रामागुंडम में उन्होंने उर्वरक संयंत्र समर्पित किया
"दुनिया भर के विशेषज्ञ भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास पथ को लेकर उत्साहित हैं"
"एक नया भारत खुद को आत्मविश्वास और विकास की आकांक्षाओं के साथ दुनिया के सामने पेश कर रहा है"
"उर्वरक क्षेत्र केंद्र सरकार के ईमानदार प्रयासों का प्रमाण"
"एससीसीएल के निजीकरण का कोई प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास विचाराधीन नहीं है"
“तेलंगाना सरकार की एससीसीएल में 51% हिस्सेदारी है, जबकि केंद्र सरकार की 49% हिस्सेदारी है; केंद्र सरकार अपने स्तर पर एससीसीएल के निजीकरण से संबंधित कोई निर्णय नहीं ले सकती है”

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज तेलंगाना के रामागुंडम में 9500 करोड़ रुपये से अधिक की कई परियोजनाओं का शिलान्यास किया और उन्हें राष्ट्र को समर्पित किया। इससे पहले आज प्रधानमंत्री ने रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (आरएफसीएल) संयंत्र का दौरा किया।

सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन परियोजनाओं का शुभारंभ किया गया है और जिनके लिए आज आधारशिला रखी गई, वे कृषि और कृषि विकास दोनों को बढ़ावा देंगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक तरफ पूरी दुनिया कोरोना महामारी से निपट रही है और दूसरी तरफ युद्ध तथा सैन्य कार्रवाइयों की विकट स्थितियों से प्रभावित हो रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि "लेकिन इन सबके बीच विशेषज्ञ भविष्यवाणी कर रहे हैं कि भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।" प्रधानमंत्री ने कहा कि विशेषज्ञ ये भी कह रहे हैं कि 90 के दशक से 30 वर्षों में जितना विकास हुआ है, उसके बराबर विकास अगले कुछ वर्षों में हो जाएगा। उन्होंने कहा, "इस धारणा का मुख्य कारण है बीते 8 वर्षों के दौरान देश में हुआ बदलाव। भारत ने पिछले 8 वर्षों में काम करने के अपने दृष्टिकोण को बदल दिया है। इन 8 वर्षों में गवर्नेंस की सोच के साथ-साथ नजरिए में भी बदलाव आया है।" उन्होंने कहा कि इस तब्दीली को बुनियादी ढांचे, सरकारी प्रक्रियाओं, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस और बाकी परिवर्तनों में देखा जा सकता है जो कि भारत के आकांक्षी समाज से प्रेरित हो रहे हैं।

उन्होंने कहा, "एक नया भारत खुद को आत्मविश्वास और विकास की आकांक्षाओं के साथ दुनिया के सामने पेश कर रहा है।" प्रधानमंत्री ने कहा कि विकास लगातार जारी रहने वाला मिशन है जो देश में साल के 365 दिन चलता रहता है। उन्होंने कहा कि जब एक परियोजना को समर्पित कर दिया जाता है तो उसके साथ-साथ नई परियोजनाओं पर काम शुरू हो जाता है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि जिन परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई है, उनके विकास को गति देने के प्रयास किए जा रहे हैं और रामागुंडम परियोजना इसका स्पष्ट उदाहरण है। रामागुंडम परियोजना की आधारशिला 7 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री द्वारा रखी गई थी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि 21वीं सदी का भारत अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करके आगे बढ़ सकता है। प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि "जब हमारा उद्देश्य महत्वाकांक्षी है तो हमें नई पद्धतियों का इस्तेमाल करना होता है और नई सुविधाओं का निर्माण करना होता है।" श्री मोदी ने कहा कि भारत का उर्वरक क्षेत्र केंद्र सरकार के ईमानदार प्रयासों का प्रमाण है। जब भारत उर्वरकों की मांग पूरी करने के लिए विदेशों पर निर्भर करता था, उस समय को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि रामागुंडम संयंत्र सहित पहले जो कई उर्वरक संयंत्र स्थापित किए गए थे, वे अप्रचलित प्रौद्योगिकियों के कारण बंद होने के लिए मजबूर हो गए थे। उन्होंने कहा कि यूरिया जो अत्यधिक ऊंची कीमत पर आयात किया जाता था, उसकी किसानों तक पहुंचने के बजाय अन्य उद्देश्यों के लिए कालाबाजारी कर दी जाती थी।

उर्वरक उपलब्धता में सुधार के उपाय

  • यूरिया की 100% नीम कोटिंग
  • बंद पड़े 5 बड़े संयंत्रों के खुलने से 60 लाख टन से ज्यादा यूरिया का उत्पादन होगा
  • नैनो यूरिया पर जोर
  • पूरे भारत में एक ब्रांड 'भारत ब्रांड'
  • उर्वरकों को सस्ता रखने के लिए 8 साल में 9.5 लाख करोड़ खर्च
  • इस साल 2.5 लाख करोड़ से ज्यादा खर्च हुए
  • यूरिया बैग की अंतरराष्ट्रीय कीमत 2000 रुपये, किसान यहां देते हैं 270 रुपये
  • हर डीएपी खाद की बोरी पर 2500 की सब्सिडी मिलती है
  • उर्वरक से जुड़े जानकारी पूर्ण निर्णयों के लिए सॉयल हेल्थ कार्ड
  • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 2.25 लाख करोड़ रुपए ट्रांसफर किए गए

