Text of Prime Minister’s ‘Mann ki Baat’ on All India Radio

Published By : Admin | February 22, 2015 | 20:31 IST

https://soundcloud.com/narendramodi/pm-shares-mann-ki-baat-with-students-preparing-for-board-and-competitive-exams

नमस्ते, युवा दोस्तो। आज तो पूरा दिन भर शायद आपका मन क्रिकेट मैच में लगा होगा, एक तरफ परीक्षा की चिंता और दूसरी तरफ वर्ल्ड कप हो सकता है आप छोटी बहन को कहते होंगे कि बीच - बीच में आकर स्कोर बता दे। कभी आपको ये भी लगता होगा, चलो यार छोड़ो, कुछ दिन के बाद होली आ रही है और फिर सर पर हाथ पटककर बैठे होंगे कि देखिये होली भी बेकार गयी, क्यों? एग्जाम आ गयी। होता है न! बिलकुल होता होगा, मैं जानता हूँ। खैर दोस्तो, आपकी मुसीबत के समय मैं आपके साथ आया हूँ। आपके लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। उस समय मैं आया हूँ। और मैं आपको कोई उपदेश देने नहीं आया हूँ। ऐसे ही हलकी - फुलकी बातें करने आया हूँ।


बहुत पढ़ लिया न, बहुत थक गए न! और माँ डांटती है, पापा डांटते है, टीचर डांटते हैं, पता नहीं क्या क्या सुनना पड़ता है। टेलीफोन रख दो, टीवी बंद कर दो, कंप्यूटर पर बैठे रहते हो, छोड़ो सबकुछ, चलो पढ़ो यही चलता है न घर में? साल भर यही सुना होगा, दसवीं में हो या बारहवीं में। और आप भी सोचते होंगे कि जल्द एग्जाम खत्म हो जाए तो अच्छा होगा, यही सोचते हो न? मैं जानता हूँ आपके मन की स्थिति को और इसीलिये मैं आपसे आज ‘मन की बात’ करने आया हूँ। वैसे ये विषय थोड़ा कठिन है। 

आज के विषय पर माँ बाप चाहते होंगे कि मैं उन बातों को करूं, जो अपने बेटे को या बेटी को कह नहीं पाते हैं। आपके टीचर चाहते होंगे कि मैं वो बातें करूँ, ताकि उनके विद्यार्थी को वो सही बात पहुँच जाए और विद्यार्थी चाहता होगा कि मैं कुछ ऐसी बातें करूँ कि मेरे घर में जो प्रेशर है, वो प्रेशर कम हो जाए। मैं नहीं जानता हूँ, मेरी बातें किसको कितनी काम आयेंगी, लेकिन मुझे संतोष होगा कि चलिये मेरे युवा दोस्तों के जीवन के महत्वपूर्ण पल पर मैं उनके बीच था. अपने मन की बातें उनके साथ गुनगुना रहा था। बस इतना सा ही मेरा इरादा है और वैसे भी मुझे ये तो अधिकार नहीं है कि मैं आपको अच्छे एग्जाम कैसे जाएँ, पेपर कैसे लिखें, पेपर लिखने का तरीका क्या हो? ज्यादा से ज्यादा मार्क्स पाने की लिए कौन - कौन सी तरकीबें होती हैं? क्योंकि मैं इसमें एक प्रकार से बहुत ही सामान्य स्तर का विद्यार्थी हूँ। क्योंकि मैंने मेरे जीवन में किसी भी एग्जाम में अच्छे परिणाम प्राप्त नहीं किये थे। ऐसे ही मामूली जैसे लोग पढ़ते हैं वैसे ही मैं था और ऊपर से मेरी तो हैण्डराइटिंग भी बहुत ख़राब थी। तो शायद कभी - कभी तो मैं इसलिए भी पास हो जाता था, क्योंकि मेरे टीचर मेरा पेपर पढ़ ही नहीं पाते होंगे। खैर वो तो अलग बातें हो गयी, हलकी - फुलकी बातें हैं। 

लेकिन मैं आज एक बात जरुर आपसे कहना चाहूँगा कि आप परीक्षा को कैसे लेते हैं, इस पर आपकी परीक्षा कैसी जायेगी, ये निर्भर करती है। अधिकतम लोगों को मैंने देखा है कि वो इसे अपने जीवन की एक बहुत बड़ी महत्वपूर्ण घटना मानते हैं और उनको लगता है कि नहीं, ये गया तो सारी दुनिया डूब जायेगी। दोस्तो, दुनिया ऐसी नहीं है। और इसलिए कभी भी इतना तनाव मत पालिये। हाँ, अच्छा परिणाम लाने का इरादा होना चाहिये। पक्का इरादा होना चाहिये, हौसला भी बुलंद होना चाहिये। लेकिन परीक्षा बोझ नहीं होनी चाहिये, और न ही परीक्षा कोई आपके जीवन की कसौटी कर रही है। ऐसा सोचने की जरुरत नहीं है। 

