जापान में बसे हुए सभी मेरे भारतीय भाइयों एवं बहनों,
ये जो बच्चे गीत गा रहे थे, मैं करीब 25-30 साल पहले हर दिन इस गीत को गुनगुनाता था। यह मेरा बड़ा प्रिय गीत था। तो आज मेरी सारी थकान उतर गई और उसी मिजाज से बच्चे गा रहे थे, जो ओरिजिनल है। जबसे मैंने सुना है, वैसे ही मैं भी गुनगुनाता था। आज भी मेरा मन कर गया तो आपके साथ जुड़ गया था। इन बच्चों को बहुत बहुत बधाई। ये समझ लेते हैं, जो मैं बोल रहा हूं?
जापान मैं पहले भी आया हूं। यहां के भारतीय समाज से भी मेरा मिलने का अवसर मुझे हमेशा मिला है। आप लोगों को सुनने का भी अवसर मिला है और कुछ कहने का भी अवसर मिला है। दुनिया के किसी भी देश में जाइए, तो अगर कोई भी भारतीय मिलता है तो, दो-तीन चीजें प्रमुख रूप से आती हैं। साफ एयरपोर्ट पर उतरे और ऐसा हुआ। टैक्सीवाला मिला, तो ऐसा हुआ। साफ शौचालय, वाश रूम। ये चार-पांच चीजें कॉमन सुनने को मिलती हैं। और बहुत स्वाभाविक है कि इतने सालों से यहां रहने बाद, यह सामान्य है और इसलिए मैंने देश में सबसे बड़ा एक काम जो उठाया है, वह है स्वच्छ भारत का।
कठिन काम है, लेकिन किसी को तो शुरू करना चाहिए। मैंने देशवासियों के सामने एक बात रखी है कि 2019 जो, महात्मा गांधी के 150वीं जयंती का वर्ष है और महात्मा जी को सबसे प्रिय अगर कोई चीज थी तो सफाई थी। आपने महात्मा गांधी के जीवन को पढ़ा होगा, कहीं बचपन में कुछ बातें सुनने को मिली होगी तो ये बात हमेशा आती होगी। वे सफाई के संबंध में कभी कंपरमाइज नहीं करते थे। बड़े अग्रणी रहते थे। आप वर्धा का आश्रम देखिए, साबरमति का आश्रम देखिए। बहुत ही सिंपल थे। व्यवस्थाओं की दृष्टि से कोई बहुत नहीं था, लेकिन सफाई के संबंध में कोई कंपरमाइज नहीं करते थे। इसलिए मैंने देशवासियों के सामने एक बात रखी कि महात्मा गांधी ने हमें आजादी दिलाई, इतनी बड़ी सौगात महात्मा गांधी जी हमें दे के गए, हमने महात्मा जी को क्या दिया ? कुछ तो हमें लौटाना चाहिए। और इसलिए मैं देशवासियों से कहता रहता हूं कि 2019 तक ऐसा साफ-सुथरा हिंदुस्तान बना दें और 2019 में एकदम साफ-सुथरा हिंदुस्तान महात्मा जी को अर्पित करें।
तो आप भी अपने रिश्तेदारों को चिट्ठी लिखते होंगे यहां से, लेकिन अब चिट्ठी तो नहीं लिखते होंगे, ईमेल करते होंगे, वाट्स अप पर बात करते होंगे। ट्वीटर पर दोस्ती बनाई होगी। माध्यम कोई भी हो लेकिन बात जरूर पहुंचाइए आप कि हमारे जापान में ऐसी सफाई होती है, आप भी यह काम कीजिए। अपने परिवार में कीजिए, अपने अड़ोस-पड़ोस में कीजिए। ये भी करने जैसा काम है, और मुझे विश्वास है कि आप भी इस काम को अवश्य करेंगे।
भारतीय समुदाय की एक विशेषता रही है और हम लोग इस बात का गर्व जितनी मात्रा में करना चाहिए, नहीं करते हैं। बड़ी दबी जबान में, हल्के-फुल्के, ऐसे करते हैं। विश्व में कहीं पर भी अगर भारतीय समाज गया, 100 साल पहले गया, 150 साल पहले गया, कहीं पर भी गया हो, किसी भी देश से, उस समाज से अब तक कोई शिकायत नहीं आई है कि हिंदुस्तानियों ने आकर ऐसा कर दिया, हमें लूट लिया। ये छोटे संस्कार नहीं हैं जी, ये संस्कार छोटे नहीं हैं।
विश्व का कोई भी समाज, कहीं पर भी व्यक्तिगत रूप से किसी से कोई गलती हुई होगी, अच्छा बुरा हो गया होगा। लेकिन समाज के रूप में दुनिया में कहीं से कोई शिकायत भारतीय समुदाय के लिए नहीं आई है। ऊपर से सुनने को क्या मिलता है भई, ये बड़े लॉ एबाइडिंग सिटीजंस हैं, बहुत ही सरल हैं, हमारी इकोनोमी में कंट्रीब्यूट करते हैं, लेकिन समस्या कभी पैदा नहीं करते हैं।
ये हमारी विरासत है। हमारी पूंजी है और पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कारों से यह बनी है। और इसका श्रेय आप सबको जाता है। आपने ये करके दिखाया है। इसलिए मैं विशेष रूप से आपको बधाई देता हूं, आपका अभिनंदन करता हूं।
एम्बेसी में आ करके भारत क्या है, जल्दी कोई समझ नहीं पाएगा। लेकिन आपसे मिल कर के तुरंत समझ पाएगा कि भारत क्या है। आप भारत को कैसे जीते हैं, आप भारत को कैसे अभिव्यक्त करते हैं। भारत की बात को गौरव से कैसे प्रस्तुत करते हैं। उस पर निर्भर करता है।
