सांबा जिले की पल्ली पंचायत से देश भर की सभी ग्राम सभाओं को संबोधित किया
20,000 करोड़ रुपये से अधिक की विभिन्न विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया
बनिहाल काजीगुंड सड़क सुरंग का लोकार्पण किया जो जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रों को करीब लाने में मदद करेगा
दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेसवे और रतले और क्वार जलविद्युत परियोजनाओं के तीन रोड पैकेजों की आधारशिला रखी
देश के प्रत्येक जिले में 75 जल निकायों के विकास और कायाकल्प के उद्देश्य से एक पहल- अमृत सरोवर का शुभारंभ
"इस बार का पंचायती राज दिवस, जम्मू कश्मीर में मनाया जाना, एक बड़े बदलाव का प्रतीक है"
“बात लोकतंत्र की हो या संकल्प विकास का, आज जम्मू कश्मीर नया उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। बीते 2-3 सालों में जम्मू कश्मीर में विकास के नए आयाम बने हैं”
"जम्मू-कश्मीर में बरसों तक जिन साथियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिला, अब उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिल रहा है"
"दूरियां चाहे दिलों की हो, भाषा-व्यवहार की हो या फिर संसाधनों की, इनको दूर करना आज हमारी बहुत बड़ी प्राथमिकता है"
"आजादी का ये ‘अमृतकाल’ भारत का स्वर्णिम काल होने वाला है"
"घाटी के युवाओं को उन समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा जिनका सामना उनके माता-पिता और दादा-दादी को करना पड़ा था"
"प्राकृतिक खेती की तरफ हमारा गांव बढ़ेगा तो पूरी मानवता को लाभ होगा"
"ग्राम पंचायतें ‘सबका प्रयास' के माध्यम से कुपोषण से निपटने में अहम भूमिका निभाएंगी"

भारत माता की जय

भारत माता की जय

जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर श्री मनोज सिन्हा जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी गिरिराज सिंह जी, इसी धरती की संतान मेरे साथी डॉक्टर जितेंद्र सिंह जी, श्री कपिल मोरेश्वर पाटिल जी, संसद में मेरे साथी श्री जुगल किशोर जी, जम्मू-कश्मीर सहित पूरे देश से जुड़े पंचायती राज के सभी जनप्रतिनिधिगण, भाइयों और बहनों !

शूरवीरें दी इस डुग्गर धरती जम्मू-च, तुसें सारे बहन-प्राऐं-गी मेरा नमस्कार ! देशभर से जुड़े साथियों को राष्ट्रीय पंचायती दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं !

आज जम्मू कश्मीर के विकास को गति देने के लिए ये बहुत बड़ा दिन है। यहां मैं जो जनसागर देख रहा हूं, जहां भी मेरी नजर पहुंच रही है लोग ही लोग नजर आ रहे हैं। शायद कितने दशकों के बाद जम्‍मू–कश्‍मीर की धरती, हिन्‍दुस्‍तान के नागरिक ऐसा भव्‍य दृश्‍य देख पा रहे हैं। ये आपके प्‍यार के लिए, आपके उत्‍साह और उमंग के लिए, विकास और प्रगति के आपके संकल्‍प के लिए मैं विशेष रूप से आज जम्‍मू और कश्‍मीर के भाइयों-बहनों का आदरपूर्वक अभिनंदन करना चाहता हूं।

साथियो,

न ये भू-भाग मेरे लिए नया है, न मैं आपके लिए नया हूं। और मैं यहां की बारीकियों से अनेक वर्षों से परिचित भी रहा हूं, जुड़ा हुआ रहा हूं। मेरे लिए खुशी की बात है कि आज यहां कनेक्टिविटी और बिजली से जुड़े 20 हज़ार करोड़ रुपए...ये आंकड़ा जम्‍म-कश्‍मीर जैसे छोटे राज्‍य के लिए बहुत बड़ा आंकड़ा है..20 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स का लोकार्पण और शिलान्यास हुआ है। जम्मू-कश्मीर के विकास को नई रफ्तार देने के लिए राज्य में तेजी से काम चल रहा है। इन प्रयासों से बहुत बड़ी संख्या में जम्मू कश्मीर के नौजवानों को रोज़गार मिलेगा।

साथियों,

आज अनेक परिवारों को गांवों में उनके घर के प्रॉपर्टी कार्ड भी मिले हैं। ये स्वामित्व कार्ड गांवों में नई संभावनाओं को प्रेरित करेंगे। आज 100 जनऔषधि केंद्र जम्मू कश्मीर के गरीब और मिडिल क्लास को सस्ती दवाएं, सस्ता सर्जिकल सामान देने का माध्यम बनेंगे। 2070 तक देश को कार्बन न्यूट्रल बनाने का जो संकल्प देश ने उठाया है, उसी दिशा में भी जम्मू कश्मीर ने आज एक ब़ड़ी पहल की है। पल्ली पंचायत देश की पहली कार्बन न्यूट्रल पंचायत बनने की तरफ बढ़ रही है।

ग्‍लासगो में दुनिया के बड़े-बड़े दिग्‍गज इक्‍टठे हुए थे। कार्बन न्‍यूट्रल को ले करके बहुत सारे भाषण हुए, बहुत सारे बयान हुए, बहुत सारी घोषणाएं हुईं। लेकिन ये हिन्‍दुस्‍तान है जो ग्‍लासगो के आज जम्‍मू-कश्‍मीर की एक छोटी पंचायत, पल्‍ली पंचायत के अंदर देश की पहली कार्बन न्‍यूट्रल पंचायत बनने की तरफ आगे बढ़ रहा है। आज मुझे पल्ली गांव में, देश के गांवों के जन प्रतिनिधियों के साथ जुड़ने का भी अवसर मिला है। इस बड़ी उपलब्धि और विकास के कामों के लिए जम्मू- कश्मीर को बहुत-बहुत बधाई !

यहां मंच पर आने से पहले मैं यहां के पंचायत के सदस्‍यों के साथ बैठा था। उनके सपने, उनके संकल्‍प और उनके नेक इरादे मैं महसूस कर रहा था। और मुझे खुशी तब हुई कि मैं दिल्‍ली के लालकिले पर से 'सबका प्रयास' ये बोलता हूं। लेकिन आज जम्‍मू-कश्‍मीर की धरती ने, पल्‍ली के नागरिकों ने 'सबका प्रयास' क्‍या होता है, ये मुझे करके दिखाया है। यहां के पंच-सरपंच मुझे बता रहे थे कि जब यहां मैं ये कार्यक्रम का आयोजन तय हुआ तो सरकार के लोग आते थे, कॉन्ट्रैक्टर्स आते थे सब बनाने वाले, अब यहां तो कोई ढाबा नहीं है, यहां तो कोई लंगर नहीं चलता है, ये लोग आ रहे हैं तो उनको खाने का क्‍या करें। तो मुझे यहां के पंच-सरपंच ने बताया कि हर घर से, कोई घर से 20 रोटी, कहीं 30 रोटी इखट्ठी करते थे और पिछले 10 दिन से यहां जो भी लोग आए हैं सबको गांव वालों ने खाना खिलाया है। 'सबका प्रयास' क्‍या होता है ये आप लोगों ने दिखा दिया है। मैं हृदय से यहां के सभी मेरे गांववासियों को आदरपूर्वक नमन करता हूं।

