Quoteप्रधानमंत्री मोदी ने छत्तीसगढ़ के भिलाई में 22,000 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास एवं उद्धाटन किया।
Quoteभिलाई का ये आधुनिक और परिवर्तित स्टील प्लांट अब ‘न्यू इंडिया’ की बुनियाद को भी स्टील जैसा मजबूत करने का काम करेगा: पीएम मोदी
Quoteजल, जमीन और हवाई कनेक्टिविटी बढ़ाने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं: प्रधानमंत्री
Quoteउड़ान योजना के तहत हम उन जगहों पर नए हवाईअड्डों का निर्माण कर रहे हैं, जहां पुरानी सरकारें सड़कें तक बनाने से पीछे हट जाती थीं: प्रधानमंत्री मोदी
Quoteनया रायपुर अब देश का पहला ग्रीनफील्ड स्मार्ट सिटी है, चाहे बिजली हो या पानी या फिर परिवहन सब कुछ एक ही कमांड सेंटर से नियंत्रित किया जाएगा: पीएम मोदी
Quoteकिसी भी हिंसा या साजिश का जवाब सिर्फ विकास है: प्रधानमंत्री

भारत माता की जय, भिलाई स्टील प्‍लांट छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा के अनमोल रत्‍न हैं। छत्तीसगढ़ महतारी के प्रताप के चिन्‍हारी हैं।छत्तीसगढ़ के यशस्‍वी और लोकप्रिय मुख्‍यमंत्री हमारे पुराने साथी डॉ. रमन सिंह जी, केंद्र में मंत्री परिषद के मेरे साथी चौधरी बीरेंद्र सिंह जी, मंत्री श्री मनोज सिन्‍हा जी, इसी धरती की संतान केंद्र में मेरे साथी श्री विष्‍णु देव सहाय जी, छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्‍यक्ष श्रीमान गौरीशंकर अग्रवाल जी, राज्‍य सरकार के सभी वरिष्‍ठ मंत्रीगण और छत्तीसगढ़ के मेरे प्‍यारे भाईयो और बहनों।

दो महीना पहले वो भी 14 तारीख थी। आज भी 14 तारीख है। मुझे दोबारा एक बार आपके आर्शीवाद प्राप्‍त करने का अवसर मिला है।

जब मैं 14 अप्रैल को आया था यहीं की धरती से युष्‍मान भारत योजना के पहले चरण की शुरुआत की थी। आज दो महीने बाद 14 तारीख को भिलाई में आप सभी से आर्शीवाद लेने का सौभाग्‍य फिर एक बार मुझे प्राप्‍त हुआ है।

छत्तीसगढ़ के इतिहास में, छत्तीसगढ़ के भविष्‍य को मजबूत बनाने वाला एक और सुनहरा अध्‍याय आज जोड़ा जा रहा है। अब से कुछ देर पहले भिलाई में स्टील प्‍लांट के विस्‍तार और आधुनिकीकरण, दुसरा जगदलपुर हवाई अड्डा, नया रायपुर के कमांड सेंटर के लोकार्पण, अनगिनत विकास के काम। इसके अलावा भिलाई में आईआईटी कैंपस के निर्माण और राज्‍य में भारत नेट फैज-2 पर भी आज से काम शुरू हो गया है।

करीब-करीब 22 हजार करोड़ रुपये से ज्‍यादा की योजनाओं का उपहार आज छत्तीसगढ़ के मेरे प्‍यारे भाईयो बहनों को मैं समर्पित कर रहा हूं। ये सभी योजनाएं यहां रोजगार के नए अवसर बनाने वाली है। शिक्षा के नए अवसर पैदा करने वाली है। आवाजाही के आधुनिक साधन देने वाली है औरछत्तीसगढ़ के दूर दराज के इलाकों को संचार की आधुनिक तकनीक से जोड़ने वाली है। कई वर्षों में हिन्‍दुस्‍तान में जब बस्‍तर की बात आती थी, तो पंप, बंदूक, पिस्‍तौल और हिंसा की बात आती थी। आज बस्‍तर की बात जगदलपुर के हवाई अडडे से जुड़ गई है।

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साथियों जिस राज्‍य के निर्माण के पीछे हम सबके ध्‍येय अटल बिहारी वाजपेयी जी का विजन है। मेरे छत्तीसगढ़ वासियों का कठोर परिश्रम है, तपस्‍या है। उस राज्‍य को तेज गति से आगे बढ़ते देखना हम सबके लिए एक बहुत सुखद अनुभव है। आनंद और प्रेरणा देने वाला अनुभव है।

अटल जी के विजन को मेरे मित्र मुख्‍यमंत्री रमन सिंह जी ने पूरे परिश्रम के साथ आगे बढ़ाया है। अब जब भी मैं उनसे बात करता हूं,  टेलीफोन पर तो अक्‍सर मिलते रहते हैं। रूबरू मिलता हूं। हर बार वो कोई नई कल्‍पना नई योजना नई चीज लेकर के आते हैं और इतने उमंग और उत्‍साह के साथ आते हैं। और वो उसको लागू करके सफलता के शिखर पर पहुंचाने का आत्‍मविश्‍वास उनकी हर बात में नजर आता है।

साथियों, हम सब जानते हैं विकास करना है प्रगति करनी है तो शांति, कानून और सामान्‍य जीवन की व्‍यवस्‍थाएं- ये प्राथमिकता रहती है। रमन सिंह जी ने एक तरफ शांति, स्थिरता, कानून, व्‍यवस्‍था उस पर बल दिया। तो दूसरी तरफ विकास की नई ऊंचाइयों को पार करने के लिए छत्तीसगढ़ को आगे बढ़ाते चले। नर्इ कल्‍पनाएं, नई योजनाएं को लेकर आते रहे और विकास की इस तीर्थयात्रा के लिए मैं रमन सिंह जी और उनके यहां के ढाई करोड़ से ज्‍यादा मेरे छत्तीसगढ़ के भाईयो बहनों को अभिनंदन करता हूं। शुभकामनाएं देता हूं।

भाईयो बहनों, ये क्षेत्र मेरे लिए नया नहीं है। जब छत्तीसगढ़ बना नहीं था मध्‍य प्रदेश का हिस्‍सा था। मैं कभी इस क्षेत्र में टू-व्‍हीलर पर आया करता था। मैं संगठन के काम के लिए आता था। ये मेरे सारे साथी, हम पांच-पचास लोग मिलते थे। देश की, समाज की छत्तीसगढ़ की, मध्‍यप्रदेश मैं की कई समस्‍याएं देखता था। बाते करते थे तब से लेकर आज तक कोई ऐसा वक्‍त नहीं आया जब मेरा छत्तीसगढ़ से दूरी बनने का कोई कारण बना। इतना प्‍यार आप लोगों ने दिया है। हर बार आपसे जुड़ा रहा। शायद पिछले 20,22-25 साल हुए होंगें जिसमें एक भी वर्ष ऐसा नहीं होगा कि जहां मेरा छत्तीसगढ़ आना न हुआ हो। शायद यहां कोई डिस्ट्रिकट ऐसा बचा होगा कि जहां मेरा जाना न हुआ हो। और यहां के प्‍यार को यहां के लोगों की पवित्रता को मैंने भलीभांति अनुभव किया है।

भाईयो बहनों, आज यहां आने से पहले मैं भिलाई स्‍टील प्‍लांट गया था। 18 हजार करोड़ से अधिक खर्च करके इस प्‍लांट को और आधुनिक तकनीक और नई क्षमताओं से युक्‍त किया गया है। और मेरा सौभाग्‍य है कि आज मुझे इस परिवर्तित आधुनिक प्‍लांट के लोकार्पण का भी अवसर मिला है। ये देख के बहुत कम लोगों को पता होगा कि कच्‍छ से कटक तक और करगिल से कन्‍याकुमारी तक आजादी के बाद जो भी रेल की पटरियां बिछी हैं। उनमें अधिकतर इसी धरती से आप ही के पसीने के प्रसाद के रूप में पहुंची हैं। निश्चित तौर पर भिलाई ने सिर्फ स्‍टील ही नहीं बनाया है बल्कि भिलाई ने जिंदगियों को भी संवारा है। समाज को सजाया है और देश को भी बनाया है।

