प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय जैविक तनाव प्रबंधन संस्थान, रायपुर का नवनिर्मित परिसर राष्ट्र को समर्पित किया
प्रधानमंत्री ने कृषि विश्वविद्यालयों को ग्रीन कैंपस अवार्ड भी वितरित किये
"जब भी किसानों और कृषि को सुरक्षा कवच मिलता है, उनका तेजी से विकास होता है"
"जब विज्ञान, सरकार और समाज एक साथ काम करते हैं, तो परिणाम बेहतर होते हैं; किसानों और वैज्ञानिकों का यह गठबंधन नई चुनौतियों का मुकाबला करने में देश को मजबूती प्रदान करेगा”
"किसानों को फसल आधारित आय प्रणाली से बाहर निकालने और उन्हें मूल्यवर्धन तथा अन्य कृषि विकल्पों के लिए प्रोत्साहित करने के प्रयास किये जा रहे हैं"
"हमारी प्राचीन कृषि परंपराओं के साथ-साथ भविष्य की ओर आगे बढ़ना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है"

नमस्कार जी! केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्रीमान नरेंद्र सिंह तोमर जी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेश बघेल जी, मंत्रिमंडल के मेरे अन्य सहयोगी श्री पुरुषोत्तम रुपाला जी, श्री कैलाश चौधरी जी, बहन शोभा जी, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह जी, नेता विपक्ष श्री धर्म लाल कौशिक जी, कृषि शिक्षा से जुड़े सभी वीसी, डायरेक्टर्स, वैज्ञानिक साथी और मेरे प्यारे किसान बहनों और भाइयों !

हमारे यहां उत्तर भारत में घाघ और भड्डरी की कृषि संबंधी कहावतें बहुत लोकप्रिय रही हैं। घाघ ने आज से कई शताब्दी पहले कहा था-

जेते गहिरा जोते खेत,

परे बीज, फल तेते देत।

यानि खेत की जुताई जितनी गहरी की जाती है, बीज बोने पर उपज भी उतनी ही अधिक होती है। ये कहावतें, भारत की कृषि के सैकड़ों साल पुराने अनुभवों के बाद बनी हैं। ये बताती हैं कि भारतीय कृषि हमेशा से कितनी वैज्ञानिक रही है। कृषि और विज्ञान के इस तालमेल का निरंतर बढ़ते रहना, 21वीं सदी के भारत के लिए बहुत जरूरी है। आज इसी से जुड़ा एक और अहम कदम उठाया जा रहा है। हमारे देश के आधुनिक सोच वाले किसानों को ये समर्पित किया जा रहा है और छोटे-छोटे किसानों की जिन्दगी में बदलाव की आशा के साथ ये बहुत बड़ी सौगात आज मैं मेरे देश के कोटि-कोटि किसानों के चरणों में समर्पित कर रहा हूँ। अलग-अलग फसलों की 35 नई वैरायटीज आज जारी हुई हैं। आज रायपुर में National Institute of Biotic Stress Management का लोकार्पण भी हुआ है। चार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज को ग्रीन कैंपस अवार्ड भी दिए गए हैं। मैं आप सभी को, देश के किसानों को, कृषि वैज्ञानिकों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

