"हमारे इतिहास के कई ऐसे किस्से हैं जिन्हें भुला दिया गया है"
"विरासत के प्रति उदासीनता ने देश को बहुत नुकसान पहुंचाया"
"लोथल न केवल सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था, बल्कि यह भारत की समुद्री शक्ति और समृद्धि का प्रतीक भी था"
"लोथल जो हमें अपने इतिहास के कारण गर्व से भर देता है वह अब आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को आकार देगा"
"जब हम अपनी विरासत को संजोते हैं, तो हम उससे जुड़ी भावनाओं को संरक्षित करते हैं"
"पिछले 8 वर्षों में देश में जो विरासत विकसित की गई है वह हमें भारत की विरासत की विशालता की एक झलक दिखलाती है"

नमस्‍कार,

आप सभी ऐतिहासिक और विश्व धरोहर लोथल में प्रत्यक्ष रूप से मौजूद हैं। मैं तकनीक के माध्यम से दूर दिल्‍ली से आप से जुड़ा हूं, लेकिन मन मस्तिष्क में ये लग रहा है कि जैसे मैं वहां आप सबके बीच में ही हूं। अभी-अभी मैंने ड्रोन से National Maritime Heritage Complex से जुड़े कामों को देखा है, उनकी प्रगति की समीक्षा भी की है। मुझे संतोष है कि इस प्रोजेक्ट से जुड़ा काम तेज़ी से चल रहा है।

साथियों,

इस वर्ष लाल किले से पंच प्राणों की चर्चा करते हुए मैंने अपनी विरासत पर गर्व की बात कही थी। और अभी हमारे मुख्‍यमंत्री भूपेंद्र भाई ने भी उस बात का जिक्र किया है। हमारी समुद्री विरासत हमारे पूर्वजों की सौंपी गई ऐसी ही एक महान धरोहर है। किसी भी स्थान या समय का इतिहास आने वाली पीढ़ी को प्रेरित भी करता है और हमें भविष्य के लिए सचेत भी करता है। हमारे इतिहास की ऐसी अनेक गाथाएं हैं, जिन्हें भुला दिया गया, उन्हें सुरक्षित करने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के रास्ते नहीं खोजे गए। इतिहास की उन घटनाओं से हम कितना कुछ सीख सकते थे।

भारत की समुद्री विरासत भी ऐसा विषय है, जिसके बारे में बहुत कम चर्चा की गई है। सदियों पहले के भारत का व्यापार-कारोबार दुनिया के एक बड़े हिस्से में छाया हुआ था। हमारे रिश्ते दुनिया की हर सभ्यता के साथ रहे, तो इसके पीछे भारत की समुद्री शक्ति की बहुत बड़ी भूमिका थी। लेकिन गुलामी के लंबे कालखंड ने न सिर्फ भारत के इस सामर्थ्य को तोड़ा बल्कि समय के साथ हम भारतीय, अपने इस सामर्थ्य के प्रति उदासीन भी होते गए।

हम भूल गए कि हमारे पास लोथल और धोलावीरा जैसी महान धरोहरें हैं, जो हजारों वर्ष पहले भी समुद्री व्यापार के लिए मशहूर थी। हमारे दक्षिण में चोल साम्राज्य, चेर राजवंश, पांड्य राजवंश भी हुए, जिन्होंने समुद्री संसाधनों की शक्ति को समझा और उसे एक अभूतपूर्व ऊंचाई दी। उन्होंने न सिर्फ अपनी समुद्री शक्ति का विस्तार किया, बल्कि इसकी मदद से दूर-सुदूर के देशों तक व्यापार को ले जाने में भी सफल रहे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी एक सशक्त नौसेना का गठन किया और विदेशी आक्रांताओं को चुनौती दी।

ये सब कुछ भारत के इतिहास का ऐसा गौरवपूर्ण अध्याय है, जिसे नजरअंदाज ही कर दिया गया। आप कल्पना कर सकते हैं, हजारों वर्ष पहले कच्छ में बड़े-बड़े समुद्री जहाजों के निर्माण का पूरा उद्योग चला करता था। भारत में बने पानी के बड़े-बड़े जहाज, दुनिया भर में बेचे जाते थे। विरासत के प्रति इस उदासीनता ने देश का बहुत नुकसान किया। ये स्थिति बदलनी जरूरी है। इसलिए हमने तय किया कि धोलावीरा और लोथल को, भारत के गौरव के इन सेंटर्स को हम उसी रूप में लौटाएंगे, जिसके लिए कभी ये मशहूर थे। और आज हम उस मिशन पर तेजी से काम होते देख रहे हैं।