भाइयों और बहनों,

इस बार का पंचायती राज दिवस, जम्मू कश्मीर में मनाया जाना, एक बड़े बदलाव का प्रतीक है। ये बहुत ही गर्व की बात है, कि जब लोकतंत्र जम्मू कश्मीर में ग्रास रूट तक पहुंचा है, तब यहां से मैं देशभर की पंचायतों से संवाद कर रहा हूं। हिन्‍दुस्‍तान में पंचायती राज व्‍यवस्‍था लागू हुई, बहुत ढोल पीटे गए, बड़ा गौरव भी किया गया और वो गलत भी नहीं था। लेकिन एक बात हम भूल गए, वैसे तो कहा करते थे हम कि भारत में पंचायती राज व्‍यवस्‍था लागू की गई है लेकिन देशवासियों को पता होना चाहिए कि ये इतनी अच्‍छी व्‍यवस्‍था होने के बावजूद भी मेरे जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग उससे वंचित थे, यहां नहीं था। दिल्‍ली में आपने मुझे सेवा करने का मौका दिया और पंचायती राज व्‍यवस्‍था जम्‍मू-कश्‍मीर की धरती पर लागू हो गई। अकेले जम्‍मू-कश्‍मीर के गांवों में 30 हजार से ज्‍यादा जनप्रतिनिधि चुन करके आए हैं और वो आज यहां का कारोबार चला रहे हैं। यही तो लोकतंत्र की ताकत होती है। पहली बार त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था- ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और डीडीसी के चुनाव यहां शांतिपूर्ण तरीके से संपन्‍न हुए और गांव के लोग गांव का भविष्‍य तय कर रहे हैं।

साथियों,

बात डेमोक्रेसी की हो या संकल्‍प डेवलपमेंट का हो, आज जम्मू कश्मीर पूरे देश के लिए एक नया उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। बीते 2-3 सालों में जम्मू कश्मीर में विकास के नए आयाम बने हैं। केंद्र के लगभग पौने 2 सौ कानून, जो जम्‍मू के नागरिकों को अधिकार देते थे, वो लागू नहीं किए जाते थे। हमने जम्‍मू-कश्‍मीर के हर नागरिक को empower करने के लिए उन कानूनों को लागू कर दिया और आपको ताकतवर बनाने का काम कर दिया। जिनका सबसे अधिक लाभ यहां की बहनों को हुआ, यहां की बेटियों को हुआ है, यहां के गरीब को, यहां के दलित को, यहां के पीड़ित को, यहां के वंचित को हुआ है।

आज मुझे गर्व हो रहा है कि आजादी के 75 साल के बाद जम्‍मू-कश्‍मीर के मेरे वाल्मीकि समाज के भाई-बहन हिन्‍दुस्‍तान के नागरिकों की बराबरी में आने का कानूनी हक प्राप्‍त कर सके हैं। दशकों-दशक से जो बेड़ियां वाल्मीकि समाज के पांव में डाल दी गई थीं, उनसे अब वो मुक्त हो चुका है। आजादी के सात दशक के बाद उसको आजादी मिली है। आज हर समाज के बेटे-बेटियां अपने सपनों को पूरा कर पा रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर में बरसों तक जिन साथियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिला, अब उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिल रहा है। आज बाबा साहेब की आत्‍मा जहां भी होगी, हम सबको आशीर्वाद देती होगी कि हिन्‍दुस्‍तान का एक कोना इससे वंचित था, मोदी सरकार ने आ करके बाबा साहेब के सपनों को भी पूरा किया हैं । केंद्र सरकार की योजनाएं अब यहां तेज़ी से लागू हो रही हैं, जिसका सीधा फायदा जम्मू कश्मीर के गांवों को हो रहा है। एलपीजी गैस कनेक्शन हो, बिजली कनेक्शन हो, पानी कनेक्शन हो, स्वच्छ भारत अभियान के तहत टॉयलेट्स हों, इसका बड़ा लाभ जम्मू कश्मीर को मिला है।

साथियों,

आज़ादी के अमृतकाल यानि आने वाले 25 साल में नया जम्मू कश्मीर, विकास की नई गाथा लिखेगा। थोड़ी देर पहले UAE से आए एक डेलीगेशन से बातचीत करने का अवसर मुझे मिला है। वो जम्मू कश्मीर को लेकर बहुत उत्साहित हैं। आप कल्पना कर सकते हैं, आजादी के 7 दशकों के दरमियान जम्मू कश्मीर में मात्र 17 हज़ार करोड़ रुपए का ही प्राइवेट इन्वेस्टमेंट हो पाया था। सात दशक में 17 हजार, और पिछले दो साल के भीतर-भीतर ये आंकड़ा 38 हज़ार करोड़ रुपए पर पहुंचा है। 38 हजार करोड़ रुपये यहां इन्‍वेस्‍टमेंट के लिए प्राइवेट कंपनियां आ रही हैं।

साथियों,

आज केंद्र से भेजी पाई-पाई भी यहां ईमानदारी से लग रही है और इन्वेस्टर भी खुले मन से पैसा लगाने आ रहे हैं। अभी मुझे हमारे मनोज सिन्‍हा जी बता रहे थे कि तीन साल पहले यहां के जिलों के हाथ में, पूरे राज्‍य में पांच हजार करोड़ रुपया ही उनके नसीब होता था और उसमें लेह-लद्दाख सब आ जाता था। उन्‍होंने कहा- छोटा सा राज्‍य है, आबादी कम है। लेकिन पिछले दो साल में जो गति आई है, इस बार बजट में जिलों के पास 22 हजार करोड़ रुपये सीधे-सीधे पंचायतों के पास विकास के लिए दिए जा रहे हैं व इतने छोटे राज्‍य में ग्रास रूट लेवल के डेमोक्रेटिक सिस्‍टम के द्वारा विकास के काम के लिए कहां 5 हजार करोड़ और कहां 22 हजार करोड़ रुपये, ये काम हुआ है भाइयो।

आज मुझे खुशी है, रतले पावर प्रोजेक्ट और क्वार पावर प्रोजेक्ट जब बनकर तैयार होंगे, तो जम्मू कश्मीर को पर्याप्त बिजली तो मिलेगी ही, जम्‍मू-कश्‍मीर के लिए एक कमाई का बहुत बड़ा नया क्षेत्र खुलने वाला है जो जम्‍मू-कश्‍मीर को नई आर्थिक ऊंचाइयों की ओर ले जाएगा। अब देखिए, कभी दिल्ली से एक सरकारी फाइल चलती थी, जरा मेरी बात समझना। दिल्‍ली से एक सरकारी फाइल चलती थी तो जम्‍मू-कश्‍मीर पहुंचते-पहुंचते दो-तीन हफ्ते लग जाते थे। मुझे खुशी है कि आज 500 किलोवाट का सोलर पावर प्लांट सिर्फ 3 हफ्ते के भीतर यहां लागू हो जाता है, बिजली पैदा करना शुरू करता है। पल्ली गांव के सभी घरों में अब सोलर बिजली पहुंच रही है। ये ग्राम ऊर्जा स्वराज का भी बहुत बड़ा उदाहरण बना है। काम के तौर-तरीकों में यही बदलाव जम्मू-कश्मीर को नई ऊंचाई पर ले जाएगा।

