प्रधानमंत्री ने संघर्ष रोकने और पर्यावरण चेतना के लिए आयोजित वैश्विक हिंदू-बौद्ध पहल कार्यक्रम में भाग लिया
हम भारतीयों के लिए गर्व की बात है कि गौतम बुद्ध ने भारत की धरती से ही दुनिया को बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के बारे में बताया था: प्रधानमंत्री
गौतम बुद्ध का जीवन सेवा, दया भाव, और विशेष रूप से त्याग की शक्ति को दिखाता है: मोदी
जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौती है। इसके लिए व्यापक स्तर पर सामूहिक प्रयास करने की जरुरत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
पर्यावरण की अशुद्धि मन को प्रभावित करती है और मन का मैल पर्यावरण को: मोदी
हमें रक्तपात और हिंसा को रोकने के लिए विशेष रूप से सामूहिक और रणनीतिक प्रयास करने की जरूरत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
शक्ति बलपूर्वक नहीं बल्कि उत्कृष्ट विचारों एवं प्रभावी संवाद के माध्यम से प्राप्त करनी चाहिए: प्रधानमंत्री
संघर्ष-मुक्त विश्व का बीज बोने में बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म का बहुत बड़ा योगदान है: प्रधानमंत्री मोदी
गौतम बुद्ध द्वारा दिखाए गए मार्ग और आदर्शों को अपनाये बिना यह सदी एशियाई सदी नहीं बन सकती: प्रधानमंत्री मोदी
21वीं सदी में सभी देशों, धर्मों एवं राजनीतिक विचारधाराओं में भगवान बुद्ध का प्रभाव देखा जा सकता है: प्रधानमंत्री

 

“संवाद”, वैश्विक हिंदू बौद्ध पहल कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के भाषण के कुछ अंशः

अत्‍यंत सम्‍मानीय सायादा डॉ. आसिन न्‍यानिसारा, संस्‍थापक कुला‍धिपति, सितागु इंटरनेशनल बुद्धिस्‍ट अकादमी, म्‍यांमार,

महामहिम श्रीमती चन्द्रिका भंडारनायके कुमारतुंगा, पूर्व राष्‍ट्रपति श्रीलंका,

श्री मिनोरू कीयूची, विदेश मंत्री जापान,

पूज्‍य श्री श्री रविशंकर जी,

मेरे मंत्रिमंडलीय सहयोगी डॉ. महेश शर्मा और किरेन रिजिजू जी,

जनरल एन.सी. विज, निदेशक विवेकानन्‍द इंटरनेशनल फाउंडेशन,

श्री मासाहीरो अकियामा अध्‍यक्ष, दी टॉकियो फाउंडेशन जापान,

लामा लोबजांग,

प्रतिष्ठित धार्मिक और आध्‍यात्मिक अधिष्‍ठातागण, महासंघ के विशिष्‍टजन, धर्म गुरुजन,

संघर्ष निषेध और पर्यावरण चेतना के लिए विश्‍व हिन्‍दू-बौद्ध पहल, संवाद के उद्घाटन पर मुझे उपस्थित होने में अत्‍यंत हर्ष हो रहा है।

दुनिया के जिन देशों में बौद्ध धर्म जीवन पद्धति है, वहां से जो आध्‍यात्मिक अधिष्‍ठातागण, विद्वान और नेता यहां एकत्र हुए हैं, वह निश्चित रूप से एक अत्‍यंत उच्‍च सभा है।

यह बहुत हर्ष का विषय है कि यह सम्‍मेलन भारत के बोधगया में आयोजित हो रहा है। भारत इस प्रकार के सम्‍मेलन की मेजबानी करने के लिए एक आदर्श स्‍थान है। हम भारतीयों को इस बात पर बहुत गर्व है कि इसी भूमि से गौतम बुद्ध ने पूरी दुनिया को बौद्ध सिद्धांतों से परिचित कराया।

गौतम बुद्ध का जीवन सेवा, करूणा और सबसे महत्‍वपूर्ण त्‍याग की भावना को परिलक्षित करता है। वे बहुत संपन्‍न परिवार में पैदा हुए। उन्‍हें बहुत कम कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद वर्ष गुजरने के साथ-साथ उनमें मानवीय पीड़ा, रुग्‍णता, बुढ़ापा और मृत्‍यु के बारे में विशेष चेतना पैदा हुई।

वे इस बात पर दृढ़ थे कि भौतिक संपदा जीवन का उद्देश्‍य नहीं होती। मानवीय संघर्ष से उन्‍हें अरूचि थी। और, उसके बाद वे एक शांत और करूणामय समाज की रचना के लिए निकल पड़े। अपने समय में समाज को दर्पण दिखाने का साहस और दृढ़ता उन्‍होंने दिखाई। उन्‍होंने नकारात्‍मक गतिविधियों और तौर-तरीकों से मुक्‍त होने का रास्‍ता दिखाया।

गौतम बुद्ध क्रांतिवीर थे। उन्‍होंने ऐसे विश्‍वास का पोषण किया जिसके मूल में मानव ही है और कोई नहीं। मनुष्‍य के अंतर में ईश्‍वरत्‍व होता है। इस तरह उन्‍होंने ईश्‍वरविहीन विश्‍वास की रचना की। उन्‍होंने ऐसे विश्‍वास की रचना की, जहां अलौकिकता बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि मनुष्‍य के अंतर में निहित है। अपने सिद्धांत के तीन शब्‍द ‘अप्‍प दीपो भव’ यानी ‘अपना दीप स्‍वयं बनो’ के आधार पर गौतम बुद्ध ने मानवता को महान प्रबंधन सीख प्रदान की। उन्‍हें मानव पीड़ा को पैदा करने वाले विचारहीन संघर्षों से बहुत दु:ख होता था। उनके विश्‍व दृष्टिकोण में अहिंसा मूल सिद्धांत है।

गौतम बुद्ध का संदेश और उनकी सीख इस सम्‍मेलन की विषय वस्‍तु में स्‍पष्‍टता से व्‍यक्‍त हो रही है – संघर्ष निषेध, पर्यावरण चेतना और मुक्‍त तथा स्‍पष्‍ट संवाद की अवधारणा की विषय वस्‍तु।

