Quote13 सेक्टर्स में पीएलआई, सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है: प्रधानमंत्री मोदी
Quoteपीएलआई, सेक्टर से जुड़े पूरे इकोसिस्टम को लाभान्वित करता है: प्रधानमंत्री मोदी
Quoteमैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए स्पीड और स्कैल को बढ़ाना होगा: प्रधानमंत्री
Quoteमेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड : प्रधानमंत्री मोदी
Quoteभारत दुनिया भर में एक बड़ा ब्रांड बन गया है, नये भरोसे का लाभ उठाने के लिए रणनीति तैयार करें : प्रधानमंत्री

नमस्कार !

इतनी बड़ी तादाद में हिन्‍दुस्‍तान के सभी कोने से आप सबका इस महत्‍वपूर्ण वेबिनार में सम्मिलित होना अपने आप में इसका महत्‍व दर्शाता है। मैं हृदय से आप सबका स्‍वागत करता हूं।आप इस बात से परिचित हैं कि बजट के implementation को लेकरइस बार एक विचार मन में आया और एक नया प्रयोग हम कर रहे हैं और अगर यह प्रयोग सफल हुआ तो शायद भविष्‍य में भी बहुत लाभ होगा। अब तक कई ऐसे वेबिनार हुए हैं। मुझे देश के गणमान्‍य ऐसे हजारों लोगों से बजट के संबंध में बातचीत करने का अवसर मिला है।

पूरे दिन भर वेबिनार चले हैं और बहुत ही अच्‍छा रोडमैप, implementation के लिए बहुत ही अच्‍छे सुझाव आप सबकी तरफ से आया है। ऐसा लग रहा है कि सरकार से ज्‍यादा आप लोग दो कदम और आगे बहुत तेजी से जाने के मूड में हैं। यह अपने आप में बहुत ही सुखद खबर है मेरे लिए और मुझे विश्‍वास है कि आज के इस चर्चा में भी हम लोगों कीकोशिश ये है कि देश का बजट और देश के लिए policy making सिर्फ सरकारी प्रक्रिया बनकर न रहे। देश के विकास से जुड़े हर stakeholder का इसमें effective engagement हो। इसी क्रम में आज manufacturing sector Make In India को ऊर्जा देने वाले आप सभी महत्‍वपूर्ण साथियों से ये चर्चा हो रही है। बीते हफ्तों में जैसा मैंने आपको बताया, अलग-अलग sectors के लोगों सेबहुत ही फलदायीसंवाद हुआ है, बहुत हीमहत्‍वपूर्ण innovative सुझाव आए हैं। आज के इस वेबिनार का focus विशेष रूप से Production Linked Incentives से जुड़ा हुआ है।

साथियों,

बीते 6-7 सालों में अलग-अलग स्तर पर मेक इन इंडिया को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक सफल प्रयास किए गए हैं। इनमें आप सभी का योगदान प्रशंसनीय रहा है। अब इन प्रयासों को Next Level पर ले जाने के लिए और बड़े कदम उठाने हैं, अपनी स्पीड और स्केल को बहुत अधिक बढ़ाना है।और कोरोना के पिछले एक वर्ष के अनुभव के बाद मैं convinced हूं कि भारत के लिए ये सिर्फ एक मौका नहीं है। भारत के‍ लिए दुनिया के लिए ये एक जिम्‍मेदारी है, दुनिया के प्रति भारत की जिम्‍मेदारी है। और इसलिए हमें बहुत तेजी से इस दिशा में बढ़ना ही होगा।आप सभी ये भली-भांति जानते हैं कि Manufacturing, अर्थव्यवस्था के हर Segment को कैसे transform करती है, कैसे उसका प्रभाव पैदा होता है, कैसेएक ecosystem create होती है। हमारे सामने दुनियाभर से उदाहरण हैं जहां देशों ने अपनी Manufacturing Capabilities को बढ़ाकर, देश के विकास को गति दी है। बढ़ती हुई Manufacturing Capabilities, देश में Employment Generation को भी उतना ही बढ़ाती हैं।

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भारत भी अब इसी approach के साथबहुत तेजी से काम करना चाहता है, आगे बढ़ना चाहता है। इससेक्टर में हमारी सरकार Manufacturing को बढ़ावा देने के लिएएक के बाद एक लगातार Reforms कर रही है। हमारी नीति और रणनीति, हर तरह से स्पष्ट है। हमारी सोच है- Minimum Government, Maximum Governance और हमारी अपेक्षा है Zero Effect, Zero Defect. भारत की कंपनियां और भारत में की जा रही Manufacturing को Globally Competitive बनाने के लिए हमें दिन-रात एक करना होगा। हमारी Production Cost, Products की Quality और Efficiency Global Market में अपनी पहचान बनाए, इसके लिए हमें जुटकर काम करना होगा।और हमारी product user friendly भी होनी चाहिए, Technology में most modern होनी चाहिए, affordable होनी चाहिए, लंबे समय तक sustain करने वाली होनी चाहिए। Core Competency से जुड़े sectors में Cutting Edge Technology और Investment को हमें ज्यादा से ज्यादा आकर्षित करना होगा। और निश्चित तौर पर इसमें इंडस्ट्री के आप सभी साथियों की सक्रिय भागीदारी भी उतनी ही आवश्यक है। सरकार इसी focus के साथआप सबको साथ ले करके आगे बढ़ने का प्रयास कररही है। चाहे Ease of Doing Business पर बल देना हो, Compliance burden को कम करना हो, Logistics Cost को कम करने के लिए Multimodal Infrastructure बनाने की बात होया फिर जिला स्तर पर export hubs का निर्माण हो, हर स्तर पर काम किया जा रहा है।

हमारी सरकार मानती है कि हर चीज़ में सरकार का दखल समाधान के बजाय समस्याएं ज्यादा पैदा करता है। और इसलिए हम Self-Regulation, Self-Attesting, Self-Certification, यानी एक प्रकार से देश के नागरिकों पर ही भरोसा करके आगे बढ़ना, इस पर हमारा जोर है। हमारा प्रयास इस वर्ष केंद्र और राज्य स्तर के 6 हज़ार से ज्यादा Compliances को कम करने का है। इस संबंध में आपकी राय, आपके सुझाव बहुत महत्वपूर्ण हैं।हो सकता है वेबिनार में उतना टाइम न मिले, आप मुझे लिखित भेज सकते हैं। हम इसको गंभीरता से लेने वाले हैं क्‍योंकि Compliance का burden कम होना ही चाहिए। Technology आ गई है, हर चीज को बार-बार ये फॉर्म भरो, वो फॉर्म भरो, इन चीजों से मुझे मुक्ति देनी है।इसी प्रकार, लोकल लेवल पर export को promote करने के लिए Exporters और Producers को global platform उपलब्ध कराने के लिएआज सरकार अनेक क्षेत्रों में काम कर रही है।इससे MSMEs हों, किसान हों, छोटे-छोटे हस्तशिल्पी हों, सभी को एक्सपोर्ट के लिए बहुत मदद मिलेगी।