जमाना ऐसा था मुझे याद है, बहुत साल पहले मैं ताईवान गया था, तब तो मैं इस सरकारी नौकरी में नहीं था। ऐसे ही, एक नागरिक के नाते गया था। और सात-आठ दिन, मेरे पास उन दिनों समय भी बहुत रहता था। कोई काम-धाम तो था नहीं। मेरे साथ वहां की सरकार ने एक इंटरप्रेटर लगाया था। इंटरप्रेटर पढ़ा लिखा था, कंप्यूटर इंजीनियर था। मेरे साथ इंटरप्रेटर के रूप में काम करता था। उसकी मदद के बिना हमारी गाड़ी चलती नहीं थी। दोस्ती हो गई हमारी, 5-6 दिन में। पहले तो बड़ा ही नियम से रहता था, प्रोटोकॉल में रहता था। शायद वह एमईए डिपार्टमेंट का ही होगा। जिसमें सबसे ज्यादा प्रोटोकॉल होता है। वह भी ऐसे ही रहता था। थोड़ा सा भी इधर-उधर खिसकता नहीं था। लेकिन 5-6 दिन में मेरा व्यवहार देखकर के उसकी लगा कि हां ये आदमी दोस्ती करने जैसा है। फिर दोस्ती हो गई। बातें करने लगा। आखिर एक-दो दिन बाकी थे तो उन्होंने एक सवाल पूछा। बोला, साहब, आपको बुरा न लगे तो मुझे कुछ पूछना है, मैंने कहा जरूर पूछिये। उन्होंने कहा- बुरा नहीं लगेगा, मैंने कहा पूछो भाई, कुछ भी बुरा नहीं लगेगा। बोले, सचमुच में आपको बुरा नहीं लगेगा, उसने बड़ा डरते-डरते ये पूछा, फिर मुझे कहता है मैं ताईवान की 20वीं सदी के उत्तरार्ध की घटना कह रहा हूं आपको। ब्रिटिश सेंचुरी के लास्ट इयर की। उन्होंने कहा है कि आज भी भारत में जादू-टोना वाले लोग रहते हैं? आज भी भारत में ब्लैक मैजिक चलता है ? आज भी भारत में सांप-छूछूंदर वाला सारा खेल चलता है और वो ये मानता था कि हिंदुस्तान में संपेरे लोग ही रहते हैं। यानी, आप कल्पना कीजिए, दुनिया इतनी बदल चुकी है, वह एक कंप्यूटर इंजीनियर था, लेकिन उस देश में हमारी छवि यह थी।
मैंने कहा भाई, अब तो हम सांप वाले नहीं रहे। हमारा बहुत डिवेल्यूएशन हो गया। पीढ़ी दर पीढ़ी हम और हल्के-फुल्के हो गए। बेचारा समझा नहीं। मैंने कहा, पहले हम सांप से खेलते थे, अब हम माउस से खेलते हैं। पहले हम और सांप का खेल चलता था और अब हमारा डिवेल्यूएशन, डिग्रेडेशन होते होते हम माउस से ऐसे जुड़ गए कि अब हम माउस को हिलाते हैं, तो दुनिया पूरी हिलती है।
हमारे देश 20- 22- 24 साल के नौजवानों ने दुनिया को अचंभित कर दिया, इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में। पूरे विश्व को भारत की ओर देखने का नजरिया बदलना पड़ा। कोई सरकार, कोई पीआर एजेंसी, अरबों-खरबों का बजट जो काम नहीं कर सकता था, वह हिंदुस्तान के 20- 22 साल के नौजवानों ने कंप्यूटर पर उंगली घुमा-घुमा कर, दुनिया का रूप बदल दिया है।
ये ताकत है देश की। इसका गर्व करता है इंडिया। विश्व के सामने हमें अपने इंडिया पर गर्व होता है। आप दुनिया का कोई भी देश देख लीजिए, क्या दुनिया के देशों में कठिनाइयां नहीं होगीं, होगीं। तकलीफें नहीं होगीं, होगीं। अच्छे-बुरे इंसान नहीं होंगे? होंगे। लेकिन विश्व का वही समाज आगे बढ़ता है जो अपने अच्छाइयों को लेकर के जीता है। रोने बैठता नहीं है। छोड़ो यार। पता नहीं पिछले जन्म में क्या पाप किया है, हिंदुस्तान में जन्म लिया। अच्छा होता मैं किसी और देश में पैदा हुआ होता। ऐसा समाज दुनिया में कभी कुछ नहीं कर सकता हैं।
अपने पास जो भी है, उसके लिए जो गर्व करता है, स्वाभिमान से जीता है और इसलिए हम दुनिया में कहीं भी रहें, दुनिया भी सारी अच्छी चीजों पर गर्व करें, लेकिन अपने स्वाभिमान के प्रति कभी भी कंपरमाइज नहीं करना चाहिए। यह अपने आप में बहुत बड़ी ताकत है। देखिए, भगवान राम श्रीलंका गए थे। लंका गए, सोने की लंका गए। आखिर वो भी इंसान तो थे। कौन मोहित नहीं हो जाता। लेकिन सोने की नगरी में विजयी हो के खड़े रहने के बाद भी वह कहते क्या हैं, ‘स्वर्गादपि गरियसी’। अयोध्या के लिए यह भाव था उनके मन में। मेरा अयोध्या जैसा भी हो, गरीबी होगी, कठिनाइयां होंगी, भले तुम्हारी लंका सोने की हो, तुम्हें मुबारक। मेरे लिए तो ‘स्वर्गादपि गरियसी’। ये जो सबक है, संदेश है, वह हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
मैं चाहूंगा, विश्वभर में फैला हुआ हिंदुस्तान का कोई भी नागरिक हो, उसके हृदय में यह भाव बना रहना चाहिए। जिन लोगों ने, कैरिबियन कंट्रीज में हमारे लोग गए, सवा सौ-डेढ़ सौ साल पहले गए, मजदूर के रूप में गए। अंग्रेज उनको मजदूर के रूप में उठा के ले जाते थे। जो जेल में कैदी थे, उनको उठा के ले जाते थे। वहां छोड़ देते थे। उन लोगों ने वहां जाकर देश बनाए। वहां जाकर देखिए। देखिए आज भी एक रामायण की चौपाइयों के भरोसे उन्होंने हिंदुस्तान के साथ अपना नाता बनाये रखा है। यानी अपना जो मूल है, नाभी से ही तो प्राण तत्व मिलता है, नाभी से कभी नाता टूटना नहीं चाहिए। नाभी से नाता कैसे बना रहे, इसके लिए निरंतर प्रयास होना चाहिए।
हम किसी भी देश में क्यों न हो। लेकिन ये तो तय कर सकते हैं कि कम से कम खाना खाते समय शाम को सब इकट्ठे बैठेंगे। तीन पीढ़ी होगी तो तीन पीढ़ी, दो पीढ़ी होगी तो दो पीढ़ी, चार पीढ़ी होगी तो चार पीढ़ी, कम से कम सब खाना खाने के टेबल पर हम अपनी मातृभाषा में बात करेंगे। यह कर सकते हैं क्या ?