भिलाई का ये आधुनिक परिवर्तित स्‍टील प्‍लांट अब न्‍यू इंडिया की बुनियाद को भी स्‍टील जैसा मजबूत करने का काम करेगा। साथियों भिलाई और दुर्ग में तो आपने खुद अनुभव किया है। कि कैसे स्‍टील प्‍लांट लगाने के बाद यहां की तस्‍वीर ही बदल गई है। इस वातावरण को देखकर मुझे विश्‍वास है कि बस्‍तर के नगर में जो स्‍टील प्‍लांट जो स्‍थापित हुआ है। वो भी बस्‍तर अनचल के लोगों की जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव लाएगा।

भाईयो और बहनों, छत्‍तीसगढ़ की प्रगति को गति देने में यहां के स्‍टील अयस्‍क, लौह अयस्‍क ये खनन ने बहुत बड़़ी भूमिका निभाई है। इस पर आपका और विशेषकर मेरे आदिवासी भाईयो बहनों का अधिकार है। यही वजह है कि हमनें सरकार में आने के बाद एक बहुत बड़ा कानून में बदलाव किया है। और हमें ये सुनिश्चित किया कि जो भी खनिज निकलेगा, उससे होने वाली कमाई का एक हिस्‍सा वहां के स्‍थानीय निवासियों को उनके विकास के लिए खर्च किया जाएगा। ये हमनें कानूनन तय कर लिया है। और इसलिए खनन वाले हर जिले में District Mineral Foundationकी स्‍थापना की गई।

इस कानून में बदलाव के बाद छत्‍तीसगढ़ को भी तीन हजार करोड़ रुपये से ज्‍यादा की अतिरिक्‍त राशी प्राप्‍त हुई है। ये पैसे अब खर्च हो रहे हैं। आपके लिए अस्‍पताल बनाने के लिए, स्‍कूल बनाने के लिए, सड़के बनाने के लिए, शौचालय बनवाने के लिए।

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भाईयो और बहनों जब विकास की बात करते हैं, Make in India की बात करते हैं तो इसके लिए कौशल विकास यानी skill development भी उतना ही आवश्‍यक है। भिलाई की पहचान तो दशकों से देश के बड़े education  हक के तौर पर रही है। लेकिन इतनी व्‍यवस्‍थाएं होने के बावजूद यहां आईआईटी की कमी महसूस हो रही है।

आपके मुख्‍यमंत्री रमन सिंह ने पिछली सरकार के समय भी इस बात के लिए लगातार कोशिश कर रहे थे। कि भिलाई को आईआईटी मिलना चाहिए। लेकिन वो भी कौन लोग थे आप जानते हैं भली भांति। रमन सिंह जी ने दस साल मेहनत की पानी में गई। लेकिन जिस छत्‍तीसगढ़ ने हमें भरपूर आर्शीवाद दिया है। जब हमारी बारी आई, रमन सिंह जी आए और हमनें तुरंत फैसला कर दिया। पांच नए आईआईटी और जब पांच नए आईआईटी बने तो आज भिलाई में सैंकड़ों, करोड़ों रुपयों का एक आधुनिक आईआईटी का कैंपस उसका शिलान्‍यास भी हो रहा है। लगभग 1100 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला आईआईटी कैंपस छत्‍तीसगढ़ और देश के मेघावी छात्रों के लिए प्रौद्योगिकी और तकनीकी शिक्षा का तीर्थ बनेगा उन्‍हें कुछ नया करने के लिए हमेशा प्रेरित करता रहेगा।

साथियों, मुझे कुछ मिनट पहले मंच पर ही कुछ युवाओं को लैपटॉप देने का अवसर मिला है। मुझे खुशी है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार सूचना क्रांति योजना के माध्‍यम से कंम्‍पूयटर और टेक्‍नोलॉजी की पढ़ाई पर निरंतर बल दे रहे हैं। तकनीक के साथ जितना ज्‍यादा हम लोगों को जोड़ पाएंगे उतना ही तकनीक से होने वाले लाभ को जन-जन तक पहुंचा पाएंगे। इसी विजन के साथ बीते चार वर्षों के दौरान डिजिटल इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है। छत्‍तीसगढ़ सरकार भी इस अभियान को, उसके लाभ को घर-घर पहुंचाने के दिशा में जुटी हुई है।

मैं पिछली बार जब बाबा साहेब अंबेडकर की जन्‍म जयंती पर आया था तो बस्‍तर को इंटरनेट से कनेक्‍ट करने वाले प्रोजेक्‍ट बस्‍तर नेट के फेस-1 के लोकार्पण का अवसर मिला था। अब आज से यहां भारत नेट फेस-2 इस पर काम शुरू हो गया है। लगभग ढाई हजार करोड़ के इस प्रोजेक्‍ट को अगले वर्ष मार्च महीने तक पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। छत्‍तीसगढ़ की चार हजार पंचायतों तक तो इंटरनेट पहले ही पहुंच चुका है। अब बाकि छ: हजार तक भी अगले साल पहुंच जाएगा।

साथियों, डिजिटल भारत अभियान, भारत नेट यहां राज्‍य सरकार की संचार क्रांति योजना पचास लाख से ज्‍यादा स्‍मार्ट फोन का वितरण, 1200 से ज्‍यादा मोबाइल टावरों की स्‍थापना ये सारे प्रयास गरीबों को, आदिवासियों को, दरिद्र, पीडि़त, वंचित, शोषित उनके सशक्तिकरण का एक नया फाउंडेशन तैयार हो रहा है। एक मजबूत नींव तैयार हो रही है। डिजिटल कनेक्‍टिविटी सिर्फ जगहों को नहीं, सिर्फ एक जगह को दूसरी जगह से जोड़ रही है ऐसा नहीं वो लोगों को भी कनेक्‍ट कर रही है।

भाईयो और बहनों, आज देश को जल, थल, नभ हर प्रकार से जोड़ने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है। इसी का परिणाम है कि पुरानी सरकारें जिन इलाकों में सड़के तक बनाने से पीछे हट जाती थी वहां आज सड़कों के साथ ही हवाई अड्डे भी बन रहे हैं।

और मैंने कहा कि मेरा सपना है हवाई चप्‍पल पहनने वाला भी हवाई जहाज में जा सके इस सोच के साथ उड़ान योजना चलाई जा रही है। और देश भर में नए हवाई अड्डों का निर्माण किया जा रहा है। ऐसा ही एक शानदार हवाई अड्डा आपके जगदलपुर में बना रहे हैं। आज जगदलपुर से रायपुर के लिए उड़ान भी शुरू हो गई है। अब जगदलपुर से रायपुर की दुसरी यानी रायपुर और जगदलपुर के बीच की दूरी छ: से सात घंटे की जगह सिर्फ 40 मिनट रह गई है।

साथियों, ये सरकार की नीतियों का ही असर है। कि अब ट्रेन में एसी डिब्‍बों में सफर करने वालों से ज्‍यादा यात्री हवाई जहाज में सफर कर रहे हैं। एक जमाने में रायपुर में तो दिनभर में सिर्फ छ: flight आती थी। अब वहां रायपुर एयरपोर्ट पर एक दिन में पचास flight आने जाने लग गई हैं। आने-जाने के इन नए साधनों से न सिर्फ राजधानी से दूरी घटेगी लेकिन पर्यटन बढ़ेगा, उद्योग धंधे लगेगे और साथ ही साथ रोजगार के नए अवसर भी तैयार होंगे।

साथियों, आज छत्‍तीसगढ़ ने आज बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है। नया रायपुर शहर देश का पहला green field smart city बन गया है। इसी कड़ी ने मुझे Integrated command and control  centre का उद्घाटन करने का मुझे अवसर मिला है।

पानी, बिजली, स्‍ट्रीट लाइट, सीवेज, ट्रांसपोर्ट अब पूरे शहर की निगरानी का काम इसी एक छोटे से सेंटर से हो रहा है। आधुनिक टेकनोलॉजी और डेटा के आधार पर ये सुविधाएं संचालित हो रही है। नया रायपुर अब देश के दूसरे स्‍मार्ट सिटीज के लिए भी एक मिसाल का काम करेगा।

जो छत्‍तीसगढ़ पिछड़ा, आदिवासियों का जंगलों का यही उसकी पहचान थी वो छत्‍तीसगढ़ आज देश में स्‍मार्ट सिटीज की पहचान बन रहा है। इससे बड़ा गर्व का विषय क्‍या हो सकता है।

साथियों, हमारी हर योजना देश के हर जन को सम्‍मान, सुरक्षा और स्‍वाभिमान का जीवन देने की तरह आगे बढ़ रही है। ये बड़ी वजह है कि पिछले चार वर्षों में छत्‍तीसगढ़ समेत देश के बड़े-बड़े हिस्‍सों में रिकॉर्ड संख्‍या में नौजवान मुख्‍यधारा से जुड़े हैं। देश के विकास से जुड़े हैं।

