'Davos in Action': India Inclusive through Mission Mangalam

Published By : Admin | January 26, 2011 | 00:36 IST

गणतंत्र दिन के शुभ अवसर पर मैं आप सब को हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं देता हूं. यह दिन आत्म निरीक्षण का है. हमने वर्षो पहले स्वराज्य पाया. अब समय आ गया है 'स्वराज्य' को 'सुराज्य' में परिवर्तित करने का. और गुजरात ठीक वही कर रहा है... और अपने सुराज्य-शासन के अच्छे रिकार्ड को और बहेतर बनाना ज़ारी रखता है... अपने गरीब और वंचित जनों तक पहुंचकर उनको सशक्त करके... और वृद्धि-विकास के साथ सहभागिता को निश्चित करके.

आकस्मिक रूप से आज ही के दिन विश्व उद्योग, व्यवसाय, वित्त एवं बुद्धिनिष्ठों के कप्तानों का जमावड़ा दावोस में वार्षिक वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम समिट के रूप में इसी माह के दिनांक 26 से 30 तक हो रहा है. भारत भी उस में अपना उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंडल केन्द्रीय मंत्रीमंडल के वरिष्ठ मंत्रियों के दल के नेतृत्व में भेज रहा है. दिलचस्प बात यह है कि भारत ने दावोस में इस वर्ष के सम्मेलन में देश को अभिव्यक्त करने का विषय चुना है इंडिया इन्क्लुज़िव (भारत सब को सम्मिलित करते हुए). और मैं पुनः इस बात से आश्चर्यचकित हूं कि गुजरात कैसे आवेश में आगे बढ़ रहा है और इन विचारों को कार्यान्वित कर रहा है जब कि दिल्ली अभी सोच रही है और बातें कर रही है.

2009 में वाइब्रन्ट गुजरात समिट में मैंने कहा था कि गुजरात अधिक समय तक वाइब्रन्ट गुजरात समिट्स के मंच को केवल अपने ही लाभ के लिए निवेश प्राप्त करने के उत्तोलक के रूप में इस्तमाल नहीं करेगा. हम गुजरात केन्द्रित अभिगम से आगे बढ़कर गुजरात-स्वीकृति अभिगम की ओर मुड़ेंगे. मैंने उल्लेख किया था कि जब दावोस विश्व अर्थनीति पर बौद्धिक विचार-विमर्श के लिए मंच प्रदान करता है तब वाइब्रन्ट गुजरात समिट 2011 देश के निवेश भूदृश्य को नई दिशा देगा. हम सचमुच इस उदात्त उद्देश्य को अभी अभी संपन्न वाइब्रन्ट गुजरात 2011 के दौरान बहुतांश और कई प्रकार से सिद्ध कर पाये हैं. किन्तु इस प्रकार की एक नई राहों की खोज की सिद्धि का आज मैं उल्लेख करना चाहूंगा और इसके लिए उपयुक्त अवसर है गणतंत्र दिवस, और वह है मिशन मंगलम द्वारा सब को साथ लेकर विकास और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों और महिलाओं का सशक्तिकरण निश्चित करना.

मिशन मंगलम की प्रस्तुति 2010 में की गई गुजरात के स्वर्ण जयंति वर्ष के अवसर पर सब को साथ लेकर विकास निश्चित करने के लिए राज्य के प्रयासों और स्रोतों को एक साथ जोड़ने और उससे राज्य HDI को सुधारने के लिए. मिशन मंगलम का उद्देश्य है गरीबों को स्वाश्रयी सहायक दलों (सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स) उत्पादक दल, सहकारी मंडलियां आदि में संघटित करना, उनमें कौशल निर्माण करना, उनको छोटी वित्त-सहाय द्वारा सहायता देना और साथ साथ उनको सहनीय जीवन यापन के लिए सशक्त करना. गुजरात के अभिगम में नवप्रवर्तक जो था वह यह कि युक्तिपूर्ण नीति द्वारा सब संभावनाओं पर विचार करने के लिए सार्वजनिक-निजी-साझेदारी में कॉर्पोरेट क्षेत्र, बैंकों, व्यावसायिक संस्थाओं और राज्य सरकार के अलावा गरीबों के संघटनों को सुसंकलित किया गया था. और इस रुपांतरण को कार्यान्वित करने के लिए एक कंपनी बनाई गई थी गुजरात लाइवलीहूड प्रमोशन कंपनी (GLPC) के नाम से. इस मिशन-अभिगम के परिणाम स्वरूप, आज ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब परिवारों से 25 लाख से अधिक महिलाओं के 200,000 सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स/सखीमंडल संगठित हैं.

