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भगवान बिरसा मुंडा की इस पवित्र धरती को प्रणाम करते हुए आप सबको भी, मैं बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। हमारे कृषि मंत्री, श्रीमान राधा मोहन सिंह जी ने विस्तार से सौ साल पहले कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में, बिहार की धरती पर कैसे कार्य प्रारंभ हुआ और बाद में इसी काम से ये भूभाग कैसे अछुता रह गया, इसका वर्णन किया है।

मैं देख रहा हूं, आज यंहा सिर्फ झारखंड के ही नहीं दक्षिण बिहार से भी बड़ी संख्या में लोग नज़र आ रहे हैं..क्योंकि दक्षिण बिहार के लोगों को बराबर समझ है कि इस अनुसंधान केंद्र का लाभ सिर्फ झारखंड को ही मिलेगा, ऐसा नहीं, दक्षिण बिहार के लोग भी इसका सर्वाधिक लाभ उठा पाएंगे, ये उनको भली-भांति पता है।

भारत कृषि प्रधान देश है, ये बात हम सदियों से सुनते आए हैं। लेकिन यह भी एक दुर्भाग्य है कि देश के कृषि जगत को किसानों के नसीब पर छोड़ दिया गया है। उसी का नतीजा है कि सारा विश्व कृषि के क्षेत्र में जो प्रगति कर चुका है, भारत आज भी उससे बहुत पीछे है। चाहे ज़मीन का रख-रखाव हो, चाहे अच्छी क्वालिटी के बीज मुहैया कराना हो, चाहे किसान को पानी और बिजली उपलब्ध कराना हो, चाहे किसान जो उत्पादित करता है चीजें, उसके लिए सही बाज़ार मिले, सही दाम मिले, मूल्य वृद्धि की प्रक्रिया हो, कृषि के साथ सहायक उद्योग, पशुपालन हो, मतस्य उद्योग हो, शहद का काम हो..इन सारी बातों को ले करके एक संतुलित, एक comprehensive, integrated जब तक हम प्लान नहीं करते, हम हमारे गांव के आर्थिक जीवन को बदल नहीं सकते, हम किसानों के जीवन में बदलाव नहीं ला सकते हैं।

इसलिए दिल्ली में बैठी हुई वर्तमान सरकार..परंपरागत ये कृषि है, जो हमारे भाई बहन अपने पुरखों से सीख करके आगे बढ़ा रहे हैं। वह .. कृषि आधुनिक कैसे बने, वह कृषि वैज्ञानिक कैसे बने और आज जो प्रति हेक्टेयर उत्पान होता है, वह उत्पादन कैसे बढ़े, ये चिंता का विषय है। इस सबके उपाय नहीं हैं, ऐसा नहीं है। उसके लिए कोई रास्ते नहीं खोजे जा सकते, ऐसा नहीं है। आवश्यकता है कि सरकार की नीतियों के द्वारा, प्रशिक्षण के द्वारा, संसाधन मुहैया कराने की पद्धति से कृषि को आधुनिक और वैज्ञानिक बनाया जा सकता है।

जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है, ज़मीन कम होती चली जा रही है। आज से पचास साल पहले जिस परिवार के पास सौ बीघा ज़मीन होगी..परिवार का विस्तार होते होते, बेटे, बेटे के बेटे, चचेरे भाई, उनके बेटे..ज़मीन के टुकड़े होते होते अब परिवार के पास दो बीघा, पांच बीघा ज़मीन रह गई होगी। ज़मीन छोटे छोटे टुकड़ों में बंट रही है, परिवार का विस्तार हो रहा है। जनसंख्या बढ़ रही है, ज़मीन कम हो रही है। ऐसी स्थिति में हमारे पास जो उपलब्ध ज़मीन है, उसमें अगर हमारी उत्पादकता नहीं बढ़ेगी, हम ज़्यादा फसल नहीं प्राप्त करेंगे, न तो देश का पेट भरेगा, न तो किसान का जेब भरेगा।

