QuoteMake the most of the first 10 years of service: PM Modi to IAS Officers
QuoteThe way to move forward is by working hard, and taking people along: PM to IAS officers
QuoteWork hard and take people along to bring fundamental change: PM to IAS officers
QuoteOur actions must be in tune with our vision. What we learn on the ground is very important: PM to IAS officers of 2013 batch
QuoteJust like people need development, the administration too needs evolution: PM Modi
QuoteYou are the people going to manage several districts across India. The positive change you bring will be beneficial for the nation: PM

उपस्थित सभी महानुभाव और साथियों,

जीवंत व्यवस्था अगर समयानुकूल परितवर्तन को स्वीकार नहीं करती है, तो उसकी जीवंतता समाप्त हो जाती है। और जो व्यवस्था में जीवंतता न हो, वो व्यवस्था अपने आप में बोझ बन जाती है। और इसलिए ये बहुत ही आवश्यक होता है - जैसे व्यक्ति के विकास की जरूरत होती है, व्यवस्थाओं के विकास की भी आवश्यकता होती है, समयानुकूल परिवर्तन की आवश्यकता होती है। कालबायी चीजों से मुक्ति के लिए बड़ा साहस लगता है। लेकिन अगर प्रयोग करते हैं, उसका सही ढंग से observation करते हैं, तो कुछ चीजें नई हम स्वीकार करने की हम मनोस्थिति भी बना लेते हैं।

आज यहां दो प्रकार के लोग हैं। एक वो हैं जो जानदार हैं, दूसरे वो जाने की तैयारी में हैं। वो इंतजार करते होंगे कि अब 16 में जाना है तो फिर क्या करेंगे, 17 में जाना है तो क्या करेंगे। और आप लोग सोचते होंगे कि यहां से जाने के बाद जहां posting हो पहले क्या करूंगा और फिर क्या करूंगा, कैसे करूंगा। यानि दोनों उस प्रकार के समूहों के बीच में आज का ये अवसर है।

जब आप लोग मसूरी से निकले होंगे तब तो बिल्कुल एक ऐसा मिजाज होगा कि अब वाह अब तो सब कुछ हमारी मुट्ठी में है और फिर अचानक पता चला होगा कि नहीं-नहीं वो नहीं जाना है यहां थोड़े दिन... और पता नहीं आप पर क्या-क्या बीती होगी? और यहां से क्या होगा, समय बताएगा। पर ये विचार मेरे मन में आया तब एक विचार ये था - हम बहुत पहले एक बात बचपन में सुना करते थे कि कुछ लोग पत्थर पर तराशने का काम कर रहे थे, और किसी ने जाकर के पूछा, अलग-अलग लोगों से “क्या भाई, क्या कर रहे हो?” तो किसी ने कहा, “क्या करें भाई, गरीब के घर में पैदा हुए हैं, पत्थर फोड़ते रहते हैं, गुजार करते हैं।“ दूसरे के पास पूछा तो उसने कहा कि “अब देखो भई पहले तो कहीं और काम करता था, लेकिन वहां ठीक से आमदनी नहीं होती थी। अब यहां आया हूं,, देखता हूं, पत्थर पर अपनी भविष्य की लकीरें बन जाएं तो मैं वो कोशिश कर रहा हूं।“

तीसरे के पास गए तो उसने भी ऐसा ही कि “देखा भई अब काम मिल गया है, ऐसे ही सीखते हैं, करते हैं।“ एक के पास चले गए तो वो बड़े उमंग के साथ काम कर रहा था, करते तो वो ही था। वो भी, वो ही करता था जो पहले तीन वाले करते थे। तो उसने कहा कि “नहीं-नहीं जी मैं तो हमारे जीवन का एक बड़ा सौभाग्य है, एक बहुत बड़ा भव्य मंदिर बन रहा है और मैं उसमें ये पत्थर तराश करके, उस मंदिर के अंदर मैं ये हिस्सा तैयार कर रहा हूं।“

क्योंकि उसे मन का भाव ये था कि मैं एक विशाल भव्य मंदिर का काम का एक हिस्सा हूं और मैं तराश रहा हूं, तो पत्थर के एक कोने को तराश रहा हूं। लेकिन मेरा अंतिम परिणाम उस भव्य मंदिर के निर्माण का हिस्सा है। और वो भव्य मंदिर की कल्पना उसकी थकान दूर कर देती थी, उसको बोझ नहीं लगता था पत्थर तराशना।

