भारत वर्तमान की सबसे तेजी से उभरती महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था है, और एफडीआई के लिए सबसे आकर्षक स्थानों में से एक है: प्रधानमंत्री
हम एक समन्वित राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए वस्तु एवं सेवा कर कानून पर अमल कर रहे हैं: प्रधानमंत्री
भारत एक डिजिटल क्रांति का अनुभव कर रहा है, यह भारतीय समाज में डिजिटल और आर्थिक विभाजन को पाट रहा है: नरेंद्र मोदी
इनोवेटिव बिजनेस मॉडल्स और ऐप आधारित स्टार्ट-अप्स ने भारतीयों में उद्यमिता की भावना पैदा की है: प्रधानमंत्री
हमने दूरगामी न्यायिक सुधारों की शुरुआत की है, और एक हजार से ज्यादा पुराने कानूनों को खत्म कर दिया है: प्रधानमंत्री
भारत में अच्छे और प्रतिभाशाली वकीलों एवं न्यायाधीशों की कमी नहीं है: नरेंद्र मोदी

भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर,

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के माननीय न्यायाधीश,

विशिष्ट अतिथिगण एवं मित्रों,

देवियों और सज्जनों,

मैं इस वैश्विक सम्मेलन के आयोजन के लिए नीति आयोग को बधाई देते हुए अपनी बात शुरू करता हूं।

शायद, मध्यस्थता की सबसे सरल परिभाषा महात्मा गांधी ने दी है, उन्होंने कहा था -

“मैंने कानून का वास्तविक अभ्यास सीखा है। मैंने मानव स्वभाव के बेहतर पहलुओं का पता लगाना और लोगों के दिलों में जगह बनाना सीखा है। मुझे यह एहसास हुआ कि एक वकील का सच्चा काम विवाद में शामिल दलों को एकजुट करना है। यह सबक मेरे अंदर इस तरह घर कर गया था कि वकील के तौर पर बीस वर्ष की प्रैक्टिस के दौरान मेरा ज्यादातर समय सैकड़ों मामलों में निजी समझौते कराने में बीता। मैंने कुछ भी नहीं गंवाया, न पैसा और निश्चित रूप से न ही मेरी आत्मा।”

मित्रों,

भारत आज तेजी से विकास कर रही एक बड़ी अर्थव्यवस्था है और यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे आकर्षक स्थानों में से एक है। दरअसल, हम वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक उज्जवल स्थान की तरह हैं। यह भारत की आधारभूत क्षमताओं जैसे लोकतंत्र, जनसांख्यिकीय लाभ और मांग का परिणाम है। हमें इन क्षमताओं का पूरी तरह उपयोग करने की जरूरत है। यह तभी हो सकता है जब कारोबार में दीर्घकालिक निवेश किया जाए जिससे रोजगार के अवसर बनें और सतत आर्थिक विकास हो।

हमारा घरेलू बाजार टुकड़ों में बंटा है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग टैक्सों ने वस्तु एवं सेवाओं को ज्यादा महंगा बना दिया है। इसने अंतरराज्यीय व्यापार में वृद्धि को बाधित किया है। हम एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए वस्तु एवं सेवा टैक्स कानून ला रहे हैं। यह आगे चलकर घरेलू मांग को बढ़ाएगा, भारतीय बिजनेस में ज्यादा संभावनाएं पैदा करेगा और रोजगार के अवसर बढ़ाएगा।

भारत एक डिजिटल क्रांति के दौर में है। यह सामान्य रूप से भारतीय समाज और विशेष रूप से ग्रामीण समाज में डिजिटल और आर्थिक विभाजन को पाट रहा है। इस क्रांति के जरिए ग्रामीण अर्थव्यस्था को मिलने वाले बढ़ावा भारतीय अर्थव्यवस्था को और अधिक मजबूत बनाएगा।

अभिनव बिजनेस मॉडल और एप्लीकेशन आधारित स्टार्टअप्स ने भारतीयों के मन में उद्यमिता की भावना को बिठा दिया है। कल तक नौकरी मांगने वाले आज नौकरी देने वाले बन रहे हैं। डिजिटल दुनिया के कारण कानूनी पेशे में भी खुलापन आ रहा है। कारण-सूचियों से लेकर केस-लॉ तक, वकील की लाइब्रेरी अब आपके मोबाइल से एक क्लिक भर की दूरी पर है।

