QuoteCorruption has adversely impacted aspirations of the poor & middle class. We’ll have to be tough on those cheating the system: PM
QuoteWe should not have negative approach towards digitization and cashless economy: PM Modi
QuoteWorld is moving towards paperless and cashless transactions. India cannot stay behind: PM Modi
QuoteAttacks on the party I belong to, our govt or on me are understandable. But, sanctity of institutions like RBI should be maintained: PM
QuoteOur governance model has strengthened the hands of the commons: Shri Modi
QuoteSwachhta should become a Jan Andolan. I congratulate the media for furthering the message of cleanliness: PM

आदरणीय सभापति जी, दोनों संयुक्‍त सदन को राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्‍यवाद देने के लिए मैं आपके सामने उपस्थित हुआ हूं। करीब 40 आदरणीय सदस्‍यों ने इस चर्चा में हिस्‍सा लिया है। श्रीमान गुलाम नबी आजाद जी, नीरज शेखर जी, श्री ए. नवनीथकृष्‍णन जी, श्री डेरेक जी, श्री डी राजा, श्री शरद यादव जी, श्री सीताराम जी, श्रीमान अहमद भाई और अभी अभी श्री आनंद शर्मा जी, मैं आप सबका बहुत आभारी हूं। और भी जिन माननीय सदस्‍यों ने विषय रखा है उसके लिए भी मैं आभारी हूं। ज्‍यादातर जो चर्चा रही है वो Demonetisation के आसपास रही है। इस बात का हम इन्‍कार नहीं कर सकते कि हमारे देश में ये एक बुराई आई है इस बात से इन्‍कार नहीं कर सकते इसने हमारी अर्थव्‍यवस्‍था में, समाजव्‍यवस्‍था में जड़े जमा दी हैं। इसको हम इन्‍कार नहीं कर सकते और इसलिए भ्रष्‍टाचार और कालेधन के खिलाफ लड़ाई, ये कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं है, किसी राजनीतिक दल को परेशान करने के लिए लड़ाई नहीं है। और ऐसा सोचने का कारण भी नहीं है और इसलिए किसी ने इस विवाद को अपने साथ जोड़ने का कोई कारण नहीं बनता है। इस सदन में हम सबका दायित्‍व बनता है कि हमने इसके खिलाफ जो भी हम लोगों की संविधान की मर्यादाएं हों और जो हमारी बु‍द्धि permit करती है वो हमे करना चाहिए और ये भी सही है कि सारे Parallel Economy के कारण सबसे ज्‍यादा नुकसान किसी का हुआ है तो गरीब का हुआ है। गरीब का हक छीन लिया जाता है और मध्‍यम वर्ग का शोषण होता है। और ऐसा नहीं कि पहले कोई प्रयास नहीं हुए होंगे! पहले भी तो प्रयास हुए होंगे, अधिक प्रयासों की आवश्‍यकता है। ये प्रयास भी अगर और अधिक प्रयास की तरफ ले जाता है तो जाना पड़ेगा। क्‍योंकि आखिर तक हम कब तक इन समस्‍याओं को लेकर के carpet के नीचे डालकर के अपना गुजारा करते रहेगें।

और इसलिए जहां तक एक विषय चर्चा में आता है कि जाली नोट की चर्चा। जो आंकड़े प्रचारित हैं वो आंकड़े वो हैं जो जाली नोट बैंक तक पहुंचे हैं उसका हिसाब किताब। ज्‍यादातर जाली नोट तभी बैंक के दरवाजे तक न जाएं उस व्‍यवस्‍था से चलते हैं। और आतंकवाद, नक्‍सलवाद इसको बढ़ावा देने में इसका उपयोग भी होता है। कुछ लोग बड़े उछल-उछल कर कह रहें हैं कि आंतकवाद के हाथ से दो हजार की कुछ नोटें मिली थी। हमें पता होना चाहिए कि हमारे देश में ये जो नोटबंदी के बाद का जो कालखंड था, बैंक लूटने का जो प्रयास हुआ और उसमें भी नई नोट ले जाने का प्रयास हुआ, वो जम्‍मू-कश्‍मीर में हुआ। क्‍योंकि जाली नोटों पर स्थिति बनने के बाद रोजमर्रा के कारोबार के लिए उनके सामने दिक्‍कत आई थी। और जो नोट बैंक लूटने के कुछ ही दिनों के बाद जो terrorists मारे गए हैं, उसमें वो नोट हाथ लिए है। तो इसका सीधा-सीधा संबंध है, वो हमें समझना चाहिए और कारण नहीं है कि हम ऐसे लोगों के पक्ष में अपना विचार क्‍यों रखे कोई कारण नहीं है ये लोग ऐसे हैं कि जिनके खिलाफ हमने एक स्‍वर से लड़ना ही पड़ेगा। ईमानदार व्‍यक्ति को ताकत तब तक नहीं मिलेगी जब तक कि बेइमानों के प्रति कठोरता नहीं बरती जाएगी। और इसलिए इन कदमों का ultimate लाभ ईमानदार शक्तियों को बल मिलने वाला है, ऐसा हमारा स्‍पष्‍ट मत है।

आदरणीय सभापति जी, बहुत वर्षों पहले एक वांचू कमेटी बनी थी। और नोटबंदी के आर्थिक जरूरतों के संबंध में उन्‍होंने उस समय श्रीमति इंदिरा जी जब थी तब इन्होने अपना रिपोर्ट दिया था। और यशवंतराव जी चव्हाण उससे सहमत भी थे उसको आगे ये बढ़ाना चाहते थे, लेकिन उस समय इंदिरा जी ने कहा कि अरे भई हम तो राजनीति में हैं, चुनाव तो लड़ते रहते हैं। ये गोडबोले जी कि किताब में है जी, आपको आपको गोडबोले जी, श्री यशवंतराव चव्हाण के, गोडबोले जी की किताब जो छपी अच्‍छा होता आपने इतनी जागरूकता दिखाई होती और उस किताब के खिलाफ आवाज उठाई होती, आप सोए थे क्‍या?, क्‍या कर रहे थे आप? और इंदिरा जी के उपर इतना बड़ा आरोप लग जाए, और एक अफ़सर आरोप लगा दे और अभी तक आप सोए रहे? अरे आपकी जगह में मैं होता तो गोडबोले जी के खिलाफ केस कर देता लेकिन आपने नहीं किया। आज, आज जब गोडबोले जी की किताब की चर्चा हो रही है, तो आपको जरा लेकिन आज उसकी स्थिति तो थोड़ी और आगे बड़ी है जब वांचू कमेटी ने रिपोर्ट दिया था, तब कालाधन नकद वहीं तक समस्‍याएं सीमित थीं। आज कालाधन, आतंकवादी संगठन, जाली नोट का कारोबार, ड्रग्‍स का कारोबार, हवाला का कारोबार ये जीवन के कई क्षेत्रों तक फैल चुका है इसलिए इसकी व्‍यापकता बड़ी है।

जिस समय 8 नवंबर को निर्णय किया, तो जाली नोट का वापिस आने का सवाल ही नहीं उठता था। कोई छोटी बैंक होगी! कोई साधन नहीं होंगें और घुस गया होगा, तो वो रिजर्व बैंक तलाश करेगी। लेकिन जाली नोट का तो उसी समय neutralised हो गई। और इसलिए उसकी हिसाब अगर किसी के पास है, तो वो आश्‍चर्य होता है कि वो कैसे है। इनके पास जाली नोट तो उसी समय neutralised हो जाते हैं। और सबसे बड़ा, सबसे बड़ा इसी के कारण हुआ है और आपने एक टीवी खबर भी देखी होगी। दुश्‍मन देशों में जाली नोट का जो बहुत बड़ा कारोबार करने वाले को आत्‍महत्‍या करनी पड़ी थी, ये टीवी न्‍यूज पर बहुत दिन तक चला।

अब देखिए कि हमारे देश में तीस चालीस दिवस में 700 से ज्‍यादा माओवादीयों ने surrender किया तीस-चालीस दिन में ये पहली बार हुआ, ये नवंबर-दिसंबर के दरम्‍यान चालीस दिन में करीब 700 लोगों ने surrender किया है और उसके बाद भी ये प्रक्रिया चल रही है। अगर माओवादी surrender करें उसका संतोष इस सदन में किसी को न हो, ऐसा हो नहीं सकता। कैसे हो सकता है? और अगर नहीं हो रहा है तो फिर कुछ मतलब और है।

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उसी प्रकार से ये भी बात सही है कि देश की formal व्‍यवस्‍था में धन होना बहुत जरूरी है। हजार के नोट छपने के बाद सामान्‍य चलन में जाती नहीं थी, 500 के नोट बहुत कम जाती थी, हजार के नोट बहुत कम जाती थी और बंडल के बंडल का कारोबार चलता रहता था। ये हकीकत है इस हकीकत से हम इन्‍कार नहीं कर सकते हैं। अब जब इतनी बड़ी currency बैंको के पास आई है तो स्‍वाभाविक है कि बैंको की सामान्‍य व्‍यक्ति को पैसा देने की ताकत बढ़ेगी। ब्‍याजदर, एक साथ सभी बैंको ने ब्‍याजदर कम किया हो, वो पहली बार हमारे देश में हुआ था। बैंक का लाभ सामान्‍य लोगों के लिए..यहां पर असं‍गठित कामदारों की बात हो रही है, सचमुच में आप लोगों से खास करके, सीताराम जी और उनकी पार्टी से तो ये अपेक्षा रहेगी कि असंगठित कामदारों को उनके वेतन के संबध में सुरक्षा मिलनी चाहिए। ये हकीकत है कि जितना कहा जाता है उतना दिया नहीं जाता, दिया जाता है उसमें भी एक आध आदमी बाहर खड़ा रहता है वो कट लेता है ये बीमारियां हम सब जानते हैं, लेकिन ऐसी बहुत सी बीमारियों से हम परिचित हैं और इसलिए अगर हम ये व्‍यवस्‍था हम खड़ी करते हैं, तो उन श्रमिकों का लाभ मिलेगा समय रहते EPF के साथ भी जुड़ेगें, ESIC Scheme के साथ भी जुड़ेगें श्रमिकों को एक बहुत बड़ी सुरक्षा इसके कारण संभव होने वाली है, उस दिशा में हमारा प्रयास है।

असम खेती बागान का एक उदाहरण मैं देना चाहता हूं, वहां की सरकार ने थोड़ा initiative लिया, चाय बागान में काम करने वाले मजदूरों के लिए उन्‍होंने बैंक के खाते खुलवाए करीब सात लाख, mobile app पर उनको कारोबार करना सिखाया, शुरू में union वालों ने मना किया नहीं कैश पैसा देना पड़ेगा क्‍योंकि उसमें बाकी चीजें जुड़ी हुईं थीं, इसके कारण इस चाय बागान के मजदूरों को पूरा वेतन मिलने लगा, cut गया और उस इलाके में उनका कारोबार सुरक्षित हुआ, एक बहुत बड़ा experience है और मैं समझता हूं कि इसको हमने...।

उसी प्रकार से नोटबंदी के संबंध में कोई विदेशी अखबार को quote करते हैं, कोई विदेशी अर्थशास्त्रियों को quote करते हैं, एक ऐसा फलक है कि अगर आप दस quote करेगें तो मैं बीस कर सकता हूं, आप अगर दस महापुरूषों की quote कर सकते हैं, तो मैं बीस कर सकता हूं। ये इसलिए हो रहा है कि विश्‍व में इसका कोई parallel ही नहीं है। दुनिया में कहीं इतना बड़ा और इतना व्‍यापक निर्णय कभी हुआ नहीं है। और इसलिए दुनिया के अर्थशास्त्रियों के पास इसका लेखा जोखा करने का कोई मापदंड नहीं है। यह एक बहुत बड़ा दुनिया के अर्थशास्त्रियों के लिए, दुनिया की यूनिवर्सिटीस के लिए एक बहुत बड़ा केस-स्‍टडी बन सकता है।

और भारत ने कितना बड़ा निर्णय किया है इसका भी उसी प्रकार से जनसामान्‍य देश की जनशक्ति क्‍या होती है और इस सदन में बैठे हुए सभी महानुभावों से कहना चाहता हूं कि इस नोटबंदी के बाद समाजशास्‍त्री जरूर अध्‍ययन करेंगे, पहली बार देश में horizontal divide उभर कर के आया है। और जब मैं horizontal divide कहता हूं जनता जर्नादन का मिजाज एक तरफ और नेताओं का मिजाज दूसरी तरफ। ये जनता से इतने कटे हुए हैं, वो जनता से इतने कटे हुए हैं, पहली बार हमें संतोष होना चाहिए, आमतौर पर सरकार जब कोई निर्णय करती है तो जनता और सरकार आमने सामने रहती है, by and large कोई भी सरकार हो, ये पहली ऐसी घटना है कि कुछ लोग तो उधर थे लेकिन सरकार और जनता सा‍थ-साथ थी।

