वित्त विश्व के सभी महानुभाव,

रिजर्व बैंक की 80 साल की यात्रा पर हम लोग आज मिले हैं। हमारे देश में 80 साल का विशेष महत्व रहता है। दुनिया में 25 साल, 50 साल, 75 साल, 100 साल, उस हिसाब से अवसरों को याद किया जाता है लेकिन शायद भारत इकलौता ऐसा देश है कि जिसमें 80 साल को भी एक बड़ा महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है और उसका कारण ये है कि हमारे यहां इसको सहस्त्र-दर्शन, चंद्र-दर्शन के रूप में माना जाता है। जब 80 साल होते हैं तब Full moon एक हजार बार देखने का अवसर मिलता है, तो रिजर्व बैंक को एक हजार पूर्ण चंद्र के शीतलता के आशीर्वाद मिले हैं और उस अर्थ में इस अवसर का एक विशेष महत्व होता है।

मैं ज्यादा इस दुनिया का इंसान नहीं हूं, इसलिए जो भाषण आपने सुने अभी, वो मेरे Software के विषय नहीं हैं। ईश्वर ने मुझे जो Software दिया है, उससे ये सब बाहर है। लेकिन मैं इतना कहूंगा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद इन सब चीजों को समझना पड़ता है, सीखना पड़ता। हर दो महीने में एक बार रघुराम से मिलना होता है और मैं देखता हूं वो 3 या 4 Slides लेकर के आते हैं और मुझे इतना Perfectly समझाते हैं यानी शायद वो Best teacher भी रहे होंगे? कोई मुझे Question नहीं करना पड़ता। मुझे बिल्कुल समझ आता है कि हां ये...ये कहना चाहते हैं और ये इसका ये मतलब होता है, इसके ये परिणाम होता है और इसका मतलब ये हुआ कि शायद सरकार की और आरबीआई की सोच में बहुत साम्यता होगी तब ये संभव होता होगा और मैं मानता हूं ये बहुत आवश्यक होता है और उस विषय में मैं एक सरकार के प्रतिनिधि के रूप में अपना संतोष व्यक्त करता हूं। आरबीआई अपनी जो भूमिका अदा कर रहा है, मैं रघुराम जी और उनकी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं और 80 साल की यात्रा में श्रीमान देशमुख और उनकी टीम से लेकर के अब तक जिन-जिन लोगों ने योगदान दिया है, कई लोगों ने अपनी जवानी इस काम के लिए खपाई होगी? तब जाकर के ये Institution इस ऊंचाई पर पहुंचती है।

Global Perspective में भी अपने आपको ढाला होगा, बदले हुए वैश्विक परिवेश में आरबीआई के Relevance को बनाए रखने के लिए यहां भी काफी जद्दोजहद हुई होगी। इस समय पर जो नेतृत्व दिया होगा, वे सब भी अभिनंदन के अधिकारी हैं और मेरी तरफ से अब तक जिन-जिन लोगों ने इस काम को आगे बढ़ाया है, उन सबको भी हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं और देशवासियों की तरफ से उनका आभार भी व्यक्त करता हूं। अमीर से अमीर व्यक्ति भी अपने Family doctor को Time देता हो या न देता हो, लेकिन Banker को अवश्य Time देता है। उसके जितने Lunch-dinner होते होंगे, उसमें ज्यादातर Banker के साथ होते होंगे। अमीर को भी जहां जाने पड़ता हैं मांगने के लिए, वो जगह है बैंक तो मैं भी आज यहां मांगने के लिए आया हूं और मैं भी यहां मेरे परिवार के लिए मांगने के लिए आया हूं और मेरा परिवार है, जिनके बीच में पैदा हुआ, जिनके बीच में पला-बढ़ा, वो गरीब परिवार हैं। गरीबों के बीच में मैं पला-बढ़ा हूं। मेरा बचपन वहां गया है। मेरी जिंदगी के उन चीजों को देखा है और अब प्रधानमंत्री बना हूं तो मेरा ये परिवार इतना विस्तृत हो गया है कि एक प्रकार से Below poverty line के नीचे जीने वाले सारे गरीब, एक प्रकार से marginal farmer, एक प्रकार से दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित, आदिवासी ये सभी मेरे परिवार के सदस्य हैं और उस परिवार के एक प्रतिनिधि के रूप में मैं आज, ये वित्त विश्व के पास मैं कुछ मांगने आया हूं और जब आप 80 साल मना रहे हो तो जरूर किसी को निराश नहीं करोगे, ये मुझे पूरा विश्वास है और मैं आरबीआई के सभी नीति-निर्धारकों का अभिनंदन करता हूं, उन्होंने Financial inclusion को अपना विषय के रूप में पसंद किया है और 80 साल के समय इस अवसर को मना रहे हैं। इसका मतलब आप जब 100 साल के होंगे और जब शताब्दी मनाते होंगे, वो शताब्दी इस Financial inclusion को लेकर के कहां पर पहुंची होगी, मैं समझता हूं उसके Target भी Set करोगे तो 20 साल के अंदर भारत की बैंकिंग व्यवस्था गरीब के दरवाजे तक पर किस प्रकार से काम कर रही है इसका एक खाका तैयार हो जाएगा और जब 20 साल का पड़ाव आप सोचते हैं तो मैं आपको सुझाव दूंगा।

