Our definition of democracy can't be restricted to elections & governments only. Democracy is strengthened by ‘Jan Bhagidari’: PM
It is public participation that strengthens democracy: PM Modi
Mahatma Gandhi brought sea change in the freedom struggle. He made it a 'Jan Andolan': PM
I want to make India's development journey a 'Jan Andolan'; everyone must feel he or she is working for India's progress: PM Modi
#SwachhBharat has turned into a people’s movement: PM Narendra Modi
Democracy faces threat of 'Mantantra' and 'Moneytantra': Prime Minister
Restricting ourselves to private & public sectors will limit our development. The personal sector is a source of great strength: PM
Small scale industries are growing & providing jobs to several people across the country: PM
Our Government has launched 'Mudra Bank Yojana' to boost the small scale industries: PM Modi

श्री संजय गुप्‍ता जी, श्री प्रशांत मिश्रा जी, उपस्थित सभी गणमान्‍य महानुभाव जागरण परिवार के सभी स्‍वज़न... 

हमारे यहां कहा जाता है कि राष्ट्रयाम जाग्रयाम वयम: eternal vigilance is the price of liberty और आप तो स्‍वयं दैनिक जागरण कर रहे हैं। कभी-कभी यह भी लगता है कि, कि क्‍या लोग 24 घंटे में सो जाते हैं, कि फिर 24 घंटे के बाद जगाना पड़ता है। लेकिन लोकतंत्र की सबसे पहली अनिवार्यता है और वो है जागरूकता और उस जागरूकता के लिए हर प्रकार के प्रयास निरन्‍तर आवश्‍यक होते हैं। अब जितनी मात्रा में जागरूकता बढ़ती है, उतनी मात्रा में समस्‍याओं के समाधान के रास्‍ते अधिक स्‍पष्‍ट और निखरते हैं, जन भागीदारी सहज बनती है और जहां जन-भागीदारी का तत्व बढ़ता है, उतनी ही लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍थाएं मजबूत होती हैं, विकास की यात्रा को गति आती है और लक्ष्‍य प्राप्ति निश्चित हो जाती है।

उस अर्थ में लोकतंत्र की यह पहली आवश्‍यकता है निरन्तर जागरण| जाने अनजाने में यह क्‍यों न हो लेकिन हमारे देश में लोकतंत्र का एक सीमित अर्थ रहा और वो रहा, चुनाव, मतदान और सरकार की पसंद| ऐसा लगने लगा मतदाताओं को कि चुनाव आया है तो अगले पांच साल के लिए किसी को कॉन्‍ट्रेक्‍ट देना है, जो हमारी समस्‍याओं का समाधान कर देगा और अगर पांच साल में वो कॉन्‍ट्रेक्‍ट में fail हो गया तो दूसरे को ले आएंगे। यह सबसे बड़ी हमारे सामने चुनौती भी है और कमी भी । लोकतंत्र अगर मतदान तक सीमित रह जाता है, सरकार के चयन तक सीमित रह जाता है, तो वो लोकतंत्र पंगु हो जाता है।

लोकतंत्र सामर्थ्‍यवान तब बनता है, जब जन-भागीदारी बढ़ती है और इसलिए जन-भागीदारी को हम जितना बढायें| अलग-अलग तरीके हो सकते हैं। अगर हम हमारे देश के आजादी के आंदोलन की ओर देखें- ऐसा नहीं है कि इस देश में आजादी के लिए मरने वालों की कोई कमी रही। देश जब से गुलाम हुआ तब से कोई दशक ऐसा नहीं गया होगा कि जहां देश के लिए मर मिटने वालों ने इतिहास में अपना नाम अंकित न किया हो। लेकिन होता क्‍या था , वे आते थे, उनका एक जब्‍बा होता था और वो मर मिट जाते थे। फिर कुछ साल बाद स्थिरता आ जाती थी फिर कोई पैदा हो जाता था। फिर निकल पड़ता था। फिर उसकी आदत हो जाती थी। आजादी के आंदोलन के लिए मरने वालों का तांता अविरत था, निरंतर था। लेकिन गांधी जी ने जो बहुत बड़ा बदलाव लाया वो यह था कि उन्‍होंने इस आजादी की ललक को जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। उन्‍होंने सामान्‍य मानविकी को , आजादी के आंदोलन का सिपाही बना दिया था।

एक आध वीर शहीद तैयार होता था, तो अंग्रेजों के लिए निपटना बड़ा सरल था। लेकिन यह जो एक जन भावना का प्रबल, आक्रोश प्रकट होने लगा, अंग्रेजों के लिए उसको समझना भी मुश्किल था | उसको हैंडल कैसे करना है यह भी मुश्किल था और महात्‍मा गांधी ने इसको इतना सरल बना दिया था कि देश को आजादी चाहिए न , अच्‍छा तुम ऐसा करो तकली ले करके, रूई ले करके, धागा बनाना शुरू कर दो, देश को आजादी आ जाएगी। किसी को कहते थे कि आपको आजादी का सिपाही बनना है तो अगर तुम्‍हारे गांव में निरक्षर है उनको शिक्षा देने का काम करो, आजादी आ जाएगी। किसी को कहते थे तुम झाडू लगाओ, आजादी आ जाएगी।

उन्‍होंने हर सामाजिक काम को स्वयं से जो भी अलग होता था उसको उन्‍होंने राष्‍ट्र की आवश्‍यकता के साथ जोड़ दिया और जन-आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। सिर्फ सत्‍याग्रह ही जन-आंदोलन नहीं था। समाज सुधार का कोई भी काम एक प्रकार से आजादी के आंदोलन का एक हिस्‍सा बना दिया गया था और उसका परिणाम यह आया कि देश के हर कोने में हर समय कुछ न कुछ चलता था। कोई कल्‍पना कर सकता है ? अगर आज बहुत बड़ा मैनेजमेंट expert होगा कोई बहुत बड़ा आंदोलन शास्‍त्र का जानकार होगा। उसको कहा जाए कि भाई एक मुटठी भर नमक उठाने से कोई सल्‍तनत चली जा सकती है यह thesis बना कर दो हमको, मैं नहीं मान सकता हूं कि कोई कल्‍पना कर सकता है कि एक मुटठी भर नमक की बात एक सल्‍तनत को नीचे गिराने का एक कारण बन सकती है। यह क्‍यों हुआ , यह इसलिए हुआ कि उन्‍होंने आजादी के आंदोलन को जन-जन का आंदोलन बना दिया था।

आजादी के बाद अगर देश ने अपनी विकास यात्रा का मॉडल गांधी से प्रेरणा ले करके जन भागीदारी वाली विकास यात्रा, जन आंदोलन वाली विकास यात्रा, उसको अगर तवज्जो दी होती तो आज जो बन गया है सब कुछ सरकार करेगी| कभी-कभी तो अनुभव ऐसा आता है कि किसी गांव में गड्ढ़ा हो, रोड पर और वो पांच सौ रूपये के खर्च से वो गड्ढ़ा भरा जा सकता हो लेकिन गांव का पंचायत का प्रधान गांव के दो चार और मुखिया किराये पर जीप खरीदेंगे लेंगे , सात सौ रूपया जीप का किराया देंगे और state headquarter पर जाएंगे और memorendum देंगे कि हमारे गांव में गड्ढ़ा है उस गड्ढे को भरने के लिए कुछ करो। यह स्थिति बन चुकी है| सबकुछ सरकार करेगी।