बीते 6-7 सालों में साइंस और टेक्नॉलॉजी को खेती से जुड़ी चुनौतियों के समाधान के लिए प्राथमिकता के आधार पर उपयोग किया जा रहा है। विशेष रूप से बदलते हुए मौसम में, नई परिस्थितियों के अनुकूल, अधिक पोषण युक्त बीजों, इस पर हमारा फोकस बहुत अधिक है। हाल के वर्षों में अलग-अलग फसलों की ऐसी 1300 से अधिक Seed Varieties, बीज की विविधताएं तैयार की गई है। इसी श्रंखला में आज 35 और Crop Varieties देश के किसानों के चरणों में समर्पित की जा रही हैं। ये Crop Varieties, ये बीज, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से खेती की सुरक्षा करने और कुपोषण मुक्त भारत के अभियान में बहुत सहायक होने वाला ये हमारे वैज्ञानिकों की खोज का परिणाम है। ये नई Varieties, मौसम की कई तरह की चुनौतियों से निपटने में सक्षम तो हैं हीं, इनमें पौष्टिक तत्व भी ज्यादा हैं। इनमें से कुछ Varieties कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए हैं, कुछ crop गंभीर रोगों से सुरक्षित हैं, कुछ जल्दी तैयार हो जाने वाली हैं, कुछ खारे पानी में हो सकती हैं। यानि देश की अलग-अलग परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, इन्हें तैयार किया गया है। छत्तीसगढ़ के National Institute of Biotic Stress Management के तौर पर देश को एक नया राष्ट्रीय संस्थान मिला है। ये संस्थान, मौसम और अन्य परिस्थितियों के बदलाव से पैदा हुई चुनौतियों-Biotic stress इससे निपटने में देश के प्रयासों को वैज्ञानिक मार्गदर्शन मिलेगा, वैज्ञानिक सहायताएं मिलेंगी और वो बहुत बल देगा। यहां से जो मैनपावर ट्रेन होगा, जो हमारा युवाधन तैयार होंगे, वैज्ञानिक मन-मस्तिष्क के साथ जो हमारा वैज्ञानिक तैयार होगा, जो यहां पर समाधान तैयार होंगे, जो solution निकलेंगे, वो देश की कृषि और किसानों की आय बढ़ाने में कारगर सिद्ध होंगे।

साथियों,

हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में फसलों का कितना बड़ा हिस्सा, कीड़ों की वजह से बर्बाद हो जाता है। इससे किसानों का भी बहुत नुकसान होता है। पिछले वर्ष ही कोरोना से लड़ाई के बीच में हमने देखा है कि कैसे टिड्डी दल ने भी अनेक राज्यों में बड़ा हमला कर दिया था। भारत ने बहुत प्रयास करके तब इस हमले को रोका था, किसानों का ज्यादा नुकसान होने से बचाने का भरपूर प्रयास किया गया था। मैं समझता हूं कि इस नए संस्थान पर बहुत बड़ा दायित्व है और मुझे विश्वास है कि यहां काम करने वाले वैज्ञानिक देश की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे।

साथियों,

खेती-किसानी को जब संरक्षण मिलता है, सुरक्षा कवच मिलता है, तो उसका और तेजी से विकास होता है। किसानों की जमीन को सुरक्षा देने के लिए, उन्हें अलग-अलग चरणों में 11 करोड़ Soil Health Card दिए गए हैं। इसकी वजह से किसानों को अपनी जो जमीन है उसकी क्या मर्यादाएं हैं, उस जमीन की क्या शक्ति है, इस प्रकार के बीज बोने से किस प्रकार की फसल बोने से अधि‍क लाभ होता है। दवाईयां कौन सी जरूरी पड़ेगी, fertilizer कौन सा जरूरी पड़ेगा, ये सारी चीजें उस Soil Health Card के कारण जमीन की सेहत का पता चलने के कारण, इसकी वजह से किसानों को बहुत लाभ हुआ है, उनका खर्चा भी कम हुआ है और उपज भी बढ़ी है। उसी प्रकार से, यूरिया की 100 परसेंट नीम कोटिंग करके, हमने खाद को लेकर होने वाली चिंता को भी दूर किया। किसानों को पानी की सुरक्षा देने के लिए, हमने सिंचाई परियोजनाएं शुरू कीं, दशकों से लटकी करीब-करीब 100 सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का अभियान चलाया, बहुत बड़ी मात्रा में बजट लगा दिया इसके लिए, उसके कारण किसानों को पानी मिल जाए तो वो पानी से पराक्रम करके दिखाता है। उसी प्रकार से पानी बचाने के लिए हमने micro irrigation, sprinkler इन चीजों के लिए भी बड़ी आर्थि‍क मदद करके किसानों तक ये व्यवस्थाएं पहुंचाने का प्रयास किया। फसलों को रोगों से बचाने के लिए, ज्यादा उपज के लिए किसानों को नई-नई वैरायटी के बीज दिए गए। किसान, खेती के साथ-साथ बिजली पैदा करे, अन्नदाता उर्जादाता भी बने, अपनी खुद की जरूरतें भी पूरी कर सके, इसके लिए पीएम कुसुम अभियान भी चलाया जा रहा है। लाखों किसानों को सोलर पंप भी दिए गए हैं। उसी प्रकार से, आज तो मौसम के विषय में तो हमेशा दुनिया भर में चिंता का विषय बना हुआ है। अभी हमारे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री जी कितने प्रकार के प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं, climate change के कारण क्या-क्या मुसीबतें आती हैं। बड़े अच्छे ढंग से उन्होंने वर्णन किया। अब आप जानते हैं, ओलावृष्टि और मौसम की मार से किसानों को सुरक्षा देने के लिए हमने कई चीजों में परिवर्तन किये, पहले के सारे नियमों में बदलाव लाये ताकि किसान को सर्वाधि‍क लाभ हो, इस नुकसान के समय उसको दिक्कत ना आए, ये सारे परिवर्तन किये। पीएम फसल बीमा योजना, इससे भी किसानों को बहुत लाभ हो और सुरक्षा मिले, इसकी चिंता की। इस परिवर्तन के बाद किसानों को करीब-करीब ये जो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में जो परिवर्तन लाए उसके कारण किसानों को करीब-करीब एक लाख करोड़ रुपए की क्लेम राशि का भुगतान किया गया है। एक लाख करोड़ रुपया इस संकट की घड़ी में किसान के जेब में गया है।