ये तीनों विषय वस्‍तुएं एक-दूसरे से अलग प्रतीत होती हैं, लेकिन ये आपस में समावेशी हैं। वास्‍तव में ये आपस में एक-दूसरे पर निर्भर हैं और एक-दूसरे का समर्थन करती हैं।

पहली विषय वस्‍तु संघर्ष है, जो मनुष्‍यों, धर्मों, समुदायों और देशों- राज्‍यों तथा अराजक तत्‍वों और यहां तक कि पूरी दुनिया में व्‍याप्‍त है। असहिष्‍णु अराजक तत्‍व आज लम्‍बे भूभाग पर कब्‍जा कर चुके हैं और मासूम लोगों पर बर्बर हिंसा कर रहे हैं।

दूसरा संघर्ष प्रकृति और मनुष्‍य, प्रकृति और विकास और प्रकृति और विज्ञान के बीच चल रहा है। इन संघर्षों के हल के लिए आज ‘एक हाथ दे, एक हाथ ले’ का आधार ही काफी नहीं है, बल्कि इसके लिए संवाद की आवश्‍यकता है, ताकि उसे टाला जा सके।

खपत को निजी तौर पर कम करना और पर्यावरण चेतना संबंधी नैतिक मूल्‍य एशिया की दार्शनिक परम्‍पराओं, खासतौर से हिन्‍दुत्‍व और बौद्ध धर्म में बहुत गहराई में स्थित हैं।

बौद्ध धर्म ने, कन्‍फूशियसवाद, ताओवाद और शिन्‍टोवाद जैसे विश्‍वासों के साथ मिलकर पर्यावरण को सुरक्षित करने का महान दायित्‍व वहन किया है। हिन्‍दुत्‍व और बौद्ध धर्म धरतीमाता के अपने महान सिद्धांतों के आधार पर दृष्टिकोणों में बदलाव ला सकते हैं।

दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन एक गंभीर चुनौती है। इसके लिए सामुहिक मानव प्रयास और समेकित प्रत्‍युत्‍तर की आवश्‍यकता है। भारत में प्राचीनकाल से ही विश्‍वास और प्रकृति के बीच गहरा संबंध रहा है। बौद्ध धर्म और पर्यावरण एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

बौद्ध परम्‍परा अपने समस्‍त ऐतिहासिक और सांस्‍कृतिक अभिव्‍यक्तियों सहित प्राकृतिक विश्‍व के साथ अपने अंतर को जोड़ने के लिए प्रोत्‍साहित करती है, क्‍योंकि बौद्ध दृष्टिकोण से किसी भी वस्‍तु का भिन्‍न अस्तित्‍व नहीं है। पर्यावरण की अशुद्धता मन को प्रभावित करती है, और मन की अशुद्धता पर्यावरण को दूषित करती है। पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए हमें अपने मन को शुद्ध करना होगा।

पारिस्थित‍किीय संकट वास्‍तव में मन के असंतुलन की प्रतिच्‍छाया है। इसलिए भगवान बुद्ध ने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्‍यकता को बहुत महत्‍व दिया। उन्‍होंने जल संरक्षण के उपाय किये और भिक्षुओं को जल संसाधनों को दूषित करने से रोका। भगवान बुद्ध के उपदेशों में प्रकृति, वन, वृक्ष और समस्‍त जीवों का कल्‍याण महान भूमिका निभाता है।

मैंने एक पुस्‍तक ‘कन्‍वीनियंट एक्‍शन’ लिखी थी, जिसे भारत के पूर्व राष्‍ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्‍दुल कलाम ने विमोचित किया था। अपनी पुस्‍तक में मैंने मुख्‍यमंत्री के रूप में जलवायु परिवर्तन से निपटने के विषय में अपने अनुभवों को साझा किया है।

व्‍यक्तिगत रूप से वैदिक वांग्‍मय के अपने अध्‍ययन के आधार पर मुझे यह शिक्षा मिली कि मनुष्‍यों और प्रकृति-माता के बीच मजबूत बंधन होता है। हम सभी महात्‍मा गांधी के न्‍यास प्रणाली सिद्धांत के बारे में जानते हैं।

इस संदर्भ में मैं यह कहना चाहूंगा कि हमारी मौजूदा पीढ़ी का यह दायित्‍व है कि वह भावी पी‍ढ़ी के लिए समृद्ध प्राकृतिक संपदा को सुरक्षित रखने का प्रयास करे। विषय केवल जलवायु परितर्वन का नहीं है, बल्कि जलवायु न्‍याय का है। मैं फिर दोहराता हूं कि विषय केवल जलवायु परितर्वन का नहीं है, बल्कि जलवायु न्‍याय का है।

मेरा मानना है कि जलवायु परितर्वन का दुष्‍प्रभाव सबसे अधिक निर्धन और वंचित लोगों पर होता है। जब प्राकृतिक आपदा आती है, तो सबसे ज्‍यादा मुसीबत इन्‍हीं पर टूटती है। जब बाढ़ आती है, ये बेघर हो जाते हैं। जब भूकंप आता है, तो इनके घर तबाह हो जाते हैं। जब सूखा पड़ता है, सबसे ज्‍यादा प्रभाव इन पर पड़ता है और जब कड़के की ठंड पड़ती है, तब भी बे-घरबार लोग सबसे ज्‍यादा मुसीबतें झेलते हैं।

हम जलवायु परिवर्तन को इस तरह लोगों को प्रभावित करने नहीं दे सकते। इसलिए मैं मानता हूं कि चर्चा जलवायु परितर्वन की बजाय जलवायु न्‍याय पर हो।

तीसरी विषयवस्‍तु – संवाद को प्रोत्‍साहन – के मद्देनजर वैचारिक दृष्टिकोण के बजाय दार्शनिक दृष्टिकोण होना चाहिए। बिना उचित संवाद के संघर्ष निषेध की ये दोनों विषयवस्‍तुएं न तो संभव हैं और न कारगर।

हमारे संघर्ष के संकल्प तंत्रों में गंभीर सीमाएं अधिक से अधिक रूप  में स्पष्ट होती जा रही हैं। हमें रक्तपात और हिंसा को रोकने के लिए महत्वपूर्ण, सामूहिक और रणनीतिक प्रयास करने की जरूरत है। इस प्रकार यह आश्‍चर्यजनक नहीं है कि विश्‍व बौद्ध धर्म का संज्ञान ले रहा है। यह ऐतिहासिक एशियाई परंपराओं और मूल्यों की पहचान भी है जिसे संघर्ष को रोकने तथा  विचारधारा के रास्ते से दर्शन शास्‍त्र की ओर बढ़ने के लिए एक प्रतिमान के बदलाव के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। 