मित्रों,

उद्यम भारतीय बाजार में कानून की व्यापकता का आश्वासन चाहते हैं। वे इस बात से आश्वस्त होना चाहते हैं कि रातोंरात मनमाने तरीके से नियम नहीं बदले जाएंगे। साथ ही व्यावसायिक विवाद कुशलता से हल किए जाएंगे। एक जीवंत मध्यस्थता संस्कृति द्वारा समर्थित एक मजबूती कानूनी ढांचा आवश्यक है।

इस दिशा में हमने दूरगामी कानूनी सुधार शुरू किए हैं। एक हजार से अधिक पुराने कानून खत्म कर दिए गए हैं। हमने एक व्यापक दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 अधिनियमित की है। हमने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण लागू कर दिया है और एक सांविधिक मौद्रिक नीति समिति स्थापित की है। वस्तुओं एवं प्रतिभूति बाजार के विलय को प्रभावी किया है।

इसके अलावा, दिवालियापन संहिता में सामंजस्य बिठाते हुए हमने इस वर्ष बदलते क्रेडिट परिदृश्य के अनुरूप और कारोबारी सुगमता के लिए एसएआरएफएईएसआई एवं डीआरटी अधिनियम में संशोधन किया है।

हालांकि, कानूनी सुधार तभी अपेक्षित परिणाम दे सकते हैं जब एक प्रभावी और कुशल विवाद समाधान तंत्र उपलब्ध हो। न्यायपालिका की स्वतंत्रता भारतीय संविधान की एक बुनियादी सुविधा है। आम नागरिकों के साथ-साथ उद्यम न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता में अपार विश्वास व्यक्त करते हैं। हमारी सरकार ने बुनियादी न्यायिक ढांचे और प्रशासन में सुधार के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं।

हमने वाणिज्यिक विवादों के त्वरित समाधान के लिए उच्च न्यायालयों के वाणिज्यिक अदालतों, वाणिज्यिक प्रभाग एवं वाणिज्यिक अपीलीय डिवीजन 2015 के अधिनियम को अधिनियमित किया है।

एक राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड देशभर में जिला अदालतों में लंबित मामलों पर डेटा प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है। समूची कोर्ट प्रणाली के कंप्यूटरीकरण के लिए ई-कोर्ट मिशन के तहत कदम उठाए गए हैं।

हमारी सरकार ने मौजूदा न्यायाधिकरण के अभिसरण के लिए एक रणनीति पर काम कर रही है। यह मौजूदा जटिल न्यायाधिकरण प्रणाली को एक सरल संरचना में ढालने में मददगार होगी।

पंचाट, मध्यस्थता और सुलह सहित वैकल्पिक विवाद समाधान के लिए एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र बनाए जाने की जरूरत है। यह उद्यमों और निवेशकों को अतिरिक्त सुविधा प्रदान करेगा। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि ये भारतीय अदालतों पर काम के बोझ को कम करेगा।

विवादों का मध्यस्थता के जरिए निपटारा हमारे लिए नई बात नहीं है। प्राचीन भारत में भी दो पक्षों के बीच में विवादों के निपटारे के लिए कई तंत्र थे। इनमें शामिल थे कुलानी, या ग्राम परिषद; श्रेणी या निगम; और पूगा या सभा। इसी तरह, वाणिज्यिक मामलों में निर्णय महाजनों और मंडलों द्वारा किया जाता था।

आज कंपनियों और वित्तीय संस्थानों को कानूनी विशेषज्ञों की जरूरत होती है, जो किसी भी विवाद एवं मुकदमों के बिना नजदीकी व्यापारिक सौदों और लेनदेन में मदद कर सकते हैं। यदि कोई विवाद खड़ा होता है तो कंपनियां बिना अदालत जाए, उसे मध्यस्थता के जरिए जल्दी निपटाना चाहती हैं। इसके लिए उन्हें मध्यस्थता में विशेषज्ञता वाले वकील की आवश्यकता होती है। वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रिया व्यक्तिगत और व्यावसायिक रिश्तों का संरक्षण करती है अन्यथा विरोधात्मक प्रक्रिया से नुकसान हो सकता है।

हाल के रुझान ये संकेत देते हैं कि हांगकांग और सिंगापुर जैसे एशियाई केंद्र मध्यस्थता के प्राथमिकता वाले स्थलों के रूप में उभरे हैं। लोकप्रिय व्यापारिक केंद्र के तौर पर वे कारोबारी सुगमता की रैंकिंग में भी ऊंचे पायदान पर खड़े हैं। इस प्रकार, गुणवत्ता वाले मध्यस्थता तंत्र की उपलब्धता कारोबारी सुगमता का महत्वपूर्ण अंग है और इसके लिए हमारी सरकार प्रतिबद्ध है।