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साथियों,

Production Linked Incentives योजना के पीछे भी manufacturing और export का विस्तार करने की हीहमारीभावना है। दुनिया भर की manufacturing कंपनियां भारत को अपना Base बनाएं और हमारी घरेलू इंडस्ट्री, हमारे MSMEs की संख्या और सामर्थ्य का विस्तार हो, इस सोच के साथहम इस वेबिनार में concrete योजनाओं को अगर रूप दे सकते हैं तो जिस philosophy को लेकर बजट आया है वो परिणामकारी सिद्ध होगा।इस योजना का मकसद अलग-अलग सेक्टर्स में भारतीय उद्योगों की core competencies और एक्सपोर्ट में Global Presence का दायरा बढ़ाने का है।सीमित जगह पर, सीमित देशों में, सीमित आइटम ले करके और हिन्‍दुस्‍तान के दो-चार कोने में से ही एक्‍सपोर्ट, ये स्थिति बदलनी है। हिन्‍दुस्‍तान का हर जिला exporter क्‍यों न हो?दुनिया का हर देश भारत से Import क्‍यों न करता हो, दुनिया के हर देश-हर इलाके में क्‍यों न हो? हर प्रकार की चीजें क्‍यों न हो? पहले की योजनाओं और मौजूदा योजनाओं में आपने भी एक स्पष्ट अंतर देखा होगा। पहले Industrial Incentives एक Open Ended Input Based Subsidies का प्रावधान होता था। अब इसको एक Completive Process के माध्यम से Targeted, Performance based बनाया गया है। पहली बार 13 sectors को इस प्रकार की योजना के दायरे में लाना हमारा commitment दिखाता है।

साथियों,

ये PLI जिस सेक्टर के लिए है, उसको तो लाभ हो ही रहा है, इससे उस सेक्टर से जुड़े पूरे इकोसिस्टमका बहुतफायदा होगा। Auto और Pharma में PLI से, Auto parts, Medical Equipmentsऔर दवाओं के raw material से जुड़ी विदेशी निर्भरता बहुत कम होजाएगी। Advanced Cell Batteries, Solar PV modules और Specialty Steel को मिलने वाली मदद से देश में Energy सेक्टर आधुनिक होगा।हमारा अपना raw material, हमारा अपना labour, हमारी अपनी skill, हमारा अपना talent, हम कितना बड़ा jump लगा सकते हैं।इसी तरह textile और food processing सेक्टर को मिलने वाली PLI से हमारे पूरे agriculture sector को लाभ होगा। हमारे किसानों, पशुपालकों, मछुआरों, यानि पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा, आय बढ़ाने में मदद मिलेगी।

अभी आपने कल ही देखा है कि भारत के प्रस्ताव के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को, यानी दो साल के बाद, International Year of Millets घोषित किया है। भारत के इस प्रस्ताव के समर्थन में 70 से ज्यादा देश आए थे। और फिर U.N. General Assembly में ये प्रस्ताव, सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। ये देश का गौरव बढ़ाने वाली बात है। ये हमारे किसानों के लिए भी बड़ा अवसर है, और उसमें भी खास करके छोटे किसान, जहां सिंचाई की सुविधाएं भी कम हैं और जहां पर मोटा अनाज पैदा होता है, इस मोटे अनाज का महात्‍मय दुनिया तक पहुंचाने का काम UN के माध्‍यम से हमने जो प्रस्‍तावित किया, वो 2023 के लिए स्‍वीकृत हुआ है। भारत के छोटे किसानों को जहां सिंचाई उपलब्‍ध नहीं है ऐसे दुर्गम इलाके की खेती को, हमारे गरीब किसान को ये मोटे अनाज की ताकत कितनी है, nutritional value कितनी है, उसमें varieties कितनी हो सकती हैं, दुनिया में ये affordable कैसे हो सकती है, इतना बड़ा अवसर हमारे सामने है।जैसे हमने योग को दुनिया में प्रचारित, प्रसारित और प्रतिष्ठित किया, वैसे हीहम सब मिल करके, खासकर agro processing वाले लोग मिल करके Millets, यानि मोटे अनाज के लिए भीसारी दुनिया में पहुंच सकते हैं।

वर्ष 2023 में अभीहमारे पाससमय है, हम पूरी तैयारी के साथ विश्व भर में अभियान शुरू कर सकते हैं। जिस तरह से कोरोना से बचाने के लिए मेड इन इंडिया वैक्सीन है, वैसे ही लोगों को बीमार होने से बचाने के लिए, भारत में पैदा हुए Millets भी, मोटा अनाज भी, उसकी, nutritional value भीउतने ही उपयोगी होंगे। Millets या मोटे अनाजों की पौष्टिक क्षमतासे हम सभी परिचित हैं।एक समय में रसोई में Millets, बहुत प्रमुखता से होते थे। अब ये ट्रेंड वापस लौट रहा है। भारत की पहल के बाद, UN द्वारा 2023 को International Year of Millets की घोषणा, देश और विदेश में Millets की demand तेजी से बढ़ाएगी। इससे हमारे किसानों और विशेषकर देश के छोटे किसानों को बहुत फायदा होगा। इसलिए मेरा agriculture और food processing sector से आग्रह है कि इस अवसर का पूरा लाभ उठाएं।मैं तो आज भी आपके वेबिनार से कोई सुझाव निकलते हैं- एक छोटा task force बनाया जाए जिसमें public-private partnership का मॉडल हो, और हम इस Millets mission को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं दुनिया में, इस पर हम सोच सकते हैं। ऐसी कौन सी varieties बन सकती हैं जो दुनिया के अलग-अलग देशों के taste के अनुकूल भी हों और हेल्‍थ के लिए बहुत ताकतवर हों।

साथियों,

इस वर्ष के बजट में PLI स्कीम से जुड़ी इन योजनाओं के लिए करीब 2 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। Production का औसतन 5 प्रतिशत incentive के रूप में दिया गया है। यानि सिर्फ PLI स्कीम के द्वारा ही आने वाले 5 सालों में लगभग 520 billion डॉलर का production भारत में होने का अनुमान है। अनुमान ये भी है कि जिन sectors के लिए PLI योजना बनाई गई है, उन सेक्टर में अभी जितनी workforce काम कर रही है, वो करीब-करीब दोगुनी हो जाएगी। रोज़गार निर्माण में बहुत बड़ा असर PLI योजना का होने वाला है। इंडस्ट्री को तो Production और Export में तो लाभ होगा ही, देश में आय बढ़ने से जो डिमांड बढ़ेगी, उसका भी लाभ होगा, यानि दोगुना फायदा।

साथियों,

PLI से जुड़ी जो घोषणाएं की गई हैं, उन पर तेजी से अमल हो रहा है। IT Hardware और telecom equipment manufacturing से जुड़ी दो PLI योजनाओं को कैबिनेट से स्वीकृतिभीमिल चुकी है। मुझे विश्वास है कि इन सेक्टर्स से जुड़े साथियों ने इनकी assessment अब तक कर ली है। IT हार्डवेयर के मामले में आने वाले 4 वर्षों में करीब सवा 3 ट्रिलियन रुपए के production का अनुमान है। इस योजना से IT Hardware में 5 सालों के दौरान Domestic Value Addition अभी के 5-10 प्रतिशत से बढ़कर 20-25 प्रतिशत तक होजानाहै। इसी तरह Telecom equipment manufacturing में भी आने वाले 5 साल में करीब ढाई लाख करोड़ रुपए की वृद्धि होगी। इसमें भी लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का Export करने की स्थिति में हम होंगे। Pharma sector में भी आने वाले 5-6 सालों मेंएक प्रकार से लाखों करोड़ रुपएसे ज्यादा का investment PLI के तहत होने कीसंभावना हम नकार नहींसकते है, बड़ा लक्ष्‍य लेकर हम चल सकते हैं।इससे फार्मा सेल में लगभग 3 लाख करोड़ रुपए और exports में करीब 2 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि का अनुमान है।