इस सम्मेलन की पूरी अवधारणा का सार, जिसमें पहले दो विषय संघर्ष को टालना और  पर्यावरण चेतना शामिल हैं, जिसमें परिचर्चा के ये भाग निहित हैं। ये हमारा "उन्‍हें बनाम हमें’’ के विचारधारा दृष्टिकोण से दार्शनिक विचारधारा की ओर बदलाव लाने का आह्वान करते हैं। विश्‍व की विचारधारा चाहे वह धार्मिक या धर्मनिरपेक्षता से दर्शन की ओर परिवर्तन करने की हो, उसके बारे में जानकारी दिए जाने की जरूरत है। पिछले साल जब मैंने संयुक्‍त राष्‍ट्र में संबोधन किया था, तो मैंने संक्षेप में यह उल्‍लेख किया था कि विश्‍व को वैचारिक दृष्टिकोण से दार्शनिक दृष्टिकोण में बदलाव करने की जरूरत है। एक दिन बाद मैंने विदेशी संबंधों की परिषद को संबोधित करते हुए इस अवधारणा का कुछ और विस्‍तार किया था। दर्शन का सार यह है कि वह सीमित विचारधारा नहीं है जबकि विचारधारा सीमित होती है इसलिए दर्शन न केवल परिचर्चा की अनुमति देता है बल्कि यह चर्चा के माध्यम से लगातार सत्य की खोज में रहता है। पूरा उपनिषद साहित्य चर्चाओं का ही संकलन है। विचारधारा केवल बिना रोके सत्‍य में विश्‍वास करती है इसलिए विचारधाराएं जो चर्चा के दरवाजे बंद कर देती हैं उनका झुकाव हिंसा की ओर होता है जबकि दर्शन हिंसा को बातचीत के द्वारा रोकने का प्रयत्‍न करता है। 

इस प्रकार हिंदू और बौद्ध धर्म इस बारे में अधिक दार्शनिक चिंतन वाले हैं और वे केवल विश्‍वास के तंत्र ही नहीं हैं। 

यह मेरा दृढ़ विश्‍वास है कि सभी समस्याओं का समाधान बातचीत से किया जा सकता है। पहले यह विश्‍वास था कि बल, शक्ति का सूचक है। अब, शक्ति को विचारधारा की सामर्थ्‍य और प्रभावी संवाद के माध्‍यम से ही प्राप्‍त करना चाहिए। हमने युद्ध के विनाशकारी प्रभावों को देखा है। 20 वीं शताब्‍दी के पहले 50 सालों में दुनिया में दो विश्‍व युद्धों की भयानकता देखी थी। 

अब, युद्ध की प्रकृति बदल रही है और खतरे बढ़ रहे हैं। अब एक बटन के दबाने से कुछ ही मिनटों में लाखों लोगों की जान जा सकती है या लंबा युद्ध छिड़ सकता है। 

हम सब यहां यह महत्‍वपूर्ण कर्तव्‍य निभाने के लिए एकत्रित हुए हैं ताकि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि हमारी भावी पीढ़ियां शांति, गरिमा और आपसी सम्मान का जीवन व्यतीत कर सकें। हमें संघर्ष मुक्‍त विश्‍व के बीज बोने की जरूरत है और इस प्रयास में बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म का  महान योगदान है। 

जब हम बातचीत के बारे में बात करते हैं तो  महत्‍वपूर्ण यह है कि बातचीत किस तरह की होनी चाहिए? यह वार्ता ऐसी होनी चाहिए जो क्रोध या प्रतिकार पैदा न करे। ऐसी वार्ता का सबसे बड़ा उदाहरण आदि शंकर और मंडण मिश्रा के बीच हुआ शास्‍त्रार्थ था। 

आधुनिक समय के लिए भी यह प्राचीन उदाहरण स्‍मरणीय और वर्णन योग्‍य है। आदि शंकर एक युवा जन थे जो धार्मिक कर्मकांडों को अधिक महत्‍व नहीं देते थे जबकि मंडण मिश्रा एक बुजुर्ग विद्वान थे जो अनुष्‍ठानों के अनुयायी थे और पशु बलि में भी विश्‍वास करते थे। 

आदि शंकराचार्य कर्मकांडों के ऊपर चर्चा और बहस के माध्‍यम से यह स्‍थापित करना चाहते थे कि मुक्ति प्राप्‍त करने के लिए ये कर्मकांड आवश्‍यक नहीं हैं जबकि मंडण मिश्रा यह सिद्ध करना चाहते थे कि कर्मकांडों को नकारने में शंकर गलत हैं।   

प्राचीन भारत में विद्वानों के दरम्‍यान संवेदनशील मुद्दों को वार्ता के द्वारा सुलटा लिया जाता था और ऐसे मुद्दे सड़कों पर तय नहीं होते थे। आदि शंकर और मंडण मिश्रा ने शास्‍त्रार्थ में भाग लिया और जिसमें शंकर विजयी हुए। लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दा बहस का नहीं है बल्कि यह है कि वह बहस कैसे आयोजित की गई। यह एक ऐसी दिलचस्प कहानी है जो मानवता के लिए सर्वकाल में परिचर्चा का उच्‍चतम रूप प्रस्‍तुत करती रहेगी।   

