नई पीढ़ी में किताबें पढ़ने की आदत डालें: प्रधानमंत्री मोदी
पीएम मोदी ने नई पीढ़ी के बीच किताबें पढ़ने की आदत को बढ़ाने का आह्वान करते हुए कहा कि टेक्स्ट, ट्वीट और "गूगल गुरु" के इस युग में यह जरूरी है कि वे महत्वपूर्ण ज्ञान पाने से दूर न हों
सोशल मीडिया के इस युग में मीडिया की भी कई बार आलोचना की जाती है, लेकिन हर किसी को आलोचना से सीखने की जरूरत है, यही भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाता है: प्रधानमंत्री

नमस्कार!

राजस्थान के गवर्नर कलराज मिश्र जी, मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी, राजस्थान पत्रिका के गुलाब कोठारी जी,पत्रिका समूह के अन्य कर्मचारीगण, मीडिया के साथी, देवियों और सज्जनों !!!

गुलाब कोठारी जी और पत्रिका समूह को संवाद उपनिषद और अक्षरयात्रा पुस्तकों के लिए हार्दिक शुभकामनायें।

ये पुस्तकें साहित्य और संस्कृति, दोनों के लिए अनुपम उपहार हैं। आज मुझे राजस्थान की संस्कृति को प्रतिबिंबित करते पत्रिका गेट को भी समर्पित करने का अवसर मिला है। ये स्थानीय निवासियों के साथ ही, वहां आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनेगा।

इस प्रयास के लिए भी आप सभी को बहुत-बहुत बधाई।

साथियों,

किसी भी समाज में समाज का प्रबुद्ध वर्ग,समाज के लेखक या साहित्यकार ये पथप्रदर्शक की तरह होते हैं,समाज के शिक्षक होते हैं। स्कूली शिक्षा तो खत्म हो जाती है, लेकिन हमारे सीखने की प्रक्रिया पूरी उम्र चलती है, हर दिन चलती है। इसमें बड़ी ही अहम भूमिका पुस्तकों और लेखकों की भी है। हमारे देश में तो लेखन का निरंतर विकास भारतीयता और राष्ट्रीयता के साथ हुआ है।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लगभग हर बड़ा नाम, कहीं न कहीं से लेखन से भी जुड़ा था। हमारे यहां बड़े-बड़े संत, बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी लेखक और साहित्यकार रहे हैं। मुझे खुशी है, उस परंपरा को जीवंत रखने का आप सब लगातार प्रयास कर रहे हैं। और बड़ी बात ये भी है कि राजस्थान पत्रिका समूह इस बात को खुद कहने का साहस रखता है कि हम विदेशों के अंधानुकरण की दौड़ में शामिल नहीं है। आप भारतीय संस्कृति, भारतीय सभ्यता और मूल्यों के संरक्षण को, उन्हें आगे बढ़ाने को प्राथमिकता देते हैं।

गुलाब कोठारी जी की ये पुस्तकें, संवाद उपनिषद और अक्षर यात्रा भी, इसका जीता जागता प्रमाण हैं। गुलाब कोठारी जी आज जिस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं,पत्रिका की तो शुरुआत ही कहीं न कहीं इन्हीं संस्कारों के साथ हुई थी। श्री कर्पूर चंद्र कुलिश जी ने भारतीयता, और भारत सेवा के संकल्प को लेकर ही पत्रिका की परंपरा को शुरू किया था। पत्रकारिता में उनके योगदान को तो हम सब याद करते ही हैं,लेकिन कुलिश जी ने वेदों के ज्ञान को जिस तरह से समाज तक पहुंचाने का प्रयास किया,वो सचमुच अद्भुत था। मुझे भी व्यक्तिगत तौर पर स्वर्गीय कुलिश जी से मिलने का कई बार अवसर मिला। उनकी मुझसे बहुत आत्मीयता थी।

वो अक्सर कहते थे,पत्रकारिता सकारात्मकता से ही सार्थकता तक पहुँचती है।

साथियों,

समाज को कुछ सकारात्मक देने की ये सोच केवल पत्रकार या लेखक के तौर पर ही जरूरी हो, ऐसा नहीं है। ये सकारात्मकता, ये सोच एक व्यक्ति के तौर पर भी हमारे व्यक्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। मुझे संतोष है कि कुलिश जी की इस सोच को, उनके संकल्प को पत्रिका समूह और गुलाब कोठारी जी निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं। गुलाब कोठारी जी, आपको तो याद होगा जब कोरोना को लेकर प्रिंट मीडिया के साथियों से मैंने मुलाक़ात की थी, तब भी आपके सुझाव, आपकी सलाह पर मैंने कहा था कि आपके शब्द मुझे आपके पिता की याद दिलाते हैं। संवाद उपनिषद और अक्षर यात्रा को देखकर भी यही लगता है कि आप अपने पिता की वैदिक विरासत को कितनी मजबूती से आगे बढ़ा रहे हैं।

