PM Modi's reply to Motion of thanks to President’s Address in Lok Sabha

Published By : Admin | March 3, 2016 | 13:28 IST
Bills that are to be passed are for the people. They are for freeing the system from middlemen: PM
We will have to focus on primary education and water conservation: PM
Shortcomings in Govt initiatives must be discussed for further enhancement: PM
Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana would be applicable to all districts of the country: PM
We will have to trust the 125 crore people of India: PM
Lets walk shoulder to shoulder and do something for the country: PM

अध्‍यक्ष महोदया जी, मैं सबसे पहले, राष्‍ट्रपति जी के प्रति आभार व्‍यक्‍त करना चाहता हूं। उन्‍होंने राष्‍ट्रपति अभिभाषण के माध्‍यम से न सिर्फ सदनों को लेकिन देश और दुनिया को भारत का गौरव, भारत की गरिमा, भारत की उत्‍तम विकास यात्रा और विश्‍व के पास भारत की जो अपेक्षा हैं, वो भारत के सामान्‍य मानव की जो अपेक्षाएं हैं, उसकी पूर्ति करने के प्रयास उसका एक विस्‍तार से बयान, आदरणीय राष्‍ट्रपति जी ने हमारे सामने प्रस्‍तुत किया है। मैं उनके प्रति आदरपूर्वक धन्‍यवाद व्‍यक्‍त करता हूं और धन्‍यवाद करने के लिए मैं खड़ा हूं।

सदन की इस महत्‍वपूर्ण चर्चा में कई आदरणीय सदस्‍यों ने अपने अनुभव का, अपने विचारों का लाभ सदन को और देश को पहुंचाया है। आदरणीय श्री मल्लिकार्जुन जी, श्री वैंकेया नायडू जी, मिनाक्षी लेखी जी, हरसिमरत कौर जी, श्री पी. नागराजन जी, श्रीमान सौगत राय, श्रीमान भर्तृहरि महताब जी, श्रीमान जितेंद्र रेड्डी जी, मोहम्‍मद सलीम जी, सुप्रिया सुले जी, मुलायम सिंह यादव जी, राहुल गांधी जी, अनुप्रिया पटेल जी, श्री रियो जी, श्री ओवैसी जी, कई वरिष्‍ठ आदरणीय महानुभावों ने अपने विचार रखे हैं। उन सभी को मैं धन्‍यवाद कहता हूं, क्‍योंकि इस विचार को उन्‍होंने जनता को सशक्‍त बनाने में, सुरेख बनाने में अपना योगदान दिया है।

मैं आज इस सदन में, हम सभी सांसदों की तरफ से स्‍पीकर महोदय का भी धन्‍यवाद करना चाहता हूं। क्‍योंकि, राष्‍ट्रपति जी के भाषण में संसद की कार्यवाही किस रूप में चलनी चाहिए, कैसी होना चाहिए उसकी अपेक्षाएं व्‍यक्‍त की गई है। और यह अच्‍छी बात है कि हमने अपने बड़ों की सलाह माननी चाहिए, उनसे सलाह लेनी चाहिए। और राष्‍ट्रपति जी हमारे संवैधानिक व्‍यवस्‍था के सबसे बड़े पद पर है। और उनकी सलाह हमने अवश्‍य माननी चाहिए। और मैं स्‍पीकर महोदय का विशेष रूप से इसलिए आभार व्‍यक्‍त करना चाहता हूं कि पिछले कुछ समय में उन्‍होंने कई नये initiative लिए हैं। उन्‍होंने जो SRI योजना प्रस्‍तुत की है Speaker’s Research Initiative. हम सभी सांसदों को अलग-अलग विषय पर research material मिले। हम लोगों का प्रबोधन हो। एक अच्‍छा प्रकल्‍प आपके द्वारा चल रहा है और वो संसद को qualitative change लाने में उपयोगी होगा। मैं इसके लिए आपका आभार व्‍यक्‍त करता हूं।

मैं अध्‍यक्ष महोदया का इस बात के लिए भी अभिनंदन करना चाहता हूं कि उन्‍होंने अगले पांच और छह मार्च को, पूरे देश की elected women members को Assembly and Loksabha उनके एक सर्वदलीय सम्‍मेलन की घोषणा की है। हमारे भूतपूर्व राष्‍ट्रपति जी समेत, सभी महिला leaders का उसमें प्रदर्शन मिलने वाला है। Women empowerment की दिशा में decision making process में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने की दिशा में आपका एक अहम कदम है और मैं मानता हूं इस हिंदुस्‍तान के संसदीय गतिविधि के साथ एक अच्‍छा कदम आपने उठाया है और सभी दलों ने सहयोग किया है। सबसे बड़ी बात है कि सभी दल के women सांसद मिलकर इसको कार्ययोजना बना रहे हैं। एक बहुत ही अच्‍छा माहौल इसका दायर हुआ है। इसके लिए मैं आपका आभार व्‍यक्‍त करता हूं।

उसी प्रकार से BPST Training programme में जो नये हमारे सांसद चुन करके आए हैं, उनकी लगातार प्रशिक्षा, उसमें भी काफी अच्‍छा आपके द्वारा काम था, Orientation programme चल रहे हैं। मैं इसके लिए भी आपका बहुत-बहुत आभार व्‍यक्‍त करता हूं।

राष्‍ट्रपति जी ने कहा है कि सदन बहस के लिए होता है। हम देख रहे हैं कि देश पिछले दिनों सदन में जो हुआ उससे बहुत पीडि़त भी है, चिंतित भी है। और जब सदन नहीं चलता है, तो सत्‍तापक्ष का नुकसान तो बहुत कम होता है, देश का नुकसान बहुत होता है। लेकिन सबसे ज्‍यादा नुकसान सांसदों का होता है, उसमें भी विपक्ष के सांसदों का होता है। क्‍योंकि उनका जनता की आवाज उठाने से रोका जाता है। और इसलिए, संसद में कितने विरोधी विचार क्‍यों न हो, कितनी ही नाराजगी क्‍यों न हो, लेकिन वो प्रकट होना यह आवश्‍यकता है। सदन एक ऐसा forum है, जहां तर्क रखे जाते हैं, जहां तीखे जवाब दिये जाते हैं। एक ऐसा forum है, जहां सरकार पर सवाल किये जाते हैं। एक ऐसा forum है जहां सरकार को अपना बचाव करना होता है। अपने पक्ष में सफाई देनी होती है। बहस के दौरान किसी को बख्‍शा नहीं जाता और उसकी उम्‍मीद भी नहीं की जानी चाहिए। लेकिन बहस के दौरान अगर सदन की गरिमा और मर्यादा बनी रही तो हम अपनी बात और मजबूती से रख पाएंगे और साथ ही साख भी बना पाएंगे। यह उपदेश नरेंद्र मोदी का नहीं है। यह भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमान राजीव गांधी का है।

राष्‍ट्रपति जी की बात इसलिए महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि उन्‍होंने लम्‍बे अरसे तक इस प्रक्रिया में भी अपने जीवन के महत्‍वपूर्ण वर्ष बिताएं हैं। और उन लोगों के साथ बिताएं हैं कि जिनसे ज्‍यादा अपेक्षा बहुत स्‍वाभाविक है। मैं एक और बात कहना चाहता हूं। मैं इस सदन में मौजूद सभी दलों को अहम बिल पास कराने में मदद का न्‍यौता देता हूं। और जब मैं इस सदन कहता हूं मतलब दोनों सदन। यह बिल लोगों के लिए है। यह बिल इसलिए जरूरी है ताकि system से दलालों को खत्‍म किया जा सके। यह बिल इसलिए है ताकि जमीनी स्‍तर पर जिम्‍मेदारियां बांटी जा सके। यह बिल इसलिए है ताकि प्रशासन को जवाबदेह बनाया जा सके। यह बिल इसलिए है ताकि योजनाओं में आम जनता की भूमिका बढ़ाई जा सके। सामाजिक न्‍याय में, विकास में, उनकी भागीदारी बढ़ाई जा सके। यह बिल इस लोकतंत्र की बुनियाद को मदद करने के लिए है। यह भी नरेंद्र मोदी नहीं कह रहा। यह भी हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमान राजीव गांधी ने कहा है। और हमने बड़ों की बात माननी चाहिए।