मैं मानता हूं किसी भी तरह की हिंसा का, हर तरह की साजिश का एक ही जवाब है, एक ही जवाब है, एक ही जवाब है- विकास, विकास और विकास। विकास से विकसित हुआ विश्‍वास हर तरह की हिंसा को खत्‍म कर देता है। और इसलिए केंद्र में बीजेपी के नेतृत्‍व में चल रही एनडीए सरकार हो या फिर छत्‍तीसगढ़ में रमन सिंह जी के नेतृत्‍व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार हो। हमने विकास के माध्‍यम से विश्‍वास का वातावरण बनाने का प्रयास किया है।

भाईयो और बहनों जब पिछली मैं छत्‍तीसगढ़ आया था तभी देश भर में ग्राम स्‍वराज अभियान की भी शुरुआत की गई थी। पिछले दो महीनों में इस अभियान का बहुत सकारात्‍मक असर पड़ा है। ये अभियान विशेषकर देश के 115 आंकाक्षी जिले यानी कि aspirational district  में चलाया जा रहा है।  जो विकास की दौड़ में पिछले 70 साल में पीछे रह गया था। इसमें छत्‍तीसगढ़ के भी 12 जिले शामिल हैं। इन जिलों में विकास के अलग-अलग पैमानों को ध्‍यान में रखते हुए नई ऊर्जा के साथ काम किया जा रहा है। गांव में सभी के पास बैंक खाते हों, गैस कनेक्‍शन  हो, हर घर में बिजली कनेक्‍शन हो, सभी का टीकाकरण हुआ हो, सभी को बीमा का सुरक्षा कवच मिला हो, हर घर में एलईडी बल्‍ब हो, ये सुनिश्चित किया जा रहा है।

ग्राम स्‍वराज अभियान जनभागीदारी का बहुत बड़ा माध्‍यम बना है। छत्‍तीसगढ़ के विकास में भी ये अभियान नए आयाम स्‍थापित करेगा। विश्‍वास के इस माहौल में गरीब को, आदिवासी को जो ताकत मिलती है उसकी तुलना कभी नहीं कर सकते इतनी ताकत मिलती है।  

छत्‍तीसगढ़ में जन-धन योजना के तहत और ये मैं सिर्फ छत्‍तीसगढ़ का आंकड़ा बता रहा हूं पूरे देश का आंकड़ा नहीं बता रहा हूं। छत्‍तीसगढ़ में जन-धन योजना के तहत एक करोड़ तीस लाख से ज्‍यादा गरीबों के बैंक अकाउंट खुले है। 37 लाख से ज्‍यादा शौचालयों के निर्माण से, 22 लाख गरीब परिवारों को उज्‍ज्‍वला योजना के जरिये मुफ्त कनेक्‍शन मिलने से गैस का, 26 लाख से ज्‍यादा लोगों को मुद्रा योजना के तहत बिना बैंक गारंटी कर्ज मिलने से, 60 लाख से ज्‍यादा गरीबों को 90 पैसे प्रतिदिन और एक रुपया महीना पर बीमा सुरक्षा कवच मिलने से, 13 लाख किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ मिलने से विकास की एक नई गाथा आज छत्‍तीसगढ़ की धरती पर लिखी गई है।

भाईयो और बहनों, यहां छत्‍तीसगढ़ में 7 लाख ऐसे घर थे जहां बिजली कनेक्‍शन नहीं था, प्रधानमंत्री सौभाग्‍य योजना के तहत साल भर में ही इनमें से करीब-करीब आधे घरों में यानी साढ़े तीन लाख घरों में बिजली कनेक्‍शन पहुंचाने का काम पूरा कर दिया गया है। लगभग 1100 ऐसे घर हैं जहां आजादी के इतने वर्षों के बाद भी बिजली नहीं पहुंची थी वहां अब बिजली पहुंच चुकी है। ये उजाला, ये प्रकाश विकास और विश्‍वास को घर-घर में रोशन कर रहा है।

साथियों, हमारी सरकार देश के हर बेघर को घर देने के मिशन पर भी काम कर रही है। पिछले चार साल में देश के शहरी और ग्रामीण इलाकों में एक करोड़ 15 लाख से ज्‍यादा घरों का निर्माण किया गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना के साथ ही पुरानी सरकारों के दौरान अधूरे बने मकानों को भी पूरा करने का काम हमनें आगे किया है। यहां छत्‍तीसगढ़ में भी करीब छ: लाख घर बनवाए जा चुके हैं। अभी दो-तीन दिन पहले ही सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना और ये मैं छत्‍तीसगढ़ के मध्‍यप्रदेश के या हमारे देश के अन्‍य भू-भाग के मध्‍यमवर्गीय परिवारों को खास कहना चाहता हूं। एक बड़ा अहम फैसला लिया है जिसका मध्‍यमवर्गीय परिवार को बहुत बड़ा फायदा होने वाला है। सरकार ने तय किया है कि मध्‍यम वर्गीय के लिए बन रहे घरों पर जो ब्‍याज में छूट दी जाती थी। वो घर लोगों को छोटे पड़ते थे। मांग थी कि जरा एरिया बढ़ाने की परमिशन मिल जाए। दायरा बढ़ा दिया जाए। भाईयो-बहनों मुझे गर्व होता है कि जनता जर्नादन की इस इच्‍छा को भी हमनें पूरा कर दिया है। यानी अब ज्‍यादा बड़े घरों पर भी वही छूट दे दी जाएगी। सरकार का ये फैसला विशेषकर मध्‍यम वर्ग को बहुत बड़ी राहत देने वाला है।

आज यहां केंद्र और राज्‍य सरकार की ऐसी अनेक योजना जैसे प्रधानमंत्री मातृत्‍व वंदना योजनाउजज्‍वला, मुद्रा और स्‍टेंडअप, बीमा योजना के लाभार्थियों को सर्टिफिकेट और चेक देने का मुझे अवसर मिला है। मैं सभी लाभार्थियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं और भविष्‍य के लिए मैं मंगल कामना करता हूं।

साथियों ये मात्र योजनाएं नहीं हैं। बल्कि गरीब, आदिवासी, वंचित, शोषित का वर्तमान और भविष्‍य उज्‍ज्‍वल बनाने वाले संकल्‍प है। हमारी सरकार आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आय बढ़ाने के लिए भी विशेष तौर पर कार्य कर रही है।

दो महीने पहले ही बीजापुर से मैंने वन-धन योजना की शुरुआत की थी। इसके वन-धन विकास केंद्र खोले जा रहे हैं। ये सुनिश्चित किया गया है। कि जंगल के उत्‍पादों का सही दाम मार्किट में मिलना चाहिए।

इस बजट में सरकार ने 22 हजार ग्रामीण हाटों को विकसित करने का भी ऐलान किया है। शुरुआती चरण में इस वर्ष हम 5 हजार हाट विकसित कर रहे हैं। सरकार का प्रयास है कि मेरे आदिवासी भाईयो को, किसानों को गांव से 5-6 किलोमीटर के दायरे में ऐसी व्‍यवस्‍था मिले जो उन्‍हें देश की किसी भी मंडी से टेक्‍नोलॉजी से कनेक्‍ट कर देगा।

इसके अलावा आदिवासियों के हितों को देखते हुए वन अधिकार कानून को और शक्ति से लागू किया जा रहा है। पिछले चार साल में छत्‍तीसगढ़ में करीब एक लाख आदिवासी, और आदिवासी समुदायों को बीस लाख एकड़ से ज्‍यादा जमीन का टाइटल दिया गया है।

सरकार ने बांस से जुड़े एक पुराने कानून में भी बदलाव  किया है। अब खेत में उगाया गया बांस आप आसानी से बेच सकते हैं। इस फैसले ने जंगलों में रहने वाले भाई-बहनों को अतिरिक्‍त कमाई का एक बड़ा साधन दिया है।

भाईयो और बहनों, सरकार आदिवासियों की शिक्षा, स्‍वाभिमान और सम्‍मान को ध्‍यान में रखते हुए भी काम कर रही है। आदिवासी बच्‍चों में शिक्षा का स्‍तर ऊपर उठाने के लिए देश भर में एकलव्‍य विद्यालय खोले जा रहे हैं।