गांधी जी का model था- सारी सबकुछ जनता करेगी। आजादी के बाद जन-भागीदारी से अगर विकास यात्रा का मॉडल बनाया गया होता तो शायद हम सरकार के भरोसे जिस गति से चले हैं अगर जनता के भरोसे चलते तो उसकी गति हजारों गुना तेज होती | उसका व्‍याप, उसकी गहराई अकल्पित होती और इसलिए आज समय की मांग है कि हम भारत की विकास यात्रा को development को , एक जन-आंदोलन बनाएं।

समाज के हर व्‍यक्ति को लगना चाहिए कि मैं अगर स्‍कूल में टीचर हूं। मैं क्‍लास में पूरा समय जब पढ़ाता हूं, अच्‍छे से पढ़ाता हूं, मतलब कि मैं मेरे देश को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए काम कर रहा हूं। मैं अगर रेलवे का कर्मचारी हूं और मेरे पास जिम्‍मा है रेल समय पर चले। मैं इस काम को ठीक से करता हूं| रेल समय पर चलती है। मतलब मैं देश की बहुत बड़ी सेवा कर रहा हूं। मैं देश को आगे ले जाने की जिम्‍मेदारी निभा रहा हूं। हम अपने कर्तव्य को अपने काम को , राष्‍ट्र को आगे ले जाने का दायित्‍व मैं निभा रहा हूं। इस प्रकार से अगर हम जोड़ते हैं तो आप देखिए हर चीज का अपना एक संतोष मिलता है।

इन दिनों स्‍वच्‍छ भारत अभियान किस प्रकार से जन आंदोलन का रूप ले रहा है। वैसे यह काम ऐसा है कि किसी भी सरकार और राजनेता के लिए इसको छूना मतलब सबसे बड़ा संकट मोल लेने वाला विषय है, क्‍योंकि कितना ही करने के बाद दैनिक जागरण के फ्रंट पेज पर तस्‍वीर छप सकती है कि मोदी बातें बड़ी-बड़ी करता है, लेकिन यहां कूड़े-कचरे का ढेर पड़ा हुआ है। यह संभव है, लेकिन क्‍या इस देश में माहौल बनाने की आवश्‍यकता नहीं है। और अनुभव यह आया कि आज देश का सामान्‍य वर्ग, यहां जो बैठे हैं आपके परिवार में अगर पोता होगा तो पोता भी आपको कहता होगा कि दादा यह मत करो मोदी जी ने मना किया है। यह जन-आंदोलन का रूप है जो स्थितियों को बदलने का कारण बनता है। 

हमारे देश में वो एक समय था जब लाल बहादुर शास्‍त्री जी कुछ कहें तो देश उठ खड़ा होता था, मानता था। लेकिन धीरे-धीरे वो स्थिति करीब-करीब नहीं है| ठीक है आप लोगों को तो मजा आ रहा है। नेता बन गए हो, आपको क्‍या गंवाना है यह स्थिति आ चुकी थी। लेकिन अगर ईमानदारी से समाज की चेतना को स्‍पष्‍ट किया जाए तो बदलाव आता है। अगर हम यह कहें कि भई आप गरीब के लिए अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दो, छोड़ना बहुत मुश्किल काम होता है। लेकिन यह देश आज मैं बड़े संतोष के साथ कहता हूं 52 लाख लोग ऐसे आए, जिन्‍होंने सामने से हो करके अपनी गैस सब्सिडी surrender कर दी।

यह जन-मन कैसे बदल रहा है उसका यह उदाहरण है। और सामने से सरकार ने भी कहा कि आप जो गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ोगे, वो हम उस गरीब परिवार को देंगे, जिसके घर में लकड़ी का चूल्‍हा जलता है, धुंआ होता है और बच्‍चे बीमार होते हैं, मां बीमार होती है, उसको मुक्ति दिलाने के लिए करेंगे और अब तक 52 लाख लोगों ने छोड़ा| 46 लाख लोगों को, 46 लाख गरीबों को already आवंटित कर दिया गया है। इतना ही नहीं जिसने छोड़ा उसको बता दिया गया कि उन्‍होंने मुंबई में यह छोड़ा लेकिन राजस्‍थान के जोधपुर के उस गांव के अंदर उस व्‍यक्ति को यह दे दिया गया है। इतनी transparency के साथ। जिसने छोड़ा....इसमें पैसे का विषय नहीं है।

समाज के प्रति एक भाव जगाने का प्रयास किस प्रकार से परिणाम लाता है। हम अंग्रेजों के जमाने में जो कानून बने , उसके साथ पले-बढ़े हैं। यह सही है कि हम गुलाम थे, अंग्रेज हम पर भरोसा क्यों करेगा। कोई कारण ही नहीं था और उस समय जो कानून बने वो जनता के प्रति अविश्‍वास को मुख्‍य मानकर बनाए गए। हर चीज में जनता पर अविश्‍वास पहली बेस लाइन थी। क्‍या आजादी के बाद हमारे कानूनों में वो बदलाव नहीं आना चाहिए जिसमें हम जनता पर सबसे ज्‍यादा भरोसा करें।

कोई कारण नहीं है कि सरकार में जो पहुंच गए...मैं elected representatives नहीं कह रहा हूं, सारे system पर, मुलाज़िम होगा clerk होगा। जो इस व्‍यवस्‍था में आ गए – वे ईमानदार है, लेकिन जो व्‍यवस्‍था के बाहर है वे याचक है। यह खाई लोकतंत्र में मंजूर नहीं हो सकती। लोकतंत्र में खाई रहनी नहीं चाहिए। अब यह छोटा सा उदाहरण मैं बताता हूं - हम लोगों को सरकार में कोई आवेदन करना है तो अपने जो सर्टिफिकेट होते थे, वो उसके साथ जोड़ने पड़ते थे, attest करने पड़ते थे। हमारा क्‍या था कानून, कि आपको किसी Gazetted officer के पास जा करके ठप्‍पा मरवाना पड़ेगा। उसे certify करवाना पड़ेगा, तब जाएगा। अब वो कौन Gazetted officer हैं जो verify करता हैं, अच्‍छा देख रहा हूं... आपका चेहरा ठीक है, कौन करता है, कोई नहीं करता। वो भी समय के आभाव में थोपता जाता है। उनके घर के बाहर जो लड़का बैठता है वो देता है । हमने आ करके कहा कि भई भरोसा करो न लोगों पर , हमने कहा यह कोई requirement नहीं है xerox का जमाना है, तुम xerox करके डाल दो जब फाइनल verification की जरूरत होगी, तब original देख लिया जाएगा। और आज वह चला गया विषय | चीजें छोटी है, लेकिन यह उस बात का प्रतिबिम्‍ब करती है कि हमारी सोच किस दिशा में है। हमारी पहली सोच यह है कि जनसामान्‍य पर भरोसा करो। उन पर विश्‍वास करो, उनके सामर्थ्‍य को स्‍वीकार करो। अगर हम जनसामान्‍य के स्‍वार्थ को स्‍वीकार करते हैं तो वो सच्‍चे अर्थ में लोकतंत्र लोकशक्ति में परिवर्तित होता है।