साथियों,

मैं जम्‍मू–कश्‍मीर के नौजवानों को कहना चाहता हूं, ''साथियो मेरे शब्‍दों पर भरोसा कीजिए। घाटी के नौजवान, आपके माता-पिता को, आपके दादा-दादी को, आपके नाना-नानी को जिन मुसीबतों से जिंदगी जीनी पड़ी, मेरे नौजवान आपको भी भी ऐसी मुसीबतों से जिंदगी जीनी नहीं पड़ेगी, ये मैं करके दिखाऊंगा ये मैं आपको विश्‍वास दिलाने आया हूं'' I बीते 8 सालों में एक भारत, श्रेष्ठ भारत के मंत्र को मजबूत करने के लिए हमारी सरकार ने दिन रात काम किया है। जब मैं एक भारत, श्रेष्ठ भारत की बात करता हूं, तब हमारा फोकस कनेक्टिविटी पर भी होता है, दूरियां मिटाने पर भी होता है। दूरियां चाहे दिलों की हो, भाषा-व्यवहार की हो या फिर संसाधनों की, इनको दूर करना आज हमारी बहुत बड़ी प्राथमिकता है। जैसे हमारे डोगरों के बारे में लोक संगीत में कहते हैं- मिट्ठड़ी ऐ डोगरें दी बोली, ते खंड मिट्ठे लोक डोगरे I ऐसी ही मिठास, ऐसी ही संवेदनशील सोच देश के लिए एकता की ताकत बनती है और दूरियां भी कम होती हैं।

भाइयों और बहनों,

हमारी सरकार के प्रयास से अब बनिहाल- काज़ीगुंड टनल से जम्मू और श्रीनगर की दूरी 2 घंटे कम हो गई। उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला को लिंक करने वाला आकर्षक आर्क ब्रिज भी जल्द देश को मिलने वाला है। दिल्ली-अमृतसर-कटरा हाईवे भी दिल्ली से मां वैष्णो के दरबार की दूरी को बहुत कम करने वाला है। और वो दिन दूर नहीं होगा जब कन्‍याकुमारी की दूरी वैष्‍णों देवी से एक सड़क से मिलने वाले हैं। जम्मू कश्मीर हो, लेह-लद्दाख हो, हर तरफ से ये कोशिश की जा रही है कि जम्मू कश्मीर के ज्यादातर हिस्से 12 महीने देश से कनेक्टेड हों।

सरहदी गांवों के विकास के लिए भी हमारी सरकार प्राथमिकता के आधार पर काम कर रही है। हिन्‍दुस्‍तान भर की सरहदों के आखिरी गांव के लिए वाइब्रेंट विलेज योजना इस बार बजट में मंजूर की गई है। उसका लाभ हिन्‍दुस्‍तान के सभी आखिरी गांवों को जो सीमा पर सटे हुए हैं, वो वाइब्रेंट विलेज के तहत मिलेगा। इसका अधिक फायदा पंजाब और जम्‍मू-कश्‍मीर को भी मिलने वाला है।

साथियों,

आज जम्मू कश्मीर सबका साथ, सबका विकास का भी एक उत्तम उदाहरण बनता जा रहा है। राज्य में अच्छे औऱ आधुनिक अस्पताल हों, ट्रांसपोर्ट के नए साधन हों, उच्च शिक्षा के संस्थान हों, यहां के युवाओं को ध्यान में रखते हुए योजनाओं को लागू किया जा रहा है। विकास और विश्वास के बढ़ते माहौल में जम्मू कश्मीर में टूरिज्म फिर से फलने लगा है। मुझे बताया गया है कि अगले जून-जुलाई तक यहां के सारे पर्यटन स्थल बुक हो चुके हैं, जगह मिलना मु‍श्किल हो गया है। पिछले कई बरसों में जितने पर्यटक यहां पर नहीं आए उतने कुछ ही महीनों में यहां आ रहे हैं।

साथियों,

आज़ादी का ये अमृतकाल भारत का स्वर्णिम काल होने वाला है। ये संकल्प सबका प्रयास से सिद्ध होने वाला है। इसमें लोकतंत्र की सबसे ज़मीनी ईकाई, ग्राम पंचायत की, आप सभी साथियों की भूमिका बहुत अहम है। पंचायतों की इसी भूमिका को समझते हुए, आज़ादी के अमृत महोत्सव पर अमृत सरोवर अभियान की शुरुआत हुई है। आने वाले 1 साल में, अगले वर्ष 15 अगस्त तक हमें हर जिले में कम से कम 75 अमृत सरोवर तैयार करने हैं, हर जिले में 75 अमृत सरोवर।

हमें ये भी प्रयास करना है कि इन सरोवरों के आसपास नीम, पीपल, बरगद आदि के पौधे उस इलाके के शहीदों के नाम पर लगाएं। और कोशिश ये भी करनी है कि जब ये अमृत सरोवर का आरंभ करते हो, शिलान्यास करते हो तो वो शिलान्‍यास भी किसी न किसी शहीद के परिवार के हाथों से, किसी स्वतंत्रता सेनानी के परिवार के हाथों से कराएं और आजादी के लिए ये अमृत सरोवर के अभियान को हम एक गौरवपूर्ण पृष्‍ठ के रूप में जोड़ें।

भाइयों और बहनों,

बीते सालों में पंचायतों को अधिक अधिकार, अधिक पारदर्शिता और टेक्नॉलॉजी से जोड़ने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। ई-ग्राम-स्वराज अभियान से पंचायत से जुड़ी प्लानिंग से लेकर पेमेंट तक की व्यवस्था को जोड़ा जा रहा है। गांव का सामान्य लाभार्थी अब अपने मोबाइल फोन पर ये जान सकता है कि पंचायत में कौन सा काम हो रहा है, उसका स्टेटस क्या है, कितना बजट खर्च हो पा रहा है। पंचायत को जो फंड मिल रहे हैं, उनके ऑडिट की ऑनलाइन व्यवस्था की गई है। Citizen’s Charter campaign के ज़रिए राज्यों और ग्राम पंचायतों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वो जन्म प्रमाण पत्र, शादी के सर्टिफिकेट, प्रॉपर्टी से जुड़े अनेक विषयों को ग्राम पंचायत के स्तर पर ही हल कर दें। स्वामित्व योजना से ग्राम पंचायतों के लिए प्रॉपर्टी टैक्स की असेसमेंट आसान हो गई है, जिसका लाभ कई ग्राम पंचायतों को हो रहा है।

कुछ दिन पहले ही पंचायतों में ट्रेनिंग के लिए आधुनिक टेक्नॉलॉजी के उपयोग से जुड़ी नई नीति को भी स्वीकृति दी गई है। इसी महीने 11 से 17 अप्रैल तक पंचायतों के नवनिर्माण के संकल्प के साथ आइकॉनिक वीक का आयोजन भी किया गया ताकि गांव-गांव तक मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाने का काम हो सके। सरकार का संकल्प ये है कि गांवों में हर व्यक्ति, हर परिवार के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे हर पहलू का विकास सुनिश्चित हो। सरकार की कोशिश यही है कि गांव के विकास से जुड़े हर प्रोजेक्ट को प्लान करने, उसके अमल में पंचायत की भूमिका ज्यादा हो। इससे राष्ट्रीय संकल्पों की सिद्धि में पंचायत अहम कड़ी बनकर उभरेगी।

साथियों,

पंचायतों को ज्यादा अधिकार देने का लक्ष्य पंचायतों को सही मायने में, सशक्तिकरण का सेंटर बनाने का है। पंचायतों की बढ़ती हुई शक्ति, पंचायतों को मिलने वाली राशि गांव के विकास को नई ऊर्जा दे, इसका भी ध्यान रखा जा रहा है। पंचायती राज व्यवस्था में बहनों की भागीदारी को और बढ़ाने पर भी हमारी सरकार का बहुत जोर है।