यह सहमति थी कि अगर मंडण मिश्रा हार जाएंगे तो वह गृहस्‍थ छोड़ देंगे और सन्‍यास अपना लेंगे। अगर आदि शंकर पराजित हो जाएंगे तो वह सन्‍यास छोड़ देंगे और विवाह करके गृहस्‍थ जीवन अपना लेंगे। मंडण मिश्रा, जो उच्‍च्‍ कोटि के विद्वान थे, उन्‍होंने आदि शंकर को जो एक युवा थे, उन्‍हें कहा कि मंडण मिश्रा से उनकी समानता नहीं है इसलिए वे अपनी पंसद के किसी व्‍यक्ति को पंच चुन लें। आदि शंकर ने मंडण मिश्रा की पत्नी जो स्‍वंय विदुषी थी, उसे पंच के रूप में चुन लिया। अगर मंडण मिश्रा हार जाएंगे तो वह अपने पति को खो देगी। लेकिन देखिए, उसने क्‍या किया? उसने मंडणा मिश्रा और शंकर, दोनों से ताजे फूलों के हार पहनने के लिए कहा और कहा कि उसके बाद ही शास्‍त्रार्थ शुरू होगा। उसने कहा कि जिसके फूलों के हार की ताजगी समाप्‍त हो जाएगी उसे ही पराजित घोषित किया जाएगा। ऐसा क्‍यों? क्‍योंकि आप दोनों में जिसे क्रोध आ जाएगा उसका शरीर गर्म हो जाएगा जिसके कारण माला के फूलों की ताजगी समाप्‍त हो जाएगी। क्रोध स्‍वयं ही पराजय का संकेत है। इस तर्क पर  मंडण मिश्रा को शास्‍त्रार्थ में पराजित घोषित किया गया। उन्‍होंने सन्‍यास अपना लिया और शंकर के शिष्‍य बन गए। यह बातचीत की महत्‍ता को दर्शाता है कि बातचीत बिना क्रोध और संघर्ष के होनी चाहिए। 

आज, इस शानदार सभा में, हम अलग अलग जीवन शैली के साथ विभिन्न देशों के लोग शामिल हैं  लेकिन जो बंधन हमें आपस में बांधता है वह यह तथ्‍य है कि हमारी सभ्यताओं की जड़ें साझा दर्शन, इतिहास और विरासत में हैं। बौद्ध धर्म और बौद्ध विरासत सबको एकजुट रखने वाला अनिवार्य कारक है। 

वे कहते हैं कि यह सदी, एशियाई सदी होने जा रही है। मैं स्‍पष्‍ट कह रहा हूं कि गौतम बुद्ध द्वारा दिखाए गए मार्ग और आदर्शों को अपनाए बिना यह सदी एशियाई सदी नहीं बन सकती है। 

मैं भगवान बुद्ध को वैसी ही सामूहिक आध्‍यात्मिक भलाई करते हुए देख रहा हूं जैसा वैश्विक व्‍यापार ने हमारी सामूहिक आर्थिक भलाई के लिए तथा डिजिटल इंटरनेट ने हमारी सामूहिक बौद्धिक भलाई के लिए क्या किया है। 

मैं भगवान बुद्ध को 21वीं शताब्दी  में लोगों के बीच धैर्य की भावना विकसित करने एवं हमें प्रबुद्ध करने के लिए विभिन्न देशों, विभिन्न विश्वासों और अलग-अलग राजनीतिक विचारधारों के बीच एक पुल की भूमिका निभाने वाले के तौर पर देखता हूँ।

आप उस राष्‍ट्र का भ्रमण कर रहे हैं जिसे अपनी बौद्धिक विरासत पर बहुत गर्व है। मेरा गृह नगर गुजरात में बड़नगर है जहां ऐसे अनेक स्‍थल हैं जहां बुद्ध अवशेष पाए जाते हैं और कई स्‍थान तो ऐसे हैं जिनका चीनी यात्री और इतिहासकार  ह्वेन त्सांग ने दौरा किया था। 

सार्क क्षेत्र बौद्ध धर्म के पवित्र स्‍थानों- लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर का घर है। इन स्‍थलों पर आसियान देशों और चीन, कोरिया, जापान, मंगोलिया और रूस से अनेक तीर्थयात्री आते हैं।   

मेरी सरकार भारत भर में इस बौद्ध विरासत को प्रोत्साहन देने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है और भारत पूरे एशिया में बौद्धिक विरासत को बढ़ाने में शीर्ष भूमिका निभा रहा है। यह तीन दिवसीय बैठक ऐसा ही एक प्रयास है। 

मुझे उम्‍मीद है कि अगले तीन दिनों में भरपूर जीवंत और बहुमूल्‍य चर्चाऐं होंगी और हम एक साथ बैठकर इस बारे में विचार करेंगे कि किस तरह विश्‍व को शांति, संघर्ष के संकल्प, स्वच्छ और हरित विश्‍व की ओर ले जाएं। मैं एक दिन बाद बोधगया में आपसे मिलने के लिए उत्‍सुक हूं। 

धन्यवाद।

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December 06, 2025
India is brimming with confidence: PM
In a world of slowdown, mistrust and fragmentation, India brings growth, trust and acts as a bridge-builder: PM
Today, India is becoming the key growth engine of the global economy: PM
India's Nari Shakti is doing wonders, Our daughters are excelling in every field today: PM
Our pace is constant, Our direction is consistent, Our intent is always Nation First: PM
Every sector today is shedding the old colonial mindset and aiming for new achievements with pride: PM

आप सभी को नमस्कार।

यहां हिंदुस्तान टाइम्स समिट में देश-विदेश से अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित हैं। मैं आयोजकों और जितने साथियों ने अपने विचार रखें, आप सभी का अभिनंदन करता हूं। अभी शोभना जी ने दो बातें बताई, जिसको मैंने नोटिस किया, एक तो उन्होंने कहा कि मोदी जी पिछली बार आए थे, तो ये सुझाव दिया था। इस देश में मीडिया हाउस को काम बताने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता। लेकिन मैंने की थी, और मेरे लिए खुशी की बात है कि शोभना जी और उनकी टीम ने बड़े चाव से इस काम को किया। और देश को, जब मैं अभी प्रदर्शनी देखके आया, मैं सबसे आग्रह करूंगा कि इसको जरूर देखिए। इन फोटोग्राफर साथियों ने इस, पल को ऐसे पकड़ा है कि पल को अमर बना दिया है। दूसरी बात उन्होंने कही और वो भी जरा मैं शब्दों को जैसे मैं समझ रहा हूं, उन्होंने कहा कि आप आगे भी, एक तो ये कह सकती थी, कि आप आगे भी देश की सेवा करते रहिए, लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स ये कहे, आप आगे भी ऐसे ही सेवा करते रहिए, मैं इसके लिए भी विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं।