हमारे देश में लोकतंत्र के सामने दो खतरे भी है। एक खतरा है मनतंत्र का, दूसरा खतरा है मनीतंत्र का। आपने देखा होगा इन दिनों जरा ज्‍यादा देखने को मिलता है , मेरी मर्ज़ी , मेरा मन करता है, मैं ऐसा करूंगा। क्‍या देश ऐसे चलता है क्‍या? मनतंत्र से देश नहीं चलता है , जनतंत्र से देश चलता है। आपके मन में आपके विचार कुछ भी हो, लेकिन इससे व्‍यवस्‍थाएं नहीं चलती है। अगर सितार में एक तार ज्‍यादा खींचा होता है तो भी सुर नहीं आता है और एक तार ढीला होता है तो भी सुर नहीं आता है। सितार के सभी तार सामान रूप से उसकी खिंचाई होती है, तब जा करके आता है और इसलिए मनतंत्र से लोकतंत्र नहीं चलता है... मनतंत्र से जनतंत्र नहीं चलता है। जनतंत्र की पहली शर्त होती है मेरे मन में जो भी है जन व्‍यवस्‍था के साथ मुझे उसे जोड़ना पड़ता है। मुझे assimilate करना पड़ता है, मुझे अपने आप को dilute करना पड़े तो dilute करना पड़ता है। और अगर मुझमें रूतबा है तो मेरे विचारों से convince कर करके उसे बढ़ाते-बढ़ाते लोगों को साथ ले करके चलना होता है। हम इस तरीके से नहीं चल सकते |

दूसरा का चिंता विषय होता है - मनीतंत्र। भारत जैसे गरीब देश में मनीतंत्र लोकतंत्र पर बहुत बड़ा कुठाराघात कर सकता है। हम उससे लोकतंत्र को कैसे बचाएं। उस पर हमारा कितना बल होगा। मैं समझता हूं कि उसके आधार पर हम प्रयास करते हैं।

हम देखते हैं कि पत्रकारिता, भारत में अगर हम पत्रकारिता की तरफ नजर करें तो एक मिशन मोड में हमारे यहाँ पत्रकारिता चली| Journalism, अखबार सब पत्रिकाएं एक कालखंड था जहां पत्र-पत्रिका की मूल भूमिका रही समाज सुधार की। उन्‍होंने समाज में जो बुराइयां थी उन पर प्रहार किए। अपनी कलम का पूरा भरपूर उपयोग किया। अब राजा राममोहन राय देख लीजिए या गुजरात की ओर वीर नर्मद को देख लीजिए .. कितने सालों पहले, शताब्‍दी पहले वे अपनी ताकत का उपयोग समाज की बुराइयों पर कर रहे थे।

दसूरा एक कालखंड आया जिसमें हमारी पत्रकारिता ने आजादी के आंदोलन को एक बहुत बड़ा बल दिया। लोकमान्‍य तिलक , महात्‍मा गांधी , अरबिंदो घोष , सुभाष चंद्र बोस , लाला लाजपत राय , सब, उन्‍होंने कलम हाथ में उठाई। अखबार निकाले। और उन्‍होंने अखबार के माध्‍यम से आजादी के आंदोलन को चेतना दी और हम कभी-कभी सोचें तो हमारे देश में इलाहबाद में एक स्‍वराज नाम का अखबार था। आजादी के आंदोलन का वह अख़बार था। और हर अखबार के बाद जब editorial निकलता था , editorial छपता था और editorial लिखने वाला संपादक जेल जाता था। कितना जुल्‍म होता था। तो स्‍वराज अखबार ने एक दिन advertisement निकाली। उसने कहा, हमें संपादकों की जरूरत है। तनख्‍वाह में दो सूखी रोटी, एक गिलास ठंडा पानी और editorial छपने के बाद जेल में निवास। यह ताकत देखिए जरा। यह ताकत देखिए। इलाहाबाद से निकलता हुआ स्‍वराज अखबार ने अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी थी | उसके सारे संपादकों की जेल निश्चित थी, जेल जाते थे, संपदाकीय लिखते थे और लड़ाई लड़ते थे। हिन्‍दुस्‍तान के गणमान्‍य लोगों का उसके साथ नाता रहा।

कुछ मात्रा में तीसरा काम जो रहा वो मिशन मोड पर चला है और वो है अन्‍याय के खिलाफ आवाज़ उठाना। चाहे समाज सुधार की बात हो, चाहे स्‍वतंत्रता आंदोलन हो, चाहे अन्‍याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की बात हो हमारे देश की पत्र-पत्रिकाओं ने हर समय अपने कालखंड में कोई न कोई सकारात्‍मक भूमिका निभाई है। यह मिशन मोड, यह हमारे लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी जड़ी-बूटी है। उसको कोई चोट न पहुंचे, उसको कोई आंच न आ जाए। बाहर से भी नहीं, अंदर से भी नहीं। इतनी सजगता हमारी होनी चाहिए |

मैं समझता हूं - आजादी के आंदोलन में अब देखिए कनाडा से ग़दर अखबार निकलता था, लाला हरदयाल जी द्वारा और तीन भाषा में उस समय निकलता था- उर्दू, गुरूमुखी और गुजराती। कनाडा से वो आजादी की जंग की लड़ाई लड़ते थे। मैडम कामा, श्याम जी कृष्‍ण वर्मा.. ये लोग थे जो लंदन से पत्रकारिता के द्वारा भारत की आजादी की चेतना को जगाए रखते थे। उसके लिए प्रयास करते थे। और उस समय भीम जी खैराज वर्मा करके थे ...उन को सिंगापुर में पत्रकारिता के लिए फांसी की सजा दी गई। वह भारत की आजादी के लिए लड़ रहे थे। मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि यह कंधे से कंधे मिला करके चलने वाली व्‍यवस्‍था है। दैनिक जागरण के माध्‍यम से इसमें जो भी योगदान दिया जा रहा है, वो योगदान राष्ट्रयाम जाग्रयाम वयम: उस मंत्र को साकार करने के लिए अविरत रूप से काम आएगा।