सदन को रोकने के संबंध में कुछ बातों की चर्चा जरूरी लगती है। हमारे भूतपूर्व स्‍पीकर और यहां कुछ महानुभाव है जिनके वो guide and philosopher रहे हैं, लम्‍बे अरसे तक- श्रीमान सोमनाथ चटर्जी। उन्‍होंने कहा कि ऐसे मुद्दों पर जिनके बारे में धारणा होती है कि वे महत्‍वपूर्ण है। सदन की बैठकों को रोकना पूरी तरह counter-productive है। दुर्भाग्‍य से राजनीतिक दलों में यह विचार पनपा है कि संसद की कार्रवाई में व्‍यवधान डालने और अंतत: सदन को समय से पहले स्‍थगित कराने से, उस विषय का या मुद्दे का महत्‍व साबित हो जाएगा, जिस पर विभिन्‍न पार्टियां विरोध कर रही है। संसद के कार्यों को बाधित करने को अगर देश के लोगों के खिलाफ युद्ध जैसा नहीं भी माने, तो कम से कम संसदीय प्रणाली में आस्‍था की कमी तो मानना ही चाहिए। दुर्भाग्‍य से लगभग सभी राजनीतिक दल और यहां तक की जो छोटे दल है उनका भी ऐसा ही विश्‍वास और नजरिया दिखाई दे रहा है। यह चिंता श्रीमान सोमनाथ जी ने भी सभी सदस्‍यों के सामने प्रकट की है।

मैं एक और बात को आज कहना चाहता हूं, सदन चलने के संबंध में। यहां हम संसद में जो भारत की Soveign Authority है। भारत के शासन की जिम्‍मेदारी लेकर आए हैं। निश्चित रूप से इस Soveign Body का सदस्‍य होने से, बड़ी जिम्‍मेदारी और बड़ा सौभाग्य कुछ भी नहीं हो सकता। क्‍योंकि यह इस देश की विशाल जनसंख्‍या की नियति के लिए जिम्‍मेदारी है यह सदन। हम में से सभी को, अगर हमेशा नहीं तो जीवन में कभी न कभी, जिम्‍मेदारी का यह बड़ा एहसास जरूर हुआ होगा और जिस destiny के लिए हमें बुलाया गया है, उसे हमने महसूस जरूर किया होगा। हम इस योग्‍य है या नहीं वह अलग मामला है। अत: इन पांच वर्षों के दौरान हम अपने इन कार्यों में न केवल इतिहास के किनारे खड़े रहे, बल्कि कभी-कभी हम इतिहास बनाने की प्रक्रिया में भी शामिल हुए हैं। यह बात सांसदों के संबंध में इतनी ऊंची कल्‍पना हमारे प्रथम प्रधानमंत्री आदरणीय पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने 1957 में व्‍यक्‍त की थी, तब हम में से कोई नहीं थे। हम में से कोई नहीं था, उस समय भी यह चिंता, हम में से और हमारे दल में से तो कोई नहीं था, उस समय आपने यह बात कही थी। मैं इसलिए कह रहा हूं क्‍योंकि यह देश को जानना जरूरी है कि इसी लोकसभा में हो-हल्‍ले के बीच आपकी दृढ़ता के कारण आपके उच्‍च मनोबल के कारण कुछ बिल पास हुए, लेकिन वे आगे नहीं पहुंच पाए।

National Water-way bill, हमारे यहां जल शक्ति का कितना सामर्थ्‍य है, कितना उपयोग है, पानी बह रहा है। उसके लिए यह सरकार एक योजना लेकर काम करना चाहती है। इस तरह उसको रोक करके देश का क्‍या भला कर रहे हैं। मैं चाहूंगा कि जब राष्‍ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में इस बात को कहा है। उसी प्रकार से Whistel-blower Protection Amendment Bill, यह वो विषय है जो हम citizen-centric कह सके। हम जागरूक नागरिकों के अधिकारों की बात कह सकें। और इसलिए उसको रोकने के पीछे मुझे कोई तर्क नजर नहीं आता है। GST बिल हम कल से सुन रहे हैं यह तो हमारा है, यह तो हमारा है, यह तो हमारा है। यह भी आप ही का है। GST Bill आप ही का है। और उसको रोका जा रहा है। Consumer Protection bill, यह consumer कौन है? उसे रोका गया है। Insolvency and Bankruptcy Code. हम सोचे राष्‍ट्रपति जी जो संविधान के सबसे बड़े व्‍यक्ति हैं उनकी सलाह हम जरूर मानेंगे।

और जब मैं संसद की बात कर रहा हूं तो मैं सभी आदरणीय सदस्‍यों से भी, मेरे कुछ विचार रखना चाहता हूं। एक पहली बार सदन में आए हुए एक सांसद के विचार हैं, एक प्रधानमंत्री के विचार के रूप में न लिया जाए लेकिन हो सकता है शायद यह चीजें काम आज जाए।

मेरा एक सुझाव है, आपने पांच और छह की तो एक अच्‍छा कार्यक्रम की रचना की है। इस बार आठ मार्च को हमारा सदन चलता होगा। अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस है, उस समय का आठ मार्च का जो एजेंडा है वो ही रहे, लेकिन हम तय कर सकते हैं कि आठ मार्च को सिर्फ हमारी women member ही बोलेंगे। हम हमारी संसदीय गतिविधि (व्यवधान).

उसी प्रकार से, हम बहुत समय, हमारे समय ऐसा था, आपके समय ऐसा है, आप ऐसे हैं, हम वैसे थे। यह हम करते हैं। और देश को यह अब हमारे विषय में पूरा पता है। इसलिए देश को कोई तकलीफ न हो। हम सब कौन, कहां खड़े हुए हैं, क्‍या सोचते हैं यह देश पूरी तरह जानता है। लेकिन क्‍या, मैं सभी वरिष्‍ठ महानुभव से मार्गदर्शन चाहूंगा कि क्‍या हम वर्ष में दो सत्र के समय या एक सत्र तय करेंगे। उस पूरे सत्र के दौरान एक week ऐसा हो कि जिस week में सिर्फ जो first timer MP है, उन्‍हीं को बोलने के लिए निमंत्रित किया जाए। इसलिए नहीं कि मैं first timer हूं, लेकिन हमें एक ताजगी भरी हवा, इस सदन में विचारों की आवश्‍यकता मुझे महसूस हुई होती है। और मुझे भरोसा है, मैं जानता हूं जिस प्रकारसे आपके कार्यक्रम में यह जो नये MP रूचि ले रहे हैं। इससे मुझे लगता है कि उनको अवसर देना चाहिए। वे देश के लिए बहुत सी चीजें नई हमारे सामने रख सकते हैं। उस पर हम कुछ कर सकते हें।