बात छोटी है लेकिन ये इसकी बहुत बड़ी ताकत है। और कभी ना कभी एक कंपीटिशन करनी चाहिए विदेश में और मैं चाहूंगा कि आप करेंगे विदेश में। हमारी बच्चियां है, साड़ी पहनने की कंपीटिशन। अच्छी से अच्छी साड़ी कौन पहनता है। जल्दी से जल्दी साड़ी कौन पहनता है। ईनाम दीजिए। बच्चों के लिए साफा बांधने की प्रैक्टिस। अच्छे से अच्छा साफा कैसे बांधते हैं, पगड़ी कैसे बांधते हैं। देखिए इन चीजों से लगाव पैदा होता है। कंपीटिशन का कंपीटिशन होगा, खेल का खेल होगा, लेकिन आप की नई पीढ़ी को संस्कार मिल जाएगा। और इसलिए चीजें छोटी हो, लेकिन छोटी-छोटी चीजों का, कभी भारतीय व्यंजनों का कंपीटिशन। कंपलसरी नहीं पीढ़ी ही बनाकर लाये, पुराने लोग जो हिंदुस्तान से आए, वो नहीं। जो यहां पैदा हुए, बढ़े, उनको बनाओ। चलो रोटी बनाके ले आओ। सब्जी बना के ले आओ। दाल बना, कैसे बनाते हैं।
आपको आश्चर्य होगा कि मैं ऐसी छोटी-छोटी बातें कर रहा हूं। ये कोई प्रधानमंत्री है कोई ? लेकिन मुझे मालूम है कि ये छोटी-छोटी चीजों की जो ताकत होती है, वही दुनिया बदलती है। और हमारी नई पीढ़ी को इसके लिए तैयार करना चाहिए। अगर आप इसको करेंगे तो अच्छा होगा, बाकी तो मैं इस देश का मेहमान था, भारत की बात ले के आया था, भारत की बात सुनाने आया था।
जापान की बातें सुनने समझने की कोशिश की। बहुत अच्छे निर्णय हुए। जापान के साथ बहुत अच्छे निर्णय हुए। हिंदुस्तान में ट्रिलियन शब्द शायद पहली बार चर्चा में आएगा। कानों पर मिलियन-बिलियन तो थोड़ा बहुत आने लगा है। ट्रिलियन शब्द पहली बार वहां चर्चा में आया। 3.5 ट्रिलियन येन, करीब 35 बिलियन डालर, यानी कि 2 लाख 10 हजार करोड़ रुपये, आने वाले दिनों में जापान भारत में निवेश करेगा। भारत के विकास के अंदर जुड़ेगा। ये अपने आप में बहुत बड़ा निर्णय है।
कुछ एरिया बड़े सेंसेटिव होते है, जो जिसको दो देशों को जरा अशंका का माहौल रहता है। हमारे देश की छह कंपनियां ऐसी थी, जो प्रोडक्शन करती थी, वह जापान में प्रतिबंधित थी। जापान के साथ उस विषय से हमारा लंबे अरसे से झगड़ा चलता था। मुझे सबसे ज्यादा आनंद इस बात का है कि जापान ने हम पर भरोसा किया। भरोसा बहुत बड़ी ताकत होती है। दुनिया के संबंधों में भरोसा एक ऐसा केमिकल है जी, जो फेविकल से भी ज्यादा घनिष्ट दोस्ती बनाता है। गहरी दोस्ती बनाती ह। और उस भरोसे के कारण जापान ने उन छह हमारे जो कंपनियों के उत्पादन पर जो प्रतिबंध लगाया था, उसे हटा दिया।
मैं पैदा तो गुजरात में हुआ हूं, गुजरात ने मुझे पाला-पोसा, बड़ा किया, लेकिन इन दिनों में काशी की सेवा में हूं। वाराणसी का मैं एमपी हूं। मेरा एक दायित्व भी बनता है। वाराणसी, वेद काल से भी पुरानी नगरी मानी जाती है। शायद दुनिया की सबसे पुरानी नगरी के रूप में उसका वर्णन आता है। क्योटो भी काफी पुरानी नगरी है। यहां भी हजारों मंदिर हैं। यहां पर भी उसकी आत्मा जो है, स्पिरिचुअल आत्मा जो है, उसको संभालते हुए उसका मोडर्नाइज किया। मेरे मन में रहता था कि वाराणसी में नहीं हो सकता है ऐसा ? इसलिए, इस यात्रा में मैंने कुछ समय क्योटो के लिए भी निकाला। मेरे लिए खुशी की बात है कि प्रधानमंत्री सारे प्रोटोकाल छोड़कर के क्योटो आए। मुझे सब जगह दिखाने के लिए ले गए। काफी समय मेरे साथ बिताया। हल्की-फुल्की, बहुत सी गप्पें, गोष्ठी, बातें हुई। हल्का-फुल्का माहौल रहा। लेकिन मेरा सपना था, मैं एक वाराणसी का जन प्रतिनिधि हूं, तो वहां के लिए भी कुछ में करूं।
क्योटो के साथ जी हमारा जो एमओयू हुआ है, और विशेषकर के उन परंपराओं को बनाये रखते हुए, हेरीटेज को पूरी तरह संभालते हुए और क्योटो एक ऐसी सिटी है, जिसके 17 स्ट्रक्चर्स ऐसे हैं, जो वर्ल्ड हेरीटेज में है। एक नगर के 17 स्ट्रक्चर्स वर्ल्ड हेरिटेज में हों, दुनिया में कहीं नहीं हो सकता है। ऐसी वो नगरी है। उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। क्योटो वाराणसी दोनों एज ए नगर ‘हेरीटेज सिटी’ में हैं। तो उसके दिशा में मैंने थोड़ा समय दिया था। मैं मानता हूं कि आने वाले दिनों में जापान के मार्गदर्शन से उस काम को हम भारत में कर पाएंगे।
मेरे हिसाब से यात्रा बहुत ही सफल रही है। बहुत ही सफल।मैं इस यात्रा को एक और रूप में भी विशेष देखता हूं। समान्य रूप के प्रमुख लोग मिलते हैं तो एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं। आपको जानकर के खुशी होगी, मैं गिफ्ट देने के लिए गीता ले आया था, भगवद् गीता। मैं नहीं जानता हूं कि हिंदुस्तान में इस पर क्या होगा, शायद एक टीवी डिबेट चलेगी इस पर। हमारे सारे सेक्यूलर मित्र बड़ा तूफान खड़ा कर देंगे कि मोदी अपने आप को समझता क्या है। गीता लेकर गया है, मतलब उसने उसको भी कम्यूनल कर दिया है।
खैर उनकी भी तो रोजी रोटी चलनी चाहिए और अगर हम नहीं रहे तो उनकी कैसे चलेगी। लेकिन पता नहीं आज-कल ऐसे-ऐसे विषयों पर विवाद करते हैं। लेकिन, मेरा कमिटमेंट है, मेरा कनविक्शन है, मैंने निर्णय किया कि मैं दुनिया के किसी भी महापुरूष को मिलूंगा तो मैं ये दूंगा।