इसलिए कृषि का विकास ऐसे हो, जो देशवासियों का पेट भी भरे और किसान का जेब भी भरे और इसलिए सबसे पहली आवश्यकता है, हमारी परंपरागत कृषि में पुनः संशोधन करने की, research करने की। भारत इतना विशाल देश है, कि एक कोने में एक laboratory में काम होने से काम चलेगा नहीं। सभी agro climatic zone में, वहां की वायु के अनुसार, ज़मीन के अनुसार, परंपराओं के अनुसार संशोधन करने पड़ेंगे। तब जा करके उन संसाधनों का उपयोग होगा। अगर, केरल में जो प्रयोग सफल होता है, वहीं प्रयोग हम झारखंड में फिट करने जाएंगे तो कभी कभी..न तो किसान उसको स्वीकार करेगा और कभी कोई प्रयोग अगर विफल गया, तो कभी किसान हाथ नहीं लगाएगा।

इसलिए वो जिस भू-भाग में रहता है, जिस प्राकृतिक अवस्था में रहता है, जिस परंपरा से खेती करता है, उसी में अगर हम संशोधन करेंगे, उसी में वैज्ञानिकता लाएंगे, तो किसान उसको सहज रूप में स्वीकार भी करेगा और किसान को वो उपकारक भी होगा। इसलिए हमने दूर-सुदूर इलाकों के विद्यार्थियों को.. कृषि के क्षेत्र में आधुनिक शिक्षा मिले, उनको research करने का अवसर मिले और वो अपने अपने क्षेत्र में, उस भूभाग के किसानों का भला करने की दिशा में नए संशोधन करे, जिसको आगे चल करके लागू किया जाए, उस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास..जिसके तहत आज एक कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में एक इंस्टीट्यूट झारखंड को मिल रहा है। इसका लाभ इस पूरे इलाके को मिलने वाला है।

हमारे देश ने प्रथम कृषि क्रांति देखी है, लेकिन उसको बहुत साल हो गए। अब समय की मांग है कि देश में दूसरी कृषि क्रांति बिना विलंब होनी चाहिए। ये दूसरी कृषि क्रांति होने की संभावना कहां है? मैं जानकारियों के आधार पर कह सकता हूं कि अब हिंदूस्तान में दूसरी कृषि क्रांति की संभावना अगर कहीं है, तो वह पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, ये भारत के जो पूर्वी इलाके हैं, वहीं पर से दूसरी कृषि क्रांति की संभावना है। इसलिए सरकार ने पूरा अपना ध्यान इस क्षेत्र के विकास की ओर केंद्रित किया है और इस क्षेत्र के विकास के लिए जिस प्रकार से एक research institute का हम आरंभ कर रहे हैं, उसी प्रकार से.. किसान को fertilizer चाहिए, यूरिया चाहिए। इस इलाके में यूरिया के खातर के कारखाने बंद पड़े हैं। हमारी सरकार ने निर्णय किया.. चाहे गोरखपुर का कारखाना हो, चाहे सिंदरी का कारखाना हो, चाहे पश्चिम बंगाल, असम में कारखाने लगाने की बात हो, बिहार में लगाने की बात हो, अरबों, खरबों रूपयों की लागत से इन कारखानों को लगाया जाएगा, चालू किया जाएगा ताकि यहां के किसानों को खाद मिले, यूरिया मिले, उनको खातर मिले और पास में जो उत्पादन होता है, transportation का जो बोझ लगता है, उससे भी उसको मुक्ति मिले और यहां पर खाद के कारखाने लगें तो यहां के नौजवान को रोज़गार भी मिले।