कभी-कभार ऐसा नहीं लगता कि हम ही परीक्षा को एक बोझ बना देते हैं घर में और बोझ बनाने का एक कारण जो होता है, ये होता है कि हमारे जो रिश्तेदार हैं, हमारे जो यार - दोस्त हैं, उनका बेटा या बेटी हमारे बेटे की बराबरी में पढ़ते हैं, अगर आपका बेटा दसवीं में है, और आपके रिश्तेदारों का बेटा दसवीं में है तो आपका मन हमेशा इस बात को कम्पेयर करता रहता है कि मेरा बेटा उनसे आगे जाना चाहिये, आपके दोस्त के बेटे से आगे होना चाहिये। बस यही आपके मन में जो कीड़ा है न, वो आपके बेटे पर प्रेशर पैदा करवा देता है। आपको लगता है कि मेरे अपनों के बीच में मेरे बेटे का नाम रोशन हो जाये और बेटे का नाम तो ठीक है, आप खुद का नाम रोशन करना चाहते हैं। क्या आपको नहीं लगता है कि आपके बेटे को इस सामान्य स्पर्धा में लाकर के आपने खड़ा कर दिया है? जिंदगी की एक बहुत बड़ी ऊँचाई, जीवन की बहुत बड़ी व्यापकता, क्या उसके साथ नहीं जोड़ सकते हैं? अड़ोस - पड़ोस के यार दोस्तों के बच्चों की बराबरी वो कैसी करता है! और यही क्या आपका संतोष होगा क्या? आप सोचिये? एक बार दिमाग में से ये बराबरी के लोगों के साथ मुकाबला और उसी के कारण अपने ही बेटे की जिंदगी को छोटी बना देना, ये कितना उचित है? बच्चों से बातें करें तो भव्य सपनों की बातें करें। ऊंची उड़ान की बातें करें। आप देखिये, बदलाव शुरू हो जाएगा। 

दोस्तों एक बात है जो हमें बहुत परेशान करती है। हम हमेशा अपनी प्रगति किसी और की तुलना में ही नापने के आदी होते हैं। हमारी पूरी शक्ति प्रतिस्पर्धा में खप जाती है। जीवन के बहुत क्षेत्र होंगे, जिनमें शायद प्रतिस्पर्धा जरूरी होगी, लेकिन स्वयं के विकास के लिए तो प्रतिस्पर्धा उतनी प्रेरणा नहीं देती है, जितनी कि खुद के साथ हर दिन स्पर्धा करते रहना। खुद के साथ ही स्पर्धा कीजिये, अच्छा करने की स्पर्धा, तेज गति से करने की स्पर्धा, और ज्यादा करने की स्पर्धा, और नयी ऊंचाईयों पर पहुँचने की स्पर्धा आप खुद से कीजिये, बीते हुए कल से आज ज्यादा अच्छा हो इस पर मन लगाइए। और आप देखिये ये स्पर्धा की ताकत आपको इतना संतोष देगी, इतना आनंद देगी जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते। हम लोग बड़े गर्व के साथ एथलीट सेरगेई बूबका का स्मरण करते हैं। इस एथलीट ने पैंतीस बार खुद का ही रिकॉर्ड तोड़ा था। वह खुद ही अपने एग्जाम लेता था। खुद ही अपने आप को कसौटी पर कसता था और नए संकल्पों को सिद्ध करता था। आप भी उसी लिहाज से आगे बढें तो आप देखिये आपको प्रगति के रास्ते पर कोई नहीं रोक सकता है। 

युवा दोस्तो, विद्यार्थियों में भी कई प्रकार होते हैं। कुछ लोग कितनी ही परीक्षाएं क्यों न भाए बड़े ही बिंदास होते हैं। उनको कोई परवाह ही नहीं होती और कुछ होते हैं जो परीक्षा के बोझ में दब जाते हैं। और कुछ लोग मुह छुपा करके घर के कोने में किताबों में फंसे रहते हैं। इन सबके बावजूद भी परीक्षा परीक्षा है और परीक्षा में सफल होना भी बहुत आवश्यक है और में भी चाहता हूँ कि आप भी सफल हों लेकिन कभी- कभी आपने देखा होगा कि हम बाहरी कारण बहुत ढूँढ़ते हैं। ये बाहरी कारण हम तब ढूँढ़ते हैं, जब खुद ही कन्फ्यूज्ड हों। खुद पर भरोसा न हो, जैसे जीवन में पहली बार परीक्षा दे रहे हों। घर में कोई टीवी जोर से चालू कर देगा, आवाज आएगी, तो भी हम चिड़चिड़ापन करते होंगे, माँ खाने पर बुलाती होगी तो भी चिड़चिड़ापन करते होंगे। दूसरी तरफ अपने किसी यार-दोस्त का फ़ोन आ गया तो घंटे भर बातें भी करते होंगें । आप को नहीं लगता है आप स्वयं ही अपने विषय में ही कन्फ्यूज्ड हैं। 

