Text of PM's remarks at inauguration of Global Exhibition on Services

Published By : Admin | April 23, 2015 | 20:20 IST

मंच पर विराजमान मंत्रिपरिषद के मेरे सभी साथी,

मंच पर उपस्थित सभी महानुभाव,

दुनिया के भिन्‍न-भिन्‍न देशों से आये हुए प्रतिनिधि बंधु,

मैं Department के सभी साथियों को बधाई देता हूं इस कार्यक्रम की रचना करने के लिए क्‍योंकि बहुत वर्षों से हम एक बात सुनते आये हैं और उसका हमारे मन पर प्रभाव भी बहुत रहा है। हर जगह पर हम सुनते थे एक शब्‍द, Brain Drain. और आलोचना भी होती रहती थी कि ये देश का क्‍या होगा Brain Drain का, ऐसी आलोचना होती थी। और आज से 15-20 साल पहले शायद यहां बैठे हुए लोगों ने बहुत सारी चिंता व्‍यक्‍त की होगी। वो एक Mind Set था हमारा, लेकिन आज Brain Drain से Brain Gain तक की यात्रा है यह हमारी यात्रा आई है। अब Brain Drain से बाहर निकल करके, उस सोच से बाहर निकल करके, Brain Gain के लिए हमारी क्‍या Strategy होनी चाहिए उसको हमने सोचना चाहिए।

और इसलिए कोशिश यह है कि अब वो... हम लोगों ने चिंता करने की जरूरत नहीं है पांच 50 लोग दुनिया में पहुंचेंगे तो यहां खाली हो जाएगा। यह बहुरत्‍ना वसुंधरा है, कोई कमी पड़ने वाली नहीं है, Talented Manpower की कभी कमी नहीं पड़ने वाली है। दूसरी बात है, भारत ने अपनी शक्ति और सामर्थ्‍य का लेखा-जोखा लेना चाहिए। और वो भी global prospective में लेना चाहिए। और आज अगर global prospective में देखें तो भारत की सबसे बड़ी शक्ति है भारत का human resource, हमारा Manpower. यह हमारी सबसे बड़ी ताकत है। और अगर ये हमारी सबसे बड़ी संपत्ति है, तो हमारे विकास की यात्रा के केंद्र बिंदु में इस विचार को प्राथमिकता देनी चाहिए कि जिस देश के पास 65 percent population 35 से नीचे हो, और आने वाले दिनों में यह एवरेज और कम होने वाली है। भारत आने वाले दिनों में अधिक युवा होने वाला है। अगर यह हमारी संपत्ति है तो संपत्ति को ध्‍यान में रख करके, हमारी विकास यात्रा की Model को हमने तैयार करना चाहिए।

और अगर उसको तैयार करना है तो हमने Globally भी देखना चाहिए कि नहीं दुनिया की क्‍या स्थिति है। कितना ही Development किया होगा, Technology की नई-नई ऊंचाईयों को पार किया होगा, उसके बाद भी विश्‍व का बहुत एक हिस्‍सा ऐसा होगा, आने वाले दिनों में - जो Manpower के बिना एक प्रकार से Handicap हो सकता है। अभी जैसे त्रेहान जी बता रहे थे कि अगर हम Sport System खड़ी न करें तो दुनिया के कई देशों का Health Sector ही Collapse कर जाएगा। कहने का तात्‍पर्य यह है कि हम लोगों के पास ये सामर्थ्‍य है। अब इसको Scientific ढंग से हम आगे कैसे बढ़ाएं?

भारत में व्‍यक्तिगत संबंधों के कारण कोई Middle east में चले गये होंगे, वहां कोई मजदूरी शुरू की होगी। कोई पांच लोग पहले गये होंगे, कोई 50 को ले गये होंगे। फिर एक जिले के ज्‍यादा लोग उसी देश में चले जाते होंगे वो परंपरा चली होगी। लेकिन इस बात को institutionalized करके इस सेक्‍टर में काम करने वाले सब लोगों का सहयोग ले करके, सरकार के सभी Department को भी coordinate करते हुए एक Road map बना करके उसमें सबका Involvement कैसे हो, हमारा destination क्‍या हो, हमारी way and means क्‍या हो, इन सारे विषयों में जब तक हम वैज्ञानिक तरीके से आगे नहीं बढ़ेंगे एक Perfect Mechanism खड़ा नहीं करेंगे, तो इतनी बड़ी संपदा होने के बावजूद भी उधर लोग workforce के लिए तरसते होंगे और इधर हम काम न देने के कारण तक परेशान रहते होंगे। और इसलिए समय रहते हम global requirement को ध्‍यान में रखते हुए अपनी कार्य योजना को करना चाहिए। उसी दिशा का यह महत्‍वपूर्ण एक प्रयास है कि जिसमें दुनिया के देश के लोगों से मिले, बैठे बात करें। सार्क देशों ने उसे विशेष रूप से उसमें योगदान दिया है। अब मिल बैठकर हम किसकी क्‍या आवश्‍यकता है, उसको सोचे, समझें और उसकी दिशा में हमारा जाने का प्रयास है।

एक तो हमें एक काम की प्रयास करना है - और मैं चाहूंगा उसमें राज्‍य सरकारें हो सकती हैं, Private कंपनियां, फिल्‍म में काम करने वाले लोग भी हो सकते हैं, भारत सरकार भी हो सकती है - सब मिल करके काम करें। हिंदुस्‍तान में भी हमारे पास, जो भी workforce है उसमें भी अलग-अलग इलाके की, अलग-अलग ताकत है। अलग-अलग विशेषताएं हैं। जो काम कर्नाटक की तरफ नौजवान कर सकता होगा, संभव है कि असम का नौजवान उस प्रकार से काम नहीं कर पाएगा। लेकिन जो काम असम का नौजवान कर पाएगा वो शायद कर्नाटक का नहीं कर पाएगा। तो भारत इतना विशाल है हमारे यहां जो मानव संपदा है उसकी शक्तियों में भी अनेक विविधताएं भरी पड़ी हुईं हैं।

