Pays tributes to Shri Atal Bihari Vajpayee due to whose strong will, the state of Jharkhand came into existence
 “In this Amrit Kaal of independence, the country has decided that the country will give a more meaningful and more grand identity to the tribal traditions of India and its valor stories”
 “This museum will become a living venue of our tribal culture full of diversity, depicting the contribution of tribal heroes and heroines in the freedom struggle.”
 “Bhagwan Birsa lived for the society, sacrificed his life for his culture and his country. Therefore, he is still present in our faith, in our spirit as our God.”

नमस्कार !

भगवान बिरसा मुंडा की जन्मजयंती पर इस कार्यक्रम में हमारे साथ रांची से जुड़े झारखंड के गवर्नर श्री रमेश बैश जी, झारखण्ड के मुख्यमंत्री श्रीमान हेमंत सोरेन जी, केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री और झरखान के पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमान अर्जुन मुंडा जी, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमान बाबू लाल मरांडी जी केंद्रीय संस्कृति मंत्री श्री जी किशन रेड्डी जी, अन्नपूर्णा देवी जी ,रघुबर दास जी,झारखंड सरकार के अन्य मंत्री, सांसदगण, विधायकगण, देशभर के मेरे आदिवासी भाई और बहन, विशेषकर झारखंड के मेरे साथी, जोहार ! हागा ओड़ो मिसि को, दिसुम रेआ आजादी रेन आकिलान माराग् होड़ो, महानायक भोगोमान बिरसा मुंडा जी, ताकिना जोनोम नेग रे, दिसुम रेन सोबेन होड़ो को, आदिबासी जोहार।

साथियों,

हमारे जीवन में कुछ दिन बड़े सौभाग्य से आते हैं। और, जब ये दिन आते हैं तो हमारा कर्तव्य होता है कि हम उनकी आभा को, उनके प्रकाश को अगली पीढ़ियों तक और ज्यादा भव्य स्वरूप में पहुंचाएं! आज का ये दिन ऐसा ही पुण्य-पुनीत अवसर है। 15 नवम्बर की ये तारीख ! धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जन्मजयंती ! झारखण्ड का स्थापना दिवस ! और, देश की आज़ादी के अमृत महोत्सव का ये कालखंड! ये अवसर हमारी राष्ट्रीय आस्था का अवसर है, भारत की पुरातन आदिवासी संस्कृति के गौरवगाण का अवसर है। और ये समय इस गौरव को, भारत की आत्मा जिस जनजातीय समुदाय से ऊर्जा पाती है, उनके प्रति हमारे कर्तव्यों को एक नई ऊंचाई देने का भी है। इसीलिए, आज़ादी के इस अमृतकाल में देश ने तय किया है कि भारत की जनजातीय परम्पराओं को, इसकी शौर्य गाथाओं को देश अब और भी भव्य पहचान देगा। इसी क्रम में, ये ऐतिहासिक फैसला लिया गया है कि आज से हर वर्ष देश 15 नवम्बर, यानी भगवान विरसा मुंडा के जन्म दिवस को 'जन-जातीय गौरव दिवस' के रूप में मनाएगा। इन आड़ी गोरोब इन बुझाव एदा जे, आबोइज सरकार, भगवान बिरसा मुंडा हाक, जानाम महा, 15 नवंबर हिलोक, जन जाति गौरव दिवस लेकाते, घोषणा केदाय !

मैं देश के इस निर्णय को भगवान बिरसा मुंडा और हमारे कोटि-कोटि आदिवासी स्वतन्त्रता सेनानियों, वीर-वीरांगनाओं के चरणों में आज श्रृद्धापूर्वक अर्पित करता हूँ। इस अवसर पर मैं सभी झारखण्ड वासियों को, देश के कोने कोने में सभी आदिवासी भाई-बहनों को और हमारे देशवासियों को अनेक अनेक हार्दिक बधाई देता हूँ। मैंने अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा अपने आदिवासी-जनजातीय भाइयों-बहनों, आदिवासी बच्चों के साथ बिताया है। मैं उनके सुख-दुख, उनकी दिनचर्या, उनकी जिंदगी की हर छोटी-बड़ी जरूरत का साक्षी रहा हूं, उनका अपना रहा हूं। इसलिए आज का दिन मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी बहुत भावुक बड़ी भावना की एक प्रकार से प्रकटीकरण का भावुक कर देने वाला है।