दोस्तो खुद को पहचानना ही बहुत जरुरी होता है। आप एक काम किजीये बहुत दूर का देखने की जरुरत नहीं है। आपकी अगर कोई बहन हो, या आपके मित्र की बहन हो जिसने दसवीं या बारहवी के एग्जाम दे रही हो, या देने वाली हो। आपने देखा होगा, दसवीं के एग्जाम हों बारहवीं के एग्जाम हों तो भी घर में लड़कियां माँ को मदद करती ही हैं। कभी सोचा है, उनके अंदर ये कौन सी ऐसी ताकत है कि वे माँ के साथ घर काम में मदद भी करती हैं और परीक्षा में लड़कों से लड़कियां आजकल बहुत आगे निकल जाती हैं। थोड़ा आप ओबजर्व कीजिये अपने अगल-बगल में। आपको ध्यान में आ जाएगा कि बाहरी कारणों से परेशान होने की जरुरत नहीं है। कभी-कभी कारण भीतर का होता है. खुद पर अविश्वास होता है न तो फिर आत्मविश्वास क्या काम करेगा? और इसलिए मैं हमेशा कहता हूँ जैसे-जैसे आत्मविश्वास का अभाव होता है, वैसे वैसे अंधविश्वास का प्रभाव बढ़ जाता है। और फिर हम अन्धविश्वास में बाहरी कारण ढूंढते रहते हैं। बाहरी कारणों के रास्ते खोजते रहते हैं. कुछ तो विद्यार्थी ऐसे होते हैं जिनके लिए हम कहते हैं आरम्म्भीशुरा। हर दिन एक नया विचार, हर दिन एक नई इच्छा, हर दिन एक नया संकल्प और फिर उस संकल्प की बाल मृत्यु हो जाता है, और हम वहीं के वहीं रह जाते हैं। मेरा तो साफ़ मानना है दोस्तो बदलती हुई इच्छाओं को लोग तरंग कहते हैं। हमारे साथी यार- दोस्त, अड़ोसी-पड़ोसी, माता-पिता मजाक उड़ाते हैं और इसलिए मैं कहूँगा, इच्छाएं स्थिर होनी चाहिये और जब इच्छाएं स्थिर होती हैं, तभी तो संकल्प बनती हैं और संकल्प बाँझ नहीं हो सकते। संकल्प के साथ पुरुषार्थ जुड़ता है. और जब पुरुषार्थ जुड़ता है तब संकल्प सिद्दी बन जाता है. और इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि इच्छा प्लस स्थिरता इज-इक्वल टू संकल्प। संकल्प प्लस पुरुषार्थ इज-इक्वल टू सिद्धि। मुझे विश्वास है कि आपके जीवन यात्रा में भी सिद्दी आपके चरण चूमने आ जायेगी। अपने आप को खपा दीजिये। अपने संकल्प के लिए खपा दीजिये और संकल्प सकारात्मक रखिये। किसी से आगे जाने की मत सोचिये। खुद जहां थे वहां से आगे जाने के लिए सोचिये। और इसलिए रोज अपनी जिंदगी को कसौटी पर कसता रहता है उसके लिए कितनी ही बड़ी कसौटी क्यों न आ जाए कभी कोई संकट नहीं आता है और दोस्तों कोई अपनी कसौटी क्यों करे? कोई हमारे एग्जाम क्यों ले? आदत डालो न। हम खुद ही हमारे एग्जाम लेंगें। हर दिन हमारी परीक्षा लेंगे। देखेंगे मैं कल था वहां से आज आगे गया कि नहीं गया। मैं कल था वहां से आज ऊपर गया कि नहीं। मैंने कल जो पाया था उससे ज्यादा आज पाया कि नहीं पाया। हर दिन हर पल अपने आपको कसौटी पर कसते रहिये। फिर कभी जिन्दगी में कसौटी, कसौटी लगेगी ही नहीं। हर कसौटी आपको खुद को कसने का अवसर बन जायेगी और जो खुद को कसना जानता वो कसौटियों को भी पार कर जाता है और इसलिए जो जिन्दगी की परीक्षा से जुड़ता है उसके लिए क्लासरूम की परीक्षा बहुत मामूली होती है। 

कभी आपने भी कल्पना नहीं की होगी की इतने अच्छे अच्छे काम कर दिए होंगें। जरा उसको याद करो, अपने आप विश्वास पैदा हो जाएगा। अरे वाह! आपने वो भी किया था, ये भी किया था? पिछले साल बीमार थी तब भी इतने अच्छे मार्क्स लाये थे। पिछली बार मामा के घर में शादी थी, वहां सप्ताह भर ख़राब हो गया था, तब भी इतने अच्छे मार्क्स लाये थे। अरे पहले तो आप छः घंटे सोते थे और पिछली साल आपने तय किया था कि नहीं नहीं अब की बार पांच घंटे सोऊंगा और आपने कर के दिखाया था। अरे यही तो है मोदी आपको क्या उपदेश देगा। आप अपने मार्गदर्शक बन जाइए। और भगवान् बुद्ध तो कहते थे अंतःदीपो भव:। 

मैं मानता हूँ, आपके भीतर जो प्रकाश है न उसको पहचानिए आपके भीतर जो सामर्थ्य है, उसको पहचानिए और जो खुद को बार-बार कसौटी पर कसता है वो नई-नई ऊंचाइयों को पार करता ही जाता है। दूसरा कभी- कभी हम बहुत दूर का सोचते रहते हैं। कभी-कभी भूतकाल में सोये रहते हैं। दोस्तो परीक्षा के समय ऐसा मत कीजिये। परीक्षा समय तो आप वर्तमान में ही जीना अच्छा रहेगा। क्या कोई बैट्समैन पिछली बार कितनी बार जीरो में आऊट हो गया, इसके गीत गुनगुनाता है क्या? या ये पूरी सीरीज जीतूँगा या नहीं जीतूँगा, यही सोचता है क्या? मैच में उतरने के बाद बैटिंग करते समय सेंचुरी करके ही बाहर आऊँगा कि नहीं आऊँगा, ये सोचता है क्या? जी नहीं, मेरा मत है, अच्छा बैट्समैन उस बॉल पर ही ध्यान केन्द्रित करता है, जो बॉल उसके सामने आ रहा है। वो न अगले बॉल की सोचता है, न पूरे मैच की सोचता है, न पूरी सीरीज की सोचता है। आप भी अपना मन वर्तमान से लगा दीजिये। जीतना है तो उसकी एक ही जड़ी-बूटी है। वर्तमान में जियें, वर्तमान से जुड़ें, वर्तमान से जूझें। जीत आपके साथ साथ चलेगी। 

