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भारत अपने स्वतंत्रता सेनानियों को नहीं भूलेगा : प्रधानमंत्री मोदी
मां भारती के वीर सपूतों का इतिहास देश के कोने-कोने में, गांव-गांव में है और इस गौरव को सहेजने के लिए देश पिछले छह सालों से सजग प्रयास कर रहा है: प्रधानमंत्री
हमें अपने संविधान और हमारी लोकतांत्रिक परंपरा पर गर्व है: प्रधानमंत्री
आज भारत वसुधैव कुटुंबकम के भाव से सबके दुख दूर करने में काम आ रहा है : प्रधानमंत्री

मंच पर विराजमान गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी, मुख्यमंत्री श्री विजय रूपानी जी, केंद्रीय मंत्रिपरिषद के मेरे सहयोगी श्री प्रहलाद पटेल जी, लोकसभा में मेरे साथी सांसद श्री सीआर पाटिल जी, अहमदाबाद के नवनिर्वाचित मेयर श्रीमान किरीट सिंह भाई, साबरमती ट्रस्ट के ट्रस्टी श्री कार्तिकेय साराभाई जी और साबरमती आश्रम को समर्पित जिनका जीवन है ऐसे आदरणीय अमृत मोदी जी, देश भर से हमारे साथ जुड़े हुए सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों, और मेरे युवा साथियों!

आज जब मैं सुबह दिल्ली से निकला तो बहुत ही अद्भुद संयोग हुआ। अमृत महोत्सव के प्रारंभ होने से पहले आज देश की राजधानी में अमृत वर्षा भी हुई और वरुण देव ने आशीर्वाद भी दिया। ये हम सभी का सौभाग्य है कि हम आजाद भारत के इस ऐतिहासिक कालखंड के साक्षी बन रहे हैं। आज दांडी यात्रा की वर्षगांठ पर हम बापू की इस कर्मस्थली पर इतिहास बनते भी देख रहे हैं और इतिहास का हिस्सा भी बन रहे हैं। आज आजादी के अमृत महोत्सव का प्रारंभ हो रहा है, पहला दिन है। अमृत महोत्सव, 15 अगस्त 2022 से 75 सप्ताह पूर्व आज प्रारंभ हुआ है और 15 अगस्त 2023 तक चलेगा। हमारे यहां मान्यता है कि जब कभी ऐसा अवसर आता है तब सारे तीर्थों का एक साथ संगम हो जाता है। आज एक राष्ट्र के रूप में भारत के लिए भी ऐसा ही पवित्र अवसर है। आज हमारे स्वाधीनता संग्राम के कितने ही पुण्यतीर्थ, कितने ही पवित्र केंद्र, साबरमती आश्रम से जुड़ रहे हैं।

स्वाधीनता संग्राम की पराकाष्ठा को प्रणाम करने वाली अंडमान की सेल्यूलर जेल, अरुणाचल प्रदेश से ‘एंग्लो-इंडियन war’ की गवाह केकर मोनिन्ग की भूमि, मुंबई का अगस्त क्रांति मैदान, पंजाब का जालियाँवाला बाग, उत्तर प्रदेश का मेरठ, काकोरी और झाँसी, देश भर में ऐसे कितने ही स्थानों पर आज एक साथ इस अमृत महोत्सव का श्रीगणेश हो रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे आज़ादी के असंख्य संघर्ष, असंख्य बलिदानों का और असंख्य तपस्याओं की ऊर्जा पूरे भारत में एक साथ पुनर्जागृत हो रही है। मैं इस पुण्य अवसर पर बापू के चरणों में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। मैं देश के स्वाधीनता संग्राम में अपने आपको आहूत करने वाले, देश को नेतृत्व देने वाली सभी महान विभूतियों के चरणों में आदरपूर्वक नमन करता हूँ, उनका कोटि-कोटि वंदन करता हूँ। मैं उन सभी वीर जवानों को भी नमन करता हूँ जिन्होंने आज़ादी के बाद भी राष्ट्ररक्षा की परंपरा को जीवित रखा, देश की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिए, शहीद हो गए। जिन पुण्य आत्माओं ने आज़ाद भारत के पुनर्निर्माण में प्रगति की एक एक ईंट रखी, 75 वर्ष में देश को यहां तक लाए, मैं उन सभी के चरणों में भी अपना प्रणाम करता हूँ।