एक तीसरा मेरा सुझाव है कि हमारे यहां United Nation ने अभी Sustainable Development Goals. सारे विश्‍व ने मिल करके तय किया हमारी सुषमा जी ने उसके लिए बहुत अच्‍छा शब्‍द दिया ‘टिकाऊ विकास लक्ष्‍य’। हिन्‍दी में उन्‍होंने उसका अच्‍छा translation किया, sustainable. यह तय होता है सरकारे जाती हैं। क्‍या कभी सदन के सभी लोग Saturday को एक दिन ज्‍यादा बैठे कभी और एक सत्र के दरमियां एक या दो दिवस हम सब मिल करके अंतर्राष्‍ट्रीय जगत में जो Sustainable Development Goals तय हुए उसमें भारत की जो भूमिका है। उसको चरितार्थ करने के लिए क्‍या कर सकते हैं? हम कोई बहस कर सकते हैं? हमारे अपने एजेंडा के काम बहुत है, लेकिन कोई पल हो जिसमें कोई राजनीति हो सिर्फ राष्‍ट्रनीति, सिर्फ मानवतावाद इसको ले करके कुछ कर सकते हैं क्‍या? मैं आशा करूंगा कि इस पर सोचा जाए।

उसी प्रकार से मैं तीन विषयों को, मैं तीन और बातों को आज आपके सामने प्रस्‍तुत करना चाहता हूं। सरकार यह हो या सरकार वो हो लेकिन यह बात माननी पड़ेगी भले शिक्षा यह राज्‍यों का विषय हो लेकिन हमारी प्राथमिक शिक्षा का स्‍तर, यह बहुत ही चिंता का विषय है, पीड़ा का विषय है। अगर हमारे देश की इन बालकों की जिंदगी पर हम ध्‍यान नहीं देंगे तो क्‍या होगा। उसी प्रकार से हम Environment, Global Warming, CoP-21 यह सब करें, जरूर करें, लेकिन पानी। यह हमारे सामने एक बहुत बड़ा सामाजिक जिम्‍मेदारी का का है। उसी प्रकार से एक विषय जिससे हम सब लोग बहुत डरते हैं, डरने के कारण भी हैं। मैं उसकी गहराई में जाना नहीं चाहता। लेकिन न्‍याय में विलंब, न्‍याय न देने के बराबर भी हम बोलते हैं। आज भी हमारे lower courts में इतनी pendency है, क्‍या कभी सदन में बैठ करके हम उसके रास्‍ते क्‍या हो, कैसे उपाय निकाले, इस प्रकार के एक-दो विषय हम तय कर रहे हैं। और छह महीने के पहले तय करें।

हम expert लोगों के पेपर्स मंगवाएं, पेपर circulate करें और बहुत ही qualitative बहस करके उसमें से कोई actionable point कोई हम निकाल सकते हैं क्‍या ? और वो इस सदन की मालिकी होगी, किसी सरकार की नहीं होगी। सरकार को गौरवगान करने के लिए नहीं होना चाहिए। इस सदन में यहां भी बहुत अनुभवी लोग बैठे हैं, बहुत अनुभवी लोग बैठे हैं। और इसलिए ऐसा एक सामूहिक चिंतन हो। और मुझे मालूम है सतपति जी ने पहले एक बहुत अच्‍छा विषय रखा था कि क्यों न एक दिन सदस्‍यों का... मैं उसी बात को आज थोड़ा structured way में प्रस्‍तुत कर रहा हूं। मूल यह विचार मेरे मन में सतपति जी का भाषण सुना तब आया था। और इसलिए मैं चाहूंगा कि हम अगर इन चीजों को कर सके तो शायद होगा। कभी-कभी सदन को रोकने के संबंध में या हो-हल्‍ला करके काम में रूकावटें करने से, एक सार्वजनिक चर्चा होती है, यह होती है कि हम लोग कहेंगे कि देखो सरकार काम नहीं करने देते, वो लोग कहेंगे कि देखो सरकार हमको सुनती नहीं है। किसी को लगता है कि देखो हमने दिखा दी अपनी ताकत। भले हम कम है, लेकिन हम... यह सब चल रहा है।

लेकिन एक और बात है जिस पर ध्‍यान जाने की आवश्‍यकता है। यह सदन क्‍यों नहीं चलने दिया जाता है। इसलिए नहीं कि सरकार के प्रति रोष है। एक inferiority-complex के कारण नहीं चलने दिया जाता है। क्‍योंकि विपक्ष में भी ऐसे होनहार सांसद हैं, ऐसे तेजस्‍वी सांसद है और मैं मानता हूं उनका सुनना, उनके विचार अपने आप में एक बहुत बड़ी asset है। लेकिन अगर सदन चलेगा तो उनको बोलने का अवसर मिलेगा। अगर वो बनेगे, बोलेंगे तो बहुत उनकी जय जयकार होगी, तब हमारा क्‍या होगा। यह चिंता सता रही है। यह inferiority है कि विपक्ष के सामर्थ्‍यवान सांसद न बोल पाए। विपक्ष के सामर्थ्‍यवान सांसदों की प्रतिभा का परिचय देश को न हो। इसलिए यह सरकार को रोकने वाली बात तो अपनी जगह है। लेकिन विपक्ष में कोई ताकतवर बनना नहीं चाहिए। कोई होनहार दिखना नहीं चाहिए। इस inferiority-complex का परिणाम है। इसलिए, अब इस बार सदन चला तो मैंने देखा कितने तेजस्‍वी लोग हैं हमारे पास, कितने शानदार विचार रखते हैं ये। पिछले दो सदन में उनका कोई लाभ ही नहीं मिला। और इसलिए मैं समझता हूं कि बहुत आवश्‍यक है और मैं देख रहा हूं बहुत study करके आते हैं। हमारे विपक्ष के भी छोटे-छोटे दल के सदस्‍य चार मेम्‍बर होंगे, तीन मेम्‍बर होंगे और कुछ लोग मनोरंजन भी करवाते हैं।

मेरे मन में, जब मैं कुछ पढ़ता रहता हूं तो कुछ बातें अच्‍छी लगती है। हम लोगों को किसी का मजाक नहीं उड़ानी चाहिए। ‘Make in India’ की मजाक उड़ा रहे हैं हम। न न ‘Make in India’ की मजाक उड़ा रहे हैं। यह ‘Make in India’ देश के लिए है। हां, सफल नहीं हुआ तो सफल होने के लिए क्‍या करना चाहिए, सफल होने में क्‍या कमियां है उसकी चर्चा होनी चाहिए। लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूं और मुझे लगता है जाने ऐसा क्‍यों है कि हम लोग अपे देश के image ऐसे बनाते हैं जैसे हम भीख का कटोरा ले करके निकले हो। और जब हम खुद ऐसा कहते हैं, तो दूसरे लोग यही बात और ज्‍यादा चीख करके कहते हैं और ज्‍यादा मजबूती से कहते है। यह मैं नहीं कह रहा हूं श्रीमती इंदिरा गांधी कह रहीं हैं। यह 1974 में इंद्रपस्‍थ कॉलेज में, आप ने, इंदिरा जी ने यह भाषण किया था। और इसलिए यह भी बात है कि हम कोई भी नई योजना लाए, नये तरीके से लाए तो कुछ लोगों को, उम्र तो बढ़ती है लेकिन समझ नहीं बढ़ती है तो समझने में बड़ी देर लगती है। कुछ लोगों का ऐसा रहता है। और इसलिए चीजें समझने में बड़ा समय जाता है। कुछ लोग तो समय बीतने के बाद भी चीजें समझ नहीं पाते हैं। और इसलिए अच्‍छा लगता है कि विरोध करें, तो वो अपना विरोध करने का तरीका ढूंढते रहते हैं। और इसलिए मैं एक पीड़ा कहना चाहता हूं। हमारे देश में बहुत सी दिक्‍कते हैं, ज्‍यादातर ऐसी हैं जो बहुत पुरानी है। गरीबी, पिछड़ापन, अंधविश्‍वास, कुछ गलत परंपराएं। कुछ समस्‍याएं विकास और तरक्‍की के साथ भी आई है, लेकिन इस देश की सबसे बड़ी चुनौती है तेजी से हो रहे बदलाव का विरोध। यह विरोध पढ़े-लिखे तबका भी बहुत मुखर तरीके से करता है। जैसे ही कोई खास काम आगे बढ़ता है सौ कारण बताए जाने लगते हैं कि यह काम क्‍यों नहीं करना चाहिए। मुझे लगता है कि एक मजबूत और ऊंची दीवार ने हम सबको चारों तरफ से घेर के रखा है। कितनी सटीक बात है, यह 1968 में इंदिरा गांधी ने कही थी।

