दिनकर जी के सभी आदरणीय परिवार-जन, साहित्य-प्रेमी भाईयों और बहनों,
ये मेरा सौभाग्य है कि आज शब्द-ब्रहम की इस उपासना के पर्व पर मुझे भी पुजारी बन करके, शरीक होने का आप लोगों ने सौभाग्य दिया है। हमारे यहां शब्द को ब्रहम माना है। शब्द के सामर्थ्य को ईश्वर की बराबरी के रूप में स्वीकार किया गया है।
किसी रचना के 50 वर्ष मनाना, वो इसलिए नहीं मना जाते कि रचना को 50 साल हो गये हैं, लेकिन 50 साल के बाद भी उस रचना ने हमें जिंदा रखा है। 50 साल के बाद उस रचना ने हमें प्रेरणा दी है और 50 साल के बाद भी हम आने वाले युग को उसी नज़रिये से देखने के लिए मजबूर होते हैं, तब जा करके उसका सम्मान होता है।
जिनको आज के युग में हम साहित्यकार कहते हैं, क्योंकि वे साहित्य की रचना करते हैं, लेकिन दरअसल, वे ऋषि-तुल्य जीवन होते हैं, जो हम वेद और उपनिषद में ऋषियों के विषयों में पढ़ते हैं, वे उस युग के ऋषि होते हैं और ऋषि के नाते दृष्टा होते हैं, वो समाज को भली-भांति देखते भी हैं, तोलते भी हैं, तराशते भी हैं और हमें उसी में से रास्ता खोज करके भी देते हैं।
दिनकर जी का पूरा साहित्य खेत और खलिहान से निकला है। गांव और गरीब से निकला है। और बहुत सी साहित्यिक-रचना ऐसी होती है जो किसी न किसी को तो स्पर्श करती है, कभी कोई युवा को स्पर्श करे, कभी बड़ों को स्पर्श करे, कभी पुरूष को स्पर्श करे, कभी नारी को स्पर्श करे, कभी किसी भू-भाग को, किसी घटना को स्पर्श करे। लेकिन बहुत कम ऐसी रचनाएं होती हैं, जो अबाल-वृद्ध सबको स्पर्श करती हो। जो कल, आज और आने वाली कल को भी स्पर्श करती है। वो न सिर्फ उसको पढ़ने वाले को स्पर्श करती है, लेकिन उसकी गूंज आने वाली पीढि़यों के लिए भी स्पर्श करने का सामर्थ्य रखती है। दिनकर जी कि ये सौगात, हमें वो ताकत देती है।
जय प्रकाश नारायण जी, जिन्होंने इस देश को आंदोलित किया है, उनकी उम्र को और युवा पीढ़ी के बीच बहुत फासला था, लेकिन जयप्रकाश जी की उम्र और युवा पीढ़ी की आंदोलन की शक्ति इसमें सेतु जोड़ने का काम दिनकर जी की कविताएं करती थीं। हर किसी को मालूम है भ्रष्टाचार के खिलाफ जब लड़ाई चली, तो यही तो दिनकर जी की कविता थी, जो अभी प्रसून जी गा रहे थे, वो ही तो कविता थी जो नौजवानों को जगाती थी, पूरे देश को उसने जगा दिया था और उस अर्थ में वे समाज को हर बार चुप बैठने नहीं देते थे। और जब तक समाज सोया है वो चैन से सो नहीं सकते थे। वे समाज को जगाये रखना चाहते थे, उसकी चेतना को, उसके अंर्तमन को आंदोलित करने के लिए, वे सिर्फ, अपने मनोभावों की अभिव्यक्ति कर-करके मुक्ति नहीं अनुभव करते थे। वे चाहते थे जो भीतर उनके आग है, वो आग चहुं ओर पहुंचे और वो ये नहीं चाहते थे कि वो आग जला दें, वो चाहते थे वो आग एक रोशनी बने, जो आने वाले रास्तों के लिए पथदर्शक बने। ये बहुत कम होता है।
मैं सरस्वती का पुजारी हूं और इसलिए शब्द के सामर्थ्य को मैं अनुभव करता हूं, कोई शब्द किस प्रकार से जीवन को बदल देता है, उस ताकत को मैं भली-भांति अनुभव कर सकता हूं। एक पुजारी के नाते मुझे मालूम है, एक उपासक के नाते मुझे मालूम है, और उस अर्थ में दिनकर जी ने अनमोल...अनमोल हमें, सौगात दी है, इस सौगात को आने वाले समय में, हमारी नई पीढ़ी को हम कैसे पहुंचाएं?
