सभी जानते हैं कि देश का भविष्य युवाओं के हाथों में है। आज के युवा ही कल देश का नेतृत्व और भविष्य तय करेंगे। इसलिए, यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारा देश कल मजबूत बना रहे, आज के युवाओं के स्वास्थ्य को अत्यंत प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
पिछले चार वर्षों में सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए हैं कि शिशुओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर अधिकतम ध्यान दिया जाए, ताकि उन्हें जीवन की उच्च गुणवत्ता प्रदान की जा सके और उन्हें भविष्य के लिए तैयार किया जा सके ताकि वे राष्ट्र निर्माण में योगदान कर सकें।
शिशु और मातृ मृत्यु दर में महत्वपूर्ण सुधार
जब एक बच्चा पैदा होता है, तो एक इंटीग्रेटेड रेस्पांस मैकेनिज्म के तहत बच्चे और मां दोनों को सर्वोत्तम स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता होती है। भारत में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में सुधार हो रहा है और पिछले कुछ वर्षों में दोनों इंडिकेटर्स में काफी कमी आई है।
भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर (U5MR) में कमी आई है। यह 2013 में प्रति 1000 जन्म पर 49 से घटकर 2016 में 39 हो गई। U5MR की गिरावट की मौजूदा दर के साथ भारत 2030 तक अंडर-चाइल्ड मॉर्टैलिटी के लिए 25 के सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ट्रैक पर है।
अपने कार्यकाल के केवल आधे समय में सरकार ने शिशु मृत्यु दर को तीन अंकों (8% की गिरावट) से कम किया। यह 2013 में प्रति 1000 जन्म पर 40 से 2016 में प्रति 1000 पर 34 हो गया।
शिशु और बाल स्वास्थ्य के संदर्भ में इन उपलब्धियों के साथ देश में मातृ मृत्यु दर में 2013 से 22% की कमी आई है। भारत का मातृ मृत्यु दर अनुपात 2011-2013 में 167 से घटकर 2014-2016 में 130 हो गया है। अब भारत में हम महीने गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं के कारण लगभग एक हजार से कम महिलाओं की मौत होती है। यूनिसेफ ने भी मातृ मृत्यु दर को कम करने की भारत की प्रगति की सराहना की है।
सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में मिशन इन्द्रधनुष कार्यक्रम लॉन्च किया। कार्यक्रम की सफलता के साथ, मिशन में तेजी लाने के लिए प्रत्येक बच्चे को दो वर्ष तक की आयु और उन सभी गर्भवती महिलाओं तक पहुंचने के लिए एक गहन मिशन इन्द्रधनुष चलाया गया, जिन्हें नियमित टीकाकरण कार्यक्रमों के तहत छोड़ दिया गया था।
मिशन इन्द्रधनुष के चार चरण पूरे हो चुके हैं, जिसमें 3.38 करोड़ बच्चों को टीका लगाया गया, जिनमें से 81.67 लाख बच्चों का पूर्ण टीकाकरण किया गया है। 86.88 लाख गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण भी किया गया।
मिशन इन्द्रधनुष के तहत दो राउंड के दौरान पूर्ण टीकाकरण कवरेज की वृद्धि की वार्षिक दर 1% से 6.7% हो गई है।
उल्लेखनीय रूप से "मिशन इंद्रधनुष" को विश्व स्तर पर 12 सर्वश्रेष्ठ अभियानों में से एक के रूप में चुना गया है और इसे ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के एक विशेष अंक में प्रकाशित किया गया है,, जिससे इस दिशा में सरकार के प्रयासों को मान्यता मिली है।
जापानी इंसेफेलाइटिस का सफलतापूर्वक हैंडलिंग