2019 महात्मा गांधी के 150 वर्ष हो रहे हैं। 2022 देश की आजादी को 75 साल हो रहे हैं। 2025 आपको 90 हो रहे हैं और 2035 ये आपके 100 होंगे। ये चार महत्वपूर्ण पड़ाव मानकर के हम अपना एक मैप तैयार कर सकते हैं कि ये Financial inclusion में जाने के लिए ये-ये हमारे Target group होगा, ये हमारा रोडमैप होगा और हम ये Achieve करके रहेंगे और पूरे भारत में चाहे Corporative Sector का बैंकिंग हो या Micro Finance करने वाले Institutions हो या हमारी Nationalized बैंक हो या हमारी रिजर्व बैंक स्वंय हो, हम सब एक ही दिशा में सोचे, ऐसा हो सकता है क्या?

अगर प्रधानमंत्री जन-धन योजना सफल न होती, मैं नहीं मानता हूं कि वित्त व्यवस्था से जुड़े हुए लोगों को इसकी इतनी ताकत का अंदाजा था। ये बड़ा ही उपेक्षित वर्ग रहा। आजादी के इतने साल के बाद भी 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग, अर्थव्यवस्था की जो रीढ़ होती है, बैंकिंग व्यवस्था उसके दरवाजे तक नहीं पुहंचे थे। मैं सभी बैंकों के छोटे-मोटे हर व्यक्ति को आज बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने पुरुषार्थ किया, परिश्रम किया और आजे देश ने Achieve किया है। ये छोटा Achievement नहीं है। भारत की आजादी के बाद गरीब से गरीब व्यक्ति का देश की आर्थिक मुख्यधारा से जुड़ना ये अपने आप में बहुत बड़ा Achievement है। उसने Financial world में एक नया विश्वास पैदा किया है और एक नई दिशा का संकेत दिया है।

दूसरी तरफ जब तक हम गरीब की तरफ देखना का अपना नजरिया नहीं बदलेंगे। Individual level पर नहीं, एक समाज के आर्थिक ढांचे के रूप में तब तक हम शायद Project लेंगे, परिणाम लेंगे लेकिन जब तक वो Conviction नहीं बनता है, Article of faith नहीं बनता है, हम शायद परिणाम प्राप्त नहीं कर सकते और Article of faith बनने के पीछे या Conviction बनने के पीछे कुछ घटनाएं होती हैं, जो हमारी सोच को बदलती है।

मैं मानता हूं प्रधानमंत्री जन-धन योजना की सफलता उस बात की ओर संकेत करती है। सरकार ने तो तैयार किया था, आरबीआई ने माना था, बैंकों ने मदद की थी कि हम Zero balance account खोलेंगे और आप देखिए गरीब की अमीरी देखने का इससे बड़ा कोई अवसर नहीं हो सकता है। बैंक वालों ने अमीरों की गरीबी बहुत बार देखी होगी, समय पर पैसा न जमा करने वाले कई अमीर उन्होंने देखे होंगे। Risk लेने वाले बैंक मैनेजर भी परेशान रहते होंगे? यार March ending नहीं हुआ, तो मर जाऊंगा मैं तो? तो आपने अमीरों की गरीबी देखी होगी लेकिन इस जन-धन की योजना से गरीबों की अमीरी देखने का सौभाग्य मिला है। Zero balance से account खोलने के कहने के बावजूद भी, जो 14 करोड़ लोगों ने Bank account खोले, उसमें 41 Percent लोग ऐसे हैं कि जिनका लगा कि नहीं-नहीं मुफ्त में नहीं करना चाहिए। कुछ न कुछ तो रखना चाहिए और 14 हजार करोड़ रुपया उन्होंने जमा कराया। 14 हजार करोड़ रुपया। देश का गरीब Zero balance account खोलने के बावजूद भी 14 Thousand crore रूपया बैंक में जमा करता है, मैं समझता हूं कि इससे बड़ी गरीबी की अमीरी नहीं हो सकती है।