भारत की बहनें-बेटियां क्या कर सकती हैं, ये कोरोना काल के दुनिया भर में भारत के अनुभव ने विश्‍व को बहुत कुछ सिखाया है। आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कैसे ट्रैकिंग से लेकर टीकाकरण तक, छोटे-छोटे हर काम को करके कोरोना के खिलाफ की लड़ाई को मजबूती देने का काम हमारी बेटियों ने किया है, हमारी माताओं-बहनों ने किया है।

गांव के स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ा नेटवर्क महिला शक्ति से ही अपनी ऊर्जा पा रहा है। महिला स्वयं सहायता समूह, गांवों में आजीविका के, जनजागरण के नए आयाम गढ़ रहे हैं। पानी से जुड़ी व्यवस्थाएं, हर घर जल अभियान में भी जो महिलाओं की भूमिका तय की गई है, उसको हर पंचायत तेज़ी से व्यवस्थित करे, ये बहुत आवश्यक है।

मुझे बताया गया है कि अभी तक 3 लाख पानी समितियां पूरे देश में बन चुकी हैं। इन समितियों में 50 प्रतिशत महिलाएं होना अनिवार्य है, 25 प्रतिशत तक समाज के कमज़ोर तबके के सदस्य हों, ये भी सुनिश्चित होना जरूरी है। अब गांव में नल से जल तो पहुंच रहा है, लेकिन साथ-साथ इसकी शुद्धता, इसकी निरंतर सप्लाई, इसको सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को ट्रेन करने का काम भी पूरे देश में चल रहा है, लेकिन मैं चाहूंगा कि उसमें तेजी जरूरी है। अभी तक 7 लाख से अधिक बहनों को, बेटियों को पूरे देश में ट्रेनिंग दी जा चुकी है। लेकिन मुझे इस दायरे को भी बढ़ाना है, गति को भी बढ़ाना है। मेरा आज देश भर की पंचायतों से आग्रह है कि जहां अभी ये व्यवस्था नहीं हुई है, वहां इसको जल्द से जल्द लागू किया जाए।

गुजरात में लंबे अरसे तक मैं मुख्‍यमंत्री रहा और मैंने अनुभव किया है कि जब मैंने गुजरात में पानी का काम महिलाओं के हाथ में दिया, गांवों में पानी की व्‍यवस्‍था की चिंता महिलाओं ने इतनी बखूबी की, क्‍योंकि पानी न होने का मतलब क्‍या होता है, वो महिलाएं ज्‍यादा समझती हैं। और बड़ी संवेदनशीलता के साथ, जिम्‍मेदारी के साथ काम किया। और इसलिए मैं उस अनुभव के आधार पर कहता हूं मेरे देश की सारी पंचायतें पानी के इस काम में जितना ज्‍यादा महिलाओं को जोड़ेंगी, जितना ज्‍यादा महिलाओं की टेनिंग करेंगे, जितना ज्‍यादा महिलाओं पर भरोसा करेंगे, मैं कहता हूं पानी की समस्‍या का समाधान उतना ही जल्‍दी होगा, मेरे शब्‍दों पर विश्‍वास कीजिए, हमारी माताओं-बहनों की शक्ति पर भरोसा कीजिए। गांव में हर स्तर पर बहनों-बेटियों की भागीदारी को हमें बढ़ाना है, उन्हें प्रोत्साहन देना है।

भाइयों और बहनों,

भारत की ग्राम पंचायतों के पास फंड्स और रैवेन्यु का एक लोकल मॉडल भी होना जरूरी है। पंचायतों के जो संसाधन हैं उनका कमर्शियली कैसे उपयोग किया जा सकता है, इसके बारे में ज़रूर प्रयास होना चाहिए। अब जैसे, कचरे से कंचन, गोबरधन योजना या हम कहें प्राकृतिक खेती की योजना। और इन सारी चीजों से धन की संभावनाएं बढ़ेंगी, नए कोष बनाए जा सकते हैं। बायोगैस, बायो-सीएनजी, जैविक खाद, इसके लिए छोटे-छोटे प्लांट भी लगें, इससे भी गांव की आय बढ़ सकती है, इसके लिए कोशिश करनी चाहिए। और इसके लिए कचरे का बेहतर मैनेजमेंट ज़रूरी है।

मैं आज गांव के लोगों से, पंचायत के लोगों से आग्रह करूंगा कि दूसरे NGO's के साथ मिल करके, और संगठनों के साथ मिल करके आपको रणनीति बनानी होगी, नए-नए संसाधन विकसित करने होंगे। इतना ही नहीं, आज हमारे देश में ज्‍यादातर राज्‍यों में 50 प्रतिशत बहनें प्रतिनिधि हैं। कुछ राज्‍यों में 33 प्रतिशत से भी ज्‍यादा है। मैं खास आग्रह करूंगा घरों से जो कचरा निकलता है गीला और सूखा, ये अलग घर में ही करने की आदत डाल दी जाए। उसको अलग करके चलें, आप देखिए वो भी, वो कचरा आपके यहां सोने की तरह काम आना शुरू हो जाएगा। इस अभियान को गांव के स्‍तर पर मुझे चलाना है और मैं आज देशभर के पंचायत के लोग मेरे से जुड़े हुए हैं तो मैं इसका भी आग्रह करूंगा।

साथियों,

पानी का सीधा संबंध हमारी खेती से है, खेती का संबंध हमारे पानी की क्वालिटी से भी है। जिस प्रकार के कैमिकल हम खेतों में डाल रहे हैं और उससे हमारी धरती माता की सेहत को बर्बाद कर रहे हैं, हमारी मिट्टी खराब हो रही है। और जब पानी, वर्षा का पानी भी नीचे उतरता है, तो वो कैमिकल ले करके नीचे जाता है और वही पानी हम पीते हैं, हमारे पशु पीते हैं, हमारे छोटे-छोटे बच्‍चे पीते हैं। बीमारियों की जड़ें हम ही लगा रहे हैं और इसलिए हमें अपनी इस धरती मां को कैमिकल से मुक्त करना ही होगा, कैमिकल फर्टिलाइजर से मुक्‍त करना होगा। और इसके लिए प्राकृतिक खेती की तरफ हमारा गांव, हमारा किसान बढ़ेगा तो पूरी मानवता को लाभ होगा। ग्राम पंचायत के स्तर पर कैसे प्राकृतिक खेती को हम प्रोत्साहित कर सकते हैं, इसके लिए भी सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।

भाइयों और बहनों,

प्राकृतिक खेती का सबसे अधिक लाभ अगर किसी को होगा तो वो मेरे छोटे किसान भाइयों-बहनों को होने वाला है। इनकी आबादी देश में 80 प्रतिशत से अधिक है। जब कम लागत में अधिक फायदा होगा, तो ये छोटे किसानों के लिए बहुत प्रोत्साहन देगा। बीते सालों में केंद्र सरकार की नीतियों का सबसे अधिक लाभ हमारे इन छोटे किसान को हुआ है। पीएम किसान सम्मान निधि से हज़ारों करोड़ रुपए इसी छोटे किसान के काम आ रहे हैं। किसान रेल के माध्यम से छोटे किसान के फल-सब्जियां भी पूरे देश के बड़े बाज़ारों तक कम कीमत में पहुंच पा रही हैं। FPO यानि किसान उत्पादक संघों के गठन से भी छोटे किसानों को बहुत ताकत मिल रही है। इस साल भारत ने विदेशों को रिकॉर्ड फल-सब्जियां एक्सपोर्ट की हैं, तो इसका एक बड़ा लाभ भी देश के छोटे-छोटे किसानों को हो रहा है।