साथियों,

आज के ही दिन हमारे श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेयी जी की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण झारखण्ड राज्य भी अस्तित्व में आया था। ये अटल बिहारी बाजपेयी जी ही थे जिन्होंने देश की सरकार में सबसे पहले अलग आदिवासी मंत्रालय का गठन कर आदिवासी हितों को देश की नीतियों से जोड़ा था। झारखण्ड स्थापना दिवस के इस अवसर पर मैं श्रद्धेय अटल जी के चरणों में नमन करते हुये उन्हें भी अपनी श्रद्धांजलि देता हूँ।

साथियों,

आज इस महत्वपूर्ण अवसर पर देश का पहला जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी म्यूज़ियम देशवासियों के लिए समर्पित हो रहा है। भारत की पहचान और भारत की आज़ादी के लिए लड़ते हुए भगवान बिरसा मुंडा ने अपने आखिरी दिन रांची की इसी जेल में बिताए थे। जहां भगवान बिरसा के चरण पड़े हों, जो भूमि उनके तप-त्याग और शौर्य की साक्षी बनी हो, वो हम सबके लिए एक तरह से पवित्र तीर्थ है। कुछ समय पहले मैंने जनजातीय समाज के इतिहास और स्वाधीनता संग्राम में उनके योगदान को सँजोने के लिए, देश भर में आदिवासी म्यूज़ियम की स्थापना का आह्वान किया था। इसके लिए केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारें मिलकर काम कर रही हैं। मुझे खुशी है कि आज आदिवासी संस्कृति से समृद्ध झारखण्ड में पहला आदिवासी म्यूज़ियम अस्तित्व में आया है। मैं भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय के लिए पूरे देश के जनजातीय समाज, भारत के प्रत्येक नागरिक को बधाई देता हूं। ये संग्रहालय, स्वाधीनता संग्राम में आदिवासी नायक-नायिकाओं के योगदान का, विविधताओं से भरी हमारी आदिवासी संस्कृति का जीवंत अधिष्ठान बनेगा। इस संग्रहालय में, सिद्धू-कान्हू से लेकर, 'पोटो हो' तक, तेलंगा खड़िया से लेकर गया मुंडा तक, जतरा टाना भगत से लेकर दिवा-किसुन तक, अनेक जनजातीय वीरों की प्रतिमाएं यहां हैं हीं, उनकी जीवन गाथा के बारे में भी विस्तार से बताया गया है।

साथियों,

इसके अलावा, देश के अलग-अलग राज्यों में ऐसे ही 9 और म्यूज़ियम्स पर तेजी से काम हो रहा है। बहुत जल्द, गुजरात के राजपीपला में, आंध्र प्रदेश के लांबासिंगी में, छत्तीसगढ़ के रायपुर में, केरला के कोझिकोड में, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में, तेलंगाना के हैदराबाद में, मणिपुर के तामेन्ग-लॉन्ग में, मिजोरम के केलसिह में, गोवा के पौंडा में हम इन म्यूजियम्स को साकार रूप स्वरुप देते हुए हम अपनी आंखों से देखेंगे । इन म्यूज़ियम्स से न केवल देश की नई पीढ़ी आदिवासी इतिहास के गौरव से परिचित होगी, बल्कि इनसे इन क्षेत्रों में पर्यटन को भी नई गति मिलेगी। ये म्यूज़ियम, आदिवासी समाज के गीत-संगीत, कला-कौशल, पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे हैंडीक्राफ़्ट और शिल्प, इन सभी विरासतों का संरक्षण भी करेंगे, संवर्धन भी करेंगे।

साथियों,

भगवान बिरसा मुंडा ने, हमारे अनेकानेक आदिवासी सेनानियों ने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहूति दी थी। लेकिन उनके लिए आज़ादी के, स्वराज के मायने क्या थे? भारत की सत्ता, भारत के लिए निर्णय लेने की अधिकार-शक्ति भारत के लोगों के पास आए, ये स्वाधीनता संग्राम का एक स्वाभाविक लक्ष्य था। लेकिन साथ ही, 'धरती आबा' की लड़ाई उस सोच के खिलाफ भी थी जो भारत की, आदिवासी समाज की पहचान को मिटाना चाहती थी। आधुनिकता के नाम पर विविधता पर हमला, प्राचीन पहचान और प्रकृति से छेड़छाड़, भगवान बिरसा मुंडा जानते थे कि ये समाज के कल्याण का रास्ता नहीं है। वो आधुनिक शिक्षा के पक्षधर थे, वो बदलावों की वकालत करते थे, उन्होंने अपने ही समाज की कुरीतियों के, कमियों के खिलाफ बोलने का साहस भी दिखाया। अशिक्षा, नशा, भेदभाव, इन सबके खिलाफ उन्होंने अभियान चलाया, समाज के कितने ही युवाओं को जागरूक किया। नैतिक मूल्यों और सकारात्मक सोच की ही ये ताकत थी जिसने जनजातीय समाज के भीतर एक नई ऊर्जा फूँक दी थी। जो विदेशी हमारे आदिवासी समाज को, मुंडा भाइयों-बहनों को पिछड़ा मानते थे, अपनी सत्ता के आगे उन्हें कमजोर समझते थे, उसी विदेशी सत्ता को भगवान बिरसा मुंडा और मुंडा समाज ने घुटनों पर ला दिया। ये लड़ाई जड़-जंगल-जमीन की थी, आदिवासी समाज की पहचान और भारत की आज़ादी की थी। और ये इतनी ताकतवर इसलिए थी क्योंकि भगवान बिरसा ने समाज को बाहरी दुश्मनों के साथ-साथ भीतर की कमजोरियों से लड़ना भी सिखाया था। इसलिए, मैं समझता हूं, जनजातीय गौरव दिवस, समाज को सशक्त करने के इस महायज्ञ को याद करने का भी अवसर है , बार बार याद करने का अवसर है।