कभी-कभार हम भी field में जाते हैं। एक किसान कोई बात लेकर के आता है तो उसका काम करते हें। हमें लगता है कि मैंने किसान का काम किया है। किसी गांव में गए, बिजली का समस्या है तो बिजली की समस्या दूर की तो हमें लगता है मैंने बिजली की समस्या में कोई रास्ता निकाला है। लेकिन यहां तीन महीने इस परिस्थिति में रहने के बाद जब जाएँगे , आपको लगेगा कि मैंने वो जो दिल्ली में तीन महीने बिताए थे, और हिंदुस्तान का जो शक्ल-सूरत बदलने का काम है, मैं उसमें एक हिस्सा बनकर के, जिस धरती पर मैं हूं, वहां मैं contribute कर रहा हूं। और इसलिए मसूरी से निकलकर के गए हुए व्यक्ति ने किया हुआ काम, उससे मिले हुआ संतोष, और दिल्ली में बैठकर के पूरे भारत के भविष्य नक्शे को देखकर के, जाकर के अपने क्षेत्र में काम करने वाला प्रयास, ये दोनों में बहुत बड़ा फर्क है। बहुत बड़ा फर्क है। अगर ये अनुभव तीन महीने में आए हैं तो आपकी वहां कि काम करने की सोच बदल जाएगी।

अगर आप जिस क्षेत्र में जाएंगे और उसके अंदर दो गांव ऐसे होंगे जहां बिजली का खंभा भी नहीं लगा होगा। लेकिन अब जब जाएंगे तो आपको लगेगा अच्छा-अच्छा वो हिंदुस्तान के 18 हजार गांव हैं जो बिजली के खंभे नहीं लगे हैं, वो दो गांव मुझे पूरे करने हैं। मैं नहीं देर करूंगा, मैं पहले काम पूरा करूंगा। यानि in tune with vision, हमारा action होगा। और इसलिए एक समग्रता को किताबों के द्वारा नहीं, lecture के द्वारा नहीं, academic discussion के द्वारा नहीं, प्रत्यक्ष रोजमर्रा के काम में काम करते-करते, अलग तरीके से सीखा जा सकता है। अब ये प्रयोग नया है तो ये भी तो विकसित हो रहा है। तो आपने देखा होगा कि पहले आए होंगे तो एक briefing दिया गया होगा। बीच में अचानक एक और काम आ गया होगा कि अरे भई देखो जरा इसको भी करो, क्योंकि ये एक व्यवस्था को विकसित करना है तो सुझाव जैसे आते गए जोड़ते गए।

मेरी आप सबसे भी गुजारिश है एक तीन महीने वाला प्रयोग कैसे हो, कितने समय का हो, कैसे उसमें बदलाव लाया जाए औऱ अच्छा कैसे बनाया जाए या इसको न किया जाए, ये भी हो सकता है। ये न किया, इसका कोई लाभ नहीं है। ऐसा क्या किया जाए, ये पहली batch है जिसको इस प्रकार से जुड़ने का अवसर मिला है। अगर आप उस प्रकार के सुझाव department को देंगे। मुझे department बता रहे थे कि वो regular आपसे interaction करते रहते थे, आपके अनुभवों को पूछते रहते थे, बताते थे। लेकिन फिर भी अगर आपको कुछ लगता है कि हां इस व्यवस्था को और अधिक परिणामकारी बनाना है, प्राणवान बनाना है तो कैसे बनाया जाए, इस पर आप लोग सुझाव देंगे तो अच्छा होगा।

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अब आप एक नई जिम्मेवारी की ओर जा रहे हैं। आपके मन में दो प्रकार की बातें हो सकती हैं। एक तो curiosity होगी - “यार, ठीक है, पहली बार जा रहे हैं। सरकारी व्यवस्था में पहले तो कभी रहे नहीं। जिस जगह पर जा रहे हैं, जगह कैसी होगी, काम कैसा होगा?” और दूसरा मन में रहता होगा कि “यार कुछ करके दिखाना है।“ और ये आपके हर एक के मन में होगा, ये नहीं है कि नहीं होगा क्योंकि हर व्यक्ति को लगता है कि जीवन में जो भी काम मिले उसको सफल होने की इच्छा हर व्यक्ति को रहती है। लेकिन संकट तब शुरू होता है कि किसी को लगता है कि मैं जाकर के कुछ कर दूंगा ते ज्यादातर लोगों के career का प्रारंभ संघर्ष में उलझ जाता है। उसे पता नहीं होता है कि भई तुम तो 22, 28, 25, 30 साल के हो लेकिन वहां बैठा हुआ 35 साल से वहां बैठा हुआ है। तुम्हारी उम्र से ज्यादा सालों से वो वहां बैठा हुआ है।