साथियों,

इस बार समिट की थीम है- Transforming Tomorrow. मैं समझता हूं जिस हिंदुस्तान अखबार का 101 साल का इतिहास है, जिस अखबार पर महात्मा गांधी जी, मदन मोहन मालवीय जी, घनश्यामदास बिड़ला जी, ऐसे अनगिनत महापुरूषों का आशीर्वाद रहा, वो अखबार जब Transforming Tomorrow की चर्चा करता है, तो देश को ये भरोसा मिलता है कि भारत में हो रहा परिवर्तन केवल संभावनाओं की बात नहीं है, बल्कि ये बदलते हुए जीवन, बदलती हुई सोच और बदलती हुई दिशा की सच्ची गाथा है।

साथियों,

आज हमारे संविधान के मुख्य शिल्पी, डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर जी का महापरिनिर्वाण दिवस भी है। मैं सभी भारतीयों की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

Friends,

आज हम उस मुकाम पर खड़े हैं, जब 21वीं सदी का एक चौथाई हिस्सा बीत चुका है। इन 25 सालों में दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। फाइनेंशियल क्राइसिस देखी हैं, ग्लोबल पेंडेमिक देखी हैं, टेक्नोलॉजी से जुड़े डिसरप्शन्स देखे हैं, हमने बिखरती हुई दुनिया भी देखी है, Wars भी देख रहे हैं। ये सारी स्थितियां किसी न किसी रूप में दुनिया को चैलेंज कर रही हैं। आज दुनिया अनिश्चितताओं से भरी हुई है। लेकिन अनिश्चितताओं से भरे इस दौर में हमारा भारत एक अलग ही लीग में दिख रहा है, भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है। जब दुनिया में slowdown की बात होती है, तब भारत growth की कहानी लिखता है। जब दुनिया में trust का crisis दिखता है, तब भारत trust का pillar बन रहा है। जब दुनिया fragmentation की तरफ जा रही है, तब भारत bridge-builder बन रहा है।

साथियों,

अभी कुछ दिन पहले भारत में Quarter-2 के जीडीपी फिगर्स आए हैं। Eight परसेंट से ज्यादा की ग्रोथ रेट हमारी प्रगति की नई गति का प्रतिबिंब है।

साथियों,

ये एक सिर्फ नंबर नहीं है, ये strong macro-economic signal है। ये संदेश है कि भारत आज ग्लोबल इकोनॉमी का ग्रोथ ड्राइवर बन रहा है। और हमारे ये आंकड़े तब हैं, जब ग्लोबल ग्रोथ 3 प्रतिशत के आसपास है। G-7 की इकोनमीज औसतन डेढ़ परसेंट के आसपास हैं, 1.5 परसेंट। इन परिस्थितियों में भारत high growth और low inflation का मॉडल बना हुआ है। एक समय था, जब हमारे देश में खास करके इकोनॉमिस्ट high Inflation को लेकर चिंता जताते थे। आज वही Inflation Low होने की बात करते हैं।

साथियों,

भारत की ये उपलब्धियां सामान्य बात नहीं है। ये सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, ये एक फंडामेंटल चेंज है, जो बीते दशक में भारत लेकर आया है। ये फंडामेंटल चेंज रज़ीलियन्स का है, ये चेंज समस्याओं के समाधान की प्रवृत्ति का है, ये चेंज आशंकाओं के बादलों को हटाकर, आकांक्षाओं के विस्तार का है, और इसी वजह से आज का भारत खुद भी ट्रांसफॉर्म हो रहा है, और आने वाले कल को भी ट्रांसफॉर्म कर रहा है।

साथियों,

आज जब हम यहां transforming tomorrow की चर्चा कर रहे हैं, हमें ये भी समझना होगा कि ट्रांसफॉर्मेशन का जो विश्वास पैदा हुआ है, उसका आधार वर्तमान में हो रहे कार्यों की, आज हो रहे कार्यों की एक मजबूत नींव है। आज के Reform और आज की Performance, हमारे कल के Transformation का रास्ता बना रहे हैं। मैं आपको एक उदाहरण दूंगा कि हम किस सोच के साथ काम कर रहे हैं।

साथियों,

आप भी जानते हैं कि भारत के सामर्थ्य का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय तक untapped रहा है। जब देश के इस untapped potential को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलेंगे, जब वो पूरी ऊर्जा के साथ, बिना किसी रुकावट के देश के विकास में भागीदार बनेंगे, तो देश का कायाकल्प होना तय है। आप सोचिए, हमारा पूर्वी भारत, हमारा नॉर्थ ईस्ट, हमारे गांव, हमारे टीयर टू और टीय़र थ्री सिटीज, हमारे देश की नारीशक्ति, भारत की इनोवेटिव यूथ पावर, भारत की सामुद्रिक शक्ति, ब्लू इकोनॉमी, भारत का स्पेस सेक्टर, कितना कुछ है, जिसके फुल पोटेंशियल का इस्तेमाल पहले के दशकों में हो ही नहीं पाया। अब आज भारत इन Untapped पोटेंशियल को Tap करने के विजन के साथ आगे बढ़ रहा है। आज पूर्वी भारत में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी और इंडस्ट्री पर अभूतपूर्व निवेश हो रहा है। आज हमारे गांव, हमारे छोटे शहर भी आधुनिक सुविधाओं से लैस हो रहे हैं। हमारे छोटे शहर, Startups और MSMEs के नए केंद्र बन रहे हैं। हमारे गाँवों में किसान FPO बनाकर सीधे market से जुड़ें, और कुछ तो FPO’s ग्लोबल मार्केट से जुड़ रहे हैं।

साथियों,

भारत की नारीशक्ति तो आज कमाल कर रही हैं। हमारी बेटियां आज हर फील्ड में छा रही हैं। ये ट्रांसफॉर्मेशन अब सिर्फ महिला सशक्तिकरण तक सीमित नहीं है, ये समाज की सोच और सामर्थ्य, दोनों को transform कर रहा है।

साथियों,

जब नए अवसर बनते हैं, जब रुकावटें हटती हैं, तो आसमान में उड़ने के लिए नए पंख भी लग जाते हैं। इसका एक उदाहरण भारत का स्पेस सेक्टर भी है। पहले स्पेस सेक्टर सरकारी नियंत्रण में ही था। लेकिन हमने स्पेस सेक्टर में रिफॉर्म किया, उसे प्राइवेट सेक्टर के लिए Open किया, और इसके नतीजे आज देश देख रहा है। अभी 10-11 दिन पहले मैंने हैदराबाद में Skyroot के Infinity Campus का उद्घाटन किया है। Skyroot भारत की प्राइवेट स्पेस कंपनी है। ये कंपनी हर महीने एक रॉकेट बनाने की क्षमता पर काम कर रही है। ये कंपनी, flight-ready विक्रम-वन बना रही है। सरकार ने प्लेटफॉर्म दिया, और भारत का नौजवान उस पर नया भविष्य बना रहा है, और यही तो असली ट्रांसफॉर्मेशन है।

