तकनीक का प्रयोग

Published By : Admin | September 16, 2016 | 23:52 IST

वर्ष था 1995 |  भाजपा ने  गुजरात के हाल ही में  संपन्न विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर अपनी पहली पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनायी थी ।  दो माह के पश्चात राज्य भर में निगम चुनाव होने वाले थे।  ज़ोरों  से चल रही तैयारियोँ के बीच एक दिन अचानक मोदी ने अपने कुछ विश्वास पात्र, गैर-पार्टी सहायकों को बुलाकर एक ऐसा उपकरण दिया जो  उन्होंने पहले नहीं देखा था - एक ऐसी चीज़ जो उन्होंने अपनी विदेश की हाल ही की यात्रा के दौरान लिया था  - एक डिजिटल कैमरा। सहायकों को  काम यह दिया गया की राज्य भर में पार्टी के  चुनाव प्रचार-दलों के साथ घूम-घूम कर उस सबको रिकॉर्ड करना जो वो देखें - लोग व उनके हाव भाव, उनकी वेशभूषा, उनकी आदतें, सभाओं में लोगों की उपस्थिति, लोग अपने कार्यस्थल पर व चाय की दुकानों पर क्या खाते-पीते  थे - गुजरात के संपूर्ण सामाजिक निचोड़ को कैमरे में कैद करना था ।  और गौर करिए की यह  तब की बात है जब डिजिटल कैमरा भारत तो क्या पश्चिम में भी प्रचलित नहीं हुआ था। 

यह एक ऐसी आदत है जो मोदी में सदा विद्यमान रही है  - तकनीकी तथा डिजिटल खोजों को अविलम्ब परख कर न केवल व्यक्तिगत बल्कि सुशासन प्रक्रिया में भी प्रयोग करके औरों से आगे रहना। इसी लिए यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि न केवल राजनीतिज्ञों अपितु विस्तृत समाज में भी मोदी उन प्रथम लोगों में थे जिन्होंने सोशल मीडिया का महत्व केवल एकतरफा नहीं बल्कि दो-तरफ़ा बराबरी के संपर्क के माध्यम के रूप में पहचाना। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, सोशल मीडिया पर सक्रीय योगदाता उनसे सदा जुड़े रहते थे ।  प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने इस प्रयास को एक संस्थागत रूप जुलाई 2014 में माईगोव की स्थापना के साथ दिया।  इसी कड़ी में, एक वर्ष पश्चात् 'डिजिटल इंडिया' की  औपचारिक स्थापना एक ऐसे मुख्य प्रयास के रूप में हुई जो एक कार्यशील, पारदर्शी एवं  उत्तरदायी सुशासन मॉडल  को प्रदर्शित करे। 

सैन जोस, कैलिफ़ोर्निया में 2015 में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में बोलते हुए मोदी ने अपनी सोच को संक्षेप में ऐसे बयान किया - "जब आप सोशल मीडिया के अचंभित विस्तार अथवा किसी डिजिटल माध्यम द्वारा प्रदान सेवा के विषय में सोचते हैं तो आपको विश्वास कर सक्ते हैं कि उन लोगों के जीवन को भी बदला जा सकता है जो लंबे समय तक आशा के हाशिये पर खड़े रहे।  अत: दोस्तों, इसी विश्वास में से ही डिजिटल इंडिया के विचार का जन्म हुआ।  यह उद्यम भारत में ऐसे पैमाने पर बदलाव लाने के लिए है  जो मानव इतिहास में अभूतपूर्व होगा ।  यह न केवल भारत के सबसे कमज़ोर, दूरस्थ एवं सर्वाधिक गरीब नागरिकों के जीवन को स्पर्श करेगा बल्कि हमारे देश के जीने एवं काम करने के तरीके को भी सम्पूर्ण रूप से बदल देगा | "

 

डिस्कलेमर :

यह उन कहानियों या खबरों को इकट्ठा करने के प्रयास का हिस्सा है जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और लोगों के जीवन पर उनके प्रभाव पर उपाख्यान / राय / विश्लेषण का वर्णन करती हैं।

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भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार
September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)