अगर इसको हम एक ताकत समझे और ये जो उनके संस्कार हैं, उनकी मनोवैज्ञानिक भूमिका है, उनके जो मन के आदर्श हैं, ये भी राष्ट्र की एक बहुत बड़ी ताकत होते हैं। हमें उनको nurture करना चाहिए, उस सामर्थ्य को हमें पहचानना चाहिए और मैं मानता हूं Banking sector के लोगों के लिए ये बहुत बड़ी आवश्यकता है। हमारे पुरुषार्थ से 14 करोड़ Bank account खुल गए, हम बधाई के पात्र हैं लेकिन 41 Percent लोग पैसे जमा कराएं, वो मैं समझता हूं वो हमारे लिए inspiration का कारण हैं। हमारी नई योजनाओं के लिए वो एक हमारे लिए एक land mark बन सकता है और मैं आशा करूंगा कि आने वाले दिनों में, ये बात ठीक है कि 5-50 client के साथ बड़ा काम करना, सरल रहता है और हम जब स्कूल में पढ़ते थे, तभी सिखाया जाता है कि जो सरल example है, वो पहले solve करो, तो उसी से हम पले-बढ़े हैं, इसलिए कठिन example की तरफ कोई जाएगा नहीं लेकिन अब सोच बदलन की आवश्यकता है और ये आवश्यकता है कि हम इस बढ़े mass को हम कैसे अपने में समेटे? हमारी विकास यात्रा का वो हिस्सा कैसे बने? उसके लिए हमारा रोडमैप क्या हो? अब मैं मानता हूं कि हमारे सामने सबसे बड़ा महत्वपूर्ण काम है कि एक सामान्य से सामान्य व्यक्ति जिसका बैंक खाता खुला है, वो operational कैसे हो?

सरकार ने कुछ योजनाएं बनाई हैं। वो योजनाएं ऐसी हैं जो बैंक के route से ही आगे बढ़ने वाली हैं। बैंक के route से आगे बढ़ने वाली हैं, करने के बाद न हो इसके लिए क्या? ये योजना है। जिसमें प्रधानमंत्री जन-धन योजना और direct cash transfer की व्यवस्था और 8 हजार करोड़, मैं बताता हूं कि, मैं ये आंकड़ा बताता नहीं हूं, लेकिन अभी बताऊंगा कि political पंडित जरा निकाले कि कितनी extra subsidy जाती थी। जिसमें cylinder भी नहीं होता था, cylinder लेने वाला भी नहीं होता था लेकिन cheque फटता था। अब इस व्यवस्था से यानि transparency भी लाई जा सकती है। बैंकिंग व्यवस्था से इतना बड़ा reform हो सकता है तो शायद हमारे यहां सोचा नहीं गया था, आज हो रहा है और उस अर्थ में बैंक के लोगों के लिए एक बड़ा गौरव का विषय है कि देश में transparency लाने में बहुत बड़ी भूमिका आज बैंकिंग सेक्टर ने करना शुरू किया है। ये भी हमें एक नया विश्वास पैदा करता है हमारे में, एक नई आशा को जन्म देता है।

कुछ बातें ऐसी हैं कि हम, आपने देखा होगा कि आपके बैंक में नबंर 2, नबंर 3, नबंर 4, नबंर 5, नबंर 6, नबंर 7, नबंर 8, नबंर 9, नबंर 10, जितने भी लोग होंगे, उनको खुश रखने के लिए आपको कितनी मेहनत पड़ती है। हर काम की तारीफ करनी पड़ती है, हर बार लेकिन आपको जो वर्ग 4 का कर्मचारी है, उसके लिए आपको कुछ नहीं करना पड़ता। सुबह-शाम ऐसे, चलो भई ठीक हो? बस वो दिन-भर दौड़ता रहता है, ये आपका अनुभव होगा। आपके ड्राइवर को इतना पूछ ले, अरे यार तुम्हारे बेटे की exam है, फिर भी तुम आज नौकरी पर आए? बस उसका जीवन धन्य हो जाता है अरे! मेरे बेटे की exam है और मेरे boss ये भी याद रखते हैं। आपने देखा होगा गरीब को बस इतना सा चाहिए। आपका नबंर 2, नबंर 3, आपका नबंर 2, नबंर 3, नबंर 4 उसको दौड़ाने के लिए आपका पसीना छूट जाता है। उस गरीब को दौड़ाने के लिए सिर्फ दो शब्द काफी होते हैं। कहने का तात्पर्य है कि ये जो जिसको हमने चौथी पायदान पर ऱखा हुआ है। उसके डीएनए में वो कौन सी चीज है, जो इतना बड़ा परिणाम देती है, आपके लिए risk लेती है, रात भर सोता नहीं है। जो वो आपके लिए करता है, वही वो देश के लिए भी कर सकता है। ये गरीब जो है, उसको थोड़ा सहारा चाहिए। जो आपके व्यक्तिगत जीवन में परिणाम देता है, वही गरीब राष्ट्र जीवन में परिणाम दे सकता है। जब तक intellectual इस चीज को हम convince नहीं होंगे, जब तक ये हमारा article of faith नहीं बनेगा और हमारी रोजमर्रा की घटनाओं को मैं जिस नजरिए से कह रहा हूं, उस नजरिए से नहीं देखें, तब तक inclusion एक programme बनेगा, inclusion स्वभाव नहीं बनेगा।