सरकार ने एक महत्वपूर्ण initiative लिया है। आजकल, अगर हम बिमार होते हैं तो डाक्टर दवाई देने से पहले कहता है कि pathology laboratory में जाइए, रक्त परीक्षण करवाईए, यूरिन टेस्ट करवाइए, ब्लड टेस्ट करवाइए, उसके बाद तय करेंगे कि क्या बिमारी है और उसके बाद दवाई देंगे। गांव के अंदर भी आजकल डाक्टर सीधी दवाई देने के बजाए आपको ब्लड टेस्ट कराने के लिए भेजता है। शरीर के अंदर क्या कमी आई है, उसका पता पहले लगाया जाता है, उसके बाद दवाई दी जाती है। जैसा शरीर का स्वाभाव है, वैसा ही हमारी इस धरती माता का भी स्वभाव है। जैसे हम बिमार होते है, वैसे ही ये हमारी धरती माता भी बिमार होती है। जैसे हम अपने शरीर की चिंता करते हैं, वैसे हमें धरती माता की तबियत की भी चिंता करना ज़रूरी है। हमारी धरती माता को क्या बिमारी है? क्या कमियां आईं हैं? हमने किस प्रकार से हमारी धरती माता का दूरूपयोग किया है? कितना हमने उसको चूस लिया है? इसका अध्ययन ज़रूरी है..और इसलिए सरकार ने पूरे देश में हर खेत के लिए soil health card बनाना तय किया है। धरती के परीक्षण के द्वारा उसका एक कार्ड निकाला जाएगा। जैसे इंसान का health card होता है, वैसे किसान की धरती माता का भी health card होगा। आपकी धरती में क्या कमियां है, क्या बिमारियां हैं, आपकी धरती किस फसल के लिए उपयुक्त है, कौन से pesticide लगाना अच्छा है, कौन से लगाना बुरा है, कौन सा fertilizer डालना ठीक है, कौन सा डालना बुरा है, इसकी पूरी समझ किसान को अगर पहले से मिल जाए तो किसान तय कर सकता है कि मेरी ये धरती है, इसमें धान पैदा होगा, दलहन पैदा होंगे, क्या पैदा होगा, वो तय कर सकता है। एक बार यदि अपनी ज़मीन के हिसाब से फसल बोता है, तो उसको ज्यादा आय भी होती है, ज्यादा फसल पैदा होती है। पूरे हिंदूस्तान में वैज्ञानिक तरीके से हम ये बदलाव लाने के लिए लगे हैं ..और ये काम धीरे धीरे नौजवानों को रोज़गार देने वाला भी काम बन सकता है।

आज हिंदुस्तान में जितनी pathology laboratories हैं, वो सरकार कहां चलाती है? सरकार की तो बहुत कम हैं। लोग चलाते हैं, लोग अपना pathology laboratory बनाते हैं, patient आते हैं, परीक्षण करते हैं, अपना खर्चा वो ले लेते हैं, रोज़ी रोटी कमाते हैं, लोगों की तबियत की भी चिंता करते हैं। धीरे धीरे हम देश में नौजवानों को soil health card तैयार करने की laboratory का जाल बिछाने के लिए तैयार करना चाहते हैं। ताकि नौजवान का अपना व्यवसाय बन जाए..ज़मीन, मिट्टी का परीक्षण करने का उसका रोज़गार शुरू हो जाए और गांव का नौजवान गांव में ही कमाई करने लग जाए। उसके रोज़गार के भी द्वार खुल जाएं और ज़मीन के संबंध में किसान को सही जानकारी मिल जाए ताकि वो सही उत्पादन की दिशा में आगे बढ़ सके, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

भाईयों-बहनों, हमारे कृषि के साथ पशुपालन का भी उतना ही महत्व है, मतस्य पालन का भी उतना ही महत्व है, मुर्गी पालन का भी उतना ही महत्व है, शहद का काम करना भी उतने ही महत्व का है। हमारी खेती अगर 6 महीना – 8 महीना चलती है तो बाकी समय में ये चीज़ें किसान की आर्थिक स्थिति में लाभ करते हैं। आज हमारे पास जितने पशु हैं, उसकी तुलना में हमारा दूध कम है। दुनिया में पशु कम हैं, दूध का उत्पादन ज्यादा है। हमारे यहां पशु ज्यादा है, दूध का उत्पादन कम है। ये स्थिति हमें पलटनी है। प्रति पशु ज्यादा से ज्यादा दूध कैसे उत्पादन हो..ताकि जो पशुपालक हैं, जो किसान हैं, उसके लिए पशुपालन कभी मंहगा नहीं होना चाहिए। पशुपालन का जितना खर्चा होता है, उससे ज्यादा आय उसको दूध में से मिलना चाहिए। इसलिए हमने डेयरी के क्षेत्र में, झारखंड को भी सेवाएं मिलें, ये अभी अभी निर्णय कर लिया है। झारखंड में भी डेयरी का विकास हो, पशुपालकों को लाभ हो, किसान को खेती के साथ साथ पशुपालन की भी व्यवस्था मिले, उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।

मैं एक बार बिहार में भ्रमण कर रहा था, तो वहां लोगों ने मुझे बताया कि बिहार में हर वर्ष करीब 400 करोड़ रूपए की मछली दूसरे राज्यों में से import करके खाते हैं। अब ये 400 करोड़ रूपया कहीं और चला जाता है। अगर वहीं पर सही तरीके से मतस्य उद्योग हो, वहां के नौजवानों को रोज़गार मिले, वहां के लोगों की आवश्यकता की पूर्ति हो तो 400 करोड़ रूपए वहीं बच जाएंगे। उन 400 करोड़ रूपयों से कितने लोगों को रोजी-रोटी मिल जाएगा।