हमारा काम होगा कि हम इस प्रकार की शक्तियों का Mapping करें। अब देखा होगा हमने Sports - हमें मालूम है कि कुछ ही इलाके से Sportsmen मिलते हैं हमें, सब जगह से नहीं मिलते। इसका मतलब ये नहीं कि हर जगह खेल नहीं चल रहा है, स्‍कूल में तो खेल हर कोई खेलता है तो एक-एक भू-भाग विशेषता बनी होती है। आप देखें होंगे Mathematics में अच्‍छे Student कुछ ही इलाके होंगे जहां पर Best quality Mathematics Student मिलते होंगे, तो एक Traditional develop हुई होगी। हमने, हमारे पास जो ये मानव संपदा है उस मानव संपदा का किस भू-भाग में किस प्रकार का का स्‍वभाव है, जरूरी नहीं है एक प्रकार का होगा, अनेक प्रकार का होगा, उसमें Priority हम तय करेंगे, फिर फोकस वही करना चाहिए, ये जरूरी नहीं है कि हर प्रकार की Talent हर प्रकार के Scale हिंदुस्‍तान के हर कोने में develop हो - आवश्‍यक नहीं है। मान लीजिए हमने एक State को दो Skill के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण माना और उसी को Center for Excellence खड़ा किया। और हिंदुस्‍तान भर में जिसको उसमें रूचि हो उसको वहां ले गये और वहां जो लोग तैयार हों, उनको दुनिया में जहां जरूरी है Export किया, तो आप देखिए हम कितना Qualitative अपने काम को हम Improve कर सकते हैं। इसलिए एक महत्‍वपूर्ण काम है हमारा अपना Mapping.

दूसरा महत्‍वपूर्ण काम है Human Resource Development. जब तक हम हमारे Manpower को तैयार नहीं करते... मान लीजिए हमारे यहाँ एक Carpenter है, इस Carpenter को U.A.E में काम मिल रहा है। अगर कोई एक यहां छोटी सी भी Institute हो, Private हो, जैसे कोचिंग क्‍लासेस चलते हों। अगर कहीं पर एक कोचिंग क्‍लासेस चलाता है, Private अपना, कि वो 25-25 ऐसे युवकों को जिस देश में जाने वाला है वहां की Manner क्‍या होती है, खान-पान क्‍या होता है, वहां के 50 ऐसे वाक्‍य याद कर ले तो क्‍या अर्थ होता है। अगर आपने इसको इस प्रकार से भी Soft Skill Develop किया तो उसके बाद जो real strength है उसके प्‍लस Soft Skill हो गई तो उसका value addition कितना हो जाएगा? मान लीजिए आप उसको भेज रहे हैं लेकिन वो देश Technological Advance है, तो हमारी पुरानी पद्धति में उसको जो भी आता है.. हो सकता है, वो वहां मकान बनाने के लिए गया लेकिन Deign मिलेगी, ईमेल से आएगी Deign तो उसको फिर Computer Reading आता है या नहीं आता है, वो Deign को समझ सके.. उसको Value Addition कैसे हो? अगर हम उसकी दिशा में हम अगर थोड़ा भी करें...

आज दुनिया में हमारी नर्सिंग की मांग है। हमारी नर्सिंग रूटीन में हमारे यहां जो पढ़ाई होती है, वहां से जाती है पढ़ाई करती हैं, और बड़ी प्रतिष्‍ठा पाई हैं। लेकिन क्‍या हम भी रिसर्च कर सकते हैं कि और अधिक Value Addition क्‍या हो सकता ?है और कौन सी चीजें जोड़ी जा सकती है? उस दिशा हम प्रयास करें। मान लीजिए हम तय करें कि भाई इस प्रकार से जाने वालों के लिए हम Language class चलाएंगे। इन language class की हमें Double benefit हो सकते हैं। हिंदुस्‍तान में हमें अगर Tourism बढ़ाना है और हमारे पास इस प्रकार के language classes हैं, तो कुछ लोग विदेश जाएंगे, लेकिन जो यहां रहेंगे वो language जानते होंगे तो Tourist के समय जब जरूरत पड़ेंगी तो हमें वो काम आएगा। एक प्रकार से वो अनेक क्षेत्रों में काम आ सकता है।

मेरा कहने का तात्‍पर्य यह है कि जब तक हम within India हमारी जो ताकत है, उसको वैज्ञानिक तरीके से नापना, नाप करके उसको और अधिक Develop करना, यह एक आवश्‍यक काम मुझे लगता है।

दूसरा Globally भी हमने Target करना चाहिए। भारत को एक लाभ है - अंग्रेजी language का। लेकिन हमने पूरे दुनिया का हिसाब-किताब लगाया। एक उन देशों में कुछ चीजें अनिवार्य हैं, और ये उनके बस की ताकत नहीं है। किस देश में वो कौन सी चीजें हैं? और अगर हम उसको Target करके उनकी अनिवार्यता, उनकी मुसीबत जो है उसको अगर identify करते हैं और फिर हमारे यहां काम करते हैं, Immediate आपको मार्केट मिल सकता है। तुरंत उनको Requirement होगी अगर मान लीजिए कोई जगह पर पता है कि वहां Health Sector में उनके यहां Develop ही संभव नहीं है, आने वाले 25 साल तक संभव नहीं है, Ok, हम उस देश में Health Sector के लिए ही Focus करेंगे। देखिए एक दम से आपको काम मिलना शुरू हो जाता है।

इसलिए दुनिया के किस देश में अनिवार्यता है? और वहां पर सबसे ज्यादा deficiency हो, उस area में हम हमारे देश में तैयारी करके enter कर सकते हैं क्या? उनका भी भला होगा, हमारा भी भला होगा।

दूसरा part है कि वहां establish चीजें हैं लेकिन cost is a problem, work force is a problem. तो फिर हमारा काम रहता है कि हम उसको address करें और उसको address करने के लिए हम किस प्रकार की तैयारी करें? हम जितनी ज्यादा मात्रा में हमारे man power को value addition करके यहां से भेजेंगे और targeted काम के लिए भेजेंगे, हम बहुत बड़ा contribution global economy में भी कर सकते हैं। और of course भारत के नौजवानों को रोजगार मिलेगा तो भारत की economy को तो लाभ होना ही होना है और उसका फायदा होगा।

कई क्षेत्र ऐसे हैं। जैसे हम कहें tourism. अब tourism कहने के मतलब ऐसा नहीं होता कि सिर्फ tourist destination होता है। Tourism कहने के बाद उसके पीछे अनेक चीजें हैं। Even food habits का होगा, soft skill का होगा, language का होगा, guide का होगा, even आपके cab के drivers होंगे तो उनकी training होंगी, पचासों चीजें होंगी। हमें अपना tourism बढ़ाना है तो हमारे देश में भी, हमारी service को कैसे हम qualitatively improve करें? Qualitatively improve करने के लिए कौन-कौन से हमारे पहलू हो? तो, हमारे यहां अपने देश की आवश्यकता के लिए भी उस प्रकार की नई पचासों institutions विकसित हो सकती हैं और ये public private partnership के model पर हो सकती हैं और करनी भी चाहिए। हम उसमें बहुत बड़ी मात्रा में role कर सकते हैं।