साथियों,

भारत से आज जो विमान, वैक्सीन की लाखों डोज लेकर दुनिया भर में जा रहे हैं, वो खाली नहीं आ रहेहैं। वो अपने साथ भारत के प्रति बढ़ा हुआ भरोसा, भारत के प्रति आत्मीयता, उन देशों के लोगों का स्नेह, और बुजुर्ग जो बीमार हैं उनका आशीर्वाद, एक भावनात्मक लगाव भी ले करकेये हमारे जहाज भर-भर करआ रहे हैं। और संकट काल में जो भरोसा बनता है, वो केवल प्रभाव ही पैदा नहीं करता, ये भरोसा चिरंजीवी होता है, अमर होता है, प्रेरक होता है। भारत आज जिस तरह मानवता की सेवा कर रहा है, और नम्रता के साथ कर रहा है...हम कोई अहंकार के साथ नहीं कर रहे...हम कर्तव्‍य भाव से कर रहे हैं। ‘सेवा परमो धर्म’ये हमारा संस्‍कार हे।उससे पूरी दुनिया में भारतअपने-आप मेंएक बहुत बड़ा ब्रांड बन गया है। भारत की साख, भारत की पहचान निरंतर नई ऊंचाई पर पहुंच रही है। और ये भरोसा केवल वैक्सीन तक ही नहीं है।सिर्फफार्मा सेक्टर कीचीजों तक नहीं है।जब एक देश का ब्रांड बन जाता है तो उसकी हर चीज के प्रति विश्‍व के हर व्‍यक्ति का सम्‍मान बढ़ जाता है, लगाव बढ़ जाता है और वो उसकी पहली पसंद बन जाता है।

हमारी दवाइयां, हमारे Medical Professionals, भारत में बने Medical Equipments, इन सबके प्रतिभी आजभरोसा बढ़ा है। इस भरोसे को सम्मान देने के लिए, इस समय का लाभ उठाने के लिए हमारी दूरगामी रणनीति क्या हो, इस पर फार्मा सेक्टर को इसी समय काम करना होगा। और साथियों, भारत पर बना ये भरोसा, हर सेक्टर मेंइसके सहारे आगे बढ़ने की योजना का मौका छोड़ना नहीं चाहिए, मैं आपको बताता हूं। औरइसलिए इन सकारात्मक परिस्थितियों में हर सेक्टर को अपनी रणनीति पर मंथन शुरू कर देना चाहिए। ये समय गंवाने का नहीं, ये समय पाने का है, देश के लिए हासिलकरना है, आपकी अपनी कंपनी के लिए अवसर है।और साथियों, ये बातें जो मैं कह रहा हूं ये करनाजरा भीमुश्किल नहीं है। PLI स्कीम की success story भी इनकोबिल्‍कुलसपोर्ट करती हैकि हां ये सत्‍य है, संभव है। ऐसी ही एक success story electronics manufacturing sector की है। पिछले साल हमने मोबाइल फोन और electronics components के निर्माण के लिए PLI स्कीम लॉन्च की थी। Pandemic के दौरान भी इस सेक्टर में बीते साल 35 हज़ार करोड़ रुपए का production हुआ। यही नहीं, कोरोना के इस कालखंड में भी इस सेक्टर में करीब-करीब 1300 करोड़ रुपए का नया Investment आया हुआ है। इससे हजारों नई Jobs इस सेक्टर में तैयार हुई हैं।

साथियों,

PLI स्कीम का एक व्यापक असर देश के MSME Ecosystem को होने वाला है। ये मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि हर सेक्टर में जो anchor units बनेंगे, उऩको पूरी value chain में नए सप्लायर बेस की ज़रूरत होगी। ये जो ancillary units हैं, ये ज्यादातर MSME सेक्टर में ही बनेंगी। MSMEs को ऐसे ही अवसरों के लिए तैयार करने का काम पहले ही शुरु किया जा चुका है। MSMEs की definition में बदलाव से लेकर Investment की लिमिट बढ़ाने तक के फैसलों से बहुत लाभ इस सेक्टर को मिल रहा है। आज के दिन हम यहां जब बैठे हैं तो हमें आपके Proactive Participation की भी अपेक्षा है। PLI से जुड़ने में अगर कहीं आपको दिक्कत आ रही है, अगर कुछ इसमें सुधार हो सकते हैं, तोबातें आपको जरूरी लगती हैं, आप जरूर रखें, मेरे तक भी पहुंचाएं।

साथियों,

मुश्किल समय में हमने दिखाया है कि सामूहिक प्रयासों से हम बड़े-बड़े लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। Collaboration की यही approach आत्मनिर्भऱ भारत का निर्माण करेगी। अब इंडस्ट्री के आप सभी साथियों को आगे बढ़कर नए अवसरों पर काम करना है। इंडस्ट्री को अब देश और दुनिया के लिए Best Quality Goods बनाने पर focus बढ़ाना है। इंडस्ट्री को fast moving, fast changing world की ज़रूरतों के हिसाब से Innovate करना होगा, R&D में अपनी भागीदारी बढ़ानी होगी। Manpower की Skill Upgradation और नई Technology के उपयोग में भारत की इंडस्ट्री को आगे बढ़कर काम करना होगा, तभी हम Globally Competent हो पाएंगे। मुझे विश्वास है कि आज के इस मंथन से 'Make in India, Make for the World'के सफर को आप सभी के विचारों, आपकेसभी केसुझावों..इससे नया बल मिलेगा, नई ताकत मिलेगी, नई गति मिलेगी, नईऊर्जा मिलेगी।

मैं फिर आग्रह करुंगा कि आपको जो भी समस्याएं आ रही हैं, reforms को लेकर जो भी आपके सुझाव हैं, वोमुझे जरूर पहुंचाइए, खुले मन सेपहुंचाइए। सरकार आपके हर सुझाव, हर समस्या के समाधान के लिए तैयार है।मैं एक बात और कहूंगा सरकार की incentives में व्‍यवस्‍थाएं जो भी हों, आपको कभी ऐसा लगता है कि दुनिया में जो माल है उससे हमारा सस्‍ता हो तो बिकेगा। ये अपनी जगह तो सही होगा। लेकिन ये मानकर चलिए इन सबसे बड़ी ताकत होती है क्‍वालिटी की। हमारी product कितने competition में quality में खड़ी रहती है, फिर दुनिया दो रुपये ज्‍यादा देने को तैयार हो जाती है। आज भारत एक ब्रांड बन चुका है। अब आपको सिर्फ अपनी product की पहचान बनानी है। आपको ज्‍यादा मेहनत नहीं पड़ेगी। अगर मेहनत करनी है तो production quality पर करनी है। PLI का ज्‍यादा फायदा PLI में और अधिक benefit मिले, उसमें नहीं है। PLI का ज्‍यादा फायदा production की quality पर बल देने में है। इस पर भी आज की चर्चा में ध्‍यान देंगे, बहुत लाभ होगा।

आप इतनी तादाद में इस बार जुड़ रहे हैं, आप दिनभर बैठने वाले हैं, मैं ज्‍यादा समय आपका लेता नहीं हूं। मेरी तरफ से आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। इस समारोह में आने के लिए मैं हृदय से आपका आभार व्‍यक्‍त करता हूं।

धन्‍यवाद!

 

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भारत माता की जय! भारत माता की जय!

क्यों ये सब तिरंगे नीचे हो गए हैं?