उसी प्रकार से इस बात का हम लोगों को गर्व होना चाहिए, हो सकता है आपकी कठिनाइयां कुछ होंगी, लेकिन इस बात को हमें समझना होगा और विश्‍व के सामने हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि इस देश के सवा सौ करोड़ लोग ऐसे हैं, वो अनपढ़ हो सकते हैं शिक्षा शायद न भी मिली हो जैसा आप वर्णन करते थे जो रिपोर्ट कार्ड आप दे रहे थे आप कि ऐसा है ऐसा है, ऐसा है, वो सब होते हुए भी, यह देश है जो अपनी भीतर की बुराइयों से बाहर निकलने के लिए मेहनत कर रहा है, तड़प रहा है। ये कोई भी राजनेता हो, दल कोई भी हो ये हम लोगों के लिए गर्व का विषय है कि इस देश में ऐसे जन हैं ऐसे नाग‍रिक हैं जो अपनी बुराइयों के खिलाफ लड़ने के लिए कष्‍ट झेलने के लिए तैयार होते हैं, कठिनाई झेलने के लिए तैयार होते हैं और बुराइयों से निकलने के रास्‍ते खोज रहे हैं। और इसलिए हमे भी इस बात को समझना होगा।

सभापति महोदय जी, पिछले सत्र में मनमोहन जी ने अपने विचार रखे थे, ये बात सही है कि अभी शायद एक किताब निकली है आपकी तरफ से, उसकी forward डाक्‍टर साहब ने लिखी है। मैं जब आपका रिपोर्ट देख रहा था, मुझे लगा कि शायद इतने बड़े अर्थशास्त्री हैं, तो किताब में उनका योगदान होगा। लेकिन पता चला कि किताब किसी और ने लिखी forward उन्‍होंने लिखी है। तो उनके भाषण में भी मुझे ऐसा लगा, उनके भाषण में भी ऐसा लगा कि शायद! ये बात बड़ी समझने की है पिछले करीब करीब, करीब करीब, करीब करीब 30-35 साल से, जो शब्‍द मैं बोला भी नहीं उसका अर्थ समझ गए ये, ये बड़ी गजब की बात है जी! अब डॉक्‍टर मनमोहन सिंह जी पूर्व प्रधानमंत्री हैं, आदरणीय व्‍यक्ति हैं। और हिंदुस्‍तान में पिछले 30-35 साल भारत के आर्थिक निर्णायकों के साथ उनका सीधा संबंध रहा आप निर्णायक भूमिका में रहा है। 35 साल तक इस देश में शायद ही कोई ऐसा अर्थ-जगत का व्‍यक्ति होगा, जिसने हिंदुस्‍तान के सत्‍तर साल की आजादी में आधा समय एक ही व्‍यक्ति का इतना दबदबा रहा हो। और इतने घोटालों की बाते आईं, लेकिन खासकर हम राजनेताओं ने डॉक्‍टर साहब से बहुत कुछ सीखने जैसा है। इतना सारा हुआ उनपर एक दाग नहीं लगा! बाथरूम में raincoat पहनकर के नहाना, ये कला तो डॉक्‍टर साहब ही जानते हैं और कोई नहीं जानता।

आदरणीय सभापति जी, इतने बड़े पद पर रहे हुए व्‍यक्ति ने सदन में जब लूट, launder जैसे शब्‍द प्रयोग किए थे, तो पचास बार उधर भी सोचने की जरूरत थी कि मर्यादा अगर लांघते हैं तो सुनने की भी तैयारी रखनी थी और हम उसी coin में वापिस देने की ताकत रखते हैं। और संविधान की मर्यादाओं में रहकर के करते हैं, लोकतंत्र का आदर करने वाले लोग हैं लेकिन किसी भी रूप में पराजय स्‍वीकार ही नहीं करना, ये कब तक चलेगा?

आदरणीय सभापति जी, ये बात सही है कि सामान्‍यजन को आंदोलित करने के बहुत प्रयास हुए थे और आज हम देखते हैं कि कहीं एक छोटा अकस्‍मात भी हो जाए तो भी दो चार गाडिया जला दी जाती है, कहीं बस भी लेट आ जाए तो एक आध दो बस जला दी जाती है। ये by and large क्‍या प्रभाव होंगे वो तो विषलेशन का विषय है लेकिन ये दृश्‍य रोजमर्रा की घटना हैं। लेकिन, हमारे भीतर की लड़ाइयों से लड़ने के लिए प्रति‍बद्ध है कि इतनी कठिनाइयों के बावजूद भी ऐसी कोई घटना उन्‍होंने होने नहीं दी। और पूरे विश्‍व के सामने भारत के लोगों के इस सामर्थ्‍य को हमने गर्व के साथ प्रस्‍तुत करना चाहिए, हमें इसकी बात करनी चाहिए और तभी जाकर के मैं समझता हूं कि किस बात को दुनिया समझ पाएगी कि हम किस प्रकार के सोचते हैं।

मैं आज एक और बात का उल्‍लेख करना चाहता हूं कि एक मसला ऐसा था कि हम और सीताराम जी की विचारधारा अलग है, तो विचारों की प्रस्‍तुति अलग हो ये स्‍वाभाविक है। लेकिन, ये एक ऐसा विषय था जब मैं सोच रहा था तो मुझे पूरी कल्‍पना थी कि सीताराम जी और उनका दल हमारे साथ रहेगा इस काम में हमारे साथ रहेगा। और उसका कारण था कारण ये था आप ही की पार्टी के वरिष्‍ठ नेता श्रीमान ज्‍योतिमय बसु 1972 में उन्‍होंने वांचू कमेटी का रिपोर्ट हाउस में रखने की बहुत बड़ी मांग की और बहुत बड़ा उन्‍होंने लड़ाई लड़ी थी। सरकार मानती नहीं थी, उसको प्रस्‍तुत नहीं कर रही थी, आखिरकर वो एक कापी ले आए उन्‍होंने खुद ने टेबल पर रखी। उन्‍होंने खुद ही, ज्‍योतिमय बसु जी ने उस रिपोर्ट को टेबल पर रखा, Private Member कहते हैं और उनका जो भाषण हुआ उस दिन वो आज भी बहुत प्रस्‍तुत है, उन्‍होंने कहा था कि 26 अगस्‍त 1972, सर 12 नवंबर 1970 कोई शक्तिशाली और प्रतिष्ठित कमेटी की प्राथमिक सेवाओं में से एक था विमुद्रीकरण, सर श्रीमति इंदिरा गांधी कालेधन के दम पर ही बची हुई है। उनकी राजनीति कालेधान से ही जीवित है। इसलिए न सिर्फ इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया, बल्कि डेढ़ साल तक दबाये भी रखा गया। ये ज्‍योतिमय बसु जी ने 1972 को कहा दोबारा 4 सिंतबर 1972 लोकसभा में भाषण करते हुए ज्‍योतिमय बसु जी ने कहा ,”था मैंने विमुद्रीकरण और अन्‍य उपायों की सिफारिश की है। अब उन्‍हें दोहराना नहीं चाहता। सरकार को ईमानदारी के साथ लोगों का सहयोग करना चाहिए। लेकिन, प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी और उनकी ये सरकार का चरित्र है एक ऐसी सरकार जो कालेधन की है, कालेधन द्वारा है, और कालेधन के लिए है।” ये 1972 की बात मैं कर रहा हूं और कांग्रेस पार्टी के नेता 4 सितंबर 1972 को ये कहा है। इतना ही नहीं, सीपीएम के वरिष्‍ठ नेता हरकिशन सिंह जी सुरजीत उन्‍होंने 27 अगस्‍त 1981 इसी सदन में उन्‍होंने भाषण दिया और उन्‍होंने कहा,“कालेधन पर लगाम लगाने के लिए क्‍या सरकार वाकई ही कोई गंभीर कदम उठाना चाहती है? क्‍या सौ रुपये के नोट को बंद करने जैसे फैसले लिए जा सकते हैं?” ये सवाल सुरजीत जी ने भी इसी सदन में 1981 में उठाया था और इसलिए खासकर के Left से मेरा आग्रह है कि आप इस लड़ाई में हमारा साथ दीजिए और आप देंगे मैं आशा करता हूं आप अपने विचार व्‍यापक रूप से जरूर रखते रहें हैं लेकिन ये काम ऐसा है कि जिससे आप अलग हो ही नहीं सकते आपका character ऐसा नहीं है। लेकिन फिर भी, ये तो समय बताएगा, ये बात सही है कि लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍थाओं में इतने कड़े फैसला लेना आमतौर पर लोग मानते है कि populist कदम लेना ये लोकतंत्र का स्‍वभाव बन जाता है। Short-term goals को लेकर के स्‍वभाव बन जाता है। और इसलिए इतने बड़े फैसले को समझने के लिए भी थोड़ा समय लगता है तो उसमें भी किसी का दोष नहीं देता हूं धीरे-धीरे लोग समझ जाएगें जो आज इसका विरोध कर रहे हैं उनको भी समझ आएगा कि इतना बड़ा फैसला कितना बड़ा देश का भला करने की संभावनाए लेकर के आया है और हम उसको आगे बढ़ाना चाहते हैं।

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यहां पर डिजिटल व्‍यवस्‍था के संबंध में चर्चा हो रही है, मैं हैरान हूं जितने भाषण हुए सामने से, इस देश में ये नहीं है डिगना नहीं है, फलाना नहीं है, ये नहीं हुआ, वो नहीं हुआ, टायलेट है तो पानी नहीं है, पता नहीं क्‍या क्‍या बोले। मैं सोच रहा था कि ये जो बोल रहें हैं वो क्‍या बोल रहे हैं? सत्‍तर साल की हिंदुस्‍तान की सरकारों का रिपोर्ट कार्ड दे रहे थे, जो भी बोल रहे थे ये नहीं है, तो सत्‍तर साल का रिपोर्ट कार्ड है अब सत्‍तर साल में मेरा contribution ढाई साल का ही है। ये हमने, आपने टायलेट बनाया तो हमने ताला लगा दिया क्‍या? आपने रोड बनाया तो मैंने उखाड़ कर फेंक दिया क्‍या? आपने पानी का नल डाला वो आकर मैंने टयूब काट दी क्‍या? ये हकीकत है कोई ये नहीं कहता है कि हिंदुस्‍तान के हर कोनों में डिजिटल व्‍यवस्‍था है कौन कहता है? सवाल ये है कि mind-set बदलने के लिए जहां संभावना है वहां हम इसको कर सकते है कि नहीं कर सकते?

मान लीजि‍ए दि‍ल्‍ली शहर में संभावना है, चलो भई दि‍ल्‍ली से शुरू करो, हम लोग positive कुछ contribute करो। Behavioral-change का वि‍षय है। अगर कलकत्‍ते के लोगों के पास मोबाइल फोन है। कलकत्‍ते में लोगों के पास digital connectivity है तो वहीं से शुरू करो। हो सकता है दूर-सुदूर बंगलादेश के गांवों में नहीं होगा। ये कहना और दूसरा हम इस बात का तो गीत गाते रहते हैं कि‍ हमने ये कर दि‍या, हमने वो कर दि‍या, ढींकना कर दि‍या। अब जब उसे लागू करने की बात आई तो हमें तकलीफ हो रही है।

दूसरा, हम शब्‍दों का खेल खेलते हैं। हर कोई मानता है भाई। कि‍सी भी बच्‍चे को पूछो, भई स्‍कूल daily जाते हो, कि‍सी को भी। आपके भी संतानों को मैं पूछुंगा तो कहेंगे, हॉं daily जाता हूं। लेकि‍न मुझे भी मालूम है उसको भी मालूम है कि‍ Sunday को नहीं जाता है। सबको मालूम है। तो ये स्‍वाभावि‍क है, उसी प्रकार से देश में cashless का मतलब है धीरे-धीरे समाज को इस प्रकार की payment की दि‍शा में ले जाना। दुनि‍या में आज भी बड़े-बड़े देश भी चुनाव करते हैं तो बैलेट पेपर छापकर के, ठप्‍पे मारकर के चुनाव करते हैं। जि‍स देश को अनपढ़ माना जाता है ये हि‍न्‍दुस्‍तान, दुनि‍या का सबसे बड़ा लोकतंत्र बटन दबाकर के वोटिंग करता है। जि‍स दि‍न बटन दबाने की व्‍यवस्‍था आई होगी, कि‍सी ने सोचा होगा कि‍ इतनी technology हमारे देश का गरीब से गरीब आदमी adopt कर सकता है।

यानी कि‍ हम अपने देश की शक्‍ति‍ को कम न आंके। हां, हम को लगता है कि‍ ये रास्‍ता ही गलत है, तो ठीक है, लेकि‍न असुवि‍धा है, तकलीफ है, तो छोड़ देना, वो सही नहीं है। असुवि‍धा होगी, व्‍यवस्‍थाएं कम होगी, लेकि‍न आगे तो बढ़ना होगा। आगे बढ़ने के अंदर।

कुछ लोग कहते है कि‍ दुनि‍या में कई देश आगे है। दुनि‍या के कई देश, मैं हैरान हूं, आनंद शर्मा जी कह रहे थे। आपको आश्‍चर्य होगा कि‍ कोरि‍या ने डि‍जि‍टल जाने के लि‍ए जो incentive scheme बनाई इतनी बड़ी मात्रा में आई। ये कह रहे है कि‍ आप करोड़ों रुपया डि‍जि‍टल को promote करने के लि‍ए कर रहे हो। अब जो BHIM app बनाई है। BHIM app में एक नए पैसे का खर्चा नहीं है। बि‍ना खर्च के transaction हो रहा है। एक रुपए का भी कि‍सी बैंक को, कि‍सी को भी कमीशन नहीं जाता है, और इसलि‍ए दुनि‍या paper-less, premises-less बैंकिंग की तरफ जा रही है। भारत को पीछे रहने का कोई कारण नहीं है। हो सकता है हमारी व्‍यवस्‍थाएं कम होंगी तो दो साल और ज्‍यादा लगे, पांच साल और लगेंगे। लेकि‍न शुरू करना या ये दि‍शा गलत है, ये वि‍चार मैं समझता हूं उपयुक्‍त नहीं होगा। हम लोगों को प्रयास करना चाहि‍ए इसको promote करने के लि‍ए अपने-अपने इलाके में भी लोगों को हमें समझाना चाहि‍ए और उस दि‍शा में हमने आगे बढ़ना चाहि‍ए।