अभी मैं जर्मनी गया था। तो जर्मनी की चांसलर एजेंला मार्केल के साथ ऐसे ही बात हो रही थी, लंच के समय पर जब हम मिले तो और guest अभी set हो रहे थे, meeting शुरू होना बाकी था। उन्होंने बातों ही बातों में, जब उनको पता चला कि मैं vegetarian हूं तो उन्होंने विषय निकाला। उन्होंने कहा कि मैं खुद Indian कढ़ी बनाती हूं, बोले मैं सीखी हूं। लेकिन फिर भी मुझे अभी perfect नहीं आती है। और कभी-कभी ingredient के संबंध में मुझे problem रहता है। ये जब मैंने सुना, तो तुरंत मुझे मेरे देश के service sector की तरफ ध्यान गया। इसका मतलब कि दुनिया में आजकल holistic health care की तरफ जब योगा ने एक ध्यान लिया है वैसे ही एक हवा चल पड़ी है vegetarianism की। लेकिन उनको मालूम नहीं है कि vegetarianism में भी इतना development हो चुका है। क्या हम इस दिशा में service देने का तय करें। हमारे जितने यहां बड़े-बड़े होटल वाले हैं, वे अगर दुनिया के लोगों को इस प्रकार से सिखाने का काम करें, special classes करें, even tourist के लिए भी package बनाएं। 3 दिन cooking class, 3 दिन field visit. आप देखिए service के कितने पहलू हो सकते हैं, कितने प्रकार से उसको पढ़ाया जा सकता है, हमने कितने नए innovative हैं क्योंकि हमारे पास विपुल मात्रा में मानव संपदा है। कुछ चीजें ऐसी हैं कि हम उन सेवाओं को दें ताकि हमारी अपनी product भी साथ-साथ चलती जाए। कभी-कभार ऐसा होता है कि भई आप ये लेंगे तो साथ में ये मिलेगा, तो साथ में ये भी जोड़ा जा सकता है। इसलिए हम सिर्फ IT के द्वारा सेवा करें, ये जो limited हमारी सोच बनी है, उसमें से हमने बाहर आना चाहिए, इसका दायरा बढ़ाना चाहिए। और सिर्फ बहुत ऊंचे पढ़े-लिखे लोग दुनिया को जरूरत, ऐसा नहीं है, अनेक प्रकार के लोगों की दुनिया को जरूरत है और ये आवश्यकता बढ़ने वाली है। और इसलिए हमने हमारे सेवा के layers, multiple layers सेवा के हमने दायरे पर सोचना होगा। वो अगर हम करते हैं तो बहुत लाभ पाएंगे, देशा की सेवा करेंगे, दुनिया की भी सेवा करेंगे।

कुछ तो हम लोगों ने पुराने जमाने में जो नियम बनाएं हैं, उस भय से बनाए हुए हैं - कहीं दुनिया आ जाएगी, खा जाएगी। आत्मविश्वास का अभाव रहा क्योंकि बहुत सालों तक हम गुलाम रहे। हमें उस मानसिकता से बाहर आना पड़ेगा। मुझे अभी भी समझ में नहीं आ रहा है कि arbitration हमारे देश में क्यों न हो? Global arbitration हमारे देश में क्यों न हो? Arbitration के लिए आज भी हमें London क्यों जाना पड़े? क्या हमारे पास उस प्रकार के chartered accountant, उस प्रकार के lawyer नहीं है क्या? हैं! लेकिन हमने कानून ऐसे बना के रखे हैं कि हमारा ही.. हां और कुछ लोगों को डर लगता है, नहीं-नहीं ये यहां मत शुरू करो, ये सब दुनिया भर के बढे-बढे बुद्धिमान वकील आ जाएंगे, तो हमारा काम नहीं चलेगा। ऐसा नहीं होने वाला है ये।

जो सोच किसे जमाने में थी कि technology आएगी तो job चली जाएगी, computer आएगा तो job चली जाएगी। आज हम देख रहे हैं कि technology के कारण job का global scope पैदा हो गया है। वक्त बदल चुका है। हमने स्थितियों को visualise करना चाहिए और हमें भयभीत रहने की जरूरत नहीं, इतना बड़ा, सवा सौ करोड़ का देश है। हम दुनिया से दबकर क्यों जीना चाहिए? हम अपनी ताकत खड़ी करें, दुनिया में हम अपना अस्तित्व दिखा सकते हैं, इस मिजाज से हमारी योजना और रचनाएं होनी चाहिए।

उसी प्रकार से finance का sector, हम देख रहे हैं अब via मॉरिशस आइए, via सिंगापुर आइए, हमें डर लगता है कहीं अपने यहां कर लिया तो? क्यों न करें हम? ये हम अपनी ताकत को मॉरिशस, सिंगापुर या मलेशिया को क्यों divert करें? हम अपने कानूनों और नियमों को इस प्रकार से बनाएं ताकि इन चीजों को हम भी हजम कर सकें और अपनी व्यवस्थाओं को विकसित कर सकें। उस दिशा में हम काम कर रहे हैं। और आने वाले दिनों में देखेंगे आप, हम उन व्यवस्थाओं को विकसित करना चाहते हैं कि जो globally भारत को.. हां कुछ हमने उसकी सीमाएं भी बांधनी पड़ती हैं। जैसे intellectual property right, अब हम global parameter के intellectual property right की दिशा में काम नहीं करेंगे तो दुनिया हमारे साथ नाता नहीं जोड़ेगी।

हम जानते हैं हमारी entertainment industry बहुत बड़ी ताकत रखती है। सिर्फ हिंदुस्तान में फिल्म बनाने की ताकत रखती है, ऐसा नहीं है। लेकिन intellectual property right में उनको भरोसा दुनिया को हम दे दें, मुझे विश्वास है हम globally एक बहुत बड़ा destination बन सकते हैं, उनके अपने creative work के लिए। भारत में creative work के लिए इतनी बड़ी संभावनाएं पड़ी हैं - दुनिया में कोई कार बनाए, कार की manufacturing वाला होगा वहां लेकिन कार में अंदर की seat की design क्या हो? वो बनाने की ताकत हिंदुस्तानी में है। और वो ही कार ज्यादा तब बिकेगी, इसलिए नहीं कि तुम्हारा मशीन कैसा है, सीट कैसी है, इसके आधार पर कार बिकती है कि भई बैठना कितना comfortable है, उतरना कितना comfortable है और उस काम को करने वाले भी लोग होते हैं। Service! Creative services! इसके लिए हमारे पास इतनी संभावनाएं हैं और हम उसका लाभ उठा सकते हैं।