साथियों,

जब हम ग़ुलामी के उस दौर की कल्पना करते हैं, जहां करोड़ों-करोड़ लोगों ने सदियों तक आज़ादी की एक सुबह का इंतज़ार किया, तब ये अहसास और बढ़ता है कि आज़ादी के 75 साल का अवसर कितना ऐतिहासिक है, कितना गौरवशाली है। इस पर्व में शाश्वत भारत की परंपरा भी है, स्वाधीनता संग्राम की परछाई भी है, और आज़ाद भारत की गौरवान्वित करने वाली प्रगति भी है। इसीलिए, अभी आपके सामने जो प्रेजेंटेशन रखा गया, उसमें अमृत महोत्सव के पाँच स्तंभों पर विशेष ज़ोर दिया गया है। FREEDOM STRUGGLE आइडियाज AT 75, ACHIEVEMENTS AT 75, ACTIONS AT 75, और RESOLVES AT 75, ये पांचों स्तम्भ आज़ादी की लड़ाई के साथ-साथ आज़ाद भारत के सपनों और कर्तव्यों को देश के सामने रखकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देंगे। इन्हीं संदेशों के आधार पर आज ‘अमृत महोत्सव’ की वेबसाइट के साथ साथ चरखा अभियान और आत्मनिर्भर इनक्यूबेटर को भी लॉन्च किया गया है।

भाइयों बहनों,

इतिहास साक्षी है कि किसी राष्ट्र का गौरव तभी जाग्रत रहता है जब वो अपने स्वाभिमान और बलिदान की परम्पराओं को अगली पीढ़ी को भी सिखाता है, संस्कारित करता है, उन्हें इसके लिए निरंतर प्रेरित करता है। किसी राष्ट्र का भविष्य तभी उज्ज्वल होता है जब वो अपने अतीत के अनुभवों और विरासत के गर्व से पल-पल जुड़ा रहता है। फिर भारत के पास तो गर्व करने के लिए अथाह भंडार है, समृद्ध इतिहास है, चेतनामय सांस्कृतिक विरासत है। इसलिए आज़ादी के 75 साल का ये अवसर एक अमृत की तरह वर्तमान पीढ़ी को प्राप्त होगा। एक ऐसा अमृत जो हमें प्रतिपल देश के लिए जीने, देश के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित करेगा।

साथियों,

हमारे वेदों का वाक्य है- मृत्योः मुक्षीय मामृतात्। अर्थात, हम दुःख, कष्ट, क्लेश और विनाश से निकलकर अमृत की तरफ बढ़ें, अमरता की ओर बढ़ें। यही संकल्प आज़ादी के इस अमृत महोत्सव का भी है। आज़ादी का अमृत महोत्सव यानी- आज़ादी की ऊर्जा का अमृत, आज़ादी का अमृत महोत्सव यानी - स्वाधीनता सेनानियों से प्रेरणाओं का अमृत। आज़ादी का अमृत महोत्सव यानी - नए विचारों का अमृत। नए संकल्पों का अमृत। आज़ादी का अमृत महोत्सव यानी - आत्मनिर्भरता का अमृत। और इसीलिए, ये महोत्सव राष्ट्र के जागरण का महोत्सव है। ये महोत्सव, सुराज्य के सपने को पूरा करने का महोत्सव है। ये महोत्सव, वैश्विक शांति का, विकास का महोत्सव है।

