PM’s address at the Avadhoota Datta Peetham in Mysuru

Published By : Admin | January 2, 2016 | 19:24 IST
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PM Modi visits Avadhoota Datta Peetham in Mysuru, Karnataka
Gurudev Dutt has a tremendous influence in the entire Narmada region: PM
Happy to know that Guruji returned from a visit to Gujarat and he visited Kutch: PM
At Avadhoota Datta Peetham, social work has been given a big impetus: PM Modi
At Avadhoota Datta Peetham, the work of Saints, seers, Rishis has always been for the welfare of society: PM

गुरूदेव दत्त! दत्त पीठ में मैं पहली बार आया हूं, लेकिन इस परंपरा से मैं काफी सालों से जुड़ा हुआ हूं। जो भी नर्मदा तट पर अपना समय बीताते हैं तो नर्मदा तट पर अगर किसी को साधना करने का अवसर मिलता है तो गुरूदेव दत्त के बिना न वो साधना आरंभ होती है, वो साधना की पूर्णावृत्ति है। चाहे आप नरेश्वर जाएं, चाहे गुरुदेश्वर जाएं, दत्त कृपा से ही वो पूरा क्षेत्र प्रभावित है और पूरी नर्मदा की साधना जो है। जो नर्मदा के साधक होते हैं, जो नर्मदा की परिक्रमा करते हैं वे सुबह-शाम दो ही मंत्र बोलते हैं, नर्मदा हरे और गुरूदेव दत्त। ये ही दो मंत्र होते हैं जो पूरी साधना का हिस्सा होते हैं। मुझे खुशी हुई, पिछले सप्ताह गुरू जी गुजरात होकर के आए, कच्छ के रेगिस्तान में होकर के आए। ‘रण उत्सव’ तो देखा लेकिन सबसे बड़ी बात है। वहां पर Kalo Dungar पर गुरूदेव का जन्मस्थल, तीर्थस्थान है और गुरूदेव दत्त की जयंती पर वहां पर एक बहुत बड़ा समारोह होता है, हिंदुस्तान का वो आखिरी स्थान है। उसके बाद रेगिस्तान और रेगिस्तान के उस पार पाकिस्तान है। उस स्थान पर गुरूदेव दत्त का स्थान है और अभी-अभी दत्त जयंती गई तो दत्त जयंती को मनाने के लिए गुरूदेव वहां गए थे और बड़ी प्रसन्नता मुझे भी व्यक्त कर रहे थे। मेरा भी सौभाग्य है, आज मुझे दत्त पीठ आने का अवसर मिला।

इस परंपरा ने जो सामाजिक काम तो किए ही हैं, लेकिन हमारे देश में संतों के द्वारा, ऋषियों के द्वारा, मुनियों के द्वारा जो भी होता है, समाज हित में ही होता है, समाज के लिए होता है, समाज के लिए समर्पित होते हैं लेकिन उसकी पहचान नहीं होती है क्योंकि उनको लगता है कि ये तो मेरे कर्तव्य का हिस्सा है इसलिए वो कभी ढोल नहीं पीटते हैं और उसके कारण दुनिया में एक छवि है कि भारत के संत-महंत, साधु-महात्मा या उनका मत-संदर्भ और उनका पूजा-पाठ और उसी में व्यक्त करते हैं लेकिन अगर हम देखेंगे तो हमारे देश में सारी ऋषि परंपरा, संत परंपरा ये समाज उद्धार के लिए लगी हुई है, समाज-सेवा में लगी हुई है। पूज्य स्वामी जी के जितने परिकल्प हैं चाहे वो पर्यावरण की रक्षा का हो या पंखियों की चेतना को समझने का प्रयास हो या उनकी नाद ब्रहम की उपासना हो, नाद ब्रहम की उपासना अप्रतिम मानी जाती है। नाद ब्रहम के सामर्थ्य को हमारी परंपराओं ने स्वीकार किया है और इसलिए बहुत कम लोग होते हैं जो नाद ब्रहम की उपासना कर पाते हैं। ब्रहम का ये रूप जिसको feel किया जा सकता है बाकी ब्रहम के रूप को feel नहीं किया पाता है। नाद ब्रहम है, जिस ब्रहम के रूप को हम feel कर सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं और उसकी साधना के द्वारा सामान्य जन को ब्रहम तक पहुंचाने के लिए नाद का माध्यम, ये स्वामी जी ने करके दिखाया है और विश्व के बहुत बड़े फलक पर, हमारी इस महान परंपरा को from known to unknown, क्योंकि सामान्य मानवी गीत औऱ संगीत तो जानता है लेकिन उसे आध्यात्मिक रूप को जानना और उसको ब्रहम से जोड़ना, एक अविरत काम पूज्य स्वामी जी के द्वारा हुआ है, विश्व के अनेक स्थानों पर हुआ है। मुझे भी कुछ ऐसे स्थानों पर जाने का अवसर हुआ है लेकिन मूल स्थान पर आने का आज पहली बार अवसर मिला है, तो मेरे लिए सौभाग्य है।