मुझे inclusion programme नहीं, inclusion स्वभाव बनाना है और एक बार आप सोचिए फिर आपका आनंद कुछ और होगा। आपने देखा होगा जो women self-help group को जो पैसा देता हैं बैंक, आप उनमें से किसी का भी interview ले लीजिए, 100 लोगों को सर्वे करा लीजिए, वो आपको बताएंगे कि women self-help group में जो महिलाएं हैं, गरीब से गरीब हैं लेकिन अगर उसको बुधवार को 100 रुपया वापस करना है तो मंगल को आकर दरवाजा खटखटाती है कि मेरे 100 रुपए ले लो। आप देखिए इतनी बड़ी ताकत है, इस ताकत को हम राष्ट्र के विकास में कैसे जोड़े? मुझे विश्वास है, अब जो माहौल बना है और वो परिणाम बहुत बड़ा देंगे। अभी हम जो मुद्रा बैंक का concept आगे लेकर के बढ़ रहे हैं। मैं चाहता हूं कि वो आगे एक mobile banking के रूप में ही evolve हो जाए। इस देश में गरीब सवा 5 करोड़ से ज्यादा ऐसे छोटे-छोटे लोग हैं जो सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं और आज finance की जो स्थिति देखें तो average इन लोगों का 17 thousand rupees से ज्यादा कर्ज नहीं है। Only 17 thousand rupees, Only 17 thousand rupees के कर्ज से वो किस प्रकार से economy को drive कर रहा है, कितने लोगों को रोजगार दे रहा है, GDP में कितना बड़ा contribution कर रहा है।

अगर ये 5-6 करोड़ लोग हैं। जो कोई सब्जी बेचता होगा, दूध बेचता होगा, अखबार बेचता होगा, छोटे लोग हैं। उनको क्या चाहिए? हजार रुपया, दो हजार रुपया, पांच हजार रुपए, उसको कुछ नया करने की ताकत आएगी। सुबह अखबार बेचता है, अगर दो हजार रुपया है तो दोपहर को गुब्बारे बेचने जाएगा, शाम को बर्फ की लॉरी चला लेगा। वो अपना दिन भर में चार प्रकार के काम करके, अपनी income को 2 हजार से 20 हजार तक ले जाएगा और देश की economy को drive कर देगा और 6 लोगों को रोजगार देने की उसकी ताकत होगी। क्या हम उन चीजों पर ध्यान दे सकते हैं क्या? हम हमारा किसान आत्महत्या करता है ये दर्द सिर्फ अखबारों के पन्नों पर और टीवी स्क्रीन पर नहीं होना चाहिए? ये हमारा किसान जब मरता है क्या बैंकिग सेक्टर के हृदय को हिला देता है? साहूकार से पैसे लेने के कारण कभी-कभी उसको मरने की नौबत आ जाती है। 60 साल के बाद हम आज 80 साल मना रहे हैं आरबीआई के तब, हमारे दिल में ये आवाज उठ सकती है कि भई हम हमारी बैंकिग व्यवस्था के हाथ इतने पसारेंगे कि किसान को कम से कम कर्ज के कारण आत्महत्या करने की नौबत नहीं आएगी? क्या ये सपना हमारा नहीं हो सकता है?