मैं कभी कभी कहता हूं minimum government maximum governance ...हमारे देश में एक कालखंड ऐसा था कि सरकारों को इस बात पर गर्व होता था कि हमने कितने कानून बनाए हैं। मैंने दूसरी दिशा में सोचा है | मेरा इरादा यह है कि जब मैं पांच साल मेरा कार्यकाल पूरा होगा यह, तब तक मैं रोज एक कानून खत्‍म कर सकता हूं क्या , यह इरादा है मेरा। अभी मैने काफी identify किए हैं। सैकड़ों की तादाद में already कर दिए हैं। राज्‍यों को भी मैंने आग्रह किया है। लोकतंत्र की ताकत इसमें है कि उसको कानूनों के चंगुल में जनसामान्‍य को सरकार पर dependent नहीं बनाना चाहिए।

Minimum government का मेरा मतलब यही है कि सामान्‍य मानव को डगर-डगर सरकार के भरोसे जो रहना पड़ता है, वो कम होते जाना चाहिए। और हमारे यहां तो महाभारत के अंदर से चर्चा है| अब उस ऊंचाईयों को हम पार कर पाएंगे मैं नहीं सकता इस वक्‍त, लेकिन महाभारत में शांति पर्व में इसकी चर्चा है | इसमें कहा गया है - न राजा न च राज्यवासी न च दण्डो न दंडिका सर्वे प्रजा धर्मानेव् रक्षन्ति स्मः परस्पर:... न राज्‍य होगा न राजा होगा, न दंड होगा, न दंडिका होगी अगर जनसामान्‍य अपने कर्तव्‍यों का पालन करेगा तो अपने आप कानून की व्‍यवस्‍था बनी रहेगी, यह सोच महाभारत में उस जमाने में थी ।

और हमारे यहां मूलत: लोकतंत्र के सिद्धांतों में माना गया है ‘वादे-वादे जायते तत्‍व गोधा’ यह हमारे यहां माना गया है कि जितने भिन्‍न-भिन्‍न विचारों का मंथन होता रहता है उतनी लोकतांत्रिक ताकत मजबूत होती है। यह हमारे यहां मूलभूत चिंतन रहा है। इसलिए जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो हम उन मूलभूत बातों को ले करके कैसे चलें उस पर हमारा बल रहना चाहिए।

आर्थिक विकास की दृष्‍टि से हमारे देश में दो क्षेत्रों की चर्चा हमेशा चली है और सारी आर्थिक नींव उन्‍हीं दो चीजों के आस-पास चलाई गई है। एक private sector, दूसरा public sector अगर हमें विकास को जन आंदोलन बनाना है तो private sector public sector की सीमा में रहना हमारी गति को कम करता है और इसलिए मैंने एक विषय जोड़ा है उसमें - public sector, private sector and personal sector .

यह जो personal sector है यह अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत है। हम में से बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हमारे देश की economy को कौन drive करता है। कभी-कभी लगता है कि यह जो 12-15 बहुत बड़े-बड़े कोरपोरेट हाऊस हैं, अरबों-खरबों रुपये की बातें आती हैं। जी नहीं, देश की economy को या देश में सबसे ज्‍यादा रोजगार देने का काम यदि कहीं हुआ है तो हमारे छोटे-छोटे लोगों का है। कोई कपड़े का व्‍यापार करता होगा छोटा-मोटा, कोई पान की दुकान पर ठेका ले करके बैठा होगा। कोई भेलपुरी-पानीपुरी का ठेका चलाता होगा, कोई धोबी होगा, कोई नाई होगा, कोई साइकिल किराये पर देने वाला होगा, कोई ऑटो रिक्‍शा वाला, यह छोटे-छोटे लोगों का कारोबार का नेटवर्क हिंदुस्तान में बहुत बड़ा है। यह जो bulk है वो एक प्रकार के middle class लेवल पर नहीं आया है। लेकिन गरीबी में नहीं है | अभी उसका मीडिल क्‍लास में जाना बाकी है, लेकिन है अपने पैरों पर खड़ा । personal sector को बहुत ताकत देता है। क्‍या ऐसी हमारी व्‍यवस्‍था न हो जो हमारे इस personal sector को हम empower करे। कानूनी दिक्‍कतों से उसको मुक्ति दिलाए। आर्थिक प्रबंधन में उसकी मदद करें। ज्‍यादातर यह लोग वह हैं बेचारों को साहूकारों के पास पैसे ले करके काम करना पड़ता है, तो अपनी income का काफी पैसा फिर सरकार के पास चला जाता है, उसी चंगुल में वो फंस जाता है।

आज वे लोग ऐसे हैं जो ज्‍यादातर करीब 70% लोग इसमें से scheduled caste, scheduled tribe और OBC हैं। गरीब हैं, पिछड़े तबके से हैं। अब वे लोग देश में करीब-करीब 12-14 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं। इतनी ताकत हैं इन लोगों में । हर कोई एक को रोजगार देता है, कोई दो को देता है, कोई part-time देता हैं। लेकिन 12 से 14 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं। अगर उनको थोड़ा बल दिया जाए, थोड़ी मदद दी जाए उनको थोड़ा आधुनिक करने का प्रयास किया जाए तो इनकी ताकत हैं कि 15-20 करोड़ लोगों को रोजगार देने का सामर्थ्‍य है। और इसके लिए हमने एक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को बल दिया है।

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को ऐसे आगे बढ़ाया है कि कोई गारंटी की जरूरत नहीं लोगों से। वह बैंक में जायें और बैंक की जिम्‍मेदारी रहेगी उनकी मदद करना। 10 हजार, 15 हजार, 25 हजार, 50 हजार, ज्‍यादा रकम उनको चाहिए नहीं...बहुत कम रकम से वह काम कर लेते हैं अपना| अभी तो इस योजना का हो -हल्‍ला इतना शुरू नहीं हुआ है, ऐसे ही silently काम हो रहा है। लेकिन अब तक करीब 62 लाख परिवारों को करीब-करीब 42000 करोड़ रूपये उन तक पहुंचा दिए गए। और यह वो लोग हैं जो साहस भी करने को तैयार हैं और अनुभव आया है कि 99% लोग समय से पहले अपने पैसे वापस दे रहे हैं। कोई नोटिस नहीं देना पड़ रहा|

यानी हम personal sector को कितना बल दे। personal sector का एक और आज हमने पहलू उठाया है जिस प्रकार से समाज का यह तबका है जो अभी मध्‍यम वर्ग में पहुंचा नहीं है, गरीबी में रहता नहीं है ऐसी अवस्‍था है उसकी कि वो सबसे ज्‍यादा कठिन होती है | लेकिन एक और वर्ग है जो highly intellectual है -जो भारत का youth power है । उसके पास कल्‍पकता है, नया करने की ताकत है और वो देश को आधुनिक बनाने में बहुत बड़ा contribute कर सकता है। वो globally कम्‍पीट कर सकता है।

जैसे एक तबके को हमें मजबूत करना है वैसा दूसरा तबका है यह हमारी युवा शक्ति जिसमें यह विशेषताएं हैं। और इसके लिए हमने मिशन मोड पर काम लिया है। start-up India stand-up India. जब मैं start-up India की बात करता हूं तो उसमें भी मैंने दो पहलू पकड़े हैं।

