प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)

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1996 में मोदी जी से मेरी पहली मुलाकात ने मुझे नेतृत्व का जीवंत उदाहरण दिया: एमएल खट्टर
September 25, 2025

सार्वजनिक जीवन में, कुछ मुलाकातें केवल क्षणों को जीवित नहीं रखती है, बल्कि वे आपकी दिशा ही बदल देती हैं। मेरी पहली मुलाकात श्री नरेन्द्र मोदी जी से 1996 में ऐसे ही एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हुई थी। तब में सीखने और योगदान करने की तीव्र इच्छा के साथ एक युवा कार्यकर्ता के रूप में संगठन में शामिल हुआ था। लेकिन जब मैं उनके नेतृत्व में कार्य करके बाहर निकला तो एक बदला हुआ व्यक्ति बनकर उभरा। मोदी जी ने मेरे जीवन में एक ऐसी रेखा खींची जिसने राजनीति को स्पष्टता, समयसीमा और अंतिम नागरिक तक जवाबदेही के साथ उद्देश्यपूर्ण कार्य करने के लिए प्रेरित किया।

मोदी जी ने जो अनुशासन सिखाया,वह बहुत सरल था। उनका कहना है कि पूरी तरह सुनो, जल्दी फैसला लो, और लगातार काम करते रहो। मुझे एक बात जो उनकी बहुत अच्छी लगी वो ये है कि वे बहुत सहनशील हैं। वे हर बात ध्यान से सुनते हैं, कभी-कभी बोलने वाले से भी ज्यादा धैर्य रखते हैं। थोड़ी देर रुककर, वे जटिल बातों को बहुत सहजता से समझा देते हैं। उनके साथ बैठकें अधूरी उम्मीदों पर नहीं, बल्कि सही मापदंडों और समय सीमा के साथ खत्म होती हैं।

मोदी जी के साथ मेरी भूमिका स्पष्ट थी, तब से यही कार्यशैली रही कि ईमानदारी से काम करो, नियमित रूप से काम की रिपोर्ट दो एवं गलतियों को जल्द से जल्द सुधार करो और यही आदत मेरे कार्य का मूल सिद्धांत बन गई। इसका मतलब था दिखावे की जगह परिणामों को महत्व देना, बिना किसी नाटकीयता के कमियों को स्वीकार करना, और समस्याओं को तुरंत ठीक करना। ईमानदारी सिर्फ एक मूल्य नहीं थी, बल्कि सबसे प्रभावी और व्यावहारिक तरीका भी था काम करने का।

वे शुरुआती वर्ष मेरे लिए एक परीक्षा की तरह रहे। गुजरात में मुझे राजनीतिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों की जिम्मेदारी दी गई, जिनमें कच्छ की आधी सीटें शामिल थीं — ऐसे इलाके जहाँ दूरियाँ बहुत ज़्यादा थीं, लक्ष्य बेहद अस्पष्ट थे और समयसीमा बिल्कुल कठोर। इसके बाद वाराणसी में, मैंने एक विधानसभा क्षेत्र संभाला, जहाँ हर बूथ अपने आप में एक अलग संसार था।

मोदी जी के विश्वास से प्रेरित होकर मैंने जम्मू-कश्मीर और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी नई जिम्मेदारियाँ स्वीकार कीं। उस पूरे अनुभव से एक बात साफ़ थी की शांत निरंतरता, ऊँची बातों से ज्यादा असरदार होती है और आँकड़े, शोर से अधिक स्पष्टता से बोलते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ जुड़ा मेरा लगभग तीन दशकों का सफर सिर्फ एक सार्वजनिक जीवन की कहानी नहीं है, बल्कि एक व्यक्ति के कायापलट की यात्रा भी है। यह रिश्ता केवल साझा खिचड़ी पर नहीं बना, बल्कि उस निरंतर कर्मभूमि पर खड़ा हुआ जहाँ हर काम का मूल्यांकन उसके प्रभाव से होता है — और जहाँ यह सुनिश्चित किया जाता है कि विकास की यात्रा में कोई पीछे न रह जाए।

जब मुझे हरियाणा की बागडोर सौंपी गई, तो यह सिर्फ एक पद नहीं था, बल्कि मोदी जी के विश्वास, मार्गदर्शन और मूल्यों की एक अमूल्य विरासत थी। में इस विश्वास के लिए कृतज्ञ था, अपनी जिम्मेदारी के प्रति पूर्णतः सजग था, और सेवा को ही अपना धर्म मानते हुए मोदी जी के सान्निध्य में आगे बढ़ने का संकल्प मेरे भीतर गूंज रहा था।

2014 में जब मोदी जी ने देश का सर्वोच्च पद संभाला, तब पूरे देश में परिणामों की एक व्याकुल प्रतीक्षा साफ महसूस होती थी। लेकिन मोदी जी ने इसका उत्तर सिर्फ नारों से नहीं दिया — उन्होंने एक व्यवस्थित, दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ जवाब दिया।