साथियों,

आज जब मैं लोथल की चर्चा कर रहा हूं तो मुझे हजारों साल से चली आ रही परंपराओं का भी ध्यान आ रहा है। आज गुजरात के कई इलाकों में सिकोतर माता की पूजा की जाती है। उन्हें समुद्र की देवी मानकर पूजा जाता है। हजारों वर्ष पूर्व के लोथल पर रिसर्च करने वाले जानकारों का मानना है कि उस समय भी सिकोतर माता को किसी न किसी रूप में पूजा जाता था। कहते हैं, समुद्र में आने से पहले सिकोतर देवी की पूजा की जाती थी, ताकि वो यात्रा में उनकी रक्षा करें। इतिहासकारों के मुताबिक सिकोतर माता का संबंध सोकोत्रा द्वीप से है, जो आज अदन की खाड़ी में है। इससे पता चलता है कि आज से हजारों साल पहले भी खंभात की खाड़ी से दूर-दूर तक समुद्री व्यापार के रास्ते खुले हुए थे।

साथियों,

हाल ही में वडनगर के पास भी खुदाई के दौरान सिकोतर माता के मंदिर का पता चला है। कुछ ऐसे साक्ष्य भी मिले हैं जिनसे प्राचीन काल में यहां से समुद्री व्यापार होने की जानकारी मिलती है। इसी तरह सुरेंद्रनगर के झिंझुवाडा गांव में लाइट हाउस होने के साक्ष्य मिले हैं। आप भी जानते हैं कि लाइट हाउस जहाजों को रात में रास्ता दिखाने के लिए बनाए जाते थे। और देश के लोग ये सुनकर आश्चर्य से भर जाएंगे कि झिंझुवाडा गांव से समुद्र करीब-करीब सौ किलोमीटर दूर है। लेकिन इस गांव में ऐसे अनेक साक्ष्य हैं जो बताते हैं कि सदियों पहले इस गांव में बहुत व्यस्त पोर्ट हुआ करता था। इससे इस पूरे क्षेत्र में प्राचीन काल से ही समुद्री व्यापार के समृद्ध होने की जानकारी मिलती है।

साथियों,

लोथल सिर्फ सिंधु घाटी सभ्यता का एक बड़ा व्यापारिक केंद्र ही नहीं था, बल्कि ये भारत के सामुद्रिक सामर्थ्य और समृद्धि का भी प्रतीक था। हजारों साल पहले लोथल को जिस तरीके से एक पोर्ट सिटी के रूप में विकसित किया गया था, वो आज भी बड़े-बड़े जानकारों को हैरान कर देता है। लोथल की खुदाई में मिले शहर, बाजार और बंदरगाह के अवशेष, उस दौर में हुई अर्बन प्लानिंग और आर्किटेक्चर के अद्भुत दर्शन कराते हैं। प्राकृतिक चुनौतियों से निपटने के लिए जिस प्रकार की व्यवस्था यहां थी, उसमें आज की प्लानिंग के लिए भी बहुत कुछ सीखने को है।

साथियों,

एक तरह से इस क्षेत्र को देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती दोनों का आशीर्वाद प्राप्त था। अनेकों देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों की वजह से यहां धनवर्षा भी होती थी। कहते हैं कि लोथल के पोर्ट पर उस समय 84 देशों के झंडे फहराया करते थे। इसी तरह, पास ही के वल्लभी विश्वविद्यालय में दुनिया के 80 से ज्यादा देशों के छात्र वहां पढ़ने के लिए आते थे। सातवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में आए चीनी दार्शनिकों ने भी लिखा है कि तब वल्लभी विश्वविद्यालय में 6 हजार से ज्यादा छात्र थे। यानि देवी सरस्वती की कृपा भी इस क्षेत्र पर बनी हुई थी।