यहां पर कोई भी बात आई तो यह कहा जाता है कि यह तो हमारे समय का है। यह तो हमारी देन है। कुछ बातें ऐसी हैं, जो आप ही की तो देन है। अब हमने एक अभियान चलाया। स्‍कूलों में टॉयलेट बनाने का। अब आपकी बात सही है कि मोदी जी अगर हमने हमारे कार्यकाल में सभी स्‍कूलों में टॉयलेट बना दिये होते तो तुम क्‍या करते? यह तो हमने नहीं बनाए, इसलिए तुमने चार लाख बनाए। यह आप ही की तो देन है।

बांग्‍लादेश की सीमा का विवाद, इतने दशकों के बाद बांग्‍लादेश सीमा का विवाद सुलझा। आप कह सकते है कि देखो हमने अगर हमारे कार्यकाल में कर दिया होता तो मोदी तुम्‍हारा achievement कहां होता। यह तो तुम्‍हारे लिए हम छोड़ करके गए थे, यह तो आप ही तो देन है। 18 हजार गांव, आजादी के इतने सालों बाद अंधेरे में डूबे हुए हो और अगर हम उन गांवों में बिजली पहुंचाएं, तो आप गर्व से कह सकते हो कि मोदी जी यह 18 हजार हमारी ही तो देन है, तभी तो आप कर रहे हो। और इसलिए यह आप ही की देन है। इसका मैं कोई इनकार नहीं कर सकता। 60 साल के यह आपके ही कारोबार का परिणाम है। इसका कोई इनकार नहीं कर सकता। और इसलिए कभी-कभी बड़े गर्व के साथ मनरेगा की चर्चा होती है। मैं जरा कहना चाहता हूं कि इसका इतिहास 50 साल पुराना है। लेकिन उसके पहले भी राजे-रजवाड़ों के जमाने में भी ऐसी कुछ बातें चलती थी। आप देखिए 1972 महाराष्‍ट्र की रोजगार गारंटी योजना, 1972 में आई। 1980 में National Rural Employment Programme (NREP) यह 1980 में उसका recarnation हुआ। 1983 में Rural Landless Employment Guarantee Programme (RLEGP) ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम आया। यह सब recarnation होते गए। योजनाओं का पुनर्जन्‍म होता गया।

उसके बाद 1989 में जवाहर रोजगार योजना (JRY) यह मनरेगा का पिछले जन्‍म का नाम है। लेकिन मैं हैरान हूं बाद में जवाहर लाल जी का नाम निकाल दिया गया। और किसी और ने नहीं निकाला, उसी दल ने निकाला जो हमें कोसते रहते हैं। उसके बाद 1993 में, Employment Insurance Scheme (EIS) सुनिश्चित रोजगार योजना यह आया। उसके बाद भाजपा जी की सरकार आई। तो उस समय इन सभी योजनाओं में से जो भी अच्‍छा था ले ले करके संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY) यह शुरू हुआ। 2004 में फिर उसमें reincarnation हुआ। National Food for Work programme, ‘काम के बदले अनाज’ का राष्‍ट्रीय कार्यक्रम आया। उसके बाद इसने नया रूप 2006 में लिया मनरेगा। पहले नरेगा और फिर एक नया ज्ञान हुआ तो वो मनरेगा हुआ। तो यह गरीबों की भलाई केलिए कुछ न कुछ लगातार योजनाएं चलती गई। यह बात सही है कि आप बड़े सीना तान करके कह सकते हैं कि मोदी जी चुनाव में भाषण करना अलग चीज है। तुम कहते हो गरीबी हटाओगे लेकिन तुम्‍हें मालूम नहीं हम कौन है। अरे हमने गरीबी की जड़े इतनी जमा दी है, इतनी जमा दी है, मोदी तुम उखड़ जाओगे, लेकिन इसे उखाड़ नहीं पाओगे।

यह बात सही है कि मुझे यहां आने के बाद पता चला कि इतनी जड़े जमाई है आपने। और इसलिए मैंने पछिली बार भी कहा था, इस बात का कोई इनकार नहीं करेगा कि इस देश के 60 साल के कार्यकाल में अगर हम गरीबों का भला कर पाएं होते, तो आज मेरे देश के गरीबों को मिट्टी उठाने के लिए, गड्ढ़ा खोदने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता। यह हमारा सफलता का स्‍मारक नहीं है। यह हम सबको स्‍वीकार करना होगा। और इसलिए यह हमारा दायित्‍व भी बनता है कि यह जो क्रमिक विकास चला है इस योजना का उसको और अच्‍छी बनाए और उस जिम्‍मेदारी को निभाने का हम प्रयास कर रहे हैं। लेकिन यह बात स्‍वीकार करनी होगी कि हम उस हालत पर देश को लाएं हैं कि skilled labour को भी unskilled होने में मजा आने लगा है। और इसलिए मैं जब कहता हूं कि हमारी विफलताओं का स्‍मारक है, इसका मतलब यही है कि गरीबी न होती तो इस नरेगा या मनरेगा की जरूरत नहीं होती। लेकिन यह सच्‍चाई है और मैंने आ करके देखा कि ऐसी गरीबी की जड़ों को जमा दिया गया है कि उसको उखाड़ फेंकने के लिए मुझे भारी मेहनत करनी पड़ रही है और उसके लिए हम अभी जो फिलहाल योजना चली है, उसमें जो कमियां है, उन कमियों को कैसे दूर करना उसकी दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।

मैं आज आदरणीय खड़गे जी ने कहा था कि मनरेगा में भ्रष्‍टाचार बहुत है। मैं आपके साथ Thousand Percent सहमत हूं। मुझे इसका कोई विरोध नहीं हूं। आप 2012 की CAG की रिपोर्ट को देख लीजिए। क्‍या observation किए हैं कैसे भ्रष्‍टाचार ने इसके साथ जड़ें जमा दी है। कैसे गरीबों के नाम पर रुपये लुटे जो रहे हैं। इसकी उसमें चर्चा है, 2012 की CAG रिपोर्ट में चर्चा है। और इसलिए हमने उसमें से कुछ सीखने का प्रयास ‍किया है। और हम बहुत कुछ सीखना चाहते हैं और सीखने का प्रयास करके उसमें जो चीजें थी उसमें से बाहर निकाल करके full prove कैसे बने, जरूरतमंदों को कैसे मिले, उस पर काम करेंगे। CAG ने एक बहुत बड़ा observation किया है और वो चौंकाने वाला है।