साथियों,

भगवान बिरसा मुंडा का 'उलगुलान' जीत, उलगुलान जीत हार के तात्कालिक फैसलों तक सीमित, इतिहास का सामान्य संग्राम नहीं था। उलगुलान आने वाले सैकड़ों वर्षों को प्रेरणा देने वाली घटना थी। भगवान बिरसा ने समाज के लिए जीवन दिया, अपनी संस्कृति और अपने देश के लिए अपने प्राणों का परित्याग किया। इसीलिए, वो आज भी हमारी आस्था में, हमारी भावना में हमारे भगवान के रूप में उपस्थित हैं। और इसलिए, आज जब हम देश के विकास में भागीदार बन रहे आदिवासी समाज को देखते हैं, दुनिया में पर्यावरण को लेकर अपने भारत को नेतृत्व करते हुए देखते हैं, तो हमें भगवान बिरसा मुंडा का चेहरा प्रत्यक्ष दिखाई देता है, उनका आशीर्वाद अपने सिर पर महसूस होता है। आदिवासी हुदा रेया, अपना दोस्तुर, एनेम-सूंयाल को, सदय गोम्पय रका, जोतोन: कना । यही काम आज हमारा भारत पूरे विश्व के लिए कर रहा है!

 

साथियों,

हम सभी के लिए भगवान बिरसा एक व्यक्ति नहीं, एक परंपरा हैं। वो उस जीवन दर्शन का प्रतिरूप हैं जो सदियों से भारत की आत्मा का हिस्सा रहा है। हम उन्हें यूं ही धरती आबा नहीं कहते। जिस समय हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ मानवता की आवाज़ बन रहे थे, लगभग उसी समय भारत में बिरसा मुंडा गुलामी के खिलाफ एक लड़ाई का अध्याय लिख चुके थे। धरती आबा बहुत लंबे समय तक इस धरती पर नहीं रहे थे। लेकिन उन्होंने जीवन के छोटे से कालखंड में देश के लिए एक पूरा इतिहास लिख दिया, भारत की पीढ़ियों को दिशा दे दी। आज़ादी के अमृत महोत्सव में आज देश इतिहास के ऐसे ही अनगिनत पृष्ठों को फिर से पुनर्जीवित कर रहा है, जिन्हें बीते दशकों में भुला दिया गया था। इस देश की आज़ादी में ऐसे कितने ही सेनानियों का त्याग और बलिदान शामिल है, जिन्हें वो पहचान नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी। हम अपने स्वाधीनता संग्राम के उस दौर को अगर देखें, तो शायद ही ऐसा कोई कालखंड हो जब देश के अलग-अलग हिस्सों में कोई न कोई आदिवासी क्रांति नहीं चल रही हो! भगवान बिरसा के नेतृत्व में मुंडा आंदोलन हो, या फिर संथाल संग्राम और ख़ासी संग्राम हो, पूर्वोत्तर में अहोम संग्राम हो या छोटा नागपुर क्षेत्र में कोल संग्राम और फिर भील संग्राम हो, भारत के आदिवासी बेटे बेटियों ने अँग्रेजी सत्ता को हर कालखंड में चुनौती दी।