आज योगा और IT - दो क्षेत्र ऐसे हैं, जिन्‍होंने दुनिया में हिंदुस्तान को भी पुहंचाया है और इसके माध्यम से हिंदुस्तान भी पहुंचा है। लेकिन एक विशेषता है, ये दोनों पहुंचे हैं क्योंकि वहां सरकार नहीं है... बड़ी देर लगी आपको, ये इसलिए पहुंचे हैं क्योंकि हम नहीं हैं वहां। क्योंकि सरकार का mind set ऐसा बना हुआ है वहां, सालों से, ये हिंदुस्तान के 20, 22, 24 साल के नौजवान हैं, जिन्होंने दुनिया में भारत के IT माध्यम से पहचान खड़ी की है, ताकत के रूप में पहचान बना दी है। उसी प्रकार से दुनिया का मानव जो कि stress के कारण परेशान है, frustration से जी रहा है, बहुत कुछ पाने के बाद भी संतोष अनुभव नहीं कर रहा है तो वो ढूंढ़ता-ढूढ़ता आया, वो योग उठाकर ले गया। कोई आकर के ले गया, कोई जाकर के दे आया, ये दो route से हमारा हुआ है।

हम इसको और अधिक scientific बनाकर के एक बहुत ही, यानी भारत की अपनी सोच के रूप में, हम ऐसे किन-किन क्षेत्रों में.. मान लीजिए संगीत, दुनिया को, दुनिया को, मैं मानता हूं संगीत के माध्यम से हम बहुत कुछ दे सकते हैं। दुनिया को अभी तक ये भी पता नहीं है कि तन डोले इसलिए संगीत होता है कि मन डोले इसके लिए संगीत होना चाहिए। ज्यादातर परिचय यही है कि संगीत यानी तन डोले, संगीत से मन डोलना चाहिए और ये ताकत हिंदुस्तान में है! ये ताकत हिंदुस्तान में है! ये देश है कि किस प्रहर में कौन सा राग हो, किस बीमारी में कौन सा राग हो, बालक अवस्था हो तो कौन सा राग हो, निवृत्त अवस्था हो तो कौन सा राग हो। यहां तक जहां वैज्ञानिक काम हुआ हो, क्या दुनिया को हम ये सेवा नहीं दे सकते हैं? फिर से एक बार गुरु-शिष्य परंपरा revive हो और मान लीजिए हिंदुस्तान में एक हजार अच्छे सितारवादक हैं। और दुनिया के एक हजार शिष्य उनके यहां आ जाएं, उनके यहां रहें, सितार सीखें, साल भर का अपना गुरु-दक्षिणा दें और वापिस चले जाएं। क्या भारत का, संगीत की दुनिया में जिसने साधना की है, उसको कभी भूखे रहने की नौबत आएगी क्या? कभी नहीं आएगी और जो यहां से सीखकर गया, वो सिर्फ सितार ही सीखकर जाएगा कि पूरा हिंदुस्तान लेकर के जाएगा? हिंदुस्तान अपने आप पहुंत जाएगा कि नहीं जाएगा?

हमारी service sector की ताकत ये है कि विश्व में हमें अपने आप को पहुंचाने का एक बहुत बड़ा अवसर हमारे सामने आया है। सिर्फ विश्व की सेवा करेंगे, ऐसा नहीं, विश्व को अपना बनाने की ताकत हमने पाई है.. और समय-समय पर इस देश ने किया है। मैं अभी फ्रांस गया था। फ्रांस में मैं युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि देने के लिए गया था। प्रथम विश्व युद्ध की शताब्दी हुई। सेवा कैसी हमारे लोग कर सकते हैं, इसका एक उत्तम उदाहरण है। एक सौ साल हो गए हैं, प्रथम विश्व युद्ध में करीब 14 लाख हिंदुस्तान के जवानों ने किसी और के लिए लड़ाई लड़ी थी, अपने लिए नहीं, हमारी जमीन को बढ़ाने के लिए नहीं, हम मर रहे थे इसलिए बचने के लिए नहीं, किसी और के लिए। और करीब-करीब 75 हजार लोगों ने शहादत थी। मैं मानता हूं कि दुनिया समझे किसी भी प्रकार की सेवा यानी अपना जीवन आहूत कर देने तक की सेवा देना, इस देश ने करके दिखाया है। अगर उसने किसी की रक्षा के लिए अपनी जान देकर के दिखाया है तो जीवन बचाने के लिए हमारे डॉक्टरों ने दुनिया में जाकर के अपने करतब दिखाए हैं।

और इसलिए मैं कहता हूं कि हम इस क्षेत्र को सीमित न मानें। ये बहुत बड़ी मानवता की सेवा है। ये बहुत बड़ी देश की सेवा है। उसको हमारी ताकत को जल्दी पहचाने, हम अपनी ताकत को ढूंढे, उसको हम globally requirement के अनुसार value addition करें, दुनिया की requirement का हम mapping करें, और हम कर सकते हैं। 2025 में किस देश की किसकी जरूरत पड़ेगी, ये हम कर सकते हैं। आज इतनी सारी चीजें हो सकती हैं और उस प्रकार से हम तैयारी करें।

मुझे विश्वास है सेवा के क्षेत्र में हम इन कामों को करेंगे तो जरूर ही भारत अपनी एक जगह बना सकता है। सरकार में जो नियमों को बदलना होगा, उसको भी बदलते हुए इन कामों को करना चाहिए। मैं फिर एक बार.. सबने मिलकर के इस बात को आगे बढ़ाया है और भी इसको बल दिया जाए। सरकार में भी इस बदले हुए brain drain के जमाने को छोड़कर के brain gain की दिशा में हम अपनी योजनाएं को केंद्रित करें। इस अपेक्षा के साथ बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

धन्यवाद।

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आप सभी को नमस्कार।

यहां हिंदुस्तान टाइम्स समिट में देश-विदेश से अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित हैं। मैं आयोजकों और जितने साथियों ने अपने विचार रखें, आप सभी का अभिनंदन करता हूं। अभी शोभना जी ने दो बातें बताई, जिसको मैंने नोटिस किया, एक तो उन्होंने कहा कि मोदी जी पिछली बार आए थे, तो ये सुझाव दिया था। इस देश में मीडिया हाउस को काम बताने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता। लेकिन मैंने की थी, और मेरे लिए खुशी की बात है कि शोभना जी और उनकी टीम ने बड़े चाव से इस काम को किया। और देश को, जब मैं अभी प्रदर्शनी देखके आया, मैं सबसे आग्रह करूंगा कि इसको जरूर देखिए। इन फोटोग्राफर साथियों ने इस, पल को ऐसे पकड़ा है कि पल को अमर बना दिया है। दूसरी बात उन्होंने कही और वो भी जरा मैं शब्दों को जैसे मैं समझ रहा हूं, उन्होंने कहा कि आप आगे भी, एक तो ये कह सकती थी, कि आप आगे भी देश की सेवा करते रहिए, लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स ये कहे, आप आगे भी ऐसे ही सेवा करते रहिए, मैं इसके लिए भी विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं।