वाइब्रन्ट गुजरात 2011 के दौरान राज्य सरकार ने देश के कुछ सब से बड़े कॉर्पोरेट गृहों को शामिल करने के लिए संभावना का अन्वेषण किया, उनको कॉर्पोरेट मूल्य शृंखला में एकत्रित करने के द्वारा SHGs प्रकल्पों को शामिल करने के साथ. परिकल्पना यह थी कि सहक्रियाओं का सृजन करना और उनसे सभी हिस्सेदारो को सानुपातिक लाभ ही लाभ दिलाना! फलस्वरुप हम देश के कुछ सब से बड़े औद्योगिक / व्यावसायिक समूहों से MoUs करने में कामयाब हुए, जिससे ऐसे प्रकल्पों का प्रारंभ होगा जो सामूहिक रुप से गरीबों को शामिल करके आनेवाले 3-5 वर्षों में लगभग 1.5 मिलियन लोगों को महत्त्वपूर्ण रोज़गारी द्वारा खुशहाली दे पाएगा. इसे साकार करने के लिए वित्तदाता और निवेशक मिलकर रू. 21,000 करोड़ से अधिक राशि देने को प्रतिबद्ध हुए हैं. कृषि, कृषि-प्रक्रिया, खाद्य-प्रक्रिया, सज्जा-परिधान, तैयार वस्त्र, हाथकरधा, हस्तकला और ग्रामीण परिवहन जैसे क्षेत्रों पर जनसुखाकारी गतिविधियों के लिए ध्यान केन्द्रित किया गया है. इन में से अधिक प्रोत्साहक क्या है इसका यहां उल्लेख करना उचित होगा जैसे कि राज्य के सर्वाधिक गरीब समुदायों नमक-कामगार (अगरिया), माछीमार (सागर-खेडु) और आदिवासियों के उत्थान के प्रकल्प.

जब देश के शेष हिस्से बेरोजगारी और कम-रोज़गारी जैसी समस्याओं से उलझ रहे हैं, तब गुजरात ने मिशन मंगलम द्वारा यह रास्ता दिखाया है कि कैसे सरकार की सामूहिक शक्ति और निजी क्षेत्र परस्पर लाभदायी उद्देश्यों के लिए हाथ मिलाकर काम कर सकते हैं. इस पहल द्वारा कॉर्पोरेट-भागीदार लाभ पा रहे हैं क्यों कि वे प्रवर्तमान व्यवसाय प्रक्रियाओं के साथ पिछड़े और अग्रिम अनुबंधन से मुनाफा कमाते हैं. गग्रामीण क्षेत्रों में SHGs और उद्यम साहसिक पर्याप्त अच्छा कमा रहे हैं क्यों कि सुखाकारी अवसर स्थानीय पैदा किये गये हैं और ग्रामीणों को काम के लिए स्थानांतरण नहीं करना पड़ता. योग्य अनुबंधन और सहक्रियात्मकता मिलकर इस पहल को पूर्ण-चुस्त और असरदार हस्तक्षेप बनाते हैं.

जब केन्द्र सरकार किसानों की आत्महत्या, ग्रामीण कर्ज-जाल, और रैग्युलैशन ऑफ एक्सप्लॉइटेटिव MFIs जैसे नाजुक मसलों की घुटने-टेक प्रतिक्रिया में हाथ-पांव मार रही है तब मिशन मंगलम वाइब्रन्ट गुजरात 2011 समिट के दौरान इस समस्या को क्रमबद्धता से, नियमित रूप से और प्रभावक ढंग से सुलझा सका है. राज्य सरकार बैंकों के साथ MoUs में प्रविष्ट हुई यह आश्वस्त करने के लिए राज्य के सभी SHGs लघुत्तम रू. 50,000/- के अल्प-ऋण के साथ जुड़ेंगे. यह आनेवाले 3-4 महिनों में SHGs / सखीमंडलों को रू. 1,000 करोड़ से 200.000 की प्रवाहिता ला देगी. इससे यह परियोजना 25 लाछ सदस्यों को सीधी सहायता पहुंचायेगी, जो 1 करोड़ से अधिक जनसंख्या को प्रभावित करेगी!!! जब यह अल्प-ऋण केश क्रेडिट सुविधा के रूप में आ रहा है, तब SHGs इसे सामाजिक खर्च में, कंटिजन्सी खर्च में, और सब से बड़ी बात तो यह होगी कि वे ब्याजखोरों से उंचे सुद पर लिए कर्जों के पंजे से छूटने में व्यय कर सकेंगे. जब यह धन कई सदस्यों में कई बार भ्रमणशील होगा तब इस अनुबंधन का परिणाम रू. 1,000 करोड़ से बढकर साल भर में रू. 5,000 करोड़ तक भी हो पायेगा. यह संभावना मिशन मंगलम की पहल को भारत में सब से बड़ा शासन चालित अल्प-ऋण हस्तक्षेप बनाता है.