हमारे देश में जिन राज्यों को हम गरीबों की श्रेणी में गिनते हैं। जहां गरीबों की संख्या ज्यादा है। CAG ने लिखा है कि जहां गरीबों की संख्या कम है और कुल मिलाकर के शासन-व्यवस्था सुचारु रूप से चली है, ऐसे राज्यों में नरेगा का, मनरेगा का maximum उपयोग हुआ है। लेकिन जहां सचमुच में गरीबी है, जहां सबसे ज्यादा जरुरत है, वहां इसके कम से उपयोग हुआ है। मतलब ये गरीबों को target करके पहुंचाने में हम उतने सफल नहीं हुए हैं और इसलिए हमारा दायित्व बनता है कि हम इसको और अधिक perfect कैसे बनाएं ताकि जिन राज्यों में गरीबों की संख्या की मात्रा ज्यादा है, जिन राज्यों की गरीबी ज्यादा है, ये उस तरफ कैसे जाए। समृद्ध राज्यों की क्षमता है इन सारी चीजों को व्यवस्था में करें, हमने उस दिशा में कोशिश करी कि ऐसे राज्यों को ये कैसे पहुंचे। हमने JAM योजना के साथ जनधान, आधार और मोबाइल, ये पैसे direct beneficiary को पाएं, उस दिशा में बड़ा अभियान चलाया है तो उसके कारण बिचौलियों की संख्या नष्ट करने में शायद हमें सफलता मिलेगी।

और इसलिए मैं समझता हूं कि ये जिस मनरेगा की हम इतनी बड़ी तारीफ करते हैं। CAG ने कहा है कि 7 साल के बाद भी 5 राज्य ऐसे थे जिन्होने rules भी नहीं बनाए और दुख इस बात का है, उन 5 राज्यों में 4 वो थे, जो इस मनरेगा के गीत गाते हैं कि जिन्होंने 7 साल के बाद भी rules नहीं बनाए थे और इसलिए even Union Territories उसमें भी ये कठिनाई ध्यान में आई है। उसी प्रकार से 8 ऱाज्यों में, 100 दिन का हमारा लक्ष्य, हम कभी भी पूरा नहीं कर पाए हैं। Average 30 दिन, 40 दिन से गाड़ी अटक जाती है। हमने जिस प्रकार से उसका नया structure बनाने का प्रयास किया है उसमें targeted हो, अधिकतम रोजगार मिले, अधिकतम दिवस तक रोजगार मिले, बिचोलिए समाप्त हो, पाई-पाई का सही उपयोग हो और उसकी audit की व्यवस्था हो इस दिशा में हमने भरपूर प्रयास किया है। और इसलिए मुझे विश्वास है औज श्रमिकों के बैंक/डाकघर खातों में सीधे अंतरण के electronic तरीके से, ये पैसे जाते हैं। 94 percent श्रमिकों को इसी माध्यम से भुगतान करने की दिशा में हम आगे बढ़े हैं।

दूसरी तरफ कभी न कभी ये सदन सिर्फ इस ईर्ष्या भाव से काम करने के लिए नहीं है कि मेरे से तेरी shirt ज्यादा सफेद क्यों है, ये ईर्ष्या भाव के लिए नहीं है। मैं मानता हूं जो आलोचना हो रही है हमारी। माननीय अध्यक्षा जी, आलोचना इस बात के लिए नहीं हो रही है कि हमने कुछ गलत किया है, चिंता इस बात की है तुम हमसे अच्छा क्यों कर रहे हो, कैसे कर रहे हो, ये चिंता का विषय सता रहा है और इसलिए परेशानी हो रही है। जो 60 साल में नहीं कर पाए वो आप कैसे कर लेते हो, ये चिंता का विषय है और योजनाएं कैसी होती हैं, लंबे अर्से तक कैसा लाभ करती हैं।

इस देश के intellectual class को भी मैं निमंत्रित करता हूं कि दो योजनाओं का एक comparative study करने की जरूरत है, एक अटल जी के समय शुरू हुई प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना औऱ दूसरी हमारी मनरेगा। आप analysis देखोगे, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का उन राज्यों को सबसे ज्यादा लाभ मिला है, जो कुल मिलाकर के गरीबी की श्रेणी में आते हैं। road बनता है तो रोजगार भी आता है, road बनता है तो सुविधा भी आती है और उसके कारण education में, health में , wealth में भी एक बदलाव आया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में भी सरकार के पैसे गए, मनरेगा में भी गए लेकिन asset creation हुआ और इसलिए उसमें से सीखकर के हम मनरेगा को भी asset creation पर बल दे रहे हैं। उसमें भी पानी पर हम सबसे ज्यादा बल दे रहे हैं और उसका परिणाम मिलेगा। ऐसा मैं मानता हूं और हम कोशिश कर रहे हैं।

हमारे मल्लिकार्जुन जी ने Food security bill को लेकर के, act को लेकर के और मैंने देखा है गुजरात की बात आ जाए तो बड़ा ही मजा आ जाता है, बड़ा आनंद आ जाता है और फिर कहने को कुछ होता नही है तो घूम-फिरकर के, तो ये आपकी bankruptcy है, मैं जानता हूं कि आपके पास और कुछ नहीं है लेकिन मैं बताना चाहता हूं जी, जिस राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के आप इतने गीत गाते हैं और हमें बार-बार सुनाते हैं कि हम लाए, हम लाए, हम लाए। हम 2014, मई में आए। अध्यक्ष महोदया जी, मई, 2014 तक सिर्फ 11 राज्यों ने हड़बड़ी में, उसमें जो अपेक्षाएं थी, ऐसी किसी व्यवस्था को पूर्ण किए बिना कागज पर लिख दिया था कि स्वीकार कर रहे हैं। जिस बात को लेकर के हम इतनी बातें करते हैं, उसकी ये दुर्दशा थी। इतना ही नहीं, आज जो मैं अभी खड़ा हुआ हूं न तब कि मैं बात बताना चाहता हूं। आज भी चार राज्य ऐसे हैं, कुल आठ। चार राज्य ऐसे हैं जिसमें आज भी ये Food security act का नामोनिशान नहीं है और उसमें आपके द्वारा शासित राज्य हैं केरल, मिजोरम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और इसलिए गुजरात ने अब कर लिया औऱ उन्होंने, उन्होने जिन बारीकियों को पूरा किया है। जरा study करने जाना चाहिए, आपकी एक पूरी टीम भेजिए।

आप केरल में चुनाव में जा रहे हो। आप जिस ताम-झाम से बातें कर रहे हो, केरल की जनता आपसे जवाब मांगेगी कि आपने जिस act को लेकर के इतनी बड़ी बातें की, केरल उस act से वंचित क्यों रखा है, अरुणाचल प्रदेश क्यों रखा था, मिजोरम क्यों रखा था, मणिपुर क्यों रखा था। आठ राज्य बाकी उसमें से चार राज्य आपके हैं और इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि हम कहते बहुत हैं लेकिन कभी-कभार। कभी-कभी आप सभी महानुभाव, जब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की बात आई थी तो वेंकैया जी जब बोल रहे थे तो हमारे सौगत राय जी खड़े हो गए थे। वैसे वो फटाफट खड़े हो जाते हैं और जब वो खड़े हो जाते हैं तो उनके दल वाले भी देखते हैं कि पता नहीं क्या करेंगे।

सौगत राय जी ने कहा कि भई ये किसान फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ये तो सिर्फ 45 district के लिए है तो एक जानकारी के लिए कहना चाहता हूं सौगत राय ये 1 अप्रैल से देश के सभी गांव, सभी किसानों के लिए लागू होगा। इस योजना की एक और beauty है। जिसकी तरफ मैं आपका औऱ जो 45 जिलों में pilot project के रूप में हमने ली है। अब ये pilot project के रूप में इसलिए हैं क्योंकि इसमें सफलता मिले या न मिले, लोगों को पसंद आए या न आए, पचासों विषय होते हैं। हमने ये कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के साथ कोई दो और चीजें insurance में आप जोड़ सकते हैं क्या? और उसके लिए हमने किसानों को 7 alternate इन 45 जिलों में एक प्रायोगिक रूप में देने का तय किया है।