आपको लगता है कि “मैं तो बड़ा IAS अफसर बन के आया हूं” लेकिन उसको लगता होगा कि “तेरे जैसे 15 आकर के गए हैं मेरे कार्यकाल में।” और ये ego clash से शुरुआत होती है। आप सपने लेकर के गए हैं, और वो परंपरा लेकर के जी रहा है। आपके सपने और उसकी परंपरा के बीच टकराव शुरू होता है। और एक पल ऐसी भी आती है - या तो संघर्ष में समय बीत जाता है या अपने बलबूते पर आप एकाध चीज कर देते हैं। और आपको लगता है कि देखो मैंने करके दिखा दिया न। यहां बैठे ऐसे सबको अनुभव आ चुका होगा, आप उनसे बात करोगे तो पता चलेगा। क्या ये आवश्यक नहीं है कि हम वहां जाकर के, क्योंकि आपके जीवन में 10 साल से अधिक समय नहीं है काम करने का। ये मानकर के चलिए। 10 साल से अधिक समय नहीं है। जो कुछ भी नया कर पाओगे, जो कुछ भी नया सीख पाओगे, जो भी प्रयोग करोगे वो 10 साल का ही साथ आपके पास है बाकी तो आप हैं, file है और कुछ नहीं है। लेकिन ये 10 साल वो नहीं है, आपके 10 साल file नहीं, life जुड़ते हैं। और इसलिए जो ये 10 साल का maximum उपयोग करेगा, उसका foundation इतना मजबूत होगा कि बाकी 20-25 साल वो बहुत contribute कर पाएगा।

अगर वो धरती की चीजों से रस-कस लेकर के नही आया क्योंकि समय बीतते ही वो इस pipeline में आया है तो स्टेशन पर पहुंचना ही है उसको, वो खुद भी एक बार बोझ बन जाता है। फिर लगता है कि “भई अब क्या करें 20 साल पुराना अफसर है तो कहां रखोगे, चलो यार उस department में डाल दो, अब जाने department का नसीब जानें।“ लेकिन अगर हम कर-करके आए हैं, सीखकर के आए हैं, जी-जान से जुट गए हैं, आप देखिए आपकी इतनी ताकत होगी चीजों को जानने की, समझने की, उसको handle करने की क्योंकि आपने खुद ने किया होगा। कभी-कभार ये experience बहुत बड़ी ताकत रखते हैं।

मुझे एक मुख्यमंत्री ने एक घटना सुनाई थी, वो अपने career में बहुत सामान्य से निकले थे, वो भी police department में छोटी नौकरी करते-करते आए थे। व्यक्तित्व में काफी कुछ था, मुख्यमंत्री बने। उनके मुख्यमंत्री काल में एक बहुत बड़े दिग्गज नेता के बेटे का kidnapping हुआ। और बड़ा tension पैदा हो गया क्योंकि वो जिसके बेटा का kidnapping हुआ था वो दूसरे दल के थे। यह जो मुख्‍यमंत्री थे वो तीसरे दल के थे। अब मीडिया को तो भई मौज ही थी। तो लेकिन उन्‍होंने इस भारी machinery को mobilize किया। उन्‍होंने एक सूचना दी। वो बड़ा interesting था। उन्‍होंने अपने intelligence वालों को कहा कि “भई तुम जरा देखो, दूध बेचने वालों को मिलो।“ और देखिए कहां पर अचानक दूध की मांग बड़ी है। पहले 500 ग्राम लेते थे अब 2 लीटर ले रहे हैं, कहां है जरा देखो। उन्‍होंने identify किया कुछ थे जहां पर अचानक दूध ज्‍यादा लिया जा रहा था। उन्‍होंने कहा कि उसकी जरा monitoring करो और surprisingly, यह kidnap कर करके जो लोग थे, जिस जगह पर ठहरे थे, वहीं पर दूध खरीदा जाता था दो-तीन लीटर अचानक। उस एक बात को ले करके उन्‍होंने अपना पूरा जो बचपन का एक, जवानी का जो पुलिसिंग का अनुभव था, मुख्‍यमंत्री बनने के बाद काम में लगाया। और जो पूरा department के दिमाग में नहीं बैठा था, उनके दिमाग में आया, और किडनेप करने वाले सारे धरे पकड़े गए, और बच्‍चे को निकाल करके ले आये। और एक बहुत बड़े संकट से बाहर आ गए। यह क्‍यों हुआ? तो अपने जीवन के प्रांरभिक कार्यकाल में किये हुए कामों के experience से हुआ।