साथियों,

हम झारखंड और पूरे आदिवासी क्षेत्र के इतिहास को ही देखें तो बाबा तिलका मांझी ने अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार मोर्चा खोला था। सिद्धो-कान्हू और चांद-भैरव भाइयों ने भोगनाडीह से संथाल संग्राम का बिगुल फूंका था। तेलंगा खड़िया, शेख भिखारी और गणपत राय जैसे सेनानी, उमराव सिंह टिकैत, विश्वनाथ शाहदेव, नीलाम्बर-पीताम्बर जैसे वीर, नारायण सिंह, जतरा उरांव, जादोनान्ग, रानी गाइडिन्ल्यू और राजमोहिनी देवी जैसे नायक नायिकाएँ, ऐसे कितने ही स्वाधीनता सेनानी थे जिन्होंने अपना सब कुछ बलिदान कर आज़ादी की लड़ाई को आगे बढ़ाया। इन महान आत्माओं के इस योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। इनकी गौरव-गाथाएँ, इनका इतिहास हमारे भारत को नया भारत बनाने की ऊर्जा देगा। इसीलिए, देश ने अपने युवाओं से, इतिहासकारों से इन विभूतियों से जुड़े आज़ादी के इतिहास को फिर एक बार लिखने का आवाहन किया है। नौजवानों को आगे आने के लिए आग्रह किया है। आज़ादी के अमृतकाल में इसे लेकर लेखन अभियान चलाया जा रहा है।

मैं झारखंड के युवाओं से, विशेषकर आदिवासी नौजवानों से भी अनुरोध करूंगा,आप धरती से जुड़े हैं। आप न केवल इस मिट्टी के इतिहास को पढ़ते हैं, बल्कि देखते सुनते और इसे जीते भी आए हैं। इसलिए, देश के इस संकल्प की ज़िम्मेदारी आप भी अपने हाथों में लीजिये। आप स्वाधीनता संग्राम से जुड़े इतिहास पर शोध कर सकते हैं, किताब लिख सकते हैं। आदिवासी कला संस्कृति को देश के जन-जन तक पहुंचाने के लिए नए innovative तरीको की भी खोज कर सकते हैं। अब ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि अपनी प्राचीन विरासत को,अपने इतिहास को नई चेतना दें।

साथियों,

भगवान बिरसा मुंडा ने आदिवासी समाज के लिए अस्तित्व, अस्मिता और आत्मनिर्भरता का सपना देखा था। आज देश भी इसी संकल्प को लेकर आगे बढ़ रहा है। हमें ये याद रखना होगा कि पेड़ चाहे जितना भी विशाल हो, लेकिन वो तभी सीना ताने खड़ा रह सकता है, जब वो जड़ से मजबूत हो। इसलिए, आत्मनिर्भर भारत, अपनी जड़ों से जुड़ने, अपनी जड़ों को मजबूत करने का भी संकल्प है। ये संकल्प हम सबके प्रयास से पूरा होगा। मुझे पूरा भरोसा है, भगवान बिरसा के आशीर्वाद से हमारा देश अपने अमृत संकल्पों को जरूर पूरा करेगा, और पूरे विश्व को दिशा भी देगा। मैं एक बार फिर देश को जनजातीय गौरव दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। आप सभी का भी मैं बहुत- बहुत धन्यवाद करता हूं। और मैं देश के विधार्थियों से आग्रह करुंगा कि जब भी मौका मिले आप रांची जाइए, इस आदिवासियों की महान संस्कृति को प्रदर्शित करने वाली इस प्रदर्शनी की मुलाकात लीजिए। वहां पर कुछ ना कुछ सीखने का प्रयास कीजिए। हिंदुस्तान के हर बच्चे के लिए यहां बहुत कुछ है जो हमे सीखना समझना है और जीवन में संकल्प लेकर के आगे बढ़ना है। मैं फिर एक बार आप सबका बहुत- बहुत धन्यवाद करता हूं।

Explore More
आज सम्पूर्ण भारत, सम्पूर्ण विश्व राममय है: अयोध्या में ध्वजारोहण उत्सव में पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

आज सम्पूर्ण भारत, सम्पूर्ण विश्व राममय है: अयोध्या में ध्वजारोहण उत्सव में पीएम मोदी
The quiet foundations for India’s next growth phase

Media Coverage

The quiet foundations for India’s next growth phase
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
Prime Minister Emphasizes Power of Benevolent Thoughts for Social Welfare through a Subhashitam
December 31, 2025

The Prime Minister, Shri Narendra Modi, has underlined the importance of benevolent thinking in advancing the welfare of society.

Shri Modi highlighted that the cultivation of noble intentions and positive resolve leads to the fulfillment of all endeavors, reinforcing the timeless message that individual virtue contributes to collective progress.

Quoting from ancient wisdom, the Prime Minister in a post on X stated:

“कल्याणकारी विचारों से ही हम समाज का हित कर सकते हैं।

यथा यथा हि पुरुषः कल्याणे कुरुते मनः।

तथा तथाऽस्य सर्वार्थाः सिद्ध्यन्ते नात्र संशयः।।”