यहां छत्‍तीसगढ़ में भी हर वो ब्‍लॉक जहां पर मेरे आदिवासी भाई-बहनों की आबादी पचास प्रतिशत से अघिक है। या कम से कम 20 हजार लोग इस वर्ग के रहते हैं वहां एकलव्‍य मॉडल रिहायशी स्‍कूल को रेजिडेंशल स्‍कूल बनाया जाएगा।

इसके अलावा देश की स्‍वतंत्रता में 1857 से लेकर के आदिवासियों के योगदान के बारे में देश और दुनिया को जागृत करने का भी एक बड़ा अभियान शुरू किया गया है। आजादी की लड़ाई में अपनी आहुति देने वाले महान आदिवासी स्‍वतंत्र सेनानियों के सम्‍मान में, अलग-अलग राज्‍यों में museum बनाए जा रहे हैं।

छत्‍तीसगढ़ के आर्थिक और सामाजिक infrastructure को बढ़ाने वाले इन योजनाओं से बस्‍तर से सरगुजा तक और रायगढ़ से राजनंद गांव तक आर्थिक और सामाजिक विकास में एकरूपता भी आएगी। प्रदेश में क्षेत्रीय असमान को समाप्‍त करने का अभियान भी तेज गति से पूरा होगा।  

और आज छत्‍तीसगढ़ में, मैं जब भिलाई प्‍लांट में जा रहा था। छत्‍तीसगढ़  ने जिस प्रकार से मेरा स्‍वागत और सम्‍मान किया, जैसे पूरा हिन्‍दुस्‍तान छत्‍तीसगढ़  की रोड पर छाया हुआ था। हिन्‍दुस्‍तान का कोई ऐसा कोना नहीं होगा जिसके आज मुझे दर्शन न हुए हों। जिनके आज मुझे आर्शीवाद न मिले हों।

मैं एक लघु भारत ये मेरा भिलाई और दुर्ग देश भर से यहां बसे हुए लोगों ने आज जो देश की एकता का माहौल मेरे सामने प्रस्‍तुत किया, देश की विविधता का माहौल प्रस्‍तुत किया। अपने-अपने राज्‍य की परंपरा के आधार पर आर्शीवाद दिए। मैं इन सभी लोगों का छत्‍तीसगढ़ का दुर्ग का और मेरी इस भिलाई का अन्‍त:करण पूर्वक आभार व्‍यक्‍त करता हूं।

मैंहा जब-जब छत्‍तीसगढ़  आथया,  तब-तब यहां नवा-नवा काम होता, नवा-नवा निर्माण के काम हर पई कुछ नवा कुछ बेहतर देखे भर मिलते छत्‍तीसगढ़ हर एक कीर्तिमान रचे के बाद खुद नवा लक्ष्‍य तय कर लेते इसी कारण यहां विकट विकास होवत है।

भाईयो और बहनों, नया छत्‍तीसगढ़ 2022 में न्‍यू इंडिया का रास्‍ता प्रशस्‍त करेगा मुझे विशवास है कि आपके आर्शीवाद से, आपके साथ से न्‍यू इंडिया का संकल्‍प अवश्‍य सिद्ध होगा इसी कामना के साथ मैं आप सबका ह्दय से अभिनंदन करते हुए, छत्‍तीसगढ़ सरकार को बधाई देते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।    

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मंच पर विराजमान गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्र में मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, सी आर पाटिल जी, गुजरात सरकार के अन्य मंत्री गण, सांसदगण, विधायक गण और गुजरात के कोने-कोने से यहां उपस्थित मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

मैं दो दिन से गुजरात में हूं। कल मुझे वडोदरा, दाहोद, भुज, अहमदाबाद और आज सुबह-सुबह गांधी नगर, मैं जहां-जहां गया, ऐसा लग रहा है, देशभक्ति का जवाब गर्जना करता सिंदुरिया सागर, सिंदुरिया सागर की गर्जना और लहराता तिरंगा, जन-मन के हृदय में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम, एक ऐसा नजारा था, एक ऐसा दृश्य था और ये सिर्फ गुजरात में नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने में है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में है। शरीर कितना ही स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन अगर एक कांटा चुभता है, तो पूरा शरीर परेशान रहता है। अब हमने तय कर लिया है, उस कांटे को निकाल के रहेंगे।

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साथियों,

1947 में जब मां भारती के टुकड़े हुए, कटनी चाहिए तो ये तो जंजीरे लेकिन कांट दी गई भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए। और उसी रात पहला आतंकवादी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की इच्छा थी कि पीओके वापस नहीं आता है, तब तक सेना रूकनी नहीं चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात मानी नहीं गई और ये मुजाहिदीन जो लहू चख गए थे, वो सिलसिला 75 साल से चला है। पहलगाम में भी उसी का विकृत रूप था। 75 साल तक हम झेलते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ जब युद्ध की नौबत आई, तीनों बार भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। और पाकिस्तान समझ गया कि लड़ाई में वो भारत से जीत नहीं सकते हैं और इसलिए उसने प्रॉक्सी वार चालू किया। सैन्‍य प्रशिक्षण होता है, सैन्‍य प्रशिक्षित आतंकवादी भारत भेजे जाते हैं और निर्दोष-निहत्थे लोग कोई यात्रा करने गया है, कोई बस में जा रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई टूरिस्‍ट बन कर जा रहा है। जहां मौका मिला, वह मारते रहे, मारते रहे, मारते रहे और हम सहते रहे। आप मुझे बताइए, क्या यह अब सहना चाहिए? क्या गोली का जवाब गोले से देना चाहिए? ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए? इस कांटे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए?

साथियों,

यह देश उस महान संस्कृति-परंपरा को लेकर चला है, वसुधैव कुटुंबकम, ये हमारे संस्कार हैं, ये हमारा चरित्र है, सदियों से हमने इसे जिया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हम अपने पड़ोसियों का भी सुख चाहते हैं। वह भी सुख-चैन से जिये, हमें भी सुख-चैन से जीने दें। ये हमारा हजारों साल से चिंतन रहा है। लेकिन जब बार-बार हमारे सामर्थ्य को ललकारा जाए, तो यह देश वीरों की भी भूमि है। आज तक जिसे हम प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते हैं। और इसका कारण है, जब आतंकवाद के 9 ठिकाने तय करके 22 मिनट में साथियों, 22 मिनट में, उनको ध्वस्त कर दिया। और इस बार तो सब कैमरा के सामने किया, सारी व्यवस्था रखी थी। ताकि हमारे घर में कोई सबूत ना मांगे। अब हमें सबूत नहीं देना पड़ रहा है, वो उस तरफ वाला दे रहा है। और मैं इसलिए कहता हूं, अब यह प्रॉक्सी वॉर नहीं कह सकते इसको क्योंकि जो आतंकवादियों के जनाजे निकले, 6 मई के बाद जिन का कत्ल हुआ, उस जनाजे को स्टेट ऑनर दिया गया पाकिस्तान में, उनके कॉफिन पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए, उनकी सेना ने उनको सैल्यूट दी, यह सिद्ध करता है कि आतंकवादी गतिविधियां, ये प्रॉक्सी वॉर नहीं है। यह आप की सोची समझी युद्ध की रणनीति है। आप वॉर ही कर रहे हैं, तो उसका जवाब भी वैसे ही मिलेगा। हम अपने काम में लगे थे, प्रगति की राह पर चले थे। हम सबका भला चाहते हैं और मुसीबत में मदद भी करते हैं। लेकिन बदले में खून की नदियां बहती हैं। मैं नई पीढ़ी को कहना चाहता हूं, देश को कैसे बर्बाद किया गया है? 1960 में जो इंडस वॉटर ट्रीटी हुई है। अगर उसकी बारीकी में जाएंगे, तो आप चौक जाएंगे। यहाँ तक तय हुआ है उसमें, कि जो जम्मू कश्मीर की अन्‍य नदियों पर डैम बने हैं, उन डैम का सफाई का काम नहीं किया जाएगा। डिसिल्टिंग नहीं किया जाएगा। सफाई के लिए जो नीचे की तरफ गेट हैं, वह नहीं खोले जाएंगे। 60 साल तक यह गेट नहीं खोले गए और जिसमें शत प्रतिशत पानी भरना चाहिए था, धीरे-धीरे इसकी कैपेसिटी काम हो गई, 2 परसेंट 3 परसेंट रह गया। क्या मेरे देशवासियों को पानी पर अधिकार नहीं है क्या? उनको उनके हक का पानी मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए क्या? और अभी तो मैंने कुछ ज्यादा किया नहीं है। अभी तो हमने कहा है कि हमने इसको abeyance में रखा है। वहां पसीना छूट रहा है और हमने डैम थोड़े खोल करके सफाई शुरू की, जो कूड़ा कचरा था, वह निकाल रहे हैं। इतने से वहां flood आ जाता है।