साथियों,

ग्राम पंचायतों को सबको साथ लेकर एक और काम भी करना होगा। कुपोषण से, एनीमिया से, देश को बचाने का जो बीड़ा केंद्र सरकार ने उठाया है उसके प्रति ज़मीन पर लोगों को जागरूक भी करना है। अब सरकार की तरफ से जिन योजनाओं में भी चावल दिया जाता है, उसको फोर्टिफाई किया जा रहा है, पोषण युक्त किया जा रहा है। ये फोर्टिफाइड चावल स्वास्थ्य के लिए कितना आवश्यक है, इसको लेकर जागरूकता फैलाना हम सभी का दायित्व है। आज़ादी के अमृत महोत्सव में हमारी बहनों-बेटियों-बच्चों को कुपोषण से, एनीमिया से मुक्त करने के संकल्प हमें लेना है और जब तक इच्छित परिणाम मिलता नहीं है, सिद्धि प्राप्‍त नहीं होती है, मानतवा के इस काम को हमें छोड़ना नहीं है, लगे रहना है और कुपोषण को हमें हमारी धरती से विदाई देनी है।

भारत का विकास वोकल फॉर लोकल के मंत्र में छिपा है। भारत के लोकतंत्र के विकास की ताकत भी लोकल गवर्नेंस ही है। आपके काम का दायरा भले ही लोकल है, लेकिन इसका सामूहिक प्रभाव वैश्विक होने वाला है। लोकल की इस ताकत को हमें पहचानना है। आप अपनी पंचायत में जो भी काम करेंगे, उससे देश की छवि और निखरे, देश के गांव और सशक्त हों, यही मेरी आज पंचायत दिवस पर आप सबसे कामना है।

एक बार फिर जम्मू कश्मीर को विकास कार्यों के लिए मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूं और देशभर में लाखों की तादाद में चुने हुए जनप्रतिनिधियों को मैं कहना चाहूंगा पंचायत हो या पालिर्यामेंट, कोई काम छोटा नहीं है। अगर पंचायत में बैठ करके मैं मेरे देश को आगे ले जाऊंगा, इस संकल्‍प से पंचायत को आगे बढ़ाएंगे तो देश को आगे बढ़ने में देर नहीं होगी। और मैं आज पंचायत स्‍तर पर चुने हुए प्रतिनिधियों का उत्‍साह देख रहा हूं, उमंग देख रहा हूं, संकल्‍प देख रहा हूं। मुझे पूरा भरोसा है कि हमारी पंचायत राज व्‍यवस्‍था भारत को नई ऊंचाई पर ले जाने का एक सशक्‍त माध्‍यम बनेगी। और उन शुभकामनाओं के साथ मैं आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं और धन्‍यवाद देता हूं।

मेरे साथ दोनों हाथ ऊपर करके पूरी ताकत से बोलिए-

भारत माता की – जय

भारत माता की – जय

बहुत-बहुत धन्‍यवाद !!

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विवेक गोयनका जी, भाई अनंत, जॉर्ज वर्गीज़ जी, राजकमल झा, इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के सभी अन्य साथी, Excellencies, यहां उपस्थित अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों!

आज हम सब एक ऐसी विभूति के सम्मान में यहां आए हैं, जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र में, पत्रकारिता, अभिव्यक्ति और जन आंदोलन की शक्ति को नई ऊंचाई दी है। रामनाथ जी ने एक Visionary के रूप में, एक Institution Builder के रूप में, एक Nationalist के रूप में और एक Media Leader के रूप में, Indian Express Group को, सिर्फ एक अखबार नहीं, बल्कि एक Mission के रूप में, भारत के लोगों के बीच स्थापित किया। उनके नेतृत्व में ये समूह, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और राष्ट्रीय हितों की आवाज़ बना। इसलिए 21वीं सदी के इस कालखंड में जब भारत विकसित होने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, तो रामनाथ जी की प्रतिबद्धता, उनके प्रयास, उनका विजन, हमारी बहुत बड़ी प्रेरणा है। मैं इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप का आभार व्यक्त करता हूं कि आपने मुझे इस व्याख्यान में आमंत्रित किया, मैं आप सभी का अभिनंदन करता हूं।

साथियों,

रामनाथ जी गीता के एक श्लोक से बहुत प्रेरणा लेते थे, सुख दुःखे समे कृत्वा, लाभा-लाभौ जया-जयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व, नैवं पापं अवाप्स्यसि।। अर्थात सुख-दुख, लाभ-हानि और जय-पराजय को समान भाव से देखकर कर्तव्य-पालन के लिए युद्ध करो, ऐसा करने से तुम पाप के भागी नहीं बनोगे। रामनाथ जी आजादी के आंदोलन के समय कांग्रेस के समर्थक रहे, बाद में जनता पार्टी के भी समर्थक रहे, फिर जनसंघ के टिकट पर चुनाव भी लड़ा, विचारधारा कोई भी हो, उन्होंने देशहित को प्राथमिकता दी। जिन लोगों ने रामनाथ जी के साथ वर्षों तक काम किया है, वो कितने ही किस्से बताते हैं जो रामनाथ जी ने उन्हें बताए थे। आजादी के बाद जब हैदराबाद और रजाकारों को उसके अत्याचार का विषय आया, तो कैसे रामनाथ जी ने सरदार वल्‍लभभाई पटेल की मदद की, सत्तर के दशक में जब बिहार में छात्र आंदोलन को नेतृत्व की जरूरत थी, तो कैसे नानाजी देशमुख के साथ मिलकर रामनाथ जी ने जेपी को उस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए तैयार किया। इमरजेंसी के दौरान, जब रामनाथ जी को इंदिऱा गांधी के सबसे करीबी मंत्री ने बुलाकर धमकी दी कि मैं तुम्हें जेल में डाल दूंगा, तो इस धमकी के जवाब में रामनाथ जी ने पलटकर जो कहा था, ये सब इतिहास के छिपे हुए दस्तावेज हैं। कुछ बातें सार्वजनिक हुई, कुछ नहीं हुई हैं, लेकिन ये बातें बताती हैं कि रामनाथ जी ने हमेशा सत्य का साथ दिया, हमेशा कर्तव्य को सर्वोपरि रखा, भले ही सामने कितनी ही बड़ी ताकत क्‍यों न हो।

साथियों,

रामनाथ जी के बारे में कहा जाता था कि वे बहुत अधीर थे। अधीरता, Negative Sense में नहीं, Positive Sense में। वो अधीरता जो परिवर्तन के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा कराती है, वो अधीरता जो ठहरे हुए पानी में भी हलचल पैदा कर देती है। ठीक वैसे ही, आज का भारत भी अधीर है। भारत विकसित होने के लिए अधीर है, भारत आत्मनिर्भर होने के लिए अधीर है, हम सब देख रहे हैं, इक्कीसवीं सदी के पच्चीस साल कितनी तेजी से बीते हैं। एक से बढ़कर एक चुनौतियां आईं, लेकिन वो भारत की रफ्तार को रोक नहीं पाईं।