मैं नहीं मानता हूं कि इसके कारण कोई बैंक डूब जाएगी? हम कभी ये तो सोचते हैं कि कोई कंपनी हमारे पास आए और वो कहे कि भई हमारा जो factory है, हम उसकी technology upgrade करना चाहते हैं, हम environment friendly technology लाने वाले हैं, carbon emission कम करने वाली लाने वाले हैं, हमें बैंक से इतना पैसा चाहिए। हम खुशी से देते हैं कि नहीं देते? हमारे brochure में भी छापते हैं कि हमने carbon emission कम करने वालों को इतना-इतना initiative किया, बड़ा गर्व करते हैं लेकिन कोई किसान आकर के कहे कि मुझे 50 पेड़ लगाने हैं, मुझे बैंक की लोन दो। मुझे बताइए carbon emission के लिए ये बहुत बड़ी-बड़ी से फैक्ट्री लगा रहा है कि नही लगा रहा? लेकिन मुझे, मेरे तराजू में वो तो है, लेकिन ये नहीं है। क्या हमारा बैंकिंग सेक्टर आप देखिए हम timber import करते हैं, किसान मर रहा है। अगर हम initiative लें, एक नई योजना बना सकते हैं कि हमारे देश में जो marginal farmer है, उसकी ज्यादा जमीन एक खेत और दूसरे खेत demarcation में जो ज्यादा जगह जाती है, उसमें वो बाड़ लगा देता है, इतना wastage है। भारत जैसे देश को ये जमीन बर्बाद होने की चिंता करने की आवश्यकता है। उसकी दिशा में कोई ध्यान नहीं देता है लेकिन हम बैंकिंग के द्वारा initiative लें कि भाई जो demarcation का जो तुम्हारा border है वहां अगर तुम पेड़ लगाते हो तो हम तुम्हें इतना finance करेंगे और ये पेड़ तुम्हारी मालिकी बनेगा औगे चलकर के हमारी partnership होगी, तुम्हारी बेटी की शादी होगी और चार पेड़ काटने होंगे, टिम्बर के रूप में बेचना होगा तो बैंक को इतना पैसा देना, तो मुझे बताइए कि होगा कि नही होगा?

हम carbon neutral development की दिशा में हमारा contribution होगा कि नहीं होगा और जिस किसान की फसल तो बर्बाद हो जाएगी, लेकिन पेड़ खड़ा होगा तो उसको लगेगा, अभी तो मेरी कोई छाया है, मैं जिंदगी में मरने की जरूरत नहीं है, ये पेड़ के सहारे मैं फिर से एक नई जिंदगी खड़ी कर दूंगा। विश्वास पैदा हो सकता है कि नहीं हो सकता है? और इसलिए मैं कहता हूं कि हमें समाज के भिन्न-भिन्न तबके और बड़े creative mind के साथ हम किस प्रकार से finance की व्यवस्था करें, जिसके कारण वो एक long term stability के लिए फायदा कर सके। हम उस एक नए तरीकों को कैसे सोचें? जिस प्रकार से finance inclusion में immediately हमारा दो चीजों पर ध्यान जाता है।

एक आर्थिक layer income के आधार पर, रहन-सहन के आधार पर दूसरा सामाजिक ताने-बाने, जाति-प्रथा का थोड़ा प्रभाव रहता है लेकिन inclusion में एक नए parameter की ओर देखने की जरूरत है और वो है geography inclusion। आज भी देश में देखिए हमारी economy को और ये हम सबने सोचना चाहिए। गोवा हो, कर्नाटक हो, महाराष्ट्र हो, गुजरात हो, राजस्थान हो, हरियाणा हो, देश का पश्चिमी छोर वहां तो आर्थिक गतिविधि दिखती है लेकिन जो देश का पूरब का छोर, जिसके पास सर्वाधिक प्राकृतिक संपदा है, वहां आर्थिक गतिविधि नहीं है। हमारे financial inclusion के model में, मैं देश के पश्चिमी छोर पर तो हमारी आर्थिक व्यवस्था, हमारी बैंक व्यवस्था सबसे ज्यादा काम कर रही है लेकिन पूरब का इलाका जहां पर इतनी बड़ी प्राकृतिक संपदा पड़ी हुई है, जहां पर इतना सामर्थ्यवान मनुष्यता का बल है, मैं उसके विकास के लिए क्या करूंगा? इसलिए हमारे geographical inclusion आवश्यकता है, वो कौन से इलाके हैं जिसमें Potential है लेकिन हमारी reach नहीं है, हमारे inclusion में जिस प्रकार से समाज के भिन्न-भिन्न तबको की ओर देखने की आवश्यकता है उसी प्रकार से भारत के भिन्न-भिन्न भू-भाग की ओर देखने की आवश्यकता है कि वो कौन सा भू-भाग है? कि जिसमें सामर्थ्य है लेकिन अवसर पैदा नहीं हुआ है और विकास करना है तो उसकी परंपरागत ताकत को सबसे पहले पहचानना पड़ता है। क्या हमारी बैंकिंग व्यवस्था में district को अगर एक block माने तो हमारे पास मैपिंग है क्या? कि भई वहां का Potential ये है, un-potential इतना है, tap करना है तो इतना। सरकार और बैंकिंग व्यवस्था मिलकर सोचें कि आप raw material के लिए decision ले लीजिए, आप human development resources के लिए कोई decision ले लीजिए, आप manager skill के लिए कोई decision ले लीजिए, आप वहां पर energy supply करने के लिए कर लीजिए, आप infrastructure के लिए कर लीजिए, banks are ready, हम यहां के नक्शे को बदल देंगे।