कभी-कभार हम शायद इस देश में हरेक पीढ़ी के हजारों ऐेसे कवि होंगे या साहित्य-प्रेमी होंगे। हजारों की तादाद में होंगे, ऐसा मैं मानता हूं। जो दिनकर जी की कविताएं मुखपाठ लगातार बोल सकते हैं, बोलते होंगे। ये छोटी बात नहीं है। जैसे कुछ लोग रामायण, महाभारत, वेद, उपनिषद उसकी श्लोक वगैरह जिस प्रकार से मुखपाठ बोलते हैं ऐसे दिनकर जी के शब्दों के पीछे रमण हुए हजारों लोग मिलेंगे। और उनको उसी में आनंद आता है उनको लगता है कि मैं दिनकर जी की बात आवाज पहुंचाऊंगा। मेरी बात लोग माने या न माने, दिनकर जी की बात दुनिया मानेगी।
और दिनकर जी को “पशुराम की प्रतीक्षा” थी और दिनकर जी अपने तराजू से भारत की सांस्कृतिक उतार-चढ़ाव को जिस प्रकार से उन्होंने शब्दों में बद्ध किया है। वे इसमें इतिहास भी है, इसमें सांस्कृतिक संवेदना भी है, और समय-समय पर भारत की दिखाई हुई विशालता, हर चीज को अपने में समेटने का सामर्थ्य, दिनकर जी ने जिस प्रकार से अनुभव किया है जो हर पल दिखाई देता है। और प्रकार से दिनकर जी के माध्यम से भारत को समझने की खिड़की हम खोल सकते हैं। अगर हममें सामर्थ्य हो तो हम द्वार भी खोल सकते हैं। लेकिन जरा भी सामर्थ्य न हो, तो खिड़की तो जरूर खोल सकते हैं। ये काम दिनकर जी हमारे बीच करके गये हैं।
दिनकर जी ने हमें कुछ कहा भी है, लेकिन शायद वो बातें भूलना अच्छा लगता है, इसलिए लोग भूल जाते हैं। एक बार, कुछ बुराईयां समाज में आती रहती हैं, हर बार आती रहती हैं। करीब हर प्रकार के अलग-अलग आती रहती हैं। लेकिन किसी ने जाति के आधार पर दिनकर जी के निकट जाने का प्रयास किया है, उनको लगा कि मैं आप की बिरादरी का हूं, आपकी जाति का हूं, तो आप मेरा हाथ पकड़ लीजिए अच्छा होगा। और ऐसा रहता है समाज में, लेकिन ऐसी परिस्थिति में भी दिनकर जी की सोच कितनी सटीक थी वरना, उस माहौल में कोई भी फिसल सकता है। और वो स्वयं राज्यसभा में थे राजनीतिक को निकटता से देखते थे, अनुभव करते थे, लेकिन उस माहौल से अपने आप को परे रखते हुए, उस व्यक्ति को उन्होंने मार्च 1961 को चिट्ठी लिखी थी। उस चिट्ठी में जो लिखा गया है बिहार को सुधारने का सबसे अच्छा रास्ता ये है, कि लोग जातिओं को भूलकर गुणवान के आदर में एक हों। याद रखिए कि एक या दो जातियों के समर्थन से राज्य नहीं चलता। वो बहुतों के समर्थन से चलता है, यदि जातिवाद से हम ऊपर नहीं उठें, तो बिहार का सार्वजनिक जीवन गल जाएगा। मार्च 1961 में लिखी हुई ये चिट्ठी, आज बिहार के लिए...आज भी उतना ही जागृत संदेश है। ये किसी राजनीति से परिचित के शब्द नहीं है, ये किसी शब्द-साधक के शब्द नहीं है, ये किसी साहित्य में रूचि रखने वाले सृजक के शब्द नहीं है, एक ऋषि तुल्य के शब्द हैं जिसको आने वाले कल दिखाई देती है और जिसके दिल में बिहार की आने वाली कल की चिंता सवार है और तब जाकर शब्द, अपने ही समाज के व्यक्ति को स्पष्ट शब्दों में कहने की ताकत रखता है।
बिहार को आगे ले जाना है, बिहार को आगे बढ़ाना है और ये बात मान कर चलिए हिंदुस्तान का पूर्वी हिस्सा अगर आगे नहीं बढ़ेगा, तो ये भारत माता कभी आगे नहीं बढ सकती। भारत का पश्चिमी छोर, वहां कितनी ही लक्ष्मी की वर्षा क्यों न होती हो, लेकिन पूरब से सरस्वती के मेल नहीं होता, तो मेरी पूरी भारत माता...मेरी पूरी भारत माता उजागर नहीं हो सकती और इसलिए हमारा सपना है कि पूर्वी हिन्दुस्तान कम से कम पश्चिम की बराबरी में तो आ जाएं। कोई कारण नहीं पीछे रहे। अगर बिहार आगे बढ़ता है, बंगाल आगे बढ़ता है, असम आगे बढ़ता है, पूर्वी उत्तर प्रदेश आगे बढ़ता है, नार्थ-ईस्ट आगे बढ़ता है, सारी दुनिया देखती रह जाएगी, हिन्दुस्तान किस तरह आगे बढ़ रहा है।