जन धन योजना और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर ने कल्याणकारी योजनाओं में हो रही लीपापोती को समाप्त कर दिया। डिजिटल इंडिया ने टेक्नोलॉजी को लक्जरी हाथों से निकालकर आम जनता के लिए सुलभ हो ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया। यूपीआई ने लेनदेन को हर हाथ तक पहुंचा दिया। जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था को एक सूत्र में बाँध दिया। उन्होंने एक ऐसा सिस्टम बनाया जिसका उद्देश्य था कि संसाधन केवल कुछ लोगों के हाथ मे न रहें ये हर नागरिक के लिए सुलभ बनें।

आज शहरी विकास के क्षेत्र में मेरा कार्य इसी समग्र दृष्टिकोण को साकार होते हुए दर्शाता है। उदाहरण के लिए, आवास को ही लीजिए। प्रधानमंत्री आवास योजना–शहरी के अंतर्गत यह सुनिश्चित करने के लिए मिशन की अवधि दिसंबर 2025 तक बढ़ाई गई कि स्वीकृत घर, केवल कागज़ पर न रह जाएं, बल्कि पूर्ण रूप से तैयार होकर लोगों को वास्तव में मिलें।

अब तक शहरी क्षेत्रों में 1.19 करोड़ से अधिक घर स्वीकृत हो चुके हैं, जिनमें से 93 लाख से अधिक का निर्माण पूरा हो चुका है। लेकिन हर तैयार घर केवल ईंट-पत्थर की संरचना नहीं है—वह एक ऐसी चाबी है जो उस दरवाज़े को खोलती है, जो पहले कभी था ही नहीं।

यही है “अंतिम पंक्ति के व्यक्ति” को गरिमा देने का सजीव उदाहरण — ज़मीनी स्तर पर आत्मसम्मान को साकार करने वाली सोच।

शहरों की अर्थव्यवस्था की नाजुक रीढ़—फुटपाथ विक्रेता—को प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के माध्यम से सशक्त किया गया। इस योजना में माइक्रो-क्रेडिट को जमानत नहीं, बल्कि डिजिटल लेनदेन से जोड़ा गया। इससे छोटे-छोटे उद्यम भी एक भरोसेमंद आजीविका का आधार बन सके।

जुलाई 2025 तक 68 लाख से अधिक रेहड़ी-पटरी विक्रेताओं को 13,800 करोड़ रुपये की राशि के 96 लाख से अधिक ऋण प्रदान किए जा चुके हैं। इनमें से लाखों ने डिजिटल भुगतान को अपनाया—यह एक जीवंत प्रमाण है कि जब व्यवस्था समावेशी होती है, तो गरिमा भी व्यापक स्तर पर पहुँचती है।

शहरों का परिवर्तन केवल बड़ी इमारतों या चमक-धमक वाली परियोजनाओं तक सीमित नहीं है। यह उन इंफ्रास्ट्रक्चर के बारे में भी है जो दिखते कम हैं, पर ज़िंदगी के लिए बेहद ज़रूरी हैं—जैसे पाइपलाइन, नालियाँ और स्ट्रीट लाइटें।

AMRUT और AMRUT 2.0 योजनाओं के तहत पिछले एक दशक में दो करोड़ से अधिक घरों तक नल कनेक्शन और करीब डेढ़ करोड़ सीवर कनेक्शन पहुँचाए गए। अब लगभग एक करोड़ एलईडी स्ट्रीट लाइटें हमारे शहरों को रोशन कर रही हैं—जो न केवल ऊर्जा की बचत करती हैं, बल्कि नगर निकायों के खर्च को भी कम करती हैं।

शहरी स्थानीय निकाय अब म्यूनिसिपल बॉन्ड्स के ज़रिए अपने भविष्य को स्वयं फाइनेंस कर रहे हैं—ये वे अदृश्य लेकिन महत्वपूर्ण सफलताएँ हैं जो हमारे शहरों को वास्तव में रहने योग्य बनाती हैं।

स्मार्ट सिटीज मिशन अब ज़मीन पर दिखाई देने लगा हैं। मई 2025 तक, इस मिशन के तहत शुरू की गई 8,000 से अधिक परियोजनाओं में से 94 प्रतिशत पूरी हो चुकी थीं, और शेष भी अंतिम चरण में थीं। यह दर्शाता है कि यदि नागरिक दर्शक नहीं, बल्कि सहभागी बनें, तो संघीय योजनाएँ भी समयबद्ध रूप से सफल हो सकती हैं। शहरी प्रयासों को एकजुट करने के लिए नेशनल अर्बन डिजिटल मिशन एक साझा डिजिटल आधार तैयार कर रहा है—ऐसे साझा प्लेटफॉर्म, रियल-टाइम डैशबोर्ड और मॉड्यूलर सेवाएँ जो शहरों और नागरिकों के बीच की दूरी को कम कर रही हैं।

