हाल ही में प्रसिद्ध संगीतकार रिकी केज ने 'डिवाइन टाइड्स' एल्बम के लिए अपने करियर का तीसरा ग्रैमी पुरस्कार जीता। 'मोदी स्टोरी' से बात करते हुए उन्होंने खुलासा किया कि कैसे पीएम मोदी ने उनके संगीत को एक उद्देश्य दिया और उन्हें ऐसा संगीत बनाने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसका सामाजिक प्रभाव हो और जो भारत की महान संस्कृति को प्रदर्शित करता हो।

केज ने कहा,"जब मैंने 2015 में अपना पहला ग्रैमी पुरस्कार जीता था, तो नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के एक साल बाद ही उस अंतरराष्ट्रीय मंच पर जहां दुनिया भर के एक अरब से अधिक लोग ग्रैमी पुरस्कार देख रहे थे, मैंने अपने भाषण के दौरान उल्लेख कर उन्हें (पीएम मोदी) धन्यवाद दिया और कहा कि वह भारत के लिए अद्भुत काम कर रहे हैं।"


रिकी केज ने आगे कहा कि वो पीएम मोदी से मिलना चाहते थे और मुलाकात के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आने पर उन्हें खुशी हुई।

प्रधानमंत्री से अपनी पहली मुलाकात को याद करते हुए केज ने बताया, "मैंने सोचा था कि यह 4-5 मिनट की फोटो-ऑप टाइप की बैठक होगी, लेकिन यह वास्तव में एक घंटे की चर्चा बन गई! यह एक शानदार अनुभव था। पीएम मोदी ने उस मुलाकात के दौरान मुझे प्रेरित किया कि मैं जो भी संगीत बनाता हूं वह उस चीज के लिए होता है जिसके लिए मैं जुनूनी हूं, जिसका पर्यावरण और सकारात्मक सामाजिक प्रभाव है। पीएम मोदी का मेरे जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव रहा है क्योंकि उन्होंने मेरे करियर को नया मोड़ दिया और निश्चित ही जीवन की सोच को बदल दिया।"


रिकी केज ने कहा कि अब वह कोई कॉमर्शियल या बॉलीवुड संगीत नहीं बनाते हैं। उन्होंने कहा,"मैं केवल एक ही तरह का संगीत बनाता हूं जो इस दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने की कोशिश करता है और भारत की हमारी खूबसूरत विरासत और संस्कृति को दिखाने की कोशिश करता है। बस अब यही मेरी जिंदगी है।"


प्रधानमंत्री से मुलाकात के बारे में अधिक जानकारी साझा करते हुए केज ने कहा," पीएम मोदी ने महसूस कराया कि मेरा जुनून पर्यावरण है और मैंने महसूस किया कि उनका बहुत बड़ा जुनून पर्यावरण और प्रकृति और सभी प्रजातियों की रक्षा और संरक्षण है। माननीय प्रधानमंत्री ने मुझे बताया कि वह COP21 - पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में जा रहे हैं जो कि हमारे प्लेनेट के इतिहास में राष्ट्रों का अब तक का सबसे बड़ा सम्मेलन था। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वे एक सोलर अलायंस शुरू करने जा रहे हैं जो मेरे दिल के बहुत-बहुत करीब है।"


जब वे COP-21 सम्मेलन के बारे में चर्चा कर रहे थे, तो उन्होंने एक सुझाव दिया कि जलवायु परिवर्तन और इसके बारे में भारत के दृष्टिकोण पर दुनिया भर के संगीतकारों को शामिल कर एक संगीत एल्बम बनाया जाए। केज ने कहा," इसलिए मैंने 'शांति समसारा' नाम का एल्बम बनाया, जिसमें 40 देशों के 500 संगीतकार शामिल थे। पीएम मोदी को एल्बम बहुत पसंद आया और उन्होंने फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ्रांस्वा ओलांद और संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव श्री बान की मून को एल्बम उपहार में देकर पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में एल्बम लॉन्च किया।"

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भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार
September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)