मैंने जापान में आज यहां के महाराजा मिलने गया तो मैंने उनको भी गीता भेंट की। क्योंकि मेरे पास इससे बढ़कर के देने को कुछ नहीं है। दुनिया के पास भी इससे बढ़ कर पाने को कुछ नहीं है। भारत और जापान की मैत्री, इसका एक विशेष रूप है। जापान के लोगों के दिलों में भारत के लिए एक विशेष स्थान है। आप लोग यहां रहते हैं, आपका तो होगा ही। लेकिन उसका कारण हमारे लोगों के कुछ विशेष व्यवहार रहे होंगे। मुझे यहां बताया गया कि जब हिरोशिमा की घटना हुई तो उसके बाद दुनिया के कई देशों के लोग मदद को यहां आए थे। सब खत्म हो चुका था। अकेले हिन्दुस्तान के जो वालेंटियर्स आए थे, वही अकेले ऐसे थे जो डेड बॉडी को अपने हाथों से उठाते थे। बाकी दुनिया से आए हुए मशीन से सारी चीजें हटाते थे। भारत के लोग हिरोशिमा के उस आपत्ति में उनके शरीर को अपने हाथों से उठाकर ले जाते थे। इस बात का उनके मन पर प्रभाव आज भी है, कि यह देश जीवित जापानी के ही नहीं, मृतक जापानी को भी उतना ही सम्मान देता है, ये शिक्षा दी थी। चीजें छोटी होती है, लेकिन और इसके कारण एक ऐसा इमोशनल बाइंडिंग है।
इस मैत्री को आगे बढ़ाने के पीछे एक वैश्विक परिदृश्य में बहुत अलग रूप देखता हूं। टर्मिनोलॉजिकली, मैं कोई डिप्लोमेट नहीं हूं। इसलिए मुझे इस टर्मिनोलोजी का कोई ज्ञान नहीं है कि वे लोग कैसे इसे सोचते होंगे। लेकिन मेरा जो रॉ विजन है, सामान्य समझ जो मेरी है, वो मुझे कहती है। सारी दुनिया कहती है कि 21वीं सदी एशिया की होगी। इसमें कोई कंफ्यूजन नहीं है। सब लोग बोलते है, दुनिया के टॉप मोस्ट सब लोग बोल चुके हैं कि 21वीं सदी एशिया की होगी। कोई आगे बढ़ के कहता है कि 21वीं सदी चाइना की होगी, कोई कहता है 21 वीं इंडिया की होगी। लेकिन इसमें कोई कंफ्यूजन नहीं है कि 21वीं एशिया की होगी। अब 21वीं सदी एशिया की होगी, यह तो कंफर्म है, लेकिन 21वीं सदी कैसी होगी, यह अभी कंफर्म नहीं है और वो कैसी होगी, यह उस बात पर डिपेंड करता है कि भारत और जापान की मैत्री कैसी होगी। भारत और जापान मिल कर के किन वैल्यूज को प्रोमोट करते हैं। विश्व को किस दिशा में ले जाने के लिए प्रयास करते हैं। उस पर 21 वीं सदी की दिशा, 21वीं सदी की दशा यह निर्भर रहने वाली है। उस अर्थ में, उस अर्थ में भारत और जापान की मैत्री का प्रभाव आने वाली पूरी शताब्दी पर रहने वाला है।
आप जब जापान में रहते है तो इसकी ताकत क्या है, इस ताकत को समझ करके एक नागरिक के नाते, एक भारत में प्रतिनिधि के नाते जापानियों के दिल में किस प्रकार से हमारा जुड़ाव बढ़ता चले, और इस सपने को साकार करें। मुझे विश्वास है कि भारत के गौरव को बढ़ाने में आप लोगों का बहुत-बहुत योगदान रहेगा।
दो छोटी चीजें मैं आपके सामने कहना चाहता हूं। हम इतने सालों से जापान में रहते हैं, एक संकल्प कर सकते हैं कि हमारे अपने प्रयत्न से कम से कम पांच जापानीज परिवार को हर वर्ष मैं हिंदुस्तान जाने के लिए, देखने के लिए प्रेरित करूंगा। कर सकते हैं क्या ? भारत सरकार जो टूरिज्म को प्रमोट नहीं कर सकती है, वह आप कर सकते हैं। आप मुझे बताइए, कितने 23000 बताए यहां, पूरे जापान में। अगर 23000 है, पूरे 5000 फैमिली हैं। 5000 फैमिली 5 परिवार को भेजे, मतलब 25000 फैमिली मतलब मोर देन 75000 टू वन लाख लोग, आपके प्रयत्न से हर वर्ष हिंदुस्तान आए, मुझे बताइए, वहां के गरीब को रोजी-रोटी मिलेगी कि नहीं मिलेगी, चाय बेचने वाले की चाय बिकेगी कि नहीं बिकेगी। आप भी चाहते हैं ना कि चाय बेचने वाले की चाय बिके।
हम एक काम कर सकते हैं, लेकिन हम करते नहीं है। उनको समझायें, उनको विश्वास दें। और आप चलिये, हम आपको अता पता देते हैं, इन चार जगह पर जाके आइये, अच्छा लगेगा। देखिए सिर्फ विश्व में फैले हुए भारतीय प्रतिवर्ष पांच अपने साथी मित्र परिवारों को हिंदुस्तान भेजना शुरू करें, हिंदुस्तान का टूरिज्म दुनिया में कतई पीछे नहीं रहेगा। बड़ी सरलता से करने वाला काम है।
दूसरी बात, अब तो दुनिया सारी सोशल मीडिया से जुड़ी हुई है, इंटरनेट से जुड़ी हुई है। मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय में ‘माई गोव. एमआई.जीओवी’, एक इंटरैक्टिव वेबसाइट है। आप इसमें जाकर के डिटेल देखिए। आप एक ग्रुप के रूप में ज्वाइन करके भारत में क्या किया जा सकता है। बहुत कंस्ट्रक्टिव सुझाव डाइटेक्ट मुझे भेज सकते हैं। आपके मन में जो भी विचार आए लिख सकते हैं। यह एक ओपन फोरम है, बहुत ही नया कंसेप्ट है। ‘माई गोवमेंट’ यानी जनता कहती है, ‘मेरी सरकार’ है। उस मूड में उसको बनाया है। मैं चाहूंगा कि आप उसको स्टडी कीजिए। उसमें जिन विषयों को मैंने रेज किया है, आप उस पर अपना योगदान दीजिए। ये कंट्रीबूशन पूरे विश्व में फैले हुए अपने लोगों के द्वारा जितना कंट्रीब्यूशन मिलेगा, नए-नए आइडियाज भारत की प्रगति के लिए काम आएंगे। मैंने आपसे न येन मांगा है, न पाउंड मांगा है, न डॉलर मांगा है। उसके बावजूद भी आप देश की बहुत कुछ देश की सेवा कर सकते हैं।
इसी एक अपेक्षा के साथ आप सबको मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं।धन्यवाद।