अधिकांश राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ हुए समझौतों के अंतर्गत हजारों शहरी निकाय इस प्रणाली से जुड़ चुके हैं। लाइसेंस, जन शिकायतों और स्वच्छता जैसे कार्यों के लिए तैयार किए गए डिजिटल मॉड्यूल एक साझा टेक्नोलॉजी स्टैक पर चल रहे हैं।

बिजली के क्षेत्र में भी इसी तरह की परिवर्तनकारी कहानी देखने को मिलती है। सौभाग्य योजना के तहत मार्च 2022 तक लगभग 2.86 करोड़ घरों में बिजली पहुँचाई गई, जिससे करोड़ों लोगों के जीवन से अंधकार मिट गया।

लेकिन केवल बिजली पहुँचाना पहला कदम नहीं था। इसके बाद विश्वसनीयता की बारी थी, जो पुनर्गठित वितरण क्षेत्र योजना के तहत सुनिश्चित की गई हैं।

अब तक 20 करोड़ से अधिक स्मार्ट मीटर स्वीकृत किए जा चुके हैं, और 2.4 करोड़ से अधिक इंस्टॉल हो चुके हैं। इससे बिजली वितरण प्रणाली पारदर्शी से उत्तरदायी बनी है। स्मार्ट मीटर अब केवल तकनीकी उपकरण नहीं हैं, बल्कि सशक्त शासन का साधन बन चुके हैं।

रिन्यूएबल-एनर्जी उत्पादन में निर्णायक प्रगति हुई। अगस्त 2025 तक, भारत ने लगभग 1.92 लाख मेगावाट रिन्यूएबल-एनर्जी (बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को छोड़कर) स्थापित की — जिसमें लगभग 1.23 लाख मेगावाट सौर ऊर्जा और 52,000 मेगावाट से अधिक पवन ऊर्जा शामिल हैं। बात केवल आंकड़ों की नहीं है, बल्कि बड़े पैमाने पर इसे सामान्य बनाने की है। प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के माध्यम से रूफटॉप सोलर घर-घर तक पहुंचा, और स्व-उत्पादन को मुख्यधारा में लाने के लिए स्पष्ट समयसीमाएं तय की गईं। गांव की चौपालों से लेकर शहरों की छतों तक, सोलर पैनल अब एक परिचित छवि बन चुके हैं।

इन सभी क्षेत्रों से एक स्पष्ट पैटर्न उभरकर सामने आता है—आस्था, जो आंकड़ों से जुड़ी हो और महत्वाकांक्षा, जो समयसीमाओं से अनुशासित हो। प्रधानमंत्री मोदी खुद को देश का प्रधान सेवक कहते हैं—ये कोई सजावट या दिखावा नहीं, बल्कि उनके कार्यशैली का मूल मंत्र है। यह उनके साथ कार्य करने वालों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि विकास में ढिलाई को स्वीकार न करें, लोगों का सम्मान करें, पारदर्शिता से कार्य करें, और समय का सम्मान करें। यहाँ नेतृत्व का अर्थ श्रेय लेना नहीं, बल्कि उत्तरदायित्व की संस्कृति को जीना है।

जब मोदी जी राष्ट्र सेवा के अपने 76वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, मैं करोड़ों लोगों के साथ उन्हें शक्ति और सफलता की शुभकामनाएँ देता हूँ। विश्व मंच पर वे एक अनुभवी राजनेता हैं, जो भारत के जहाज को वैश्विक अशांत समुद्रों में कुशलता से संचालित कर रहे हैं—साझेदारियाँ बना रहे हैं, हमारे हितों को आगे बढ़ा रहे हैं, ग्लोबल साउथ की आवाज उठा रहे हैं, और जब हालात कठिन होते हैं तब भी अपने सिद्धांतों पर अडिग बने हुए हैं।

आगे आने वाले वर्षों में वे स्पष्ट दृष्टि के साथ देश को ‘विकसित भारत’ के बड़े लक्ष्य की ओर ले जाएं। जहाँ सभी के लिए सामान अवसर हो और हमारे देश का क्षितिज व्यापक हो। जो लोग उनके मार्गदर्शन में सीखने का सौभाग्य प्राप्त कर चुके हैं। उनके लिए लक्ष्य निश्चित है। हम सभी को इसी उद्देश्य, गति और विश्वास को समाज के आखिरी व्यक्ति तक बनाए रखना है।

(मनोहर लाल खट्टर, केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्री और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। वे ट्विटर पर @mlkhattar के नाम से एक्टिव हैं।)