हमने बैंकों को कहा कि समाज के अति सामाजिक दृष्टि से जो पीछे वर्ग के लोग हैं क्‍या एक बैंक एक की उंगली पकड़ सकती है क्‍या। एक बैंक की ब्रांच एक व्‍यक्ति को और एक महिला को बल दे सकती है | एक देश में सवा लाख ब्रांच। एक महिला को और एक गरीब को उनका अगर हाथ पकड़ ले उसको नये सिरे से ताकत दे तो ढाई लाख नये Entrepreneurs खड़े करने की हमारी ताकत है । वो छोटा काम दिया है लेकिन cumulative effect बहुत बड़ा होगा और दूसरी तरफ जो innovation करते हैं जो ग्‍लोबल competition में अपने आप को खड़ा कर सकते हैं और आज जब ग्‍लोबल मार्केट है तो प्रगति का सबसे बड़ा आधार है innovation. जो देश innovation में पीछे रह जाएगा वो आने वाले दिनों में इस दौड़ से बाहर निकल जाएगा और इसलिए innovation को अगर बल देना है तो start-up India stand-up India का मोड चलाया है। ऐसे लोगों को आर्थिक मदद मिले। उनको एक नई पॉलिसी ले करके हम आ रहे हैं। और मुझे विश्‍वास है कि भारत के नौजवानों की जो ताकत है, तो वो ताकत एक बहुत बड़ा बदलाव है।

इन सारी चीजों में आपने देखा होगा कि हम empowerment पर बल दे रहे हैं। कानूनी सरलीकरण भी हो, इससे भी empowerment होता है, आर्थिक व्‍यवस्‍थाएं सुविधाएं हो, उससे भी empowerment होता है।

Global economy के सम्बन्ध में कहां टिक सकता है? उसके लिए क्‍या सपोर्ट सिस्‍टम होना चाहिए, उस पर बल देना। यह चीजें हैं जिसके कारण आज हमारे देश में हमने काम को सुविधाजनक बनाया। जैसा मैंने शुरू में कहा था, आपको हैरानी होगी।

पार्लियामेंट चलती है कि नहीं चलती। अब डिबेट आप लोगों की कठिनाई है, आपके विषय, आपका व्यापार तो है ही है लेकिन इस बार पार्लियामेंट नहीं चलने से एक बात की तरफ ध्‍यान नहीं जा रहा| एक ऐसा कानून लटका पड़ा है और आज सुनने में आपको भी लगेगा कि भाई यह काम नहीं होना चाहिए क्‍या। हम एक कानून लाए हैं, जिसमें गरीब व्‍यक्ति जो नौकरी करता है उसके बोनस के सम्बन्ध में | अभी अगर उसकी monthly सात हजार रुपया से कम income है तो बोनस का हकदार होता है और 3500 रुपये तक उसको बोनस मिलता है। हम कानून में बदलाव लाए minimum 7000 की बजाए 21000 कर दिया जाए। monthly अगर उसकी income 21000 minimum है तो वो बोनस का हकदार बनना चाहिए जो अभी 7000 है और तीसरा 3500 बोनस की बात है उसे 7000 कर दिया जाए। यह सीधा सीधा गरीब के हित का काम है कि नहीं है ? लेकिन आज मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि पार्लियामेंट चल नहीं रही है, गरीब का हक रूका पड़ा है।

लेकिन चर्चा क्‍या होती है GST और parliament. अरे भई GST का जो होगा, सब मिलकरके जो भारत का भाग्‍य तय होगा वो होगा। लेकिन गरीबों का क्‍या? सामान्‍य मानविकी का क्‍या? और इसलिए हम संसद चलाने के लिए, इनके लिए , कह रहे हैं। लोकतंत्र में संसद से बड़ी कौन सी जगह होती है जहां पर वाद-विवाद, संवाद, विरोध सब हो सकता है। लेकिन हम उस institution को ही नकार देंगे तो फिर तो लोकतंत्र पर सवालिया निशान होगा और इसलिए मैं आज जब दैनिक जागरण में जिन विषयों का मूल ले करके आप चले हैं उस पर बात कर रहा हूं तो लोकतंत्र का मंदिर हमारी संसद है, उसकी गरिमा और सामान्‍य मानव के हितों के काम को फटाफट निर्णय करते हुए आगे बढ़ाना। यह देश के लिए बहुत आवश्यक है। उसको हम कैसे गति दें, केसे बल दें और उसको हम कैसे परिणामकारी बनायें ? बाकी तो मैं सरकार की विकास यात्रा के कई मुद्दे कह सकता हूं लेकिन मैं आज उसको छोड़ रहा हूं यही काफी हो गया ।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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November 07, 2025
In Bhabua, PM Modi urges voters: One vote for the NDA can stop infiltrators; one vote can protect your identity
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Congress leaders never talk about the RJD’s manifesto, calling it ‘a bunch of lies’: PM Modi at Bhabua rally

भारत माता की... भारत माता की... भारत माता की...
मां मुंडेश्वरी के ई पावन भूमि पर रऊआ सब के अभिनंदन करअ तानी।

कैमूर की इस पावन भूमि पर चारों दिशाओं से आशीर्वाद बरसता है। मां बिंध्यवासिनी, मां ताराचंडी, मां तुतला भवानी, मां छेरवारी, सब यहीं आसपास विराजती हैं। चारों ओर शक्ति ही शक्ति का साम्राज्य है। और मेरे सामने...विशाल मातृशक्ति है...जिनका आशीर्वाद हमेशा हम सभी पर रहा है... NDA पर रहा है। और मैं बिहार की मातृशक्ति का आभारी हूं। पहले चरण में NDA के उम्मीदवारों के पक्ष में जबरदस्त मतदान हुआ है। अब कैमूर की बारी है...अब रोहतास की बारी है...मैं इस मंच पर NDA के इन सभी उम्मीदवारों के लिए...आप सभी का साथ और समर्थन मांगने आया हूं। आपके आशीर्वाद मांगने के लिए आया हूं.. तो मेरे साथ बोलिए... फिर एक बार...फिर एक बार...NDA सरकार! फिर एक बार... फिर एक बार... फिर एक बार... बिहार में फिर से...सुशासन सरकार !

साथियों,
जब ये चुनाव शुरू हुआ था...तो RJD और कांग्रेस के लोग फूल-फूल के गुब्बारा हुए जा रहे थे।और RJD और कांग्रेस के नामदार आसमान पर पहुंचे हुए थे। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान RJD-कांग्रेस के गुब्बारे की हवा निकलनी शुरू हुई...और पहले चरण के बाद इनका गुब्बारा पूरी तरह फूट गया है। अब तो आरजेडी-कांग्रेस का इकोसिस्टम...उनके समर्थक भी कह रहे हैं...फिर एक बार... फिर एक बार...NDA सरकार!