आपके जीवन में आप उस अवस्‍था में है, उस अवस्‍था में है। इतना पसीना बहाना चाहिए, इतना पसीना बहाना चाहिए कि साथियों को लगना चाहिए कि यार यह बड़ा अफसर ऐसा है खुद बड़ा मेहनत करता है तो औरों को कभी कहना नहीं पड़ता है। सब लोग दौड़ते हैं। आप अगर बोर्ड लगाओगे कि समय पर ऑफिस आना चाहिए। उसकी इतनी ताकत नहीं कि आप समय के पहले पांच मिनट पहले पहुंच जाए, उसकी ताकत है। आप अफसरों को कहे कि सप्‍ताह में एक दिन दौरा करना चाहिए, रात को गांव में रूकना चाहिए, दो दिन रूकना चाहिए। उतनी ताकत नहीं है कि जब तक हम जा करके रूके।

हमारे पूर्वजों ने जो व्‍यवस्‍थाएं विकसित की होगी, वो निकम्‍मी नहीं हो - यह मानकर चलिए। उसके पीछे कोई न कोई logic होंगे, कोई न कोई कारण होंगे। मूलभूत बातों का अपना सामर्थ्‍य होता है। हम उसको religiously follow कर सकते हैं? Religiously हम follow करे लेकिन उसकी बुद्धिशक्ति को जोड़ करके उसमें से outcome की दिशा में हम प्रयास करें। और अगर यह हम करेंगे तो हमें लगेगा कि हम सचमुच में परिणाम ला रहे हैं। अब आप लोग जो हैं करीब-कीरब आने वाले 10 साल में हिंदुस्‍तान के one-fifth districts को संभालने वाले लोग हैं यहाँ। Next ten year हिंदुस्‍तान के one-fifth district का भाग्‍य बदलने वाले है! आप कल्‍पना कर सकते हैं कि देश के one-fifth district को यह टीम अगर बदल दें, तो मैं नहीं मानता हूं कि हिंदुस्‍तान को बदलने में कोई रूकावट आ सकती है। आपके पास व्‍यवस्‍था है, आपके पास निर्णय करने का अधिकार है, आपके पास टीम है, resources... क्‍या नहीं है? सब कुछ है।

दूसरा, कम से कम संघर्ष, कम से कम। यह तो मैं नहीं कह सकता कि कहीं कोई हो ही नहीं सकता। थोड़ा बहुत तो कोई हो सकता है। लेकिन Team formation की दिशा में प्रयास। पुराने अनुभवियों को पूछना। जिस district में आपको लगाया जाएगा, हो सकता है यहां पर बैठे हुए कोई लोग भी ऐसे होंगे जो उस district में काम करके आया होगा, अपनी career की शुरूआत में। तो जरा ढूंढिए न कि भई पिछले 25 साल में आप जहां गए हैं, वहां पहले कौन-कौन अफसर आ करके गए हैं। चिट्ठी लिखिए उनको, संपर्क करने की कोशिश करिए कि आप जब आए थे तो क्‍या विशेषता थी, कैसे हुआ। आपको 25 साल का पूरा History, आप बड़ी आसानी से सब कर लेंगे। आप एक continuity में जुड़ जाएंगे। और बहुत लोग होंगे।