अब देखि‍ए, रेलवे। हमारे देश में सामान्‍य मानव जाता है। आज 60 से प्रति‍शत रेलवे में, online बुकिंग होने लगी है। उनकी payment online । अगर वो टि‍कट cancel करते हैं तो online पैसा वापि‍स जा रहा है। आज बहुत से परि‍वार है जो शहरों में रहते हैं। उनको अगर बि‍जली का बि‍ल भरना है, पहले बि‍जली का बि‍ल भरने के लि‍ए आधे दि‍न छुट्टी लेनी पड़ती थी और जाकर के दफ्तर में। आज वो घर में रात को 12 बजे आकर के अपने मोबाइल फोन से बि‍जली का payment दे रहा है। सुवि‍धा बढ़ती चली जा रही है। अगर ये सुवि‍धा वैज्ञानि‍क तरीके से टैक्‍नोलॉजी के तरीके से मि‍लती है तो हां हमें उसकी कमि‍यों की चि‍न्‍ता जरूर करनी चाहि‍ए। technological भी कोई कमी आती है तो उसे ठीक करना चाहि‍ए लेकि‍न ये कल्‍पना ही गलत है अगर ये negativity लेकर के हम चलेंगे तो हम देश का कोई भला नहीं कर सकते हैं।

Rupay Card- अभी अरुण जी बता रहे थे। इस देश में जनधन एकाउंट के साथ इस देश के 21 करोड़ लोगों को Rupay Card दि‍ए है। और आपको अंदाज नहीं है कि‍ इसकी ताकत क्‍या होती है। आमतौर पर जेब में ये कार्ड होना, ये बड़ा prestigious बन गया है एक वर्ग के लि‍ए, payment करनी है तो कार्ड से करना। ये भी हवा बन गई है कि‍ गरीब का तो वि‍षय ही नहीं है जी। अभी मुझे अनंत कुमार जी बता रहे थे। वो बैंगलोर से आ रहे थे तो उनके साथ कोई IT professional बैठे थे तो उन्‍होंने अपने ड्राइवर की घटना सुनी। बोले उनका ड्राइवर बहुतखुश है इस demonetization से। तो बोले क्‍यों। बोले आज कोई बड़ा आदमी कार्ड रखता है, मैं भी कार्ड रखता हूं। वो कार्ड दि‍खाने लगा। उसको बड़ा आनंद था। अब देखि‍ए ये समाज के सामान्‍य व्‍यक्‍ति‍ के जीवन में भी एक बदलाव की व्‍यवस्‍था है। एक नया आत्‍मवि‍श्‍वास पैदा होता है। जि‍सके घर में एक साईकि‍ल भी नहीं आती है न, वो खुशी से समा नही पाता है जब मोटरसाईकि‍ल आ जाती है। जि‍सके पास स्‍कूटर हो अगर छोटी सी लाता है, पुरानी भी लाता है वो गर्व करता है। हमें समाज के छोटे-छोटे लोगों के जो aspirations है उस aspirations को पूरा करने की दि‍शा में, हमारा प्रयास होना चाहि‍ए।

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Direct Benefit Transfer- कि‍तना बड़ा फायदा हुआ है। मैंने उस सदन में वि‍स्‍तार से कहा है कि‍ Direct Benefit Transfer के द्वारा करीब-करीब 50 हजार करोड़ रुपया जो कभी leakage होते थे और हर वर्ष होते थे, अब तक बचा पाए और आगे पता नहीं कि‍तने बच पाएंगे। Direct Benefit Transfer स्‍कॉलरशि‍प जैसे में। एक ही व्‍यक्‍ति‍ 6 जगह से लेता है। वि‍धवा पेंशन, जो बेटी का जन्‍म नहीं हुआ वो वि‍धवा भी हो गई और चेक भी कट रहा है। ये Direct Benefit Transfer स्‍कीम के कारण, ये जो leakage थी वो बि‍चौलि‍ए ले जाते थे। इसमें बहुत बड़ा देख का जो खजाना लूटा जा रहा था उसमें रोक लगी है। तो Direct Benefit Transfer स्‍कीम का भी इसके कारण फायदा हुआ है। हमें कोशि‍श करनी चाहि‍ए digital payment को बढ़ाने के लि‍ए हम जि‍तना प्रयास करते हैं, हमें करते रहना चाहि‍ए।

सरकार ने उस व्‍यवस्‍था को वि‍कसि‍त कि‍या है। POS machine की आवश्‍यकता। बहुत तेजी से POS machine बढाए जा रहे हैं। Mobile-Payment के लि‍ए E-wallet के लि‍ए promotion हो रहा है। Internet-Banking की तरफ काम चल रहा है। ‘AADHAR based payment’. जि‍स प्रकार से टैक्‍नोलॉजी develop हुई है। सि‍र्फ ‘AADHAR’ के आधार पर, कोई मोबाइल फोन की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, वो अपना payment दे पाएगा, वो दि‍न दूर नहीं होंगे। और इसलि‍ए इन व्‍यवस्‍थाओं को या तो थोड़ा हम समझने की कोशि‍श करें और अपनी टीमों को इसमें लागू करने के लि‍ए प्रयास करें।

BHIM App बहुत ही उत्‍तम प्रकार की व्‍यवस्‍था बनी है। भारत सरकार की छत्रछाया में बनी है और BHIM App को जि‍तना popular करेंगे तो कोई व्‍यापारी कोई बाहर की एजेंसी को कोई लेना-देना नहीं होगा। सीधा-सीधा एक enable प्‍लेटफॉर्म है जि‍सका लाभ लोग ले सकते हैं। हमें इसको करना चाहि‍ए।

अब देखि‍ए ड्राइवर, जो हाइवे पर जाता है। हम जानते है कि‍ vehicle रुकने के कारण कि‍तना खर्चा हमारे पेट्रोल डीजल का होता है। 8 नवंबर के बाद उस पर भी थोड़ा बल दि‍या गया कि‍ भई ड्राइवर टोल टैक्स पर गाड़ि‍यां अपना टैक्‍स देने के लि‍ए टैक्‍नोलॉजी का प्रयोग करे। और radio frequency identification, RFID के जरि‍ए, पहले इक्‍के-दुक्‍के लोगों के पास वो व्‍यवस्‍था थी। इतने कम समय में आज करीब-करीब 20 प्रति‍शत ट्रैफि‍क, ये RFID के द्वारा payment करता है। कार आती है, सीधा उसका रजि‍स्‍ट्रेशन हो जाता है बैंक में से deduct हो जाता है, उसको रुकना नहीं पड़ता है, चली जाती है। ये अगर बढ़ेगा तो देश का कि‍तना पेट्रोल बचेगा। हमारे देश में टोल टैक्‍स पर ये स्‍थि‍ति‍ बनी है। उसी प्रकार से पेट्रोल पंप पर करीब-करीब 29-30 प्रति‍शत लोग, आज डि‍जि‍टल करेंसी से काम करना शुरू कर दि‍ए हैं। हमने चंद्रबाबू नायडू जी के नेतृत्‍व में कमेटी बनाई, उसकी अंतरि‍म रि‍पोर्ट आई है। उसका अध्‍ययन हो रहा है। फाइनल रि‍पोर्ट उनकी आने वाली है। लेकि‍न हम बदलाव के लि‍ए तैयारी करें और मुझे लगता है कि‍।

एक वि‍षय है Banking System- अगर आप कुछ भी कहते हैं तो फि‍र मैं कहता हूं कि‍ वो रि‍पोर्ट कार्ड है। पुराने कार्यकाल का वो रि‍पोर्ट कार्ड है। इस सरकार ने आकर के सबसे पहले तो Debt Recovery Tribunal की रचना की- 6, ताकि‍ बैंकों में जो भी debt है,सरकार ने initiative लि‍या। बैंकों में जो appointment होती थी, उसके लि‍ए कोई नि‍यम नहीं था, ऐसे ही चल रहा था, घि‍सी-पि‍टी व्‍यवस्‍था थी। इस सरकार ने Bank Board Bureau बनाया, independent एजेंसी है, वही recruitment करती है। उसके Chairman, Managing director, उसके Director वगैरह। बैंकिंग व्‍यवस्‍था में professionalism लाने का हमने प्रयास कि‍या है।

बैंक और फाइनेंस जगत, Banking Sector, Economic World इनकी एक Round Table Conference दो दि‍न की गई। हमारे देश की बैंकिंग को global level के standards में कैसे लाया जाए, वि‍स्‍तार से उन्‍होंने आत्‍ममंथन कि‍या, चिंतन कि‍या, अपनी कमि‍यों को भी उन्होंने समझा और ठीक करने का प्रयास कि‍या।

रि‍जर्व बैंक की गरि‍मा- मैं समझता हूं कि‍ मुझ पर हमला हो, हमारी पार्टी पर हमला हो, हमारी सरकार पर हमला हो, बहुत स्‍वाभावि‍क है, वो चलता रहेगा अपना। लेकि‍न रि‍जर्व बैंक को घसीटने का कोई कारण नहीं है। रि‍जर्व बैंक के गवर्नर को घसीटने का कोई कारण नहीं है। ऐसे institutions की मान-मर्यादाओं का पालन करने में हमारा योगदान होना चाहि‍ए। और इसके पहले गवर्नर थे तब भी कुछ लोगों ने आवाज उठा्र थी। फि‍र मैंने उसका भी वि‍रोध कि‍या था कि‍ ये शोभा नहीं देता। ऐसी चीजों को वि‍वादों से परे रखना चाहि‍ए। बाकी सरकार की व्‍यवस्‍थाएं हैं वो चलती रहेंगी, उसको हमें करना चाहि‍ए। अर्थव्‍यवस्‍था चलाने में रि‍जर्व बैंक की बहुत बड़ी भूमि‍का होती है। उसकी credibility की दि‍शा में हम लोगों का positive सक्रि‍य योगदान होना चाहि‍ए। लेकि‍न जो लोग रि‍जर्व बैंक की गरि‍मा और इस सरकार पर जब आरोप लगाते हैं तो मैं जरा उनको आज कहना चाहता हूं। और बड़े दुख के साथ कहना चाहता हूं। रि‍जर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. सुब्‍बाराव ने एक कि‍ताब लि‍खी है, 'Who Moved My Interest Rate? और उस कि‍ताब में उन्‍होंने लि‍खा है कि‍ 2008 में तत्‍कालीन वि‍त्‍त सचि‍व के तहत एक Liquidity Management Committee को नि‍युक्‍त करने के सरकार के नि‍र्णय से मैं नाराज और परेशान था। चि‍दंबरम ने स्‍पष्‍ट रूप से भारतीय रि‍जर्व बैंक के वि‍षय के क्षेत्र में over-step कि‍या था। Liquidity Management पूरी तरह से रि‍जर्व बैंक का function है। न केवल उन्‍होंने मुझसे इस वि‍षय पर परामर्श भी नहीं कि‍या लेकि‍न अधिसूचना जारी करने के बारे में मुझे बताया तक नहीं था। मुझे क्‍या पता था कि‍ यह नि‍र्णय मेरे कार्यकाल के अंति‍म वर्ष में हम दोनों के बीच असहज संबंध के लि‍ए tone set करेगा। ये रि‍जर्व बैंक के Ex-Governor ने पुरानी सरकार पर गंभीर आरोप लगाया है। और कि‍ताब में छापा है और अभी तक कि‍सी ने इसका जवाब नहीं दि‍या है। अब मैं बोल रहा हूं तो कुछ कहेंगे तो अलग बात है। लेकि‍न यह बात सही है कि‍ आज हम ये उपदेश देते हैं कि‍ जरा वे भी अपने आप को जरा गि‍रेबान में देखें। और मैं मानूंगा कि‍ हम राजनीति‍ से इसको परे रखे। इस Institution का गौरव रखने की दि‍शा में प्रयत्‍न करि‍एं।

और हमने क्‍या कि‍या है। RBI की ताकत बढ़े, उसके नि‍र्णय इस सरकार ने आकर के कि‍ए हैं। हमने RBI Act एक्‍ट संशोधन करके Monetary Policy Committee की स्‍थापना की है। कई वर्षों से उसकी चर्चा चल रही थी, कोई नहीं कर रहा था, हमने की। इस समि‍ति‍ को Monetary Policy संचालन की पूरी स्‍वायत्‍ता दी गई है। इस समि‍ति‍ के प्रमुख RBI के गवर्नर है। RBI के दो अधि‍कारी के अलावा 3 वि‍शेषज्ञ इसके सदस्‍य है। इस समि‍ति‍ में केन्‍द्र सरकार का एक भी सदस्‍य नहीं रखा गया है। और इससे बड़ी स्‍वायत्‍ता, Monetary Policy बहुत बड़ी बात होती है। इतनी बड़ी स्‍वायत्‍ता कोई कल्‍पना नहीं कर सकता है इस सरकार ने RBI को दी है। और उसके कारण RBI की ताकत को बढ़ावा मि‍ला है।