जापानी इंसेफेलाइटिस जो देश के कई हिस्सों में 15 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करने वाला एक जानलेवा वायरल रोग साबित हुआ है, सरकार ने इसे सफलतापूर्वक हैंडल किया है। 2018 के मध्य तक 1-15 वर्ष के 15 करोड़ से अधिक बच्चों को जेई (जापानी इंसेफेलाइटिस) टीका लगाया गया था। उत्तर प्रदेश के सभी 38 जेई एन्डेमिक डिस्ट्रिक्ट में विशेष जेई पुन: अभियान भी चलाया गया, जहां 99.20 लाख बच्चों को टीका लगाया गया। खबरों के मुताबिक जापानी इंसेफेलाइटिस से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश में जेई के मामलों में भारी गिरावट दर्ज किया है।
पोषण अभियान
सरकार ने टेक्नोलॉजी, टारगेटेड अप्रोच, और कन्वर्जन्स द्वारा बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण संबंधी परिणामों में सुधार करने के लिए ऐतिहासिक पोषण अभियान के माध्यम से कुपोषण की समस्या का समाधान करने की दिशा में कदम उठाए हैं। इसका उद्देश्य स्टंटिंग (बौनापन), अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) और जन्म के समय कम वजन की समस्याओं को कम करना है। मिशन का लक्ष्य 2022 तक 0-6 साल के बच्चों में 38.4% से 25% तक (स्टंटिंग) बौनापन को कम करना है। 10 करोड़ से अधिक लोगों को लाभान्वित करने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 और 2018-19 के लिए 2122.27 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है।
इसलिए, मोदी सरकार ने अपने ईमानदार और समयबद्ध हस्तक्षेप के माध्यम से देश में बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य को मजबूत करने का प्रयास किया है। शिशुओं, छोटे बच्चों और गर्भवती माताओं के मामले में समय पर हस्तक्षेप की आवश्यकता को महसूस करते हुए, उनके मुद्दों को हल करने के लिए एक अच्छी तरह से सोचा गया व ठोस दृष्टिकोण है। केवल एक स्वस्थ बच्चा, जो स्वस्थ वयस्क बनता है, वह भविष्य में एक स्वस्थ और मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सकता है।
पीढ़ियों तक, ग्रामीण भारत में सिर पर पानी के मटके ढोती महिलाओं का दृश्य रोज़मर्रा की बात थी। यह सिर्फ़ एक काम नहीं था, बल्कि एक ज़रूरत थी, जो उनके दैनिक जीवन का अहम हिस्सा थी। पानी अक्सर एक या दो मटकों में लाया जाता, जिसे पीने, खाना बनाने, सफ़ाई और कपड़े धोने इत्यादि के लिए बचा-बचाकर इस्तेमाल करना पड़ता था। यह दिनचर्या आराम, पढ़ाई या कमाई के काम के लिए बहुत कम समय छोड़ती थी, और इसका बोझ सबसे ज़्यादा महिलाओं पर पड़ता था।
2014 से पहले, पानी की कमी, जो भारत की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक थी; को न तो गंभीरता से लिया गया और न ही दूरदृष्टि के साथ हल किया गया। सुरक्षित पीने के पानी तक पहुँच बिखरी हुई थी, गाँव दूर-दराज़ के स्रोतों पर निर्भर थे, और पूरे देश में हर घर तक नल का पानी पहुँचाना असंभव-सा माना जाता था।
यह स्थिति 2019 में बदलनी शुरू हुई, जब भारत सरकार ने जल जीवन मिशन (JJM) शुरू किया। यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य हर ग्रामीण घर तक सक्रिय घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) पहुँचाना है। उस समय केवल 3.2 करोड़ ग्रामीण घरों में, जो कुल संख्या का महज़ 16.7% था, नल का पानी उपलब्ध था। बाकी लोग अब भी सामुदायिक स्रोतों पर निर्भर थे, जो अक्सर घर से काफी दूर होते थे।