साथियों,

अमृत महोत्सव का शुभारंभ दांडी यात्रा के दिन हो रहा है। उस ऐतिहासिक क्षण को पुनर्जीवित करने के लिए एक यात्रा भी अभी शुरू होने जा रही है। ये अद्भुत संयोग है कि दांडी यात्रा का प्रभाव और संदेश भी वैसा ही है, जो आज देश अमृत महोत्सव के माध्यम से लेकर आगे बढ़ रहा है। गांधी जी की इस एक यात्रा ने आज़ादी के संघर्ष को एक नई प्रेरणा के साथ जन-जन से जोड़ दिया था। इस एक यात्रा ने अपनी आज़ादी को लेकर भारत के नजरिए को पूरी दुनिया तक पहुंचा दिया था। ऐसा ऐतिहासिक और ऐसा इसलिए क्योंकि, बापू की दांडी यात्रा में आज़ादी के आग्रह के साथ साथ भारत के स्वभाव और भारत के संस्कारों का भी समावेश था।

हमारे यहां नमक को कभी उसकी कीमत से नहीं आँका गया। हमारे यहाँ नमक का मतलब है- ईमानदारी। हमारे यहां नमक का मतलब है- विश्वास। हमारे यहां नमक का मतलब है- वफादारी। हम आज भी कहते हैं कि हमने देश का नमक खाया है। ऐसा इसलिए नहीं क्योंकि नमक कोई बहुत कीमती चीज है। ऐसा इसलिए क्योंकि नमक हमारे यहाँ श्रम और समानता का प्रतीक है। उस दौर में नमक भारत की आत्मनिर्भरता का एक प्रतीक था। अंग्रेजों ने भारत के मूल्यों के साथ-साथ इस आत्मनिर्भरता पर भी चोट की। भारत के लोगों को इंग्लैंड से आने वाले नमक पर निर्भर हो जाना पड़ा। गांधी जी ने देश के इस पुराने दर्द को समझा, जन-जन से जुड़ी उस नब्ज को पकड़ा। और देखते ही देखते ये आंदोलन हर एक भारतीय का आंदोलन बन गया, हर एक भारतीय का संकल्प बन गया।

 

साथियों,

इसी तरह आज़ादी की लड़ाई में अलग-अलग संग्रामों, अलग-अलग घटनाओं की भी अपनी प्रेरणाएं हैं, अपने संदेश हैं, जिन्हें आज का भारत आत्मसात कर आगे बढ़ सकता है। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम, महात्मा गांधी का विदेश से लौटना, देश को सत्याग्रह की ताकत फिर याद दिलाना, लोकमान्य तिलक का पूर्ण स्वराज्य का आह्वान, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज का दिल्ली मार्च, दिल्ली चलो, ये नारा आज भी हिन्दुस्तान भूल नहीं सकता है? 1942 का अविस्मरणीय आंदोलन, अंग्रेजों भारत छोड़ो का वो उद्घोष, ऐसे कितने ही अनगिनत पड़ाव हैं जिनसे हम प्रेरणा लेते हैं, ऊर्जा लेते हैं। ऐसे कितने ही हुतात्मा सेनानी हैं जिनके प्रति देश हर रोज अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है।

1857 की क्रांति के मंगल पांडे, तात्या टोपे जैसे वीर हों, अंग्रेजों की फौज के सामने निर्भीक गजर्ना करने वाली रानी लक्ष्मीबाई हों, कित्तूर की रानी चेन्नमा हों, रानी गाइडिन्ल्यू हों, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, अशफाकउल्ला खां, गुरू राम सिंह, टिटूस जी, पॉल रामासामी जैसे वीर हों, या फिर पंडित नेहरू, सरदार पटेल, बाबा साहेब आंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस, मौलाना आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, वीर सावरकर जैसे अनगिनत जननायक! ये सभी महान व्यक्तित्व आजादी के आंदोलन के पथ प्रदर्शक हैं। आज इन्हीं के सपनों का भारत बनाने के लिए, उनको सपनों का भारत बनाने के लिए हम सामूहिक संकल्प ले रहे हैं, इनसे प्रेरणा ले रहे हैं।