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ये बात सही है। कई वि‍षयों पर यहां चर्चाएं हुई हैं। कोई सरकार सोने के लि‍ए तो आती नहीं है। पहले भी जो सरकारें आई हैं उन्‍होंने भी तो कुछ न कुछ करने का तो प्रयास कि‍या होगा। हम ये तो नहीं कहते कि‍ कि‍सी ने कुछ कि‍या नहीं होगा। मैं लालकि‍ले पर से बोला हूं और हि‍न्‍दुस्‍तान के और कि‍सी प्रधानमंत्री ये बोला नहीं है जो मैंने बोला है। मैंने कहा है कि‍ देश आजाद हुआ, तब से जि‍तनी सरकारें आईं, जि‍तने प्रधानमंत्री आएं, जि‍तने लोक काम कि‍ए, उन सबका योगदान है, तब देश आज यहां आकर पहुंचा हैं। हम ऐसे लोग हैं। वो तो मुझे मालूम है और तो नाम लेने से कतराते हैं। उनको पसंद नहीं आता है कि‍ कि‍सी ओर ने कुछ काम कि‍या हो और उसका उल्‍लेख करते रहे। और इति‍हास गवाह है। लेकि‍न ये बात सही है कि‍ इस सरकार ने Governance के मुद्दे पर बहुत काम कि‍या है। छोटे-छोटे नि‍र्णय लेंगे लेकि‍न नि‍र्णय ने सामान्‍य मानव की ताकत को बहुत बढ़ावा दि‍या है।

हमने affidavit की प्रथा दी। MP के घर, MLA के घर, Carporator के घर लोग आ-आकर के सुबह खड़े हो जाते थे ठप्‍पा मरवाने के लि‍ए। queue लग जाती थी। और वो न देखता था न कुछ नहीं। एक peon बैठता था या कोई साथी कार्यकर्ता बैठता था वो ठप्‍पे मार देता था। हमने उस certificate को self-attestation की व्‍यवस्‍था कर दी और उसके कारण वो संकट से भी सामान्‍य मानव बच गया। क्‍योंकि‍ जब उसकी final appointment होगी तो original कॉपी लेकर के जाएगा। Xerox का जमाना है सब कुछ करने की क्‍या जरूरत है।

हमने इंटरव्‍यू खत्‍म कर दि‍ए। टैक्‍नोलॉजी के द्वारा तय होगा कि‍ जो अपने उसके मेरि‍ट होंगे, मेरि‍ट के आधार पर नौकरी मि‍लेगी। उसके कारण करप्‍शन गया। 1100 से अधि‍क कानून को खत्‍म कि‍या इसी दो सदनों ने खत्‍म कि‍या है। सीनि‍यर पोस्‍ट पर नि‍युक्‍ति, कई अखबारों ने articals लि‍खे हैं। पहली बार मेरि‍ट के आधार पर appointment हो रही है। पुरानी प्रक्रि‍या सारी, मेरा-तेरा सब चला गया है और इस पर कई neutral अखबारों ने बहुत अच्‍छे articals भी लि‍खे हैं।

DBT, direct benefit के द्वारा leakages को रोका गया है। पहले कंपनी रजि‍स्‍टर करनी होती थी तो 7-7, 15-15 दि‍न, दो-दो महीने लगते थे। आज 24 घंटे में कंपनी रजि‍स्‍टर हो सकती है। ये व्‍यवस्‍था की है। पहले पासपोर्ट पाने में महीने लग जाते थे, आज पासपोर्ट एक हफ्ते के भीतर देने की व्‍यवस्‍था की है। और अब Postal में जो head-office है उसको भी Passport-Office में convert करने की दि‍शा में हम लोग काम कर रहे हैं और उसका भी लाभ सामान्‍य मानव को मि‍लने वाला है और उस दि‍शा में हमारा प्रयास है।

हम ये भी जानते है कि‍ कोयले की नीलामी कि‍तना बड़ा वि‍षय था। आसानी से सरकार ने इसको लागू कर दि‍या। पारदर्शि‍ता को लाए। एक बड़ा महत्‍वपूर्ण नि‍र्णय कि‍या है जि‍सकी अभी चर्चा काफी हुई नहीं है लेकि‍न मैं इस सदन को बताना चाहता हूं। सरकार की जो खरीद करने की परंपरा होती है उसमें हम लोगों ने GEM को लॉन्‍च कि‍या है। जि‍समें Government E-market place, GEM, इस व्‍यवस्‍था को World Bank के South Asia Procurement Innovation Awards से भी सम्‍मानि‍त कि‍या गया है। अब उसमें दुनि‍या में जि‍सको भी सरकार को देना होगा, वो online आते हैं, अपनी लि‍स्‍ट रखते हैं और सरकार उसमें से तय कर सकती हैं। आर्थि‍क लाभ भी हुआ है और 5000 रुपए से ज्‍यादा का पेमेंट करना हो तो इस GEM के माध्‍यम से कर सकते हैं। उस दि‍शा में हमने व्‍यवस्‍था की है।

भ्रष्‍टाचार के खि‍लाफ Good Governance के माध्‍यम से, टैक्‍नॉलोजी के उपयोग के माध्‍मय से एक पारदर्शि‍ता लाने की दि‍शा में हमने बड़ी सफलता पाई है।

इस सरकार ने महि‍लाओं के सशक्‍तीकरण के लि‍ए अनेक नई योजनाएं बनाई हैं। उज्‍जवला योजना। हम जानते हैं गैस के सि‍लेंडर का क्‍या जमाना था, MP को 25-25 कूपन मि‍ला करते थे और उन 25 कूपनों को लेने के लि‍ए लोग कतार लगाते थे। वो भी दि‍न थे। 2014 के चुनाव में 9 सि‍लेंडर दें या 12 सि‍लेंडर दें, उस पर चुनाव का मुद्दा लड़ा गया था। ये सरकार के कार्यों में कि‍तना फर्क है। गरीब महि‍लाओं को गैस का चूल्‍हा, ये सपने में भी नहीं सोच सकते थे। अब तक करीब-करीब 1 करोड़ 65 लाख से ज्‍यादा गरीब परि‍वारों को गैस के कनेक्‍शन दे दि‍ए गए हैं। पांच करोड़ परि‍वारों तक पहुंचाने का पूरा इरादा है। देश में 25 करोड़ परि‍वार है, पांच करोड़ परि‍वारों तक पहुंचाने का प्रयास है।

प्रधानमंत्री आवास योजना- महि‍लाओं के नाम घरों का रजि‍स्‍ट्रेशन की कानूनी व्‍यवस्‍था की है। MGNREGA में 55 प्रति‍शत महि‍लाएं आज काम कर रही हैं जो पहले 40-45 प्रति‍शत हुआ करती थी।

मुद्रा योजना में बैंक से पैसे दि‍ए जाते हैं बि‍ना कि‍सी गारंटी के दि‍ए जाते हैं। पैसे लाने में 70 प्रति‍शत महि‍लाएं हैं यानी entrepreneur के रूप में हमारे देश की महि‍लाएं इसके साथ जुड़ रही हैं।

पंडि‍त दीनदयाल अंत्‍योदय योजना- Self-Help groups के काम दक्षि‍ण भारत में कुछ मात्रा में चलता था। लेकि‍न पूरे भारत में और पूर्वी भारत में उसको बढ़ावा देने की दि‍शा में भी हम लोगों ने काम करने का प्रयास कि‍या है।

गरीब गर्भवती महि‍लाओं के लि‍ए 6000 रुपए प्रसूता में IMR, MMR के लि‍ए। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभि‍यान, बहुत बड़ी मात्रा में उसको स्‍वीकृति‍ मि‍ली है, सामाजि‍क आंदोलन बना हुआ है। सुकन्‍या समृद्धि‍ योजना- एक करोड़ एकाउंट बच्‍चि‍यों के नाम पर खुले हैं और 11 हजार करोड़ रुपए, जि‍नको भवि‍ष्‍य के लि‍ए एक सुरक्षा की गारंटी देते हैं। महि‍ला शक्‍ति‍ केन्‍द्र 500 करोड़ की लागत से 14 लाख आंगनवाड़ी केन्‍द्रों में इसकी स्‍थापना हुई है।

मि‍शन इन्‍द्रधनुष- बच्‍चों का टीकारकरण नहीं होता था। सरकारें चलती थी, टीकाकरण के कार्यक्रम होते थे। 55 लाख बच्‍चे ऐसे ध्‍यान में आए जि‍नका टीकाकरण नहीं हुआ था। मि‍शन इन्‍द्रधनुष के कारण उन बच्‍चों को खोजा गया। उनकी जि‍न्‍दगी बचाने की दि‍शा में काम कि‍या गया।

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ग्रामीण क्षेत्र में, यहां पर मैं हैरान था कि‍ स्‍वच्‍छता की मजाक उड़ाई जा रही थी। क्‍या कारण है मैं समझ नहीं पा रहा हूं। हम में से कोई नहीं है जो गंदगी में रहना चाहता है। हम ये भी जानते है कि‍ स्‍वच्‍छता behavior का issue ज्‍यादा है। Infrastructure का उसके साथ आता है। और मैं कहूंगा हम राजनेता कभी-कभी कम पड़ रहे हैं, मैं इस देश के मीडि‍या का अभि‍नंदन करना चाहता हूं कि‍ स्‍वच्‍छता के आंदोलन को उसने उठा दि‍या है। आज सब मीडि‍या के द्वारा स्‍वच्‍छता के लि‍ए इनाम दि‍ए जा रहे हैं, फंक्‍शन कि‍ए जा रहे हैं। स्‍वच्‍छता के संबंध में आज हि‍न्‍दुस्‍तान का, वरना सरकार के कि‍सी भी कार्यक्रम में मीडि‍या नेगेटि‍व करे वो स्‍वाभावि‍क है। ये एक अपवाद कार्यकम है जि‍सको सरकार से भी, राजनेताओं से भी दो कदम आगे मीडि‍या के लोग गए हैं और स्‍वच्‍छता को आंदोलन बनाने की दि‍शा में प्रयास कि‍या है और मैं उनका अभि‍नंदन करता हूं इस सदन के माध्‍यम से। और यहां कोई खड़ा होकर के कहता है कि‍ टॉयलेट है, पानी नहीं है। महात्‍मा गांधी भी इस बात के लि‍ए बड़े आग्रही थे। मुझे तो डर लगता है कि‍ कभी आज महात्‍मा गांधी होते और स्‍वच्‍छता की बात करते तो हम लोग यही भाषा बोलते क्‍या। क्‍या हम लोगों की जि‍म्‍मेवारी नहीं है, क्‍या समाज में बदलाव लाने के लि‍ए कोई सकारात्‍मक चीज कर ही नहीं सकते। हर चीज में हम वि‍रोध करेंगे। और इसलिए, मुझे खुशी है कि‍ ग्रामीण क्षेत्र में sanitation coverage जो पहले 42 प्रति‍शत था इस आंदोलन के बाद वो 60 प्रति‍शत पहुंचा है। हम जब ये बात करते है टॉयलेट की, आप कल्‍पना कर सकते हैं गांव की महि‍लाओं की ही क्‍या, शहरी की झुग्‍गी-झोपड़ी में जो महि‍लाएं रहती है, कि‍तनी पीड़ा होती है जी, अंधेरा नहीं होता तब तक वो शौचालय नहीं जा सकती। ये दर्द होना चाहि‍ए। ये तू-तू मैं-मैं का वि‍षय नहीं है लेकि‍न जब मजाक उड़ाते हैं कोई तो बहुत पीड़ा होती है। ये मजाक का वि‍षय नहीं हो सकता है।

महि‍लाओं की सुरक्षा के लि‍ए Universalization of Women Helpline 181, 24 घंटे एमरजेंसी सेवा को शुरू कि‍या गया है। 18 states & UTs ने इस महि‍ला हेल्‍पलाइन की व्‍यवस्‍था को आगे बढ़ाया है। महि‍लाओं की पुलि‍स में भर्ती 33 प्रति‍शत और कुछ राज्‍यों ने भी स्‍वीकार कि‍या है। UTs के अंदर ये compulsory कर दि‍या गया है। हरि‍याणा ने एक नया प्रयोग कि‍या है। जि‍सको हि‍न्‍दुस्‍तान में और लोग करे। मैंने presentation कि‍या है सबके सामने। उन्‍होंने महि‍ला पुलि‍स volunteers का एक network खड़ा कि‍या है जो इस प्रकार से लोगों की मदद करने का काम कर रहा है। एक नई स्‍कीम उन्‍होंने शुरू की है। कहने का तात्‍पर्य मेरा यह है। एक panic button की टैक्‍नोलॉजी का उपयोग करके, हम आने वाले कुछ दि‍नों में आपके सामने लेकर के आने वाले हैं।

कि‍सानों का सशक्‍तीकरण- इस सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। सबसे बड़ी बात प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना। हमें पसंद आए या न आए, लेकि‍न कि‍सान को सुरक्षा देनी है तो हमें उसको उसकी income के assurance के साथ जोड़ना होगा। हमारे यहां irrigation की सुवि‍धा बहुत कम है। प्राकृति‍क संसाधनों पर ही वो dependent है। ऐसी स्‍थि‍ति‍ में अगर बो नहीं सकता है तो भी और कटाई के बाद भी अगर बरबाद होता है तो भी अगर insurance मि‍लता है। और मुझे है कि‍ कुछ progressive राज्‍यों ने 40-40 50-50 प्रति‍शत कि‍सानों के insurance का काम उन्‍होंने कि‍या है। सरकार ने भी कि‍सानों के लि‍ए बहुत बड़ी मात्रा में फसल बीमा योजना को प्रोत्‍साहन देने के लि‍ए काम कि‍या है। पहले की तुलना में काफी बढ़ोतरी हुई लेकि‍न कुछ राज्‍यों में बहुत पीछे है। ये चि‍न्‍ता का वि‍षय है। इसको आगे बढ़ाना है।

