"उज्जैन ने हजारों वर्षों तक भारत के धन और समृद्धि, ज्ञान और सम्मान, सभ्यता और साहित्य का नेतृत्व किया है"
उज्जैन के हर कण में अध्यात्म समाया हुआ है और यह कोने-कोने में ईश्वरीय ऊर्जा का संचार करता है"
"सफलता के शिखर तक पहुंचने के लिए जरूरी है कि राष्ट्र अपने सांस्कृतिक उत्कर्ष को छुए और अपनी पहचान के साथ गौरव से सर उठाकर खड़ा हो जाए"
"आज़ादी के अमृत काल में भारत ने ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’और 'अपनी विरासत में गर्व' जैसे पंच प्रणों का आह्वान किया है"
"मेरा मानना है, हमारे ज्योतिर्लिंगों का विकास भारत की आध्यात्मिक ज्योति का विकास, भारत के ज्ञान और दर्शन का विकास है"
"भारत का सांस्कृतिक दर्शन एक बार फिर शिखर पर पहुंच रहा है और दुनिया का मार्गदर्शन करने के लिए तैयार हो रहा है"
"भारत अपने आध्यात्मिक आत्मविश्वास के कारण हजारों वर्षों से अमर है"
"भारत के लिए धर्म का अर्थ है हमारे कर्तव्यों का सामूहिक संकल्प"
"आज का नया भारत अपने प्राचीन मूल्यों के साथ आगे बढ़ रहा है, तो आस्था के साथ-साथ विज्ञान और शोध की परंपरा को पुनर्जीवित कर रहा है"
"भारत अपने गौरव, वैभव की पुनर्स्थापना कर रहा है और इसका लाभ पूरे विश्व और पूरी मानवता को मिलेगा"
"भारत की दिव्यता शांतिपूर्ण विश्व का मार्ग प्रशस्त करेगी"

हर हर महादेव ! जय श्री महाकाल, जय श्री महाकाल महाराज की जय ! महाकाल महादेव, महाकाल महा प्रभो। महाकाल महारुद्र, महाकाल नमोस्तुते॥ उज्जैन की पवित्र पुण्यभूमि पर इस अविस्मरणीय कार्यक्रम में उपस्थित देश भर से आए सभी चरण-वंद्य संतगण, सम्मानीय साधु-संन्यासी गण, मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्रीमान मंगूभाई पटेल, छत्तीसगढ़ की राज्यपाल बहन अनुसुइया उईके जी, झारखंड के राज्यपाल श्रीमान रमेश बैंस जी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भाई शिवराज सिंह चौहान जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी, राज्य सरकार के मंत्रिगण, सांसदगण, विधायकगण, भगवान महाकाल के सभी कृपापात्र श्रद्धालुगण, देवियों और सज्जनों, जय महाकाल!

उज्जैन की ये ऊर्जा, ये उत्साह! अवंतिका की ये आभा, ये अद्भुतता, ये आनंद! महाकाल की ये महिमा, ये महात्म्य! ‘महाकाल लोक’ में लौकिक कुछ भी नहीं है। शंकर के सानिध्य में साधारण कुछ भी नहीं है। सब कुछ अलौकिक है, असाधारण है। अविस्मरणीय है, अविश्वसनीय है। मैं आज महसूस कर रहा हूँ, हमारी तपस्या और आस्था से जब महाकाल प्रसन्न होते हैं, तो उनके आशीर्वाद से ऐसे ही भव्य स्वरूपों का निर्माण होता है। और, महाकाल का आशीर्वाद जब मिलता हैं तो काल की रेखाएँ मिट जाती हैं, समय की सीमाएं सिमट जाती हैं, और अनंत के अवसर प्रस्फुटित हो जाते हैं। अंत से अनंत यात्रा आरंभ हो जाती है। महाकाल लोक की ये भव्यता भी समय की सीमाओं से परे आने वाली कई-कई पीढ़ियों को अलौकिक दिव्यता के दर्शन कराएगी, भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को ऊर्जा देगी। मैं इस अद्भुत अवसर पर राजाधिराज महाकाल के चरणों में शत् शत् नमन करता हूँ। मैं आप सभी को, देश और दुनिया में महाकाल के सभी भक्तों को हृदय से बहुत – बहुत बधाई देता हूँ। विशेष रूप से, मैं शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार, उनका मैं हृदय से अभिनंदन करता हूँ, जो लगातार इतने समर्पण से इस सेवायज्ञ में लगे हुये हैं। साथ ही, मैं मंदिर ट्रस्ट से जुड़े सभी लोगों का, संतों और विद्वानों का भी आदरपूवर्क धन्यवाद करता हूँ जिनके सहयोग ने इस प्रयास को सफल किया है।