मेरे युवा दोस्तो, क्या आप ये सोचते हैं कि परीक्षा आपकी क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए होती हैं। अगर ये आपकी सोच है तो गलत है। आपको किसको अपनी क्षमता दिखानी है? ये प्रदर्शन किसके सामने करना है? अगर आप ये सोचें कि परीक्षा क्षमता प्रदर्शन के लिए नहीं, खुद की क्षमता पहचानने के लिए है। जिस पल आप अपने मन्त्र मानने लग जायेंगे आप पकड़ लेंगें न, आपके भीतर का विश्वास बढ़ता चला जाएगा और एक बार आपने खुद को जाना, अपनी ताकत को जाना तो आप हमेशा अपनी ताकत को ही खाद पानी डालते रहेंगे और वो ताकत एक नए सामर्थ्य में परिवर्तित हो जायेगी और इसलिए परीक्षा को आप दुनिया को दिखाने के लिए एक चुनौती के रूप में मत लीजिये, उसे एक अवसर के रूप में लीजिये। खुद को जानने का, खुद को पह्चानने का, खुद के साथ जीने का यह एक अवसर है। जी लीजिये न दोस्तो। 

दोस्तो मैंने देखा है कि बहुत विद्यार्थी ऐसे होते हैं जो परीक्षाओं के दिनों में नर्वस हो जाते हैं। कुछ लोगों का तो कथन इस बात का होता है कि देखो मेरी आज एग्जाम थी और मामा ने मुझे विश नहीं किया. चाचा ने विश नहीं किया, बड़े भाई ने विश नहीं किया। और पता नहीं उसका घंटा दो घंटा परिवार में यही डिबेट होता है, देखो उसने विश किया, उसका फ़ोन आया क्या, उसने बताया क्या, उसने गुलदस्ता भेजा क्या? दोस्तो इससे परे हो जाइए, इन सारी चीजों में मत उलझिए। ये सारा परीक्षा के बाद सोचना किसने विश किये किसने नहीं किया। अपने आप पर विश्वास होगा न तो ये सारी चीजें आयेंगी ही नहीं। दोस्तों मैंने देखा है की ज्यादातर विद्यार्थी नर्वस हो जाते हैं। मैं मानता हूँ की नर्वस होना कुछ लोगों के स्वभाव में होता है। कुछ परिवार का वातावरण ही ऐसा है। नर्वस होने का मूल कारण होता है अपने आप पर भरोसा नहीं है। ये अपने आप पर भरोसा कब होगा, एक अगर विषय पर आपकी अच्छी पकड़ होगी, हर प्रकार से मेहनत की होगी, बार-बार रिवीजन किया होगा। आपको पूरा विश्वास है हाँ हाँ इस विषय में तो मेरी मास्टरी है और आपने भी देखा होगा, पांच और सात सब्जेक्ट्स में दो तीन तो एजेंडा तो ऐसे होंगे जिसमें आपको कभी चिंता नहीं रहती होगी। नर्वसनेस कभी एक आध दो में आती होगी। अगर विषय में आपकी मास्टरी है तो नर्वसनेस कभी नहीं आयेगी। 

आपने साल भर जो मेहनत की है न, उन किताबों को वो रात-रात आपने पढाई की है आप विश्वाश कीजिये वो बेकार नहीं जायेगी। वो आपके दिल-दिमाग में कहीं न कहीं बैठी है, परीक्षा की टेबल पर पहुँचते ही वो आयेगी। आप अपने ज्ञान पर भरोसा करो, अपनी जानकारियों पर भरोसा करो, आप विश्वास रखो कि आपने जो मेहनत की है वो रंग लायेगी और दूसरी बात है आप अपनी क्षमताओं के बारे में बड़े कॉंफिडेंट होने चाहिये। आपको पूरी क्षमता होनी चाहिये कि वो पेपर कितना ही कठिन क्यों न हो मैं तो अच्छा कर लूँगा। आपको कॉन्फिडेंस होना चाहिये कि पेपर कितना ही लम्बा क्यों न होगा में तो सफल रहूँगा या रहूँगी। कॉन्फिडेंस रहना चाहिये कि में तीन घंटे का समय है तो तीन घंटे में, दो घंटे का समय है तो दो घंटे में, समय से पहले मैं अपना काम कर लूँगा और हमें तो याद है शायद आपको भी बताते होंगे हम तो छोटे थे तो हमारी टीचर बताते थे जो सरल क्वेश्चन है उसको सबसे पहले ले लीजिये, कठिन को आखिर में लीजिये। आपको भी किसी न किसी ने बताया होगा और मैं मानता हूँ इसको तो आप जरुर पालन करते होंगे। 

दोस्तो माई गोव पर मुझे कई सुझाव, कई अनुभव आए हैं । वो सारे तो मैं शिक्षा विभाग को दे दूंगा, लेकिन कुछ बातों का मैं उल्लेख करना चाहता हूँ! 

मुंबई महाराष्ट्र के अर्णव मोहता ने लिखा है कि कुछ लोग परीक्षा को जीवन मरण का इशू बना देते हैं अगर परीक्षा में फेल हो गए तो जैसे दुनिया डूब गयी हैं। तो वाराणसी से विनीता तिवारी जी, उन्होंने लिखा है कि जब परिणाम आते है और कुछ बच्चे आत्महत्या कर देते हैं, तो मुझे बहुत पीड़ा होती है, ये बातें तो सब दूर आपके कान में आती होंगी, लेकिन इसका एक अच्छा जवाब मुझे किसी और एक सज्जन ने लिखा है। तमिलनाडु से मिस्टर आर. कामत, उन्होंने बहुत अच्छे दो शब्द दिए है, उन्होंने कहा है कि स्टूडेंट्स worrier मत बनिए, warrior बनिए, चिंता में डूबने वाले नहीं, समरांगन में जूझने वाले होने चाहिए, मैं समझता हूँ कि सचमुच मैं हम चिंता में न डूबे, विजय का संकल्प ले करके आगे बढ़ना और ये बात सही है, जिंदगी बहुत लम्बी होती है, उतार चढाव आते रहते है, इससे कोई डूब नहीं जाता है, कभी कभी अनेच्छिक परिणाम भी आगे बढ़ने का संकेत भी देते हैं, नयी ताकत जगाने का अवसर भी देते है! 