साथियों,

हमारे स्वाधीनता संग्राम में ऐसे भी कितने आंदोलन हैं, कितने ही संघर्ष हैं जो देश के सामने उस रूप में नहीं आए जैसे आने चाहिए थे। ये एक-एक संग्राम, संघर्ष अपने आप में भारत की असत्य के खिलाफ सत्य की सशक्त घोषणाएं हैं, ये एक-एक संग्राम भारत के स्वाधीन स्वभाव के सबूत हैं, ये संग्राम इस बात का भी साक्षात प्रमाण हैं कि अन्याय, शोषण और हिंसा के खिलाफ भारत की जो चेतना राम के युग में थी, महाभारत के कुरुक्षेत्र में थी, हल्दीघाटी की रणभूमि में थी, शिवाजी के उद्घोष में थी, वही शाश्वत चेतना, वही अदम्य शौर्य, भारत के हर क्षेत्र, हर वर्ग और हर समाज ने आज़ादी की लड़ाई में अपने भीतर प्रज्वलित करके रखा था। जननि जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसी, ये मंत्र आज भी हमें प्रेरणा देता है।

आप देखिए हमारे इस इतिहास को, कोल आंदोलन हो या ‘हो संघर्ष’, खासी आंदोलन हो या संथाल क्रांति, कछोहा कछार नागा संघर्ष हो या कूका आंदोलन, भील आंदोलन हो या मुंडा क्रांति, संन्यासी आंदोलन हो या रमोसी संघर्ष, कित्तूर आंदोलन, त्रावणकोर आंदोलन, बारडोली सत्याग्रह, चंपारण सत्याग्रह, संभलपुर संघर्ष, चुआर संघर्ष, बुंदेल संघर्ष, ऐसे कितने ही संघर्ष और आंदोलनों ने देश के हर भूभाग को, हर कालखंड में आज़ादी की ज्योति से प्रज्वलित रखा। इस दौरान हमारी सिख गुरू परंपरा ने देश की संस्कृति, अपने रीति-रिवाज की रक्षा के लिए, हमें नई ऊर्जा दी, प्रेरणा दी, त्याग और बलिदान का रास्ता दिखाया। और इसका एक और अहम पक्ष है, जो हमें बार-बार याद करना चाहिए।

साथियों,

आजादी के आंदोलन की इस ज्योति को निरंतर जागृत करने का काम, पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण, हर दिशा में, हर क्षेत्र में, हमारे संतों ने, महंतों ने, आचार्यों ने निरंतर किया था। एक प्रकार से भक्ति आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी स्वाधीनता आंदोलन की पीठिका तैयार की थी। पूर्व में चैतन्य महाप्रभु, राम कृष्ण परमहंस और श्रीमंत शंकर देव जैसे संतों के विचारों ने समाज को दिशा दी, अपने लक्ष्य पर केंद्रित रखा। पश्चिम में मीराबाई, एकनाथ, तुकाराम, रामदास, नरसी मेहता हुए, उत्तर में, संत रामानंद, कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरु नानकदेव, संत रैदास, दक्षिण में मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभाचार्य, रामानुजाचार्य हुए, भक्ति काल के इसी खंड में मलिक मोहम्मद जायसी, रसखान, सूरदास, केशवदास, विद्यापति जैसे महानुभावों ने अपनी रचनाओं से समाज को अपनी कमियां सुधारने के लिए प्रेरित किया।

ऐसे अनेकों व्यक्तित्वों के कारण ये आंदोलन क्षेत्र की सीमा से बाहर निकलकर के पूरे भारत के जन-जन को आप में समेट लिया। आज़ादी के इन असंख्य आंदोलनों में ऐसे कितने ही सेनानी, संत आत्माएं, ऐसे अनेक वीर बलिदानी हैं जिनकी एक-एक गाथा अपने आप में इतिहास का एक-एक स्वर्णिम अध्याय हैं! हमें इन महानायकों, महानायिकाओं, उनका जीवन इतिहास भी देश के सामने पहुंचाना है। इन लोगों की जीवन गाथाएं, उनके जीवन का संघर्ष, हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के उतार-चढ़ाव, कभी सफलता, कभी असफलता, हमारी आज की पीढ़ी को जीवन का हर पाठ सिखाएगी। एकजुटता क्या होती है, लक्ष्य को पाने की जिद क्या क्या होती है, जीवन का हर रंग, वो और बेहतर तरीके से समझेंगे।

 