साथियों,

MSP में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ हमने खरीद प्रक्रिया में भी सुधार किया ताकि अधिक-से-अधिक किसानों को इसका लाभ मिल सके। रबी सीजन में 430 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा गेंहूं खरीदा गया है। इसके लिए किसानों को 85 हजार करोड़ से अधिक का भुगतान किया गया है। कोविड के दौरान गेहूं खरीद केंद्रों की संख्या 3 गुना तक बढ़ाई है। साथ ही दलहल-तिलहन इन खरीद केन्द्रों की संख्या भी तीन गुना बढ़ाई गई है। किसानों की छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए किसान सम्मान निधि के तहत 11 करोड़ से अधिक हमारे हर किसान को और उसमें ज्यादातर छोटे किसान हैं। 10 में से 8 किसान हमारे देश में छोटे किसान हैं, बहुत छोटे-छोटे जमीन के टुकड़े पर पल रहे हैं। ऐसे किसानों को करीब-करीब 1 लाख 60 हजार करोड़ से भी ज्यादा रुपए सीधे उनके बैंक अकाउंट के पास भेजे गए हैं। इसमें से एक लाख करोड़ रुपए से अधिक राशि तो इसी कोरोना काल में भेजी गई है। किसानों को टेक्नोलॉजी से जोड़ने के लिए हमने उन्हें बैंकों से मदद की और उस मदद की पूरी प्रक्रिया को बहुत आसान बनाया गया है। आज किसानों को और बेहतर तरीके से मौसम की जानकारी मिल रही है। हाल ही में अभियान चलाकर 2 करोड़ से ज्यादा किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड दिए गए हैं। मछली पालन करने वाले और डेयरी सेक्टर से जुड़े किसानों को भी KCC से जोड़ा गया है। 10 हजार से ज्यादा किसान उत्पादक संगठन हों, e-Nam योजना के तहत ज्यादा से ज्यादा कृषि मंडियों को जोड़ना हो, मौजूदा कृषि मंडियों का आधुनिकिकीकरण हो, ये सारे कार्य तेज गति से किए जा रहे हैं। देश के किसानों और देश की कृषि से जुड़े जो काम बीते 6-7 वर्षों में हुए हैं, उन्होंने आने वाले 25 वर्षों के बड़े राष्ट्रीय संकल्पों की सिद्धि के लिए क्योंकि 25 साल के बाद हमारा देश आजादी की शताब्दी मनाएगा, आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, 25 साल के बाद आजादी की शताब्दी मनाएंगे और इसके लिए इन 25 वर्षों के बड़े राष्ट्र संकल्पों की सिद्ध‍ि के लिए एक बड़ा मजबूत आधार बना दिया है। बीज से लेकर बाजार तक हुए ये कार्य एक बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में भारत की प्रगति की गति को सुनिश्चित करने वाले हैं।