नई Fertilizer Policy- यूरि‍या का उत्‍पादन। देखि‍ए नीम-कोटिंग, नीम-कोटिंग के कारण दो महत्‍वपूर्ण लाभ हुए, एक तो जमीन को तो फायदा हो ही रहा है, उत्‍पादन भी बढ़ रहा है। लेकि‍न पहले कि‍सान के नाम से सब्‍सि‍डी कटती थी बि‍ल कि‍सान के नाम से फटता था, लेकि‍न वो Chemical Industry में raw material के रूप में चला जाता था। जो Synthetic Milk बनाते थे वो भी यूरि‍या का उपयोग करते थे। 100 प्रति‍शत नीम-कोटिंग करने के कारण जमीन के सि‍वा उसका कहीं उपयोग संभव ही नहीं रहा है। चोरी गई है। न यूरि‍या का आज black-money हो रहा है। यूरि‍या नहीं मि‍ल रहा है ऐसी कि‍सी Chief Minister की चि‍ट्ठी नहीं आती है। यूरि‍या के लि‍ए कतार नहीं लगती है, यूरि‍या के लि‍ए कि‍सी को परेशानी नहीं हो रही। छोटे से परि‍वर्तन भी कि‍तना बड़ा बदलाव ला सकते हैं वो आप देख सकते हैं।

हमारे देश में दाल का उत्‍पादन- इस सरकार ने उसको प्रमोट करने की दि‍शा में प्रयास कि‍या है। और उसका परि‍णाम यह है कि‍ आज करीब-करीब 50 से 60 प्रति‍शत वृद्धि‍ की संभावना इस बार पैदा हुई है। हमारे देश के कि‍सानों ने सरकार के आवाह्न को स्‍वीकार कि‍या और सारे रि‍कॉर्ड तोड़कर के इस काम को उन्‍होंने कि‍या है।

e-NAM- Electronic Market 500 मंडि‍यों में, अब कि‍सान जहां भी ज्‍यादा दाम से माल बि‍क सकता है वो technology के माध्‍यम से कर सकता है। 500 मंडी में मोबाइल फोन के द्वारा आज मेरा कि‍सान व्‍यापार कर सके इस स्‍थि‍ति‍ में नहीं है। करीब 250 मंडि‍यों ने इस काम को पूरा कर दि‍या है। राज्‍यों ने कुछ कानून बदलने थे तो कुछ कानून बदले हैं। हम जानते हैं food processing हमारे कि‍सान को लाभ तब होगा जब हम food processing पर बल देंगे। सरकार ने 100 प्रति‍शत FDI allow कि‍या है ताकि food processing को मदद मि‍ले और value addition हो ताकि‍ हमारे कि‍सान की ज्‍यादा income हो और उस दि‍शा में काम करने की दि‍शा में हम प्रयास कर रहे हैं।

आदि‍वासि‍यों का सशक्‍तीकरण- करीब-करीब 28 वि‍भाग का कहीं न कहीं उनका आदि‍वासी के साथ संबंध आता है। हमने पहली बार एक Tribal sub-Plan के तहत, राशि‍ तो बढ़ा दी, लेकि‍न वनबंधु कल्‍याण योजना के तहत एक Comprehensive Plan बनकर के outcome दि‍खाई दे, उस दि‍शा में एक सफल प्रयास कि‍या है।

Forest Rights Act- उसको मजबूती से लागू करने की दि‍शा में काम कि‍या है। Tribal areas में पहली बार क्‍योंकि‍ हमारे देश में जि‍तने भी minerals है, mining है वो ज्‍यादातर tribal-belts में है चाहे कोयला हो, चाहे Iron हो, चाहे और हो लेकि‍न वहां लाभ नहीं मि‍लता था। पहली बार सरकार ने District Mineral Foundation बनाया और जो वहां से खदान से नि‍कलता है, उस पर टैक्‍स लगाया। मुझे छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री कह रहे थे कि‍ मेरे 7 जि‍ले ऐसे है कि‍ जहां से जो खनि‍ज नि‍कलता है, ये जो आपने योजना की है, Foundation बनाया है उसके कारण उन जि‍लों के वि‍कास के लि‍ए मुझे अब extra बजट की कभी जरूरत नहीं पड़ेगी। इतनी बड़ी मात्रा में राशि‍ उन गरीब आदि‍वासि‍यों के काम आने वाली है, उस पर हमने काम कि‍या है।

हमने Rurban Mission जो चलाया है, उसका सबसे बड़ा लाभ आदि‍वासी क्षेत्र में होने की संभावना है। आदि‍वासी मार्कि‍ट को एक बड़ी मार्कि‍ट में develop होना चाहि‍ए। मार्कि‍ट में develop होता है तो वहां education system आता है , वहां पर medical facility आती है वहां पर और एंटरटेनमेंट की सुवि‍धा। धीरे-धीरे अगल-बगल के 50-100 गांव का वो केन्‍द्र बन जाता है और Rurban के द्वारा tribal-belts में 300 ऐसे नए शहर बनाने की दि‍शा में हम काम कर रहे हैं। ये आदि‍वासी क्षेत्र के वि‍कास के लि‍ए एक बहुत बड़ा काम होगा।

उसी प्रकार से स्‍वच्‍छता, मैंने प्रारंभ में कहा था कि‍ स्‍वच्‍छता एक जन आंदोलन बनना चाहि‍ए। जन आंदोलन बनाने की दि‍शा में हम सबका कुछ न कुछ योगदान होना चाहि‍ए। जब से हमने स्‍वच्‍छता के लि‍ए रैंकिंग करना शुरू कि‍या है, independent agency द्वारा कि‍या है शहरों के बीच में स्‍पर्धा शुरू हुई है। एक शहर अगर आगे गया तो दूसरा शहर उस शहर को टोकता है कि‍ देखो वो शहर तो आगे हो गया, हम क्‍यों सफाई नहीं कर रहे? धीरे-धीरे ये बात नीचे तक जाने लगी है। हम लोगों को उस पर बल देना चाहि‍ए और मैं तो चाहूंगा कि‍ हमारे देश की सभी पॉलि‍टि‍कल पार्टि‍यों को कहीं न कहीं सरकार चलाने का इन दि‍नों अवसर मि‍ला है। कोई नगरपालि‍का में होंगे, कोई जि‍ला पंचायत में होंगे, कोई राज्‍य में होंगे। आपको अपनी पार्टी की सरकारों में जो सेवा करने का अवसर मि‍ला है आप उनसे भी तो competition कीजि‍ए। वो communist ruled जि‍तने शहर है उनके बीच स्‍वच्‍छता की स्‍पर्धा कीजि‍ए। communist ruled जि‍तने district पंचायत है उनके बीच स्‍वच्‍छता की स्‍पर्धा कीजि‍ए। एक वातावरण बनेगा। BJP ruled states होंगे तो वहां की नगरपालि‍काएं competition करें। एक बार हम इस competition को आगे बढ़ाएंगे तो मैं समझता हूं कि‍ ये स्‍वच्‍छता का अभि‍यान सफल होगा। ये सरकारी कार्यक्रम नहीं है ये जन आंदोलन होना चाहि‍ए। ये युगों की आवश्‍यकता है, behavioral change की आवश्‍यकता है। वर्ल्‍ड बैंक की रि‍पोर्ट कहती है कि‍ करीब-करीब अस्‍वच्‍छता के कारण हेल्‍थ के लि‍ए ढाई लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ता है। अगर हम इतनी care करे तो देश के ढाई लाख करोड़ रुपए, ये वर्ल्‍ड बैंक की रि‍पोर्ट है हि‍न्‍दुस्‍तान के संबंध में। गरीब मानवी को तो एक साल में करीब-करीब 7 हजार रुपए का खर्चा आता है। गंदगी से बीमारी आना बहुत स्‍वाभावि‍क है। हम इसको बचा सकते हैं।

अब बच्‍चों को हाथ धोकर के खाना खाना चाहि‍ए। ये हर कोई मानता है। लेकि‍न हम कहें तो कोई कहेगा वहां तो पानी नहीं है, नल नहीं है, वहां तो ढींकना नहीं है, बच्‍चा कुएं पर जाएगा तो। अरे ऐसा थोड़ी न सोचते हैं। ये जो सोच है, इसी सोच ने देश को यहीं दबोच कर रखा हुआ है। अरे जरा कुछ सोचो तो सही नि‍कले तो सही कठि‍नाइयां आएंगी तो रास्‍ते नि‍कलेंगे। लेकि‍न हम घर में बैठकर के, वहां बच्‍चों को आप हाथ धोने के लि‍ए कह रहे हैं लेकि‍न वहां ढींकना नहीं, फलाना नहीं है। ऐसे देश बदलता नहीं जी, इसलि‍ए इस मानि‍सकता से देश का हम बहुत नुकसान कर रहे हैं। इस मानसि‍कता से हमें बाहर आना चाहि‍ए। दुनि‍या में, हम देखे हमारे अड़ोस-पड़ोस के देश, चाहे साउथ कोरि‍या देखे, चाहे मलेशि‍या देखे, थाइलैंड देखे, सिंगापुर देखे, छोटे-छोटे देश उन्‍होंने 15-15 साल लगा दि‍ए स्‍वच्‍छता के लि‍ए और आज हम लोगों के लि‍ए वो एक मॉडल के रूप में नजर आते हैं। क्‍यों हम हि‍न्‍दुस्‍तान में नहीं कर सकते। हमारा भी तो सपना होना चाहि‍ए कि‍ छोटे-छोटे देश अगर वे हो सकते हैं तो हम क्‍यों नहीं हो सकते हैं। हमें उस दि‍शा में प्रयास करना चाहि‍ए। लेकि‍न कभी-कभी क्‍या लगता है कि‍ जि‍स प्रकार का वातवरण बना है, कि‍सी शायर ने कहा है शहर तुम्‍हारा, काति‍ल तुम, शाहि‍द तुम, हाकि‍म तुम, मुझे यकीन है कि‍ मेरा ही कसूर नि‍कलेगा। लेकि‍न मैं मानता हूं कि‍ उसमें से हम जरा बाहर आएं।

एक और वि‍षय करके मैं अपनी बात को समाप्‍त करना चाहूंगा। एक भारत श्रेष्‍ठ भारत- इस काम को हमने 31 अक्‍तूबर को लॉन्‍च कि‍या। सरदार पटेल की जयंती पर लॉन्‍च कि‍या। हमारे देश में दुनि‍या के कि‍सी राज्‍य के साथ sister state बनना, sister city बनना, ये तो कई वर्षों से चल रहा है लेकि‍न हमारी अपने ही देश के अलग-अलग लोगों से मि‍लने की आदत नहीं बनी। हमने ऐसे प्रकार से कर दि‍या कि‍ जि‍सके कारण कई राज्‍यों को लगने लगा कि‍ हमारी उपेक्षा हो रही है। आवश्‍यकता है कि‍ हमारे देश की potential को हमें पकड़ना चाहि‍ए। हमने एक भारत श्रेष्‍ठ भारत कार्यक्रम के तहत कोशि‍श की है और मैं चाहूंगा कि‍ सदन में जो लोग है वो इसे समझने और आगे बढ़ाने में मदद करें। जैसे दो राज्‍यों के बीच में MoU करते हैं। अभी 12 राज्‍यों ने एक-दूसरे के साथ शायद कर लि‍या है। जैसे हरि‍याणा और तेलंगाना ने कि‍या है। तो हरि‍याणा में तेलुगु भाषा के 100 sentences हरि‍याणा के लोग बोलना सीखें। हॉस्‍पि‍टल कहां है, रि‍क्‍शा कहां मि‍लेगी, होटल कहां है, फर्स्‍ट स्‍टेशन कहां है, पुलि‍सवाला कहां है, ये अगर सीखने को मि‍लेगा और तेलंगाना के लोग हरि‍याणा की भाषा सीखें। हरि‍याणा में कभी तेलंगाना का फि‍ल्‍म फेस्‍टि‍वल हो, हरि‍याणा का फि‍ल्‍म फेस्‍टि‍वल तेलंगाना में हो। Quiz competition हो, तेलंगाना की Quiz competition में हरि‍याणा के बच्‍चे स्‍पर्धा लें। एक प्रकार से देश का जानने का अभि‍यान, देश से जुड़ने का और ये जि‍तना हम बढ़ाएंगे। कभी-कभी लगता है, हि‍न्‍दी भाषा में कुछ शब्‍द भी नहीं होते लेकि‍न तमि‍ल में कुछ अच्‍छा शब्‍द होता है, लेकि‍न हम परि‍चि‍त नहीं है। मराठी में बढ़ि‍या शब्‍द होता है बांग्‍ला में बहुत बढ़ि‍या शब्‍द हाता है, हम परिचित नहीं हैं। हमारे देश की इतनी बढ़ी ताकत है। इस ताकत को जोड़ने की दि‍शा में ‘एक भारत श्रेष्‍ठ भारत’ का एक अभि‍यान चलाने की दि‍शा में प्रयास चल रहा है।

मै फि‍र एक बार सभी आदरणीय सदस्‍यों ने जो वि‍चार रखे हैं उसके प्रति‍ आभार व्‍यक्‍त करता हूं और आपने मुझे समर्थन देने के लि‍ए, बात करने का अवसर दि‍या, मैं इसके लि‍ए आभार व्‍यक्‍त करता हूं और राष्‍ट्रपति‍ जी के संबोधन को मेरा समर्थन देकर के मैं अपनी बात को समाप्‍त करता हूं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Urban areas are our growth centres, we will have to make urban bodies growth centres of economy: PM Modi in Gandhinagar
May 27, 2025
QuoteTerrorist activities are no longer proxy war but well thought out strategy, so the response will also be in a similar way: PM
QuoteWe believe in ‘Vasudhaiva Kutumbakam’, we don’t want enemity with anyone, we want to progress so that we can also contribute to global well being: PM
QuoteIndia must be developed nation by 2047,no compromise, we will celebrate 100 years of independence in such a way that whole world will acclaim ‘Viksit Bharat’: PM
QuoteUrban areas are our growth centres, we will have to make urban bodies growth centres of economy: PM
QuoteToday we have around two lakh Start-Ups ,most of them are in Tier2-Tier 3 cities and being led by our daughters: PM
QuoteOur country has immense potential to bring about a big change, Operation sindoor is now responsibility of 140 crore citizens: PM
QuoteWe should be proud of our brand “Made in India”: PM

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

क्यों ये सब तिरंगे नीचे हो गए हैं?