भाइयों और बहनों,

आपको याद होगा, इसी भूमि के वीर सपूत श्यामजी कृष्ण वर्मा, अंग्रेजों की धरती पर रहकर, उनकी नाक के नीचे, जीवन की आखिरी सांस तक आजादी के लिए संघर्ष करते रहे। लेकिन उनकी अस्थियाँ सात दशकों तक इंतज़ार करती रहीं कि कब उन्हें भारत माता की गोद नसीब होगी। आखिरकार, 2003 में विदेश से श्याम जी कृष्ण वर्मा की अस्थियाँ मैं अपने कंधे पर उठाकर के ले आया था। ऐसे कितने ही सेनानी हैं, देश पर अपना सब कुछ समर्पित कर देने वाले लोग हैं। देश के कोने-कोने से कितने ही दलित, आदिवासी, महिलाएं और युवा हैं जिन्होंने असंख्य तप और त्याग किए। याद करिए, तमिलनाडु के 32 वर्षीय नौजवान कोडि काथ् कुमरन, उनको याद कीजिए अंग्रेजों ने उस नौजवान को सिर में गोली मार दी, लेकिन उन्होंने मरते हुये भी देश के झंडे को जमीन में नहीं गिरने दिया। तमिलनाडु में उनके नाम से ही कोडि काथ् शब्द जुड़ गया, जिसका अर्थ है झंडे को बचाने वाला! तमिलनाडु की ही वेलू नाचियार वो पहली महारानी थीं, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।

इसी तरह, हमारे देश के आदिवासी समाज ने अपनी वीरता और पराक्रम से लगातार विदेशी हुकूमत को घुटनों पर लाने का काम किया था। झारखंड में भगवान बिरसा मुंडा, उन्होंने अंग्रेजों को चुनौती दी थी, तो मुर्मू भाइयों ने संथाल आंदोलन का नेतृत्व किया। ओडिशा में चक्रा बिसोई ने लड़ाई छेड़ी, तो लक्ष्मण नायक ने गांधीवादी तरीकों से चेतना फैलाई। आंध्र प्रदेश में मण्यम वीरुडु यानी जंगलों के हीरो अल्लूरी सीराराम राजू ने रम्पा आंदोलन का बिगुल फूंका। पासल्था खुन्गचेरा ने मिज़ोरम की पहाड़ियों में अंग्रेज़ो से लोहा लिया था। ऐसे ही, गोमधर कोंवर, लसित बोरफुकन और सीरत सिंग जैसे असम और पूर्वोत्तर के अनेकों स्वाधीनता सेनानी थे जिन्होंने देश की आज़ादी में योगदान दिया है। यहां गुजरात में वड़ोदरा के पास जांबूघोड़ा जाने के रस्ते पर हमारे नायक कौम के आदिवासियों का बलिदान कैसे भूल सकते हैं, मानगढ़ में गोविंद गुरु के नेतृत्व में सैकड़ों आदिवासियों का नरसंहार हुआ, उन्होंने लड़ाई लड़ी। देश इनके बलिदान को हमेशा याद रखेगा।

 

 

साथियों,

माँ भारती के ऐसे ही वीर सपूतों का इतिहास देश के कोने कोने में, गाँव-गाँव में है। देश इतिहास के इस गौरव को सहेजने के लिए पिछले छह सालों से सजग प्रयास कर रहा है। हर राज्य, हर क्षेत्र में इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। दांडी यात्रा से जुड़े स्थल का पुनरुद्धार देश ने दो साल पहले ही पूरा किया था। मुझे खुद इस अवसर पर दांडी जाने का सौभाग्य मिला था। अंडमान में जहां नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने देश की पहली आज़ाद सरकार बनाकर तिरंगा फहराया था, देश ने उस विस्मृत इतिहास को भी भव्य आकार दिया है। अंडमान निकोबार के द्वीपों को स्वतन्त्रता संग्राम के नामों पर रखा गया है। आज़ाद हिन्द सरकार के 75 साल पूरे होने पर लाल किले पर भी आयोजन किया गया, तिरंगा फहराया गया और नेताजी सुभाष बाबू को श्रद्धांजलि दी गई। गुजरात में सरदार पटेल की विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा उनके अमर गौरव को पूरी दुनिया तक पहुंचा रही है। जालियाँवाला बाग में स्मारक हो या फिर पाइका आंदोलन की स्मृति में स्मारक, सभी पर काम हुआ है। बाबा साहेब से जुड़े जो स्थान दशकों से भूले बिसरे पड़े थे, उनका भी विकास देश ने पंचतीर्थ के रूप में किया है। इस सबके साथ ही, देश ने आदिवासी स्वाधीनता सेनानियों के इतिहास को देश तक पहुंचाने के लिए, आने वाली पीढ़ियों के लिए पहुंचाने के लिए हमारी आदिवासियों की संघर्षों की कथाओं को जोड़ता हुआ देश में म्यूज़ियम्स बनाने का एक प्रयास शुरू किया है।