साथियों,

हम सब जानते हैं कि Agriculture एक प्रकार से राज्य का विषय है और इसके विषय में अनेक बार लिखा भी जाता है कि ये तो राज्य का विषय है, भारत सरकार को इसमें कुछ नहीं करना चाहिए, ऐसा भी कहा जाता है क्योंकि State subject है और मैं जानता हूं क्योंकि मुझे भी कई वर्षों तक गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में काम करने का अवसर मिला था, गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए क्योंकि राज्य की भी विशेष जिम्मेवारी है, ये मैं जानता था और इस जिम्मेवारी को मुझे निभाना चाहिए, ये मुख्यमंत्री होने के नाते मैं पूरी कोशि‍श करता था। गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मैंने कृषि व्यवस्था को, कृषि नीतियों और उनके खेती पर प्रभावों को बहुत निकट से अनुभव किया और अभी हमारे नरेंद्र सिंह तोमर जी, मेरे गुजरात के कार्यकाल में मैं क्या काम कर रहा था उसका भी ये बड़ा वर्णन कर रहे थे। एक समय था जब गुजरात में खेती कुछ फसलों तक ही सीमित थी। गुजरात के एक बड़े हिस्से में पानी के अभाव में किसान खेती छोड़ चुके थे। उस समय एक ही मंत्र को लेकर हम चले, किसानों को साथ लेकर के चले और मंत्र था- स्थिति बदलनी चाहिए, हम मिलकर स्थितियां ज़रूर बदलेंगे। इसके लिए उस दौर में ही हमने साइंस और आधुनिक टेक्नॉलॉजी का व्यापक उपयोग शुरू कर दिया था। आज देश के Agriculture और Horticulture में गुजरात की एक बड़ी हिस्सेदारी है। अब आज गुजरात में 12 महीने खेती होती है। कच्छ जैसे क्षेत्रों में भी आज वो फल-सब्जियां पैदा होती हैं, जिनके बारे में कभी सोच नहीं सकते थे। आज कच्छ के रेगिस्तान में से वहां की कृषि‍ पैदावार विदेशों में export होना शुरू हुआ है।

भाईयों और बहनों,

सिर्फ पैदावार पर ही फोकस नहीं किया गया, बल्कि पूरे गुजरात में कोल्ड चेन का एक बहुत बड़ा नेटवर्क तैयार किया गया। ऐसे अनेक प्रयासों से खेती का दायरा तो बढ़ा ही, साथ ही खेती से जुड़े उद्योग और रोज़गार भी बड़ी मात्रा में तैयार हुए और क्योंकि एक मुख्यमंत्री होने के नाते राज्य सरकार की सारी जिम्मेवादी होती है तो मुझे उस समय इन सारे कामों को करने का एक अच्छा सा अवसर भी मिला और मैंने पूरी मेहनत भी की।

भाइयों और बहनों,

खेती में हुए ऐसे ही आधुनिक परिवर्तनों को आज़ादी के इस अमृतकाल में और विस्तार देने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन खेती ही नहीं, बल्कि हमारे पूरे इकोसिस्टम के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। मौसम में बदलाव से हमारा मत्स्य उत्पादन, पशुओं का स्वास्थ्य और उत्पादकता बहुत अधिक प्रभावित होती है। इसका नुकसान किसानों को, मछुआरे साथियों को उठाना पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण जो नए प्रकार के कीट, नई बीमारियां, महामारियां आ रही हैं, इससे इंसान और पशुधन के स्वास्थ्य पर भी बहुत बड़ा संकट आ रहा है और फसलें भी प्रभावित हो रही है। इन पहलुओं पर गहन रिसर्च निरंतर ज़रूरी है। जब साइंस, सरकार और सोसायटी मिलकर काम करेंगे तो उसके नतीजे और बेहतर आएंगे। किसानों और वैज्ञानिकों का ऐसा गठजोड़, नई चुनौतियों से निपटने में देश की ताकत बढ़ाएगा। जिला स्तर पर साइंस आधारित ऐसे कृषि मॉडल खेती को अधिक प्रोफेशनल, अधिक लाभकारी बनाएंगे। आज जलवायु परिवर्तन से बचाव करने वाली तकनीक और प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करने के लिए जो अभियान आज लॉन्च किया गया है, उसके मूल में भी यही भावना है।