एक चीज़ मैंने देखी हैं कि कुछ विद्यार्थी परीक्षा खंड से बाहर निकलते ही हिसाब लगाना शुरू कर देते है कि पेपर कैसा गया, यार, दोस्त, माँ बाप जो भी मिलते है वो भी पूछते है भई आज का पेपर कैसा गया? मैं समझता हूँ कि आज का पेपर कैसा गया! बीत गयी सो बात गई, प्लीज उसे भूल जाइए, मैं उन माँ बाप को भी प्रार्थना करता हूँ प्लीज अपने बच्चे को पेपर कैसा गया ऐसा मत पूछिए, बाहर आते ही उसको कह दे वाह! तेरे चेहरे पर चमक दिख रही है, लगता है बहुत अच्छा पेपर गया? वाह शाबाश, चलो चलो कल के लिए तैयारी करते है! ये मूड बनाइये और दोस्तों मैं आपको भी कहता हूँ, मान लीजिये आपने हिसाब किताब लगाया, और फिर आपको लगा यार ये दो चीज़े तो मैंने गलत कर दी, छः मार्क कम आ जायेंगे, मुझे बताइए इसका विपरीत प्रभाव, आपके दूसरे दिन के पेपर पर पड़ेगा कि नहीं पड़ेगा? तो क्यों इसमें समय बर्बाद करते हो? क्यों दिमाग खपाते हो? सारी एग्जाम समाप्त होने के बाद, जो भी हिसाब लगाना है, लगा लीजिये! कितने मार्क्स आएंगे, कितने नहीं आएंगे, सब बाद में कीजिये, परीक्षा के समय, पेपर समाप्त होने के बाद, अगले दिन पर ही मन केन्द्रित कीजिए, उस बात को भूल जाइए, आप देखिये आपका बीस पच्चीस प्रतिशत बर्डन यूं ही कम हो जाएगा 

मेरे मन मे कुछ और भी विचार आते चले जाते हैं खैर मै नहीं जानता कि अब तो परीक्षा का समय आ गया तो अभी वो काम आएगा। लेकिन मै शिक्षक मित्रों से कहना चाहता हूँ, स्कूल मित्रों से कहना चाहता हूँ कि क्या हम साल में दो बार हर टर्म में एक वीक का परीक्षा उत्सव नहीं मना सकते हैं, जिसमें परीक्षा पर व्यंग्य काव्यों का कवि सम्मलेन हो. कभी एसा नहीं हो सकता परीक्षा पर कार्टून स्पर्धा हो परीक्षा के ऊपर निबंध स्पर्धा हो परीक्षा पर वक्तोतव प्रतिस्पर्धा हो, परीक्षा के मनोवैज्ञानिक परिणामों पर कोई आकरके हमें लेक्चर दे, डिबेट हो, ये परीक्षा का हव्वा अपने आप ख़तम हो जाएगा। एक उत्सव का रूप बन जाएगा और फिर जब परीक्षा देने जाएगा विद्यार्थी तो उसको आखिरी मोमेंट से जैसे मुझे आज आपका समय लेना पड़ रहा है वो लेना नहीं पड़ता, वो अपने आप आ जाता और आप भी अपने आप में परीक्षा के विषय में बहुत ही और कभी कभी तो मुझे लगता है कि सिलेबस में ही परीक्षा विषय क्या होता हैं समझाने का क्लास होना चाहिये। क्योंकि ये तनावपूर्ण अवस्था ठीक नहीं है 

दोस्तो मैं जो कह रहा हूँ, इससे भी ज्यादा आपको कईयों ने कहा होगा! माँ बाप ने बहुत सुनाया होगा, मास्टर जी ने सुनाया होगा, अगर टयूशन क्लासेज में जाते होंगे तो उन्होंने सुनाया होगा, मैं भी अपनी बाते ज्यादा कह करके आपको फिर इसमें उलझने के लिए मजबूर नहीं करना चाहता, मैं इतना विश्वास दिलाता हूँ, कि इस देश का हर बेटा, हर बेटी, जो परीक्षा के लिए जा रहे हैं, वे प्रसन्न रहे, आनंदमय रहे, हसंते खेलते परीक्षा के लिए जाए! 

आपकी ख़ुशी के लिए मैंने आपसे बातें की हैं, आप अच्छा परिणाम लाने ही वाले है, आप सफल होने ही वाले है, परीक्षा को उत्सव बना दीजिए, ऐसा मौज मस्ती से परीक्षा दीजिए, और हर दिन अचीवमेंट का आनंद लीजिए, पूरा माहौल बदल दीजिये। माँ बाप, शिक्षक, स्कूल, क्लासरूम सब मिल करके करिए, देखिये, कसौटी को भी कसने का कैसा आनंद आता है, चुनौती को चुनौती देने का कैसा आनंद आता है, हर पल को अवसर में पलटने का क्या मजा होता है, और देखिये दुनिया में हर कोई हर किसी को खुश नहीं कर सकता है! 