साथियों,

आजादी के आंदोलन के इतिहास की तरह ही आजादी के बाद के 75 वर्षों की यात्रा, सामान्य भारतीयों के परिश्रम, इनोवेशन, उद्यम-शीलता का प्रतिबिंब है। हम भारतीय चाहे देश में रहे हों, या फिर विदेश में, हमने अपनी मेहनत से खुद को साबित किया है। हमें गर्व है हमारे संविधान पर। हमें गर्व है हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं पर। लोकतंत्र की जननी भारत, आज भी लोकतंत्र को मजबूती देते हुए आगे बढ़ रहा है। ज्ञान-विज्ञान से समृद्ध भारत, आज मंगल से लेकर चंद्रमा तक अपनी छाप छोड़ रहा है। आज भारत की सेना का सामर्थ्य अपार है, तो आर्थिक रूप से भी हम तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। आज भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम, दुनिया में आकर्षण का केंद्र बना है, चर्चा का विषय है। आज दुनिया के हर मंच पर भारत की क्षमता और भारत की प्रतिभा की गूंज है। आज भारत अभाव के अंधकार से बाहर निकलकर 130 करोड़ से अधिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए आगे बढ़ रहा है।

साथियों,

ये भी हम सभी का सौभाग्य है आज़ाद भारत के 75 साल और नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जन्म जयंति के 125 वर्ष हम साथ-साथ मना रहे हैं। ये संगम सिर्फ तिथियों का ही नहीं बल्कि अतीत और भविष्य के भारत के विजन का भी अद्भुत मेल है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा था कि भारत की आज़ादी की लड़ाई सिर्फ ब्रिटिश सम्राज्यवाद के विरुद्ध नहीं है, बल्कि वैश्विक साम्राज्यवाद के विरुद्ध है। नेताजी ने भारत की आजादी को पूरी मानवता के लिए जरूरी बताया था। समय के साथ नेताजी की ये बात सही सिद्ध हुई। भारत आज़ाद हुआ तो दुनिया में दूसरे देशों में भी स्वतंत्रता की आवाज़ें बुलंद हुईं और बहुत ही कम समय में साम्राज्यवाद का दायरा सिमट गया। और साथियों, आज भी भारत की उपल्धियां आज सिर्फ हमारी अपनी नहीं हैं, बल्कि ये पूरी दुनिया को रोशनी दिखाने वाली हैं, पूरी मानवता को उम्मीद जगाने वाली हैं। भारत की आत्मनिर्भरता से ओतप्रोत हमारी विकास यात्रा पूरी दुनिया की विकास यात्रा को गति देने वाली है।

कोरोना काल में ये हमारे सामने प्रत्यक्ष सिद्ध भी हो रहा है। मानवता को महामारी के संकट से बाहर निकालने में वैक्सीन निर्माण में भारत की आत्मनिर्भरता का आज पूरी दुनिया को लाभ मिल रहा है। आज भारत के पास वैक्सीन का सामर्थ्य है तो वसुधैव कुटुंबकम के भाव से हम सबके दुख दूर करने में काम आ रहे हैं। हमने दुख किसी को नहीं दिया, लेकिन दूसरों का दुख कम करने में खुद को खपा रहे हैं। यही भारत के आदर्श हैं, यही भारत का शाश्वत दर्शन है, यही आत्मनिर्भर भारत का भी तत्वज्ञान है। आज दुनिया के देश भारत का धन्यवाद कर रहे हैं, भारत में भरोसा कर रहे हैं। यही नए भारत के सूर्योदय की पहली छटा है, यही हमारे भव्य भविष्य की पहली आभा है।