एक प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना, जीवन ज्योति बीमा योजना, दूसरी प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, तीसरी छात्र सुरक्षा योजना, चौथी घर अग्नि दुर्घटना बीमा योजना, पांचवी कृषि संयंत्र पंप सेट बीमा योजना, छठवीं ट्रैक्टर बीमा योजना और सातवीं मोटर बाईक बीमा योजना। ये किसान के साथ जुड़ी हुई 7 चीजें हैं। अगर वो फसल बीमा के साथ क्या उसको suit करता है इसमें से कोई दो चीज लेना तो कम premium में उसको एक अतिरिक्त benefit मिल जाए तो उसके पंप खराब हो जाते हैं इसलिए प्रायोगिक रूप से Insurance company को थोड़ी दिक्कत हो रही है लेकिन मैंने बड़ा आग्रह किया है। एक प्रयोग है, मैं सांसदों से भी आग्रह करुंगा कि इस पर वो तराशे, ठीक लगे तो आगे बढ़ाएंगे नहीं लगेगा तो छोड़ देंगे। लेकिन ये उस दर्श में था 45 district वाला trial वो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से वो नहीं था।

कभी-कभी कहा जाता है कि ये तो भई हमारा था। मैं कैसे कह सकता हूं, रेल मैंने शुरु की, आप कह सकते हैं, आप तो कुछ भी कह सकते हैं, हम में वो हिम्मत नहीं है और इसलिए यूपीए के 10 साल। रेलवे, सुरेश जी यूं, औसत सालाना खर्च रेलवे के development के लिए 9291 करोड़ रुपए। हमारे इस दो साल में 32587 crore rupees. प्रतिवर्ष औसत लाइनों का commissioning है। हमने लाइनें कितनी बिछाई हैं, यूपीए-1 average है 1477 kilometre, यूपीए-2, थोड़ा सुधार हुआ 1520 kilometre। NDA, 2292... round aboout 2300, काम कैसे होता है, गति कैसे लाई जा सकती है, एक perform करने वाली सरकार कैसी होती है। संसाधन यही थे, रेलवे की पटरियां वही थीं, department वही थे, मुलाजिम वही थे, कानून-व्यवस्थाएं वही थी, ये जीता-जागता उदाहरण है और मैं हर क्षेत्र में ये दिखा सकता हूं लेकिन राष्ट्रपति जी के भाषण के संदर्भ में और अधिक न कहते हुए मैंने ये कहा है।

आदरणीय अध्यक्षा महोदया, एक बात हमेशा ही चर्चा में रहती है Finance के संबंध में, वो ये रहती है कि राज्यों को पैसा कम कर दिया, डिगना किया, फलां किया। एक ऐसी पवित्र जगह कि मुझे देश के सामने ये चीजें रखना जरुरी लगता है। 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा के बाद 2015-16 से राज्यों को 2014-15 की तुलना में केंद्र से अधिक वित्तीय संसाधन दिए जा रहे हैं। राज्यों को वित्तीय संसाधन 3 मुख्य heading के अंतर्गत दिए जाते हैं। केंद्रीय करों में राज्य सरकार का हिस्सा, Non plan grants एवं राज्यों के plan के लिए केंद्र की सहायता। केंद्र से राज्य सरकारों को वर्ष 2014-15 में कुल 6,78,819 crore रुपए की राशि दी गई थी। Revised Estimates 2015-16 के अनुसार राज्यों को 8,20,133 crore रुपए की राशि दी गई। 2015-16 की राशि, 2014-15 की राशि से 1 लाख 41 हजार 314 करोड़ रुपए, 1,41,314 crore रुपए ज्यादा है। इन तीनों heading के अंतर्गत मिल रही राशि पिछले वर्ष की तुलना में 20.8 percent ज्यादा है। और इसलिए ये जो बिना कारण हकीकतों को न कहते हुए, मिथ्याकारक चीजें चलने की जो कोशिशें हो रही हैं, मैं समझता हूं कि उसको जरा समझने की आवश्यकता है।

उसी प्रकार से, हमारा देश लोकतंत्र से विश्वास करने वाला देश रहा है, लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध देश रहा है लेकिन हम जानते हैं इस देश में, सार्वजनिक जीवन में हम सब लोग answerable हैं। कोई भी व्यक्ति हमें सवाल पूछ सकता है, पूछने का उसका हक है लेकिन कुछ है जो जवाबदेह नहीं है, न ही कोई उनको पूछने की हिम्मत करता है, न ही उनको कहने की किसी को ताकत है। और जो करने जाते हैं उनका क्या हाल होता है, वो मैं देख चुका हूं। लेकिन मैं घटना का सिर्फ जिक्र करना चाहता हूं, अर्थ आप लोग लगाइए। Russia के राष्ट्र प्रमुख श्रीमान Khrushchev, जब स्टालिन की मृत्यु हो गई, वो उनके साथी थे तो स्टालिन की मृत्यु के बाद ये जहां जाते थे Khrushchev, स्टालिन की बड़ी आलोचना करते थे, बहुत ही कठोर शब्दों में निंदा करते थे, कुछ भी कहते थे और ये वो हर जगह पर करते थे तो एक बार एक सभागृह में Khrushchev अपनी बात बता रहे थे और स्टालिन को उन्होंने जमकर, अपने पूर्व के नेता को, उनकी मृत्यु के बाद बहुत कोसा।

एक नौजवान खड़ो हो गया, पीछे से, उसने कहा Mr. Khrushchev मैं आपसे सवाल करना चाहता हूं, बोले आप स्टालिन को इतनी गालियां दे रहे हो, इतना बदनाम कर रहे हो। जब वो जिंदा थे, आप उनके साथ काम करते थे तब आपने क्या किया, ये जो हालात पैदा हुई आपने क्या किया। सारे सभागृह में सन्नाटा छा गया। जब सभागृह में सन्नाटा छा गया और कुछ पल के बाद Khrushchev ने कहा जिसने सवाल किया वो जरा खड़ा हो जाए, वो खड़े हो गए, उन्होंने कहा तुम्हें जवाब मिल गया। तुम जो आज कर पा रहे हो, स्टालिन की जमाने में मैं चाहता था लेकिन नहीं कर पाता था और इसलिए इसको समझने में देर लगेगी लेकिन इसमें कोई बादाम काम नहीं आएगी, आपको तो शायद थोड़ा समझ आ जाएगा औरों के लिए मैं नहीं कह सकता।

हमारे यहां कभी-कभी शास्त्रों में, लोकोक्तियों में कई बातें बड़ी अच्छी कही जाती हैं और उसमें ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे’। दूसरों को उपदेश देने की कुशलता देने वाले तो बहुत सारे लोग हैं परंतु जो खुद वैसा आचरण करे वैसे लोगों की संख्या बहुत कम है। मैं लगातार आप सब की तरह उपदेश सुनता रहा हूं, सलाह सुनता रहा हूं, आलोचना झेलता रहा हूं, आलोचना से ज्यादा आरोप सह रहा हूं, ये सब चल रहा है और मुझे क्या हुआ है कि 14 साल के काम, काफी कुछ मैं इससे जीना सीख चुका हूं, इससे जीना सीख चुका हूं लेकिन ये देश उस बात को कभी नहीं भुला सकता है। अध्यक्ष महोदया, 27 सितंबर, 2013 हमारे देश के सम्मानीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अमेरीका में थे, अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ उनका bilateral talk होना था, देश के सम्मानीय नेता थे। हिंदुस्तान की कैबिनेट, जिसमें फारुख अबदुल्ला साहब बैठते थे, एंटनी साहब बैठते थे, शरद पवार साहब बैठते थे, इस देश के गणमान्य अनुभवी नेता बैठते थे।