मैं स्वामी जो को प्रणाम करता हूं और उनकी समाज-सेवा के लिए जो काम गिरी है, जो काम चल रहा है, उसको भगवान दत्त के आशीर्वाद मिलते रहे और गरीब से गरीब, सामान्य से सामान्य व्यक्ति की सेवा में ये शक्ति काम है। ये ही मेरा प्रार्थना है, गुरूदेव दत्त!

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ଗଣତନ୍ତ୍ର ପାଇଁ ଦ୍ୱିତୀୟ ସମ୍ମିଳନୀର ନେତୃତ୍ୱ-ସ୍ତରୀୟ ସାଧାରଣ ସଭାରେ ପ୍ରଧାନମନ୍ତ୍ରୀ ଶ୍ରୀ ନରେନ୍ଦ୍ର ମୋଦୀଙ୍କ ମନ୍ତବ୍ୟ
March 29, 2023
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ନମସ୍କାର!

ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଭାରତର ୧.୪ ବିଲିୟନ ଲୋକଙ୍କ ତରଫରୁ ଅଭିନନ୍ଦନ ଜଣାଉଛି ।

ର୍ନିବାଚିତ ନେତାଙ୍କ ଧାରଣା ଅବଶିଷ୍ଟ ବିଶ୍ୱର ବହୁ ପୂର୍ବରୁ ପ୍ରାଚୀନ ଭାରତରେ ଏକ ସାଧାରଣ ବୈଶିଷ୍ଟ୍ୟ ଥିଲା । ଆମର ପ୍ରାଚୀନ ମହାକାବ୍ୟ ମହାଭାରତରେ ନାଗରିକମାନଙ୍କର ପ୍ରଥମ କର୍ତ୍ତବ୍ୟ ସେମାନଙ୍କର ନେତା ବାଛିବା ବୋଲି ବର୍ଣ୍ଣନା କରାଯାଇଛି ।

ଆମର ପବିତ୍ର ବେଦରେ, ପରାମର୍ଶଦାତା ସଂସ୍ଥା ଦ୍ୱାରା ପରିଚାଳିତ ରାଜନୈତିକ ଶକ୍ତି ବିଷୟରେ ବ୍ୟାପକ ଭାବରେ କୁହାଯାଇଛି । ପ୍ରାଚୀନ ଭାରତରେ ଗଣତନ୍ତ୍ର ରାଜ୍ୟଗୁଡିକ ବିଷୟରେ ମଧ୍ୟ ଅନେକ ଐତିହାସିକ ସନ୍ଦର୍ଭ ଅଛି, ଯେଉଁଠାରେ ଶାସକମାନେ ବଂଶାନୁକ୍ରମିକ ନଥିଲେ । ଭାରତ ପ୍ରକୃତରେ ଗଣତନ୍ତ୍ରର ମାତା ଅଟେ ।

ମାନ୍ୟଗଣ୍ୟ,

ଗଣତନ୍ତ୍ର କେବଳ ଏକ ସ୍ଥାପତ୍ୟ ନୁହେଁ; ଏହା ମଧ୍ୟ ଏକ ଆବେଗ । ଏହା ବିଶ୍ୱାସ ଉପରେ ଆଧାରିତ ଯେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ମନୁଷ୍ୟର ଆବଶ୍ୟକତା ଏବଂ ଆକାଂକ୍ଷା ସମାନ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ । ସେଥିପାଇଁ, ଭାରତରେ ଆମର ମାର୍ଗଦର୍ଶକ ଦର୍ଶନ ହେଉଛି ସବକା ସାଥ, ସବକା ବିକାଶ, ଯାହାର ଅର୍ଥ ହେଉଛି ‘ଅନ୍ତର୍ଭୂକ୍ତ ଅଭିବୃଦ୍ଧି ପାଇଁ ଏକତ୍ର ପ୍ରୟାସ' ।