साथियों,

महाकाल की नगरी उज्जैन के बारे में हमारे यहाँ कहा गया है- “प्रलयो न बाधते तत्र महाकालपुरी” अर्थात्, महाकाल की नगरी प्रलय के प्रहार से भी मुक्त है। हजारों वर्ष पूर्व जब भारत का भौगोलिक स्वरूप आज से अलग रहा होगा, तब से ये माना जाता रहा है कि उज्जैन भारत के केंद्र में है। एक तरह से, ज्योतिषीय गणनाओं में उज्जैन न केवल भारत का केंद्र रहा है, बल्कि ये भारत की आत्मा का भी केंद्र रहा है। ये वो नगर है, जो हमारी पवित्र सात पुरियों में से एक गिना जाता है। ये वो नगर है, जहां स्वयं भगवान कृष्ण ने भी आकर शिक्षा ग्रहण की थी। उज्जैन ने महाराजा विक्रमादित्य का वो प्रताप देखा है, जिसने भारत के नए स्वर्णकाल की शुरुआत की थी। महाकाल की इसी धरती से विक्रम संवत के रूप में भारतीय कालगणना का एक नया अध्याय शुरू हुआ था। उज्जैन के क्षण-क्षण में,पल-पल में इतिहास सिमटा हुआ है, कण-कण में आध्यात्म समाया हुआ है, और कोने-कोने में ईश्वरीय ऊर्जा संचारित हो रही है। यहाँ काल चक्र का, 84 कल्पों का प्रतिनिधित्व करते 84 शिवलिंग हैं। यहाँ 4 महावीर हैं, 6 विनायक हैं, 8 भैरव हैं, अष्टमातृकाएँ हैं, 9 नवग्रह हैं, 10 विष्णु हैं, 11 रुद्र हैं, 12 आदित्य हैं, 24 देवियाँ हैं, और 88 तीर्थ हैं। और इन सबके केंद्र में राजाधिराज कालाधिराज महाकाल विराजमान हैं। यानि, एक तरह से हमारे पूरे ब्रह्मांड की ऊर्जा को हमारे ऋषियों ने प्रतीक स्वरूप में उज्जैन में स्थापित किया हुआ है। इसीलिए, उज्जैन ने हजारों वर्षों तक भारत की संपन्नता और समृद्धि का, ज्ञान और गरिमा का, सभ्यता और साहित्य का नेतृत्व किया है। इस नगरी का वास्तु कैसा था, वैभव कैसा था, शिल्प कैसा था, सौन्दर्य कैसा था, इसके दर्शन हमें महाकवि कालिदास के मेघदूतम् में होते हैं। बाणभट्ट जैसे कवियों के काव्य में यहाँ की संस्कृति और परम्पराओं का चित्रण हमें आज भी मिलता है। यही नहीं, मध्यकाल के लेखकों ने भी यहाँ के स्थापत्य और वास्तुकला का गुणगान किया है।

भाइयों और बहनों,

किसी राष्ट्र का सांस्कृतिक वैभव इतना विशाल तभी होता है, जब उसकी सफलता का परचम, विश्व पटल पर लहरा रहा होता है। और, सफलता के शिखर तक पहुँचने के लिए भी ये जरूरी है कि राष्ट्र अपने सांस्कृतिक उत्कर्ष को छुए, अपनी पहचान के साथ गौरव से सर उठाकर के खड़ा हो जाए। इसीलिए, आजादी के अमृतकाल में भारत ने ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ और अपनी ‘विरासत पर गर्व’ जैसे पंचप्राण का आह्वान किया हैं। इसीलिए, आज अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण पूरी गति से हो रहा है। काशी में विश्वनाथ धाम, भारत की सांस्कृतिक राजधानी का गौरव बढ़ा रहा है। सोमनाथ में विकास के कार्य नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। उत्तराखंड में बाबा केदार के आशीर्वाद से केदारनाथ-बद्रीनाथ तीर्थ क्षेत्र में विकास के नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। आजादी के बाद पहली बार चारधाम प्रोजेक्ट के जरिए हमारे चारों धाम ऑल वेदर रोड्स से जुड़ने जा रहे हैं। इतना ही नहीं, आजादी के बाद पहली बार करतारपुर साहिब कॉरिडॉर खुला है, हेमकुंड साहिब रोपवे से जुड़ने जा रहा है। इसी तरह, स्वदेश दर्शन और प्रासाद योजना से देशभर में हमारी आध्यात्मिक चेतना के ऐसे कितने ही केन्द्रों का गौरव पुनर्स्थापित हो रहा है। और अब इसी कड़ी में, ये भव्य, अतिभव्य ‘महाकाल लोक’ भी अतीत के गौरव के साथ भविष्य के स्वागत के लिए तैयार हो चुका है। आज जब हम उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक अपने प्राचीन मंदिरों को देखते हैं, तो उनकी विशालता, उनका वास्तु हमें आश्चर्य से भर देता है। कोणार्क का सूर्य मंदिर हो या महाराष्ट्र में एलोरा का कैलाश मंदिर, ये विश्व में किसे विस्मित नहीं कर देते? कोणार्क सूर्य मंदिर की तरह ही गुजरात का मोढेरा सूर्य मंदिर भी है, जहां सूर्य की प्रथम किरणें सीधे गर्भगृह तक प्रवेश करती हैं। इसी तरह, तमिलनाडू के तंजौर में राजाराज चोल द्वारा बनवाया गया बृहदेश्वर मंदिर है।