उस कैबिनेट में ने जो निर्णय किया। उस निर्णय को 27 सितंबर, 2013 पत्रकार परिषद में फाड़ दिया गया था, ordinance को फाड़ दिया गया था। अपनों से बड़ों का मान-सम्मान, आदर मैं बहुत... आदरणीय अध्यक्ष महोदया मुलायम सिंह जी और हम दो छोर पर खड़े नेता हैं, मेरी एक बात को वो नहीं स्वीकार सकते हैं, मैं उनकी एक बात को नहीं स्वीकार सकता except लोहिया जी के विचार को। क्योंकि मैं ऐसी जगह पर पैदा हुआ हूं, मुझे लोहिया जी पसंद आना बहुत स्वाभाविक थे लेकिन मुलायम सिंह जी ने जनता को वादे करते हुए अपना एक पर्चा निकाला हुआ था कि हम उत्तर प्रदेश के लिए ये करेंगे, ये करेंगे। मुलायम सिंह जी हमें पसंद हो या न हो लेकिन बहुत बड़े वरिष्ठ नेता हैं, सार्वजनिक सभा में मुलायम सिंह जी के वादों को फाड़ दिया गया है और फिर मुझे बार-बार यादा आता है ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे।

आदरणीय अध्यक्षा महोदया जी, देश, लोकतंत्र में आगे बढ़ने के लिए जितना हमारे सामने एक आवश्यकता मुझे लगती है। मैं अभी जो बात करने जा रहा हूं वो शायद, हम सबको पसंद आएगी। मैं छोटा था, तो मैं जिस गांव में बढ़ा हुआ। हमारे यहां एक MLA थे, वो कभी हारते ही नहीं थे, हमेशा जीतते थे लेकिन वो जाते थे ट्रेन में, हम भी कोशिश करते थे उनके चाय पिलाएं वरना कोई मुसीबात आ जाए रेलवे में तो हम उनको संभालते थे। तो हम देख रहे थे कि हमारे देश में उनसे कभी मैंने एक बार शब्द सुना elective. अब हमें elective क्या है, समझ नहीं था लेकिन जब आगे दिन बीतते गुए तो पता चला elective वो था। मैं देख रहा था कोई elective आ गया है तो पूरी government machinery कांप जाती थी, नीचे से ऊपर तक अफसर परेशान रहते थे क्योंकि assembly या संसद में सवाल आ गया, एक घबराहट का माहौल था। सदन में भी कभी किसी subject की debate होती थी तो अफसरों को चिंता रहती थी, पता नहीं क्या होगा। हमारे लोकतंत्र में संसदीय कार्यवाही को हम कहां ले गए। ये आज न हमारे सांसदों के सवालों से, प्रशासन के किसी भी अफसर को पसीना आता हो, चिंता नही होती हो। हमने हमारी इस कार्यवाही को कहां ले गए कि हमारे अफसरों को कोई डर नहीं रहा है। ये सवाल इस सरकार का, उस सरकार का नहीं है। कालक्रम से ये deterioration हुआ है।

जब संसद के अंदर भले ही प्रतिपक्ष का एक ही अकेला सांसद क्यों न हो, उसके दल का औऱ कोई भी सदस्य न हो लेकिन सरकारी मुलाजिमों के लिए government machinery के लिए वो प्रधानमंत्री से कम नहीं हो सकता है। लेकिन आज मैं चाहता हूं हम लोग तय करें। तु-तु, मैं-मैं हम करेंगे, आप मुझे कोसोगे, मैं आपको कोसूंगा और अफसर ताली बजाते हैं, मजा लेते हैं। ये लंबे अर्से की बीमारी आई है। इस सदन में विपक्ष का शब्द की उनके लिए महत्वपूर्ण है, ये जनप्रतिनिधि है, ये देश के लोग हैं। ये स्थिति लानी है तो, ये तु-तु, मैं-मैं करके जो हम Scoring करते हैं, मीडिया में छा जाते हैं। हमको लगता है इन्होंने बहुत कुछ कर लिया लेकिन अफसरशाही की accountability खत्म होती जा रही है। लोकतंत्र में हम लोग तो हर पांच साल में जनता को हिसाब देंगे। आएंगे, नहीं आएंगे चलता रहेगा लेकिन उनका हिसाब लेने के लिए यही एक जगह है। और इसलिए हमारी संसदीय कार्यप्रणाली में, हम सभी को, सभी सदस्यों को एक क्यों न हो, वो प्रधानमं से कम नहीं है और इसलिए ये आवश्यक है कि हमारी executive की accountability कैसे बढ़ाएं। ये जब तक हम मिलकर के नहीं करेंगे, ये accountability संभव नहीं होगी और तब एक सरकार को गालियां पड़ेंगी, दुसरी सरकार आएगी, उनकी मजा लेना बंद नहीं होगा।

हमारे सामने ये चुनौती है, मैं मानता हूं और इस चुनौती को हमने पूरा करने की दिशा में एक सामूहिक प्रयास करने पड़ेगा। इसमें आपको भी ये भुगतना पड़ा है, मैं तो लंबे समय तक इस काम को करके आया हूं क्योंकि मुझे मालूम है। मैं किसी को दोष नहीं देता हूं लेकिन ये हम अखबार में क्या छिपेगा उसकी चिंता मे तु-तु, मैं-मैं में लगे रहते हैं। उसके कारण लाखों मुलाजिम हैं, लाखों मुलाजिम। अरबों-खरबों रुपया का तनख्वाह जा रहा है, योजनाओं की कमी नहीं है। न आपके समय कमी थी, न मेरे समय कमी है। सवाल ये है कि हम वो accountability को कैसे लाए।

इस सदन ने, एक और बात है भारत जैसे लोकतंत्र में हम देश के नागरिकों को अफसरशाही के भरोसे नहीं छोड़ सकते। हमें हमारे सवा सौ करोड़ देशवासियों पर भरोसा करना होगा, उस पर हमने विश्वास करना होगा और एक बार हम सवा सौ करोड़ देशवासियों पर विश्वास करके चलेंगे, मुझे विश्वास है ये देश का नागरिक, हमसे कोई बहुत नहीं मांग रहा है, वो हमारे लिए साथ चलने के लिए तैयार है। हमने उस दिशा में कुछ प्रयास किए, वो बहुत बड़े हैं ऐसा मेरा दावा नहीं है लेकिन उस दिशा में जाना है।

हमने छोटे मुलाजिमों के लिए interview क्यों बंद किया है इसलिए की हमें उस नागरिक पर भरोसा करना सीखना है, हमने नागरिकों को बेचारों को Xerox के जमाने में भी gazetted officer के पास signature के लिए जाना। कभी MP, MLA के घर के पास कतार लगाकर के खड़ा रहना पड़ता था और MP, MLA उसका चेहरा भी नहीं देखता था, एक छोटा सा लड़का होता था ठप्पे मार-मारकर के दे दे रहा था। हमारे उस 10वीं, 12वीं पास बच्चे पर तो भरोसा था लेकिन उस नागरिक पर हमारा भरोसा नहीं था, हमने उसको नष्ट कर दिया क्योंकि नागरिक पर भरोसा होना चाहिए, जब final job लेगा आएगा, अपने दिखाएगा। अभी हमने बजट में बहुत बड़ी अहम बात रखी है कि दो करोड़ रुपए तक हम कुछ नहीं पूछेंगे आप जो चाहो दे दो हम ले लेंगें। विश्वास बढ़ाने का माहौला बढ़ाना है, ऐसे कोई नए सुझाव हैं तो आप जरूर दीजिए।

मैं चाहूंगा कि सरकार आदत डाले, ये सरकार को भी सुधरना चाहिए, इस सरकार में भी सुधार आने चाहिए और आपकी मदद के बिना नहीं आएंगे जी, आपकी मदद चाहिए मुझे, आप लोगों का साथ चाहिए, आपके अनुभव का मुझे लाभ चाहिए। मैं नया हूं, आप अनुभवी लोग हैं, आइए कंधे से कंधा मिलाकर के हम चलें और कुछ अच्छा काम कर करके देश के लिए देकर के जाएं। सरकार आएंगी-जाएंगी, लोग आएंगे-जाएंगे, बिगड़ती-बनती बात चलेगी, ये देश अजर-अमर है, ये देश रहने वाला है और इस देश की पूर्ति के लिए हम काम करें। इसी एक अपेक्षा के साथ फिर एक बार राष्ट्रपति जी को आदरपूर्वक मैं अभिनंदन करता हूं, उनका धन्यवाद करता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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List of Highest National Honours and Global Awards Conferred on PM Narendra Modi
December 18, 2025

Prime Minister Narendra Modi has been conferred highest civilian honours by several nations. These recognitions are a reflection of PM Modi’s leadership and vision which has strengthened India’s emergence on the global stage. It also reflects India’s growing ties with countries around the world.