साथियों,

इस बार समिट की थीम है- Transforming Tomorrow. मैं समझता हूं जिस हिंदुस्तान अखबार का 101 साल का इतिहास है, जिस अखबार पर महात्मा गांधी जी, मदन मोहन मालवीय जी, घनश्यामदास बिड़ला जी, ऐसे अनगिनत महापुरूषों का आशीर्वाद रहा, वो अखबार जब Transforming Tomorrow की चर्चा करता है, तो देश को ये भरोसा मिलता है कि भारत में हो रहा परिवर्तन केवल संभावनाओं की बात नहीं है, बल्कि ये बदलते हुए जीवन, बदलती हुई सोच और बदलती हुई दिशा की सच्ची गाथा है।

साथियों,

आज हमारे संविधान के मुख्य शिल्पी, डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर जी का महापरिनिर्वाण दिवस भी है। मैं सभी भारतीयों की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

Friends,

आज हम उस मुकाम पर खड़े हैं, जब 21वीं सदी का एक चौथाई हिस्सा बीत चुका है। इन 25 सालों में दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। फाइनेंशियल क्राइसिस देखी हैं, ग्लोबल पेंडेमिक देखी हैं, टेक्नोलॉजी से जुड़े डिसरप्शन्स देखे हैं, हमने बिखरती हुई दुनिया भी देखी है, Wars भी देख रहे हैं। ये सारी स्थितियां किसी न किसी रूप में दुनिया को चैलेंज कर रही हैं। आज दुनिया अनिश्चितताओं से भरी हुई है। लेकिन अनिश्चितताओं से भरे इस दौर में हमारा भारत एक अलग ही लीग में दिख रहा है, भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है। जब दुनिया में slowdown की बात होती है, तब भारत growth की कहानी लिखता है। जब दुनिया में trust का crisis दिखता है, तब भारत trust का pillar बन रहा है। जब दुनिया fragmentation की तरफ जा रही है, तब भारत bridge-builder बन रहा है।

साथियों,

अभी कुछ दिन पहले भारत में Quarter-2 के जीडीपी फिगर्स आए हैं। Eight परसेंट से ज्यादा की ग्रोथ रेट हमारी प्रगति की नई गति का प्रतिबिंब है।

साथियों,

ये एक सिर्फ नंबर नहीं है, ये strong macro-economic signal है। ये संदेश है कि भारत आज ग्लोबल इकोनॉमी का ग्रोथ ड्राइवर बन रहा है। और हमारे ये आंकड़े तब हैं, जब ग्लोबल ग्रोथ 3 प्रतिशत के आसपास है। G-7 की इकोनमीज औसतन डेढ़ परसेंट के आसपास हैं, 1.5 परसेंट। इन परिस्थितियों में भारत high growth और low inflation का मॉडल बना हुआ है। एक समय था, जब हमारे देश में खास करके इकोनॉमिस्ट high Inflation को लेकर चिंता जताते थे। आज वही Inflation Low होने की बात करते हैं।

साथियों,

भारत की ये उपलब्धियां सामान्य बात नहीं है। ये सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, ये एक फंडामेंटल चेंज है, जो बीते दशक में भारत लेकर आया है। ये फंडामेंटल चेंज रज़ीलियन्स का है, ये चेंज समस्याओं के समाधान की प्रवृत्ति का है, ये चेंज आशंकाओं के बादलों को हटाकर, आकांक्षाओं के विस्तार का है, और इसी वजह से आज का भारत खुद भी ट्रांसफॉर्म हो रहा है, और आने वाले कल को भी ट्रांसफॉर्म कर रहा है।

साथियों,

आज जब हम यहां transforming tomorrow की चर्चा कर रहे हैं, हमें ये भी समझना होगा कि ट्रांसफॉर्मेशन का जो विश्वास पैदा हुआ है, उसका आधार वर्तमान में हो रहे कार्यों की, आज हो रहे कार्यों की एक मजबूत नींव है। आज के Reform और आज की Performance, हमारे कल के Transformation का रास्ता बना रहे हैं। मैं आपको एक उदाहरण दूंगा कि हम किस सोच के साथ काम कर रहे हैं।

साथियों,

आप भी जानते हैं कि भारत के सामर्थ्य का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय तक untapped रहा है। जब देश के इस untapped potential को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलेंगे, जब वो पूरी ऊर्जा के साथ, बिना किसी रुकावट के देश के विकास में भागीदार बनेंगे, तो देश का कायाकल्प होना तय है। आप सोचिए, हमारा पूर्वी भारत, हमारा नॉर्थ ईस्ट, हमारे गांव, हमारे टीयर टू और टीय़र थ्री सिटीज, हमारे देश की नारीशक्ति, भारत की इनोवेटिव यूथ पावर, भारत की सामुद्रिक शक्ति, ब्लू इकोनॉमी, भारत का स्पेस सेक्टर, कितना कुछ है, जिसके फुल पोटेंशियल का इस्तेमाल पहले के दशकों में हो ही नहीं पाया। अब आज भारत इन Untapped पोटेंशियल को Tap करने के विजन के साथ आगे बढ़ रहा है। आज पूर्वी भारत में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी और इंडस्ट्री पर अभूतपूर्व निवेश हो रहा है। आज हमारे गांव, हमारे छोटे शहर भी आधुनिक सुविधाओं से लैस हो रहे हैं। हमारे छोटे शहर, Startups और MSMEs के नए केंद्र बन रहे हैं। हमारे गाँवों में किसान FPO बनाकर सीधे market से जुड़ें, और कुछ तो FPO’s ग्लोबल मार्केट से जुड़ रहे हैं।

साथियों,

भारत की नारीशक्ति तो आज कमाल कर रही हैं। हमारी बेटियां आज हर फील्ड में छा रही हैं। ये ट्रांसफॉर्मेशन अब सिर्फ महिला सशक्तिकरण तक सीमित नहीं है, ये समाज की सोच और सामर्थ्य, दोनों को transform कर रहा है।