केंद्रीय मंत्रिमंडळातील माझे सहकारी श्री. अमित शाह, चंदीगडचे प्रशासक श्री. गुलाबचंद कटारियाजी, राज्यसभेतील माझे सहकारी खासदार सतनाम सिंह संधूजी, उपस्थित इतर लोकप्रतिनिधी, आणि सभ्य स्त्री-पुरूषहो,
चंदीगडमध्ये आलो की मला माझ्याच लोकांमध्ये आल्यासारखे वाटते. चंदीगडची ओळख शक्तीस्वरूपा माँ चंडिका देवीच्या नावाशी जोडलेली आहे. माँ चंडी म्हणजे शक्तीचे असे स्वरूप, जे सत्य आणि न्यायाची पाठराखण करते. हीच भावना भारतीय न्याय संहिता आणि नागरी सुरक्षा संहितेच्या संपूर्ण मसुद्याचा पाया आहे. आज देश विकसित भारताच्या संकल्पासह आगेकूच करतो आहे संविधानाला 75 वर्षे पूर्ण होत आहेत... अशा वेळी संविधानाच्या भावनेने प्रेरित भारतीय न्यायिक संहितेची अंमलबजावणी होते आहे, ही एक मोठी सुरुवात आहे. आपल्या राज्यघटनेने देशातील नागरिकांसाठी कल्पना केलेल्या आदर्शांची पूर्तता करण्याच्या दिशेने हा एक ठाम प्रयत्न आहे. या कायद्यांची अंमलबजावणी कशी होईल, याचे प्रात्यक्षिक अर्थात लाईव्ह डेमो मी आता पाहत होतो. आणि मी इथल्या प्रत्येकाला विनंती करतो की त्यांनी वेळ काढून हा लाईव्ह डेमो पाहावा. कायद्याच्या विद्यार्थ्यांनी पहावे, बार मधील सहकाऱ्यांनी पहावे, न्यायपालिकेच्या मित्रांना शक्य असले, तर त्यांनीही पहावे. या निमित्ताने मी सर्व देशवासियांना भारतीय न्याय संहिता, नागरी संहिता लागू झाल्याबद्दल शुभेच्छा देतो आणि चंदीगड प्रशासनाशी संबंधित सर्वांचे मी अभिनंदन करतो.
मित्रांनो,
देशाची नवीन न्याय संहिता हा जितका सर्वसमावेशक दस्तावेज आहे, त्याची निर्मिती करण्याची प्रक्रियाही तितकीच व्यापक आहे. देशातील अनेक महान संविधानतज्ञ आणि कायदेतज्ज्ञांनी यासाठी परिश्रम घेतले आहेत. गृह मंत्रालयाने जानेवारी 2020 मध्ये याबाबत सूचना मागवल्या होत्या. या कामी देशाच्या सरन्यायाधीशांच्या सूचना व मार्गदर्शन सुद्धा लाभले. उच्च न्यायालयांच्या मुख्य न्यायमूर्तींनीही या कामी पूर्ण सहकार्य केले. देशाचे सर्वोच्च न्यायालय, 16 उच्च न्यायालये, न्यायिक अकादमी, अनेक कायदे संस्था, समाजातील व्यक्ती, इतर विचारवंत... या सर्वांनी वर्षानुवर्षे विचारमंथन केले, संवाद साधला, त्यांचे अनुभव एकत्र केले, आधुनिक दृष्टीकोन लक्षात घेत त्यानुसार देशाच्या गरजांवर चर्चा केली. स्वातंत्र्याच्या सात दशकांमध्ये न्यायव्यवस्थेसमोर आलेल्या आव्हानांवर सखोल चर्चा झाली. प्रत्येक कायद्याचा व्यावहारिक पैलू लक्षात घेतला गेला, भविष्यासाठी पूरक मापदंडांनुसार त्याचे स्वरूप निश्चित करण्यात आले… आणि त्यानंतर भारतीय न्याय संहिता आजच्या स्वरूपात आपल्यासमोर आली. यासाठी मी देशाच्या सर्वोच्च न्यायालयाचे, माननीय न्यायाधीशांचे, देशातील सर्व उच्च न्यायालयांचे, विशेषत: हरियाणा आणि पंजाब उच्च न्यायालयांचे विशेष आभार मानतो. पुढाकार घेऊन या न्याय संहितेचे दायित्व स्वीकारल्याबद्दल मी बारचेही आभार मानतो, बारचे सर्व सहकारी अभिनंदनास पात्र आहेत. सर्वांच्या सहकार्यातून साकारलेली ही न्याय संहिता भारताच्या न्यायप्रवासात मैलाचा दगड ठरेल, असा विश्वास मला वाटतो.
मित्रांनो,
1947 साली आपल्या देशाला स्वातंत्र्य मिळाले. तुम्ही कल्पना करा, शतकानुशतकांच्या गुलामगिरीनंतर, पिढ्यानपिढ्यांच्या प्रतिक्षेनंतर, ध्येयवादी लोकांच्या बलिदानानंतर, जेव्हा स्वातंत्र्याची पहाट झाली तेव्हा... तेव्हा किती स्वप्ने होती, देशात किती उत्साह होता. देशवासियांनाही वाटत होते की इंग्रज निघून गेले तर आपल्याला ब्रिटीश कायद्यांपासूनही मुक्ती मिळेल. ते कायदे ब्रिटिशांच्या दडपशाहीचे आणि शोषणाचे साधन होते. ब्रिटीश सरकार भारतावर आपले वर्चस्व कायम ठेवण्यासाठी काहीही करायला तयार होते, तेव्हा हे कायदे केले गेले होते. 1857 साली... मी माझ्या युवा मित्रांना सांगू इच्छितो, - लक्षात घ्या, 1857 साली देशाचे पहिले मोठे स्वातंत्र्ययुद्ध लढले गेले होते. 1857 च्या त्या स्वातंत्र्यलढ्याने ब्रिटीश राजवटीची पाळेमुळे हादरली होती आणि देशाच्या कानाकोपऱ्यात ब्रिटीश राजवटीला मोठे आव्हान निर्माण झाले होते. त्यानंतर, या लढ्याला प्रत्युत्तर म्हणून ब्रिटिशांनी 3 वर्षांनी 1860 साली भारतीय दंड संहिता, म्हणजेच IPC प्रचलित केली. त्यानंतर काही वर्षांनी भारतीय साक्ष कायदा आणला गेला. आणि त्यानंतर CRPC चा पहिला आराखडा अस्तित्वात आला. भारतीयांना शिक्षा करणे, त्यांना गुलाम बनवून ठेवणे ही या कायद्यांची कल्पना आणि उद्देश होता. आणि दुर्दैव असे की स्वातंत्र्यानंतरही अनेक दशके आपले कायदे त्याच दंड संहितेला आणि दंड करणाऱ्या मानसिकतेला प्रमाण मानत राहिले. नागरिकांना गुलाम म्हणून वापर करणारे ते कायदे होते. या कायद्यांमध्ये किरकोळ सुधारणा करण्याचे प्रयत्न वेळोवेळी झाले, पण त्यांचे मूळ स्वरूप मात्र तसेच राहिले. गुलामांसाठी बनवलेले कायदे स्वतंत्र देशात का पाळले जावेत? हा प्रश्न आपण स्वतःला विचारला नाही आणि सत्तेत असणाऱ्या लोकांनाही याचा विचार करणे गरजेचे वाटले नाही. गुलामगिरीच्या या मानसिकतेचा भारताच्या प्रगतीवर आणि भारताच्या विकासाच्या प्रवासावर खूप परिणाम झाला.