पुनः एक बार, जब दिल्ली के सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान प्रज्ञाजीवी सोच रहे हैं और दावोस जाकर बातें करेंगें, तब गुजरात ने पहले ही इस दिशा में कदम उठा लिए हैं... कार्यक्रम कार्यान्वित कर दिया है निर्णयात्मकता से और प्रभावक ढंग से. इसमें कोई आश्चर्य न होगा कि कई लोग कहना पसंद करेंगे वाइब्रन्ट गुजरात समिट "कार्यान्वयन में दावोस."

जय जय गरवी गुजरात!

भवदीय,

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भारत और नेचुरल फार्मिंग...भविष्य की राह!
December 03, 2025

इस वर्ष अगस्त में, तमिलनाडु के कुछ किसानों का एक समूह मुझसे मिलने आया और उन्होंने बताया कि कैसे वे स्थिरता और उत्पादकता बढ़ाने के लिए नई कृषि तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने मुझे कोयंबटूर में आयोजित होने वाले नेचुरल फार्मिंग पर एक शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया। मैंने उनका निमंत्रण स्वीकार किया और वादा किया कि मैं कार्यक्रम के दौरान उनके बीच रहूँगा। इसलिए, कुछ सप्ताह पहले, 19 नवंबर को, मैं दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन 2025 में भाग लेने के लिए खूबसूरत शहर कोयंबटूर में था। एमएसएमई की रीढ़ माने जाने वाले इस शहर में प्राकृतिक खेती पर एक बड़ा आयोजन हो रहा था।

जैसा कि हम सभी जानते हैं, नेचुरल फार्मिंग भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों और आधुनिक पर्यावरणीय सिद्धांतों पर आधारित है, जिसमें फसलों की खेती बिना रासायनिक पदार्थों के की जाती है। यह विविध क्षेत्रों को बढ़ावा देती है, जहाँ पौधे, पेड़ और पशुधन एक साथ प्राकृतिक जैव-विविधता को मजबूत करते हैं। यह पद्धति बाहरी इनपुट की जगह खेत में उपलब्ध अवशेषों के पुनर्चक्रण, मल्चिंग और मिट्टी को हवा देने के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने पर जोर देती है।

कोयंबटूर में यह शिखर सम्मेलन हमेशा मेरी स्मृति का हिस्सा रहेगा! यह मानसिकता, कल्पना और आत्मविश्वास में बदलाव का संकेत था जिसके साथ भारत के किसान और कृषि-उद्यमी कृषि के भविष्य को आकार दे रहे हैं।

कार्यक्रम में तमिलनाडु के किसानों के साथ संवाद शामिल था, जिसमें उन्होंने नेचुरल फार्मिंग में अपने प्रयास प्रस्तुत किए और मैं आश्चर्यचकित रह गया!

मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग, जिनमें वैज्ञानिक, एफपीओ लीडर, प्रथम-पीढ़ी के स्नातक, परंपरागत किसान और खास तौर पर उच्च वेतन वाली कॉर्पोरेट करियर छोड़ने वाले लोग शामिल थे जो अपनी जड़ों की ओर लौटने और नेचुरल फार्मिंग करने का फैसला कर रहे थे।

ने ऐसे लोगों से मुलाकात की जिनकी जीवन यात्राएँ और कुछ नया करने की प्रतिबद्धता अत्यंत प्रेरणादायी थीं।

वहाँ एक किसान थे जो लगभग 10 एकड़ में केले, नारियल, पपीता, काली मिर्च और हल्दी की खेती के साथ बहुस्तरीय कृषि कर रहे थे। उनके पास 60 देसी गायें, 400 बकरियाँ और स्थानीय पोल्ट्री थीं।

एक अन्य किसान स्थानीय धान की किस्मों जैसे मपिल्लई सांबा और करुप्पु कावुनी को संरक्षित करने में जुटे थे। वे मूल्यवर्धित उत्पादों पर काम कर रहे हैं - हेल्थ मिक्स, मुरमुरा, चॉकलेट और प्रोटीन बार जैसी चीजें तैयार करते हैं।