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

मंच पर विराजमान गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्र में मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, सी आर पाटिल जी, गुजरात सरकार के अन्य मंत्री गण, सांसदगण, विधायक गण और गुजरात के कोने-कोने से यहां उपस्थित मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

मैं दो दिन से गुजरात में हूं। कल मुझे वडोदरा, दाहोद, भुज, अहमदाबाद और आज सुबह-सुबह गांधी नगर, मैं जहां-जहां गया, ऐसा लग रहा है, देशभक्ति का जवाब गर्जना करता सिंदुरिया सागर, सिंदुरिया सागर की गर्जना और लहराता तिरंगा, जन-मन के हृदय में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम, एक ऐसा नजारा था, एक ऐसा दृश्य था और ये सिर्फ गुजरात में नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने में है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में है। शरीर कितना ही स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन अगर एक कांटा चुभता है, तो पूरा शरीर परेशान रहता है। अब हमने तय कर लिया है, उस कांटे को निकाल के रहेंगे।

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साथियों,

1947 में जब मां भारती के टुकड़े हुए, कटनी चाहिए तो ये तो जंजीरे लेकिन कांट दी गई भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए। और उसी रात पहला आतंकवादी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की इच्छा थी कि पीओके वापस नहीं आता है, तब तक सेना रूकनी नहीं चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात मानी नहीं गई और ये मुजाहिदीन जो लहू चख गए थे, वो सिलसिला 75 साल से चला है। पहलगाम में भी उसी का विकृत रूप था। 75 साल तक हम झेलते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ जब युद्ध की नौबत आई, तीनों बार भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। और पाकिस्तान समझ गया कि लड़ाई में वो भारत से जीत नहीं सकते हैं और इसलिए उसने प्रॉक्सी वार चालू किया। सैन्‍य प्रशिक्षण होता है, सैन्‍य प्रशिक्षित आतंकवादी भारत भेजे जाते हैं और निर्दोष-निहत्थे लोग कोई यात्रा करने गया है, कोई बस में जा रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई टूरिस्‍ट बन कर जा रहा है। जहां मौका मिला, वह मारते रहे, मारते रहे, मारते रहे और हम सहते रहे। आप मुझे बताइए, क्या यह अब सहना चाहिए? क्या गोली का जवाब गोले से देना चाहिए? ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए? इस कांटे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए?

साथियों,

यह देश उस महान संस्कृति-परंपरा को लेकर चला है, वसुधैव कुटुंबकम, ये हमारे संस्कार हैं, ये हमारा चरित्र है, सदियों से हमने इसे जिया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हम अपने पड़ोसियों का भी सुख चाहते हैं। वह भी सुख-चैन से जिये, हमें भी सुख-चैन से जीने दें। ये हमारा हजारों साल से चिंतन रहा है। लेकिन जब बार-बार हमारे सामर्थ्य को ललकारा जाए, तो यह देश वीरों की भी भूमि है। आज तक जिसे हम प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते हैं। और इसका कारण है, जब आतंकवाद के 9 ठिकाने तय करके 22 मिनट में साथियों, 22 मिनट में, उनको ध्वस्त कर दिया। और इस बार तो सब कैमरा के सामने किया, सारी व्यवस्था रखी थी। ताकि हमारे घर में कोई सबूत ना मांगे। अब हमें सबूत नहीं देना पड़ रहा है, वो उस तरफ वाला दे रहा है। और मैं इसलिए कहता हूं, अब यह प्रॉक्सी वॉर नहीं कह सकते इसको क्योंकि जो आतंकवादियों के जनाजे निकले, 6 मई के बाद जिन का कत्ल हुआ, उस जनाजे को स्टेट ऑनर दिया गया पाकिस्तान में, उनके कॉफिन पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए, उनकी सेना ने उनको सैल्यूट दी, यह सिद्ध करता है कि आतंकवादी गतिविधियां, ये प्रॉक्सी वॉर नहीं है। यह आप की सोची समझी युद्ध की रणनीति है। आप वॉर ही कर रहे हैं, तो उसका जवाब भी वैसे ही मिलेगा। हम अपने काम में लगे थे, प्रगति की राह पर चले थे। हम सबका भला चाहते हैं और मुसीबत में मदद भी करते हैं। लेकिन बदले में खून की नदियां बहती हैं। मैं नई पीढ़ी को कहना चाहता हूं, देश को कैसे बर्बाद किया गया है? 1960 में जो इंडस वॉटर ट्रीटी हुई है। अगर उसकी बारीकी में जाएंगे, तो आप चौक जाएंगे। यहाँ तक तय हुआ है उसमें, कि जो जम्मू कश्मीर की अन्‍य नदियों पर डैम बने हैं, उन डैम का सफाई का काम नहीं किया जाएगा। डिसिल्टिंग नहीं किया जाएगा। सफाई के लिए जो नीचे की तरफ गेट हैं, वह नहीं खोले जाएंगे। 60 साल तक यह गेट नहीं खोले गए और जिसमें शत प्रतिशत पानी भरना चाहिए था, धीरे-धीरे इसकी कैपेसिटी काम हो गई, 2 परसेंट 3 परसेंट रह गया। क्या मेरे देशवासियों को पानी पर अधिकार नहीं है क्या? उनको उनके हक का पानी मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए क्या? और अभी तो मैंने कुछ ज्यादा किया नहीं है। अभी तो हमने कहा है कि हमने इसको abeyance में रखा है। वहां पसीना छूट रहा है और हमने डैम थोड़े खोल करके सफाई शुरू की, जो कूड़ा कचरा था, वह निकाल रहे हैं। इतने से वहां flood आ जाता है।

साथियों,

हम किसी से दुश्मनी नहीं चाहते हैं। हम सुख-चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। हम प्रगति भी इसलिए करना चाहते हैं कि विश्व की भलाई में हम भी कुछ योगदान कर सकें। और इसलिए हम एकनिष्ठ भाव से कोटि-कोटि भारतीयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। कल 26 मई था, 2014 में 26 मई, मुझे पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का अवसर मिला। और तब भारत की इकोनॉमी, दुनिया में 11 नंबर पर थी। हमने कोरोना से लड़ाई लड़ी, हमने पड़ोसियों से भी मुसीबतें झेली, हमने प्राकृतिक आपदा भी झेली। इन सब के बावजूद भी इतने कम समय में हम 11 नंबर की इकोनॉमी से चार 4 नंबर की इकोनॉमी पर पहुंच गए क्योंकि हमारा ये लक्ष्य है, हम विकास चाहते हैं, हम प्रगति चाहते हैं।

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और साथियों,

मैं गुजरात का ऋणी हूं। इस मिट्टी ने मुझे बड़ा किया है। यहां से मुझे जो शिक्षा मिली, दीक्षा मिली, यहां से जो मैं आप सबके बीच रहकर के सीख पाया, जो मंत्र आपने मुझे दिए, जो सपने आपने मेरे में संजोए, मैं उसे देशवासियों के काम आए, इसके लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि आज गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष, 2005 में इस कार्यक्रम को किया था। 20 वर्ष मनाने का और मुझे खुशी इस बात की हुई कि यह 20 साल के शहरी विकास की यात्रा का जय गान करने का कार्यक्रम नहीं बनाया। गुजरात सरकार ने उन 20 वर्ष में से जो हमने पाया है, जो सीखा है, उसके आधार पर आने वाले शहरी विकास को next generation के लिए उन्होंने उसका रोडमैप बनाया और आज वो रोड मैप गुजरात के लोगों के सामने रखा है। मैं इसके लिए गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री जी को, उनकी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

हम आज दुनिया की चौथी इकोनॉमी बने हैं। किसी को भी संतोष होगा कि अब जापान को भी पीछे छोड़ कर के हम आगे निकल गए हैं और मुझे याद है, हम जब 6 से 5 बने थे, तो देश में एक और ही उमंग था, बड़ा उत्साह था, खासकर के नौजवानों में और उसका कारण यह था कि ढाई सौ सालों तक जिन्होंने हम पर राज किया था ना, उस यूके को पीछे छोड़ करके हम 5 बने थे। लेकिन अब चार बनने का आनंद जितना होना चाहिए उससे ज्यादा तीन कब बनोगे, उसका दबाव बढ़ रहा है। अब देश इंतजार करने को तैयार नहीं है और अगर किसी ने इंतजार करने के लिए कहा, तो पीछे से नारा आता है, मोदी है तो मुमकिन है।