मित्रांनो,
त्या वसाहतवादी मानसिकतेतून देशाने बाहेर पडावे, देशाची क्षमता राष्ट्र उभारणीसाठी वापरली जावी...यासाठी राष्ट्रीय चिंतन गरजेचे होते. आणि म्हणूनच 15 ऑगस्ट रोजी लाल किल्ल्यावरून मी देशासमोर गुलामगिरीच्या मानसिकतेतून मुक्त होण्याचा संकल्प देशासमोर ठेवला होता. आता भारतीय न्याय संहिता, नागरी संहितेच्या माध्यमातून देशाने त्या दिशेने आणखी एक मजबूत पाऊल उचलले आहे. आपली न्याय संहिता लोकशाहीचा आधार असणाऱ्या 'लोकांच्या, लोकांद्वारे, लोकांसाठी' या भावनेला बळ देत आहे.
मित्रांनो,
न्यायसंहिता ही समता, समरसता आणि सामाजिक न्यायाच्या विचारांनी विणलेली आहे. कायद्याच्या दृष्टीने सर्व समान आहेत, असे आपण नेहमीच ऐकत आलो आहोत. प्रत्यक्षात मात्र वस्तुस्थिती वेगळी असल्याचे दिसून येत असे. गरीब, दुर्बल माणसे कायद्याच्या नावानेही घाबरत होती. शक्यतो कोर्टात किंवा पोलीस ठाण्यात पाय ठेवायलाही घाबरत होती.
आता भारतीय न्याय संहिता समाजाची ही मानसिकता बदलण्याचे काम करेल. देशाचा कायदा समानतेची, equality ची हमी आहे, असा त्याला विश्वास असेल. हाच... हाच खरा सामाजिक न्याय आहे, ज्याची हमी आपल्या संविधानात देण्यात आली आहे.
मित्रांनो,
भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता... प्रत्येक पीडित व्यक्तीबाबत संवेदनशीलतेने परिपूर्ण आहे. देशाच्या नागरिकांना याचे बारकावे समजणे देखील तितकेच गरजेचे आहे. म्हणूनच माझी अशी इच्छा आहे, आज येथे चंदीगडमध्ये दाखवलेला Live Demo प्रत्येक राज्याच्या पोलिसांनी आपल्या भागात त्याचा प्रचार, प्रसार केला पाहिजे. म्हणजे जसे तक्रारीच्या 90 दिवसांच्या आत पीडित व्यक्तीला प्रकरणाच्या प्रगतीविषयीची माहिती द्यावी लागेल. ही माहिती SMS सारख्या डिजिटल सेवांच्या माध्यमातून थेट त्या व्यक्तीपर्यंत पोहोचेल. पोलिसांच्या कामात अडथळे आणणाऱ्या व्यक्तीच्या विरोधात कारवाई करण्याची व्यवस्था तयार करण्यात आली आहे. महिलांच्या सुरक्षेसाठी न्याय संहितेत एक वेगळा अध्याय ठेवलेला आहे. कामाच्या ठिकाणी महिलांचे अधिकार आणि सुरक्षितता, घर आणि समाजात त्यांचे आणि बालकांचे अधिकार, भारतीय न्याय संहिता हे सुनिश्चित करते की कायदा पीडितेच्या पाठिशी उभा असेल. यामध्ये आणखी एक महत्त्वाची तरतूद करण्यात आली आहे. आता महिलांवर होणाऱ्या बलात्कारासारख्या घृणास्पद गुन्ह्यांमध्ये पहिल्या सुनावणीपासून 60 दिवसांच्या आत आरोप दाखल करावेच लागतील. सुनावणी पूर्ण झाल्यानंतर 45 दिवसांच्या आत निकालाची सुनावणी करणे देखील अनिवार्य करण्यात आले आहे. हे देखील निर्धारित करण्यात आले आहे की कोणत्याही प्रकरणात दोन पेक्षा जास्त स्थगिती, एडजर्नमेंट घेता येणार नाही.
मित्रांनो,
भारतीय न्याय संहितेचा मूल मंत्र आहे- सिटीझन फर्स्ट! हा कायदा नागरिकांच्या अधिकारांचा Protector बनत आहे, ‘ease of justice’ चा पाया बनत आहे. पूर्वी FIR करणे किती कठीण असायचे. पण आता झिरो FIR ला देखील कायदेशीर रुप देण्यात आले आहे, आता त्याला कोठूनही प्रकरण दाखल करण्याची सवलत मिळाली आहे. FIR ची कॉपी पीड़ित व्यक्तीला दिली जावी, असा अधिकार दिला गेला आहे. आता आरोपीवरील दाखल प्रकरण मागे घ्यायचे असेल तर ते त्याच वेळी हटवले जाईल, ज्यावेळी पीड़ित व्यक्तीची सहमती असेल. आता पोलिस कोणत्याही व्यक्तीला स्वतःच्या मनाने ताब्यात घेऊ शकणार नाहीत. त्या व्यक्तीच्या नातेवाईकांना त्याची माहिती देणे हे देखील न्याय संहितेत अनिवार्य करण्यात आले आहे. भारतीय न्याय संहितेची आणखी एक बाजू आहे... ती म्हणजे तिची मानवता, तिची संवेदनशीलता. आता आरोपीला शिक्षेविना जास्त काळ तुरुंगात ठेवता येणार नाही. आता 3 वर्षापेक्षा कमी शिक्षा असलेल्या प्रकरणात अटक देखील उच्च अधिकाऱ्यांच्या सहमतीनेच होऊ शकते. लहान गुन्ह्यांसाठी अनिवार्य जामिनाची देखील तरतूद करण्यात आली आहे. सामान्य गुन्ह्यांमध्ये शिक्षेच्या ऐवजी Community Service चा पर्याय देखील देण्यात आला आहे. यामुळे आरोपीला समाजाच्या हितासाठी, सकारात्मक दिशेने पुढे जाण्याची नवी संधी मिळेल. First Time Offenders साठी देखील न्याय संहिता अतिशय संवेदनशील आहे. देशातील लोकांना हे जाणून आनंद होईल की भारतीय न्याय संहिता लागू झाल्यानंतर तुरुंगातून अशा हजारो कैद्यांना मुक्त करण्यात आले... जे जुन्या कायद्यांमुळे तुरुंगात बंदिस्त होते. तुम्ही कल्पना करू शकता, एक नवी व्यवस्था, नवा कायदा नागरिकांच्या अधिकारांच्या सक्षमीकरणाला किती उंचावू शकतो.