एक मनुष्‍य जीवन भी बहुत बड़ी विशेषता है, उसका फायदा भी लिया जा सकता है। इंसान जब निवृत्ति होती है, और जब पेंशन आता है तो वो पेंशन बौद्धिक रूप जैसा होता है। पूरा ज्ञान उभर करके पेंशन के साथ आ जाता है। और वो इतने सुझाव-सलाह देते हैं – ऐसा करते तो अच्‍छा होता, ऐसा करते तो अच्‍छा होता। अब यह गलत कर रहे थे, मेरा मत नहीं है। अपने समय में कर नहीं पाए, लेकिन उनको यह पाता था कि यह करने जैसा था। कुछ कारण होंगे नहीं कर पाए। अगर आपके माध्‍यम से होता है तो वो चाहता है यार कि तुम यह करो। इसलिए उनके जो ज्ञान संपूर्ण है वो हमें उपलब्‍ध होता है। अगर आपके जिस इलाके में काम किया वहां आठ-दस अफसर पिछले 20-22 साल में निकले होंगे, आज जहां भी हो समय ले करके फोन पर, चिट्ठी लिख करके, “मुझे आपका माग्रदर्शन चाहिए। मैं वहां जा रहा हूं, आपने इतने साल काम किया था, जरा बताइये।“ वो आपको लोगों के नाम बताएंगे। “देखों उस गांव में जो वो दो लोग थे वो बहुत अच्‍छे लोग थे। कभी भी काम आ सकते हैं। हो सकता है आज उनकी उम्र बड़ी हो गई हो, वे काम आएंगे।“ आपको यह qualitative यह अच्‍छी विरासत है। यह सरकारी फाइल में नहीं होती है बात, और न ही आपके दफ्तर में कोई होगा जो आपकी उंगली पकड़ करके ले जाए। यह अनुभव से निकले हुए लोगों से मिलती है। क्‍या हमारी यह कोशिश रहनी चाहिए, क्‍या हम इसमें कुछ जोड़े? हम यह मानकर चले कि सरकार की ताकत से समाज की ताकत बहुत ज्‍यादा होती है। सरकार को जिस काम को करने में लोहे के चने चबाने पड़ते हैं, अगर समाज एक बार साथ जुड़ जाए, तो वो काम ऐसे हो जाता है पता तक नहीं चलता है। हमारे देश का तो स्‍वभाव है, natural calamity आती है। अब सरकारी दफ्तार में मान लीजिए food packet पहुंचाने है, तो कितनी ही management करे - budget खर्च करे दो हजार, पांच हजार, लेकिन समाज को कह देगा कि भई देखिए food packet लगाइये लोग पानी आया है परेशान है। आप देखिए food packet को वितरित करने में हमारी ताकत कम पड़ जाए इतने लोग भेज देते हैं। यह समाज की शक्ति होती है।

सरकार और समाज के बीच की खाई - यह सिर्फ politician भर नहीं सकते। और हमने हमारा स्‍वभाव बदलना पड़ेगा। हम elected body के द्वारा ही समाज से जुड़े, यह आवश्‍यक नहीं है। हमारी व्‍यवस्‍था का सीधा संवाद समाज के साथ होना चाहिए। दूसरी कमी आती है कभी established कुछ पुर्जे होते हैं, उसकी के through हम जाते हैं, उससे ज्‍यादा फायदा नहीं होता है। क्‍येांकि उनका establishment हो गया है, तो उनका दायरा भी fix हो जाता है। हम सीधे सीधे संवाद करे, नागरिकों के साथ सीधे-सीधे संवाद करें, आप देखिए इतनी ताकत बढ़ जाएगी। इतनी मदद मिलेगी, जिसकी आप कल्‍पना नहीं कर सकते।

आपके हर काम को वो करके देते हैं। अगर आपको शिक्षा में काम लेना है तो आप आपने सरकारी अधिकारियों के माध्‍यम से जाएंगे, या टीचर के साथ बैठ लेंगे एक बार? अब देखिए वो अपने आप में एक शक्ति में बदलाव आना शुरू हो जाएगा। मेरा कहने का तात्‍पर्य है कि हम अपने आप को हमारे दफ्तर से अगर बाहर निकाल सकते हैं, हम हमारी व्‍यवस्‍थाओं को दफ्तरों से बाहर निकाल करके जोड़ सकते हैं। अब यह अनुभवी अफसरों ने जो योजना बनाई थी और आप लोगों को जो मैंने सुझाव दिया था, सिन्‍हा जी को जरा इनको एक देखिए वो बराबर इसका discussion करे और क्‍या कमियां है इनको ढूंढकर लाइये, अब आपकी presentation में वो सारी बातें उजागर की है। और आपका जितना अनुभव था जिस circumstances में आपने काम किया, अपने सुझाव भी दिए। मैं चाहूंगा कि department के लोग जरा इसको एक बार seriously proper forum में देखें कि क्‍या हो सकता है। हो सकता है कि दस में से दो होगा लेकिन होगा तो सही।