और इसलिए साथियों,

एक तो हमारा लक्ष्य है 2047, हिंदुस्तान विकसित होना ही चाहिए, no compromise… आजादी के 100 साल हम ऐसे ही नहीं बिताएंगे, आजादी के 100 साल ऐसे मनाएंगे, ऐसे मनाएंगे कि दुनिया में विकसित भारत का झंडा फहरता होगा। आप कल्पना कीजिए, 1920, 1925, 1930, 1940, 1942, उस कालखंड में चाहे भगत सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो, नेताजी सुभाष बाबू हो, वीर सावरकर हो, श्यामजी कृष्ण वर्मा हो, महात्मा गांधी हो, सरदार पटेल हो, इन सबने जो भाव पैदा किया था और देश की जन-मन में आजादी की ललक ना होती, आजादी के लिए जीने-मरने की प्रतिबद्धता ना होती, आजादी के लिए सहन करने की इच्छा शक्ति ना होती, तो शायद 1947 में आजादी नहीं मिलती। यह इसलिए मिली कि उस समय जो 25-30 करोड़ आबादी थी, वह बलिदान के लिए तैयार हो चुकी थी। अगर 25-30 करोड़ लोग संकल्पबद्ध हो करके 20 साल, 25 साल के भीतर-भीतर अंग्रेजों को यहां से निकाल सकते हैं, तो आने वाले 25 साल में 140 करोड़ लोग विकसित भारत बना भी सकते हैं दोस्तों। और इसलिए 2030 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, मैं समझता हूं कि हमने अभी से 30 में होंगे, 35… 35 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, हमने अभी से नेक्स्ट 10 ईयर का पहले एक प्लान बनाना चाहिए कि जब गुजरात के 75 होंगे, तब गुजरात यहां पहुंचेगा। उद्योग में यहां होगा, खेती में यहां होगा, शिक्षा में यहां होगा, खेलकूद में यहां होगा, हमें एक संकल्प ले लेना चाहिए और जब गुजरात 75 का हो, उसके 1 साल के बाद जो ओलंपिक होने वाला है, देश चाहता है कि वो ओलंपिक हिंदुस्तान में हो।

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और इसलिए साथियों,

जिस प्रकार से हमारा यह एक लक्ष्य है कि हम जब गुजरात के 75 साल हो जाए। और आप देखिए कि जब गुजरात बना, उस समय के अखबार निकाल दीजिए, उस समय की चर्चाएं निकाल लीजिए। क्या चर्चाएं होती थी कि गुजरात महाराष्ट्र से अलग होकर क्या करेगा? गुजरात के पास क्या है? समंदर है, खारा पाठ है, इधर रेगिस्तान है, उधर पाकिस्तान है, क्या करेगा? गुजरात के पास कोई मिनरल्स नहीं, गुजरात कैसे प्रगति करेगा? यह ट्रेडर हैं सारे… इधर से माल लेते हैं, उधर बेचते हैं। बीच में दलाली से रोजी-रोटी कमा करके गुजारा करते हैं। क्‍या करेंगे ऐसी चर्चा थी। वही गुजरात जिसके पास एक जमाने में नमक से ऊपर कुछ नहीं था, आज दुनिया को हीरे के लिए गुजरात जाना जाता है। कहां नमक, कहां हीरे! यह यात्रा हमने काटी है। और इसके पीछे सुविचारित रूप से प्रयास हुआ है। योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाएं हैं। हमारे यहां आमतौर पर गवर्नमेंट के मॉडल की चर्चा होती है कि सरकार में साइलोज, यह सबसे बड़ा संकट है। एक डिपार्टमेंट दूसरे से बात नहीं करता है। एक टेबल वाला दूसरे टेबल वाले से बात नहीं करता है, ऐसी चर्चा होती है। कुछ बातों में सही भी होगा, लेकिन उसका कोई सॉल्यूशन है क्या? मैं आज आपको बैकग्राउंड बताता हूं, यह शहरी विकास वर्ष अकेला नहीं, हमने उस समय हर वर्ष को किसी न किसी एक विशेष काम के लिए डेडिकेट करते थे, जैसे 2005 में शहरी विकास वर्ष माना गया। एक साल ऐसा था, जब हमने कन्या शिक्षा के लिए डेडिकेट किया था, एक वर्ष ऐसा था, जब हमने पूरा टूरिज्म के लिए डेडिकेट किया था। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी सब काम बंद करते थे, लेकिन सरकार के सभी विभागों को उस वर्ष अगर forest department है, तो उसको भी अर्बन डेवलपमेंट में वो contribute क्या कर सकता है? हेल्थ विभाग है, तो अर्बन डेवलपमेंट ईयर में वो contribute क्या कर सकता है? जल संरक्षण मंत्रालय है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? टूरिज्म डिपार्टमेंट है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? यानी एक प्रकार से whole of the government approach, इस भूमिका से ये वर्ष मनाया और आपको याद होगा, जब हमने टूरिज्म ईयर मनाया, तो पूरे राज्य में उसके पहले गुजरात में टूरिज्म की कल्पना ही कोई नहीं कर सकता था। विशेष प्रयास किया गया, उसी समय ऐड कैंपेन चलाया, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में, एक-एक चीज उसमें से निकली। उसी में से रण उत्‍सव निकला, उसी में से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बना। उसी में से आज सोमनाथ का विकास हो रहा है, गिर का विकास हो रहा है, अंबाजी जी का विकास हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स आ रही हैं। यानी एक के बाद एक चीजें डेवलप होने लगीं। वैसे ही जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया।