साथियों,

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है- ‘सम-दुःख-सुखम् धीरम् सः अमृतत्वाय कल्पते’। अर्थात्, जो सुख-दुःख, आराम चुनौतियों के बीच भी धैर्य के साथ अटल अडिग और सम रहता है, वही अमृत को प्राप्त करता है, अमरत्व को प्राप्त करता है। अमृत महोत्सव से भारत के उज्ज्वल भविष्य का अमृत प्राप्त करने के हमारे मार्ग में यही मंत्र हमारी प्रेरणा है। आइये, हम सब दृढ़संकल्प होकर इस राष्ट्र यज्ञ में अपनी भूमिका निभाएँ।

साथियों,

आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान, देशवासियों के सुझावों से, उनके मौलिक विचारों से अनगिनत असंख्य ideas निकलेंगे। कुछ बातें अभी जब मैं आ रहा था तो मेरे मन में भी चल रहीं थी। जन भागीदारी, जन सामान्य को जोड़ना, देश का कोई नागरिक ऐसा ना हो कि इस अमृत महोत्सव का हिस्सा ना हो। अब जैसे मान लीजिए हम छोटा सा एक उदाहरण दें- अब सभी स्कूल कॉलेज, आजादी से जुड़ी हुई 75 घटनाओं का संकलन करें, हर स्कूल तय करे कि हमारी स्कूल आजादी की 75 घटनाओं का संकलन करेगी, 75 ग्रुप्स बनाएं, उन घटनाओं पर वो 75 विद्या‍र्थी 75 ग्रुप जिसमें आठ सौ, हजार, दो हजार विद्यार्थी हो सकते हैं, एक स्कूल ये कर सकता है। छोटे-छोटे हमारे शि‍शु ‍मंदिर के बच्चे होते हैं, बाल मंदिर के बच्चे होते हैं, आजादी के आंदोलन से जुड़े 75 महापुरुषों की सूची बनाएं, उनकी वेशभूषा करें, उनके एक-एक वाक्यों को बोलें, उसका कंपटीशन हो, स्कूलों में भारत के नक्शे पर आजादी के आंदोलन से जुड़े 75 स्थान चिन्हित किए जाएं, बच्चों को कहा जाए कि बताओ भई बारडोली कहा आया? चंपारण कहा आया? लॉ कॉलेजों के छात्र-छात्राएं ऐसी 75 घटनाएं खोजें और मैं हर कॉलेज से आग्रह करूंगा, हर लॉ स्‍कूल से आग्रह करूंगा 75 घटनाएं खोजें जिसमें आजादी की लड़ाई जब चल रही थी तब कानूनी जंग कैसे चली? कानूनी लड़ाई कैसे चली? कौन लोग थे कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे? आजादी के वीरों बचाने के लिए कैसे-कैसे प्रयास हुए? अंग्रेज सल्तनत की judiciary का क्या रवैया था? सारी बातें हम लिख सकते हैं। जिनका interest नाटक में है, वो नाटक लिखें। फाइन आर्ट्स के विद्यार्थी उन घटनाओं पर पेंटिंग बनाएं, जिसका मन करे कि वो गीत लिखे, वो कविताएं लिखें। ये सब शुरू में हस्तलिखित हो। बाद में इसको डिजिटल स्वरूप भी दिया जाए और मैं चाहूंगा कुछ ऐसा कि हर स्कूल-कॉलेज का ये प्रयास, उस स्कूल-कॉलेज की धरोहर बन जाए। और कोशिश हो कि ये काम इसी 15 अगस्त से पहले पूरा कर लिया जाए। आप देखि‍ए पूरी तरह वैचारिक अधिष्‍ठान तैयार हो जाएगा। बाद में इसे जिलाव्यापी, राज्यव्यापी, देशव्यापी स्पर्धाएं भी आयोजित हो सकती हैं।