यह प्रक्रिया, क्‍या आप यही प्रक्रिया, क्‍या आप यही परंपरा आप जहां जाए एक अलग-अलग layer के जो एकदम fresh जो हो, कोई पांच साल के अनुभवी, कोई सात साल के, उनको एक-आध दो समस्‍या अगर उस इलाके की नजर आती है – major दो समस्‍या। और अगर आपको लगता है कि मुझे दो-ढाई साल यहां रहना है यह दो समस्‍या को मुझे address करना है। उनको बिठाइये, बोलिये “अरे, देखो भाई जरा study करके बताइये। हम बातचीत पहुंचा क्‍यों नहीं पा रहे? क्‍या उपाय करे, कैसे सुधार करे, तुम मुझे सुझाव दो।“ आप देखिए वो आपकी टीम के ऐसे हिस्‍से बन जाएंगे, जो आपको शायद खुद जा करके छह महीने study में लगेगा, वो आपको एक सप्‍ताहभर के अंदर दे देंगे। हम हमारी टीम को अलग-अलग layer कैसे तैयार करे, expansion कैसे करे। यह अगर हमारी administration में लचीलापन हम लाते हैं, आप देखिए आप बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। आपके जिम्‍मे हैं... मैं आज उन बातों को करना नहीं चाहता हूं कि भारत सरकार की यह योजना है उसको यह लागू करो, फलाना लागू करो। वो सरकारी अफसर का स्‍वभाव होता है कि अगर ऊपर से कागज़ आए तो उसके लिए वो बाइबल हो जाता है। लेकिन कभी-कभार उसमें ताकत भरने की जिम्‍मेारी व्‍यक्ति-व्‍यक्ति पर होती है। और हम उस बात को करे, तो आप अच्‍छा परिणाम दे सकते हैं।

कभी-कभार हम देखते हैं कि भई दो-चार लोग बीमार मिल जाते हैं तो प‍ता चल जाता है कि क्‍या है, “वायरल चल रहा है।“ वायरल है इसके कारण बीमार है। लेकिन at the same time हम देखते हैं कि वायरल होने के बाद भी बहुत लोग हैं जो बीमार नहीं है। बीमार इसलिए नहीं है कि इनकी immunity है, उनकी inherent ताकत है जिसके कारण वायरल उनको effect नहीं करता। क्‍या हम जहां जाएं वहां, वायरल चाहे जो भी हो - आलस का हो सकता है वायरल, उदासीनता का हो सकता है वायरल, corruption का हो सकता है वायरल – होंगे। लेकिन अगर मैं एक ऐसी ताकत ले करके जाता हूं। अपने आप वायरल होने के बाद भी, एक दवाई की गोली वायरल के होने के बाद भी टिका सकती है। तो जीता-जाता इंसान उस वायरल वाली अवस्‍था में भी स्थिति को बदल सकता है। अगर एक टिकिया इतना परिवर्तन ला सकती है, तो मैं तो इंसान हूं। मैं क्‍यों नहीं ला सकता? रोने बैठने से होता नहीं है।

लेकिन तनाव और संघर्ष के साथ स्थितियां बदली नहीं जा सकती है। आप लोगों को कितना जोड़ते है, उतनी आपकी ताकत ज्‍यादा बढ़ती है। आप कितने शक्तिशाली अनुभव कराते हैं, उससे उतना परिणाम नहीं मिलता है कि जितना कि लोगों को जोड़ने से मिलता है। और इसलिए आप इस क्षेत्र में जा रहे हैं जो जिम्‍मेवारियां निभाने जा रहे हैं... राष्‍ट्र के जीवन में कभी-कभी ऐसे अवसर आते हैं, जो हमें कहां से कहां पहुंचा देते हैं। आज वैश्विक परिवेश में मैं अनुभव करता हूं कि इस कालखंड का ऐसी golden opportunity को भारत को खोने का कोई अधिकार नहीं है। न सवा सौ करोड़ देशवासियों को ऐसी golden opportunity को भारत को खोने का कोई अधिकार है, न व्‍यवस्‍था में जुड़े हुए हम सबको इस golden opportunity को खोने का अवसर है। ऐसे अवसर वैश्विक परिवेश में बहुत कम आते हैं, जो मैं आज अनुभव कर रहा हूं। जो आया है, यह हाथ से निकल न जाए। यह मौके का उपयोग भारत को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए कैसे हम करें? स्थितियों का हम फायदा कैसे उठाए? और हम जो जहां है वहां, जितनी उसकी जिम्‍मेवारी है, जितनी उसकी ताकत है, हम उसका अगर पूरा भरपूर उपयोग करेंगे और तय करेंगे, नहीं नहीं मुझे आगे ले जाना है। आप देखिए देश चल पड़ेगा। मेरी आप सबको बहुत शुभकामनाएं हैं, बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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PM Modi’s remarks at the BRICS session: Environment, COP-30, and Global Health
July 07, 2025