एक पहली पीढ़ी के स्नातक थे जो 15 एकड़ का प्राकृतिक फार्म चलाते है और 3,000 से अधिक किसानों को प्रशिक्षण दे चुके हैं। वे हर महीने लगभग 30 टन सब्जियाँ की आपूर्ति करते हैं।

कुछ लोग जो अपने स्वयं के एफपीओ चला रहे थे, उन्होंने टैपिओका किसानों का समर्थन किया और टैपिओका-आधारित उत्पादों को बायोएथेनॉल और कम्प्रेस्ड बायोगैस के लिए एक टिकाऊ कच्चे माल के रूप में बढ़ावा दे रहे थे।

कृषि नवाचार करने वालों में से एक बायोटेक्नोलॉजी प्रोफेशनल थे, जिन्होंने तटीय जिलों में 600 मछुआरों को रोजगार देते हुए एक समुद्री शैवाल-आधारित बायोफर्टिलाइजर का व्यवसाय स्थापित किया, एक अन्य ने पोषक तत्वों से भरपूर बायोएक्टिव बायोचार विकसित किया जो मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाता है। दोनों ने दिखाया कि विज्ञान और स्थिरता कैसे सहज रूप से एक साथ चल सकते हैं।

वहाँ जिन लोगों से मैं मिला, वे अलग-अलग पृष्ठभूमि से थे, लेकिन एक बात समान थी: मिट्टी के स्वास्थ्य, स्थिरता, सामुदायिक उत्थान और उद्यमशीलता के प्रति पूर्ण समर्पण।

व्यापक स्तर पर, भारत ने इस क्षेत्र में सराहनीय प्रगति की है। पिछले वर्ष, भारत सरकार ने राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन शुरू किया, जिसने पहले ही लाखों किसानों को स्थायी प्रथाओं से जोड़ा है। पूरे देश में, हजारों हेक्टेयर भूमि नेचुरल फार्मिंग के अंतर्गत है। निर्यात को प्रोत्साहित करने, किसान क्रेडिट कार्ड (पशुधन और मत्स्य पालन सहित) और पीएम-किसान के माध्यम से संस्थागत ऋण का उल्लेखनीय विस्तार करने जैसे सरकार के प्रयासों ने भी किसानों को प्राकृतिक खेती करने में मदद की है।

चुरल फार्मिंग हमारे "श्री अन्न" यानी मिलेट्स को बढ़ावा देने के प्रयासों से भी घनिष्ठ रूप से जुड़ी है। यह भी सुखद है कि महिलाएँ बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती अपना रही हैं।

पिछले कुछ दशकों में, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर बढ़ती निर्भरता ने मिट्टी की उर्वरता, नमी और दीर्घकालिक स्थिरता को प्रभावित किया है। इसी दौरान खेती की लागत भी लगातार बढ़ी है। नेचुरल फार्मिंग इन चुनौतियों का सीधा समाधान करती है। पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत और मल्चिंग के प्रयोग से मिट्टी के स्वास्थ्य की रक्षा होती है, रसायनों का प्रभाव कम होता है, तथा इनपुट लागत घटती है, साथ ही जलवायु परिवर्तन और अनियमित मौसम पैटर्न के विरुद्ध मजबूती भी मिलती है।

मैंने किसानों को प्रोत्साहित किया कि वे ‘एक एकड़, एक मौसम’ से शुरुआत करें। एक छोटे से भूखंड से भी मिलने वाले परिणाम आत्मविश्वास बढ़ा सकते हैं और बड़े पैमाने पर इसे अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। जब पारंपरिक ज्ञान, वैज्ञानिक मान्यता और संस्थागत समर्थन एक साथ आते हैं, तो नेचुरल फार्मिंग व्यवहार्य और परिवर्तनकारी बन सकती है।

मैं आप सभी से भी आग्रह करता हूँ कि नेचुरल फार्मिंग अपनाने पर विचार करें। आप एफपीओ से जुड़कर यह कर सकते हैं, जो सामूहिक सशक्तिकरण के मजबूत मंच बन रहे हैं। आप इस क्षेत्र से संबंधित कोई स्टार्टअप भी शुरू कर सकते हैं।

कोयंबटूर में किसानों, विज्ञान, उद्यमिता और सामूहिक प्रयास का जो संगम देखने को मिला, वह वास्तव में प्रेरणादायक था। मुझे विश्वास है कि हम सब मिलकर अपनी कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों को अधिक उत्पादक और टिकाऊ बनाते रहेंगे। यदि आप नेचुरल फार्मिंग पर काम करने वाली किसी टीम को जानते हों, तो मुझे भी अवश्य बताएं!