मित्रांनो,
न्यायाचा सर्वात पहिला निकष म्हणजे वेळेवर मिळालेला न्याय. आपण सर्व हे बोलत आणि ऐकत देखील आलो आहोत - justice delayed, justice denied! म्हणूनच, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता यांच्या माध्यमातून देशाने त्वरित न्यायाच्या दिशेने एक मोठे पाऊल टाकले आहे. यामध्ये लवकर आरोपपत्र दाखल करण्याला आणि लवकर निर्णय देण्याला प्राधान्य दिले आहे. कोणत्याही प्रकरणात प्रत्येक टप्पा पूर्ण करण्यासाठी कालमर्यादा निर्धारित करण्यात आली आहे. ही व्यवस्था देशात लागू करून केवळ काही महिनेच झाले आहेत. ती परिपक्व होण्यासाठी काही काळ लागेल. पण इतक्या कमी काळातही जे बदल आम्हाला दिसत आहेत, देशाच्या वेगवेगळ्या भागातून जी माहिती मिळत आहे, ती खरोखरच समाधान देणारी आहे, उत्साहवर्धक आहे. तुम्हा सर्वांना हे तर चांगल्या प्रकारे माहीत आहेच, आपल्या या चंदीगडमध्येच वाहन चोरी, व्हेईकल चोरी करण्याच्या एका प्रकरणात FIR दाखल होण्याच्या केवळ 2 महीने 11 दिवसांच्या आत न्यायालयाने आरोपीला दोषी ठरवून शिक्षा सुनावली. या भागात अशांतता निर्माण करण्याचा आरोप असलेल्या आणखी एका व्यक्तीला न्यायालयाने केवळ 20 दिवस संपूर्ण सुनावणी करून शिक्षा देखील सुनावली. दिल्लीतही एका प्रकरणात FIR पासून निकाल लागेपर्यंत केवळ 60 दिवसांचा कालावधी लागला.... आरोपीला 20 वर्षांची शिक्षा सुनावण्यात आली. बिहारच्या छपरा मध्येही एका खुनाच्या प्रकरणात FIR पासून निकालापर्यंतच्या प्रक्रियेला केवळ 14 दिवस लागले आणि आरोपीला आजन्म कारावासाची शिक्षा झाली. हे निकाल दाखवून देत आहेत की भारतीय न्याय संहितेचे सामर्थ्य किती आहे, तिचा प्रभाव किती आहे. हे बदल दाखवून देतात की ज्यावेळी सामान्य नागरिकांच्या हितासाठी समर्पित असलेले सरकार असते, ज्यावेळी सरकारला प्रामाणिकपणे लोकांच्या समस्या दूर करण्याची इच्छा असते, तेव्हा बदल देखील होतात आणि त्यांची फलनिष्पत्ती देखील मिळते. या निकालांची देशात जास्तीत जास्त चर्चा झाली पाहिजे अशी माझी इच्छा आहे, जेणेकरून आपले सामर्थ्य किती प्रमाणात वाढले आहे, याची जाणीव प्रत्येक भारतीयाला होईल. यामुळे गुन्हेगारांना देखील कळून चुकेल की आता तारीख पे तारीख चे दिवस मागे पडले आहेत.
मित्रांनो,
नियम किंवा कायदे तेव्हाच प्रभावी असतात, जेव्हा ते काळानुसार प्रासंगिक असतात. आज जग इतक्या झपाट्याने बदलत आहे. गुन्हे आणि गुन्हेगारांचे प्रकार आणि पद्धती बदललेल्या आहेत. अशा वेळी 19 व्या शतकात निर्माण केलेली कोणतीही व्यवस्था कशी काय व्यावहारिक ठरू शकली असती. म्हणूनच आम्ही या कायद्यांना भारतीय बनवण्याबरोबरच आधुनिक देखील बनवले आहे.
इथे आताच आपण हे देखील पाहिले आहे की डिजिटल पुरावा देखील एक महत्त्वाचा पुरावा म्हणून कसा ठेवला आहे. तपासादरम्यान पुराव्यांमध्ये फेरफार होऊ नये, यासाठी संपूर्ण प्रक्रियेचे चित्रीकरण अनिवार्य करण्यात आले आहे. नवीन कायद्यांच्या अंमलबजावणीसाठी ई-साक्ष, न्याय श्रुती, न्याय सेतू, ई-समन पोर्टल सारखी उपयुक्त माध्यमे तयार करण्यात आली आहेत. आता न्यायालय आणि पोलिस थेट फोनवरून आणि इलेक्ट्रॉनिक माध्यमातून समन्स बजावू शकतात. साक्षीदाराच्या जबाबाचे ध्वनी-चित्रमुद्रीकरणही करता येते. डिजिटल पुरावेही आता न्यायालयात ग्राह्य धरले जातील, तोच न्यायाचा आधार ठरेल. उदाहरणार्थ, चोरीच्या प्रकरणात बोटांचे ठसे जुळवणे, बलात्काराच्या प्रकरणात डीएनए नमुने जुळणे, खून प्रकरणात मृताला लागलेली गोळी आणि आरोपीकडून जप्त केलेल्या बंदुकीचा आकार यांची जुळवाजुळव… चित्रित पुराव्यासह या सर्व बाबी कायदेशीर आधार बनतील.
मित्रांनो,
यामुळे गुन्हेगार पकडले जाईपर्यंत अनावश्यक वेळ वाया जाणार नाही. हे बदल देशाच्या सुरक्षेच्या दृष्टीने तितकेच महत्त्वाचे होते. डिजिटल पुरावे आणि तंत्रज्ञानाच्या एकत्रीकरणामुळे दहशतवादाविरुद्धच्या लढाईत आपल्याला अधिक मदत होईल. आता नव्या कायद्यांमुळे दहशतवादी किंवा दहशतवादी संघटनांना कायद्यातील गुंतागुंतीचा फायदा घेता येणार नाही.
मित्रांनो,
नवीन न्याय संहिता आणि नागरी संरक्षण संहितेमुळे, प्रत्येक विभागाची उत्पादकता वाढवेल आणि देशाच्या प्रगतीला वेग येईल. त्यामुळे कायदेशीर अडथळ्यांमुळे बळकट झालेल्या भ्रष्टाचाराला आळा बसण्यास मदत होईल. बहुतेक परदेशी गुंतवणूकदार पूर्वी भारतात गुंतवणूक करायला धजावायचे नाहीत, कारण खटला चालला तर वर्षानुवर्षे लोटतील, अशी त्यांना भीती वाटायची. ही भीती संपली की गुंतवणूक वाढेल आणि देशाची अर्थव्यवस्था मजबूत होईल.