साथियों,

जब नए अवसर बनते हैं, जब रुकावटें हटती हैं, तो आसमान में उड़ने के लिए नए पंख भी लग जाते हैं। इसका एक उदाहरण भारत का स्पेस सेक्टर भी है। पहले स्पेस सेक्टर सरकारी नियंत्रण में ही था। लेकिन हमने स्पेस सेक्टर में रिफॉर्म किया, उसे प्राइवेट सेक्टर के लिए Open किया, और इसके नतीजे आज देश देख रहा है। अभी 10-11 दिन पहले मैंने हैदराबाद में Skyroot के Infinity Campus का उद्घाटन किया है। Skyroot भारत की प्राइवेट स्पेस कंपनी है। ये कंपनी हर महीने एक रॉकेट बनाने की क्षमता पर काम कर रही है। ये कंपनी, flight-ready विक्रम-वन बना रही है। सरकार ने प्लेटफॉर्म दिया, और भारत का नौजवान उस पर नया भविष्य बना रहा है, और यही तो असली ट्रांसफॉर्मेशन है।

साथियों,

भारत में आए एक और बदलाव की चर्चा मैं यहां करना ज़रूरी समझता हूं। एक समय था, जब भारत में रिफॉर्म्स, रिएक्शनरी होते थे। यानि बड़े निर्णयों के पीछे या तो कोई राजनीतिक स्वार्थ होता था या फिर किसी क्राइसिस को मैनेज करना होता था। लेकिन आज नेशनल गोल्स को देखते हुए रिफॉर्म्स होते हैं, टारगेट तय है। आप देखिए, देश के हर सेक्टर में कुछ ना कुछ बेहतर हो रहा है, हमारी गति Constant है, हमारी Direction Consistent है, और हमारा intent, Nation First का है। 2025 का तो ये पूरा साल ऐसे ही रिफॉर्म्स का साल रहा है। सबसे बड़ा रिफॉर्म नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी का था। और इन रिफॉर्म्स का असर क्या हुआ, वो सारे देश ने देखा है। इसी साल डायरेक्ट टैक्स सिस्टम में भी बहुत बड़ा रिफॉर्म हुआ है। 12 लाख रुपए तक की इनकम पर ज़ीरो टैक्स, ये एक ऐसा कदम रहा, जिसके बारे में एक दशक पहले तक सोचना भी असंभव था।

साथियों,

Reform के इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अभी तीन-चार दिन पहले ही Small Company की डेफिनीशन में बदलाव किया गया है। इससे हजारों कंपनियाँ अब आसान नियमों, तेज़ प्रक्रियाओं और बेहतर सुविधाओं के दायरे में आ गई हैं। हमने करीब 200 प्रोडक्ट कैटगरीज़ को mandatory क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर से बाहर भी कर दिया गया है।

साथियों,

आज के भारत की ये यात्रा, सिर्फ विकास की नहीं है। ये सोच में बदलाव की भी यात्रा है, ये मनोवैज्ञानिक पुनर्जागरण, साइकोलॉजिकल रेनसां की भी यात्रा है। आप भी जानते हैं, कोई भी देश बिना आत्मविश्वास के आगे नहीं बढ़ सकता। दुर्भाग्य से लंबी गुलामी ने भारत के इसी आत्मविश्वास को हिला दिया था। और इसकी वजह थी, गुलामी की मानसिकता। गुलामी की ये मानसिकता, विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में एक बहुत बड़ी रुकावट है। और इसलिए, आज का भारत गुलामी की मानसिकता से मुक्ति पाने के लिए काम कर रहा है।

साथियों,

अंग्रेज़ों को अच्छी तरह से पता था कि भारत पर लंबे समय तक राज करना है, तो उन्हें भारतीयों से उनके आत्मविश्वास को छीनना होगा, भारतीयों में हीन भावना का संचार करना होगा। और उस दौर में अंग्रेजों ने यही किया भी। इसलिए, भारतीय पारिवारिक संरचना को दकियानूसी बताया गया, भारतीय पोशाक को Unprofessional करार दिया गया, भारतीय त्योहार-संस्कृति को Irrational कहा गया, योग-आयुर्वेद को Unscientific बता दिया गया, भारतीय अविष्कारों का उपहास उड़ाया गया और ये बातें कई-कई दशकों तक लगातार दोहराई गई, पीढ़ी दर पीढ़ी ये चलता गया, वही पढ़ा, वही पढ़ाया गया। और ऐसे ही भारतीयों का आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया।

साथियों,

गुलामी की इस मानसिकता का कितना व्यापक असर हुआ है, मैं इसके कुछ उदाहरण आपको देना चाहता हूं। आज भारत, दुनिया की सबसे तेज़ी से ग्रो करने वाली मेजर इकॉनॉमी है, कोई भारत को ग्लोबल ग्रोथ इंजन बताता है, कोई, Global powerhouse कहता है, एक से बढ़कर एक बातें आज हो रही हैं।

लेकिन साथियों,

आज भारत की जो तेज़ ग्रोथ हो रही है, क्या कहीं पर आपने पढ़ा? क्या कहीं पर आपने सुना? इसको कोई, हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कहता है क्या? दुनिया की तेज इकॉनमी, तेज ग्रोथ, कोई कहता है क्या? हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कब कहा गया? जब भारत, दो-तीन परसेंट की ग्रोथ के लिए तरस गया था। आपको क्या लगता है, किसी देश की इकोनॉमिक ग्रोथ को उसमें रहने वाले लोगों की आस्था से जोड़ना, उनकी पहचान से जोड़ना, क्या ये अनायास ही हुआ होगा क्या? जी नहीं, ये गुलामी की मानसिकता का प्रतिबिंब था। एक पूरे समाज, एक पूरी परंपरा को, अन-प्रोडक्टिविटी का, गरीबी का पर्याय बना दिया गया। यानी ये सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि, भारत की धीमी विकास दर का कारण, हमारी हिंदू सभ्यता और हिंदू संस्कृति है। और हद देखिए, आज जो तथाकथित बुद्धिजीवी हर चीज में, हर बात में सांप्रदायिकता खोजते रहते हैं, उनको हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ में सांप्रदायिकता नज़र नहीं आई। ये टर्म, उनके दौर में किताबों का, रिसर्च पेपर्स का हिस्सा बना दिया गया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने भारत में मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम को कैसे तबाह कर दिया, और हम इसको कैसे रिवाइव कर रहे हैं, मैं इसके भी कुछ उदाहरण दूंगा। भारत गुलामी के कालखंड में भी अस्त्र-शस्त्र का एक बड़ा निर्माता था। हमारे यहां ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज़ का एक सशक्त नेटवर्क था। भारत से हथियार निर्यात होते थे। विश्व युद्धों में भी भारत में बने हथियारों का बोल-बाला था। लेकिन आज़ादी के बाद, हमारा डिफेंस मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम तबाह कर दिया गया। गुलामी की मानसिकता ऐसी हावी हुई कि सरकार में बैठे लोग भारत में बने हथियारों को कमजोर आंकने लगे, और इस मानसिकता ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े डिफेंस importers के रूप में से एक बना दिया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री के साथ भी यही किया। भारत सदियों तक शिप बिल्डिंग का एक बड़ा सेंटर था। यहां तक कि 5-6 दशक पहले तक, यानी 50-60 साल पहले, भारत का फोर्टी परसेंट ट्रेड, भारतीय जहाजों पर होता था। लेकिन गुलामी की मानसिकता ने विदेशी जहाज़ों को प्राथमिकता देनी शुरु की। नतीजा सबके सामने है, जो देश कभी समुद्री ताकत था, वो अपने Ninety five परसेंट व्यापार के लिए विदेशी जहाज़ों पर निर्भर हो गया है। और इस वजह से आज भारत हर साल करीब 75 बिलियन डॉलर, यानी लगभग 6 लाख करोड़ रुपए विदेशी शिपिंग कंपनियों को दे रहा है।