दिनकर जी का भी सपना था बिहार आगे बढ़े, बिहार तेजस्वी, ओजस्वी, ये बिहार, सपन्न भी हो। बिहार को तेज और ओज मिले किसी से किराए पर लेने की जरूरत नहीं। उसके पास है उसे संपन्नता के अवसर चाहिए, उसको आगे बढ़ने का अवसर चाहिए और बिहार में वो ताकत है, अगर एक बार अवसर मिल गया, तो बिहार औरों को पीछे छोड़कर आगे निकल जाएगा।
हम दिनकर जी के सपनों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और उनकी साहित्य रचना की 50 साल की यात्रा आज भी हमें कुछ करने की प्रेरणा देती है, सिर्फ गीत गुनगुनाने की नहीं। हमें कुछ कर दिखलाने की प्रेरणा देती है और इसलिए आज दिनकर जी को स्मरण करते हुए उनकी साहित्य रचना का स्मरण करते हुए इस सभागृह में हम फिर से एक बार अपने आप को संकल्पबद्ध करने के अवसर के रूप में उसे देंखे। और उस संकल्प की पूर्ति के लिए दिनकर जी के आर्शीवाद हम सब पर बने रहे और बिहार के सपनों को पूरा करने के लिए सामर्थ्य के साथ हम आगे बढ़ें।
इसी एक अपेक्षा के साथ आप सब के बीच मुझे आने का अवसर मिला। परिवारजनों को प्रणाम करने का अवसर मिला। मैं अपने आपको बहुत बड़ा सौभाग्यशाली मानता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
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Media Coverage
Nm on the go
Your Excellency, My Friend, राष्ट्रपति पुतिन,
दोनों देशों के delegates,
मीडिया के साथियों,
नमस्कार!
"दोबरी देन"!
आज भारत और रूस के तेईसवें शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति पुतिन का स्वागत करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। उनकी यात्रा ऐसे समय हो रही है जब हमारे द्विपक्षीय संबंध कई ऐतिहासिक milestones के दौर से गुजर रहे हैं। ठीक 25 वर्ष पहले राष्ट्रपति पुतिन ने हमारी Strategic Partnership की नींव रखी थी। 15 वर्ष पहले 2010 में हमारी साझेदारी को "Special and Privileged Strategic Partnership” का दर्जा मिला।
पिछले ढाई दशक से उन्होंने अपने नेतृत्व और दूरदृष्टि से इन संबंधों को निरंतर सींचा है। हर परिस्थिति में उनके नेतृत्व ने आपसी संबंधों को नई ऊंचाई दी है। भारत के प्रति इस गहरी मित्रता और अटूट प्रतिबद्धता के लिए मैं राष्ट्रपति पुतिन का, मेरे मित्र का, हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
Friends,
पिछले आठ दशकों में विश्व में अनेक उतार चढ़ाव आए हैं। मानवता को अनेक चुनौतियों और संकटों से गुज़रना पड़ा है। और इन सबके बीच भी भारत–रूस मित्रता एक ध्रुव तारे की तरह बनी रही है।परस्पर सम्मान और गहरे विश्वास पर टिके ये संबंध समय की हर कसौटी पर हमेशा खरे उतरे हैं। आज हमने इस नींव को और मजबूत करने के लिए सहयोग के सभी पहलुओं पर चर्चा की। आर्थिक सहयोग को नई ऊँचाइयों पर ले जाना हमारी साझा प्राथमिकता है। इसे साकार करने के लिए आज हमने 2030 तक के लिए एक Economic Cooperation प्रोग्राम पर सहमति बनाई है। इससे हमारा व्यापार और निवेश diversified, balanced, और sustainable बनेगा, और सहयोग के क्षेत्रों में नए आयाम भी जुड़ेंगे।
आज राष्ट्रपति पुतिन और मुझे India–Russia Business Forum में शामिल होने का अवसर मिलेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि ये मंच हमारे business संबंधों को नई ताकत देगा। इससे export, co-production और co-innovation के नए दरवाजे भी खुलेंगे।
दोनों पक्ष यूरेशियन इकॉनॉमिक यूनियन के साथ FTA के शीघ्र समापन के लिए प्रयास कर रहे हैं। कृषि और Fertilisers के क्षेत्र में हमारा करीबी सहयोग,food सिक्युरिटी और किसान कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है। मुझे खुशी है कि इसे आगे बढ़ाते हुए अब दोनों पक्ष साथ मिलकर यूरिया उत्पादन के प्रयास कर रहे हैं।
Friends,