साथियों,

आपने देखा है कि बीते चार-पांच साल कैसे पूरी दुनिया के लिए चुनौतियों से भरे रहे हैं। 2020 में कोरोना महामारी का संकट आया, पूरे विश्व की अर्थव्यवस्थाएं अनिश्चितताओं से घिर गईं। ग्लोबल सप्लाई चेन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा और सारा विश्व एक निराशा की ओर जाने लगा। कुछ समय बाद स्थितियां संभलना धीरे-धीरे शुरू हो रहा था, तो ऐसे में हमारे पड़ोसी देशों में उथल-पुथल शुरू हो गईं। इन सारे संकटों के बीच, हमारी इकॉनमी ने हाई ग्रोथ रेट हासिल करके दिखाया। साल 2022 में यूरोपियन क्राइसिस के कारण पूरे दुनिया की सप्लाई चेन और एनर्जी मार्केट्स प्रभावित हुआ। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा, इसके बावजूद भी 2022-23 में हमारी इकोनॉमी की ग्रोथ तेजी से होती रही। साल 2023 में वेस्ट एशिया में स्थितियां बिगड़ीं, तब भी हमारी ग्रोथ रेट तेज रही और इस साल भी जब दुनिया में अस्थिरता है, तब भी हमारी ग्रोथ रेट Seven Percent के आसपास है।

साथियों,

आज जब दुनिया disruption से डर रही है, भारत वाइब्रेंट फ्यूचर के Direction में आगे बढ़ रहा है। आज इंडियन एक्सप्रेस के इस मंच से मैं कह सकता हूं, भारत सिर्फ़ एक emerging market ही नहीं है, भारत एक emerging model भी है। आज दुनिया Indian Growth Model को Model of Hope मान रहा है।

साथियों,

एक सशक्त लोकतंत्र की अनेक कसौटियां होती हैं और ऐसी ही एक बड़ी कसौटी लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी की होती है। लोकतंत्र को लेकर लोग कितने आश्वस्त हैं, लोग कितने आशावादी हैं, ये चुनाव के दौरान सबसे अधिक दिखता है। अभी 14 नवंबर को जो नतीजे आए, वो आपको याद ही होंगे और रामनाथ जी का भी बिहार से नाता रहा था, तो उल्लेख बड़ा स्वाभाविक है। इन ऐतिहासिक नतीजों के साथ एक और बात बहुत अहम रही है। कोई भी लोकतंत्र में लोगों की बढ़ती भागीदारी को नजरअंदाज नहीं कर सकता। इस बार बिहार के इतिहास का सबसे अधिक वोटर टर्न-आउट रहा है। आप सोचिए, महिलाओं का टर्न-आउट, पुरुषों से करीब 9 परसेंट अधिक रहा। ये भी लोकतंत्र की विजय है।

साथियों,

बिहार के नतीजों ने फिर दिखाया है कि भारत के लोगों की आकांक्षाएं, उनकी Aspirations कितनी ज्यादा हैं। भारत के लोग आज उन राजनीतिक दलों पर विश्वास करते हैं, जो नेक नीयत से लोगों की उन Aspirations को पूरा करते हैं, विकास को प्राथमिकता देते हैं। और आज इंडियन एक्सप्रेस के इस मंच से मैं देश की हर राज्य सरकार को, हर दल की राज्य सरकार को बहुत विनम्रता से कहूंगा, लेफ्ट-राइट-सेंटर, हर विचार की सरकार को मैं आग्रह से कहूंगा, बिहार के नतीजे हमें ये सबक देते हैं कि आप आज किस तरह की सरकार चला रहे हैं। ये आने वाले वर्षों में आपके राजनीतिक दल का भविष्य तय करेंगे। आरजेडी की सरकार को बिहार के लोगों ने 15 साल का मौका दिया, लालू यादव जी चाहते तो बिहार के विकास के लिए बहुत कुछ कर सकते थे, लेकिन उन्होंने जंगलराज का रास्ता चुना। बिहार के लोग इस विश्वासघात को कभी भूल नहीं सकते। इसलिए आज देश में जो भी सरकारें हैं, चाहे केंद्र में हमारी सरकार है या फिर राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें हैं, हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता सिर्फ एक होनी चाहिए विकास, विकास और सिर्फ विकास। और इसलिए मैं हर राज्य सरकार को कहता हूं, आप अपने यहां बेहतर इंवेस्टमेंट का माहौल बनाने के लिए कंपटीशन करिए, आप Ease of Doing Business के लिए कंपटीशन करिए, डेवलपमेंट पैरामीटर्स में आगे जाने के लिए कंपटीशन करिए, फिर देखिए, जनता कैसे आप पर अपना विश्वास जताती है।

साथियों,

बिहार चुनाव जीतने के बाद कुछ लोगों ने मीडिया के कुछ मोदी प्रेमियों ने फिर से ये कहना शुरू किया है भाजपा, मोदी, हमेशा 24x7 इलेक्शन मोड में ही रहते हैं। मैं समझता हूं, चुनाव जीतने के लिए इलेक्शन मोड नहीं, चौबीसों घंटे इलेक्शन मोड में रहना जरूरी होता है, इमोशनल मोड में रहना जरूरी होता है, इलेक्शन मोड में नहीं। जब मन के भीतर एक बेचैनी सी रहती है कि एक मिनट भी गंवाना नहीं है, गरीब के जीवन से मुश्किलें कम करने के लिए, गरीब को रोजगार के लिए, गरीब को इलाज के लिए, मध्यम वर्ग की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, बस मेहनत करते रहना है। इस इमोशन के साथ, इस भावना के साथ सरकार लगातार जुटी रहती है, तो उसके नतीजे हमें चुनाव परिणाम के दिन दिखाई देते हैं। बिहार में भी हमने अभी यही होते देखा है।

साथियों,

रामनाथ जी से जुड़े एक और किस्से का मुझसे किसी ने जिक्र किया था, ये बात तब की है, जब रामनाथ जी को विदिशा से जनसंघ का टिकट मिला था। उस समय नानाजी देशमुख जी से उनकी इस बात पर चर्चा हो रही थी कि संगठन महत्वपूर्ण होता है या चेहरा। तो नानाजी देशमुख ने रामनाथ जी से कहा था कि आप सिर्फ नामांकन करने आएंगे और फिर चुनाव जीतने के बाद अपना सर्टिफिकेट लेने आ जाइएगा। फिर नानाजी ने पार्टी कार्यकर्ताओं के बल पर रामनाथ जी का चुनाव लड़ा औऱ उन्हें जिताकर दिखाया। वैसे ये किस्सा बताने के पीछे मेरा ये मतलब नहीं है कि उम्मीदवार सिर्फ नामांकन करने जाएं, मेरा मकसद है, भाजपा के अनगिनत कर्तव्य़ निष्ठ कार्यकर्ताओं के समर्पण की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना।

साथियों,

भारतीय जनता पार्टी के लाखों-करोड़ों कार्यकर्ताओं ने अपने पसीने से भाजपा की जड़ों को सींचा है और आज भी सींच रहे हैं। और इतना ही नहीं, केरला, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, ऐसे कुछ राज्यों में हमारे सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अपने खून से भी भाजपा की जड़ों को सींचा है। जिस पार्टी के पास ऐसे समर्पित कार्यकर्ता हों, उनके लिए सिर्फ चुनाव जीतना ध्येय नहीं होता, बल्कि वो जनता का दिल जीतने के लिए, सेवा भाव से उनके लिए निरंतर काम करते हैं।