Inclusion में हमने, हमारे देश के विकसित इलाके, विकास की संभावना वाले इलाके, विकास से वंचित रहे गए इलाके इनके सारे parameter बनाकर के हमारे inclusion के मॉडल में इसको कैसे प्रतिस्थापित करें? मैं समझता हूं कि अगर ये हम करेंगे, तो बहुत है। भारत को दुनिया में आर्थिक ताकत की ओर बढ़ना है। 3 साल का बच्चा, 6 साल का होता है तो उसकी ऊंचाई बढ़ने में फर्क तुरंत आता है कि पहले वो दो फुट का था, अभी वो चार फुट का हो गया लेकिन 20 साल वाले को चार साल बाद भी दो इंच बढ़ाना मुश्किल हो जाता है। आप जहां बढ़ चुके हैं, वहां बढ़ने की गति धीरे रहेगी लेकिन जहां कुछ नहीं है वहां थोड़ा सा डालने से बढ़ना शुरू हो जाएगा और वो एक नए Confidence को जन्म देगा और आज विश्व में भारत के next 10 year के growth rate की जो चर्चा हो रही है, उसका potential यही है।

हिंदुस्तान की second green revolution करने की जगह अगर कहीं है तो हिंदुस्तान का पूर्वी इलाका है। हिंदुस्तान के mines और mineral में अभी हमने जो decision लिए हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि हिंदुस्तान के सभी धनी राज्य बनने की संभावना, जिनके पास कोयला था वो राज्य बन रहे हैं। छत्तीसगढ़ हो, झारखंड हो, उड़ीसा हो, बंगाल हो, ये राज्य एक नई ताकत के साथ उभरने वाले हैं। क्या हम बैंकिंग सेक्टर के लोगों को ध्यान है? कि भई इतना बड़ा वहां कल्पना भर का एकदम से Jump आया है, हम बैंकिंग व्यवस्था के द्वारा वहां कैसे बदलाव लाएं? अगर हम इस बात को करेंगे, मैं मानता हूं कि परिणाम बहुत प्राप्त होंगे। एक और क्षेत्र है, जिसको भी मैं financial inclusion का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानता हूं, जिसका संबंध न आर्थिक स्थिति से है, न सामाजिक स्थिति से है और न ही इसका संबंध भौगौलिक परिस्थिति से है और वो है Knowledge में हम financial partnership कैसे बने?

हमारे देश को सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि 65 percent population, 35 से नीचे है। ये 35 से नीचे का जो population है, हमारी जो young generation है, उसे या तो skill चाहिए या Knowledge चाहिए। आज जो वर्तमान intuition हैं, उससे उसको जो प्राप्त होता है, globally competitive बनने के लिए कुछ कमी महसूस होती है। अब हम globally competitive knowledge institution लाते हैं तो हमारे देश के नौजवान के लिए वहां पढ़ना कठिन हैं क्योंकि उसके पास उतने पैसे नहीं है। क्या बैंक एक ऐसा mediator बन सकती हैं? कि कितना fee वाली institution क्यों न हो? गरीब से गरीब का बच्चा भी वहां पढ़ने जाएगा, हम खड़े हैं। हम ज्ञान उपार्जन के प्रयास में कभी पीछे नहीं हटेंगे। गरीब का बच्चा भी कितना ही धन खर्च करके अगर पढ़ाई करने ताकत रखता है, हम पूरा करेंगे। मैं समझता हूं कि लंबे समय के लिए benefit करने वाला ये सबसे बड़ा investment है, सबसे बड़ा financial inclusion है और इसलिए हम हमारी education system, हमारे students उनका अच्छे intuition में पढ़ने का इरादा और उसको, अगर हमारा human resource development की ताकत जितनी ज्यादा होगी, देश को आने वाली शताब्दी में नेतृत्व करने की ताकत आएगी। हमारी इमारतें कितनी अच्छी बनीं हैं, इससे दुनिया में हिंदुस्तान की ताकत बढ़ने वाली नहीं है, हिंदुस्तान की ताकत बढ़ने वाली है, हिंदुस्तान की युवा पीढ़ी के पास कितना सामर्थ्य है, कितना ताकत है इनके अंदर, उस ताकत का आधार दंड-बैठक से नहीं आता है, उस ताकत के लिए ये शिक्षा का अवसर होना चाहिए।