कांचीपुरम में वरदराजा पेरुमल मंदिर है, रामेश्वरम में रामनाथ स्वामी मंदिर है। बेलूर का चन्नकेशवा मंदिर है, मदुरई का मीनाक्षी मंदिर है, तेलंगाना का रामप्पा मंदिर है, श्रीनगर में शंकराचार्य मंदिर है। ऐसे कितने ही मंदिर हैं, जो बेजोड़ हैं, कल्पनातीत हैं, ‘न भूतो न भविष्यति’ के जीवंत उदाहरण हैं। हम जब इन्हें देखते हैं तो हम सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि उस दौर में, उस युग में किस तकनीक से ये निर्माण हुये होंगे। हमारे सारे प्रश्नों के उत्तर हमें भले ही न मिलते हों, लेकिन इन मंदिरों के आध्यात्मिक सांस्कृतिक संदेश हमें उतनी ही स्पष्टता से आज भी सुनाई देते हैं। जब पीढ़ियाँ इस विरासत को देखती हैं, उसके संदेशों को सुनती हैं, तो एक सभ्यता के रूप में ये हमारी निरंतरता और अमरता का जरिया बन जाता है। ‘महाकाल लोक’ में ये परंपरा उतने ही प्रभावी ढंग से कला और शिल्प के द्वारा उकेरी गई है। ये पूरा मंदिर प्रांगण शिवपुराण की कथाओं के आधार पर तैयार किया गया है। आप यहाँ आएंगे तो महाकाल के दर्शन के साथ ही आपको महाकाल की महिमा और महत्व के भी दर्शन होंगे। पंचमुखी शिव, उनके डमरू, सर्प, त्रिशूल, अर्धचंद्र और सप्तऋषि, इनके भी उतने ही भव्य स्वरूप यहाँ स्थापित किए गए हैं। ये वास्तु, इसमें ज्ञान का ये समावेश, ये महाकाल लोक को उसके प्राचीन गौरव से जोड़ देता है। उसकी सार्थकता को और भी बढ़ा देता है।

भाइयों और बहनों,

हमारे शास्त्रों में एक वाक्य है- ‘शिवम् ज्ञानम्’। इसका अर्थ है, शिव ही ज्ञान हैं। और, ज्ञान ही शिव है। शिव के दर्शन में ही ब्रह्मांड का सर्वोच्च ‘दर्शन’ है। और, ‘दर्शन’ ही शिव का दर्शन है। इसलिए मैं मानता हूँ, हमारे ज्योतिर्लिंगों का ये विकास भारत की आध्यात्मिक ज्योति का विकास है, भारत के ज्ञान और दर्शन का विकास है। भारत का ये सांस्कृतिक दर्शन एक बार फिर शिखर पर पहुँचकर विश्व के मार्गदर्शन के लिए तैयार हो रहा है।