साथियों,
आरजेडी-कांग्रेस ने बिहार के युवाओं को भ्रमित करने की बहुत कोशिश की..लेकिन उनकी सारी प्लानिंग फेल हो गई...इसका एक बहुत बड़ा कारण है...बिहार का जागरूक नौजवान... बिहार का नौजवान ये देख रहा है कि आरजेडी-कांग्रेस वालों के इरादे क्या हैं।

साथियों,
जंगलराज के युवराज से जब भी पूछा जाता है कि जो बड़े-बडे झूठ उन्होंने बोले हैं...वो पूरे कैसे करेंगे...तो वो कहते हैं...उनके पास प्लान है... और जब पूछा जाता है कि भाई बताओ कि प्लान क्या है.. तो उनके मुंह में दही जम जाता है, मुंह में ताला लग जाता है.. उत्तर ही नहीं दे पाते।

साथियों,
आरजेडी वालों का जो प्लान है...उससे मैं आज आप सब को, बिहार को और देश को भी सतर्क कर रहा हूं। आप देखिए....आरजेडी के नेताओं के किस तरह के गाने वायरल हो रहे हैं। चुनाव प्रचार के जो गाने हैं कैसे गाने वायरल हो रहे हैं। आरजेडी वालों का एक गाना है...आपने भी सुना होगा आपने भी वीडियों में देखा होगा। आरजेडी वालों का एक गाना है। आएगी भइया की सरकार... क्या बोलते हैं आएगी भइया की सरकार, बनेंगे रंगदार! आप सोचिए...ये RJD वाले इंतजार कर रहे हैं कि कब उनकी सरकार आए और कब अपहरण-रंगदारी ये पुराना गोरखधंधा फिर से शुरू हो जाए। RJD वाले आपको रोजगार नहीं देंगे...ये तो आपसे रंगदारी वसूलेंगे.. रंगदारी ।

साथियों,
RJD वालों का एक और गाना है... अब देखिए, ये क्या-क्या कर रहे हैं, क्या-क्या सोच रहे हैं...और मैं तो देशवासियों से कहूंगा। देखिए, ये बिहार में जमानत पर जो लोग हैं वो कैसे लोग है.. उनका क्या गाना है भइया के आबे दे सत्ता... भइया के आबे दे सत्ता...कट्टा सटा के उठा लेब घरवा से, आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये जंगलराज वाले सरकार में वापसी के लिए क्यों इतना बेचैन हैं। इन्हें जनता की सेवा नहीं करनी...इन्हें जनता को कट्टा दिखाकर लूटना है...उन्हें घर से उठवा लेना है। साथियों, आरजेडी का एक और गाना चल रहा है...बताऊं... बताऊं.. कैसा गाना चल रहा है.. मारब सिक्सर के 6 गोली छाती में...यही इनका तौर-तरीका है...यही इनका प्लान है...इनसे कोई भी सवाल पूछेगा तो यही जवाब मिलेगा...मारब सिक्सर के 6 गोली छाती में...

साथियों,
यही जंगलराज की आहट है। ये बहनों-बेटियों को गरीब, दलित-महादलित, पिछड़े, अतिपिछड़े समाज के लोगों को डराने का प्रयास है। भय पैदा करने का खेल है इनका। साथियों, जंगलराज वाले कभी कोई निर्माण कर ही नहीं सकते वे तो बर्बादी और बदहाली के प्रतीक हैं। इनकी करतूतें देखनी हों तो डालमिया नगर में दिखती हैं। रोहतास के लोग इस बात को अच्छी तरह जानते हैं।
((साथी आप तस्वीर लाए हैं, मैं अपनी टीम को कहता हूं वे ले लेते हैं, लेकिन आप तस्वीर ऊपर करते हैं तो पीछे दिखता नहीं है। मैं आपका आभारी हूं। आप ले आए हैं... मैं मेरे टीम को कहता हूं, जरा ले लीजिए भाई। और आप बैठिए नीचे। वे ले लेंगे। बैठिए, पीछे औरों को रुकावट होती है.. ठीक है भैया ))

साथियों,
अंग्रेज़ों के जमाने में डालमिया नगर की नींव पड़ी थी। दशकों के परिश्रम के बाद। एक फलता-फूलता औद्योगिक नगर बनता जा रहा था। लेकिन फिर कुशासन की राजनीति आ गई। कुशासन की राजनीति आ गई, जंगलराज आ गया। फिरौती, रंगदारी, करप्शन, कट-कमीशन, हत्या, अपहरण, धमकी, हड़ताल यही सब होने लगा। देखते ही देखते जंगलराज ने सबकुछ तबाह कर दिया।

साथियों,
जंगलराज ने बिहार में विकास की हर संभावना की भ्रूण हत्या करने का काम किया था। मैं आपको एक और उदाहरण याद दिलाता हूं। आप कैमूर में देखिए, प्रकृति ने क्या कुछ नहीं दिया है। ये आकर्षक पर्यटक स्थलों में से एक हो सकता था। लेकिन जंगलराज ने ये कभी होने नहीं दिया। जहां कानून का राज ना हो...जहां माओवादी आतंक हो बढ़ रहा हो.. क्या वहां पर कोई टूरिज्म जाएगा क्या? जरा बताइए ना जाएगा क्या? नहीं जाएगा ना.. नीतीश जी ने आपके इस क्षेत्र को उस भयानक स्थिति से बाहर निकाला है। मुझे खुशी है कि अब धीरे-धीरे यहा पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है। जिस कर्कटगढ़ वॉटरफॉल... उस वाटरफॉल के आसपास माओवादी आतंक का खौफ होता था। आज वहां पर्यटकों की रौनक रहती है... यहां जो हमारे धाम हैं...वहां तीर्थ यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जागृत देवता हरषू ब्रह्म के दर्शन करने लोग आते हैं। आज यहां नक्सलवाद...माओवादी आतंक दम तोड़ रहा है....

साथियों,
यहां उद्योगों और पर्यटन की जो संभावनाएं बनी हैं... इसका हमें और तेजी से विस्तार करना है...देश-विदेश से लोग यहां बिहार में पूंजी लगाने के लिए तैयार हैं...बस उन्हें लालटेन, पंजे और लाल झंडे की तस्वीर भी नहीं दिखनी चाहिए। अगर दिख गई.. तो वे दरवाजे से ही लौट जाएंगे इसलिए हमें संकल्प लेना है...हमें बिहार को जंगलराज से दूर रखना है।