Let us have a look at awards bestowed on PM Modi in the last ten years.

Awards Conferred by Countries:

1. In April 2016, during his visit to Saudi Arabia, Prime Minister Narendra Modi was conferred Saudi Arabia's highest civilian honour- the King Abdulaziz Sash. The Prime Minister was conferred the prestigious award by King Salman bin Abdulaziz.

2. The same year, PM Modi was bestowed upon the State Order of Ghazi Amir Amanullah Khan – the highest civilian honor of Afghanistan.

3. In the year 2018, when Prime Minister Narendra Modi paid a historic visit to Palestine, he was awarded the Grand Collar of the State of Palestine Award. This is the highest honour of Palestine awarded to foreign dignitaries.

4. In 2019, the Prime Minster was awarded the Order of Zayed Award. This is the highest civilian honour of the United Arab Emirates.

5. Russia conferred Prime Minister Modi with their highest civilian honour - the Order of St. Andrew the Apostle in 2019. The PM received the award during his visit to Moscow in July 2024..

6. Order of the Distinguished Rule of Nishan Izzuddin- the highest honour of the Maldives awarded to foreign dignitaries was presented to PM Modi in 2019.

7. PM Modi received the prestigious King Hamad Order of the Renaissance in 2019. The honour was conferred by Bahrain.

8. Legion of Merit by the US Government, the award of the United States Armed Forces that is given for exceptionally meritorious conduct in the performance of outstanding services and achievements was conferred on PM Modi in 2020.

9. Bhutan honoured PM Modi with the highest civilian decoration, Order of the Druk Gyalpo in December 2021. PM Modi received the award during his visit to Bhutan in March 2024

10. During his visit to Papua New Guinea in 2023, PM Modi was conferred with Ebakl Award by the President Surangel S. Whipps, Jr. of the Republic of Palau

11. PM Narendra Modi has also been conferred the highest honour of Fiji, Companion of the Order of Fiji in recognition of his global leadership. The award was conferred by PM Sitiveni Rabuka of Fiji.

12. Governor General of Papua New Guinea, Sir Bob Dadae conferred PM Modi with Grand Companion of the Order of Logohu. It is the highest honour of Papua New Guinea.

 13. In June 2023, President Abdel Fattah El-sisi conferred Prime Minister Modi with the highest state honour of Egypt, the 'Order of Nile.'

 14. On 13th July 2023, PM Modi was conferred with the Grand Cross of the Legion of Honour, the highest award in France by President Emmanuel Macron.

 15. On 25th August 2023, PM Modi was conferred with 'The Grand Cross of the Order of Honour' by President Katerina Sakellaropoulou of Greece.

16. Dominica honoured PM Modi with the ‘Dominica Award of Honour.’ It was presented to PM Modi by President Sylvanie Burton of Dominica during the Prime Minister's visit to Guyana in November 2024.

17. Nigeria honoured PM Modi with 'The Grand Commander of The Order of the Niger' during his visit in November 2024. It was presented to him by President Bola Ahmed Tinubu of Nigeria.

 

18. Guyana honoured PM Modi with the ‘The Order of Excellence’ during the Prime Minister's visit in November 2024. It was presented to him by President Dr. Irfaan Ali.

19. PM Mia Amor Mottley of Barbados announced her government’s decision to honour PM Modi with the Honorary Order of Freedom of Barbados Award during the Prime Minister's visit to Guyana in November 2024. MoS Pabitra Margherita Ji received the award on behalf of PM from President Dame Sandra Mason of Barbados on 06th March 2025.

20. In December 2024, PM Modi was conferred the Mubarak Al-Kabeer Order by His Highness the Amir of Kuwait, Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al Sabah.

21During PM Modi's visit to Mauritius in March 2025, President Dharambeer Gokhool conferred PM Modi with the Highest National Award of Mauritius, 'The Grand Commander of the Order of the Star and Key of the Indian Ocean'.

22. During PM Modi's visit to Sri Lanka in April 2025, President Anura Kumara Dissanayake conferred PM Modi with the highest Sri Lankan honour, the 'Sri Lanka Mitra Vibhushana' award.

23) PM Modi was conferred the 'Grand Cross of the Order of Makarios III' of Cyprus during his visit in June 2025. It was bestowed upon PM Modi by President Nikos Christodoulides.

24) PM Modi was conferred ‘The Officer of the Order of the Star of Ghana’ during his visit in July 2025. It was bestowed upon PM Modi by President John Dramani Mahama.

25) PM Modi was conferred ‘The Order of the Republic of Trinidad & Tobago’ during his visit in July 2025. It was bestowed upon PM Modi by President Christine Kangaloo.

26) PM Modi has been conferred with ‘The Grand Collar of the National Order of the Southern Cross’ during his visit to Brazil in July 2025. It was bestowed upon PM Modi by President Lula.

27) PM Modi has been conferred with ‘The Order of the Most Ancient Welwitschia Mirabilis’ during his visit to Namibia in July 2025. It was presented to PM Modi by President Dr. Netumbo Nandi-Ndaitwah.

28) Prime Minister Narendra Modi has been conferred the ‘Great Honour Nishan of Ethiopia.’ It is Ethiopia’s highest honour. It was presented to PM Modi during his visit in December 2025 by PM Abiy Ahmed Ali.

29) During his visit to Muscat in December 2025, Prime Minister Narendra Modi was conferred the First Class of the Order of Oman by the Sultan of Oman.

Apart from the highest civilian honours, PM Modi has also been conferred with several awards by prestigious organisations across the globe.

1. Seoul Peace Prize: It is awarded biennially to those individuals by Seoul Peace Prize Cultural Foundation who have made their mark through contributions to the harmony of mankind, reconciliation between nations and to world peace. Prime Minister Modi was conferred prestigious award in 2018.

2. United Nations Champions of The Earth Award: This is UN’s highest environmental honour. In 2018, the UN recognized PM Modi for his bold environmental leadership on the global stage.

3. First-ever Philip Kotler Presidential Award was given to Prime Minister Modi in 2019. This award is offered annually to the leader of a nation. The citation of the award said that PM Modi was selected for his “outstanding leadership for the nation”.

4. In 2019, PM Modi was conferred the ‘Global Goalkeeper’ Award by the Bill and Melinda Gates Foundation for the Swachh Bharat Abhiyan. PM Modi dedicated the award to those Indians who transformed the Swachh Bharat campaign into a “people’s movement” and accorded topmost priority to cleanliness in their day-to-day lives.

5. In 2021, Global Energy and Environment Leadership Award by the Cambridge Energy Research Associates CERA was bestowed on PM Modi. The award recognizes the commitment of leadership towards the future of global energy and environment.