मित्रों,
गृह मंत्री श्री चिदम्बरम जी, जो कांग्रेस सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्हें उस कुर्सी के इतिहास को याद करना चाहिए जिस पर वह अब बैठते हैं, उस पर कभी लौह पुरुष सरदार पटेल का अधिकार था और जिसने उसको शोभा प्रदान की थी. अगर वो उसे ठीक तरह से याद करते तो वह ऐसे बुरे इरादे के साथ एक काल्पनिक और गलत शब्द “भगवा आतंकवाद” का दावा करने का नहीं सोचते.
केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाया गया यह आरोप कोई चुनावी रैली में क्रोध में कहा गया हो ऐसा भी नहीं है. लेकिन इसे राज्य के पुलिस प्रमुखों और पुलिस महानिरीक्षकों के एक बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील सम्मेलन में, जिसका उन्होंने उद्घाटन किया था, उसमें कहा गया था. और इसलिए यह एक तैयार किया हुआ भाषण था. यह अनिष्ट को एक मामूली घटना के रूप में खारिज नहीं किया जा सकता है.केन्द्रीय कांग्रेस सरकार के गृह मंत्री ने इस तरह का गैर जिम्मेदाराना बयान देकर वास्तव में संविधान की सीमाओं के बाहर कदम रखा है. इस बयान के द्वारा सुरक्षा बलों और पुलिस के लोगों को एक खास वर्ग के खिलाफ एक निश्चित रुप में कार्य करने के लिए उकसाया गया है. यह एक गैर संवैधानिक व्यवहार है.
भगवे आतंक के बारे में बात करके केंद्र सरकार ने संगीन रुप से अपनी स्वयं की ही जन्म दाता कांग्रेस पार्टी का अपमान किया है. देश के गृह मंत्री को पता होना चाहिए कि कांग्रेस ने 1931 में ध्वज समिति की स्थापना की थी जिनके अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी थे. और पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्री मौलाना आजाद, श्री मास्टर तारा सिंह, डॉ. आम्बेडकर, काका साहेब कालेलकर, कन्हैया लाल मुन्शी जैसे महान लोग इस समिति के सदस्य थे. उस सदस्यों ने सिफारिश की थी कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज एक ही रंग का होना चाहिए और वह भगवे रंग का होना चाहिए. तो फिर केन्द्रीय कांग्रेस सरकार 'भगवे आतंक' के बारे में बेबुनियाद ख़बर कैसे फैला सकती हैं?
मित्रों, वर्तमान तिरंगा, जिसे हम भारतीयों सम्मान देते हैं, उसकी अद्वितीय शोभा में भगवा रंग भी है. केंद्र को भारत के लोगों को जवाब देना होगा कि क्या हमारा तिरंगा अब अपने भगवे रंग के कारण आतंकवाद के एक प्रतीक में बदल गया है?
मित्रों, हमारी गुलामी के हजार साल में, हर समय अवधि में, हमारे महान देशभक्तों भगवे ध्वज की छाया के नीचे स्वयं को त्याग देते थे. क्या केन्द्रीय कांग्रेस सरकार की इच्छा ऐसी है कि इस देश की विरासत की रक्षा करने में जो लोगों ने खुद का बलिदान दिया था जैसे की गुरु प्रताप, छत्रपति शिवाजी, राणा प्रताप और लाखों वीर क्षत्रियों ने भगवे आतंक की वेदी पर बलिदान दिया था? क्या हमें बहादुरी और बलिदानों के रूप में जो हमारे सदियों पुराने भारतीय इतिहास में दर्ज कीया गया है उस पर बदनामी का ढेर लगाना चाहिए?
मित्रों, वेदों से विवेकानंद तक हमारे संतों और महंतों का अनन्त योगदान रहा है जब कि वे सभी भगवे रंग के कपड़े पहनते थे. भगवे वस्त्रधारी युवा सन्यासी विवेकानन्द ने राष्ट्रों के समुदाय में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाया था. विवेकानंद जैसे तपस्वीओं का इस बलिदान संभवतः कांग्रेस सरकार के लिए भगवे आतंक की परंपरा का हिस्सा हो सकता है?
वोट बैंक और तुष्टीकरण की राजनीति ने इस देश को नष्ट कर दिया गया है. 'भगवे आतंक' की इस अफवाह को एक कुटिल राजनीतिक वोट बैंक और तुष्टीकरण के खेल के हिस्से के रुप में फैलाई गई है. हमारा देश ऐसे गंदे राजनीतिक खेल को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता है.
हमारी महान प्राचीन संस्कृति का इस तरह का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.
युवाओं, उठो और जागो और जवाब मांगो....
आपका,