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

मंच पर विराजमान गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्र में मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, सी आर पाटिल जी, गुजरात सरकार के अन्य मंत्री गण, सांसदगण, विधायक गण और गुजरात के कोने-कोने से यहां उपस्थित मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

मैं दो दिन से गुजरात में हूं। कल मुझे वडोदरा, दाहोद, भुज, अहमदाबाद और आज सुबह-सुबह गांधी नगर, मैं जहां-जहां गया, ऐसा लग रहा है, देशभक्ति का जवाब गर्जना करता सिंदुरिया सागर, सिंदुरिया सागर की गर्जना और लहराता तिरंगा, जन-मन के हृदय में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम, एक ऐसा नजारा था, एक ऐसा दृश्य था और ये सिर्फ गुजरात में नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने में है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में है। शरीर कितना ही स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन अगर एक कांटा चुभता है, तो पूरा शरीर परेशान रहता है। अब हमने तय कर लिया है, उस कांटे को निकाल के रहेंगे।

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साथियों,

1947 में जब मां भारती के टुकड़े हुए, कटनी चाहिए तो ये तो जंजीरे लेकिन कांट दी गई भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए। और उसी रात पहला आतंकवादी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की इच्छा थी कि पीओके वापस नहीं आता है, तब तक सेना रूकनी नहीं चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात मानी नहीं गई और ये मुजाहिदीन जो लहू चख गए थे, वो सिलसिला 75 साल से चला है। पहलगाम में भी उसी का विकृत रूप था। 75 साल तक हम झेलते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ जब युद्ध की नौबत आई, तीनों बार भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। और पाकिस्तान समझ गया कि लड़ाई में वो भारत से जीत नहीं सकते हैं और इसलिए उसने प्रॉक्सी वार चालू किया। सैन्‍य प्रशिक्षण होता है, सैन्‍य प्रशिक्षित आतंकवादी भारत भेजे जाते हैं और निर्दोष-निहत्थे लोग कोई यात्रा करने गया है, कोई बस में जा रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई टूरिस्‍ट बन कर जा रहा है। जहां मौका मिला, वह मारते रहे, मारते रहे, मारते रहे और हम सहते रहे। आप मुझे बताइए, क्या यह अब सहना चाहिए? क्या गोली का जवाब गोले से देना चाहिए? ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए? इस कांटे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए?

साथियों,

यह देश उस महान संस्कृति-परंपरा को लेकर चला है, वसुधैव कुटुंबकम, ये हमारे संस्कार हैं, ये हमारा चरित्र है, सदियों से हमने इसे जिया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हम अपने पड़ोसियों का भी सुख चाहते हैं। वह भी सुख-चैन से जिये, हमें भी सुख-चैन से जीने दें। ये हमारा हजारों साल से चिंतन रहा है। लेकिन जब बार-बार हमारे सामर्थ्य को ललकारा जाए, तो यह देश वीरों की भी भूमि है। आज तक जिसे हम प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते हैं। और इसका कारण है, जब आतंकवाद के 9 ठिकाने तय करके 22 मिनट में साथियों, 22 मिनट में, उनको ध्वस्त कर दिया। और इस बार तो सब कैमरा के सामने किया, सारी व्यवस्था रखी थी। ताकि हमारे घर में कोई सबूत ना मांगे। अब हमें सबूत नहीं देना पड़ रहा है, वो उस तरफ वाला दे रहा है। और मैं इसलिए कहता हूं, अब यह प्रॉक्सी वॉर नहीं कह सकते इसको क्योंकि जो आतंकवादियों के जनाजे निकले, 6 मई के बाद जिन का कत्ल हुआ, उस जनाजे को स्टेट ऑनर दिया गया पाकिस्तान में, उनके कॉफिन पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए, उनकी सेना ने उनको सैल्यूट दी, यह सिद्ध करता है कि आतंकवादी गतिविधियां, ये प्रॉक्सी वॉर नहीं है। यह आप की सोची समझी युद्ध की रणनीति है। आप वॉर ही कर रहे हैं, तो उसका जवाब भी वैसे ही मिलेगा। हम अपने काम में लगे थे, प्रगति की राह पर चले थे। हम सबका भला चाहते हैं और मुसीबत में मदद भी करते हैं। लेकिन बदले में खून की नदियां बहती हैं। मैं नई पीढ़ी को कहना चाहता हूं, देश को कैसे बर्बाद किया गया है? 1960 में जो इंडस वॉटर ट्रीटी हुई है। अगर उसकी बारीकी में जाएंगे, तो आप चौक जाएंगे। यहाँ तक तय हुआ है उसमें, कि जो जम्मू कश्मीर की अन्‍य नदियों पर डैम बने हैं, उन डैम का सफाई का काम नहीं किया जाएगा। डिसिल्टिंग नहीं किया जाएगा। सफाई के लिए जो नीचे की तरफ गेट हैं, वह नहीं खोले जाएंगे। 60 साल तक यह गेट नहीं खोले गए और जिसमें शत प्रतिशत पानी भरना चाहिए था, धीरे-धीरे इसकी कैपेसिटी काम हो गई, 2 परसेंट 3 परसेंट रह गया। क्या मेरे देशवासियों को पानी पर अधिकार नहीं है क्या? उनको उनके हक का पानी मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए क्या? और अभी तो मैंने कुछ ज्यादा किया नहीं है। अभी तो हमने कहा है कि हमने इसको abeyance में रखा है। वहां पसीना छूट रहा है और हमने डैम थोड़े खोल करके सफाई शुरू की, जो कूड़ा कचरा था, वह निकाल रहे हैं। इतने से वहां flood आ जाता है।

साथियों,

हम किसी से दुश्मनी नहीं चाहते हैं। हम सुख-चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। हम प्रगति भी इसलिए करना चाहते हैं कि विश्व की भलाई में हम भी कुछ योगदान कर सकें। और इसलिए हम एकनिष्ठ भाव से कोटि-कोटि भारतीयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। कल 26 मई था, 2014 में 26 मई, मुझे पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का अवसर मिला। और तब भारत की इकोनॉमी, दुनिया में 11 नंबर पर थी। हमने कोरोना से लड़ाई लड़ी, हमने पड़ोसियों से भी मुसीबतें झेली, हमने प्राकृतिक आपदा भी झेली। इन सब के बावजूद भी इतने कम समय में हम 11 नंबर की इकोनॉमी से चार 4 नंबर की इकोनॉमी पर पहुंच गए क्योंकि हमारा ये लक्ष्य है, हम विकास चाहते हैं, हम प्रगति चाहते हैं।

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और साथियों,

मैं गुजरात का ऋणी हूं। इस मिट्टी ने मुझे बड़ा किया है। यहां से मुझे जो शिक्षा मिली, दीक्षा मिली, यहां से जो मैं आप सबके बीच रहकर के सीख पाया, जो मंत्र आपने मुझे दिए, जो सपने आपने मेरे में संजोए, मैं उसे देशवासियों के काम आए, इसके लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि आज गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष, 2005 में इस कार्यक्रम को किया था। 20 वर्ष मनाने का और मुझे खुशी इस बात की हुई कि यह 20 साल के शहरी विकास की यात्रा का जय गान करने का कार्यक्रम नहीं बनाया। गुजरात सरकार ने उन 20 वर्ष में से जो हमने पाया है, जो सीखा है, उसके आधार पर आने वाले शहरी विकास को next generation के लिए उन्होंने उसका रोडमैप बनाया और आज वो रोड मैप गुजरात के लोगों के सामने रखा है। मैं इसके लिए गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री जी को, उनकी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

हम आज दुनिया की चौथी इकोनॉमी बने हैं। किसी को भी संतोष होगा कि अब जापान को भी पीछे छोड़ कर के हम आगे निकल गए हैं और मुझे याद है, हम जब 6 से 5 बने थे, तो देश में एक और ही उमंग था, बड़ा उत्साह था, खासकर के नौजवानों में और उसका कारण यह था कि ढाई सौ सालों तक जिन्होंने हम पर राज किया था ना, उस यूके को पीछे छोड़ करके हम 5 बने थे। लेकिन अब चार बनने का आनंद जितना होना चाहिए उससे ज्यादा तीन कब बनोगे, उसका दबाव बढ़ रहा है। अब देश इंतजार करने को तैयार नहीं है और अगर किसी ने इंतजार करने के लिए कहा, तो पीछे से नारा आता है, मोदी है तो मुमकिन है।

और इसलिए साथियों,

एक तो हमारा लक्ष्य है 2047, हिंदुस्तान विकसित होना ही चाहिए, no compromise… आजादी के 100 साल हम ऐसे ही नहीं बिताएंगे, आजादी के 100 साल ऐसे मनाएंगे, ऐसे मनाएंगे कि दुनिया में विकसित भारत का झंडा फहरता होगा। आप कल्पना कीजिए, 1920, 1925, 1930, 1940, 1942, उस कालखंड में चाहे भगत सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो, नेताजी सुभाष बाबू हो, वीर सावरकर हो, श्यामजी कृष्ण वर्मा हो, महात्मा गांधी हो, सरदार पटेल हो, इन सबने जो भाव पैदा किया था और देश की जन-मन में आजादी की ललक ना होती, आजादी के लिए जीने-मरने की प्रतिबद्धता ना होती, आजादी के लिए सहन करने की इच्छा शक्ति ना होती, तो शायद 1947 में आजादी नहीं मिलती। यह इसलिए मिली कि उस समय जो 25-30 करोड़ आबादी थी, वह बलिदान के लिए तैयार हो चुकी थी। अगर 25-30 करोड़ लोग संकल्पबद्ध हो करके 20 साल, 25 साल के भीतर-भीतर अंग्रेजों को यहां से निकाल सकते हैं, तो आने वाले 25 साल में 140 करोड़ लोग विकसित भारत बना भी सकते हैं दोस्तों। और इसलिए 2030 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, मैं समझता हूं कि हमने अभी से 30 में होंगे, 35… 35 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, हमने अभी से नेक्स्ट 10 ईयर का पहले एक प्लान बनाना चाहिए कि जब गुजरात के 75 होंगे, तब गुजरात यहां पहुंचेगा। उद्योग में यहां होगा, खेती में यहां होगा, शिक्षा में यहां होगा, खेलकूद में यहां होगा, हमें एक संकल्प ले लेना चाहिए और जब गुजरात 75 का हो, उसके 1 साल के बाद जो ओलंपिक होने वाला है, देश चाहता है कि वो ओलंपिक हिंदुस्तान में हो।