साथियों,

हम किसी से दुश्मनी नहीं चाहते हैं। हम सुख-चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। हम प्रगति भी इसलिए करना चाहते हैं कि विश्व की भलाई में हम भी कुछ योगदान कर सकें। और इसलिए हम एकनिष्ठ भाव से कोटि-कोटि भारतीयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। कल 26 मई था, 2014 में 26 मई, मुझे पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का अवसर मिला। और तब भारत की इकोनॉमी, दुनिया में 11 नंबर पर थी। हमने कोरोना से लड़ाई लड़ी, हमने पड़ोसियों से भी मुसीबतें झेली, हमने प्राकृतिक आपदा भी झेली। इन सब के बावजूद भी इतने कम समय में हम 11 नंबर की इकोनॉमी से चार 4 नंबर की इकोनॉमी पर पहुंच गए क्योंकि हमारा ये लक्ष्य है, हम विकास चाहते हैं, हम प्रगति चाहते हैं।

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और साथियों,

मैं गुजरात का ऋणी हूं। इस मिट्टी ने मुझे बड़ा किया है। यहां से मुझे जो शिक्षा मिली, दीक्षा मिली, यहां से जो मैं आप सबके बीच रहकर के सीख पाया, जो मंत्र आपने मुझे दिए, जो सपने आपने मेरे में संजोए, मैं उसे देशवासियों के काम आए, इसके लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि आज गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष, 2005 में इस कार्यक्रम को किया था। 20 वर्ष मनाने का और मुझे खुशी इस बात की हुई कि यह 20 साल के शहरी विकास की यात्रा का जय गान करने का कार्यक्रम नहीं बनाया। गुजरात सरकार ने उन 20 वर्ष में से जो हमने पाया है, जो सीखा है, उसके आधार पर आने वाले शहरी विकास को next generation के लिए उन्होंने उसका रोडमैप बनाया और आज वो रोड मैप गुजरात के लोगों के सामने रखा है। मैं इसके लिए गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री जी को, उनकी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

हम आज दुनिया की चौथी इकोनॉमी बने हैं। किसी को भी संतोष होगा कि अब जापान को भी पीछे छोड़ कर के हम आगे निकल गए हैं और मुझे याद है, हम जब 6 से 5 बने थे, तो देश में एक और ही उमंग था, बड़ा उत्साह था, खासकर के नौजवानों में और उसका कारण यह था कि ढाई सौ सालों तक जिन्होंने हम पर राज किया था ना, उस यूके को पीछे छोड़ करके हम 5 बने थे। लेकिन अब चार बनने का आनंद जितना होना चाहिए उससे ज्यादा तीन कब बनोगे, उसका दबाव बढ़ रहा है। अब देश इंतजार करने को तैयार नहीं है और अगर किसी ने इंतजार करने के लिए कहा, तो पीछे से नारा आता है, मोदी है तो मुमकिन है।

और इसलिए साथियों,

एक तो हमारा लक्ष्य है 2047, हिंदुस्तान विकसित होना ही चाहिए, no compromise… आजादी के 100 साल हम ऐसे ही नहीं बिताएंगे, आजादी के 100 साल ऐसे मनाएंगे, ऐसे मनाएंगे कि दुनिया में विकसित भारत का झंडा फहरता होगा। आप कल्पना कीजिए, 1920, 1925, 1930, 1940, 1942, उस कालखंड में चाहे भगत सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो, नेताजी सुभाष बाबू हो, वीर सावरकर हो, श्यामजी कृष्ण वर्मा हो, महात्मा गांधी हो, सरदार पटेल हो, इन सबने जो भाव पैदा किया था और देश की जन-मन में आजादी की ललक ना होती, आजादी के लिए जीने-मरने की प्रतिबद्धता ना होती, आजादी के लिए सहन करने की इच्छा शक्ति ना होती, तो शायद 1947 में आजादी नहीं मिलती। यह इसलिए मिली कि उस समय जो 25-30 करोड़ आबादी थी, वह बलिदान के लिए तैयार हो चुकी थी। अगर 25-30 करोड़ लोग संकल्पबद्ध हो करके 20 साल, 25 साल के भीतर-भीतर अंग्रेजों को यहां से निकाल सकते हैं, तो आने वाले 25 साल में 140 करोड़ लोग विकसित भारत बना भी सकते हैं दोस्तों। और इसलिए 2030 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, मैं समझता हूं कि हमने अभी से 30 में होंगे, 35… 35 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, हमने अभी से नेक्स्ट 10 ईयर का पहले एक प्लान बनाना चाहिए कि जब गुजरात के 75 होंगे, तब गुजरात यहां पहुंचेगा। उद्योग में यहां होगा, खेती में यहां होगा, शिक्षा में यहां होगा, खेलकूद में यहां होगा, हमें एक संकल्प ले लेना चाहिए और जब गुजरात 75 का हो, उसके 1 साल के बाद जो ओलंपिक होने वाला है, देश चाहता है कि वो ओलंपिक हिंदुस्तान में हो।

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और इसलिए साथियों,

जिस प्रकार से हमारा यह एक लक्ष्य है कि हम जब गुजरात के 75 साल हो जाए। और आप देखिए कि जब गुजरात बना, उस समय के अखबार निकाल दीजिए, उस समय की चर्चाएं निकाल लीजिए। क्या चर्चाएं होती थी कि गुजरात महाराष्ट्र से अलग होकर क्या करेगा? गुजरात के पास क्या है? समंदर है, खारा पाठ है, इधर रेगिस्तान है, उधर पाकिस्तान है, क्या करेगा? गुजरात के पास कोई मिनरल्स नहीं, गुजरात कैसे प्रगति करेगा? यह ट्रेडर हैं सारे… इधर से माल लेते हैं, उधर बेचते हैं। बीच में दलाली से रोजी-रोटी कमा करके गुजारा करते हैं। क्‍या करेंगे ऐसी चर्चा थी। वही गुजरात जिसके पास एक जमाने में नमक से ऊपर कुछ नहीं था, आज दुनिया को हीरे के लिए गुजरात जाना जाता है। कहां नमक, कहां हीरे! यह यात्रा हमने काटी है। और इसके पीछे सुविचारित रूप से प्रयास हुआ है। योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाएं हैं। हमारे यहां आमतौर पर गवर्नमेंट के मॉडल की चर्चा होती है कि सरकार में साइलोज, यह सबसे बड़ा संकट है। एक डिपार्टमेंट दूसरे से बात नहीं करता है। एक टेबल वाला दूसरे टेबल वाले से बात नहीं करता है, ऐसी चर्चा होती है। कुछ बातों में सही भी होगा, लेकिन उसका कोई सॉल्यूशन है क्या? मैं आज आपको बैकग्राउंड बताता हूं, यह शहरी विकास वर्ष अकेला नहीं, हमने उस समय हर वर्ष को किसी न किसी एक विशेष काम के लिए डेडिकेट करते थे, जैसे 2005 में शहरी विकास वर्ष माना गया। एक साल ऐसा था, जब हमने कन्या शिक्षा के लिए डेडिकेट किया था, एक वर्ष ऐसा था, जब हमने पूरा टूरिज्म के लिए डेडिकेट किया था। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी सब काम बंद करते थे, लेकिन सरकार के सभी विभागों को उस वर्ष अगर forest department है, तो उसको भी अर्बन डेवलपमेंट में वो contribute क्या कर सकता है? हेल्थ विभाग है, तो अर्बन डेवलपमेंट ईयर में वो contribute क्या कर सकता है? जल संरक्षण मंत्रालय है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? टूरिज्म डिपार्टमेंट है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? यानी एक प्रकार से whole of the government approach, इस भूमिका से ये वर्ष मनाया और आपको याद होगा, जब हमने टूरिज्म ईयर मनाया, तो पूरे राज्य में उसके पहले गुजरात में टूरिज्म की कल्पना ही कोई नहीं कर सकता था। विशेष प्रयास किया गया, उसी समय ऐड कैंपेन चलाया, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में, एक-एक चीज उसमें से निकली। उसी में से रण उत्‍सव निकला, उसी में से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बना। उसी में से आज सोमनाथ का विकास हो रहा है, गिर का विकास हो रहा है, अंबाजी जी का विकास हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स आ रही हैं। यानी एक के बाद एक चीजें डेवलप होने लगीं। वैसे ही जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया।