अगर कोई educational institution world class बनाता है, बैंक मदद करें, student पढ़ने के लिए जाना चाहता है, बैंक मदद करें और मैं विश्वास दिलाता हूं जी। अब तक का आपका जो NPA का अनुभव है, इसमें कभी ऐसा कटु अनुभव नहीं आएगा, मुझ पर भरोसा कीजिए। देश का नौजवान पाई-पाई लौटा देगा, लौटाएगा लेकिन देश बहुत आगे बढ़ेगा और इसलिए हम financial inclusion एक सब्जी बेचने वाले से लेकर के एक top class, high qualified man power तैयार करने तक पूरा chain कैसे बनाएं? मैं समझता हूं कि एक बहुत बड़ा role कर सकते हैं और एक विषय मेरे मन में है। Make in India, मैं Make in India की विस्तार में और बातें नहीं करना चाहता हूं। मुझे पूरा ज्ञान भी नहीं है शायद सोचा जाए। हम आज आरबीआई के 80 साल मना रहे हैं। आज हम संकल्प कर सकते हैं क्या? कि फलां तारीख को जो हमारी currency छपेगी, उस currency का कागज भी Indian होगा और Ink भी Indian होगी। ऐसा नहीं चल सकता, जिस गाधी ने स्वदेशी के लिए इतनी लड़ाई लड़ी, वो विदेशी कागज पर उसकी तस्वीर छपती रहे, वो शोभा देता है क्या? क्या मेरे देश के पास ऐसे उद्योग कार नहीं हैं? उनको compel किया जाए कि ये फैक्ट्री लगानी है, पैसा नहीं है, दूंगा लेकिन ये लगाओ बगल में, लाओ दुनिया से technology लाओ और हमारी currency हमारी नोट, कागज हिंदुस्तानी होना चाहिए, ईंक भी हिंदुस्तानी होनी चाहिए और मैं चाहता हूं कि आरबीआई इस बात को समझकर के एक नेतृत्व दे, ये Make in India तो यहीं से शुरू होता है जी।

मैं मानता हूं कि हम इन चीजों को कर सकते हैं, लेकिन मैं ये भी मानता हूं कि देश आज जहां पहुंचा है, उसमें आप सबका बहुत योगदान है, इन institutions का बहुत योगदान है और वो इंसान हूं, मैं मानता हूं कि idea कितने ही होनहार क्यों न हो? अगर institutional frame ताकतवर नहीं हैं तो सारे विचार बांझ रह जाते हैं और इसलिए institutional strengthen हो, आरबीआई की गरिमा और कैसे बढ़े? बैंकिंग सेक्टर की अपनी गरिमा कैसे बढ़ें? सभी संस्थाएं अपने आप में ताकतवर कैसे बनें? जितना संस्थाओं का नेटवर्क ताकतवर होगा, स्वतंत्र रूप से निर्णय करने का होगा, ultimately देश का लाभ होने वाला है। जरूरी नहीं है कि प्रधानमंत्री की इच्छा के अनुसार देश चलना चाहिए, देश आपने जिन values को स्वीकार किया है उन values के अनुसार चलेगा और देश आगे बढेगा। ये मेरा विश्वास है और उस बात को लेकर के हमको चलना चाहिए।

हमने एक छोटा सा initiative लिया देखिए देश की ताकत देखिए। कभी-कभी हम अपने देशवासियों को कुछ भी कह देते हैं, मेरा अनुभव अलग है। हमने ऐसे ही कानों-कानों में एक बात शुरू की थी कि भई जो लोग afford करते हैं, इन लोगों ने gas subsidy नहीं लेनी चाहिए। अब जो लेते थे, वो कोई सरकार से 500 रुपया मिलने वाले थे, भूखे नहीं रहते थे लेकिन ध्यान नहीं था, ऐसा चलता है यार, ध्यान नहीं था। सहज रूप से हमने बातों-बातों में कहा, मैंने कहीं publically रूप से नहीं कहा था और मैं हैरान था, मैं सचमुच में हैरान था, 2 लाख लोगों ने voluntarily अपनी gas subsidy surrender कर दी। कानों-कानों पर बात पहुंची, ये देखकर के मेरा विश्वास बढ़ा तो मैंने अभी officially मैंने पिछले हफ्ते launch किया कि जो भाई afford करते हैं, उन्होंने gas subsidy को surrender करना चाहिए और सरकार का इरादा subsidy बचाकर के तिजोरी भरने का नहीं है, हमारे इरादे ये हैं कि आप अगर एक सिलेंडर छोड़ते हो, तो मैं वो सिलेंडर उस घर को देना चाहता हूं, जिसमें लकड़ी का चूल्हा है और जिसके कारण pollution होता है और जिसके कारण उनके बच्चों को धुएं में पलना पड़ता है और बीमारी का घर हो जाता है। मैं financial inclusion की जब बात करता हूं तब आप जिस गैस सिलेंडर को छोड़ें, वो उस गरीब के घर में सिलेंडर जाएं ताकि उस महिला को लकड़ी जलाकर के धुएं में अपने बच्चों को पालने की नौबत न आए। मुझे बताइए ये सेवा नहीं है क्या?