इसलिए हम व्यवस्थाओं को विकसित करना चाहते हैं। हमारे देश में कुछ इलाके ऐसे हैं कि जहां किसान मधुमक्खी के पालन में लगा हुआ है और कुछ किसान तो ऐसे हैं जो शहद के उत्पादन से, मधु के उत्पादन से लाखों रूपयों की कमाई करते हैं। क्या हम हमारे देश में, हर राज्य में कम से कम एक जिला..वहां के किसानों को तैयार करें, मधु के लिए तैयार करें, शहद के लिए तैयार करें। और हर राज्य का एक जिला..जहां के किसान अपनी खेती, पशुपालन के साथ साथ मधु उत्पादन का भी काम करें। मधु खराब भी नहीं होता है। बोतल में पैक करके रख दिया। सालों तक चलता है। आज दुनिया में उसकी मांग है। हम हमारे किसान को आधुनिक रूप से बदलाव लाने की दिशा में ले जाना चाहते हैं।

आज किसान जागरूक हुआ है, Vermicompost की ओर बढ़ा है। क्या हम तय नहीं कर सकते कि पिछली बार हमारे पास सौ किलो earthworm थे.. पिछली बार अगर हमारे पास सौ किलो केंचुए थे, इस बार अगर हमने दो सौ किए। आपको तो सिर्फ एक गड्ढा खोद कर उसमें कूड़ा कचरा डालना है। बाकी काम अपने आप परमात्मा कर देता है। आपकी ज़मीन को भी वो संभालता है और आजकल केंचुओं का बाज़ार भी बहुत बड़ा होता जा रहा है। हमारी ज़मीन भी बचेगी, यूरिया का खपत भी बचेगा। यूरिया के कारण हमारी ज़मीन बरबाद हो रही है, वो भी बचेगी और Vermi-compost के द्वारा हम उत्पादन में वृद्धि ला सकते हैं, ये अपने घर में बैठ करके करने वाले काम हैं, उसको हम कर सकते हैं। इसलिए हम एक integrated approach के साथ हमारे कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने की दिशा में एक के बाद एक कदम उठाने जा रहे हैं।

हमारे देश में आज भी..जब हमारे देश के प्रधानमंत्री थे, लाल बहादुर शास्त्री, उन्होंने एक बार कहा- जय जवान, जय किसान। देश के किसानों को कहा कि अन्न के भंडार भर दो, फिर इस देश के किसान ने कभी पीछे मुड़ करके देखा नहीं। उसने इतनी मेहनत की, इतनी मेहनत की, अन्न के भंडार भर दिए। अब विदेशों से खाने के लिए अन्न नहीं मंगवाना पड़ता। लेकिन मेरे किसान बहनों, भाईयों हमने अन्न के भंडार तो भर दिए, लकिन आज देश के लोगों को, खास करके गरीब लोगों को अपने खाने में दलहन की बड़ी आवश्यकता होती है। प्रोटीन उसी से मिलता है, दाल से मिलता है। हमारे यहां दाल का उत्पादन बहुत कम है, विदेशों से लाना पड़ता है। मैं देश के किसानों से आग्रह करता हूं कि अगर आपके पास पांच एकड़ भूमि है तो चार एकड़ भूमि में आप परंपरागत जो काम करते हैं, करिए। कम से कम एक एकड़ भूमि में आप दलहन की खेती कीजिए। देश को जो pulses बाहर से लाने पड़ते हैं, वो लाने न पड़ें और गरीब से गरीब व्यक्ति को जो दाल चाहिए, वो दाल हम उपलब्ध करा सकें। इसीलिए सरकार ने.. जो minimum support price देते हैं, उसमें pulses के लिए एक विशेष पैकेज दिया है - जो दाल वगैरह पैदा करेंगे, मूंग, चने वगैरह पैदा करेंगे, उनको अतिरिक्त minimum support price मिलेगा ताकि देश में दाल के उत्पादन को बढ़ावा मिले और देश की आवश्यकता हमारे देश का किसान पूर्ण करे।