साथियों,

शिप बिल्डिंग हो, डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग हो, आज हर सेक्टर में गुलामी की मानसिकता को पीछे छोड़कर नए गौरव को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने एक बहुत बड़ा नुकसान, भारत में गवर्नेंस की अप्रोच को भी किया है। लंबे समय तक सरकारी सिस्टम का अपने नागरिकों पर अविश्वास रहा। आपको याद होगा, पहले अपने ही डॉक्यूमेंट्स को किसी सरकारी अधिकारी से अटेस्ट कराना पड़ता था। जब तक वो ठप्पा नहीं मारता है, सब झूठ माना जाता था। आपका परिश्रम किया हुआ सर्टिफिकेट। हमने ये अविश्वास का भाव तोड़ा और सेल्फ एटेस्टेशन को ही पर्याप्त माना। मेरे देश का नागरिक कहता है कि भई ये मैं कह रहा हूं, मैं उस पर भरोसा करता हूं।

साथियों,

हमारे देश में ऐसे-ऐसे प्रावधान चल रहे थे, जहां ज़रा-जरा सी गलतियों को भी गंभीर अपराध माना जाता था। हम जन-विश्वास कानून लेकर आए, और ऐसे सैकड़ों प्रावधानों को डी-क्रिमिनलाइज किया है।

साथियों,

पहले बैंक से हजार रुपए का भी लोन लेना होता था, तो बैंक गारंटी मांगता था, क्योंकि अविश्वास बहुत अधिक था। हमने मुद्रा योजना से अविश्वास के इस कुचक्र को तोड़ा। इसके तहत अभी तक 37 lakh crore, 37 लाख करोड़ रुपए की गारंटी फ्री लोन हम दे चुके हैं देशवासियों को। इस पैसे से, उन परिवारों के नौजवानों को भी आंत्रप्रन्योर बनने का विश्वास मिला है। आज रेहड़ी-पटरी वालों को भी, ठेले वाले को भी बिना गारंटी बैंक से पैसा दिया जा रहा है।

साथियों,

हमारे देश में हमेशा से ये माना गया कि सरकार को अगर कुछ दे दिया, तो फिर वहां तो वन वे ट्रैफिक है, एक बार दिया तो दिया, फिर वापस नहीं आता है, गया, गया, यही सबका अनुभव है। लेकिन जब सरकार और जनता के बीच विश्वास मजबूत होता है, तो काम कैसे होता है? अगर कल अच्छी करनी है ना, तो मन आज अच्छा करना पड़ता है। अगर मन अच्छा है तो कल भी अच्छा होता है। और इसलिए हम एक और अभियान लेकर आए, आपको सुनकर के ताज्जुब होगा और अभी अखबारों में उसकी, अखबारों वालों की नजर नहीं गई है उस पर, मुझे पता नहीं जाएगी की नहीं जाएगी, आज के बाद हो सकता है चली जाए।

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज देश के बैंकों में, हमारे ही देश के नागरिकों का 78 thousand crore रुपया, 78 हजार करोड़ रुपए Unclaimed पड़ा है बैंको में, पता नहीं कौन है, किसका है, कहां है। इस पैसे को कोई पूछने वाला नहीं है। इसी तरह इन्श्योरेंश कंपनियों के पास करीब 14 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। म्यूचुअल फंड कंपनियों के पास करीब 3 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। 9 हजार करोड़ रुपए डिविडेंड का पड़ा है। और ये सब Unclaimed पड़ा हुआ है, कोई मालिक नहीं उसका। ये पैसा, गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों का है, और इसलिए, जिसके हैं वो तो भूल चुका है। हमारी सरकार अब उनको ढूंढ रही है देशभर में, अरे भई बताओ, तुम्हारा तो पैसा नहीं था, तुम्हारे मां बाप का तो नहीं था, कोई छोड़कर तो नहीं चला गया, हम जा रहे हैं। हमारी सरकार उसके हकदार तक पहुंचने में जुटी है। और इसके लिए सरकार ने स्पेशल कैंप लगाना शुरू किया है, लोगों को समझा रहे हैं, कि भई देखिए कोई है तो अता पता। आपके पैसे कहीं हैं क्या, गए हैं क्या? अब तक करीब 500 districts में हम ऐसे कैंप लगाकर हजारों करोड़ रुपए असली हकदारों को दे चुके हैं जी। पैसे पड़े थे, कोई पूछने वाला नहीं था, लेकिन ये मोदी है, ढूंढ रहा है, अरे यार तेरा है ले जा।

साथियों,

ये सिर्फ asset की वापसी का मामला नहीं है, ये विश्वास का मामला है। ये जनता के विश्वास को निरंतर हासिल करने की प्रतिबद्धता है और जनता का विश्वास, यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। अगर गुलामी की मानसिकता होती तो सरकारी मानसी साहबी होता और ऐसे अभियान कभी नहीं चलते हैं।