साथियों,

जब मैं गुलाब जी की पुस्तकें देख रहा था,तो मुझे उनका एक संपादकीय भी याद आ गया। 2019 में चुनाव नतीजों के बाद जब मैंने पहली बार देश के लोगों से बात की थी, तो कोठारी जी ने उस पर ‘स्तुत्य संकल्प’ लिखा था। उन्होंने लिखा था कि, मेरी बातों को सुनकर उन्हें ऐसा लगा जैसे उनकी ही बात को मैंने 130 करोड़ देशवासियों के सामने कह दिया हो। कोठारी जी, आपकी पुस्तकों में जब जब उपनिषदीय ज्ञान और वैदिक विमर्श मिलता है, उसे पढ़कर कहीं कहीं मुझे भी ऐसा ही लगता है जैसे अपने ही भावों को पढ़ रहा हूं।

वास्तव में मानव मात्र के कल्याण के लिए, सामान्य मानवी की सेवा के लिए शब्द चाहे किसी के भी हों, उनका संबंध हर किसी के हृदय से होता है। इसीलिए तो हमारे वेदों को,वेदों के विचारों को कालातीत कहा गया है। वेद मंत्रों के दृष्टा चाहे कोई भी ऋषि हों, लेकिन उनकी भावना, उनका दर्शन मानव मात्र के लिए है, इसीलिए हमारे वेद, हमारी संस्कृति विश्वभर के लिए है। उपनिषद संवाद और अक्षर यात्रा भी उसी भारतीय चिंतन की एक कड़ी के रूप में लोगों तक पहुंचेगी, ऐसी मेरी अपेक्षा है। आज text और tweet के इस दौर में ये और ज्यादा जरूरी है कि हमारी नई पीढ़ी गंभीर ज्ञान से दूर न हो जाए।

साथियों,

हमारे उपनिषदों का ये ज्ञान, वेदों का ये चिंतन, ये केवल आध्यात्मिक या दार्शनिक आकर्षण का ही क्षेत्र नहीं है। वेद और वेदान्त में सृष्टि और विज्ञान का भी दर्शन है, कितने ही वैज्ञानिकों को इसने आकर्षित किया है, कितने ही वैज्ञानिकों ने इसमें गंभीर रुचि दिखाई है। हम सबने निकोला टेस्ला का नाम सुना ही होगा। टेस्ला के बिना ये आधुनिक विश्व आज ऐसा नहीं होता जैसा हम देख रहे हैं। आज से एक सदी पहले जब स्वामी विवेकानन्द अमेरिका गए थे, तो निकोला टेस्ला से उनकी मुलाक़ात हुई थी। स्वामी विवेकानन्द ने टेस्ला को जब उपनिषदों के ज्ञान, वेदान्त की ब्रह्मांड व्याख्या के बारे में बताया तो वो हतप्रभ थे।

आकाश और प्राण जैसे संस्कृत शब्दों से ब्रह्मांड की जैसी गहरी चर्चा उपनिषदों में की गई है, टेस्ला ने कहा कि वो इसे आधुनिक विज्ञान की भाषा में, गणितीय समीकरणों में लेकर आएंगे। उन्हें लगा था कि वो इस ज्ञान से विज्ञान की सबसे गूढ पहेलियों को सुलझा सकते हैं। हाँलाकि बाद में कई और research हुई, जो चर्चा स्वामी विवेकानन्द और निकोला टेस्ला की हुई थी, अलग तरीके से वो चीजें हमारे सामने आईं। आज भी काफी रिसर्च हो रही है। लेकिन कहीं न कहीं ये एक प्रसंग हमें अपने ज्ञान को लेकर पुनर्चिंतन करने को प्रेरित करता है। आज हमारे युवाओं को इस दृष्टि से भी जानने, सोचने और समझने की जरूरत है। इसलिए, संवाद उपनिषद जैसी पुस्तक, अक्षर की यात्रा पर इतना गहन मंथन, ये हमारे युवाओं के लिए एक नया आयाम खोलेगी, उन्हें वैचारिक गहराई देगी।

साथियों,

अक्षर हमारी भाषा की, हमारी अभिव्यक्ति की पहली इकाई होते हैं। संस्कृत में अक्षर का अर्थ है, जिसका क्षरण न हो। यानि जो हमेशा रहे। विचार की यही शक्ति है। यही सामर्थ्य है। हजारों साल पहले जो विचार, जो ज्ञान किसी ऋषि, महर्षि, वैज्ञानिक, दार्शनिक ने हमें दिया, वो आज भी संसार को आगे बढ़ा रहा है। इसीलिए, हमारे उपनिषदों में, हमारे शास्त्रों में अक्षर ब्रह्म की बात कही गई है,‘अक्षरम् ब्रह्म परमम्’ का सिद्धान्त दिया गया है।