मुझे पहले कविताएं लिखने का शौक था, गुजराती में मैंने एक कविता लिखी थी, पूरी कविता तो याद नहीं, लेकिन मैंने उसमे लिखा था, सफल हुए तो ईर्ष्या पात्र, विफल हुए तो टिका पात्र, तो ये तो दुनिया का चक्र है, चलता रहता है, सफल हो, किसी को पराजित करने के लिए नहीं, सफल हो, अपने संकल्पों को पार करने के लिए, सफल हो अपने खुद के आनंद के लिए, सफल हो अपने लिए जो लोग जी रहे है, उनके जीवन में खुशियाँ भरने के लिए, ये ख़ुशी को ही केंद्र में रख करके आप आगे बढ़ेंगे, मुझे विश्वास है दोस्तो! बहुत अच्छी सफलता मिलेगी, और फिर कभी, होली का त्यौहार मनाया कि नहीं मनाया, मामा के घर शादी में जा पाया कि नहीं जा पाया, दोस्तों कि बर्थडे पार्टी में इस बार रह पाया कि नहीं रह पाया, क्रिकेट वर्ल्ड कप देख पाया कि नहीं देख पाया, सारी बाते बेकार हो जाएँगी , आप और एक नए आनंद को नयी खुशियों में जुड़ जायेंगे, मेरी आपको बहुत शुभकामना हैं, और आपका भविष्य जितना उज्जवल होगा, देश का भविष्य भी उतना ही उज्जवल होगा, भारत का भाग्य, भारत की युवा पीढ़ी बनाने वाली है, आप बनाने वाले हैं, बेटा हो या बेटी दोनों कंधे से कन्धा मिला करके आगे बढ़ने वाले हैं! 

आइये, परीक्षा के उत्सव को आनंद उत्सव में परिवर्तित कीजिए, बहुत बहुत शुभकामनाएं! 

Explore More
શ્રી રામ જન્મભૂમિ મંદિર ધ્વજારોહણ ઉત્સવ દરમિયાન પ્રધાનમંત્રીના સંબોધનનો મૂળપાઠ

લોકપ્રિય ભાષણો

શ્રી રામ જન્મભૂમિ મંદિર ધ્વજારોહણ ઉત્સવ દરમિયાન પ્રધાનમંત્રીના સંબોધનનો મૂળપાઠ
After year of successes, ISRO set for big leaps

Media Coverage

After year of successes, ISRO set for big leaps
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
Gen Z & Gen Alpha will lead India to the goal of a Viksit Bharat: PM Modi
December 26, 2025
Today, we remember the brave Sahibzades, the pride of our nation and they embody India's indomitable courage and the highest ideals of valour: PM
The courage and ideals of Mata Gujri Ji, Sri Guru Gobind Singh Ji and the four Sahibzades continue to give strength to every Indian: PM
India has resolved to break free from the colonial mindset once and for all: PM
As India frees itself from the colonial mindset, its linguistic diversity is emerging as a source of strength: PM
Gen Z & Gen Alpha will lead India to the goal of a Viksit Bharat: PM

केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी अन्नपूर्णा देवी, सावित्री ठाकुर, रवनीत सिंह, हर्ष मल्होत्रा, दिल्ली सरकार से आए हुए मंत्री महोदय, अन्य महानुभाव, देश के कोने-कोने से यहां उपस्थित सभी अतिथि और प्यारे बच्चों !

आज देश ‘वीर बाल दिवस’ मना रहा है। अभी वंदे मातरम की इतनी सुंदर प्रस्तुति हुई है, आपकी मेहनत नजर आ रही है।

साथियों,

आज हम उन वीर साहिबजादों को याद कर रहे हैं, जो हमारे भारत का गौरव है। जो भारत के अदम्य साहस, शौर्य, वीरता की पराकाष्ठा है। वो वीर साहिबजादे, जिन्होंने उम्र और अवस्था की सीमाओं को तोड़ दिया, जो क्रूर मुगल सल्तनत के सामने ऐसे चट्टान की तरह खड़े हुए कि मजहबी कट्टरता और आतंक का वजूद ही हिल गया। जिस राष्ट्र के पास ऐसा गौरवशाली अतीत हो, जिसकी युवा पीढ़ी को ऐसी प्रेरणाएं विरासत में मिली हों, वो राष्ट्र क्या कुछ नहीं कर सकता।

साथियों,

जब भी 26 दिसंबर का ये दिन आता है, तो मुझे ये तसल्ली होती है कि हमारी सरकार ने साहिबजादों की वीरता से प्रेरित वीर बाल दिवस मनाना शुरू किया। बीते 4 वर्षों में वीर बाल दिवस की नई परंपरा ने साहिबजादों की प्रेरणाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाया है। वीर बाल दिवस ने साहसी और प्रतिभावान युवाओं के निर्माण के लिए एक मंच भी तैयार किया है। हर साल जो बच्चे अलग-अलग क्षेत्रों में देश के लिए कुछ कर दिखाते हैं, उन्हें प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। इस बार भी, देश के अलग-अलग हिस्सों से आए 20 बच्चों को ये पुरस्कार दिए गए हैं। ये सब हमारे बीच में हैं, अभी मुझे उनसे काफी गप्पे-गोष्टि करने का मौका मिला। और इनमें से किसी ने असाधारण बहादुरी दिखाई है, किसी ने सामाजिक सेवा और पर्यावरण के क्षेत्र में सराहनीय काम किया है। इनमें से कुछ विज्ञान और टेक्नोलॉजी में कुछ इनोवेट किया है, तो कई युवा साथी खेल, कला और संस्कृति के क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं। मैं इन पुरस्कार विजेताओं से कहूंगा, आपका ये सम्मान आपके लिए तो है ही, ये आपके माता-पिता का, आपके टीचर्स और मेंटर्स का, उनकी मेहनत का भी सम्मान है। मैं पुरस्कार विजेताओं को, और उनके परिवारजनों को उज्ज्वल भविष्य के लिए अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं।