साथियों,
बिहार के इस चुनाव में एक बहुत ही खास बात हुई है। इस चुनाव ने कांग्रेस-आरजेडी के बीच लड़ाई को सबके सामने ला दिया है। कांग्रेस-आरजेडी की जो दीवार है ना वो टूट चुकी है कांग्रेस-आरजेडी की टूटी दीवार पर ये लोग चाहे जितना ‘पलस्तर’ कर लें... अब दोनों पार्टियों के बीच खाई गहरी होती जा रही है। पलस्तर से काम चलने वाला नहीं है। आप देखिए, इस क्षेत्र में भी कांग्रेस के नामदार ने रैलियां कीं। लेकिन पटना के नामदार का नाम नहीं लिया। कितनी छुआछूत है देखिए, वो पटना के नामदार का नाम लेने को तैयार नहीं है। कांग्रेस के नामदार दुनिया-जहां की कहानियां कहते हैं, लेकिन आरजेडी के घोषणापत्र पर, कोई सवाल पूछे कि भाई आरजेडी ने बड़े-बड़े वादे किए हैं इस पर क्या कहना है तो कांग्रेस के नामदार के मुंह पर ताला लग जाता है। ये कांग्रेस के नामदार अपने घोषणापत्र की झूठी तारीफ तक नहीं कर पा रहे हैं। एक दूसरे को गिराने में जुटे ये लोग बिहार के विकास को कभी गति नहीं दे सकते।

साथियों,
ये लोग अपने परिवार के अलावा किसी को नहीं मानते। कांग्रेस ने बाबा साहेब आंबेडकर की राजनीति खत्म की...क्योंकि बाब साहेब का कद दिल्ली में बैठे शाही रिवार से ऊंचा था। इन्होंने बाबू जगजीवन राम को भी सहन नहीं किया। सीताराम केसरी...उनके साथ भी ऐसा ही किया. बिहार के एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता को अपमानित करना यही शाही परिवार का खेल रहा है। जबकि साथियों, भाजपा के, NDA के संस्कार...सबको सम्मान देने के हैं...सबको साथ लेकर चलने के हैं।

हमें लाल मुनी चौबे जी जैसे वरिष्ठों ने सिखाया है...संस्कार दिए हैं। यहां भभुआ में भाजपा परिवार के पूर्व विधायक, आदरणीय चंद्रमौली मिश्रा जी भी हमारी प्रेरणा हैं...अब तो वो सौ के निकट जा रहे हैं.. 96 साल के हो चुके हैं... और जब कोरोना का संकट आया तब हम हमारे सभी सीनियर को फोन कर रहा था। तो मैंने मिश्राजी को भी फोन किया। चंद्रमौली जी से मैंने हालचाल पूछे। और मैं हैरान था कि ये उमर, लेकिन फोन पर वो मेरा हाल पूछ रहे थे, वो मेरा हौसला बढ़ा रहे थे। ये इस धरती में आदरणीय चंद्रमौली मिश्रा जी जैसे व्यक्तित्वों से सीखते हुए हम भाजपा के कार्यकर्ता आगे बढ़ रहे हैं।

साथियों,
ऐसे वरिष्ठों से मिले संस्कारों ने हमें राष्ट्रभक्तों का देश के लिए जीने-मरने वालों का सम्मान करना सिखाया है। इसलिए, हमने बाबा साहेब आंबेडकर से जुड़े स्थानों को पंचतीर्थ के रूप में विकसित किया। और मैं तो काशी का सांसद हूं, मेरे लिए बड़े गर्व की बात है कि बनारस संत रविदास जी की जन्मभूमि है। संत रविदास की जयंति पर...मुझे कई बार वहां जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। 10-11 साल पहले वहां क्या स्थिति थी...और आज वहां कितनी सुविधाएं श्रद्धालुओं के लिए बनी हैं... इसकी चर्चा बनारस में, और बनारस के बाहर भी सभी समाजों में होती है।

साथियों,
बनारस ही नहीं...भाजपा सरकार मध्य प्रदेश के सागर में भी संत रविदास का भव्य मंदिर और स्मारक बना रही है। हाल ही में...मुझे कर्पूरी ग्राम जाने का अवसर मिला था..वहां पिछले कुछ वर्षों में सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं का विस्तार हुआ है। कर्पूरीग्राम रेलवे स्टेशन को आधुनिक बनाया जा रहा है। साथियों, ये हमारी ही सरकार है...जो देशभर में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के स्मारक बना रही है। भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिवस को...हमने जनजातीय गौरव दिवस घोषित किया है। 1857 के क्रांतिवीर...वीर कुंवर सिंह जी की विरासत से भावी पीढ़ियां प्रेरित हों...इसके लिए हर वर्ष व्यापक तौर पर विजय दिवस का आयोजन किया जा रहा है।

साथियों,
कैमूर को धान का कटोरा कहा जाता है। और हमारे भभुआ के मोकरी चावल की मांग दुनियाभर में हो रही है। प्रभु श्रीराम को भोग में यही मोकरी का चावल अर्पित किया जाता है। राम रसोई में भी यही चावल मिलता है। आप मुझे बताइए साथियों, आप अयोध्या का राम मंदिर देखते हैं। या उसके विषय में सुनते हैं। यहां पर बैठा हर कोई मुझे जवाब दे, जब राममंदिर आप देखते हैं या उसके बारे में सुनते हैं तो आपको गर्व होता है कि नहीं होता है? माताओं-बहनों आपको गर्व होता है कि नहीं होता है? भव्य राम मंदिर का आपको आनंद आता है कि नहीं आता है? आप काशी में बाबा विश्वनाथ का धाम देखते हैं, आपको गर्व होता है कि नहीं होता है? आपका हृदय गर्व से भर जाता है कि नहीं भर जाता है? आपका माथा ऊंचा होता है कि नहीं होता है? आपको तो गर्व होता है। हर हिंदुस्तानी को गर्व होता है, लेकिन कांग्रेस-RJD के नेताओं को नहीं होता। ये लोग दुनियाभर में घूमते-फिरते हैं, लेकिन अयोध्या नहीं जाते। राम जी में इनकी आस्था नहीं है और रामजी के खिलाफ अनाप-शनाप बोल चुके हैं। उनको लगता है कि अगर अयोध्या जाएंगे, प्रभु राम के दर्शन करेंगे तो उनके वोट ही चले जाएंगे, डरते हैं। उनकी आस्था नाम की कोई चीज ही नहीं है। लेकिन मैं इनलोगों से जरा पूछना चाहता हूं.. ठीक है भाई चलो भगवान राम से आपको जरा भय लगता होगा लेकिन राम मंदिर परिसर में ही, आप मे से तो लोग गए होंगे। उसी राम मंदिर परिसर में भगवान राम विराजमान हैं, वहीं पर माता शबरी का मंदिर बना है। महर्षि वाल्मीकि का मंदिर बना है। वहीं पर निषादराज का मंदिर बना है। आरजेडी और कांग्रेस के लोग अगर रामजी के पास नहीं जाना है तो तुम्हारा नसीब, लेकिन वाल्मीकि जी के मंदिर में माथा टेकने में तुम्हारा क्या जाता है। शबरी माता के सामने सर झुकाने में तुम्हारा क्या जाता है। अरे निषादराज के चरणों में कुछ पल बैठने में तुम्हारा क्या जाता है। ये इसलिए क्योंकि वे समाज के ऐसे दिव्य पुरुषों को नफरत करते हैं। अपने-आपको ही शहंशाह मानते हैं। और इनका इरादा देखिए, अभी छठ मैया, छठी मैया, पूरी दुनिया छठी मैया के प्रति सर झुका रही है। हिंदुस्तान के कोने-कोने में छठी मैया की पूजा होने लगी है। और मेरे बिहार में तो ये मेरी माताएं-बहनें तीन दिन तक इतना कठिन व्रत करती है और आखिर में तो पानी तक छोड़ देती हैं। ऐसी तपस्या करती है। ऐसा महत्वपूर्ण हमारा त्योहार, छठी मैया की पूजा ये कांग्रेस के नामदार छठी मैया की इस पूजा को, छटी मैया की इस साधना को, छठी मैया की इस तपस्या को ये ड्रामा कहते हैं.. नौटंकी कहते हैं.. मेरी माताएं आप बताइए.. ये छठी मैया का अपमान है कि नहीं है? ये छठी मैया का घोर अपमान करते हैं कि नहीं करते हैं? ये छठी मैया के व्रत रखने वाली माताओ-बहनों का अपमान करते हैं कि नहीं करते हैं? मुझे बताइए मेरी छठी मैया का अपमान करे उसको सजा मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए? पूरी ताकत से बताइए उसे सजा मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए? अब मैं आपसे आग्रह करता हूं। अभी आपके पास मौका है उनको सजा करने का। 11 नवंबर को आपके एक वोट से उन्हें सजा मिल सकती है। सजा दोगे? सब लोग सजा दोगे?