दोनों देशों के बीच connectivity बढ़ाना हमारी मुख्य प्राथमिकता है। हम INSTC, Northern Sea Route, चेन्नई - व्लादिवोस्टोक Corridors पर नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ेंगे। मुजे खुशी है कि अब हम भारत के seafarersकी polar waters में ट्रेनिंग के लिए सहयोग करेंगे। यह आर्कटिक में हमारे सहयोग को नई ताकत तो देगा ही, साथ ही इससे भारत के युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर बनेंगे।
उसी प्रकार से Shipbuilding में हमारा गहरा सहयोग Make in India को सशक्त बनाने का सामर्थ्य रखता है। यह हमारेwin-win सहयोग का एक और उत्तम उदाहरण है, जिससे jobs, skills और regional connectivity – सभी को बल मिलेगा।
ऊर्जा सुरक्षा भारत–रूस साझेदारी का मजबूत और महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है। Civil Nuclear Energy के क्षेत्र में हमारा दशकों पुराना सहयोग, Clean Energy की हमारी साझा प्राथमिकताओं को सार्थक बनाने में महत्वपूर्ण रहा है। हम इस win-win सहयोग को जारी रखेंगे।
Critical Minerals में हमारा सहयोग पूरे विश्व में secure और diversified supply chains सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इससे clean energy, high-tech manufacturing और new age industries में हमारी साझेदारी को ठोस समर्थन मिलेगा।
Friends,
भारत और रूस के संबंधों में हमारे सांस्कृतिक सहयोग और people-to-people ties का विशेष महत्व रहा है। दशकों से दोनों देशों के लोगों में एक-दूसरे के प्रति स्नेह, सम्मान, और आत्मीयताका भाव रहा है। इन संबंधों को और मजबूत करने के लिए हमने कई नए कदम उठाए हैं।
हाल ही में रूस में भारत के दो नए Consulates खोले गए हैं। इससे दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क और सुगम होगा, और आपसी नज़दीकियाँ बढ़ेंगी। इस वर्ष अक्टूबर में लाखों श्रद्धालुओं को "काल्मिकिया” में International Buddhist Forum मे भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों का आशीर्वाद मिला।
मुझे खुशी है कि शीघ्र ही हम रूसी नागरिकों के लिए निशुल्क 30 day e-tourist visa और 30-day Group Tourist Visa की शुरुआत करने जा रहे हैं।
Manpower Mobility हमारे लोगों को जोड़ने के साथ-साथ दोनों देशों के लिए नई ताकत और नए अवसर create करेगी। मुझे खुशी है इसे बढ़ावा देने के लिए आज दो समझौतेकिए गए हैं। हम मिलकर vocational education, skilling और training पर भी काम करेंगे। हम दोनों देशों के students, scholars और खिलाड़ियों का आदान-प्रदान भी बढ़ाएंगे।
Friends,
आज हमने क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा की। यूक्रेन के संबंध में भारत ने शुरुआत से शांति का पक्ष रखा है। हम इस विषय के शांतिपूर्ण और स्थाई समाधान के लिए किए जा रहे सभी प्रयासों का स्वागत करते हैं। भारत सदैव अपना योगदान देने के लिए तैयार रहा है और आगे भी रहेगा।
आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में भारत और रूस ने लंबे समय से कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया है। पहलगाम में हुआ आतंकी हमला हो या क्रोकस City Hall पर किया गया कायरतापूर्ण आघात — इन सभी घटनाओं की जड़ एक ही है। भारत का अटल विश्वास है कि आतंकवाद मानवता के मूल्यों पर सीधा प्रहार है और इसके विरुद्ध वैश्विक एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताक़त है।
भारत और रूस के बीच UN, G20, BRICS, SCO तथा अन्य मंचों पर करीबी सहयोग रहा है। करीबी तालमेल के साथ आगे बढ़ते हुए, हम इन सभी मंचों पर अपना संवाद और सहयोग जारी रखेंगे।
Excellency,
मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में हमारी मित्रता हमें global challenges का सामना करने की शक्ति देगी — और यही भरोसा हमारे साझा भविष्य को और समृद्ध करेगा।
मैं एक बार फिर आपको और आपके पूरे delegation को भारत यात्रा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ।

