स्वच्छता और शासन सुधार मोदी की विरासत को आकार देंगे: हरदीप सिंह पुरी

7 अक्टूबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उच्च सार्वजनिक पद पर 20 सफल वर्ष पूरे किए। पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में और फिर प्रधानमंत्री के रूप में, मुख्य कार्यकारी के रूप में उनके दो कार्यकालों ने नेतृत्व को नए सिरे से परिभाषित किया है। ऐतिहासिक स्वच्छता अभियान में यह कहीं और अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

पहली उपलब्धि गुजरात में जल निकायों का बड़े पैमाने पर पुनरुद्धार है। केवल दो दशकों में तीव्र कमी से लेकर पर्याप्त जल आपूर्ति तक, एक ऐसे राज्य का कायाकल्प जो हमेशा पानी की कमी से जूझता था, आश्चर्यजनक है। सीएम के रूप में मोदी ने न केवल नर्मदा नहर के निर्माण की देखरेख की, बल्कि उन्होंने राज्य में सभी नहर प्रणालियों और जल स्रोतों के संवर्धन का भी नेतृत्व किया। इसके कारण राज्य सरकार ने पिछले दो दशकों में 184,000 चेक डैम और 327,000 कृषि तालाब बनाने, 31,500 तालाबों को गहरा करने और 1,000 परित्यक्त बावड़ियों को पुनर्जीवित करने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए। इन उपायों के परिणामस्वरूप आज सिंचाई योग्य क्षेत्र में 77% की वृद्धि हुई है और ग्राउंड वाटर रिचार्ज में 55% की वृद्धि हुई है।

प्रधानमंत्री के रूप में, जल प्रणालियों के पुनरुद्धार पर उनका ध्यान-खासकर हमारे शहरों में-अब फलदायी हो रहा है। उनका लक्ष्य: अटल मिशन फॉर रिजुवनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन 2.0 (AMRUT 2.0) और जल जीवन मिशन के माध्यम से देश को 'जल सुरक्षित' बनाना है।

मार्गदर्शक दर्शन; सर्वोदय और आत्मनिर्भरता के गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित है। गांधीजी स्वच्छता के पहले प्रस्तावक थे - उन्होंने 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में सफाई के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि "स्वच्छता स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है"।

2 अक्टूबर 2005 को मोदी ने गुजरात शहरी विकास वर्ष की शुरुआत की- 'निर्मल गुजरात' कार्यक्रम वह धागा था जिसने गांधीजी के अधूरे सपने को मोदी के इस विश्वास से जोड़ा कि सार्वभौमिक स्वच्छता ही वह आधार है जिस पर विकास टिका रहेगा। इस कार्यक्रम में सामुदायिक भागीदारी, महिलाओं के नेतृत्व में कार्यान्वयन, व्यवहार परिवर्तन पर ध्यान, मांग-संचालित दृष्टिकोण और वित्तीय प्रोत्साहन जैसी कई नवीन विशेषताएं पेश की गईं।

गुजरात में की गई प्रगति ने गांधीजी के सपने को हकीकत में बदलने के लिए स्वच्छ भारत मिशन के उनके विचार को प्रभावित किया। कुछ संशयवादियों ने सोचा कि खुले में शौच से मुक्त (ODF) देश बनना असंभव होगा। हम 2014 में मात्र 38% ODF स्थिति से आज लगभग 100% तक पहुँच चुके हैं, उल्लेखनीय अपवाद पश्चिम बंगाल राज्य है।

स्वच्छ भारत मिशन - शहरी (SBM-U) के तहत, इस सरकार ने 73 लाख से अधिक शौचालय बनाए हैं और शहरी क्षेत्रों की ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रसंस्करण क्षमता को 2014 के 18% से बढ़ाकर आज 70% से अधिक कर दिया है। इसे अगले स्तर पर ले जाते हुए, केंद्र ने इस गति को भुनाने के लिए SBM-U 2.0 लॉन्च किया, और 'ओडीएफ इंडिया' से 'कचरा मुक्त भारत' बनने की ओर कदम बढ़ाया।

प्रधानमंत्री दुनिया में सबसे व्यापक रूप से योजनाबद्ध शहरीकरण अभियान चलाकर शहरों की नई परिकल्पना कर रहे हैं। हमने शहरी निवेश में बड़ा सुधार करके अपने शहरों की छिपी हुई क्षमता को उजागर किया है। केवल पिछले छह वर्षों में ही मोदी सरकार ने शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर को उन्नत करने के लिए ₹11.83 लाख करोड़ खर्च किए हैं, जो 2004 से 2014 के बीच खर्च किए गए ₹1.57 लाख करोड़ से सात गुना अधिक है। इस दौरान जलवायु परिवर्तन, लैंगिक समानता, विरासत और समानता को मुख्यधारा में शामिल किया गया है।

प्रधानमंत्री आवास योजना - शहरी (PMAY-U) के तहत इस सरकार ने लगभग 1.14 करोड़ घरों को मंजूरी दी है, जिसमें लाभार्थी पहले से ही 51 लाख से अधिक घरों में पहुँच चुके हैं। अमृत मिशन ने 1 लाख से अधिक आबादी वाले 500 शहरों में बुनियादी नागरिक इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरतों को पूरा किया है। इसके बाद अब अमृत 2.0 आया है, जिसमें देश के सभी वैधानिक शहरों में नल कनेक्शन के साथ सार्वभौमिक जल आपूर्ति की परिकल्पना की गई है। स्मार्ट सिटीज मिशन ने शहरी विकास में इनोवेशन की संस्कृति को शामिल किया है जिसे सभी 4,378 शहरी केंद्र दोहरा सकते हैं।

ये पहल भारत में शहरी विकास के पिरामिड के लिए प्रधानमंत्री की स्पष्ट दृष्टि को दर्शाती हैं - जिसमें स्वच्छता और आवास जैसी बुनियादी जरूरतों से लेकर उन्नत डिजिटल सॉल्यूशंस और मोबिलिटी तक शामिल हैं।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि उन्होंने गवर्नेंस में रिफॉर्म के लिए किसी भी पिछले सरकार से ज़्यादा काम किया है। किसी को केवल उनके द्वारा किए गए सुधारों के दायरे को देखने की ज़रूरत है: चाहे वह शौचालय हो, बैंक खाते हों, डिजिटल सेवाएँ हों, पीने का पानी हो, बिजली हो, रक्षा हो या शहर हों, उन्होंने देश पर अपने विजन की छाप छोड़ी है।

 

लेखक: हरदीप सिंह पुरी

डिस्क्लेमर:

यह आर्टिकल सर्वप्रथम द इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित हुआ था।

यह उस प्रयास का हिस्सा है जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और उनके लोगों पर प्रभाव के बारे में किस्से, विचार या विश्लेषण को संकलित करता है।

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September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)