साथियों,

देश के विकास के लिए बहुत जरूरी है कि विकास का लाभ सभी तक पहुंचे। दलित-पीड़ित-शोषित-वंचित, सभी तक जब सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचता है, तो सामाजिक न्याय सुनिश्चित होता है। लेकिन हमने देखा कि बीते दशकों में कैसे सामाजिक न्याय के नाम पर कुछ दलों, कुछ परिवारों ने अपना ही स्वार्थ सिद्ध किया है।

साथियों,

मुझे संतोष है कि आज देश, सामाजिक न्याय को सच्चाई में बदलते देख रहा है। सच्चा सामाजिक न्याय क्या होता है, ये मैं आपको बताना चाहता हूं। 12 करोड़ शौचालयों के निर्माण का अभियान, उन गरीब लोगों के जीवन में गरिमा लेकर के आया, जो खुले में शौच के लिए मजबूर थे। 57 करोड़ जनधन बैंक खातों ने उन लोगों का फाइनेंशियल इंक्लूजन किया, जिनको पहले की सरकारों ने एक बैंक खाते के लायक तक नहीं समझा था। 4 करोड़ गरीबों को पक्के घरों ने गरीब को नए सपने देखने का साहस दिया, उनकी रिस्क टेकिंग कैपेसिटी बढ़ाई है।

साथियों,

बीते 11 वर्षों में सोशल सिक्योरिटी पर जो काम हुआ है, वो अद्भुत है। आज भारत के करीब 94 करोड़ लोग सोशल सिक्योरिटी नेट के दायरे में आ चुके हैं। और आप जानते हैं 10 साल पहले क्या स्थिति थी? सिर्फ 25 करोड़ लोग सोशल सिक्योरिटी के दायरे में थे, आज 94 करोड़ हैं, यानि सिर्फ 25 करोड़ लोगों तक सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ पहुंच रहा था। अब ये संख्या बढ़कर 94 करोड़ पहुंच चुकी है और यही तो सच्चा सामाजिक न्याय है। और हमने सोशल सिक्योरिटी नेट का दायरा ही नहीं बढ़ाया, हम लगातार सैचुरेशन के मिशन पर काम कर रहे हैं। यानि किसी भी योजना के लाभ से एक भी लाभार्थी छूटे नहीं। और जब कोई सरकार इस लक्ष्य के साथ काम करती है, हर लाभार्थी तक पहुंचना चाहती है, तो किसी भी तरह के भेदभाव की गुंजाइश भी खत्म हो जाती है। ऐसे ही प्रयासों की वजह से पिछले 11 साल में 25 करोड़ लोगों ने गरीबी को परास्त करके दिखाया है। और तभी आज दुनिया भी ये मान रही है- डेमोक्रेसी डिलिवर्स।

साथियों,

मैं आपको एक और उदाहरण दूंगा। आप हमारे एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम का अध्ययन करिए, देश के सौ से अधिक जिले ऐसे थे, जिन्हें पहले की सरकारें पिछड़ा घोषित करके भूल गई थीं। सोचा जाता था कि यहां विकास करना बड़ा मुश्किल है, अब कौन सर खपाए ऐसे जिलों में। जब किसी अफसर को पनिशमेंट पोस्टिंग देनी होती थी, तो उसे इन पिछड़े जिलों में भेज दिया जाता था कि जाओ, वहीं रहो। आप जानते हैं, इन पिछड़े जिलों में देश की कितनी आबादी रहती थी? देश के 25 करोड़ से ज्यादा नागरिक इन पिछड़े जिलों में रहते थे।

साथियों,

अगर ये पिछड़े जिले पिछड़े ही रहते, तो भारत अगले 100 साल में भी विकसित नहीं हो पाता। इसलिए हमारी सरकार ने एक नई रणनीति के साथ काम करना शुरू किया। हमने राज्य सरकारों को ऑन-बोर्ड लिया, कौन सा जिला किस डेवलपमेंट पैरामीटर में कितनी पीछे है, उसकी स्टडी करके हर जिले के लिए एक अलग रणनीति बनाई, देश के बेहतरीन अफसरों को, ब्राइट और इनोवेटिव यंग माइंड्स को वहां नियुक्त किया, इन जिलों को पिछड़ा नहीं, Aspirational माना और आज देखिए, देश के ये Aspirational Districts, कितने ही डेवलपमेंट पैरामीटर्स में अपने ही राज्यों के दूसरे जिलों से बहुत अच्छा करने लगे हैं। छत्तीसगढ़ का बस्तर, वो आप लोगों का तो बड़ा फेवरेट रहा है। एक समय आप पत्रकारों को वहां जाना होता था, तो प्रशासन से ज्यादा दूसरे संगठनों से परमिट लेनी होती थी, लेकिन आज वही बस्तर विकास के रास्ते पर बढ़ रहा है। मुझे नहीं पता कि इंडियन एक्सप्रेस ने बस्तर ओलंपिक को कितनी कवरेज दी, लेकिन आज रामनाथ जी ये देखकर बहुत खुश होते कि कैसे बस्तर में अब वहां के युवा बस्तर ओलंपिक जैसे आयोजन कर रहे हैं।

साथियों,

जब बस्तर की बात आई है, तो मैं इस मंच से नक्सलवाद यानि माओवादी आतंक की भी चर्चा करूंगा। पूरे देश में नक्सलवाद-माओवादी आतंक का दायरा बहुत तेजी से सिमट रहा है, लेकिन कांग्रेस में ये उतना ही सक्रिय होता जा रहा था। आप भी जानते हैं, बीते पांच दशकों तक देश का करीब-करीब हर बड़ा राज्य, माओवादी आतंक की चपेट में, चपेट में रहा। लेकिन ये देश का दुर्भाग्य था कि कांग्रेस भारत के संविधान को नकारने वाले माओवादी आतंक को पालती-पोसती रही और सिर्फ दूर-दराज के क्षेत्रों में जंगलों में ही नहीं, कांग्रेस ने शहरों में भी नक्सलवाद की जड़ों को खाद-पानी दिया। कांग्रेस ने बड़ी-बड़ी संस्थाओं में अर्बन नक्सलियों को स्थापित किया है।

साथियों,

10-15 साल पहले कांग्रेस में जो अर्बन नक्सली, माओवादी पैर जमा चुके थे, वो अब कांग्रेस को मुस्लिम लीगी- माओवादी कांग्रेस, MMC बना चुके हैं। और मैं आज पूरी जिम्मेदारी से कहूंगा कि ये मुस्लिम लीगी- माओवादी कांग्रेस, अपने स्वार्थ में देशहित को तिलांजलि दे चुकी है। आज की मुस्लिम लीगी- माओवादी कांग्रेस, देश की एकता के सामने बहुत बड़ा खतरा बनती जा रही है।

साथियों,

आज जब भारत, विकसित बनने की एक नई यात्रा पर निकल पड़ा है, तब रामनाथ गोयनका जी की विरासत और भी प्रासंगिक है। रामनाथ जी ने अंग्रेजों की गुलामी से डटकर टक्कर ली, उन्होंने अपने एक संपादकीय में लिखा था, मैं अंग्रेज़ों के आदेश पर अमल करने के बजाय, अखबार बंद करना पसंद करुंगा। इसी तरह जब इमरजेंसी के रूप में देश को गुलाम बनाने की एक और कोशिश हुई, तब भी रामनाथ जी डटकर खड़े हो गए थे और ये वर्ष तो इमरजेंसी के पचास वर्ष पूरे होने का भी है। और इंडियन एक्सप्रेस ने 50 वर्ष पहले दिखाया है, कि ब्लैंक एडिटोरियल्स भी जनता को गुलाम बनाने वाली मानसिकता को चुनौती दे सकते हैं।