इन बातों को ले करके हमने एक और काम का बीड़ा उठाया है। वो है- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना। बहुत ही महत्वपूर्ण काम है। अगर हमारे किसान को पानी मिल जाए तो मिट्टी में से सोना पैदा करने की वो ताकत रखता है। आज हमारे देश की ज्यादातर कृषि आसमान पर निर्भर है, ईश्वर पर निर्भर है। बारिश ठीक हो गई तो काम चल जाता है। बारिश अगर ठीक नहीं हुई तो मामला गड़बड़ा जाता है। उसे पानी चाहिए। अगर हम पानी पहुंचाने का प्रबंध ठीक से कर पाते हैं तो सिर्फ एक फसल नहीं, वो दो फसल दे सकता है, कोई तीन फसल ले सकता है और बाकी समय में भी कुछ न कुछ उत्पादन करके वो रोजी-रोटी कमा सकता है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से पूरे हिंदूस्तान में खेतों में पानी पहुंचाने का, एक बहुत बड़ा भगीरथ काम उठाने की दिशा में ये सरकार आगे बढ़ रही है और आने वाले वर्षों में उस काम को हम पूर्ण करना चाहते हैं।

कितने जलाशय बने हुए हैं। लेकिन उन जलाशयों में खेतों तक पानी ले जाने की व्यवस्था नहीं है। मैं हैरान हूं..बिजली का कारखाना लग जाए लेकिन बिजली वहन करने के लिए जो तार नहीं लगेंगे तो कारखाना किस काम का? जलाशय बन जाए, पानी भर जाए, लेकिन उस पानी को पहुंचाने के लिए अगर नहर नहीं होगी तो उस पानी को देख करके क्या करेंगे? इसलिए देश भर में जलाशयों के बूंद बूंद पानी का उपयोग कैसे हो, हमारा किसान उससे लाभान्वित कैसे हो, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

भारत जैसे देश में पानी भी बचाना पड़ेगा। इसलिए हमारा आग्रह है- per drop more crop. पानी के हर बूंद से फसल पैदा होनी चाहिए। एक एक बूंद का उपयोग करना चाहिए। micro-irrigation का उपयोग करना चाहिए..टपक सिंचाई, sprinkler, जहां जहां किसानों ने इस आधुनिक technology से पानी का उपयोग किया है, मेहनत भी कम हुई है, खर्चा भी कम हुआ है, उत्पादन ज्यादा बढ़ा है, मुनाफा भी ज्यादा बढ़ा है।

मैं किसानों से आग्रह करता हूं, देश भर के किसानों से आग्रह करता हूं कि आइए, ये हम flood irrigation..क्योंकि किसान का स्वभाव है, जब तक वो खेत में, लबालब पानी से भरा हुआ उसको खेत दिखता नहीं है, तब तक उसको लगता है कि पता नहीं फसल होगी कि नहीं होगी। ये सोच गलत है। फसल को इतने पानी की ज़रूरत नहीं होती है। पानी का प्रभाव भी फसल को नुकसान करता है, पानी का अभाव भी फसल को नुकसान करता है। अगर सही मात्रा में पानी पहुंचे तो उससे सर्वाधिक लाभ होता है। इसलिए micro-irrigation के द्वारा, टपक सिंचाई के द्वारा फसल का लाभ हम कैसे उठाएं, पानी पहुंचा पहुंचा कर कैसे लाभ उठाएं..।

आपने देखा होगा कि अगर कोई बच्चा घर में बीमार रहता है, और आपने अगर सोचा हो कि एक बाल्टी भर दूध ले लें, दूध के अंदर केसर, पिस्ता, बादाम डाल दें और उस बाल्टी भर दूध से रोज़ बच्चे को नहलाना शुरू कर दें। क्योंकि बच्चे की तबियत ठीक नहीं रहती, वजन नहीं बढ़ता है,ढीला ढाला रहता है और पूरे दिन पड़ा रहता है, बच्चे की तरह वो हंसता, खेलता, दौड़ता नहीं है तो एक बाल्टी भर दूध..बादाम हो, पिस्ता हो, केसर हो, उससे उसको नहलाएं, आप मुझे बताएं कि बच्चे को इतने बढि़या दूध से नहलाने से उसकी तबियत ठीक होगी क्या, उसका वजन बढ़ेगा क्या? उसकी सेहत में सुधार होगा क्या? नहीं होगा। लेकिन अगर समझदार मां एक एक चम्मच से एक एक बूंद दूध पिलाती है, शाम तक चाहे 100 ग्राम दूध पिला दे, बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार नज़र आना शुरू हो जाता है। फसल का भी ऐसा ही है, जैसे बच्चे को एक एक चम्मच दूध से बदलाव आता है, फसल को भी, एक एक बूंद पानी अगर उसके मूंह में जाता है तो उसको सचमुच में विकास करने का अवसर मिलता है। जिस प्रकार से हम बच्चे का लालन पालन करते हैं, उसी प्रकार हम फसल का भी लालन पालन कर सकते हैं। इसलिए मैं सभी किसान भाईयों को micro irrigation के लिए, टपक सिंचाई के लिए फ़वारे वाली सिंचाई के लिए आग्रह करता हूं। पानी बचाएंगे, पैसा भी बचेगा और फसल ज्यादा पैदा होगी, इसकी मैं आपको गारंटी देने आया हूं।