हमारे युवा, हमारे Scholars ये ज़िम्मेदारी उठाएँ कि वो हमारे स्वाधीनता सेनानियों के इतिहास लेखन में देश के प्रयासों को पूरा करेंगे। आज़ादी के आंदोलन में और उसके बाद हमारे समाज की जो उपलब्धियां रही हैं, उन्हें दुनिया के सामने और प्रखरता से लाएँगे। मैं कला-साहित्य, नाट्य जगत, फिल्म जगत और डिजिटल इंटरनेटनमेंट से जुड़े लोगों से भी आग्रह करूंगा, कितनी ही अद्वितीय कहानियाँ हमारे अतीत में बिखरी पड़ी हैं, इन्हें तलाशिए, इन्हें जीवंत कीजिए, आने वाली पीढ़ी के लिए तैयार कीजिए। अतीत से सीखकर भविष्य के निर्माण की ज़िम्मेदारी हमारे युवाओं को ही उठानी है। साइंस हो, टेक्नोलॉजी हो, मेडिकल हो, पॉलिटिक्स हो, आर्ट या कल्चर हो, आप जिस भी फील्ड में हैं, अपनी फील्ड का कल, आने वाला कल, बेहतर कैसे हो इसके लिए प्रयास कीजिए।

मुझे विश्वास है, 130 करोड़ देशवासी आज़ादी के इस अमृत महोत्सव से जब जुड़ेंगे, लाखों स्वाधीनता सेनानियों से प्रेरणा लेंगे, तो भारत बड़े से बड़े लक्ष्यों को पूरा करके रहेगा। अगर हम देश के लिए, समाज के लिए, हर हिन्दुस्तानी अगर एक कदम चलता है तो देश 130 करोड़ कदम आगे बढ़ जाता है। भारत एक बार फिर आत्मनिर्भर बनेगा, विश्व को नई दिशा दिखा देगा। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, आज जो दांडी यात्रा के लिए चल रहे हैं एक प्रकार से बड़े ताम-झाम के बिना छोटे स्वरूप में आज उसका प्रारंभ हो रहा है। लेकिन आगे चलते-चलते जैसे दिन बीतते जाएंगे, हम 15 अगस्त के निकट पहुंचेंगे, ये एक प्रकार से पूरे हिन्दुस्तान को अपने में समेट लेगा। ऐसा बड़ा महोत्सव बन जाएगा, ऐसा मुझे विश्वास है। हर नागरिक का संकल्प होगा, हर संस्था का संकल्प होगा, हर संगठन का संकल्प होगा देश को आगे ले जाने का। आजादी के दीवानों को श्रद्धांजलि देने का यही रास्ता होगा।

मैं इन्हीं कामना के साथ, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैं फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं! मेरे साथ बोलेंगे

भारत माता की ........ जय! भारत माता की ........ जय! भारत माता की ........ जय!

वंदे ......... मातरम! वंदे ......... मातरम! वंदे ......... मातरम!

जय हिंद ...... जय हिंद! जय हिंद ...... जय हिंद! जय हिंद ...... जय हिंद!

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PM takes part in Combined Commanders’ Conference in Bhopal, Madhya Pradesh
April 01, 2023
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The Prime Minister, Shri Narendra Modi participated in Combined Commanders’ Conference in Bhopal, Madhya Pradesh today.

The three-day conference of Military Commanders had the theme ‘Ready, Resurgent, Relevant’. During the Conference, deliberations were held over a varied spectrum of issues pertaining to national security, including jointness and theaterisation in the Armed Forces. Preparation of the Armed Forces and progress in defence ecosystem towards attaining ‘Aatmanirbharta’ was also reviewed.

The conference witnessed participation of commanders from the three armed forces and senior officers from the Ministry of Defence. Inclusive and informal interaction was also held with soldiers, sailors and airmen from Army, Navy and Air Force who contributed to the deliberations.

The Prime Minister tweeted;

“Earlier today in Bhopal, took part in the Combined Commanders’ Conference. We had extensive discussions on ways to augment India’s security apparatus.”

 

More details at https://pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=1912891