साथियों,

लोथल में ये जो हेरिटेज कॉम्प्लेक्स बन रहा है, उसको ऐसे बनाया जा रहा है कि भारत का सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी इस इतिहास को आसानी से जान सके, समझ सके। इसमें अति आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके, बिल्कुल उसी युग को फिर से सजीव करने का प्रयास किया जा रहा है। हज़ारों वर्ष पहले का वही वैभव, वही सामर्थ्य, इस धरती पर फिर जागृत किया जा रहा है।

मुझे विश्वास है, ये दुनियाभर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का बहुत बड़ा केंद्र बनेगा। इस कॉम्प्लेक्स को, एक दिन में हजारों पर्यटकों के स्वागत के लिए विकसित किया जा रहा है। जैसे एकता नगर में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी में हर रोज पर्यटकों के आने का रिकॉर्ड बन रहा है, वैसे ही वो दिन दूर नहीं जब देश के कोने-कोने से लोथल में लोग इस हेरिटेज कॉम्प्लेक्स को देखने आएंगे। इससे यहां रोजगार और स्वरोजगार के हज़ारों नए अवसर बनेंगे। इस क्षेत्र को इस बात का भी लाभ मिलेगा कि ये अहमदाबाद से बहुत दूर नहीं है। भविष्य में ज्यादा से ज्यादा लोग शहरों से यहां आएंगे, यहां के टूरिज्म को बढ़ाएंगे।

साथियों,

इस क्षेत्र ने जितने कठिनाई भरे दिन देखे हैं, वो मैं कभी भूल नहीं सकता। एक समय में समंदर का विस्तार यहां तक था इसलिए बहुत बड़े इलाके में कुछ भी फसल पैदा करना मुश्किल था। 20-25 साल पहले लोगों ने तो यहां वो दिन देखे हैं कि जरूरत पड़ने पर सैकड़ों एकड़ जमीन के बदले भी कोई कर्ज नहीं देता था। कर्ज देने वाला भी कहता था कि जमीन का मैं क्या करूंगा, जमीन से कोई लाभ तो होगा नहीं। उस दौर से लोथल और इस पूरे क्षेत्र को आज हम बाहर निकालकर लाए हैं।

और साथियों,

लोथल और इस क्षेत्र का पुराना गौरव लौटाने के लिए हमारा फोकस सिर्फ हेरिटेज कॉम्प्लेक्स तक ही सीमित नहीं है। आज गुजरात के तटीय इलाकों में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के इतने काम हो रहे हैं, तटीय इलाकों में विभिन्न उद्योगों की स्थापना हो रही है। इन परियोजनाओं पर लाखों करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं।

अब सेमीकंडक्टर प्लांट भी यहां के गौरव को और बढ़ाएगा। हजारों वर्ष पहले लोथल और उसके आसपास का इलाका जितना विकसित था, वैसे ही इस क्षेत्र को फिर से विकसित बनाने के लिए हमारी सरकार पूरी शक्ति से काम कर रही है। जो लोथल अपने इतिहास की वजह से हमें गर्व से भरता है, वही लोथल अब आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को भी बनाएगा।

साथियों,

एक म्यूजियम सिर्फ चीजों या दस्तावेजों को संग्रहित करके रखने और दिखाने भर का माध्यम नहीं होता। जब हम अपनी विरासत को संजोते हैं तो उसके साथ-साथ उससे जुड़ी भावनाएं भी संरक्षित कर लेते हैं। जब हम देश भर में बन रहे आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों को देखते हैं, तो पता चलता है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हमारे वीर आदिवासी नायक-नायिकाओं का कितना बड़ा योगदान था। जब हम नेशनल वॉर मेमोरियल और नेशनल पुलिस मेमोरियल को देखते हैं तो हमें इस बात का एहसास होता है कि देश की रक्षा के लिए, देश को सुरक्षित रखने के लिए कैसे हमारे वीर बेटे-बेटियां, अपना जीवन न्योछावर कर देते हैं। जब हम प्रधानमंत्री संग्रहालय को देखते हैं तो हमें लोकतंत्र की शक्ति का पता चलता है, हमारे देश की 75 वर्षों की यात्रा की झलक मिलती है। केवड़िया, एकता नगर में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी हमें भारत की एकता और अखंडता के लिए हुए प्रयासों, तप और तपस्या की याद दिलाती है।