सरकार ने एक open university.. किसानों को रोज़मर्रा जानकारियां देने के लिए, रोज़मर्रा प्रशिक्षण करने के लिए, सरकार ने किसान चैनल चालू किया हैं। हमारे देश में कार्टून फिल्मों की चैनल होती है, स्पोर्ट्स की, समाचारों की चैनल होती है, मनोरंजन के लिए चैनल होती है, लेकिन किसानों के लिए चैनल नहीं थी। भारत सरकार ने पिछले महीने सिर्फ और सिर्फ किसानों की आवश्यकताओं के लिए एक किसान चैनल चालू किया। आपने भी अब देखना शुरू किया होगा, उसमें सारी जानकारियां बताई जाती हैं। किसान के सवालों के जवाब दिए जाते हैं, देशभर में कृषि क्षेत्र में क्या क्या प्रगति हुई, उसकी जानकारी दी जाती है। मैं चाहता हूं ये किसान चैनल हमारे देश के किसानों के लिए एक open university के रूप में काम करे। घर घर आ करके हर किसान को वो गाइड करे। किसान और किसान चैनल, कृषि में आधुनिकता कैसे आए कृषि में वैज्ञानिकता कैसे आए, कृषि में बदलाव कैसे आए, उस दिशा में काम करे।

आज जो झारखंड की इस धरती में जो प्रयास आरंभ हुआ है, वो उत्तम स्तर कक्षा के कृषि वैज्ञानिकों को तैयार करेगा, कृषि क्षेत्र के निष्णातों को तैयार करेगा और हमारी कृषि को आधुनिक बनाने की दिशा में झारखंड की धरती पर से एक नया युग प्रारंभ होगा, इसी एक विश्वास के साथ मैं आप सबको, खास करके मेरे किसान भाइयों को हृदय से बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। झारखंड को भी बहुत ही जल्द, ये संस्थान निर्माण हो जाए, बहुत तेजी से यहां के विद्यार्थियों को लाभ मिले, उस दिशा में आगे बढ़ें, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद। जय जवान, जय किसान।

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India of the 21st century is moving forward with a very clear roadmap for climate change and environmental protection: PM Modi
June 05, 2023
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“On one hand, we have banned single-use plastic while on the other hand, plastic waste processing has been made mandatory”
“India of the 21st century is moving forward with a very clear roadmap for climate change and environmental protection”
“In the last 9 years, the number of wetlands and Ramsar sites in India has increased almost 3 times as compared to earlier”
“Every country in the world should think above vested interests for protection of world climate”
“There is nature as well as progress in the thousands of years old culture of India,”
“The basic principle of Mission LiFE is changing your nature to change the world”
“This consciousness towards climate change is not limited to India only, the global support for the initiative is increasing all over the world”
“Every step taken towards Mission LiFE will become a strong shield for the environment in the times to come

नमस्कार।

विश्व पर्यावरण दिवस पर आप सभी को, देश और दुनिया को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। इस वर्ष के पर्यावरण दिवस की थीम- सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्ति का अभियान है। और मुझे खुशी है कि जो बात विश्व आज कर रहा है, उस पर भारत पिछले 4-5 साल से लगातार काम कर रहा है। 2018 में ही भारत ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्ति के लिए दो स्तर पर काम शुरु कर दिया था। हमने एक तरफ, सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर बैन लगाया और दूसरी तरफ Plastic Waste Processing को अनिवार्य किया गया। इस वजह से भारत में करीब 30 लाख टन प्लास्टिक पैकेजिंग की रीसाइकिल कंपलसरी हुई है। ये भारत में पैदा होने वाले कुल सालाना प्लास्टिक वेस्ट का 75 परसेंट है। और आज इसके दायरे में लगभग 10 हज़ार प्रोड्यूसर्स, इंपोर्टर और Brand Owners आ चुके हैं।