Your Highness,
Excellencies,

I am glad that under the chairmanship of Brazil, BRICS has given high priority to important issues like environment and health security. These subjects are not only interconnected but are also extremely important for the bright future of humanity.

Friends,

This year, COP-30 is being held in Brazil, making discussions on the environment in BRICS both relevant and timely. Climate change and environmental safety have always been top priorities for India. For us, it's not just about energy, it's about maintaining a balance between life and nature. While some see it as just numbers, in India, it's part of our daily life and traditions. In our culture, the Earth is respected as a mother. That’s why, when Mother Earth needs us, we always respond. We are transforming our mindset, our behaviour, and our lifestyle.

Guided by the spirit of "People, Planet, and Progress”, India has launched several key initiatives — such as Mission LiFE (Lifestyle for Environment), 'Ek Ped Maa Ke Naam' (A Tree in the Name of Mother), the International Solar Alliance, the Coalition for Disaster Resilient Infrastructure, the Green Hydrogen Mission, the Global Biofuels Alliance, and the Big Cats Alliance.

During India’s G20 Presidency, we placed strong emphasis on sustainable development and bridging the gap between the Global North and South. With this objective, we achieved consensus among all countries on the Green Development Pact. To encourage environment-friendly actions, we also launched the Green Credits Initiative.

Despite being the world’s fastest-growing major economy, India is the first country to achieve its Paris commitments ahead of schedule. We are also making rapid progress toward our goal of achieving Net Zero by 2070. In the past decade, India has witnessed a remarkable 4000% increase in its installed capacity of solar energy. Through these efforts, we are laying a strong foundation for a sustainable and green future.

Friends,

For India, climate justice is not just a choice, it is a moral obligation. India firmly believes that without technology transfer and affordable financing for countries in need, climate action will remain confined to climate talk. Bridging the gap between climate ambition and climate financing is a special and significant responsibility of developed countries. We take along all nations, especially those facing food, fuel, fertilizer, and financial crises due to various global challenges.

These countries should have the same confidence that developed countries have in shaping their future. Sustainable and inclusive development of humanity cannot be achieved as long as double standards persist. The "Framework Declaration on Climate Finance” being released today is a commendable step in this direction. India fully supports this initiative.

Friends,

The health of the planet and the health of humanity are deeply intertwined. The COVID-19 pandemic taught us that viruses do not require visas, and solutions cannot be chosen based on passports. Shared challenges can only be addressed through collective efforts.

Guided by the mantra of 'One Earth, One Health,' India has expanded cooperation with all countries. Today, India is home to the world’s largest health insurance scheme "Ayushman Bharat”, which has become a lifeline for over 500 million people. An ecosystem for traditional medicine systems such as Ayurveda, Yoga, Unani, and Siddha has been established. Through Digital Health initiatives, we are delivering healthcare services to an increasing number of people across the remotest corners of the country. We would be happy to share India’s successful experiences in all these areas.

I am pleased that BRICS has also placed special emphasis on enhancing cooperation in the area of health. The BRICS Vaccine R&D Centre, launched in 2022, is a significant step in this direction. The Leader’s Statement on "BRICS Partnership for Elimination of Socially Determined Diseases” being issued today shall serve as new inspiration for strengthening our collaboration.

Friends,

I extend my sincere gratitude to all participants for today’s critical and constructive discussions. Under India’s BRICS chairmanship next year, we will continue to work closely on all key issues. Our goal will be to redefine BRICS as Building Resilience and Innovation for Cooperation and Sustainability. Just as we brought inclusivity to our G-20 Presidency and placed the concerns of the Global South at the forefront of the agenda, similarly, during our Presidency of BRICS, we will advance this forum with a people-centric approach and the spirit of ‘Humanity First.’

Once again, I extend my heartfelt congratulations to President Lula on this successful BRICS Summit.

Thank you very much.