साथियों,

भारत में आए एक और बदलाव की चर्चा मैं यहां करना ज़रूरी समझता हूं। एक समय था, जब भारत में रिफॉर्म्स, रिएक्शनरी होते थे। यानि बड़े निर्णयों के पीछे या तो कोई राजनीतिक स्वार्थ होता था या फिर किसी क्राइसिस को मैनेज करना होता था। लेकिन आज नेशनल गोल्स को देखते हुए रिफॉर्म्स होते हैं, टारगेट तय है। आप देखिए, देश के हर सेक्टर में कुछ ना कुछ बेहतर हो रहा है, हमारी गति Constant है, हमारी Direction Consistent है, और हमारा intent, Nation First का है। 2025 का तो ये पूरा साल ऐसे ही रिफॉर्म्स का साल रहा है। सबसे बड़ा रिफॉर्म नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी का था। और इन रिफॉर्म्स का असर क्या हुआ, वो सारे देश ने देखा है। इसी साल डायरेक्ट टैक्स सिस्टम में भी बहुत बड़ा रिफॉर्म हुआ है। 12 लाख रुपए तक की इनकम पर ज़ीरो टैक्स, ये एक ऐसा कदम रहा, जिसके बारे में एक दशक पहले तक सोचना भी असंभव था।

साथियों,

Reform के इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अभी तीन-चार दिन पहले ही Small Company की डेफिनीशन में बदलाव किया गया है। इससे हजारों कंपनियाँ अब आसान नियमों, तेज़ प्रक्रियाओं और बेहतर सुविधाओं के दायरे में आ गई हैं। हमने करीब 200 प्रोडक्ट कैटगरीज़ को mandatory क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर से बाहर भी कर दिया गया है।

साथियों,

आज के भारत की ये यात्रा, सिर्फ विकास की नहीं है। ये सोच में बदलाव की भी यात्रा है, ये मनोवैज्ञानिक पुनर्जागरण, साइकोलॉजिकल रेनसां की भी यात्रा है। आप भी जानते हैं, कोई भी देश बिना आत्मविश्वास के आगे नहीं बढ़ सकता। दुर्भाग्य से लंबी गुलामी ने भारत के इसी आत्मविश्वास को हिला दिया था। और इसकी वजह थी, गुलामी की मानसिकता। गुलामी की ये मानसिकता, विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में एक बहुत बड़ी रुकावट है। और इसलिए, आज का भारत गुलामी की मानसिकता से मुक्ति पाने के लिए काम कर रहा है।

साथियों,

अंग्रेज़ों को अच्छी तरह से पता था कि भारत पर लंबे समय तक राज करना है, तो उन्हें भारतीयों से उनके आत्मविश्वास को छीनना होगा, भारतीयों में हीन भावना का संचार करना होगा। और उस दौर में अंग्रेजों ने यही किया भी। इसलिए, भारतीय पारिवारिक संरचना को दकियानूसी बताया गया, भारतीय पोशाक को Unprofessional करार दिया गया, भारतीय त्योहार-संस्कृति को Irrational कहा गया, योग-आयुर्वेद को Unscientific बता दिया गया, भारतीय अविष्कारों का उपहास उड़ाया गया और ये बातें कई-कई दशकों तक लगातार दोहराई गई, पीढ़ी दर पीढ़ी ये चलता गया, वही पढ़ा, वही पढ़ाया गया। और ऐसे ही भारतीयों का आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया।

साथियों,

गुलामी की इस मानसिकता का कितना व्यापक असर हुआ है, मैं इसके कुछ उदाहरण आपको देना चाहता हूं। आज भारत, दुनिया की सबसे तेज़ी से ग्रो करने वाली मेजर इकॉनॉमी है, कोई भारत को ग्लोबल ग्रोथ इंजन बताता है, कोई, Global powerhouse कहता है, एक से बढ़कर एक बातें आज हो रही हैं।

लेकिन साथियों,

आज भारत की जो तेज़ ग्रोथ हो रही है, क्या कहीं पर आपने पढ़ा? क्या कहीं पर आपने सुना? इसको कोई, हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कहता है क्या? दुनिया की तेज इकॉनमी, तेज ग्रोथ, कोई कहता है क्या? हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कब कहा गया? जब भारत, दो-तीन परसेंट की ग्रोथ के लिए तरस गया था। आपको क्या लगता है, किसी देश की इकोनॉमिक ग्रोथ को उसमें रहने वाले लोगों की आस्था से जोड़ना, उनकी पहचान से जोड़ना, क्या ये अनायास ही हुआ होगा क्या? जी नहीं, ये गुलामी की मानसिकता का प्रतिबिंब था। एक पूरे समाज, एक पूरी परंपरा को, अन-प्रोडक्टिविटी का, गरीबी का पर्याय बना दिया गया। यानी ये सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि, भारत की धीमी विकास दर का कारण, हमारी हिंदू सभ्यता और हिंदू संस्कृति है। और हद देखिए, आज जो तथाकथित बुद्धिजीवी हर चीज में, हर बात में सांप्रदायिकता खोजते रहते हैं, उनको हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ में सांप्रदायिकता नज़र नहीं आई। ये टर्म, उनके दौर में किताबों का, रिसर्च पेपर्स का हिस्सा बना दिया गया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने भारत में मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम को कैसे तबाह कर दिया, और हम इसको कैसे रिवाइव कर रहे हैं, मैं इसके भी कुछ उदाहरण दूंगा। भारत गुलामी के कालखंड में भी अस्त्र-शस्त्र का एक बड़ा निर्माता था। हमारे यहां ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज़ का एक सशक्त नेटवर्क था। भारत से हथियार निर्यात होते थे। विश्व युद्धों में भी भारत में बने हथियारों का बोल-बाला था। लेकिन आज़ादी के बाद, हमारा डिफेंस मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम तबाह कर दिया गया। गुलामी की मानसिकता ऐसी हावी हुई कि सरकार में बैठे लोग भारत में बने हथियारों को कमजोर आंकने लगे, और इस मानसिकता ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े डिफेंस importers के रूप में से एक बना दिया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री के साथ भी यही किया। भारत सदियों तक शिप बिल्डिंग का एक बड़ा सेंटर था। यहां तक कि 5-6 दशक पहले तक, यानी 50-60 साल पहले, भारत का फोर्टी परसेंट ट्रेड, भारतीय जहाजों पर होता था। लेकिन गुलामी की मानसिकता ने विदेशी जहाज़ों को प्राथमिकता देनी शुरु की। नतीजा सबके सामने है, जो देश कभी समुद्री ताकत था, वो अपने Ninety five परसेंट व्यापार के लिए विदेशी जहाज़ों पर निर्भर हो गया है। और इस वजह से आज भारत हर साल करीब 75 बिलियन डॉलर, यानी लगभग 6 लाख करोड़ रुपए विदेशी शिपिंग कंपनियों को दे रहा है।