और मुझे याद है, मैं राजनीति में नया-नया आया था। और कुछ समय के बाद हम अहमदाबाद municipal कॉरपोरेशन सबसे पहले जीते, तब तक हमारे पास एक राजकोट municipality हुआ करती थी, तब वो कारपोरेशन नहीं थी। और हमारे एक प्रहलादभाई पटेल थे, पार्टी के बड़े वरिष्ठ नेता थे। बहुत ही इनोवेटिव थे, नई-नई चीजें सोचना उनका स्वभाव था। मैं नया राजनीति में आया था, तो प्रहलाद भाई एक दिन आए मिलने के लिए, उन्होंने कहा ये हमें जरा, उस समय चिमनभाई पटेल की सरकार थी, तो हमने चिमनभाई और भाजपा के लोग छोटे पार्टनर थे। तो हमें चिमनभाई को मिलकर के समझना चाहिए कि यह जो लाल बस अहमदाबाद की है, उसको जरा अहमदाबाद के बाहर जाने दिया जाए। तो उन्होंने मुझे समझाया कि मैं और प्रहलाद भाई चिमनभाई को मिलने गए। हमने बहुत माथापच्ची की, हमने कहा यह सोचने जैसा है कि लाल बस अहमदाबाद के बाहर गोरा, गुम्‍मा, लांबा, उधर नरोरा की तरफ आगे दहेगाम की तरफ, उधर कलोल की तरफ आगे उसको जाने देना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन का विस्तार करना चाहिए, तो सरकार के जैसे सचिवों का स्वभाव रहता है, यहां बैठे हैं सारे, उस समय वाले तो रिटायर हो गए। एक बार एक कांग्रेसी नेता को पूछा गया था कि देश की समस्याओं का समाधान करना है तो दो वाक्य में बताइए। कांग्रेस के एक नेता ने जवाब दिया था, वो मुझे आज भी अच्छा लगता है। यह कोई 40 साल पहले की बात है। उन्होंने कहा, देश में दो चीजें होनी चाहिए। एक पॉलीटिशियंस ना कहना सीखें और ब्यूरोक्रेट हां कहना सीखे! तो उससे सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। पॉलीटिशियंस किसी को ना नहीं कहता और ब्यूरोक्रेट किसी को हां नहीं कहता। तो उस समय चिमनभाई के पास गए, तो उन्‍होंने पूछा सबसे, हम दोबारा गए, तीसरी बार गए, नहीं-नहीं एसटी को नुकसान हो जाएगा, एसटी को कमाई बंद हो जाएगी, एसटी बंद पड़ जाएगी, एसटी घाटे में चल रही है। लाल बस वहां नहीं भेज सकते हैं, यह बहुत दिन चला। तीन-चार महीने तक हमारी माथापच्ची चली। खैर, हमारा दबाव इतना था कि आखिर लाल बस को लांबा, गोरा, गुम्‍मा, ऐसा एक्सटेंशन मिला, उसका परिणाम है कि अहमदाबाद का विस्तार तेजी से उधर सारण की तरफ हुआ, इधर दहेगाम की तरफ हुआ, उधर कलोल की तरह हुआ, उधर अहमदाबाद की तरह हुआ, तो अहमदाबाद की तरफ जो प्रेशर, एकदम तेजी से बढ़ने वाला था, उसमें तेजी आई, बच गए छोटी सी बात थी, तब जाकर के, मैं तो उस समय राजनीति में नया था। मुझे कोई ज्यादा इन चीजों को मैं जानता भी नहीं था। लेकिन तब समझ में आता था कि हम तत्कालीन लाभ से ऊपर उठ करके सचमुच में राज्य की और राज्य के लोगों की भलाई के लिए हिम्मत के साथ लंबी सोच के साथ चलेंगे, तो बहुत लाभ होगा। और मुझे याद है जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया, तो पहला काम आया, यह एंक्रोचमेंट हटाने का, अब जब एंक्रोचमेंट हटाने की बात आती हे, तो सबसे पहले रुकावट बनता है पॉलिटिकल आदमी, किसी भी दल का हो, वो आकर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसको लगता है, मेरे वोटर है, तुम तोड़ रहे हो। और अफसर लोग भी बड़े चतुर होते हैं। जब उनको कहते हैं कि भई यह सब तोड़ना है, तो पहले जाकर वो हनुमान जी का मंदिर तोड़ते हैं। तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है कि कोई भी पॉलिटिशयन डर जाता है, उसको लगता है कि हनुमान जी का मंदिर तोड़ दिया तो हो… हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। उस समय हमारे …..(नाम स्पष्ट नहीं) अर्बन मिनिस्टर थे। और उसका परिणाम यह आया कि रास्ते चौड़े होने लगे, तो जिसका 2 फुट 4 फुट कटता था, वह चिल्लाता था, लेकिन पूरा शहर खुश हो जाता था। इसमें एक स्थिति ऐसी बनी, बड़ी interesting है। अब मैंने तो 2005 अर्बन डेवलपमेंट ईयर घोषित कर दिया। उसके लिए कोई 80-90 पॉइंट निकाले थे, बडे interesting पॉइंट थे। तो पार्टी से ऐसी मेरी बात हुई थी कि भाई ऐसा एक अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा, जरा सफाई वगैरह के कामों में सब को जोड़ना पड़ेगा ऐसा, लेकिन जब ये तोड़ना शुरू हुआ, तो मेरी पार्टी के लोग आए, ये बड़ा सीक्रेट बता रहा हूं मैं, उन्होंने कहा साहब ये 2005 में तो अर्बन बॉडी के चुनाव है, हमारी हालत खराब हो जाएगी। यह सब तो चारों तरफ तोड़-फोड़ चल रही है। मैंने कहा यार भई यह तो मेरे ध्यान में नहीं रहा और सच में मेरे ध्यान में वो चुनाव था ही नहीं। अब मैंने कार्यक्रम बना दिया, अब साहब मेरा भी एक स्वभाव है। हम तो बचपन से पढ़ते आए हैं- कदम उठाया है तो पीछे नहीं हटना है। तो मैंने मैंने कहा देखो भाई आपकी चिंता सही है, लेकिन अब पीछे नहीं हट सकते। अब तो ये अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा। हार जाएंगे, चुनाव क्या है? जो भी होगा हम किसी का बुरा करना नहीं चाहते, लेकिन गुजरात में शहरों का रूप रंग बदलना बहुत जरूरी है।

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साथियों,

हम लोग लगे रहे। काफी विरोध भी हुआ, काफी आंदोलन हुए बहुत परेशानी हुई। यहां मीडिया वालों को भी बड़ा मजा आ गया कि मोदी अब शिकार आ गया हाथ में, तो वह भी बड़ी पूरी ताकत से लग गए थे। और उसके बाद जब चुनाव हुआ, देखिए मैं राजनेताओं को कहता हूं, मैं देश भर के राजनेता मुझे सुनते हैं, तो देखना कहता हूं, अगर आपने सत्यनिष्ठा से, ईमानदारी से लोगों की भलाई के लिए निर्णय करते हैं, तत्कालीन भले ही बुरा लगे, लोग साथ चलते हैं। और उस समय जो चुनाव हुआ 90 परसेंट विक्ट्री बीजेपी की हुई थी, 90 परसेंट यानी लोग जो मानते हैं कि जनता ये नहीं और मुझे याद है। अब यह जो यहां अटल ब्रिज बना है ना तो मुझे, यह साबरमती रिवर फ्रंट पर, तो पता नहीं क्यों मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था। कई कार्यक्रम थे, तो मैंने कहा चलो भई हम भी देखने जाते हैं, तो मैं जरा वो अटल ब्रिज पर टहलने गया, तो वहां मैंने देखा कुछ लोगों ने पान की पिचकारियां लगाई हुई थी। अभी तो उद्घाटन होना था, लेकिन कार्यक्रम हो गया था। तो मेरा दिमाग, मैंने कहा इस पर टिकट लगाओ। तो ये सारे लोग आ गए साहब चुनाव है, उसी के बाद चुनाव था, बोले टिकट नहीं लगा सकते मैंने कहा टिकट लगाओ वरना यह तुम्हारा अटल ब्रिज बेकार हो जाएगा। फिर मैं दिल्ली गया, मैंने दूसरे दिन फोन करके पूछा, मैंने कहा क्या हुआ टिकट लगाने का एक दिन भी बिना टिकट नहीं चलना चाहिए।

साथियों,

खैर मेरा मान-सम्मान रखते हैं सब लोग, आखिर के हमारे लोगों ने ब्रिज पर टिकट लगा दिया। आज टिकट भी हुआ, चुनाव भी जीते दोस्तों और वो अटल ब्रिज चल रहा है। मैंने कांकरिया का पुनर्निर्माण का कार्यक्रम लिया, उस पर टिकट लगाया तो कांग्रेस ने बड़ा आंदोलन किया। कोर्ट में चले गए, लेकिन वह छोटा सा प्रयास पूरे कांकरिया को बचा कर रखा हुआ है और आज समाज का हर वर्ग बड़ी सुख-चैन से वहां जाता है। कभी-कभी राजनेताओं को बहुत छोटी चीजें डर जाते हैं। समाज विरोधी नहीं होता है, उसको समझाना होता है। वह सहयोग करता है और अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। देखिए शहरी शहरी विकास की एक-एक चीज इतनी बारीकी से बनाई गई और उसी का परिणाम था और मैं आपको बताता हूं। यह जो अब मुझ पर दबाव बढ़ने वाला है, वो already शुरू हो गया कि मोदी ठीक है, 4 नंबर तो पहुंच गए, बताओ 3 कब पहुंचोगे? इसकी एक जड़ी-बूटी आपके पास है। अब जो हमारे ग्रोथ सेंटर हैं, वो अर्बन एरिया हैं। हमें अर्बन बॉडीज को इकोनॉमिक के ग्रोथ सेंटर बनाने का प्लान करना होगा। अपने आप जनसंख्या के कारण वृद्धि होती चले, ऐसे शहर नहीं हो सकते हैं। शहर आर्थिक गतिविधि के तेजतर्रार केंद्र होने चाहिए और अब तो हमने टीयर 2, टीयर 3 सीटीज पर भी बल देना चाहिए और वह इकोनॉमिक एक्टिविटी के सेंटर बनने चाहिए और मैं तो पूरे देश की नगरपालिका, महानगरपालिका के लोगों को कहना चाहूंगा। अर्बन बॉडी से जुड़े हुए सब लोगों से कहना चाहूंगा कि वे टारगेट करें कि 1 साल में उस नगर की इकोनॉमी कहां से कहां पहुंचाएंगे? वहां की अर्थव्यवस्था का कद कैसे बढ़ाएंगे? वहां जो चीजें मैन्युफैक्चर हो रही हैं, उसमें क्वालिटी इंप्रूव कैसे करेंगे? वहां नए-नए इकोनॉमिक एक्टिविटी के रास्ते कौन से खोलेंगे। ज्यादातर मैंने देखा नगर पालिका की जो नई-नई बनती हैं, तो क्या करते हैं, एक बड़ा शॉपिंग सेंटर बना देते हैं। पॉलिटिशनों को भी जरा सूट करता है वह, 30-40 दुकानें बना देंगे और 10 साल तक लेने वाला नहीं आता है। इतने से काम नहीं चलेगा। स्टडी करके और खास करके जो एग्रो प्रोडक्ट हैं। मैं तो टीयर 2, टीयर 3 सीटी के लिए कहूंगा, जो किसान पैदावार करता है, उसका वैल्यू एडिशन, यह नगर पालिकाओं में शुरू हो, आस-पास से खेती की चीजें आएं, उसमें से कुछ वैल्यू एडिशन हो, गांव का भी भला होगा, शहर का भी भला होगा।

उसी प्रकार से आपने देखा होगा इन दिनों स्टार्टअप, स्टार्टअप में भी आपके ध्यान में आया होगा कि पहले स्‍टार्टअप बड़े शहर के बड़े उद्योग घरानों के आसपास चलते थे, आज देश में करीब दो लाख स्टार्टअप हैं। और ज्यादातर टीयर 2, टीयर 3 सीटीज में है और इसमें भी गर्व की बात है कि उसमें काफी नेतृत्व हमारी बेटियों के पास है। स्‍टार्टअप की लीडरशिप बेटियों के पास है। ये बहुत बड़ी क्रांति की संभावनाओं को जन्म देता है और इसलिए मैं चाहूंगा कि अर्बन डेवलपमेंट ईयर के जब 20 साल मना रहे हैं और एक सफल प्रयोग को हम याद करके आगे की दिशा तय करते हैं तब हम टीयर 2, टीयर 3 सीटीज को बल दें। शिक्षा में भी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज काफी आगे रहा, इस साल देख लीजिए। पहले एक जमाना था कि 10 और 12 के रिजल्ट आते थे, तो जो नामी स्कूल रहते थे बड़े, उसी के बच्चे फर्स्ट 10 में रहते थे। इन दिनों शहरों की बड़ी-बड़ी स्कूलों का नामोनिशान नहीं होता है, टीयर 2, टीयर 3 सीटीज के स्कूल के बच्चे पहले 10 में आते हैं। देखा होगा आपने गुजरात में भी यही हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे छोटे शहरों के पोटेंशियल, उसकी ताकत बढ़ रही है। खेल का देखिए, पहले क्रिकेट देखिए आप, क्रिकेट तो हिंदुस्तान में हम गली-मोहल्ले में खेला जाता है। लेकिन बड़े शहर के बड़े रहीसी परिवारों से ही खेलकूद क्रिकेट अटका हुआ था। आज सारे खिलाड़ी में से आधे से ज्यादा खिलाड़ी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज गांव के बच्चे हैं जो खेल में इंटरनेशनल खेल खेल कर कमाल करते हैं। यानी हम समझें कि हमारे शहरों में बहुत पोटेंशियल है। और जैसा मनोहर जी ने भी कहां और यहां वीडियो में भी दिखाया गया, यह हमारे लिए बहुत बड़ी opportunity है जी, 4 में से 3 नंबर की इकोनॉमी पहुंचने के लिए हम हिंदुस्तान के शहरों की अर्थव्यवस्था पर अगर फोकस करेंगे, तो हम बहुत तेजी से वहां भी पहुंच पाएंगे।

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साथियों,

ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक ऐसे ही इकोसिस्टम ने जमीनों में अपनी जड़े ऐसी जमा हुई हैं कि भारत के सामर्थ्य को हमेशा नीचा दिखाने में लगी हैं। वैचारिक विरोध के कारण व्यवस्थाओं के विकास का अस्वीकार करने का उनका स्वभाव बन गया है। व्यक्ति के प्रति पसंद-नापसंद के कारण उसके द्वारा किये गए हर काम को बुरा बता देना एक फैशन का तरीका चल पड़ा है और उसके कारण देश की अच्‍छी चीजों का नुकसान हुआ है। ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। अब आप देखिए, हमने शहरी विकास पर तो बल दिया, लेकिन वैसा ही जब आपने दिल्‍ली भेजा, तो हमने एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट, एस्पिरेशनल ब्लॉक पर विचार किया कि हर राज्य में एकाध जिला, एकाध तहसील ऐसी होती है, जो इतना पीछे होता है, कि वो स्‍टेट की सारी एवरेज को पीछे खींच ले जाता है। आप जंप लगा ही नहीं सकते, वो बेड़ियों की तरह होता है। मैंने कहा, पहले इन बेड़ियों को तोड़ना है और देश में 100 के करीब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उनको identify किया गया। 40 पैरामीटर से देखा गया कि यहां क्या जरूरत है। अब 500 ब्‍लॉक्‍स identify किए हैं, whole of the government approach के साथ फोकस किया गया। यंग अफसरों को लगाया गया, फुल टैन्‍यूर के साथ काम करें, ऐसा लगाया। आज दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुका है और जो डेवलपिंग कंट्रीज हैं उनको भी लग रहा है कि हमारे यहां विकास के इस मॉडल की ओर हमें चलना चाहिए। हमारा academic world भारत के इन प्रयासों और सफल प्रयासों के विषय में सोचे और जब academic world इस पर सोचता है तो दुनिया के लिए भी वो एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में काम आता है।