मैं विश्वास करता हूं कि सभी हमारे बैंक अपने सभी कर्मचारियों को विश्वास में लें, एक-एक बैंक resolve करे कि हमारे बैंक के 20 हजार कर्मचारी हैं, हम subsidy छोड़े देंगे, सारे industrial house decide करें कि हमारे यहां जो 5 हजार employee हैं, हम subsidy छोड़ देंगे और इसका मतलब ये नहीं कि वो industry उनको पैसे दे, ये मैं नहीं चाहता। voluntarily देना यानि देना, हर व्यक्ति को। अगर हिंदुस्तान में हम एक करोड़ लोग ये गैस सिलेंडर की subsidy छोड़ दें इतनी ताकत रखते हैं। एक करोड़ गरीब परिवारों में जहां लकड़ी का चूल्हा जलता है, जिसके कारण जंगल कटते हैं, जिसके कारण carbon emission होता है, जिसके कारण गरीब के बच्चे को धुएं में पलना पड़ता है, financial inclusion हर छोटी चीज में संभव होता है। अपने आचरण से, अपने व्यवहार से, अपने vision से ये संभव होता है। मैं फिर एक बार आप सबका बहुत आभारी हूं, मैंने काफी समय ले लिया। ले

किन मुझे विश्वास है मैंने पहले ही कहा था मेरे ये software नहीं है, मैं इस क्षेत्र का नहीं हूं लेकिन मैं जिस बिरादरी में पैदा हुआ हूं, गरीबी मैंने देखी है और गरीब की गरीबी से बाहर निकलने की ताकत है। थोड़े hand holding की आवश्यकता है, थोड़ा सा hand holding करने की ताकत, बैंकिंग सेक्टर के पास है। आइए हम सब मिलकर के देश को गरीबी से मुक्त कराने के अभियान को, financial inclusion के इस mission से आगे बढ़ें।

मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। धन्यवाद।

  • Babla sengupta February 09, 2024

    Babla sengupta
  • Babla sengupta December 30, 2023

    Babla sengupta
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Let us build a strong and resilient future for the world: PM Modi
June 07, 2025
QuotePM outlines 5 key global priorities to strengthen Disaster Resilience
QuoteIndia established a tsunami warning system benefiting 29 countries: PM
QuoteIndia's recognises the Small Island Developing States as Large Ocean Countries and the need for special attention to their vulnerabilities: PM
QuoteStrengthening Early warning systems and coordination is crucial: PM
QuoteA global digital repository of learnings and best practices of building back from disasters would be beneficial for entire world: PM

Excellencies,

Distinguished delegates, Dear friends, Namaskar.

Welcome to the International Conference on Disaster Resilient Infrastructure 2025. This conference is being hosted in Europe for the very first time. I thank my friend, President Macron and the Government of France for their support. I also extend my wishes for the upcoming United Nations Oceans Conference.

Friends,

The theme of this conference is ‘Shaping a Resilient Future for Coastal Regions'. Coastal regions and islands are at great risk due to natural disasters and climate change. In recent times, we saw: Cyclone Remal in India and Bangladesh, Hurricane Beryl in the Caribbean, Typhoon Yagi in South-east Asia, Hurricane Helene in the United States, Typhoon Usagi in Philippines and Cyclone Chido in parts of Africa. Such disasters caused damage to lives and property.

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Friends,

India also experienced this pain during the super-cyclone of 1999 and the tsunami of 2004. We adapted and rebuilt, factoring in resilience. Cyclone shelters were constructed across vulnerable areas. We also helped build a tsunami warning system for 29 countries.

Friends,

The Coalition for Disaster Resilient Infrastructure is working with 25 Small Island Developing States. Resilient homes, hospitals, schools, energy, water security and early warning systems are being built. Given the theme of this conference, I am glad to see friends from the Pacific, Indian Ocean and the Caribbean here. Further, I am happy that the African Union has also joined the CDRI.

Friends,

I would like to draw your attention to some important global priorities.

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First: Courses, modules and skill development programmes on disaster resilience need to become part of higher education. This will build a skilled workforce that can tackle future challenges.

Second: Many countries face disasters and rebuild with resilience. A global digital repository of their learnings and best practices would be beneficial.

Third: Disaster resilience requires innovative financing. We must design actionable programmes and ensure developing nations have access to finance.

Fourth: We consider Small Island Developing States as Large Ocean Countries. Due to their vulnerability, they deserve special attention.

Fifth: Strengthening early warning systems and coordination is crucial. This helps timely decisions and effective last-mile communication. I am sure that discussions in this conference will consider these aspects.

Friends,

Let us build infrastructure that stands firm against time and tide. Let us build a strong and resilient future for the world.

Thank You.