साथियों,

शिप बिल्डिंग हो, डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग हो, आज हर सेक्टर में गुलामी की मानसिकता को पीछे छोड़कर नए गौरव को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने एक बहुत बड़ा नुकसान, भारत में गवर्नेंस की अप्रोच को भी किया है। लंबे समय तक सरकारी सिस्टम का अपने नागरिकों पर अविश्वास रहा। आपको याद होगा, पहले अपने ही डॉक्यूमेंट्स को किसी सरकारी अधिकारी से अटेस्ट कराना पड़ता था। जब तक वो ठप्पा नहीं मारता है, सब झूठ माना जाता था। आपका परिश्रम किया हुआ सर्टिफिकेट। हमने ये अविश्वास का भाव तोड़ा और सेल्फ एटेस्टेशन को ही पर्याप्त माना। मेरे देश का नागरिक कहता है कि भई ये मैं कह रहा हूं, मैं उस पर भरोसा करता हूं।

साथियों,

हमारे देश में ऐसे-ऐसे प्रावधान चल रहे थे, जहां ज़रा-जरा सी गलतियों को भी गंभीर अपराध माना जाता था। हम जन-विश्वास कानून लेकर आए, और ऐसे सैकड़ों प्रावधानों को डी-क्रिमिनलाइज किया है।

साथियों,

पहले बैंक से हजार रुपए का भी लोन लेना होता था, तो बैंक गारंटी मांगता था, क्योंकि अविश्वास बहुत अधिक था। हमने मुद्रा योजना से अविश्वास के इस कुचक्र को तोड़ा। इसके तहत अभी तक 37 lakh crore, 37 लाख करोड़ रुपए की गारंटी फ्री लोन हम दे चुके हैं देशवासियों को। इस पैसे से, उन परिवारों के नौजवानों को भी आंत्रप्रन्योर बनने का विश्वास मिला है। आज रेहड़ी-पटरी वालों को भी, ठेले वाले को भी बिना गारंटी बैंक से पैसा दिया जा रहा है।

साथियों,

हमारे देश में हमेशा से ये माना गया कि सरकार को अगर कुछ दे दिया, तो फिर वहां तो वन वे ट्रैफिक है, एक बार दिया तो दिया, फिर वापस नहीं आता है, गया, गया, यही सबका अनुभव है। लेकिन जब सरकार और जनता के बीच विश्वास मजबूत होता है, तो काम कैसे होता है? अगर कल अच्छी करनी है ना, तो मन आज अच्छा करना पड़ता है। अगर मन अच्छा है तो कल भी अच्छा होता है। और इसलिए हम एक और अभियान लेकर आए, आपको सुनकर के ताज्जुब होगा और अभी अखबारों में उसकी, अखबारों वालों की नजर नहीं गई है उस पर, मुझे पता नहीं जाएगी की नहीं जाएगी, आज के बाद हो सकता है चली जाए।

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज देश के बैंकों में, हमारे ही देश के नागरिकों का 78 thousand crore रुपया, 78 हजार करोड़ रुपए Unclaimed पड़ा है बैंको में, पता नहीं कौन है, किसका है, कहां है। इस पैसे को कोई पूछने वाला नहीं है। इसी तरह इन्श्योरेंश कंपनियों के पास करीब 14 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। म्यूचुअल फंड कंपनियों के पास करीब 3 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। 9 हजार करोड़ रुपए डिविडेंड का पड़ा है। और ये सब Unclaimed पड़ा हुआ है, कोई मालिक नहीं उसका। ये पैसा, गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों का है, और इसलिए, जिसके हैं वो तो भूल चुका है। हमारी सरकार अब उनको ढूंढ रही है देशभर में, अरे भई बताओ, तुम्हारा तो पैसा नहीं था, तुम्हारे मां बाप का तो नहीं था, कोई छोड़कर तो नहीं चला गया, हम जा रहे हैं। हमारी सरकार उसके हकदार तक पहुंचने में जुटी है। और इसके लिए सरकार ने स्पेशल कैंप लगाना शुरू किया है, लोगों को समझा रहे हैं, कि भई देखिए कोई है तो अता पता। आपके पैसे कहीं हैं क्या, गए हैं क्या? अब तक करीब 500 districts में हम ऐसे कैंप लगाकर हजारों करोड़ रुपए असली हकदारों को दे चुके हैं जी। पैसे पड़े थे, कोई पूछने वाला नहीं था, लेकिन ये मोदी है, ढूंढ रहा है, अरे यार तेरा है ले जा।

साथियों,

ये सिर्फ asset की वापसी का मामला नहीं है, ये विश्वास का मामला है। ये जनता के विश्वास को निरंतर हासिल करने की प्रतिबद्धता है और जनता का विश्वास, यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। अगर गुलामी की मानसिकता होती तो सरकारी मानसी साहबी होता और ऐसे अभियान कभी नहीं चलते हैं।