साथियों,

भगवान् महाकाल एकमात्र ऐसे ज्योतिर्लिंग हैं जो दक्षिणमुखी हैं। ये शिव के ऐसे स्वरूप हैं, जिनकी भस्म आरती पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। हर भक्त अपने जीवन में भस्म आरती के दर्शन जरूर करना चाहता है। भस्म आरती का धार्मिक महत्व यहाँ उपस्थित आप सब संतगण ज्यादा गहराई से बता पाएंगे, लेकिन, मैं इस परंपरा में हमारे भारत की जीवटता और जीवंतता के दर्शन भी करता हूँ। मैं इसमें भारत के अपराजेय अस्तित्व को भी देखता हूँ। क्योंकि, जो शिव ‘सोयं भूति विभूषण:’ हैं, अर्थात्, भस्म को धारण करने वाले हैं, वो ‘सर्वाधिपः सर्वदा’ भी हैं। अर्थात, वो अनश्वर और अविनाशी भी हैं। इसलिए, जहां महाकाल हैं, वहाँ कालखण्डों की सीमाएं नहीं हैं। महाकाल की शरण में विष में भी स्पंदन होता है। महाकाल के सानिध्य में अवसान से भी पुनर्जीवन होता है। अंत से भी अनंत की यात्रा आरंभ होती है। यही हमारी सभ्यता का वो आध्यात्मिक आत्मविश्वास है जिसके सामर्थ्य से भारत हजारों वर्षों से अमर बना हुआ है। अजरा अमर बना हुआ है। अब तक हमारी आस्था के ये केंद्र जागृत हैं, भारत की चेतना जागृत है, भारत की आत्मा जागृत है। अतीत में हमने देखा है, प्रयास हुये, परिस्थितियाँ बदलीं, सत्ताएं बदलीं, भारत का शोषण भी हुआ, आज़ादी भी गई। इल्तुतमिश जैसे आक्रमणकारियों ने उज्जैन की ऊर्जा को भी नष्ट करने के प्रयास किए। लेकिन हमारे ऋषियों ने कहा है- चंद्रशेखरम् आश्रये मम् किम् करिष्यति वै यमः? अर्थात्, महाकाल शिव की शरण में अरे मृत्यु भी हमारा क्या कर लेगी? और इसलिए, भारत अपनी आस्था के इन प्रामाणिक केन्द्रों की ऊर्जा से फिर पुनर्जीवित हो उठा, फिर उठ खड़ा हुआ। हमने फिर अपने अमरत्व की वैसी ही विश्वव्यापी घोषणा कर दी। भारत ने फिर महाकाल के आशीष से काल के कपाल पर कालातीत अस्तित्व का शिलालेख लिख दिया। आज एक बार फिर, आजादी के इस अमृतकाल में अमर अवंतिका भारत के सांस्कृतिक अमरत्व की घोषणा कर रही है। उज्जैन जो हजारों वर्षों से भारतीय कालगणना का केंद्र बिन्दु रहा है, वो आज एक बार फिर भारत की भव्यता के एक नए कालखंड का उद्घोष कर रहा है।

साथियों,

भारत के लिए धर्म का अर्थ है, हमारे कर्तव्यों का सामूहिक संकल्प! हमारे संकल्पों का ध्येय है, विश्व का कल्याण, मानव मात्र की सेवा। हम शिव की आराधना में भी कहते हैं- नमामि विश्वस्य हिते रतम् तम्, नमामि रूपाणि बहूनि धत्ते! अर्थात्, हम उन विश्वपति भगवान शिव को नमन करते हैं, जो अनेक रूपों से पूरे विश्व के हितों में लगे हैं। यही भावना हमेशा भारत के तीर्थों, मंदिरों, मठों और आस्था केन्द्रों की भी रही है। यहाँ महाकाल मंदिर में पूरे देश और दुनिया से लोग आते हैं। सिंहस्थ कुम्भ लगता है तो लाखों लोग जुटते हैं। अनगिनत विविधताएं भी एक मंत्र, एक संकल्प लेकर एक साथ जुट सकती हैं, इसका इससे बड़ा और उदाहरण क्या हो सकता है? और हम जानते हैं हजारों साल से हमारे कुंभ मेले की परंपरा बहुत ही सामुहिक मंथन के बाद जो अमृत निकलता है उससे संकल्प लेकर के बारह साल तक उसको क्रियान्वित करने की परंपरा रही थी। फिर बारह साल के बाद जब कुंभ होता था, फिर एक बार अमृत मंथन होता था। फिर संकल्प लिया जाता था। फिर बारह साल के लिए चल पड़ते थे। पिछले कुंभ के मेले में मुझे यहां आने का सौभाग्य मिला था। महाकाल का बुलावा आया और ये बेटा आए बिना कैसे रह सकता है। और उस समय कुंभ की जो हजारों साल की पुरानी परंपरा उस समय जो मन मस्तिष्क में मंथन चल रहा था, जो विचार प्रवाह बह रहा था। मां क्षिप्रा के तट पे अनेक विचारों से मैं घिरा हुआ था। और उसी में से मन कर गया, कुछ शब्द चल पड़े, पता नहीं कहां से आए, कैसे आए, और जो भाव पैदा हुआ था। वो संकल्प बन गया। आज वो सृष्टि के रूप में नजर आ रहा है दोस्तों। मैं ऐसे साथियों को बधाई देता हूं जिन्होंने उस समय के उस भाव को आज चरितार्थ करके दिखाया है। सबके मन में शिव और शिवत्व के लिए समर्पण, सबके मन में क्षिप्रा के लिए श्रद्धा, जीव और प्रकृति के लिए संवेदानशीलता, और इतना बड़ा समागम! विश्व के हित के लिए, विश्व की भलाई के लिए कितनी प्रेरणाएं यहाँ निकल सकती हैं?