और मुझे याद है, मैं राजनीति में नया-नया आया था। और कुछ समय के बाद हम अहमदाबाद municipal कॉरपोरेशन सबसे पहले जीते, तब तक हमारे पास एक राजकोट municipality हुआ करती थी, तब वो कारपोरेशन नहीं थी। और हमारे एक प्रहलादभाई पटेल थे, पार्टी के बड़े वरिष्ठ नेता थे। बहुत ही इनोवेटिव थे, नई-नई चीजें सोचना उनका स्वभाव था। मैं नया राजनीति में आया था, तो प्रहलाद भाई एक दिन आए मिलने के लिए, उन्होंने कहा ये हमें जरा, उस समय चिमनभाई पटेल की सरकार थी, तो हमने चिमनभाई और भाजपा के लोग छोटे पार्टनर थे। तो हमें चिमनभाई को मिलकर के समझना चाहिए कि यह जो लाल बस अहमदाबाद की है, उसको जरा अहमदाबाद के बाहर जाने दिया जाए। तो उन्होंने मुझे समझाया कि मैं और प्रहलाद भाई चिमनभाई को मिलने गए। हमने बहुत माथापच्ची की, हमने कहा यह सोचने जैसा है कि लाल बस अहमदाबाद के बाहर गोरा, गुम्‍मा, लांबा, उधर नरोरा की तरफ आगे दहेगाम की तरफ, उधर कलोल की तरफ आगे उसको जाने देना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन का विस्तार करना चाहिए, तो सरकार के जैसे सचिवों का स्वभाव रहता है, यहां बैठे हैं सारे, उस समय वाले तो रिटायर हो गए। एक बार एक कांग्रेसी नेता को पूछा गया था कि देश की समस्याओं का समाधान करना है तो दो वाक्य में बताइए। कांग्रेस के एक नेता ने जवाब दिया था, वो मुझे आज भी अच्छा लगता है। यह कोई 40 साल पहले की बात है। उन्होंने कहा, देश में दो चीजें होनी चाहिए। एक पॉलीटिशियंस ना कहना सीखें और ब्यूरोक्रेट हां कहना सीखे! तो उससे सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। पॉलीटिशियंस किसी को ना नहीं कहता और ब्यूरोक्रेट किसी को हां नहीं कहता। तो उस समय चिमनभाई के पास गए, तो उन्‍होंने पूछा सबसे, हम दोबारा गए, तीसरी बार गए, नहीं-नहीं एसटी को नुकसान हो जाएगा, एसटी को कमाई बंद हो जाएगी, एसटी बंद पड़ जाएगी, एसटी घाटे में चल रही है। लाल बस वहां नहीं भेज सकते हैं, यह बहुत दिन चला। तीन-चार महीने तक हमारी माथापच्ची चली। खैर, हमारा दबाव इतना था कि आखिर लाल बस को लांबा, गोरा, गुम्‍मा, ऐसा एक्सटेंशन मिला, उसका परिणाम है कि अहमदाबाद का विस्तार तेजी से उधर सारण की तरफ हुआ, इधर दहेगाम की तरफ हुआ, उधर कलोल की तरह हुआ, उधर अहमदाबाद की तरह हुआ, तो अहमदाबाद की तरफ जो प्रेशर, एकदम तेजी से बढ़ने वाला था, उसमें तेजी आई, बच गए छोटी सी बात थी, तब जाकर के, मैं तो उस समय राजनीति में नया था। मुझे कोई ज्यादा इन चीजों को मैं जानता भी नहीं था। लेकिन तब समझ में आता था कि हम तत्कालीन लाभ से ऊपर उठ करके सचमुच में राज्य की और राज्य के लोगों की भलाई के लिए हिम्मत के साथ लंबी सोच के साथ चलेंगे, तो बहुत लाभ होगा। और मुझे याद है जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया, तो पहला काम आया, यह एंक्रोचमेंट हटाने का, अब जब एंक्रोचमेंट हटाने की बात आती हे, तो सबसे पहले रुकावट बनता है पॉलिटिकल आदमी, किसी भी दल का हो, वो आकर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसको लगता है, मेरे वोटर है, तुम तोड़ रहे हो। और अफसर लोग भी बड़े चतुर होते हैं। जब उनको कहते हैं कि भई यह सब तोड़ना है, तो पहले जाकर वो हनुमान जी का मंदिर तोड़ते हैं। तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है कि कोई भी पॉलिटिशयन डर जाता है, उसको लगता है कि हनुमान जी का मंदिर तोड़ दिया तो हो… हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। उस समय हमारे …..(नाम स्पष्ट नहीं) अर्बन मिनिस्टर थे। और उसका परिणाम यह आया कि रास्ते चौड़े होने लगे, तो जिसका 2 फुट 4 फुट कटता था, वह चिल्लाता था, लेकिन पूरा शहर खुश हो जाता था। इसमें एक स्थिति ऐसी बनी, बड़ी interesting है। अब मैंने तो 2005 अर्बन डेवलपमेंट ईयर घोषित कर दिया। उसके लिए कोई 80-90 पॉइंट निकाले थे, बडे interesting पॉइंट थे। तो पार्टी से ऐसी मेरी बात हुई थी कि भाई ऐसा एक अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा, जरा सफाई वगैरह के कामों में सब को जोड़ना पड़ेगा ऐसा, लेकिन जब ये तोड़ना शुरू हुआ, तो मेरी पार्टी के लोग आए, ये बड़ा सीक्रेट बता रहा हूं मैं, उन्होंने कहा साहब ये 2005 में तो अर्बन बॉडी के चुनाव है, हमारी हालत खराब हो जाएगी। यह सब तो चारों तरफ तोड़-फोड़ चल रही है। मैंने कहा यार भई यह तो मेरे ध्यान में नहीं रहा और सच में मेरे ध्यान में वो चुनाव था ही नहीं। अब मैंने कार्यक्रम बना दिया, अब साहब मेरा भी एक स्वभाव है। हम तो बचपन से पढ़ते आए हैं- कदम उठाया है तो पीछे नहीं हटना है। तो मैंने मैंने कहा देखो भाई आपकी चिंता सही है, लेकिन अब पीछे नहीं हट सकते। अब तो ये अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा। हार जाएंगे, चुनाव क्या है? जो भी होगा हम किसी का बुरा करना नहीं चाहते, लेकिन गुजरात में शहरों का रूप रंग बदलना बहुत जरूरी है।

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साथियों,

हम लोग लगे रहे। काफी विरोध भी हुआ, काफी आंदोलन हुए बहुत परेशानी हुई। यहां मीडिया वालों को भी बड़ा मजा आ गया कि मोदी अब शिकार आ गया हाथ में, तो वह भी बड़ी पूरी ताकत से लग गए थे। और उसके बाद जब चुनाव हुआ, देखिए मैं राजनेताओं को कहता हूं, मैं देश भर के राजनेता मुझे सुनते हैं, तो देखना कहता हूं, अगर आपने सत्यनिष्ठा से, ईमानदारी से लोगों की भलाई के लिए निर्णय करते हैं, तत्कालीन भले ही बुरा लगे, लोग साथ चलते हैं। और उस समय जो चुनाव हुआ 90 परसेंट विक्ट्री बीजेपी की हुई थी, 90 परसेंट यानी लोग जो मानते हैं कि जनता ये नहीं और मुझे याद है। अब यह जो यहां अटल ब्रिज बना है ना तो मुझे, यह साबरमती रिवर फ्रंट पर, तो पता नहीं क्यों मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था। कई कार्यक्रम थे, तो मैंने कहा चलो भई हम भी देखने जाते हैं, तो मैं जरा वो अटल ब्रिज पर टहलने गया, तो वहां मैंने देखा कुछ लोगों ने पान की पिचकारियां लगाई हुई थी। अभी तो उद्घाटन होना था, लेकिन कार्यक्रम हो गया था। तो मेरा दिमाग, मैंने कहा इस पर टिकट लगाओ। तो ये सारे लोग आ गए साहब चुनाव है, उसी के बाद चुनाव था, बोले टिकट नहीं लगा सकते मैंने कहा टिकट लगाओ वरना यह तुम्हारा अटल ब्रिज बेकार हो जाएगा। फिर मैं दिल्ली गया, मैंने दूसरे दिन फोन करके पूछा, मैंने कहा क्या हुआ टिकट लगाने का एक दिन भी बिना टिकट नहीं चलना चाहिए।