साथियों,

हमें अपने देश को पूरी तरह से, हर क्षेत्र में गुलामी की मानसिकता से पूर्ण रूप से मुक्त करना है। अभी कुछ दिन पहले मैंने देश से एक अपील की है। मैं आने वाले 10 साल का एक टाइम-फ्रेम लेकर, देशवासियों को मेरे साथ, मेरी बातों को ये कुछ करने के लिए प्यार से आग्रह कर रहा हूं, हाथ जोड़कर विनती कर रहा हूं। 140 करोड़ देशवसियों की मदद के बिना ये मैं कर नहीं पाऊंगा, और इसलिए मैं देशवासियों से बार-बार हाथ जोड़कर कह रहा हूं, और 10 साल के इस टाइम फ्रैम में मैं क्या मांग रहा हूं? मैकाले की जिस नीति ने भारत में मानसिक गुलामी के बीज बोए थे, उसको 2035 में 200 साल पूरे हो रहे हैं, Two hundred year हो रहे हैं। यानी 10 साल बाकी हैं। और इसलिए, इन्हीं दस वर्षों में हम सभी को मिलकर के, अपने देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहना चाहिए।

साथियों,

मैं अक्सर कहता हूं, हम लीक पकड़कर चलने वाले लोग नहीं हैं। बेहतर कल के लिए, हमें अपनी लकीर बड़ी करनी ही होगी। हमें देश की भविष्य की आवश्यकताओं को समझते हुए, वर्तमान में उसके हल तलाशने होंगे। आजकल आप देखते हैं कि मैं मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान पर लगातार चर्चा करता हूं। शोभना जी ने भी अपने भाषण में उसका उल्लेख किया। अगर ऐसे अभियान 4-5 दशक पहले शुरू हो गए होते, तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती। लेकिन तब जो सरकारें थीं उनकी प्राथमिकताएं कुछ और थीं। आपको वो सेमीकंडक्टर वाला किस्सा भी पता ही है, करीब 50-60 साल पहले, 5-6 दशक पहले एक कंपनी, भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने के लिए आई थी, लेकिन यहां उसको तवज्जो नहीं दी गई, और देश सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में इतना पिछड़ गया।

साथियों,

यही हाल एनर्जी सेक्टर की भी है। आज भारत हर साल करीब-करीब 125 लाख करोड़ रुपए के पेट्रोल-डीजल-गैस का इंपोर्ट करता है, 125 लाख करोड़ रुपया। हमारे देश में सूर्य भगवान की इतनी बड़ी कृपा है, लेकिन फिर भी 2014 तक भारत में सोलर एनर्जी जनरेशन कपैसिटी सिर्फ 3 गीगावॉट थी, 3 गीगावॉट थी। 2014 तक की मैं बात कर रहा हूं, जब तक की आपने मुझे यहां लाकर के बिठाया नहीं। 3 गीगावॉट, पिछले 10 वर्षों में अब ये बढ़कर 130 गीगावॉट के आसपास पहुंच चुकी है। और इसमें भी भारत ने twenty two गीगावॉट कैपेसिटी, सिर्फ और सिर्फ rooftop solar से ही जोड़ी है। 22 गीगावाट एनर्जी रूफटॉप सोलर से।

साथियों,

पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना ने, एनर्जी सिक्योरिटी के इस अभियान में देश के लोगों को सीधी भागीदारी करने का मौका दे दिया है। मैं काशी का सांसद हूं, प्रधानमंत्री के नाते जो काम है, लेकिन सांसद के नाते भी कुछ काम करने होते हैं। मैं जरा काशी के सांसद के नाते आपको कुछ बताना चाहता हूं। और आपके हिंदी अखबार की तो ताकत है, तो उसको तो जरूर काम आएगा। काशी में 26 हजार से ज्यादा घरों में पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के सोलर प्लांट लगे हैं। इससे हर रोज, डेली तीन लाख यूनिट से अधिक बिजली पैदा हो रही है, और लोगों के करीब पांच करोड़ रुपए हर महीने बच रहे हैं। यानी साल भर के साठ करोड़ रुपये।

साथियों,

इतनी सोलर पावर बनने से, हर साल करीब नब्बे हज़ार, ninety thousand मीट्रिक टन कार्बन एमिशन कम हो रहा है। इतने कार्बन एमिशन को खपाने के लिए, हमें चालीस लाख से ज्यादा पेड़ लगाने पड़ते। और मैं फिर कहूंगा, ये जो मैंने आंकडे दिए हैं ना, ये सिर्फ काशी के हैं, बनारस के हैं, मैं देश की बात नहीं बता रहा हूं आपको। आप कल्पना कर सकते हैं कि, पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना, ये देश को कितना बड़ा फायदा हो रहा है। आज की एक योजना, भविष्य को Transform करने की कितनी ताकत रखती है, ये उसका Example है।

वैसे साथियों,

अभी आपने मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग के भी आंकड़े देखे होंगे। 2014 से पहले तक हम अपनी ज़रूरत के 75 परसेंट मोबाइल फोन इंपोर्ट करते थे, 75 परसेंट। और अब, भारत का मोबाइल फोन इंपोर्ट लगभग ज़ीरो हो गया है। अब हम बहुत बड़े मोबाइल फोन एक्सपोर्टर बन रहे हैं। 2014 के बाद हमने एक reform किया, देश ने Perform किया और उसके Transformative नतीजे आज दुनिया देख रही है।

साथियों,

Transforming tomorrow की ये यात्रा, ऐसी ही अनेक योजनाओं, अनेक नीतियों, अनेक निर्णयों, जनआकांक्षाओं और जनभागीदारी की यात्रा है। ये निरंतरता की यात्रा है। ये सिर्फ एक समिट की चर्चा तक सीमित नहीं है, भारत के लिए तो ये राष्ट्रीय संकल्प है। इस संकल्प में सबका साथ जरूरी है, सबका प्रयास जरूरी है। सामूहिक प्रयास हमें परिवर्तन की इस ऊंचाई को छूने के लिए अवसर देंगे ही देंगे।

साथियों,

एक बार फिर, मैं शोभना जी का, हिन्दुस्तान टाइम्स का बहुत आभारी हूं, कि आपने मुझे अवसर दिया आपके बीच आने का और जो बातें कभी-कभी बताई उसको आपने किया और मैं तो मानता हूं शायद देश के फोटोग्राफरों के लिए एक नई ताकत बनेगा ये। इसी प्रकार से अनेक नए कार्यक्रम भी आप आगे के लिए सोच सकते हैं। मेरी मदद लगे तो जरूर मुझे बताना, आईडिया देने का मैं कोई रॉयल्टी नहीं लेता हूं। मुफ्त का कारोबार है और मारवाड़ी परिवार है, तो मौका छोड़ेगा ही नहीं। बहुत-बहुत धन्यवाद आप सबका, नमस्कार।