भाइयों और बहनों,

हमारे इन तीर्थों ने सदियों से राष्ट्र को संदेश भी दिये हैं, और सामर्थ्य भी दिया है। काशी जैसे हमारे केंद्र धर्म के साथ-साथ ज्ञान, दर्शन और कला की राजधानी भी रहे। उज्जैन जैसे हमारे स्थान खगोलविज्ञान, एस्ट्रॉनॉमी से जुड़े शोधों के शीर्ष केंद्र रहे हैं। आज नया भारत जब अपने प्राचीन मूल्यों के साथ आगे बढ़ रहा है, तो आस्था के साथ साथ विज्ञान और शोध की परंपरा को भी पुनर्जीवित कर रहा है। आज हम एस्ट्रॉनॉमी के क्षेत्र में दुनिया की बड़ी ताकतों के बराबर खड़े हो रहे हैं। आज भारत दूसरे देशों की सैटिलाइट्स भी स्पेस में लॉंच कर रहा है। मिशन चंद्रयान और मिशन गगनयान जैसे अभियानों के जरिए भारत आकाश की वो छलांग लगाने के लिए तैयार है, जो हमें एक नई ऊंचाई देगी। आज रक्षा के क्षेत्र में भी भारत पूरी ताकत से आत्मनिर्भता की ओर आगे बढ़ रहा है। इसी तरह, आज हमारे युवा स्कील हो, स्पोर्टस हो, स्पोर्ट्स से स्टार्टअप्स, एक-एक चीज नई नए स्टार्टअप के साथ, नए यूनिकार्न के साथ हर क्षेत्र में भारत की प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं।

और भाइयों बहनों,

हमें ये भी याद रखना है, ये न भूलें, जहां innovation है, वहीं पर renovation भी है। हमने गुलामी के कालखंड में जो खोया, आज भारत उसे renovate कर रहा है, अपने गौरव की, अपने वैभव की पुनर्स्थापना हो रही है। और इसका लाभ, सिर्फ भारत के लोगों को नहीं, विश्वास रखिये साथियों, महाकाल के चरणों में बैठे हैं, विश्वास से भर जाइये। और मैं विश्वास से कहता हूं इसका लाभ पूरे विश्व को मिलेगा, पूरी मानवता को मिलेगा। महाकाल के आशीर्वाद से भारत की भव्यता पूरे विश्व के विकास के लिए नई संभावनाओं को जन्म देगी। भारत की दिव्यता पूरे विश्व के लिए शांति के मार्ग प्रशस्त करेगी। इसी विश्वास के साथ, भगवान महाकाल के चरणों में मैं एक बार फिर सिर झुकाकर के प्रणाम करता हूँ। मेरे साथ पूरे भक्ति भाव से बोलिये जय महाकाल! जय जय महाकाल, जय जय महाकाल, जय जय महाकाल, जय जय महाकाल, जय जय महाकाल, जय जय महाकाल, जय जय महाकाल।

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Prime Minister condoles loss of lives in fire mishap in Arpora, Goa
December 07, 2025
Announces ex-gratia from PMNRF

The Prime Minister, Shri Narendra Modi has condoled the loss of lives in fire mishap in Arpora, Goa. Shri Modi also wished speedy recovery for those injured in the mishap.

The Prime Minister informed that he has spoken to Goa Chief Minister Dr. Pramod Sawant regarding the situation. He stated that the State Government is providing all possible assistance to those affected by the tragedy.

The Prime Minister posted on X;

“The fire mishap in Arpora, Goa is deeply saddening. My thoughts are with all those who have lost their loved ones. May the injured recover at the earliest. Spoke to Goa CM Dr. Pramod Sawant Ji about the situation. The State Government is providing all possible assistance to those affected.

@DrPramodPSawant”

The Prime Minister also announced an ex-gratia from PMNRF of Rs. 2 lakh to the next of kin of each deceased and Rs. 50,000 for those injured.

The Prime Minister’s Office posted on X;

“An ex-gratia of Rs. 2 lakh from PMNRF will be given to the next of kin of each deceased in the mishap in Arpora, Goa. The injured would be given Rs. 50,000: PM @narendramodi”