साथियों,

खैर मेरा मान-सम्मान रखते हैं सब लोग, आखिर के हमारे लोगों ने ब्रिज पर टिकट लगा दिया। आज टिकट भी हुआ, चुनाव भी जीते दोस्तों और वो अटल ब्रिज चल रहा है। मैंने कांकरिया का पुनर्निर्माण का कार्यक्रम लिया, उस पर टिकट लगाया तो कांग्रेस ने बड़ा आंदोलन किया। कोर्ट में चले गए, लेकिन वह छोटा सा प्रयास पूरे कांकरिया को बचा कर रखा हुआ है और आज समाज का हर वर्ग बड़ी सुख-चैन से वहां जाता है। कभी-कभी राजनेताओं को बहुत छोटी चीजें डर जाते हैं। समाज विरोधी नहीं होता है, उसको समझाना होता है। वह सहयोग करता है और अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। देखिए शहरी शहरी विकास की एक-एक चीज इतनी बारीकी से बनाई गई और उसी का परिणाम था और मैं आपको बताता हूं। यह जो अब मुझ पर दबाव बढ़ने वाला है, वो already शुरू हो गया कि मोदी ठीक है, 4 नंबर तो पहुंच गए, बताओ 3 कब पहुंचोगे? इसकी एक जड़ी-बूटी आपके पास है। अब जो हमारे ग्रोथ सेंटर हैं, वो अर्बन एरिया हैं। हमें अर्बन बॉडीज को इकोनॉमिक के ग्रोथ सेंटर बनाने का प्लान करना होगा। अपने आप जनसंख्या के कारण वृद्धि होती चले, ऐसे शहर नहीं हो सकते हैं। शहर आर्थिक गतिविधि के तेजतर्रार केंद्र होने चाहिए और अब तो हमने टीयर 2, टीयर 3 सीटीज पर भी बल देना चाहिए और वह इकोनॉमिक एक्टिविटी के सेंटर बनने चाहिए और मैं तो पूरे देश की नगरपालिका, महानगरपालिका के लोगों को कहना चाहूंगा। अर्बन बॉडी से जुड़े हुए सब लोगों से कहना चाहूंगा कि वे टारगेट करें कि 1 साल में उस नगर की इकोनॉमी कहां से कहां पहुंचाएंगे? वहां की अर्थव्यवस्था का कद कैसे बढ़ाएंगे? वहां जो चीजें मैन्युफैक्चर हो रही हैं, उसमें क्वालिटी इंप्रूव कैसे करेंगे? वहां नए-नए इकोनॉमिक एक्टिविटी के रास्ते कौन से खोलेंगे। ज्यादातर मैंने देखा नगर पालिका की जो नई-नई बनती हैं, तो क्या करते हैं, एक बड़ा शॉपिंग सेंटर बना देते हैं। पॉलिटिशनों को भी जरा सूट करता है वह, 30-40 दुकानें बना देंगे और 10 साल तक लेने वाला नहीं आता है। इतने से काम नहीं चलेगा। स्टडी करके और खास करके जो एग्रो प्रोडक्ट हैं। मैं तो टीयर 2, टीयर 3 सीटी के लिए कहूंगा, जो किसान पैदावार करता है, उसका वैल्यू एडिशन, यह नगर पालिकाओं में शुरू हो, आस-पास से खेती की चीजें आएं, उसमें से कुछ वैल्यू एडिशन हो, गांव का भी भला होगा, शहर का भी भला होगा।

उसी प्रकार से आपने देखा होगा इन दिनों स्टार्टअप, स्टार्टअप में भी आपके ध्यान में आया होगा कि पहले स्‍टार्टअप बड़े शहर के बड़े उद्योग घरानों के आसपास चलते थे, आज देश में करीब दो लाख स्टार्टअप हैं। और ज्यादातर टीयर 2, टीयर 3 सीटीज में है और इसमें भी गर्व की बात है कि उसमें काफी नेतृत्व हमारी बेटियों के पास है। स्‍टार्टअप की लीडरशिप बेटियों के पास है। ये बहुत बड़ी क्रांति की संभावनाओं को जन्म देता है और इसलिए मैं चाहूंगा कि अर्बन डेवलपमेंट ईयर के जब 20 साल मना रहे हैं और एक सफल प्रयोग को हम याद करके आगे की दिशा तय करते हैं तब हम टीयर 2, टीयर 3 सीटीज को बल दें। शिक्षा में भी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज काफी आगे रहा, इस साल देख लीजिए। पहले एक जमाना था कि 10 और 12 के रिजल्ट आते थे, तो जो नामी स्कूल रहते थे बड़े, उसी के बच्चे फर्स्ट 10 में रहते थे। इन दिनों शहरों की बड़ी-बड़ी स्कूलों का नामोनिशान नहीं होता है, टीयर 2, टीयर 3 सीटीज के स्कूल के बच्चे पहले 10 में आते हैं। देखा होगा आपने गुजरात में भी यही हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे छोटे शहरों के पोटेंशियल, उसकी ताकत बढ़ रही है। खेल का देखिए, पहले क्रिकेट देखिए आप, क्रिकेट तो हिंदुस्तान में हम गली-मोहल्ले में खेला जाता है। लेकिन बड़े शहर के बड़े रहीसी परिवारों से ही खेलकूद क्रिकेट अटका हुआ था। आज सारे खिलाड़ी में से आधे से ज्यादा खिलाड़ी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज गांव के बच्चे हैं जो खेल में इंटरनेशनल खेल खेल कर कमाल करते हैं। यानी हम समझें कि हमारे शहरों में बहुत पोटेंशियल है। और जैसा मनोहर जी ने भी कहां और यहां वीडियो में भी दिखाया गया, यह हमारे लिए बहुत बड़ी opportunity है जी, 4 में से 3 नंबर की इकोनॉमी पहुंचने के लिए हम हिंदुस्तान के शहरों की अर्थव्यवस्था पर अगर फोकस करेंगे, तो हम बहुत तेजी से वहां भी पहुंच पाएंगे।

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साथियों,

ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक ऐसे ही इकोसिस्टम ने जमीनों में अपनी जड़े ऐसी जमा हुई हैं कि भारत के सामर्थ्य को हमेशा नीचा दिखाने में लगी हैं। वैचारिक विरोध के कारण व्यवस्थाओं के विकास का अस्वीकार करने का उनका स्वभाव बन गया है। व्यक्ति के प्रति पसंद-नापसंद के कारण उसके द्वारा किये गए हर काम को बुरा बता देना एक फैशन का तरीका चल पड़ा है और उसके कारण देश की अच्‍छी चीजों का नुकसान हुआ है। ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। अब आप देखिए, हमने शहरी विकास पर तो बल दिया, लेकिन वैसा ही जब आपने दिल्‍ली भेजा, तो हमने एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट, एस्पिरेशनल ब्लॉक पर विचार किया कि हर राज्य में एकाध जिला, एकाध तहसील ऐसी होती है, जो इतना पीछे होता है, कि वो स्‍टेट की सारी एवरेज को पीछे खींच ले जाता है। आप जंप लगा ही नहीं सकते, वो बेड़ियों की तरह होता है। मैंने कहा, पहले इन बेड़ियों को तोड़ना है और देश में 100 के करीब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उनको identify किया गया। 40 पैरामीटर से देखा गया कि यहां क्या जरूरत है। अब 500 ब्‍लॉक्‍स identify किए हैं, whole of the government approach के साथ फोकस किया गया। यंग अफसरों को लगाया गया, फुल टैन्‍यूर के साथ काम करें, ऐसा लगाया। आज दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुका है और जो डेवलपिंग कंट्रीज हैं उनको भी लग रहा है कि हमारे यहां विकास के इस मॉडल की ओर हमें चलना चाहिए। हमारा academic world भारत के इन प्रयासों और सफल प्रयासों के विषय में सोचे और जब academic world इस पर सोचता है तो दुनिया के लिए भी वो एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में काम आता है।