साथियों,

आज आपके इस सम्मानित मंच से, मैं गुलामी की मानसिकता से मुक्ति के इस विषय पर भी विस्तार से अपनी बात रखूंगा। लेकिन इसके लिए हमें 190 वर्ष पीछे जाना पड़ेगा। 1857 के सबसे स्वतंत्रता संग्राम से भी पहले, वो साल था 1835, 1835 में ब्रिटिश सांसद थॉमस बेबिंगटन मैकाले ने भारत को अपनी जड़ों से उखाड़ने के लिए एक बहुत बड़ा अभियान शुरू किया था। उसने ऐलान किया था, मैं ऐसे भारतीय बनाऊंगा कि वो दिखने में तो भारतीय होंगे लेकिन मन से अंग्रेज होंगे। और इसके लिए मैकाले ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन नहीं, बल्कि उसका समूल नाश कर दिया। खुद गांधी जी ने भी कहा था कि भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था एक सुंदर वृक्ष थी, जिसे जड़ से हटा कर नष्ट कर दिया।

साथियों,

भारत की शिक्षा व्यवस्था में हमें अपनी संस्कृति पर गर्व करना सिखाया जाता था, भारत की शिक्षा व्यवस्था में पढ़ाई के साथ ही कौशल पर भी उतना ही जोर था, इसलिए मैकाले ने भारत की शिक्षा व्यवस्था की कमर तोड़ने की ठानी और उसमें सफल भी रहा। मैकाले ने ये सुनिश्चित किया कि उस दौर में ब्रिटिश भाषा, ब्रिटिश सोच को ज्यादा मान्यता मिले और इसका खामियाजा भारत ने आने वाली सदियों में उठाया।

साथियों,

मैकाले ने हमारे आत्मविश्वास को तोड़ दिया दिया, हमारे भीतर हीन भावना का संचार किया। मैकाले ने एक झटके में हजारों वर्षों के हमारे ज्ञान-विज्ञान को, हमारी कला-संस्कृति को, हमारी पूरी जीवन शैली को ही कूड़ेदान में फेंक दिया था। वहीं पर वो बीज पड़े कि भारतीयों को अगर आगे बढ़ना है, अगर कुछ बड़ा करना है, तो वो विदेशी तौर तरीकों से ही करना होगा। और ये जो भाव था, वो आजादी मिलने के बाद भी और पुख्ता हुआ। हमारी एजुकेशन, हमारी इकोनॉमी, हमारे समाज की एस्पिरेशंस, सब कुछ विदेशों के साथ जुड़ गईं। जो अपना है, उस पर गौरव करने का भाव कम होता गया। गांधी जी ने जिस स्वदेशी को आज़ादी का आधार बनाया था, उसको पूछने वाला ही कोई नहीं रहा। हम गवर्नेंस के मॉडल विदेश में खोजने लगे। हम इनोवेशन के लिए विदेश की तरफ देखने लगे। यही मानसिकता रही, जिसकी वजह से इंपोर्टेड आइडिया, इंपोर्टेड सामान और सर्विस, सभी को श्रेष्ठ मानने की प्रवृत्ति समाज में स्थापित हो गई।

साथियों,

जब आप अपने देश को सम्मान नहीं देते हैं, तो आप स्वदेशी इकोसिस्टम को नकारते हैं, मेड इन इंडिया मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम को नकारते हैं। मैं आपको एक और उदाहरण, टूरिज्म की बात करता हूं। आप देखेंगे कि जिस भी देश में टूरिज्म फला-फूला, वो देश, वहां के लोग, अपनी ऐतिहासिक विरासत पर गर्व करते हैं। हमारे यहां इसका उल्टा ही हुआ। भारत में आज़ादी के बाद, अपनी विरासत को दुत्कारने के ही प्रयास हुए, जब अपनी विरासत पर गर्व नहीं होगा तो उसका संरक्षण भी नहीं होगा। जब संरक्षण नहीं होगा, तो हम उसको ईंट-पत्थर के खंडहरों की तरह ही ट्रीट करते रहेंगे और ऐसा हुआ भी। अपनी विरासत पर गर्व होना, टूरिज्म के विकास के लिए भी आवश्यक शर्त है।

साथियों,

ऐसे ही स्थानीय भाषाओं की बात है। किस देश में ऐसा होता है कि वहां की भाषाओं को दुत्कारा जाता है? जापान, चीन और कोरिया जैसे देश, जिन्होंने west के अनेक तौर-तरीके अपनाए, लेकिन भाषा, फिर भी अपनी ही रखी, अपनी भाषा पर कंप्रोमाइज नहीं किया। इसलिए, हमने नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई पर विशेष बल दिया है और मैं बहुत स्पष्टता से कहूंगा, हमारा विरोध अंग्रेज़ी भाषा से नहीं है, हम भारतीय भाषाओं के समर्थन में हैं।

साथियों,

मैकाले द्वारा किए गए उस अपराध को 1835 में जो अपराध किया गया 2035, 10 साल के बाद 200 साल हो जाएंगे और इसलिए आज आपके माध्यम से पूरे देश से एक आह्वान करना चाहता हूं, अगले 10 साल में हमें संकल्प लेकर चलना है कि मैकाले ने भारत को जिस गुलामी की मानसिकता से भर दिया है, उस सोच से मुक्ति पाकर के रहेंगे, 10 साल हमारे पास बड़े महत्वपूर्ण हैं। मुझे याद है एक छोटी घटना, गुजरात में लेप्रोसी को लेकर के एक अस्पताल बन रहा था, तो वो सारे लोग महात्‍मा गांधी जी से मिले उसके उद्घाटन के लिए, तो महात्मा जी ने कहा कि मैं लेप्रोसी के अस्पताल के उद्घाटन के पक्ष में नहीं हूं, मैं नहीं आऊंगा, लेकिन ताला लगाना है, उस दिन मुझे बुलाना, मैं ताला लगाने आऊंगा। गांधी जी के रहते हुए उस अस्पताल को तो ताला नहीं लगा था, लेकिन गुजरात जब लेप्रोसी से मुक्त हुआ और मुझे उस अस्पताल को ताला लगाने का मौका मिला, जब मैं मुख्यमंत्री बना। 1835 से शुरू हुई यात्रा 2035 तक हमें खत्म करके रहना है जी, गांधी जी का जैसे सपना था कि मैं ताला लगाऊंगा, मेरा भी यह सपना है कि हम ताला लगाएंगे।

साथियों,

आपसे बहुत सारे विषयों पर चर्चा हो गई है। अब आपका मैं ज्यादा समय लेना नहीं चाहता हूं। Indian Express ग्रुप देश के हर परिवर्तन का, देश की हर ग्रोथ स्टोरी का साक्षी रहा है और आज जब भारत विकसित भारत के लक्ष्य को लेकर चल रहा है, तो भी इस यात्रा के सहभागी बन रहे हैं। मैं आपको बधाई दूंगा कि रामनाथ जी के विचारों को, आप सभी पूरी निष्ठा से संरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं। एक बार फिर, आज के इस अद्भुत आयोजन के लिए आप सभी को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं। और, रामनाथ गोयनका जी को आदरपूर्वक मैं नमन करते हुए मेरी बात को विराम देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद!