प्रधानमंत्री ने कम्युनिटी मेडिएशन ट्रेनिंग मॉड्यूल लॉन्च किया
जब न्याय सभी के लिए सुलभ हो, समय पर मिले और किसी व्यक्ति की सामाजिक या आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना हर नागरिक तक पहुंचे- तभी वह वास्तव में सामाजिक न्याय की नींव बनता हैः प्रधानमंत्री
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज ऑफ लिविंग तभी संभव है, जब ईज ऑफ जस्टिस भी सुनिश्चित हो। हाल के वर्षों में ईज ऑफ जस्टिस को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं और आगे इस दिशा में प्रयास और तेज़ किए जाएंगेः प्रधानमंत्री
मेडिएशन हमारी सभ्यता का एक पुराना हिस्सा रहा है। नया मेडिएशन अधिनियम इसी परंपरा को आधुनिक रूप में आगे बढ़ाता हैः प्रधानमंत्री
आज तकनीक समावेशन और सशक्तिकरण का एक मजबूत माध्यम बनकर उभरी है। न्याय व्यवस्था में ई कोर्ट परियोजना इस परिवर्तन का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैः प्रधानमंत्री
जब लोग कानून को अपनी भाषा में समझते हैं, तो नियमों का पालन बेहतर होता है और मुकदमों की संख्या कम होती है। इसलिए आवश्यक है कि न्यायिक फैसले और कानूनी दस्तावेज स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराए जाएं: प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज सर्वोच्च न्यायालय में "कानूनी सहायता वितरण तंत्र को सुदृढ़ बनाने" विषयक राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्थित होना उनके लिए अत्यंत विशेष है। उन्होंने उल्लेख किया कि कानूनी सहायता वितरण तंत्र को मजबूत बनाने और विधिक सेवा दिवस से जुड़े कार्यक्रमों से भारत की न्यायिक व्यवस्था को नई मजबूती मिलेगी। प्रधानमंत्री ने 20वें राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए सभी को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों, न्यायपालिका के सदस्यों और विधिक सेवा प्राधिकरणों के प्रतिनिधियों का अभिवादन भी किया।

प्रधानमंत्री ने कहा, "जब न्याय सभी के लिए सुलभ हो, समय पर हो और हर व्यक्ति तक उसकी सामाजिक या वित्तीय पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना पहुंचे, तभी यह सही मायने में सामाजिक न्याय की नींव बनता है।" उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी पहुंच सुनिश्चित करने में कानूनी सहायता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि राष्ट्रीय स्तर से लेकर तालुका स्तर तक, विधिक सेवा प्राधिकरण न्यायपालिका और आम नागरिक के बीच सेतु का काम करते हैं। श्री मोदी ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि लोक अदालतों और मुकदमे-पूर्व समझौतों के माध्यम से लाखों विवादों का शीघ्रता से, सौहार्दपूर्ण ढंग से और कम लागत पर समाधान हो रहा है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा शुरू की गई कानूनी सहायता बचाव परामर्श प्रणाली के तहत केवल तीन वर्षों में लगभग 8 लाख आपराधिक मामलों का समाधान किया गया है। उन्होंने कहा कि इन प्रयासों से देश भर में गरीबों, शोषितों, वंचितों और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए न्याय में आसानी सुनिश्चित हुई है।

पिछले 11 वर्षों में सरकार द्वारा लगातार 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' और 'ईज़ ऑफ लिविंग' को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करने पर ज़ोर देते हुए, श्री मोदी ने बताया कि व्यवसायों के लिए 40,000 से ज़्यादा अनावश्यक अनुपालनों को हटा दिया गया है। जन विश्वास अधिनियम के माध्यम से, 3,400 से ज़्यादा कानूनी प्रावधानों को गैर-अपराधीकरण किया गया है और 1,500 से ज़्यादा अप्रचलित कानूनों को निरस्त किया गया है। उन्होंने बताया कि लंबे समय से चले आ रहे कानूनों की जगह अब 'भारतीय न्याय संहिता' ने ले ली है।

प्रधानमंत्री ने दोहराया, "कारोबार में आसानी और जीवनयापन में आसानी तभी संभव है जब न्याय में आसानी भी सुनिश्चित हो। हाल के वर्षों में, न्याय में आसानी बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं और आगे भी हम इस दिशा में प्रयासों में तेज़ी लाएँगे।"

इस वर्ष राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) (नालसा) के 30 वर्ष पूरे होने का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले तीन दशकों में, नालसा ने न्यायपालिका को देश के वंचित नागरिकों से जोड़ने का काम किया है। उन्होंने कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरणों से संपर्क करने वालों के पास अक्सर संसाधनों, प्रतिनिधित्व और कभी-कभी तो आशा की भी कमी होती है। उन्होंने कहा कि उन्हें आशा और सहायता प्रदान करना ही "सेवा" शब्द का सही अर्थ है, जो NALSA (नालसा) के नाम में निहित है। श्री मोदी ने विश्वास व्यक्त किया कि NALSA (नालसा) का प्रत्येक सदस्य धैर्य और पेशेवरता के साथ सेवा करता रहेगा।

नालसा के सामुदायिक मध्यस्थता प्रशिक्षण मॉड्यूल के शुभारंभ की घोषणा करते हुए, श्री मोदी ने कहा कि यह संवाद और आम सहमति से विवादों को सुलझाने की प्राचीन भारतीय परंपरा को पुनर्जीवित करता है। ग्राम पंचायतों से लेकर गांव के बुजुर्गों तक, मध्यस्थता हमेशा से भारतीय सभ्यता का अभिन्न अंग रही है। उन्होंने कहा कि नया मध्यस्थता अधिनियम इस परंपरा को आधुनिक रूप में आगे बढ़ा रहा है। प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि यह प्रशिक्षण मॉड्यूल सामुदायिक मध्यस्थता के लिए संसाधन तैयार करने में मदद करेगा, जिससे विवादों को सुलझाने, सद्भाव बनाए रखने और मुकदमेबाजी को कम करने में मदद मिलेगी।

श्री मोदी ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि तकनीक निस्संदेह एक परिवर्तनकारी शक्ति है, लेकिन जब इसका ध्यान जन-हितैषी होता है, तो यह लोकतंत्रीकरण का एक शक्तिशाली साधन बन जाती है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे यूपीआई ने डिजिटल भुगतान में क्रांति ला दी है, जिससे छोटे से छोटे विक्रेता भी डिजिटल अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन सके। उन्होंने कहा कि गांवों को लाखों किलोमीटर ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ा गया है, और कुछ ही हफ़्ते पहले, ग्रामीण क्षेत्रों में एक साथ लगभग एक लाख मोबाइल टावरों का शुभारंभ किया गया। उन्होंने कहा कि तकनीक अब समावेशिता और सशक्तिकरण के माध्यम के रूप में काम कर रही है। प्रधानमंत्री ने ई-कोर्ट परियोजना को एक उल्लेखनीय उदाहरण बताया कि कैसे तकनीक न्यायिक प्रक्रियाओं को आधुनिक और मानवीय बना सकती है। उन्होंने बताया कि ई-फाइलिंग, इलेक्ट्रॉनिक समन, वर्चुअल सुनवाई और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसे कदमों ने न्याय प्रक्रिया को सरल और अधिक सुलभ बना दिया है। प्रधानमंत्री ने जानकारी दी कि ई कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण का बजट बढ़ाकर 7,000 करोड़ रुपये से अधिक कर दिया गया है, जो सरकार की इस पहल के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

प्रधानमंत्री ने कानूनी जागरूकता के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि एक गरीब व्यक्ति तब तक न्याय तक नहीं पहुंच सकता, जब तक वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न हो, कानून को न समझे और व्यवस्था की जटिलता के डर को दूर न करे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि कमज़ोर वर्गों, महिलाओं और बुज़ुर्गों में कानूनी जागरूकता बढ़ाना प्राथमिकता है। प्रधानमंत्री ने इस दिशा में क़ानूनी संस्थाओं और न्यायपालिका द्वारा किए जा रहे निरंतर प्रयासों की सराहना की। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि युवा, विशेषकर क़ानून के छात्र, एक परिवर्तनकारी भूमिका निभा सकते हैं। श्री मोदी ने सुझाव दिया कि यदि क़ानून के छात्रों को ग़रीबों और ग्रामीण समुदायों के साथ जुड़कर उनके क़ानूनी अधिकारों और प्रक्रियाओं को समझाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए, तो उन्हें समाज की नब्ज़ को सीधे समझने में मदद मिलेगी। उन्होंने आगे कहा कि स्वयं सहायता समूहों, सहकारी समितियों, पंचायती राज संस्थाओं और अन्य मज़बूत ज़मीनी नेटवर्क के साथ मिलकर क़ानूनी ज्ञान हर घर तक पहुंचाया जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने कानूनी सहायता के एक और महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डाला, जिस पर वे अक्सर ज़ोर देते हैं: न्याय उस भाषा में दिया जाना चाहिए जिसे प्राप्तकर्ता समझ सके। उन्होंने कहा कि कानूनों का मसौदा तैयार करते समय इस सिद्धांत पर विचार किया जाना चाहिए। जब ​​लोग कानून को अपनी भाषा में समझते हैं, तो इससे बेहतर अनुपालन होता है और मुकदमेबाजी कम होती है। उन्होंने स्थानीय भाषाओं में फैसले और कानूनी दस्तावेज़ उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। श्री मोदी ने 80,000 से ज़्यादा फैसलों का 18 भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने की सर्वोच्च न्यायालय की पहल की सराहना की। उन्होंने पूरा विश्वास व्यक्त किया कि यह प्रयास उच्च न्यायालयों और ज़िला अदालतों में भी जारी रहेगा।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के समापन पर विधि व्यवसाय, न्यायिक सेवाओं और न्याय वितरण प्रणाली से जुड़े सभी लोगों से आग्रह किया कि वे इस बात की कल्पना करें कि जब भारत स्वयं को एक विकसित देश के रूप में देखेगा, तब हमारी न्याय व्यवस्था कैसी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें सामूहिक रूप से उसी दिशा में आगे बढ़ना होगा। प्रधानमंत्री ने नालसा, समस्त विधिक समुदाय और न्याय वितरण से जुड़े सभी लोगों को बधाई दी और इस आयोजन के लिए सभी को शुभकामनाएं दीं। इस कार्यक्रम में देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री बी.आर. गवई, केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

पृष्ठभूमि

"कानूनी सहायता वितरण तंत्र को सुदृढ़ बनाना" विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन, नालसा द्वारा आयोजित एक दो दिवसीय सम्मेलन है, जिसमें कानूनी सेवा ढांचे के प्रमुख पहलुओं, जैसे कानूनी सहायता बचाव परामर्श प्रणाली, पैनल वकील, अर्ध-कानूनी स्वयंसेवक, स्थायी लोक अदालतें और कानूनी सेवा संस्थानों के वित्तीय प्रबंधन पर विचार-विमर्श किया जा रहा है।

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