भाइयों और बहनो,

ये वो समय है जब हमें बैक टू बेसिक और मार्च फॉर फ्यूचर, दोनों में संतुलन साधना है। जब मैं बैक टू बेसिक कहता हूं तब, मेरा आशय हमारी पारंपरिक कृषि की उस ताकत से है जिसमें आज की अधिकतर चुनौतियों से जुड़ा सुरक्षा कवच था। पारंपरिक रूप से हम खेती, पशुपालन और मत्स्यपालन एक साथ करते आए हैं। इसके अलावा, एक साथ, एक ही खेत में, एक ही समय पर कई फसलों को भी उगाया जाता था। यानि पहले हमारे देश की Agriculture, Multiculture थी, लेकिन ये धीरे-धीरे Monoculture में बदलती चली गई। भिन्न भिन्न परिस्थितियों की वजह से किसान एक ही फसल उगाने लग गया। इस स्थिति को भी हमें मिलकर बदलना ही होगा। आज जब Climate Change की चुनौती बढ़ रही है, तो हमें अपने कार्यों की गति को भी बढ़ाना होगा। बीते वर्षों में इसी भावना को हमने किसानों की आय में बढ़ोतरी करने के लिए भी प्रोत्साहित किया है। किसान को सिर्फ फसल आधारित इनकम सिस्टम से बाहर निकालकर, उन्हें वैल्यू एडिशन और खेती के अन्य विकल्पों के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है और छोटे किसानों को इसकी बहुत जरूरत है और हमने पूरा ध्यान 100 में से 80 जो छोटे किसान हैं, उन पर लगाना ही है और हमारे किसानों के लिए, इसमें पशुपालन और मत्स्यपालन के साथ-साथ मधुमक्खी पालन, खेत में सौर ऊर्जा उत्पादन, कचरे से कंचन- यानि इथेनॉल, बायोफ्यूल जैसे विकल्प भी किसानों को दिए जा रहे हैं। मुझे खुशी है कि छत्तीसगढ़ समेत देश के किसान इन्हें तेज़ी से इन सारी नई-नई बातों को अपना रहे हैं। खेती के साथ-साथ में दो-चार और चीजों का विस्तार कर रहे हैं।

साथियों,

मौसम की स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार फसलों का उत्पादन, हमारी पारंपरिक कृषि की एक और ताकत है। जहां सूखा रहता है, वहां उस प्रकार की फसलों का उत्पादन होता है। जहां बाढ़ रहती है, पानी ज्यादा रहता है, जहां बर्फ रहती है, वहां उस प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। मौसम के हिसाब से उगाई जाने वाली इन फसलों में न्यूट्रिशन वैल्यू भी ज्यादा रहती है। विशेषरूप से जो हमारे मोटे अनाज- मिलेट्स हैं, उनका बहुत महत्व है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ये हमारे स्वास्थ्य को मज़बूती देते हैं। इसलिए आज की लाइफ स्टाइल से जिस प्रकार की बीमारियां बढ़ रही हैं, उनको देखते हुए हमारे इन मिलेट्स की डिमांड बहुत अधिक बढ़ रही है।