साथियों,

वीर बाल दिवस का ये दिन भावना और श्रद्धा से भरा दिन है। साहिबजादा अजीत सिंह जी, साहिबजादा जुझार सिंह जी, साहिबजादा जोरावर सिंह जी, और साहिबजादा फतेह सिंह जी, छोटी सी उम्र में इन्हें उस समय की सबसे बड़ी सत्ता से टकराना पड़ा। वो लड़ाई भारत के मूल विचारों और मजहबी कट्टरता के बीच थी, वो लड़ाई सत्य बनाम असत्य की थी। उस लड़ाई के एक ओर दशम गुरु श्रीगुरु गोविंद सिंह जी थे, दूसरी ओर क्रूर औरंगजेब की हुकूमत थी। हमारे साहिबजादे उस समय उम्र में छोटे ही थे। लेकिन, औरंगजेब को, उसकी क्रूरता को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो जानता था, उसे अगर भारत के लोगों को डराकर उनका धर्मांतरण कराना है, तो इसके लिए उसे हिंदुस्तानियों का मनोबल तोड़ना होगा। और इसलिए उसने साहिबजादों को निशाना बनाया।

लेकिन साथियों,

औरंगजेब और उसके सिपाहसालार भूल गये थे, हमारे गुरु कोई साधारण मनुष्य नहीं थे, वो तप, त्याग का साक्षात अवतार थे। वीर साहिबजादों को वही विरासत उनसे मिली थी। इसीलिए, भले ही पूरी मुगलिया बादशाहत पीछे लग गई, लेकिन वो चारों में से एक भी साहिबजादे को डिगा नहीं पाये। साहिबजादा अजीत सिंह जी के शब्द आज भी उनके हौसले की कहानी कहते हैं- नाम का अजीत हूं, जीता ना जाऊंगा, जीता भी गया, तो जीता ना आउंगा !

साथियों,

कुछ दिन पूर्व ही हमने श्रीगुरू तेग बहादुर जी को, उनके तीन सौ पचासवें बलिदान दिवस पर याद किया। उस दिन कुरुक्षेत्र में एक विशेष कार्यक्रम भी हुआ था। जिन साहिबजादों के पास श्री गुरू तेग बहादुर जी के बलिदान की प्रेरणा हो, वो मुगल अत्याचारों से डर जाएंगे, ये सोचना ही गलत था।

साथियों,

माता गुजरी, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और चारों साहिबजादों की वीरता और आदर्श, आज भी हर भारतीय को ताकत देते हैं, हमारे लिए प्रेरणा है। साहिबजादों के बलिदान की गाथा देश में जन-जन की जुबान पर होनी चाहिए थी। लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के बाद भी देश में गुलामी की मानसिकता हावी रही। जिस गुलामी की मानसिकता का बीज अंग्रेज राजनेता मैकाले ने 1835 में बोया था, उस मानसिकता से देश को आजादी के बाद भी मुक्त नहीं होने दिया गया। इसलिए आजादी के बाद भी देश में दशकों तक ऐसी सच्चाइयों को दबाने की कोशिश की गई।

लेकिन साथियों,

अब भारत ने तय किया है कि गुलामी की मानसिकता से मुक्ति पानी ही होगी। अब हम भारतीयों के बलिदान, हमारे शौर्य की स्मृतियां दबेंगी नहीं। अब देश के नायक-नायिकाओं को हाशिये पर नहीं रखा जाएगा। और इसलिए वीर बाल दिवस को हम पूरे मनोभाव से मना रहे हैं। और हम इतने पर ही नहीं रुके हैं, मैकाले ने जो साजिश रची थी, साल 2035 में उसके 200 साल अब थोड़े समय में हो जाएंगे। इसमें अभी 10 साल का समय बाकी है। इन्हीं 10 सालों में हम देश को पूरी तरह गुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहेंगे। 140 करोड़ देशवासियों का ये संकल्प होना चाहिए। क्योंकि देश जब इस गुलामी की मानसिकता से मुक्त होगा, उतना ही स्वदेशी का अभिमान करेगा, उतना ही आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ेगा।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता से मुक्ति के इस अभियान की एक झलक कुछ दिन पहले हमारे देश की पार्लियामेंट में भी दिखाई दी है। अभी संसद के शीतकालीन सत्र में सांसदों ने हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा, दूसरी भारतीय भाषाओं में लगभग 160 भाषण दिये। करीब 50 भाषण तमिल में हुए, 40 से ज्यादा भाषण मराठी में हुए, करीब 25 भाषण बांग्ला में हुए। दुनिया की किसी भी संसद में ऐसा दृश्य मुश्किल है। ये हम सबके लिए गौरव की बात है। भारत की इस language diversity को भी मैकाले ने कुचलने का प्रयास किया था। अब गुलामी की मानसिकता से मुक्त होते हमारे देश में भाषाई विविधता हमारी ताकत बन रही है।

साथियों,

यहां मेरा युवा भारत संगठन से जुड़े इतने सारे युवा यहां उपस्थित हैं। एक तरह से आप सभी जेन जी हैं, जेन अल्फा भी हैं। आपकी जनरेशन ही भारत को विकसित भारत के लक्ष्य तक ले जाएगी। मैं जेन जी की योग्यता, आपका आत्मविश्वास देखता हूं, समझता हूं, और इसलिए आप पर बहुत भरोसा करता हूं। हमारे यहां कहा गया है, बालादपि ग्रहीतव्यं युक्तमुक्तं मनीषिभिः। अर्थात्, अगर छोटा बच्चा भी कोई बुद्धिमानी की बात करे, तो उसे ग्रहण करना चाहिए। यानी, उम्र से कोई छोटा नहीं होता, और कोई बड़ा भी नहीं होता। आप बड़े बनते हैं, अपने कामों और उपलब्धियों से। आप कम उम्र में भी ऐसे काम कर सकते हैं कि बाकी लोग आपसे प्रेरणा लें। आपने ये करके दिखाया है। लेकिन, इन उपलब्धियों को अभी केवल एक शुरुआत के तौर पर देखना है। अभी आपको बहुत आगे बढ़ना है। अभी सपनों को आसमान तक लेकर जाना है। और आप भाग्यशाली हैं, आप जिस पीढ़ी में जन्में हैं, आपकी प्रतिभा के साथ देश मजबूती से खड़ा है। पहले युवा सपने देखने से भी डरते थे, क्योंकि पुरानी व्यवस्थाओं में ये माहौल बन गया था कि कुछ अच्छा हो ही नहीं सकता। चारों तरफ निराशा, निराशा का वातावरण बना दिया गया था। उन लोगों को यहां तक लगने लगा कि भई मेहनत करके क्या फायदा है? लेकिन, आज देश टैलेंट को, प्रतिभा को खोजता है, उन्हें मंच देता है। उनके सपनों के साथ 140 करोड़ देशवासियों की ताकत लग जाती है।

