2005 का वो समय था, जब पहली बार गिफ्ट सिटी के आईडिया को कंसीव किया गया और मुझे याद है, शायद हमने इसका launching Tagore Hall में किया था। तो उसके बड़े-बड़े जो हमारे मन में डिजाइन थे, उसके चित्र लगाए थे, तो मेरे अपने ही लोग पूछ रहे थे। यह होगा, इतने बड़े बिल्डिंग टावर बनेंगे? मुझे बराबर याद है, यानी जब मैं उसका मैप वगैरह और उसका प्रेजेंटेशन दिखाता था केंद्र के कुछ नेताओं को, तो वह भी मुझे कह रहे थे अरे भारत जैसे देश में ये क्या कर रहे हो तुम? मैं सुनता था आज वो गिफ्ट सिटी हिंदुस्तान का हर राज्य कह रहा है कि हमारे यहां भी एक गिफ्ट सिटी होना चाहिए।

साथियों,

एक बार कल्पना करते हुए उसको जमीन पर, धरातल पर उतारने का अगर हम प्रयास करें, तो कितने बड़े अच्छे परिणाम मिल सकते हैं, ये हम भली भांति देख रहे हैं। वही काल खंड था, रिवरफ्रंट को कंसीव किया, वहीं कालखंड था जब दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाने का सपना देखा, पूरा किया। वही कालखंड था, दुनिया का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बनाने के लिए सोचा, पूरा किया।

भाइयों और बहनों,

एक बार हम मान के चले, हमारे देश में potential बहुत हैं, बहुत सामर्थ्‍य है।

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साथियों,

मुझे पता नहीं क्यों, निराशा जैसी चीज मेरे मन में आती ही नहीं है। मैं इतना आशावादी हूं और मैं उस सामर्थ्य को देख पाता हूं, मैं दीवारों के उस पार देख सकता हूं। मेरे देश के सामर्थ्य को देख सकता हूं। मेरे देशवासियों के सामर्थ्य को देख सकता हूं और इसी के भरोसे हम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और इसलिए आज मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे यहां आने का मौका दिया है। कुछ ऐसी पुरानी-पुरानी बातें ज्यादातर ताजा करने का मौका मिल गया। लेकिन आप विश्वास करिए दोस्तों, गुजरात की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम देने वाले लोग हैं, हमें देश को हमेशा देना चाहिए। और हम इतनी ऊंचाई पर गुजरात को ले जाए, इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि देशवासियों के लिए गुजरात काम आना चाहिए दोस्तों, इस महान परंपरा को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। मुझे विश्वास है, गुजरात एक नए सामर्थ्य के साथ अनेक विद नई कल्पनाओं के साथ, अनेक विद नए इनीशिएटिव्स के साथ आगे बढ़ेगा मुझे मालूम है। मेरा भाषण शायद कितना लंबा हो गया होगा, पता नहीं क्या हुआ? लेकिन कल मीडिया में दो-तीन चीजें आएंगी। वो भी मैं बता देता हूं, मोदी ने अफसरों को डांटा, मोदी ने अफसरों की धुलाई की, वगैरह-वगैरह-वगैरह, खैर वो तो कभी-कभी चटनी होती है ना इतना ही समझ लेना चाहिए, लेकिन जो बाकी बातें मैंने याद की है, उसको याद कर करके जाइए और ये सिंदुरिया मिजाज! ये सिंदुरिया स्पिरिट, दोस्‍तों 6 मई को, 6 मई की रात। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से प्रारंभ हुआ था। लेकिन अब ये ऑपरेशन सिंदूर जन-बल से आगे बढ़ेगा और जब मैं सैन्य बल और जन-बल की बात करता हूं तब, ऑपरेशन सिंदूर जन बल का मतलब मेरा होता है जन-जन देश के विकास के लिए भागीदार बने, दायित्‍व संभाले।

हम इतना तय कर लें कि 2047, जब भारत के आजादी के 100 साल होंगे। विकसित भारत बनाने के लिए तत्काल भारत की इकोनॉमी को 4 नंबर से 3 नंबर पर ले जाने के लिए अब हम कोई विदेशी चीज का उपयोग नहीं करेंगे। हम गांव-गांव व्यापारियों को शपथ दिलवाएं, व्यापारियों को कितना ही मुनाफा क्यों ना हो, आप विदेशी माल नहीं बेचोगे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, गणेश जी भी विदेशी आ जाते हैं। छोटी आंख वाले गणेश जी आएंगे। गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। होली, होली रंग छिड़कना है, बोले विदेशी, हमें पता था आप भी अपने घर जाकर के सूची बनाना। सचमुच में ऑपरेशन सिंदूर के लिए एक नागरिक के नाते मुझे एक काम करना है। आप घर में जाकर सूची बनाइए कि आपके घर में 24 घंटे में सुबह से दूसरे दिन सुबह तक कितनी विदेशी चीजों का उपयोग होता है। आपको पता ही नहीं होता है, आप hairpin भी विदेशी उपयोग कर लेते हैं, कंघा भी विदेशी होता है, दांत में लगाने वाली जो पिन होती है, वो भी विदेशी घुस गई है, हमें मालूम तक नहीं है। पता ही नहीं है दोस्‍तों। देश को अगर बचाना है, देश को बनाना है, देश को बढ़ाना है, तो ऑपरेशन सिंदूर यह सिर्फ सैनिकों के जिम्‍मे नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर 140 करोड़ नागरिकों की जिम्‍मे है। देश सशक्त होना चाहिए, देश सामर्थ्‍य होना चाहिए, देश का नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए और इसके लिए हमने वोकल फॉर लोकल, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, मैं मेरे यहां, जो आपके पास है फेंक देने के लिए मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन अब नया नहीं लेंगे और शायद एकाध दो परसेंट चीजें ऐसी हैं, जो शायद आपको बाहर की लेनी पड़े, जो हमारे यहां उपलब्ध ना हो, बाकि आज हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं। आपने देखा होगा, आज से पहले 25 साल 30 साल पहले विदेश से कोई आता था, तो लोग लिस्ट भेजते थे कि ये ले आना, ये ले आना। आज विदेश से आते हैं, वो पूछते हैं कि कुछ लाना है, तो यहां वाले कहते हैं कि नहीं-नहीं यहां सब है, मत लाओ। सब कुछ है, हमें अपनी ब्रांड पर गर्व होना चाहिए। मेड इन इंडिया पर गर्व होना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर सैन्‍य बल से नहीं, जन बल से जीतना है दोस्तों और जन बल आता है मातृभूमि की मिट्टी में पैदा हुई हर पैदावार से आता है। इस मिट्टी की जिसमें सुगंध हो, इस देश के नागरिक के पसीने की जिसमें सुगंध हो, उन चीजों का मैं इस्तेमाल करूंगा, अगर मैं ऑपरेशन सिंदूर को जन-जन तक, घर-घर तक लेकर जाता हूं। आप देखिए हिंदुस्तान को 2047 के पहले विकसित राष्ट्र बनाकर रहेंगे और अपनी आंखों के सामने देखकर जाएंगे दोस्तों, इसी इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए,

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

भारत माता की जय! जरा तिरंगे ऊपर लहराने चाहिए।

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

धन्यवाद!