मित्रों,

संस्थागत मध्यस्थता के लिए एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हमारी सरकार की सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं में से एक है। हाल ही में, पंचाट और सुलह अधिनियम में प्रमुख संशोधन किए गए हैं। इसने मध्यस्थता की प्रक्रिया को आसान, समयबद्ध और परेशानी मुक्त बनाया है। हमारा कानून यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल कानून पर आधारित है।

उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सामान्य परिस्थितियों में मध्यस्थ न्यायाधिकरण 12 महीने के भीतर अपना फैसला दे दे। फॉस्ट ट्रैक प्रक्रिया के दौरान यह फैसला छह माह में आ जाना चाहिए। यहां तक कि न्यायालय द्वारा मध्यस्थ की नियुक्ति पर 60 दिन की अवधि के भीतर निर्णय ले लिया जाना चाहिए। फैसले की प्रक्रिया और मंजूरी के दौरान पूर्व में पेश आने वाली बाधाओं को हटा लिया गया है।

इसके अलावा, नए कानून के अनुसार, फैसले को चुनौती देने वाले किसी भी आवेदन का न्यायालय द्वारा एक वर्ष के भीतर निपटारा किया जाएगा। कोर्ट द्वारा फैसले को लागू करने से इनकार अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं के अनुसार ही किया जा सकता है। इन संशोधनों से हमारी मध्यस्थता प्रक्रिया विश्व की सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ तालमेल बिठा सकेगी। इसने हमें एक अग्रणी मध्यस्थता अधिकार क्षेत्र के रूप में उभरने का मौका दिया है। हालांकि, महान अवसरों के साथ महान चुनौतियां भी खड़ी होती हैं। इन चुनौतियों में शामिल है, उत्कृष्ट गुणवत्ता एवं विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त मध्यस्थों की उपलब्धता; पेशेवर आचरण, तटस्थता सुनिश्चित करना, प्रक्रिया का समयबद्ध पालन; और कम लागत वाली मध्यस्थता की कार्यवाही।

मित्रों,

भारत में प्रतिभाशाली वकीलों और न्यायाधीशों की कोई कमी नहीं है। भारत के पास बड़ी संख्या में सेवानिवृत्त न्यायाधीश, इंजीनियर और वैज्ञानिक उपलब्ध हैं, जो कि विभिन्न क्षेत्रों में सक्षम मध्यस्थों के रूप में काम कर सकते हैं। भारत के आर्थिक हितों की काफी संख्या में उपलब्ध मध्यस्थता विशेषज्ञों और वकीलों के द्वारा बेहतर सेवा की जा सकती है। इसके लिए भारत में कानूनी शिक्षा का दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञताप्राप्त मध्यस्थता बार एसोसिएशन विकसित करने की आवश्यकता है। हमें पेशेवर पंचायती संस्थाओं को चलाने की जरूरत है, जो उद्यमों को भारत में उचित कीमत पर अंतरराष्ट्रीय मानकों वाली सेवाएं दे सके। हम इस प्रयास में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थानों का स्वागत करते हैं।

हमें न्यायपालिका और मध्यस्थता तंत्र के प्रयासों को पूरा करने के तरीकों और साधनों पर विचार-विमर्श करना चाहिए। मध्यस्थता एक ऐसी व्यवस्था है, जिसका देश में संभावना के अनुरूप ज्यादा उपयोग नहीं किया गया है।

मित्रों,

एक समर्थ वैकल्पिक विवाद समाधान पारिस्थितिकी तंत्र भारत के लिए एक राष्ट्रीय प्राथमिकता है। हमें भारत को एक मध्यस्थता केंद्र के रूप में विश्व स्तर पर बढ़ावा देने की जरूरत है। रोसको पाउंड का प्रख्यात कथन है - "कानून स्थिर होना चाहिए, लेकिन यह सीधा खड़ा नहीं होना चाहिए।" इस सम्मेलन ने महत्वपूर्ण नियामक, नीति और सुधारों पर विचार-विमर्श करने के लिए आदर्श मंच प्रदान किया है।

मुझे यकीन है, यहां हुआ विचार-विमर्श भारत में पंचाट को मजबूत बनाने में मददगार होगा और अंतरराष्ट्रीय व्यवसायियों, कॉर्पोरेट घरानों तथा कानूनी बिरादरी के बीच मध्यस्थता के लिए भारत को एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने में एक मील का पत्थर साबित होगा। हम प्रभावी रूप से आपकी सिफारिशों को लागू करने के लिए तत्पर हैं।

धन्यवाद।

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