ଜୀବନ ଶୈଳୀରେ ପରିବର୍ତ୍ତନ ମାଧ୍ୟମରେ ଜଳବାୟୁ ପରିବର୍ତ୍ତନକୁ ମୁକାବିଲା କରିବା, ଠିକଣା ବିତରଣ ମାଧ୍ୟମରେ ଜଳ ସଂରକ୍ଷଣ କରିବା କିମ୍ବା ସମସ୍ତଙ୍କୁ ସ୍ୱଚ୍ଛ ରନ୍ଧନ ଗ୍ୟାସ ଯୋଗାଇବା ଆମର ପ୍ରୟାସ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ପଦକ୍ଷେପ ଭାରତର ନାଗରିକଙ୍କ ସାମୂହିକ ପ୍ରୟାସ ଦ୍ୱାରା ପରିଚାଳିତ । 

କୋଭିଡ୍ -୧୯ ସମୟରେ ଭାରତର ପଦକ୍ଷେପ ଲୋକମାନଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ପରିଚାଳିତ ହୋଇଥିଲା । ସେମାନେ ହିଁ ୨ ବିଲିୟନରୁ ଅଧିକ ମେଡ୍ ଇନ୍ ଇଣ୍ଡିଆ ଟିକା ଦେବା ସମ୍ଭବ କରିଥିଲେ । ଆମର “ଟିକା ମୈତ୍ରୀ” ପଦକ୍ଷେପ ବିଶ୍ୱରେ ଲକ୍ଷ ଲକ୍ଷ ଟିକା ବାଣ୍ଟିଛି ।

ଏହା ମଧ୍ୟ “ବସୁଧୈବ କୁଟୁମ୍ବକମ୍‌” ର ଗଣତାନ୍ତ୍ରିକ ଆବେଗ ଦ୍ୱାରା ପରିଚାଳିତ ହୋଇଥିଲା - ଗୋଟିଏ ବିଶ୍ୱ, ଗୋଟିଏ ପରିବାର, ଗୋଟିଏ ଭବିଷ୍ୟତ । 

ମାନ୍ୟଗଣ୍ୟ,

ଗଣତନ୍ତ୍ରର ଗୁଣ ବିଷୟରେ ଅନେକ କିଛି କହିବାକୁ ଅଛି, କିନ୍ତୁ ମୋତେ ଏତିକି କହିବାକୁ ଦିଅ: ଭାରତ, ଅନେକ ବିଶ୍ୱସ୍ତରୀୟ ଆହ୍ୱାନ ସତ୍ତ୍ୱେ ଆଜି ଦ୍ରୁତ ଗତିରେ ବୃଦ୍ଧି ପାଉଥିବା ପ୍ରମୁଖ ଅର୍ଥନୀତି । ଗଣତନ୍ତ୍ର ପାଇଁ ଏହା ହେଉଛି ସର୍ବୋତ୍ତମ ବିଜ୍ଞାପନ । ଏହା ନିଜେ କହିଛି ଯେ ଗଣତନ୍ତ୍ର ବିତରଣ ହୋଇପାରିବ ।

ଏହି ଅଧିବେଶନର ଅଧ୍ୟକ୍ଷତା ପାଇଁ ରାଷ୍ଟ୍ରପତି ୟୁନ୍‌ଙ୍କୁ ଧନ୍ୟବାଦ 

ଏବଂ ଆପଣଙ୍କ ଉପସ୍ଥିତି ପାଇଁ ସମସ୍ତ ମାନ୍ୟଗଣ୍ୟ ନେତୃମଣ୍ଡଳୀଙ୍କୁ ଧନ୍ୟବାଦ 

ଅନେକ ଅନେକ ଧନ୍ୟବାଦ