साथियों,

आने वाले दिनों में टूरिज्म पर हमें बल देना चाहिए। गुजरात ने कमाल कर दिया है जी, कोई सोच सकता है। कच्छ के रेगिस्तान में जहां कोई जाने का नाम नहीं लेता था, वहां आज जाने के लिए बुकिंग नहीं मिलती है। चीजों को बदला जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचा स्टैच्यू, ये अपने आप में अद्भुत है। मुझे बताया गया कि वडनगर में जो म्यूजियम बना है। कल मुझे एक यूके के एक सज्‍जन मिले थे। उन्होंने कहा, मैं वडनगर का म्यूजियम देखने जा रहा हूं। यह इंटरनेशनल लेवल में इतने global standard का कोई म्यूजियम बना है और भारत में काशी जैसे बहुत कम जगह है कि जो अविनाशी हैं। जो कभी भी मृतप्राय नहीं हुए, जहां हर पल जीवन रहा है, उसमें एक वडनगर हैं, जिसमें 2800 साल तक के सबूत मिले हैं। अभी हमारा काम है कि वह इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर कैसे आए? हमारा लोथल जहां हम एक म्यूजियम बना रहे हैं, मैरीटाइम म्यूजियम, 5 हजार साल पहले मैरीटाइम में दुनिया में हमारा डंका बजता था। धीरे-धीरे हम भूल गए, लोथल उसका जीता-जागता उदाहरण है। लोथल में दुनिया का सबसे बड़ा मैरीटाइम म्यूजियम बन रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इन चीजों का कितना लाभ होने वाला है और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तों, 2005 का वो समय था, जब पहली बार गिफ्ट सिटी के आईडिया को कंसीव किया गया और मुझे याद है, शायद हमने इसका launching Tagore Hall में किया था। तो उसके बड़े-बड़े जो हमारे मन में डिजाइन थे, उसके चित्र लगाए थे, तो मेरे अपने ही लोग पूछ रहे थे। यह होगा, इतने बड़े बिल्डिंग टावर बनेंगे? मुझे बराबर याद है, यानी जब मैं उसका मैप वगैरह और उसका प्रेजेंटेशन दिखाता था केंद्र के कुछ नेताओं को, तो वह भी मुझे कह रहे थे अरे भारत जैसे देश में ये क्या कर रहे हो तुम? मैं सुनता था आज वो गिफ्ट सिटी हिंदुस्तान का हर राज्य कह रहा है कि हमारे यहां भी एक गिफ्ट सिटी होना चाहिए।

साथियों,

एक बार कल्पना करते हुए उसको जमीन पर, धरातल पर उतारने का अगर हम प्रयास करें, तो कितने बड़े अच्छे परिणाम मिल सकते हैं, ये हम भली भांति देख रहे हैं। वही काल खंड था, रिवरफ्रंट को कंसीव किया, वहीं कालखंड था जब दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाने का सपना देखा, पूरा किया। वही कालखंड था, दुनिया का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बनाने के लिए सोचा, पूरा किया।

भाइयों और बहनों,

एक बार हम मान के चले, हमारे देश में potential बहुत हैं, बहुत सामर्थ्‍य है।

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साथियों,

मुझे पता नहीं क्यों, निराशा जैसी चीज मेरे मन में आती ही नहीं है। मैं इतना आशावादी हूं और मैं उस सामर्थ्य को देख पाता हूं, मैं दीवारों के उस पार देख सकता हूं। मेरे देश के सामर्थ्य को देख सकता हूं। मेरे देशवासियों के सामर्थ्य को देख सकता हूं और इसी के भरोसे हम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और इसलिए आज मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे यहां आने का मौका दिया है। कुछ ऐसी पुरानी-पुरानी बातें ज्यादातर ताजा करने का मौका मिल गया। लेकिन आप विश्वास करिए दोस्तों, गुजरात की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम देने वाले लोग हैं, हमें देश को हमेशा देना चाहिए। और हम इतनी ऊंचाई पर गुजरात को ले जाए, इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि देशवासियों के लिए गुजरात काम आना चाहिए दोस्तों, इस महान परंपरा को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। मुझे विश्वास है, गुजरात एक नए सामर्थ्य के साथ अनेक विद नई कल्पनाओं के साथ, अनेक विद नए इनीशिएटिव्स के साथ आगे बढ़ेगा मुझे मालूम है। मेरा भाषण शायद कितना लंबा हो गया होगा, पता नहीं क्या हुआ? लेकिन कल मीडिया में दो-तीन चीजें आएंगी। वो भी मैं बता देता हूं, मोदी ने अफसरों को डांटा, मोदी ने अफसरों की धुलाई की, वगैरह-वगैरह-वगैरह, खैर वो तो कभी-कभी चटनी होती है ना इतना ही समझ लेना चाहिए, लेकिन जो बाकी बातें मैंने याद की है, उसको याद कर करके जाइए और ये सिंदुरिया मिजाज! ये सिंदुरिया स्पिरिट, दोस्‍तों 6 मई को, 6 मई की रात। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से प्रारंभ हुआ था। लेकिन अब ये ऑपरेशन सिंदूर जन-बल से आगे बढ़ेगा और जब मैं सैन्य बल और जन-बल की बात करता हूं तब, ऑपरेशन सिंदूर जन बल का मतलब मेरा होता है जन-जन देश के विकास के लिए भागीदार बने, दायित्‍व संभाले।

हम इतना तय कर लें कि 2047, जब भारत के आजादी के 100 साल होंगे। विकसित भारत बनाने के लिए तत्काल भारत की इकोनॉमी को 4 नंबर से 3 नंबर पर ले जाने के लिए अब हम कोई विदेशी चीज का उपयोग नहीं करेंगे। हम गांव-गांव व्यापारियों को शपथ दिलवाएं, व्यापारियों को कितना ही मुनाफा क्यों ना हो, आप विदेशी माल नहीं बेचोगे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, गणेश जी भी विदेशी आ जाते हैं। छोटी आंख वाले गणेश जी आएंगे। गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। होली, होली रंग छिड़कना है, बोले विदेशी, हमें पता था आप भी अपने घर जाकर के सूची बनाना। सचमुच में ऑपरेशन सिंदूर के लिए एक नागरिक के नाते मुझे एक काम करना है। आप घर में जाकर सूची बनाइए कि आपके घर में 24 घंटे में सुबह से दूसरे दिन सुबह तक कितनी विदेशी चीजों का उपयोग होता है। आपको पता ही नहीं होता है, आप hairpin भी विदेशी उपयोग कर लेते हैं, कंघा भी विदेशी होता है, दांत में लगाने वाली जो पिन होती है, वो भी विदेशी घुस गई है, हमें मालूम तक नहीं है। पता ही नहीं है दोस्‍तों। देश को अगर बचाना है, देश को बनाना है, देश को बढ़ाना है, तो ऑपरेशन सिंदूर यह सिर्फ सैनिकों के जिम्‍मे नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर 140 करोड़ नागरिकों की जिम्‍मे है। देश सशक्त होना चाहिए, देश सामर्थ्‍य होना चाहिए, देश का नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए और इसके लिए हमने वोकल फॉर लोकल, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, मैं मेरे यहां, जो आपके पास है फेंक देने के लिए मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन अब नया नहीं लेंगे और शायद एकाध दो परसेंट चीजें ऐसी हैं, जो शायद आपको बाहर की लेनी पड़े, जो हमारे यहां उपलब्ध ना हो, बाकि आज हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं। आपने देखा होगा, आज से पहले 25 साल 30 साल पहले विदेश से कोई आता था, तो लोग लिस्ट भेजते थे कि ये ले आना, ये ले आना। आज विदेश से आते हैं, वो पूछते हैं कि कुछ लाना है, तो यहां वाले कहते हैं कि नहीं-नहीं यहां सब है, मत लाओ। सब कुछ है, हमें अपनी ब्रांड पर गर्व होना चाहिए। मेड इन इंडिया पर गर्व होना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर सैन्‍य बल से नहीं, जन बल से जीतना है दोस्तों और जन बल आता है मातृभूमि की मिट्टी में पैदा हुई हर पैदावार से आता है। इस मिट्टी की जिसमें सुगंध हो, इस देश के नागरिक के पसीने की जिसमें सुगंध हो, उन चीजों का मैं इस्तेमाल करूंगा, अगर मैं ऑपरेशन सिंदूर को जन-जन तक, घर-घर तक लेकर जाता हूं। आप देखिए हिंदुस्तान को 2047 के पहले विकसित राष्ट्र बनाकर रहेंगे और अपनी आंखों के सामने देखकर जाएंगे दोस्तों, इसी इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए,

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

भारत माता की जय! जरा तिरंगे ऊपर लहराने चाहिए।

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

धन्यवाद!