मित्रांनो,
देशाचा कायदा नागरिकांसाठी असतो. त्यामुळे कायदेशीर प्रक्रियाही जनतेच्या सोयीसाठी असायला हवी. मात्र, जुन्या व्यवस्थेत ही प्रक्रियाच शिक्षा बनली होती. सुदृढ समाजाला कायद्याचा आधार असला पाहिजे. पण, भारतीय दंड संहितेत (इंडियन पिनल कोड-आयपीसी) कायद्याची भीती हाच एकमेव मार्ग होता. त्यातही गुन्हेगारांपेक्षा, गरीब पिडीत अशा प्रामाणिक माणसांनाच जास्त भीती असायची. अगदी, रस्त्यावर कुणाला अपघात झाला तर मदत करायला लोक घाबरायचे. त्यांना वाटायचे… मदत राहील बाजूलाच, उलट आपणच पोलिसांच्या तावडीत सापडू. मात्र आता या त्रासातून मदतगारांची सुटका झाली आहे. त्याचप्रमाणे ब्रिटीश राजवटीचे 1500 हून अधिक कायदे, जुने कायदेही आम्ही रद्द केले. जेव्हा हे कायदे रद्द केले गेले, तेव्हा लोकांना आश्चर्य वाटले की देशात अशा प्रकारचे कायदे आपण सहन करत होतो…असले कायदे आपल्याकडे होते!
मित्रांनो,
आपल्या देशात कायदा हे नागरिकांच्या सक्षमीकरणाचे माध्यम बनण्यासाठी आपण सर्वांनी आपला दृष्टीकोन व्यापक केला पाहिजे. मी हे अशासाठी म्हणतोय कारण आपल्या देशात काही कायद्यांची तर खूप चर्चा होते. चर्चा व्हायलाच हवी, मात्र अनेक महत्त्वाचे कायदे आपल्या चर्चेबाहेर राहतात. जसे, कलम 370 हटवण्यात आले, यावर बरीच चर्चा झाली. त्रिवार तलाकचा कायदा मंजूर झाला, त्यावर बरीच चर्चा झाली. सध्या वक्फ बोर्डाशी संबंधित कायद्यावर वाद सुरू आहेत. आपण असे पहायला हवे की नागरिकांचा सन्मान आणि स्वाभिमान वाढवण्यासाठी जे कायदे बनवले जातात त्यांनाही तितकेच महत्त्व दिले पाहिजे. आज जसा दिव्यांग व्यक्तींचा आंतरराष्ट्रीय दिवस आहे. देशातील दिव्यांग हे आपल्याच कुटुंबातील सदस्य आहेत. पण, जुन्या कायद्यांमध्ये दिव्यांगांना कोणत्या श्रेणीत ठेवण्यात आले? दिव्यांगांसाठी असे अपमानास्पद शब्द वापरले गेले, जे कोणताही सुसंस्कृत समाज स्वीकारू शकत नाही. आम्हीच सर्वप्रथम या श्रेणीला दिव्यांग म्हणायला सुरुवात केली. त्यांना दुर्बळ वाटणारे शब्द काढून टाकले. 2016 मध्ये, आम्ही दिव्यांग व्यक्तींचे हक्क कायदा लागू केला. हा केवळ दिव्यांगांशी संबंधित कायदा नव्हता. समाजाला अधिक संवेदनशील बनवण्याची ही मोहीम देखील होती. नारी शक्ती वंदन कायदा आता इतक्या मोठ्या बदलाचा पाया रचणार आहे. याच प्रमाणे, तृतीयपंथीयांशी (ट्रान्सजेंडर) संबंधित कायदे, मध्यस्थी कायदा, वस्तु सेवा कर (जीएसटी) कायदा, असे अनेक कायदे केले गेले आहेत, ज्यावर सकारात्मक चर्चा आवश्यक आहे.
मित्रांनो,
कोणत्याही देशाची ताकद हे तेथील नागरिक असतात. आणि, देशाचा कायदा ही नागरिकांची शक्ती असतो. म्हणूनच, जेव्हा जेव्हा काही घडते तेव्हा लोक अभिमानाने म्हणतात - मी एक कायद्याचे पालन करणारा नागरिक आहे. कायद्याप्रती नागरिकांची ही निष्ठा ही राष्ट्राची मोठी संपत्ती आहे. हे भांडवल कमी होता कामा नये, देशवासीयांच्या आत्मविश्वासाला तडा जाऊ नये... ही आपल्या सर्वांची सामुहीक जबाबदारी आहे. त्यामुळे प्रत्येक विभाग, प्रत्येक संस्था, प्रत्येक अधिकारी आणि प्रत्येक पोलीस कर्मचाऱ्याने नवीन तरतुदी जाणून घ्याव्यात आणि त्यांचे मूळ तत्व समजून घ्यावे अशी माझी इच्छा आहे. विशेषतः मी देशातील सर्व राज्य सरकारांना विनंती करू इच्छितो की भारतीय न्याय संहिता, नागरी संरक्षण संहिता... प्रभावीपणे अंमलात आणली जावी आणि त्यांचा प्रभाव वास्तवात दिसावा, यासाठी सर्व राज्य सरकारांना सक्रिय होऊन हे काम करावे लागेल. आणि मी हे पुन्हा सांगतो...नागरिकांना त्यांच्या हक्कांबद्दल जास्तीत जास्त माहिती असायला हवी. आपल्याला सर्वांना मिळून यासाठी प्रयत्न करावे लागतील. कारण, हे जितक्या प्रभावीपणे अंमलात आणले जातील, तितके चांगले भविष्य आपण देशाला देऊ शकू. हे भविष्य तुमचे सुद्धा आणि तुमच्या मुलांचे आयुष्य ठरवणार आहे, ते तुम्हाला तुमच्या सेवेतून मिळणारे समाधान पक्के करणार आहे. मला खात्री आहे की आपण सर्वजण या दिशेने एकत्र काम करू आणि राष्ट्र उभारणीत आपले योगदान वाढवू. यासह, मी पुन्हा एकदा तुम्हा सर्वांना, सर्व देशवासियांना, भारतीय न्याय संहिता, नागरी संरक्षण संहितेसाठी शुभेच्छा देतो आणि चंदीगडचे हे बहारदार वातावरण, तुमचे प्रेम, तुमचा उत्साह यांना सलाम ठोकत माझे भाषण संपवतो.
खूप खूप धन्यवाद!