मेरे किसान भाईयों-बहनों,

आपको जानकर खुशी होगी भारत के प्रयासों से ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने अगले वर्ष यानि 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स घोषित किया है। ये मिलेट्स की खेती की हमारी परंपरा, हमारे अनाज को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर showcase करने का और नए बाज़ार तलाशने का बहुत बड़ा अवसर है। लेकिन इसके लिए अभी से काम करना पड़ेगा। आज इस अवसर पर मैं देश के सभी सामाजिक और शैक्षि‍क संगठनों से कहूंगा कि मिलेट्स से जुड़े फूड फेस्टिवल लगाएं, मिलेट्स में से नई-नई food varieties कैसे बनें, इसकी स्पर्धाएं करें क्योंकि 2023 में अगर दुनिया में हमें अपनी बात लेकर के जाना है तो हमें इन चीजों में नयापन लाना पड़ेगा और लोगों में भी जागरुकता बढ़ाएं। मिलेट्स से जुड़ी नई वेबसाइट्स भी बनाई जा सकती हैं, लोग आएं मिलेट्स से क्या-क्या बन सकता है, क्या कैसे बन सकता है, क्या फायदा हो सकता है, एक जागरुकता अभि‍यान चल सकता है। मैं मानता हूं कि इसके फायदे क्या होते हैं, इससे जुड़ी रोचक जानकारी हम इस वेबसाइट पर रख सकते हैं ताकि लोग उसके साथ जुड़ सकते हैं। मैं तो सभी राज्यों से भी आग्रह करूंगा कि आपका राज्य का एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट, आपकी एग्रीकल्चरल यूनिवर्स्‍िटीज, आपके साइंटिस्ट और प्रोग्रेसिव किसान इनमें से कोई टास्क फोर्स बनाईए और 2023 में जब विश्व मिलेट्स ईयर मनाता होगा तब भारत को उसे कैसे योगदान करे, भारत कैसे लीड करे, भारत के किसान उसमें कैसे फायेदा उठाएं, अभी से उसकी तैयारी करनी चाहिए।

साथियों,

साइंस और रिसर्च के समाधानों से अब मिलेट्स और अन्य अनाजों को और विकसित करना ज़रूरी है। मकसद ये कि देश के अलग-अलग हिस्सों में, अलग-अलग ज़रूरतों के हिसाब से इन्हें उगाया जा सके। आज जिन Crops की वैरायटी लॉन्च हुई हैं, उनमें इन प्रयासों की झलक भी हमें दिख रही है। मुझे ये भी बताया गया है कि इस समय देश में डेढ़ सौ से अधिक क्लस्टर्स में वहां की परिस्थितियों के मुताबिक कृषि तकनीकों पर प्रयोग चल रहे हैं।

साथियों,

खेती की जो हमारी पुरातन परंपरा है उसके साथ-साथ मार्च टू फ्यूचर भी उतना ही आवश्यक है। फ्यूचर की जब हम बात करते हैं तो उसके मूल में आधुनिक टेक्नॉलॉजी है, खेती के नए औज़ार हैं। आधुनिक कृषि मशीनों और उपकरणों को बढ़ावा देने के प्रयासों का परिणाम आज दिख रहा है। आने वाला समय स्मार्ट मशीनों का है, स्मार्ट उपकरणों का है। देश में पहली बार गांव की प्रॉपर्टी के दस्तावेज़ तैयार करने में ड्रोन की भूमिका हम देख रहे हैं। अब खेती में भी आधुनिक ड्रोन्स और सेंसर्स के उपयोग को बढ़ाना है। इससे खेती से जुड़ा हाई क्वालिटी डेटा हमें मिल सकता है। ये खेती की चुनौतियों से जुड़े रियल टाइम समाधान तैयार करने में भी मदद करेगा। हाल में लागू की गई नई ड्रोन नीति इसमें और सहायक सिद्ध होने वाली है।