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और इसलिए साथियों,

जिस प्रकार से हमारा यह एक लक्ष्य है कि हम जब गुजरात के 75 साल हो जाए। और आप देखिए कि जब गुजरात बना, उस समय के अखबार निकाल दीजिए, उस समय की चर्चाएं निकाल लीजिए। क्या चर्चाएं होती थी कि गुजरात महाराष्ट्र से अलग होकर क्या करेगा? गुजरात के पास क्या है? समंदर है, खारा पाठ है, इधर रेगिस्तान है, उधर पाकिस्तान है, क्या करेगा? गुजरात के पास कोई मिनरल्स नहीं, गुजरात कैसे प्रगति करेगा? यह ट्रेडर हैं सारे… इधर से माल लेते हैं, उधर बेचते हैं। बीच में दलाली से रोजी-रोटी कमा करके गुजारा करते हैं। क्‍या करेंगे ऐसी चर्चा थी। वही गुजरात जिसके पास एक जमाने में नमक से ऊपर कुछ नहीं था, आज दुनिया को हीरे के लिए गुजरात जाना जाता है। कहां नमक, कहां हीरे! यह यात्रा हमने काटी है। और इसके पीछे सुविचारित रूप से प्रयास हुआ है। योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाएं हैं। हमारे यहां आमतौर पर गवर्नमेंट के मॉडल की चर्चा होती है कि सरकार में साइलोज, यह सबसे बड़ा संकट है। एक डिपार्टमेंट दूसरे से बात नहीं करता है। एक टेबल वाला दूसरे टेबल वाले से बात नहीं करता है, ऐसी चर्चा होती है। कुछ बातों में सही भी होगा, लेकिन उसका कोई सॉल्यूशन है क्या? मैं आज आपको बैकग्राउंड बताता हूं, यह शहरी विकास वर्ष अकेला नहीं, हमने उस समय हर वर्ष को किसी न किसी एक विशेष काम के लिए डेडिकेट करते थे, जैसे 2005 में शहरी विकास वर्ष माना गया। एक साल ऐसा था, जब हमने कन्या शिक्षा के लिए डेडिकेट किया था, एक वर्ष ऐसा था, जब हमने पूरा टूरिज्म के लिए डेडिकेट किया था। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी सब काम बंद करते थे, लेकिन सरकार के सभी विभागों को उस वर्ष अगर forest department है, तो उसको भी अर्बन डेवलपमेंट में वो contribute क्या कर सकता है? हेल्थ विभाग है, तो अर्बन डेवलपमेंट ईयर में वो contribute क्या कर सकता है? जल संरक्षण मंत्रालय है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? टूरिज्म डिपार्टमेंट है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? यानी एक प्रकार से whole of the government approach, इस भूमिका से ये वर्ष मनाया और आपको याद होगा, जब हमने टूरिज्म ईयर मनाया, तो पूरे राज्य में उसके पहले गुजरात में टूरिज्म की कल्पना ही कोई नहीं कर सकता था। विशेष प्रयास किया गया, उसी समय ऐड कैंपेन चलाया, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में, एक-एक चीज उसमें से निकली। उसी में से रण उत्‍सव निकला, उसी में से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बना। उसी में से आज सोमनाथ का विकास हो रहा है, गिर का विकास हो रहा है, अंबाजी जी का विकास हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स आ रही हैं। यानी एक के बाद एक चीजें डेवलप होने लगीं। वैसे ही जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया।

और मुझे याद है, मैं राजनीति में नया-नया आया था। और कुछ समय के बाद हम अहमदाबाद municipal कॉरपोरेशन सबसे पहले जीते, तब तक हमारे पास एक राजकोट municipality हुआ करती थी, तब वो कारपोरेशन नहीं थी। और हमारे एक प्रहलादभाई पटेल थे, पार्टी के बड़े वरिष्ठ नेता थे। बहुत ही इनोवेटिव थे, नई-नई चीजें सोचना उनका स्वभाव था। मैं नया राजनीति में आया था, तो प्रहलाद भाई एक दिन आए मिलने के लिए, उन्होंने कहा ये हमें जरा, उस समय चिमनभाई पटेल की सरकार थी, तो हमने चिमनभाई और भाजपा के लोग छोटे पार्टनर थे। तो हमें चिमनभाई को मिलकर के समझना चाहिए कि यह जो लाल बस अहमदाबाद की है, उसको जरा अहमदाबाद के बाहर जाने दिया जाए। तो उन्होंने मुझे समझाया कि मैं और प्रहलाद भाई चिमनभाई को मिलने गए। हमने बहुत माथापच्ची की, हमने कहा यह सोचने जैसा है कि लाल बस अहमदाबाद के बाहर गोरा, गुम्‍मा, लांबा, उधर नरोरा की तरफ आगे दहेगाम की तरफ, उधर कलोल की तरफ आगे उसको जाने देना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन का विस्तार करना चाहिए, तो सरकार के जैसे सचिवों का स्वभाव रहता है, यहां बैठे हैं सारे, उस समय वाले तो रिटायर हो गए। एक बार एक कांग्रेसी नेता को पूछा गया था कि देश की समस्याओं का समाधान करना है तो दो वाक्य में बताइए। कांग्रेस के एक नेता ने जवाब दिया था, वो मुझे आज भी अच्छा लगता है। यह कोई 40 साल पहले की बात है। उन्होंने कहा, देश में दो चीजें होनी चाहिए। एक पॉलीटिशियंस ना कहना सीखें और ब्यूरोक्रेट हां कहना सीखे! तो उससे सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। पॉलीटिशियंस किसी को ना नहीं कहता और ब्यूरोक्रेट किसी को हां नहीं कहता। तो उस समय चिमनभाई के पास गए, तो उन्‍होंने पूछा सबसे, हम दोबारा गए, तीसरी बार गए, नहीं-नहीं एसटी को नुकसान हो जाएगा, एसटी को कमाई बंद हो जाएगी, एसटी बंद पड़ जाएगी, एसटी घाटे में चल रही है। लाल बस वहां नहीं भेज सकते हैं, यह बहुत दिन चला। तीन-चार महीने तक हमारी माथापच्ची चली। खैर, हमारा दबाव इतना था कि आखिर लाल बस को लांबा, गोरा, गुम्‍मा, ऐसा एक्सटेंशन मिला, उसका परिणाम है कि अहमदाबाद का विस्तार तेजी से उधर सारण की तरफ हुआ, इधर दहेगाम की तरफ हुआ, उधर कलोल की तरह हुआ, उधर अहमदाबाद की तरह हुआ, तो अहमदाबाद की तरफ जो प्रेशर, एकदम तेजी से बढ़ने वाला था, उसमें तेजी आई, बच गए छोटी सी बात थी, तब जाकर के, मैं तो उस समय राजनीति में नया था। मुझे कोई ज्यादा इन चीजों को मैं जानता भी नहीं था। लेकिन तब समझ में आता था कि हम तत्कालीन लाभ से ऊपर उठ करके सचमुच में राज्य की और राज्य के लोगों की भलाई के लिए हिम्मत के साथ लंबी सोच के साथ चलेंगे, तो बहुत लाभ होगा। और मुझे याद है जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया, तो पहला काम आया, यह एंक्रोचमेंट हटाने का, अब जब एंक्रोचमेंट हटाने की बात आती हे, तो सबसे पहले रुकावट बनता है पॉलिटिकल आदमी, किसी भी दल का हो, वो आकर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसको लगता है, मेरे वोटर है, तुम तोड़ रहे हो। और अफसर लोग भी बड़े चतुर होते हैं। जब उनको कहते हैं कि भई यह सब तोड़ना है, तो पहले जाकर वो हनुमान जी का मंदिर तोड़ते हैं। तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है कि कोई भी पॉलिटिशयन डर जाता है, उसको लगता है कि हनुमान जी का मंदिर तोड़ दिया तो हो… हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। उस समय हमारे …..(नाम स्पष्ट नहीं) अर्बन मिनिस्टर थे। और उसका परिणाम यह आया कि रास्ते चौड़े होने लगे, तो जिसका 2 फुट 4 फुट कटता था, वह चिल्लाता था, लेकिन पूरा शहर खुश हो जाता था। इसमें एक स्थिति ऐसी बनी, बड़ी interesting है। अब मैंने तो 2005 अर्बन डेवलपमेंट ईयर घोषित कर दिया। उसके लिए कोई 80-90 पॉइंट निकाले थे, बडे interesting पॉइंट थे। तो पार्टी से ऐसी मेरी बात हुई थी कि भाई ऐसा एक अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा, जरा सफाई वगैरह के कामों में सब को जोड़ना पड़ेगा ऐसा, लेकिन जब ये तोड़ना शुरू हुआ, तो मेरी पार्टी के लोग आए, ये बड़ा सीक्रेट बता रहा हूं मैं, उन्होंने कहा साहब ये 2005 में तो अर्बन बॉडी के चुनाव है, हमारी हालत खराब हो जाएगी। यह सब तो चारों तरफ तोड़-फोड़ चल रही है। मैंने कहा यार भई यह तो मेरे ध्यान में नहीं रहा और सच में मेरे ध्यान में वो चुनाव था ही नहीं। अब मैंने कार्यक्रम बना दिया, अब साहब मेरा भी एक स्वभाव है। हम तो बचपन से पढ़ते आए हैं- कदम उठाया है तो पीछे नहीं हटना है। तो मैंने मैंने कहा देखो भाई आपकी चिंता सही है, लेकिन अब पीछे नहीं हट सकते। अब तो ये अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा। हार जाएंगे, चुनाव क्या है? जो भी होगा हम किसी का बुरा करना नहीं चाहते, लेकिन गुजरात में शहरों का रूप रंग बदलना बहुत जरूरी है।

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साथियों,

हम लोग लगे रहे। काफी विरोध भी हुआ, काफी आंदोलन हुए बहुत परेशानी हुई। यहां मीडिया वालों को भी बड़ा मजा आ गया कि मोदी अब शिकार आ गया हाथ में, तो वह भी बड़ी पूरी ताकत से लग गए थे। और उसके बाद जब चुनाव हुआ, देखिए मैं राजनेताओं को कहता हूं, मैं देश भर के राजनेता मुझे सुनते हैं, तो देखना कहता हूं, अगर आपने सत्यनिष्ठा से, ईमानदारी से लोगों की भलाई के लिए निर्णय करते हैं, तत्कालीन भले ही बुरा लगे, लोग साथ चलते हैं। और उस समय जो चुनाव हुआ 90 परसेंट विक्ट्री बीजेपी की हुई थी, 90 परसेंट यानी लोग जो मानते हैं कि जनता ये नहीं और मुझे याद है। अब यह जो यहां अटल ब्रिज बना है ना तो मुझे, यह साबरमती रिवर फ्रंट पर, तो पता नहीं क्यों मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था। कई कार्यक्रम थे, तो मैंने कहा चलो भई हम भी देखने जाते हैं, तो मैं जरा वो अटल ब्रिज पर टहलने गया, तो वहां मैंने देखा कुछ लोगों ने पान की पिचकारियां लगाई हुई थी। अभी तो उद्घाटन होना था, लेकिन कार्यक्रम हो गया था। तो मेरा दिमाग, मैंने कहा इस पर टिकट लगाओ। तो ये सारे लोग आ गए साहब चुनाव है, उसी के बाद चुनाव था, बोले टिकट नहीं लगा सकते मैंने कहा टिकट लगाओ वरना यह तुम्हारा अटल ब्रिज बेकार हो जाएगा। फिर मैं दिल्ली गया, मैंने दूसरे दिन फोन करके पूछा, मैंने कहा क्या हुआ टिकट लगाने का एक दिन भी बिना टिकट नहीं चलना चाहिए।

साथियों,

खैर मेरा मान-सम्मान रखते हैं सब लोग, आखिर के हमारे लोगों ने ब्रिज पर टिकट लगा दिया। आज टिकट भी हुआ, चुनाव भी जीते दोस्तों और वो अटल ब्रिज चल रहा है। मैंने कांकरिया का पुनर्निर्माण का कार्यक्रम लिया, उस पर टिकट लगाया तो कांग्रेस ने बड़ा आंदोलन किया। कोर्ट में चले गए, लेकिन वह छोटा सा प्रयास पूरे कांकरिया को बचा कर रखा हुआ है और आज समाज का हर वर्ग बड़ी सुख-चैन से वहां जाता है। कभी-कभी राजनेताओं को बहुत छोटी चीजें डर जाते हैं। समाज विरोधी नहीं होता है, उसको समझाना होता है। वह सहयोग करता है और अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। देखिए शहरी शहरी विकास की एक-एक चीज इतनी बारीकी से बनाई गई और उसी का परिणाम था और मैं आपको बताता हूं। यह जो अब मुझ पर दबाव बढ़ने वाला है, वो already शुरू हो गया कि मोदी ठीक है, 4 नंबर तो पहुंच गए, बताओ 3 कब पहुंचोगे? इसकी एक जड़ी-बूटी आपके पास है। अब जो हमारे ग्रोथ सेंटर हैं, वो अर्बन एरिया हैं। हमें अर्बन बॉडीज को इकोनॉमिक के ग्रोथ सेंटर बनाने का प्लान करना होगा। अपने आप जनसंख्या के कारण वृद्धि होती चले, ऐसे शहर नहीं हो सकते हैं। शहर आर्थिक गतिविधि के तेजतर्रार केंद्र होने चाहिए और अब तो हमने टीयर 2, टीयर 3 सीटीज पर भी बल देना चाहिए और वह इकोनॉमिक एक्टिविटी के सेंटर बनने चाहिए और मैं तो पूरे देश की नगरपालिका, महानगरपालिका के लोगों को कहना चाहूंगा। अर्बन बॉडी से जुड़े हुए सब लोगों से कहना चाहूंगा कि वे टारगेट करें कि 1 साल में उस नगर की इकोनॉमी कहां से कहां पहुंचाएंगे? वहां की अर्थव्यवस्था का कद कैसे बढ़ाएंगे? वहां जो चीजें मैन्युफैक्चर हो रही हैं, उसमें क्वालिटी इंप्रूव कैसे करेंगे? वहां नए-नए इकोनॉमिक एक्टिविटी के रास्ते कौन से खोलेंगे। ज्यादातर मैंने देखा नगर पालिका की जो नई-नई बनती हैं, तो क्या करते हैं, एक बड़ा शॉपिंग सेंटर बना देते हैं। पॉलिटिशनों को भी जरा सूट करता है वह, 30-40 दुकानें बना देंगे और 10 साल तक लेने वाला नहीं आता है। इतने से काम नहीं चलेगा। स्टडी करके और खास करके जो एग्रो प्रोडक्ट हैं। मैं तो टीयर 2, टीयर 3 सीटी के लिए कहूंगा, जो किसान पैदावार करता है, उसका वैल्यू एडिशन, यह नगर पालिकाओं में शुरू हो, आस-पास से खेती की चीजें आएं, उसमें से कुछ वैल्यू एडिशन हो, गांव का भी भला होगा, शहर का भी भला होगा।