डिजिटल इंडिया की सफलता के कारण आपके पास इंटरनेट की ताकत है, आपके पास सीखने के संसाधन हैं। जो साइंस, टेक और स्टार्टअप वर्ल्ड में जाना चाहते हैं, उनके लिए स्टार्टअप इंडिया जैसे मिशन हैं। जो स्पोर्ट्स में आगे बढ़ रहे हैं, उनके लिए खेलो इंडिया मिशन है। अभी दो ही दिन पहले मैंने सांसद खेल महोत्सव में भी हिस्सा लिया। ऐसे तमाम मंच आपको आगे बढ़ाने के लिए हैं। आपको बस focused रहना है। और इसके लिए जरूरी है कि आप short term popularity की चमक-दमक में न फंसे। ये तब होगा, जब आपकी सोच स्पष्ट होगी, जब आपके सिद्धान्त स्पष्ट होंगे। और इसलिए, आपको अपने आदर्शों से सीखना है, देश की महान विभूतियों से सीखना है। आपको अपनी सफलता को केवल अपने तक सीमित नहीं मानना है। आपका लक्ष्य होना चाहिए, आपकी सफलता देश की सफलता बननी चाहिए।

साथियों,

आज युवाओं के सशक्तिकरण को ध्यान में रखकर नई पॉलिसी बनाई जा रही हैं। युवाओं को राष्ट्र-निर्माण के केंद्र में रखा गया है। ‘मेरा युवा भारत’, ऐसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से युवाओं को जोड़ने, उन्हें अवसर देने और उनमें लीडरशिप स्किल विकसित कराने का प्रयास किया जा रहा है। स्पेस इकोनॉमी को आगे बढ़ाना, खेलों को प्रोत्साहित करना, फिनटेक और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को विस्तार देना, स्किल डेवलपमेंट और इंटर्नशिप के अवसर तैयार करना, इस तरह के हर प्रयास के केंद्र में मेरे युवा साथी ही हैं। हर सेक्टर में युवाओं के लिए नए अवसर खुल रहे हैं।

साथियों,

आज भारत के सामने परिस्थितियां अभूतपूर्व हैं। आज भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है। आने वाले पच्चीस वर्ष भारत की दिशा तय करने वाले हैं। आज़ादी के बाद शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि भारत की क्षमताएं, भारत की आकांक्षाएं और भारत से दुनिया की अपेक्षाएं, तीनों एक साथ मिल रही हैं। आज का युवा ऐसे समय में बड़ा हो रहा है, जब अवसर पहले से कहीं ज्यादा हैं। हम भारत के युवाओं की प्रतिभा, आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता को बेहतर मौके देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

मेरे युवा साथियों,

विकसित भारत की मजबूत नींव के लिए भारत की एजुकेशन पॉलिसी में भी अहम Reforms किए गए हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का फोकस 21वीं सदी में लर्निंग के नए तौर-तरीकों पर है। आज फोकस प्रैक्टिकल लर्निंग पर है, बच्चों में रटने के बजाय सोचने की आदत विकसित हो, उनमें सवाल पूछने का साहस और समाधान खोजने की क्षमता आए, पहली बार इस दिशा में सार्थक प्रयास हो रहे हैं। Multidisciplinary studies, skill-based learning, स्पोर्ट्स को बढ़ावा और टेक्नोलाजी का उपयोग, इनसे स्टूडेंट्स को बहुत मदद मिल रही है। आज देशभर में अटल टिंकरिंग लैब्स में लाखों बच्चे इनोवेशन और रिसर्च से जुड़ रहे हैं। स्कूलों में ही बच्चे रोबोटिक्स, AI, सस्टेनेबिलिटी और डिजाइन थिंकिंग से परिचित हो रहे हैं। इन सारे प्रयासों के साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति में, मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प दिया गया है। इससे बच्चों को पढ़ाई में आसानी हो रही है, विषयों को समझने में आसानी हो रही है।

साथियों,

वीर साहिबजादों ने ये नहीं देखा था कि रास्ता कितना कठिन है। उन्होंने ये देखा था कि रास्ता सही है या नहीं है। आज उसी भावना की आवश्यकता है। मैं भारत के युवाओं के, और मैं भारत के युवाओं से यही अपेक्षा करता हूं, बड़े सपने देखें, कड़ी मेहनत करें, और अपने आत्मविश्वास को कभी भी कमजोर न पड़ने दें। भारत का भविष्य उसके बच्चों और युवाओं के भविष्य से ही उज्ज्वल होगा। उनका साहस, उनकी प्रतिभा और उनका समर्पण राष्ट्र की प्रगति को दिशा देगा। इसी विश्वास के साथ, इस जिम्मेदारी के साथ और इसी निरंतर गति के साथ, भारत अपने भविष्य की ओर आगे बढ़ता रहेगा। मैं एक बार फिर वीर साहिबजादों को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं। सभी पुरस्कार विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।