साथियों,

आने वाले दिनों में टूरिज्म पर हमें बल देना चाहिए। गुजरात ने कमाल कर दिया है जी, कोई सोच सकता है। कच्छ के रेगिस्तान में जहां कोई जाने का नाम नहीं लेता था, वहां आज जाने के लिए बुकिंग नहीं मिलती है। चीजों को बदला जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचा स्टैच्यू, ये अपने आप में अद्भुत है। मुझे बताया गया कि वडनगर में जो म्यूजियम बना है। कल मुझे एक यूके के एक सज्‍जन मिले थे। उन्होंने कहा, मैं वडनगर का म्यूजियम देखने जा रहा हूं। यह इंटरनेशनल लेवल में इतने global standard का कोई म्यूजियम बना है और भारत में काशी जैसे बहुत कम जगह है कि जो अविनाशी हैं। जो कभी भी मृतप्राय नहीं हुए, जहां हर पल जीवन रहा है, उसमें एक वडनगर हैं, जिसमें 2800 साल तक के सबूत मिले हैं। अभी हमारा काम है कि वह इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर कैसे आए? हमारा लोथल जहां हम एक म्यूजियम बना रहे हैं, मैरीटाइम म्यूजियम, 5 हजार साल पहले मैरीटाइम में दुनिया में हमारा डंका बजता था। धीरे-धीरे हम भूल गए, लोथल उसका जीता-जागता उदाहरण है। लोथल में दुनिया का सबसे बड़ा मैरीटाइम म्यूजियम बन रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इन चीजों का कितना लाभ होने वाला है और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तों, 2005 का वो समय था, जब पहली बार गिफ्ट सिटी के आईडिया को कंसीव किया गया और मुझे याद है, शायद हमने इसका launching Tagore Hall में किया था। तो उसके बड़े-बड़े जो हमारे मन में डिजाइन थे, उसके चित्र लगाए थे, तो मेरे अपने ही लोग पूछ रहे थे। यह होगा, इतने बड़े बिल्डिंग टावर बनेंगे? मुझे बराबर याद है, यानी जब मैं उसका मैप वगैरह और उसका प्रेजेंटेशन दिखाता था केंद्र के कुछ नेताओं को, तो वह भी मुझे कह रहे थे अरे भारत जैसे देश में ये क्या कर रहे हो तुम? मैं सुनता था आज वो गिफ्ट सिटी हिंदुस्तान का हर राज्य कह रहा है कि हमारे यहां भी एक गिफ्ट सिटी होना चाहिए।

साथियों,

एक बार कल्पना करते हुए उसको जमीन पर, धरातल पर उतारने का अगर हम प्रयास करें, तो कितने बड़े अच्छे परिणाम मिल सकते हैं, ये हम भली भांति देख रहे हैं। वही काल खंड था, रिवरफ्रंट को कंसीव किया, वहीं कालखंड था जब दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाने का सपना देखा, पूरा किया। वही कालखंड था, दुनिया का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बनाने के लिए सोचा, पूरा किया।

भाइयों और बहनों,

एक बार हम मान के चले, हमारे देश में potential बहुत हैं, बहुत सामर्थ्‍य है।

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साथियों,

मुझे पता नहीं क्यों, निराशा जैसी चीज मेरे मन में आती ही नहीं है। मैं इतना आशावादी हूं और मैं उस सामर्थ्य को देख पाता हूं, मैं दीवारों के उस पार देख सकता हूं। मेरे देश के सामर्थ्य को देख सकता हूं। मेरे देशवासियों के सामर्थ्य को देख सकता हूं और इसी के भरोसे हम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और इसलिए आज मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे यहां आने का मौका दिया है। कुछ ऐसी पुरानी-पुरानी बातें ज्यादातर ताजा करने का मौका मिल गया। लेकिन आप विश्वास करिए दोस्तों, गुजरात की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम देने वाले लोग हैं, हमें देश को हमेशा देना चाहिए। और हम इतनी ऊंचाई पर गुजरात को ले जाए, इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि देशवासियों के लिए गुजरात काम आना चाहिए दोस्तों, इस महान परंपरा को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। मुझे विश्वास है, गुजरात एक नए सामर्थ्य के साथ अनेक विद नई कल्पनाओं के साथ, अनेक विद नए इनीशिएटिव्स के साथ आगे बढ़ेगा मुझे मालूम है। मेरा भाषण शायद कितना लंबा हो गया होगा, पता नहीं क्या हुआ? लेकिन कल मीडिया में दो-तीन चीजें आएंगी। वो भी मैं बता देता हूं, मोदी ने अफसरों को डांटा, मोदी ने अफसरों की धुलाई की, वगैरह-वगैरह-वगैरह, खैर वो तो कभी-कभी चटनी होती है ना इतना ही समझ लेना चाहिए, लेकिन जो बाकी बातें मैंने याद की है, उसको याद कर करके जाइए और ये सिंदुरिया मिजाज! ये सिंदुरिया स्पिरिट, दोस्‍तों 6 मई को, 6 मई की रात। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से प्रारंभ हुआ था। लेकिन अब ये ऑपरेशन सिंदूर जन-बल से आगे बढ़ेगा और जब मैं सैन्य बल और जन-बल की बात करता हूं तब, ऑपरेशन सिंदूर जन बल का मतलब मेरा होता है जन-जन देश के विकास के लिए भागीदार बने, दायित्‍व संभाले।

हम इतना तय कर लें कि 2047, जब भारत के आजादी के 100 साल होंगे। विकसित भारत बनाने के लिए तत्काल भारत की इकोनॉमी को 4 नंबर से 3 नंबर पर ले जाने के लिए अब हम कोई विदेशी चीज का उपयोग नहीं करेंगे। हम गांव-गांव व्यापारियों को शपथ दिलवाएं, व्यापारियों को कितना ही मुनाफा क्यों ना हो, आप विदेशी माल नहीं बेचोगे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, गणेश जी भी विदेशी आ जाते हैं। छोटी आंख वाले गणेश जी आएंगे। गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। होली, होली रंग छिड़कना है, बोले विदेशी, हमें पता था आप भी अपने घर जाकर के सूची बनाना। सचमुच में ऑपरेशन सिंदूर के लिए एक नागरिक के नाते मुझे एक काम करना है। आप घर में जाकर सूची बनाइए कि आपके घर में 24 घंटे में सुबह से दूसरे दिन सुबह तक कितनी विदेशी चीजों का उपयोग होता है। आपको पता ही नहीं होता है, आप hairpin भी विदेशी उपयोग कर लेते हैं, कंघा भी विदेशी होता है, दांत में लगाने वाली जो पिन होती है, वो भी विदेशी घुस गई है, हमें मालूम तक नहीं है। पता ही नहीं है दोस्‍तों। देश को अगर बचाना है, देश को बनाना है, देश को बढ़ाना है, तो ऑपरेशन सिंदूर यह सिर्फ सैनिकों के जिम्‍मे नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर 140 करोड़ नागरिकों की जिम्‍मे है। देश सशक्त होना चाहिए, देश सामर्थ्‍य होना चाहिए, देश का नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए और इसके लिए हमने वोकल फॉर लोकल, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, मैं मेरे यहां, जो आपके पास है फेंक देने के लिए मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन अब नया नहीं लेंगे और शायद एकाध दो परसेंट चीजें ऐसी हैं, जो शायद आपको बाहर की लेनी पड़े, जो हमारे यहां उपलब्ध ना हो, बाकि आज हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं। आपने देखा होगा, आज से पहले 25 साल 30 साल पहले विदेश से कोई आता था, तो लोग लिस्ट भेजते थे कि ये ले आना, ये ले आना। आज विदेश से आते हैं, वो पूछते हैं कि कुछ लाना है, तो यहां वाले कहते हैं कि नहीं-नहीं यहां सब है, मत लाओ। सब कुछ है, हमें अपनी ब्रांड पर गर्व होना चाहिए। मेड इन इंडिया पर गर्व होना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर सैन्‍य बल से नहीं, जन बल से जीतना है दोस्तों और जन बल आता है मातृभूमि की मिट्टी में पैदा हुई हर पैदावार से आता है। इस मिट्टी की जिसमें सुगंध हो, इस देश के नागरिक के पसीने की जिसमें सुगंध हो, उन चीजों का मैं इस्तेमाल करूंगा, अगर मैं ऑपरेशन सिंदूर को जन-जन तक, घर-घर तक लेकर जाता हूं। आप देखिए हिंदुस्तान को 2047 के पहले विकसित राष्ट्र बनाकर रहेंगे और अपनी आंखों के सामने देखकर जाएंगे दोस्तों, इसी इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए,

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

भारत माता की जय! जरा तिरंगे ऊपर लहराने चाहिए।

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

धन्यवाद!