साथियों,

हमें अपने देश को पूरी तरह से, हर क्षेत्र में गुलामी की मानसिकता से पूर्ण रूप से मुक्त करना है। अभी कुछ दिन पहले मैंने देश से एक अपील की है। मैं आने वाले 10 साल का एक टाइम-फ्रेम लेकर, देशवासियों को मेरे साथ, मेरी बातों को ये कुछ करने के लिए प्यार से आग्रह कर रहा हूं, हाथ जोड़कर विनती कर रहा हूं। 140 करोड़ देशवसियों की मदद के बिना ये मैं कर नहीं पाऊंगा, और इसलिए मैं देशवासियों से बार-बार हाथ जोड़कर कह रहा हूं, और 10 साल के इस टाइम फ्रैम में मैं क्या मांग रहा हूं? मैकाले की जिस नीति ने भारत में मानसिक गुलामी के बीज बोए थे, उसको 2035 में 200 साल पूरे हो रहे हैं, Two hundred year हो रहे हैं। यानी 10 साल बाकी हैं। और इसलिए, इन्हीं दस वर्षों में हम सभी को मिलकर के, अपने देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहना चाहिए।

साथियों,

मैं अक्सर कहता हूं, हम लीक पकड़कर चलने वाले लोग नहीं हैं। बेहतर कल के लिए, हमें अपनी लकीर बड़ी करनी ही होगी। हमें देश की भविष्य की आवश्यकताओं को समझते हुए, वर्तमान में उसके हल तलाशने होंगे। आजकल आप देखते हैं कि मैं मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान पर लगातार चर्चा करता हूं। शोभना जी ने भी अपने भाषण में उसका उल्लेख किया। अगर ऐसे अभियान 4-5 दशक पहले शुरू हो गए होते, तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती। लेकिन तब जो सरकारें थीं उनकी प्राथमिकताएं कुछ और थीं। आपको वो सेमीकंडक्टर वाला किस्सा भी पता ही है, करीब 50-60 साल पहले, 5-6 दशक पहले एक कंपनी, भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने के लिए आई थी, लेकिन यहां उसको तवज्जो नहीं दी गई, और देश सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में इतना पिछड़ गया।

साथियों,

यही हाल एनर्जी सेक्टर की भी है। आज भारत हर साल करीब-करीब 125 लाख करोड़ रुपए के पेट्रोल-डीजल-गैस का इंपोर्ट करता है, 125 लाख करोड़ रुपया। हमारे देश में सूर्य भगवान की इतनी बड़ी कृपा है, लेकिन फिर भी 2014 तक भारत में सोलर एनर्जी जनरेशन कपैसिटी सिर्फ 3 गीगावॉट थी, 3 गीगावॉट थी। 2014 तक की मैं बात कर रहा हूं, जब तक की आपने मुझे यहां लाकर के बिठाया नहीं। 3 गीगावॉट, पिछले 10 वर्षों में अब ये बढ़कर 130 गीगावॉट के आसपास पहुंच चुकी है। और इसमें भी भारत ने twenty two गीगावॉट कैपेसिटी, सिर्फ और सिर्फ rooftop solar से ही जोड़ी है। 22 गीगावाट एनर्जी रूफटॉप सोलर से।

साथियों,

पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना ने, एनर्जी सिक्योरिटी के इस अभियान में देश के लोगों को सीधी भागीदारी करने का मौका दे दिया है। मैं काशी का सांसद हूं, प्रधानमंत्री के नाते जो काम है, लेकिन सांसद के नाते भी कुछ काम करने होते हैं। मैं जरा काशी के सांसद के नाते आपको कुछ बताना चाहता हूं। और आपके हिंदी अखबार की तो ताकत है, तो उसको तो जरूर काम आएगा। काशी में 26 हजार से ज्यादा घरों में पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के सोलर प्लांट लगे हैं। इससे हर रोज, डेली तीन लाख यूनिट से अधिक बिजली पैदा हो रही है, और लोगों के करीब पांच करोड़ रुपए हर महीने बच रहे हैं। यानी साल भर के साठ करोड़ रुपये।

साथियों,

इतनी सोलर पावर बनने से, हर साल करीब नब्बे हज़ार, ninety thousand मीट्रिक टन कार्बन एमिशन कम हो रहा है। इतने कार्बन एमिशन को खपाने के लिए, हमें चालीस लाख से ज्यादा पेड़ लगाने पड़ते। और मैं फिर कहूंगा, ये जो मैंने आंकडे दिए हैं ना, ये सिर्फ काशी के हैं, बनारस के हैं, मैं देश की बात नहीं बता रहा हूं आपको। आप कल्पना कर सकते हैं कि, पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना, ये देश को कितना बड़ा फायदा हो रहा है। आज की एक योजना, भविष्य को Transform करने की कितनी ताकत रखती है, ये उसका Example है।

वैसे साथियों,

अभी आपने मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग के भी आंकड़े देखे होंगे। 2014 से पहले तक हम अपनी ज़रूरत के 75 परसेंट मोबाइल फोन इंपोर्ट करते थे, 75 परसेंट। और अब, भारत का मोबाइल फोन इंपोर्ट लगभग ज़ीरो हो गया है। अब हम बहुत बड़े मोबाइल फोन एक्सपोर्टर बन रहे हैं। 2014 के बाद हमने एक reform किया, देश ने Perform किया और उसके Transformative नतीजे आज दुनिया देख रही है।

साथियों,

Transforming tomorrow की ये यात्रा, ऐसी ही अनेक योजनाओं, अनेक नीतियों, अनेक निर्णयों, जनआकांक्षाओं और जनभागीदारी की यात्रा है। ये निरंतरता की यात्रा है। ये सिर्फ एक समिट की चर्चा तक सीमित नहीं है, भारत के लिए तो ये राष्ट्रीय संकल्प है। इस संकल्प में सबका साथ जरूरी है, सबका प्रयास जरूरी है। सामूहिक प्रयास हमें परिवर्तन की इस ऊंचाई को छूने के लिए अवसर देंगे ही देंगे।

साथियों,

एक बार फिर, मैं शोभना जी का, हिन्दुस्तान टाइम्स का बहुत आभारी हूं, कि आपने मुझे अवसर दिया आपके बीच आने का और जो बातें कभी-कभी बताई उसको आपने किया और मैं तो मानता हूं शायद देश के फोटोग्राफरों के लिए एक नई ताकत बनेगा ये। इसी प्रकार से अनेक नए कार्यक्रम भी आप आगे के लिए सोच सकते हैं। मेरी मदद लगे तो जरूर मुझे बताना, आईडिया देने का मैं कोई रॉयल्टी नहीं लेता हूं। मुफ्त का कारोबार है और मारवाड़ी परिवार है, तो मौका छोड़ेगा ही नहीं। बहुत-बहुत धन्यवाद आप सबका, नमस्कार।