मित्रो
इस आठ मार्च का विश्व महिला दिवस आशा की अनेक किरणें ले कर आया. विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं को ३३% आरक्षण फिर से एक बार वोट बैंक की राजनीति का शिकार बनती दिख रही है.
एशिया के देश काफी हद तक भारतीय संस्कृति से प्रभावित रहे है. बंगलादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, भारत, इंडोनेशिया जैसे देश अपने राष्ट्र-प्रधान के रूप में एक महिला को स्वीकार करे ये एक सहज बात है. इतिहास इस बात का साक्षी है.
दूसरी ओर सारी दुनिया को उपदेश देना अपना अधिकार समझने वाले और महिला स्वातंत्र्य के झंडालम्बरदार बन खुद को प्रगतिशील कहलवाने वाले पश्चिम के कई ऐसे देश हैं जो २१ वीं सदी में भी किसी महिला को अपने राष्ट्र-प्रधान के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं. जबकि अमेरिका जैसा खूब प्रगत कहलाता देश जहाँ लोकतंत्र की स्थापना १७७६ में हुई थी वहां महिलाओं को मतदान का अधिकार प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक संघर्ष करना पडा, शहादत देनी पड़ी, यातनाएं सहनी पड़ी. तब जा कर १९२० में वहां महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला. अमेरिका में १५० वर्षों तक सिर्फ पुरुष ही मताधिकार भोगते रहें.
विकास की तेज़ छलांगों का यह युग है. नारीशक्ति की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने का यह युग है.
गुजरात में नारी सशक्तिकरण के लिए हमने कई प्रगतिशील कदम उठायें है. और उनके अच्छे परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं.
इस LINK के माध्यम से जा कर आप गुजरात में नारीशक्ति के सशक्तिकरण के लिए उठाये कदमों का विस्तारपूर्वक अभ्यास कर सकते हैं.
नारी सशक्तिकरण - विभिन्न पहल - गुजरात मॉडल
हां, गुजरात के गावों के पुरुषों के मन की बात आपको बताते अत्यंत गर्व का अनुभव होता है. गुजरात में ५० से भी अधिक गाँव ऐसे है जहाँ पुरुषों ने स्त्रियों को चुन के पंचायत में भेजा है. एक भी पुरुष ने वहां उम्मेदवारी नहीं रखी और गाँव का सारा कामकाज महिलाओं के सुपुर्द कर दिया.गुजरात के ठोस प्रयासों और नाविन्यतापूर्ण कदमों की झलक भी आपको LINK के द्वारा मिल जाएगी.
तो... मिलते रहेंगे.
बातें करते रहेंगे.