जुलाई 2025 तक, हर घर जल कार्यक्रम के अंतर्गत प्रगति असाधारण रही है, 12.5 करोड़ अतिरिक्त ग्रामीण परिवारों को जोड़ा गया है, जिससे कुल संख्या 15.7 करोड़ से अधिक हो गई है। इस कार्यक्रम ने 200 जिलों और 2.6 लाख से अधिक गांवों में 100% नल जल कवरेज हासिल किया है, जिसमें 8 राज्य और 3 केंद्र शासित प्रदेश अब पूरी तरह से कवर किए गए हैं। लाखों लोगों के लिए, इसका मतलब न केवल घर पर पानी की पहुंच है, बल्कि समय की बचत, स्वास्थ्य में सुधार और सम्मान की बहाली है। 112 आकांक्षी जिलों में लगभग 80% नल जल कवरेज हासिल किया गया है, जो 8% से कम से उल्लेखनीय वृद्धि है। इसके अतिरिक्त, वामपंथी उग्रवाद जिलों के 59 लाख घरों में नल के कनेक्शन किए गए, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि विकास हर कोने तक पहुंचे। महत्वपूर्ण प्रगति और आगे की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय बजट 2025–26 में इस कार्यक्रम को 2028 तक बढ़ाने और बजट में वृद्धि की घोषणा की गई है।

2019 में राष्ट्रीय स्तर पर शुरू किए गए जल जीवन मिशन की शुरुआत गुजरात से हुई है, जहाँ श्री नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में सुजलाम सुफलाम पहल के माध्यम से इस शुष्क राज्य में पानी की कमी से निपटने के लिए काम किया था। इस प्रयास ने एक ऐसे मिशन की रूपरेखा तैयार की जिसका लक्ष्य भारत के हर ग्रामीण घर में नल का पानी पहुँचाना था।
हालाँकि पेयजल राज्य का विषय है, फिर भी भारत सरकार ने एक प्रतिबद्ध भागीदार की भूमिका निभाई है, तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करते हुए राज्यों को स्थानीय समाधानों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने का अधिकार दिया है। मिशन को पटरी पर बनाए रखने के लिए, एक मज़बूत निगरानी प्रणाली लक्ष्यीकरण के लिए आधार को जोड़ती है, परिसंपत्तियों को जियो-टैग करती है, तृतीय-पक्ष निरीक्षण करती है, और गाँव के जल प्रवाह पर नज़र रखने के लिए IoT उपकरणों का उपयोग करती है।
जल जीवन मिशन के उद्देश्य जितने पाइपों से संबंधित हैं, उतने ही लोगों से भी संबंधित हैं। वंचित और जल संकटग्रस्त क्षेत्रों को प्राथमिकता देकर, स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों और स्वास्थ्य केंद्रों में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करके, और स्थानीय समुदायों को योगदान या श्रमदान के माध्यम से स्वामित्व लेने के लिए प्रोत्साहित करके, इस मिशन का उद्देश्य सुरक्षित जल को सभी की ज़िम्मेदारी बनाना है।
इसका प्रभाव सुविधा से कहीं आगे तक जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि JJM के लक्ष्यों को प्राप्त करने से प्रतिदिन 5.5 करोड़ घंटे से अधिक की बचत हो सकती है, यह समय अब शिक्षा, काम या परिवार पर खर्च किया जा सकता है। 9 करोड़ महिलाओं को अब बाहर से पानी लाने की ज़रूरत नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह भी अनुमान है कि सभी के लिए सुरक्षित जल, दस्त से होने वाली लगभग 4 लाख मौतों को रोक सकता है और स्वास्थ्य लागत में 8.2 लाख करोड़ रुपये की बचत कर सकता है। इसके अतिरिक्त, आईआईएम बैंगलोर और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, JJM ने अपने निर्माण के दौरान लगभग 3 करोड़ व्यक्ति-वर्ष का रोजगार सृजित किया है, और लगभग 25 लाख महिलाओं को फील्ड टेस्टिंग किट का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया गया है।

रसोई में एक माँ का साफ़ पानी से गिलास भरते समय मिलने वाला सुकून हो, या उस स्कूल का भरोसा जहाँ बच्चे बेफ़िक्र होकर पानी पी सकते हैं; जल जीवन मिशन, ग्रामीण भारत में जीवन जीने के मायने बदल रहा है।