उसी प्रकार से आपने देखा होगा इन दिनों स्टार्टअप, स्टार्टअप में भी आपके ध्यान में आया होगा कि पहले स्‍टार्टअप बड़े शहर के बड़े उद्योग घरानों के आसपास चलते थे, आज देश में करीब दो लाख स्टार्टअप हैं। और ज्यादातर टीयर 2, टीयर 3 सीटीज में है और इसमें भी गर्व की बात है कि उसमें काफी नेतृत्व हमारी बेटियों के पास है। स्‍टार्टअप की लीडरशिप बेटियों के पास है। ये बहुत बड़ी क्रांति की संभावनाओं को जन्म देता है और इसलिए मैं चाहूंगा कि अर्बन डेवलपमेंट ईयर के जब 20 साल मना रहे हैं और एक सफल प्रयोग को हम याद करके आगे की दिशा तय करते हैं तब हम टीयर 2, टीयर 3 सीटीज को बल दें। शिक्षा में भी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज काफी आगे रहा, इस साल देख लीजिए। पहले एक जमाना था कि 10 और 12 के रिजल्ट आते थे, तो जो नामी स्कूल रहते थे बड़े, उसी के बच्चे फर्स्ट 10 में रहते थे। इन दिनों शहरों की बड़ी-बड़ी स्कूलों का नामोनिशान नहीं होता है, टीयर 2, टीयर 3 सीटीज के स्कूल के बच्चे पहले 10 में आते हैं। देखा होगा आपने गुजरात में भी यही हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे छोटे शहरों के पोटेंशियल, उसकी ताकत बढ़ रही है। खेल का देखिए, पहले क्रिकेट देखिए आप, क्रिकेट तो हिंदुस्तान में हम गली-मोहल्ले में खेला जाता है। लेकिन बड़े शहर के बड़े रहीसी परिवारों से ही खेलकूद क्रिकेट अटका हुआ था। आज सारे खिलाड़ी में से आधे से ज्यादा खिलाड़ी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज गांव के बच्चे हैं जो खेल में इंटरनेशनल खेल खेल कर कमाल करते हैं। यानी हम समझें कि हमारे शहरों में बहुत पोटेंशियल है। और जैसा मनोहर जी ने भी कहां और यहां वीडियो में भी दिखाया गया, यह हमारे लिए बहुत बड़ी opportunity है जी, 4 में से 3 नंबर की इकोनॉमी पहुंचने के लिए हम हिंदुस्तान के शहरों की अर्थव्यवस्था पर अगर फोकस करेंगे, तो हम बहुत तेजी से वहां भी पहुंच पाएंगे।

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साथियों,

ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक ऐसे ही इकोसिस्टम ने जमीनों में अपनी जड़े ऐसी जमा हुई हैं कि भारत के सामर्थ्य को हमेशा नीचा दिखाने में लगी हैं। वैचारिक विरोध के कारण व्यवस्थाओं के विकास का अस्वीकार करने का उनका स्वभाव बन गया है। व्यक्ति के प्रति पसंद-नापसंद के कारण उसके द्वारा किये गए हर काम को बुरा बता देना एक फैशन का तरीका चल पड़ा है और उसके कारण देश की अच्‍छी चीजों का नुकसान हुआ है। ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। अब आप देखिए, हमने शहरी विकास पर तो बल दिया, लेकिन वैसा ही जब आपने दिल्‍ली भेजा, तो हमने एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट, एस्पिरेशनल ब्लॉक पर विचार किया कि हर राज्य में एकाध जिला, एकाध तहसील ऐसी होती है, जो इतना पीछे होता है, कि वो स्‍टेट की सारी एवरेज को पीछे खींच ले जाता है। आप जंप लगा ही नहीं सकते, वो बेड़ियों की तरह होता है। मैंने कहा, पहले इन बेड़ियों को तोड़ना है और देश में 100 के करीब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उनको identify किया गया। 40 पैरामीटर से देखा गया कि यहां क्या जरूरत है। अब 500 ब्‍लॉक्‍स identify किए हैं, whole of the government approach के साथ फोकस किया गया। यंग अफसरों को लगाया गया, फुल टैन्‍यूर के साथ काम करें, ऐसा लगाया। आज दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुका है और जो डेवलपिंग कंट्रीज हैं उनको भी लग रहा है कि हमारे यहां विकास के इस मॉडल की ओर हमें चलना चाहिए। हमारा academic world भारत के इन प्रयासों और सफल प्रयासों के विषय में सोचे और जब academic world इस पर सोचता है तो दुनिया के लिए भी वो एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में काम आता है।

साथियों,

आने वाले दिनों में टूरिज्म पर हमें बल देना चाहिए। गुजरात ने कमाल कर दिया है जी, कोई सोच सकता है। कच्छ के रेगिस्तान में जहां कोई जाने का नाम नहीं लेता था, वहां आज जाने के लिए बुकिंग नहीं मिलती है। चीजों को बदला जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचा स्टैच्यू, ये अपने आप में अद्भुत है। मुझे बताया गया कि वडनगर में जो म्यूजियम बना है। कल मुझे एक यूके के एक सज्‍जन मिले थे। उन्होंने कहा, मैं वडनगर का म्यूजियम देखने जा रहा हूं। यह इंटरनेशनल लेवल में इतने global standard का कोई म्यूजियम बना है और भारत में काशी जैसे बहुत कम जगह है कि जो अविनाशी हैं। जो कभी भी मृतप्राय नहीं हुए, जहां हर पल जीवन रहा है, उसमें एक वडनगर हैं, जिसमें 2800 साल तक के सबूत मिले हैं। अभी हमारा काम है कि वह इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर कैसे आए? हमारा लोथल जहां हम एक म्यूजियम बना रहे हैं, मैरीटाइम म्यूजियम, 5 हजार साल पहले मैरीटाइम में दुनिया में हमारा डंका बजता था। धीरे-धीरे हम भूल गए, लोथल उसका जीता-जागता उदाहरण है। लोथल में दुनिया का सबसे बड़ा मैरीटाइम म्यूजियम बन रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इन चीजों का कितना लाभ होने वाला है और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तों, 2005 का वो समय था, जब पहली बार गिफ्ट सिटी के आईडिया को कंसीव किया गया और मुझे याद है, शायद हमने इसका launching Tagore Hall में किया था। तो उसके बड़े-बड़े जो हमारे मन में डिजाइन थे, उसके चित्र लगाए थे, तो मेरे अपने ही लोग पूछ रहे थे। यह होगा, इतने बड़े बिल्डिंग टावर बनेंगे? मुझे बराबर याद है, यानी जब मैं उसका मैप वगैरह और उसका प्रेजेंटेशन दिखाता था केंद्र के कुछ नेताओं को, तो वह भी मुझे कह रहे थे अरे भारत जैसे देश में ये क्या कर रहे हो तुम? मैं सुनता था आज वो गिफ्ट सिटी हिंदुस्तान का हर राज्य कह रहा है कि हमारे यहां भी एक गिफ्ट सिटी होना चाहिए।

साथियों,

एक बार कल्पना करते हुए उसको जमीन पर, धरातल पर उतारने का अगर हम प्रयास करें, तो कितने बड़े अच्छे परिणाम मिल सकते हैं, ये हम भली भांति देख रहे हैं। वही काल खंड था, रिवरफ्रंट को कंसीव किया, वहीं कालखंड था जब दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाने का सपना देखा, पूरा किया। वही कालखंड था, दुनिया का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बनाने के लिए सोचा, पूरा किया।

भाइयों और बहनों,

एक बार हम मान के चले, हमारे देश में potential बहुत हैं, बहुत सामर्थ्‍य है।

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साथियों,

मुझे पता नहीं क्यों, निराशा जैसी चीज मेरे मन में आती ही नहीं है। मैं इतना आशावादी हूं और मैं उस सामर्थ्य को देख पाता हूं, मैं दीवारों के उस पार देख सकता हूं। मेरे देश के सामर्थ्य को देख सकता हूं। मेरे देशवासियों के सामर्थ्य को देख सकता हूं और इसी के भरोसे हम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और इसलिए आज मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे यहां आने का मौका दिया है। कुछ ऐसी पुरानी-पुरानी बातें ज्यादातर ताजा करने का मौका मिल गया। लेकिन आप विश्वास करिए दोस्तों, गुजरात की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम देने वाले लोग हैं, हमें देश को हमेशा देना चाहिए। और हम इतनी ऊंचाई पर गुजरात को ले जाए, इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि देशवासियों के लिए गुजरात काम आना चाहिए दोस्तों, इस महान परंपरा को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। मुझे विश्वास है, गुजरात एक नए सामर्थ्य के साथ अनेक विद नई कल्पनाओं के साथ, अनेक विद नए इनीशिएटिव्स के साथ आगे बढ़ेगा मुझे मालूम है। मेरा भाषण शायद कितना लंबा हो गया होगा, पता नहीं क्या हुआ? लेकिन कल मीडिया में दो-तीन चीजें आएंगी। वो भी मैं बता देता हूं, मोदी ने अफसरों को डांटा, मोदी ने अफसरों की धुलाई की, वगैरह-वगैरह-वगैरह, खैर वो तो कभी-कभी चटनी होती है ना इतना ही समझ लेना चाहिए, लेकिन जो बाकी बातें मैंने याद की है, उसको याद कर करके जाइए और ये सिंदुरिया मिजाज! ये सिंदुरिया स्पिरिट, दोस्‍तों 6 मई को, 6 मई की रात। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से प्रारंभ हुआ था। लेकिन अब ये ऑपरेशन सिंदूर जन-बल से आगे बढ़ेगा और जब मैं सैन्य बल और जन-बल की बात करता हूं तब, ऑपरेशन सिंदूर जन बल का मतलब मेरा होता है जन-जन देश के विकास के लिए भागीदार बने, दायित्‍व संभाले।

हम इतना तय कर लें कि 2047, जब भारत के आजादी के 100 साल होंगे। विकसित भारत बनाने के लिए तत्काल भारत की इकोनॉमी को 4 नंबर से 3 नंबर पर ले जाने के लिए अब हम कोई विदेशी चीज का उपयोग नहीं करेंगे। हम गांव-गांव व्यापारियों को शपथ दिलवाएं, व्यापारियों को कितना ही मुनाफा क्यों ना हो, आप विदेशी माल नहीं बेचोगे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, गणेश जी भी विदेशी आ जाते हैं। छोटी आंख वाले गणेश जी आएंगे। गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। होली, होली रंग छिड़कना है, बोले विदेशी, हमें पता था आप भी अपने घर जाकर के सूची बनाना। सचमुच में ऑपरेशन सिंदूर के लिए एक नागरिक के नाते मुझे एक काम करना है। आप घर में जाकर सूची बनाइए कि आपके घर में 24 घंटे में सुबह से दूसरे दिन सुबह तक कितनी विदेशी चीजों का उपयोग होता है। आपको पता ही नहीं होता है, आप hairpin भी विदेशी उपयोग कर लेते हैं, कंघा भी विदेशी होता है, दांत में लगाने वाली जो पिन होती है, वो भी विदेशी घुस गई है, हमें मालूम तक नहीं है। पता ही नहीं है दोस्‍तों। देश को अगर बचाना है, देश को बनाना है, देश को बढ़ाना है, तो ऑपरेशन सिंदूर यह सिर्फ सैनिकों के जिम्‍मे नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर 140 करोड़ नागरिकों की जिम्‍मे है। देश सशक्त होना चाहिए, देश सामर्थ्‍य होना चाहिए, देश का नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए और इसके लिए हमने वोकल फॉर लोकल, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, मैं मेरे यहां, जो आपके पास है फेंक देने के लिए मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन अब नया नहीं लेंगे और शायद एकाध दो परसेंट चीजें ऐसी हैं, जो शायद आपको बाहर की लेनी पड़े, जो हमारे यहां उपलब्ध ना हो, बाकि आज हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं। आपने देखा होगा, आज से पहले 25 साल 30 साल पहले विदेश से कोई आता था, तो लोग लिस्ट भेजते थे कि ये ले आना, ये ले आना। आज विदेश से आते हैं, वो पूछते हैं कि कुछ लाना है, तो यहां वाले कहते हैं कि नहीं-नहीं यहां सब है, मत लाओ। सब कुछ है, हमें अपनी ब्रांड पर गर्व होना चाहिए। मेड इन इंडिया पर गर्व होना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर सैन्‍य बल से नहीं, जन बल से जीतना है दोस्तों और जन बल आता है मातृभूमि की मिट्टी में पैदा हुई हर पैदावार से आता है। इस मिट्टी की जिसमें सुगंध हो, इस देश के नागरिक के पसीने की जिसमें सुगंध हो, उन चीजों का मैं इस्तेमाल करूंगा, अगर मैं ऑपरेशन सिंदूर को जन-जन तक, घर-घर तक लेकर जाता हूं। आप देखिए हिंदुस्तान को 2047 के पहले विकसित राष्ट्र बनाकर रहेंगे और अपनी आंखों के सामने देखकर जाएंगे दोस्तों, इसी इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए,

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

भारत माता की जय! जरा तिरंगे ऊपर लहराने चाहिए।

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

धन्यवाद!