हमारे शास्त्रों में कहा गया है-“शब्द ब्रह्मणि निष्णातः परम् ब्रह्माधि गच्छति”॥ यानि, शब्द ही ब्रह्म है। जो इस शब्द ब्रह्म को पूरी तरह जान लेता है, वह ब्रह्मत्व को, ईश्वरत्व को पा लेता है।

शब्द की महिमा, शब्द को ईश्वर कहने का ऐसा उदाहरण कहीं और नहीं मिलता। इसलिए, शब्दों से सच कहने का साहस, शब्दों से सकारात्मकता देने की शक्ति, शब्दों से सृजन करने की सोच,ये भारतीय मानस का स्वभाव है। हमारी प्रकृति है। जब हम इस शक्ति को महसूस करते हैं, तब एक साहित्यकार के रूप में, एक लेखक के रूप में अपने महत्व को समझ पाते हैं, समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी महसूस कर पाते हैं।

आप देखिए, गरीबों को शौचालय देने वाला, अनेक बीमारियों से बचाने वाला स्वच्छ भारत अभियान हो, माताओं-बहनों को लकड़ी के धुएं से बचाने वाली उज्जवला गैस योजना हो, हर घर तक जल पहुंचाने के लिए चल रहा जल जीवन मिशन हो, सभी में मीडिया ने जागरूकता बढ़ाने का काम काम किया है। महामारी के इस दौर में कोरोना के खिलाफ जागरूकता अभियान में भी भारतीय मीडिया ने जनता की अभूतपूर्व सेवा की है। सरकार के कार्यों की विवेचना, सरकार की योजनाओं में जमीनी स्तर पर जो कमियां हैं, उसे बताना, उसकी आलोचना करना, ये भी हमारा मीडिया बखूबी करता रहा है।

हां, कई बार ऐसे मौके भी आते हैं जब मीडिया की आलोचना भी होती है,सोशल मीडिया के दौर में तो ये और भी ज्यादा स्वाभाविक हो गया है। लेकिन, आलोचना से सीखना भी हम सबके लिए उतना ही स्वाभाविक है। इसीलिए ही आज हमारा लोकतन्त्र इतना सशक्त हुआ है, मजबूत हुआ है।

साथियों,

जिस तरह आज हम अपनी विरासत, अपने विज्ञान, अपनी संस्कृति, अपने सामर्थ्य को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, उसे स्वीकार कर रहे हैं, हमें अपने इस आत्मविश्वास को आगे बढ़ाना है। आज जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहे हैं, आज जब लोकल के लिए वोकल होने की बात कर रहे हैं, मुझे खुशी है कि हमारा मीडिया इस संकल्प को एक बड़े अभियान की शक्ल दे रहा है, साथियों, हमें अपने इस vision को और व्यापक करने की जरूरत है।

भारत के लोकल products तो ग्लोबल हो ही रहे हैं, लेकिन भारत की आवाज़ भी अब ज्यादा ग्लोबल हो रही है। दुनिया भारत को अब और ज्यादा ध्यान से सुनती है। आज लगभग हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की बहुत मजबूत उपस्थिति है। ऐसे में भारतीय मीडिया को भी ग्लोबल होने की जरूरत है। हमारे अखबारों की, magazines की ग्लोबल reputation बने,डिजिटल युग में digitally हम पूरी दुनिया में पहुंचे, दुनिया में जो अलग अलग literary awards दिये जाते हैं,भारत की संस्थाएं भी वैसे ही awards दें, ये भी आज समय की मांग है। ये भी देश के लिए जरूरी है।

मुझे जानकारी है कि श्री कर्पूरचंद्र कुलिश जी की स्मृति में पत्रिका समूह ने अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार की शुरुआत की है। मैं इसके लिए समूह को बधाई देता हूँ। मुझे विश्वास है कि आपके ये प्रयास भारत को वैश्विक मीडिया मंच पर एक नई पहचान दिलाएँगे। कोरोना काल में जिस तरह से जन जागरूकता का काम पत्रिका समूह ने किया है, उसके लिए भी एक बार फिर से आपको बधाई देता हूँ।

इस अभियान को अभी और तेज करने की जरूरत है। हमारे देशवासी भी स्वस्थ रहें, और अर्थव्यवस्था को भी गति मिले ये आज देश की प्राथमिकता है। मुझे भरोसा है कि, देश जल्द ही ये लड़ाई जीतेगा, देश की यात्रा भी अक्षर यात्रा बनेगी।

इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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Chief Minister of Gujarat meets Prime Minister
December 19, 2025

The Chief Minister of Gujarat, Shri Bhupendra Patel met Prime Minister, Shri Narendra Modi today in New Delhi.

The Prime Minister’s Office posted on X;

“Chief Minister of Gujarat, Shri @Bhupendrapbjp met Prime Minister @narendramodi.

@CMOGuj”