साथियों,

बीज से लेकर बाज़ार तक का जो पूरा इकोसिस्टम है, देश उसे जो तैयार कर रहा है, उसे हमें लगातार आधुनिक बनाते रहना है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, डेटा एनालिटिक्स और ब्लॉक चेन टेक्नॉलॉजी, डिमांड और सप्लाई से जुड़ी चुनौतियों को दूर करने में बहुत मदद कर सकती हैं। हमें ऐसे innovations, ऐसे startups को प्रमोट करना है जो इन तकनीकों को गांव-गांव तक पहुंचा सकें। देश का हर किसान, विशेष रूप से छोटा किसान, इन नए उपकरणों, नई टेक्नॉलॉजी का उपयोग करेगा, तो कृषि सेक्टर में बड़े परिवर्तन आएंगे। किसानों को कम दाम में आधुनिक टेक्नॉलॉजी उपलब्ध कराने वाले startups के लिए भी ये बेहतरीन अवसर है। मैं देश के युवाओं से इस अवसर का लाभ उठाने का आग्रह करूंगा।

साथियों,

आज़ादी के इस अमृतकाल में हमें कृषि से जुड़े आधुनिक विज्ञान को गांव-गांव, घर-घर तक पहुंचाना है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसके लिए कुछ बड़े कदम उठाए गए हैं। हमें अब कोशिश करनी है कि मिडिल स्कूल लेवल तक कृषि से जुड़ी रिसर्च और टेक्नॉलॉजी हमारे स्कूली पाठयक्रम का भी हिस्सा बने। स्कूलों के स्तर पर ही हमारे विद्यार्थियों के पास ये विकल्प हो कि वो कृषि को करियर के रूप में चुनने के लिए खुद को तैयार कर सकें।

साथियों,

आज जो अभियान हमने शुरु किया है, इसको जनआंदोलन में बदलने के लिए हम सभी को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी है। देश को कुपोषण से मुक्ति देने के लिए जो अभियान चल रहा है, राष्ट्रीय पोषण मिशन को भी ये अभियान सशक्त करेगा। अब तो सरकार ने ये भी फैसला लिया है कि सरकारी योजना के तहत गरीबों को, स्कूलों में बच्चों को, फोर्टिफाइड चावल ही दिया जाएगा। हाल में ही मैंने अपने ओलंपिक चैंपियंस से कुपोषण को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए हर एक खि‍लाड़ी से मैने आग्रह किया था, कि आप कम से कम आने वाले एक-दो साल में कम से कम 75 स्कूलों में जाने का आग्रह किया था, वहां विद्यार्थि‍यों से पोषण के संबंध में बाते करें, खेल-कूद के संबंध में बाते करें, physical exercise के संबंध में बाते करें। आज मैं सभी शिक्षाविदों, सभी कृषि वैज्ञानिकों, सभी संस्थानों को कहूंगा कि आप भी आज़ादी के अमृत महोत्सव के लिए अपने लक्ष्य तय करें। 75 दिन का अभि‍यान उठा ले कोई, 75 गांवों को गोद लेकर के परिवर्तन का अभि‍यान उठा लें, 75 स्कूलों को जागरुक करके हर एक स्कूल को कोई काम में लगा दे, ऐसा एक अभियान अगर देश के हर जिले में अपने स्तर पर भी और संस्थानों के स्तर पर भी चलाया जा सकता है। इसमें नई फसलों, फोर्टिफाइड बीजों, जलवायु परिवर्तन से बचाव को लेकर किसानों को जानकारी दी जा सकती है। मुझे विश्वास है कि हम सबका प्रयास, ये सबका प्रयास बहुत महत्वूपर्ण है, हम सबका प्रयास मौसम के बदलाव से देश की खेती को बचाएगा, किसान की समृद्धि और देश के स्वास्थ्य की सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगा। एक बार फिर सभी किसान साथियों को, नई क्रॉप वैरायटी और नए राष्ट्रीय रिसर्च संस्थान के लिए मेरी तरफ से बहुत-बहुत बधाई। फिर से एक बार जो जिन यूनिवर्सिटियों ने आज पुरस्कार पाए ताकि वैज्ञानिक व्यवस्था ही, वैज्ञानिक मन ही, वैज्ञानिक तरीका ही चुनौतियों से मुक्ति पाने के उत्तम रास्ते दे सकता है, उन सबको मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं !

बहुत-बहुत धन्यवाद !

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