और आप सबको पता है एक बहुत बड़ा रिसर्च का काम चल रहा है। अब केवड़िया में सरदार पटेल स्‍टेच्‍यू जैसे बन रहा है, क्योंकि सरदार साहब ने राजे-रजवाड़ों सबको इकट्ठा करने का काम किया, तो वहीं पर जो राजे-रजवाड़े देश के जिन्होंने भारत की एकता और अखंडता के लिए राज शासन दे दिए, उनका भी एक म्यूजियम हम बना रहे हैं। अभी उसका डिजाइनिंग का काम चल रहा है, रिसर्च का काम चल रहा है। उसके कारण पहले राजे-रजवाड़े कैसे हुआ करते थे, क्‍या-क्‍या करते थे, कितना बड़ा देश-समाज का भला करने का काम किया था, और उसी को सरदार साहब के नेतृत्व में देश की एकता के लिए कैसे, यानी पूरा चक्र, एकता नगर में कोई जाएगा तो राजे-रजवाड़े से ले करके सरदार साहब तक की यात्रा में किस प्रकार के भारत का एकीकरण हुआ, वो काम वहां हो रहा है और रिसर्च का काम चल रहा है, निकट भविष्य में निर्माण कार्य भी शुरू होगा।

बीते 8 वर्षों में हमने ये जो धरोहरें देश में विकसित की हैं, इनसे भी पता चलता है कि हमारी विरासत का विस्तार कितना बड़ा है। मुझे विश्वास है, लोथल में बन रहा National Maritime Museum भी सभी भारतीयों को अपनी समुद्री विरासत को लेकर गर्व से भर देगा। लोथल अपने पुराने वैभव के साथ फिर दुनिया के सामने आएगा, इसी विश्वास के साथ आप सभी का बहुत-बहुत आभार! आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

और यहाँ लोथल में ये सब भाई-बहन बैठे हैं, तो अब दीपावली सामने आ रही है तो, आप सभी को आने वाले दिनों की और दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं और गुजरात में तो नया साल भी आता है, तो आपको नए साल की भी बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

बहुत-बहुत धन्यवाद सभी को।

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आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी में प्रधानमंत्री का भव्य स्वागत किया गया
November 19, 2025
Prime Minister pays homage to Sri Sathya Sai Baba at Prasanthi Nilayam
Prime Minister participates in Gaudan Ceremony organised by Sri Sathya Sai Central Trust

The Prime Minister, Shri Narendra Modi, reached Puttaparthi, Andhra Pradesh amidst the divine chants of Sai Ram and received a very warm welcome.

The Prime Minister paid homage to Sri Sathya Sai Baba at the Sai Kulwant Hall, Prasanthi Nilayam, and then proceeded to Omkar Hall for Darshan. He said that being in these sacred spaces is a reminder of Sri Sathya Sai Baba’s boundless compassion and lifelong commitment to uplifting humanity. He added that Sri Sathya Sai Baba’s message of selfless service continues to guide and inspire millions.

The Prime Minister also participated in the Gaudan Ceremony organised by the Sri Sathya Sai Central Trust, which has undertaken several noble initiatives, including significant work in the field of animal welfare. As part of the ceremony, farmers are being given cows, including Gir cows. The Prime Minister conveyed his good wishes and said that everyone must continue working for the welfare of society, following the ideals of Sri Sathya Sai Baba.

In a separate posts on X, the Prime Minister said;

“Amidst the divine chants of Sai Ram, reached Puttaparthi, Andhra Pradesh to a very warm welcome.” 

“Paid homage to Sri Sathya Sai Baba at the Sai Kulwant Hall, Prasanthi Nilayam and went to Omkar Hall for Darshan. Being in these sacred spaces is a reminder of his boundless compassion and lifelong commitment to uplifting humanity. His message of selfless service continues to guide and inspire millions.”

“Among the many noble deeds they are doing, the Sri Sathya Sai Central Trust has focused greatly on animal welfare. Today, took part in the Gaudan Ceremony, in which farmers are being given cows. The cows in the pictures below are Gir Cows! May we all keep working for the welfare of our society, as shown by Sri Sathya Sai Baba.”