साथियों,
ये आरजेडी-कांग्रेस वाले हमारी आस्था का अपमान इसलिए करते हैं, हमारी छठी मैया का अपमान इसलिए करते हैं। हमारे भगवान राम का अपमान इसलिए करते हैं ताकि कट्टरपंथी खुश रहें। इनका वोटबैंक नाराज ना हो।

साथियों,
ये जंगलराज वाले, तुष्टिकरण की राजनीति में एक कदम और आगे बढ़ गए हैं। ये अब घुसपैठियों का सुरक्षा कवच बन रहे हैं। हमारी सरकार गरीबों को मुफ्त अनाज-मुफ्त इलाज की सुविधा देती है। RJD-कांग्रेस के नेता कहते हैं ये सुविधा घुसपैठियों को भी देना चाहिए। गरीब को जो पक्का आवास हम दे रहे हैं, वो घुसपैठियों को भी देना चाहिए ऐसा कह रहे हैं। मैं जरा आपसे पूछना चाहता हूं, क्या आपके हक का अनाज घुसपैठिये को मिलना चाहिए क्या? आपके हक का आवास घुसपैठिये को मिलना चाहिए क्या? आपके बच्चों का रोजगार घुसपैठियों को जाना चाहिए क्या? भाइयों-बहनों मैं आज कहना नहीं चाहता लेकिन तेलंगाना में उनके एक मुख्यमंत्री के भाषण की बड़ी चर्चा चल रही है। लेकिन दिल्ली में एयरकंडीसन कमरों में जो सेक्युलर बैठे हैं ना उनके मुंह में ताला लग गया है। उनका भाषण चौंकाने वाला है। मैं उसकी चर्चा जरा चुनाव के बाद करने वाला हूं। अभी मुझे करनी नहीं है। लेकिन मैं आपसे कहना चाहता हूं मैं आपको जगाने आया हूं। मैं आपको चेताने आया हूं। इनको, कांग्रेस आरजेडी इन जंगलराज वालों को अगर गलती से भी वोट गया तो ये पिछले दरवाज़े से घुसपैठियों को भारत की नागरिकता दे देंगे। फिर आदिवासियों के खेतों में महादलितों-अतिपिछड़ों के टोलों में घुसपैठियों का ही बोलबाला होगा। इसलिए मेरी एक बात गांठ बांध लीजिए। आपका एक वोट घुसपैठियों को रोकेगा। आपका एक वोट आपकी पहचान की रक्षा करेगा।

साथियों,
नरेंद्र और नीतीश की जोड़ी ने बीते वर्षों में यहां रोड, रेल, बिजली, पानी हर प्रकार की सुविधाएं पहुंचाई हैं। अब इस जोड़ी को और मजबूत करना है। पीएम किसान सम्मान निधि के तहत...किसानों को अभी छह हज़ार रुपए मिलते हैं।बिहार में फिर से सरकार बनने पर...तीन हजार रुपए अतिरिक्त मिलेंगे। यानी कुल नौ हज़ार रुपए मिलेंगे। मछली पालकों के लिए अभी पीएम मत्स्य संपदा योजना चल रही है। केंद्र सरकार...मछली पालकों को किसान क्रेडिट कार्ड दे रही है। अब NDA ने..मछुआरे साथियों के लिए जुब्बा सहनी जी के नाम पर नई योजना बनाने का फैसला लिया है। इसके तहत मछली के काम से जुड़े परिवारों को भी नौ हज़ार रुपए दिए जाएंगे।

साथियों,
डबल इंजन सरकार का बहुत अधिक फायदा...हमारी बहनों-बेटियों को हो रहा है। हमारी सरकार ने..बेटियों के लिए सेना में नए अवसरों के दरवाज़े खोले हैं...सैनिक स्कूलों में अब बेटियां भी पढ़ाई कर रही हैं। यहां नीतीश जी की सरकार ने...बेटियों को नौकरियों में आरक्षण दिया है। मोदी का मिशन है कि बिहार की लाखों बहनें...लखपति दीदी बनें। नीतीश जी की सरकार ने भी जीविका दीदियों के रूप में, बहनों को और सशक्त किया है।

साथियों,
आजकल चारों ओर मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की चर्चा है। अभी तक एक करोड़ 40 लाख बहनों के बैंक-खाते में दस-दस हज़ार रुपए जमा हो चुके हैं। NDA ने घोषणा की है कि फिर से सरकार बनने के बाद...इस योजना का और विस्तार किया जाएगा।

साथियों,
बिहार आज विकास की नई गाथा लिख रहा है। अब ये रफ्तार रुकनी नहीं चाहिए। आपको खुद भी मतदान करना है...और जो साथी त्योहार मनाने के लिए गांव आए हैं... उनको भी कहना है कि वोट डालकर ही वापस लौटें...याद रखिएगा...जब हम एक-एक बूथ जीतेंगे...तभी चुनाव जीतेंगे। जो बूथ जीतेगा वह चुनाव जीतेगा। एक बार फिर...मैं अपने इन साथियों के लिए, मेरे सभी उम्मीदवारों से मैं आग्रह करता हूं कि आप आगे आ जाइए.. बस-बस.. यहीं रहेंगे तो चलेगा.. मैं मेरे इन सभी साथियों से उनके लिए आपसे आशीर्वाद मांगने आया हूं। आप सभी इन सब को विजयी बनाइए।

मेरे साथ बोलिए...
भारत माता की जय!
भारत माता की जय!
भारत माता की जय!
वंदे... वंदे... वंदे... वंदे...
बहुत-बहुत धन्यवाद।