साथियों,

आज 21वीं सदी का भारत, क्लाइमेट चेंज और पर्यावरण की रक्षा के लिए बहुत स्पष्ट रोडमैप लेकर चल रहा है। भारत ने Present Requirements और Future Vision का एक Balance बनाया है। हमने एक तरफ गरीब से गरीब को ज़रूरी मदद दी, उसकी आवश्यकताओं को पूर्ण करने का भरसक प्रयास किया, तो दूसरी तरफ भविष्य की ऊर्जा ज़रूरतों को देखते हुए बड़े कदम भी उठाए हैं।

बीते 9 वर्षों के दौरान भारत ने ग्रीन और क्लीन एनर्जी पर अभूतपूर्व फोकस किया है। सोलर पावर हो, LED बल्बों की ज्यादा से ज्यादा घरों में पहुँच बने, जिसने देश के लोगों के, हमारे गरीब और मध्यम वर्ग के पैसे भी बचाए हैं और पर्यावरण की भी रक्षा की है। बिजली का बिल निरंतर कम हुआ है। भारत की लीडरशिप को दुनिया ने इस वैश्विक महामारी के दौरान भी देखा है। इसी Global Pandemic के दौरान भारत ने मिशन ग्रीन हाइड्रोजन शुरु किया है। इसी Global Pandemic के दौरान भारत ने मिट्टी और पानी को केमिकल फर्टिलाइज़र से बचाने के लिए प्राकृतिक खेती नैचुरल फार्मिंग की तरफ बड़े कदम उठाए।

भाइयों और बहनों,

ग्रीन फ्यूचर, ग्रीन इकॉनॉमी के अभियान को जारी रखते हुए, आज दो और योजनाओं की शुरुआत हुई है। बीते 9 सालों में भारत में वेटलैंड्स की, रामसर साइट्स की संख्या में पहले की तुलना में लगभग 3 गुणा बढ़ोतरी हुई है। आज अमृत धरोहर योजना की शुरुआत हुई है। इस योजना के माध्यम से इन रामसर साइट्स का संरक्षण जनभागीदारी से सुनिश्चित होगा। भविष्य में ये रामसर साइट्स इको-टूरिज्म का सेंटर बनेंगी और हज़ारों लोगों के लिए Green Jobs का माध्यम बनेंगी। दूसरी योजना देश की लंबी कोस्टलाइन और वहां रहने वाली आबादी से जुड़ी है। 'मिष्ठी योजना' के माध्यम से देश का मैंग्रूव इकोसिस्टम रिवाइव भी होगा, सुरक्षित भी रहेगा। इससे देश के 9 राज्यों में मैंग्रूव कवर को restore किया जाएगा। इससे समंदर का स्तर बढ़ने और साइक्लोन जैसी आपदाओं से तटीय इलाकों में जीवन और आजीविका के संकट को कम करने में मदद मिलेगी।

साथियों,

World Climate के Protection के लिए ये बहुत जरूरी है कि दुनिया का हर देश निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचे। लंबे समय तक दुनिया के बड़े और आधुनिक देशों में विकास का जो मॉडल बना, वो बहुत विरोधाभासी है। इस विकास मॉडल में पर्यावरण को लेकर बस ये सोच थी कि पहले हम अपने देश का विकास कर लें, फिर बाद में पर्यावरण की भी चिंता करेंगे। इससे ऐसे देशों ने विकास के लक्ष्य तो हासिल कर लिए, लेकिन पूरे विश्व के पर्यावरण को उनके विकसित होने की कीमत चुकानी पड़ी। आज भी दुनिया के विकासशील और गरीब देश, कुछ विकसित देशों की गलत नीतियों का नुकसान उठा रहे हैं। दशकों-दशक तक कुछ विकसित देशों के इस रवैये को न कोई टोकने वाला था, न कोई रोकने वाला था, कोई देश नहीं था। मुझे खुशी है कि आज भारत ने ऐसे हर देश के सामने Climate Justice का सवाल उठाया है।

साथियों,

भारत की हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति के दर्शन में ही प्रकृति भी है और प्रगति भी है। इसी प्रेरणा से आज भारत, इकॉनॉमी पर जितना जोर लगाता है, उतना ही ध्यान इकॉलॉजी पर भी देता है। भारत आज अपने इंफ्रास्ट्रक्चर पर अभूतपूर्व इंवेस्ट कर रहा है, तो Environment पर भी उतना ही फोकस है। अगर एक तरफ भारत ने 4G और 5G कनेक्टिविटी का विस्तार किया, तो दूसरी तरफ अपने forest cover को भी बढ़ाया है। एक तरफ भारत ने गरीबों के लिए 4 करोड़ घर बनाए तो वहीं भारत में WildLife और WildLife Sanctuaries की संख्या में भी रिकॉर्ड वृद्धि की। भारत आज एक तरफ जल जीवन मिशन चला रहा है, तो दूसरी तरफ हमने Water Security के लिए 50 हजार से ज्यादा अमृत सरोवर तैयार किए है। आज एक तरफ भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है तो वो रीन्यूएबल एनर्जी में टॉप-5 देशों में भी शामिल हुआ है। आज एक तरफ भारत एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट बढ़ा रहा है, तो वहीं पेट्रोल में 20 परसेंट इथेनॉल ब्लेंडिंग के लिए भी अभियान चला रहा है। आज एक तरफ भारत Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI जैसे संगठनों का आधार बना है तो वहीं भारत ने International Big Cat Alliance की भी घोषणा की है। ये Big Cats के संरक्षण की दिशा में बहुत बड़ा कदम है।

साथियों,

मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से बहुत सुखद है कि मिशन LiFE यानि Lifestyle for environment आज पूरे विश्व में एक Public Movement, एक जनआंदोलन बनता जा रहा है। मैंने जब पिछले वर्ष गुजरात के केवड़िया- एकता नगर में मिशन लाइफ को लॉन्च किया था, तो लोगों में एक कौतुहल था। आज ये मिशन, क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए लाइफस्टाइल में परिवर्तन को लेकर एक नई चेतना का संचार कर रहा है। महीना भर पहले ही मिशन LiFE को लेकर एक कैंपेन भी शुरु किया गया। मुझे बताया गया है कि 30 दिन से भी कम समय में इसमें करीब-करीब 2 करोड़ लोग जुड़ चुके हैं। Giving Life to My City, इस भावना के साथ, कहीं रैलियां निकलीं, कहीं क्विज़ कंपीटीशन हुए। लाखों स्कूली बच्चे, उनके शिक्षक, इको-क्लब के माध्यम से इस अभियान से जुड़े। लाखों साथियों ने Reduce, Reuse, Recycle का मंत्र अपने रोज़मर्रा के जीवन में अपनाया है। बदले स्वभाव तो विश्व में बदलाव, यही मिशन लाइफ का मूल सिद्धांत है। मिशन लाइफ, हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए, पूरी मानवता के उज्ज्वल भविष्य के लिए उतना ही जरूरी है।

साथियों,

ये चेतना सिर्फ देश तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में भारत की इस पहल को लेकर समर्थन बढ़ रहा है। पिछले वर्ष पर्यावरण दिवस पर मैंने विश्व समुदाय से एक और आग्रह किया था। आग्रह ये था कि व्यक्तियों और कम्यूनिटी में climate friendly behavioral change लाने के लिए इनोवेटिव समाधान शेयर करें। ऐसे समाधान, जो measurable हों, scalable हों। ये बहुत खुशी की बात है कि दुनिया भर के लगभग 70 देशों के हज़ारों साथियों ने अपने विचार साझा किए। इनमें स्टूडेंट्स हैं, रिसर्चर हैं, अलग-अलग डोमेन से जुड़े एक्सपर्ट हैं, प्रोफेशनल्स हैं, NGOs हैं और सामान्य नागरिक भी हैं। इनमें से कुछ विशिष्ठ साथियों के आइडियाज़ को थोड़ी देर पहले पुरस्कृत भी किया गया है। मैं सभी पुरस्कार विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

मिशन LiFE की तरफ उठा हर कदम और वही आने वाले समय में पूरे विश्व में पर्यावरण का मजबूत कवच बनेगा। LiFE के लिए थॉट लीडरशिप का संग्रह भी आज जारी किया गया है। मुझे विश्वास है कि ऐसे प्रयासों से ग्रीन ग्रोथ का हमारा प्रण और सशक्त होगा। एक बार फिर सभी को पर्यावरण दिवस की अनेक-अनेक शुभकामनाएँ, हृदय से बहुत-बहुत मंगलकामना।

धन्यवाद!