 

2014 के बाद केंद्र सरकार ने जो सबसे पहले कदम उठाए उनमें से एक था यूरिया की 100% नीम कोटिंग सुनिश्चित करना और कालाबाजारी रोकना। उन्होंने कहा कि सॉयल हेल्थ कार्ड अभियान ने किसानों के बीच उनके खेतों की इष्टतम जरूरतों के बारे में ज्ञान सुनिश्चित किया। कई बरसों से बंद पड़े पांच बड़े उर्वरक संयंत्रों को फिर से शुरू किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर संयंत्र ने उत्पादन शुरू कर दिया है, और रामागुंडम संयंत्र भी राष्ट्र को समर्पित किया गया है। जब ये पांच संयंत्र पूरी तरह से काम करने लगेंगे तो देश को 60 लाख टन यूरिया मिलेगा, जिससे आयात में भारी बचत होगी और यूरिया की उपलब्धता आसान होगी। उन्होंने बताया कि रामागुंडम उर्वरक संयंत्र तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में किसानों को सेवाएं देगा। ये संयंत्र आसपास के क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को गति देगा और इस इलाके में लॉजिस्टिक्स से जुड़े व्यवसायों को बढ़ावा देगा। उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार द्वारा निवेश किए गए 6000 करोड़ रुपये तेलंगाना के युवाओं को कई हजार रुपये का लाभ देंगे।" प्रधानमंत्री ने उर्वरक क्षेत्र में तकनीकी प्रगति के बारे में भी बात की और कहा कि नैनो यूरिया इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव लाएगा। प्रधानमंत्री ने कृषि के महत्व पर जोर दिया और ज़िक्र किया कि कैसे महामारी और युद्ध के कारण बढ़ी उर्वरकों की वैश्विक कीमतों का भार किसानों पर नहीं पड़ने दिया गया है। किसान को 2000 रुपये की यूरिया की बोरी 270 रुपये में उपलब्ध कराई जा रही है। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में 4000 रुपये की कीमत वाले डीएपी के एक बैग पर 2500 रुपये की सब्सिडी दी जाती है।

 

प्रधानमंत्री ने जानकारी दी कि "बीते 8 वर्षों में केंद्र सरकार तकरीबन 10 लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है ताकि किसानों पर उर्वरकों का बोझ न पड़े।" उन्होंने कहा कि भारत के किसानों के लिए सस्ती खाद उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार ने इस साल अब तक 2.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं। प्रधानमंत्री ने बताया कि केंद्र सरकार ने पीएम किसान सम्मान निधि के तहत किसानों के बैंक खातों में लगभग 2.25 लाख करोड़ रुपये ट्रांसफर किए हैं। प्रधानमंत्री ने बाजार में उपलब्ध उर्वरकों के ढेर सारे ब्रांडों का जिक्र किया जो दशकों से किसानों के लिए चिंता का विषय बने हुए थे। उन्होंने कहा, “यूरिया का अब भारत में केवल एक ब्रांड होगा और ये भारत ब्रांड कहलाएगा। इसकी गुणवत्ता और कीमत पहले से ही निर्धारित है।" ये इस बात का एक स्पष्ट उदाहरण है कि सरकार किस प्रकार इस क्षेत्र में सुधार कर रही है, खासकर छोटे किसानों के लिए।

प्रधानमंत्री ने कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर की चुनौती के बारे में भी बात की। मौजूदा सरकार हर राज्य को आधुनिक राजमार्ग, हवाई अड्डे, जलमार्ग, रेलवे और इंटरनेट राजमार्ग उपलब्ध कराकर इस चुनौती से निपटने के लिए काम कर रही है। पीएम गतिशक्ति नेशनल मास्टर प्लान से इसे नई ऊर्जा मिल रही है। उन्होंने कहा कि समन्वय और जानकारी पूर्ण कार्यशैली से परियोजनाओं के लंबे समय तक लटकने की संभावना अब खत्म हो रही है। उन्होंने कहा कि भद्राद्री कोठागुडेम जिले और खम्मम को जोड़ने वाली रेलवे लाइन 4 साल में तैयार हुई है और इससे स्थानीय आबादी को बहुत फायदा मिलेगा। इसी तरह आज जिन तीन राजमार्गों पर काम शुरू हुआ है जिससे इस इंडस्ट्रियल बेल्ट, गन्ना और हल्दी उत्पादकों को लाभ होगा।

देश में जब विकास कार्य गति पकड़ते हैं तब जो अफवाहें उठती हैं उनका जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ ताकतें हैं जो राजनीतिक फायदे के लिए अड़ंगा लगाती हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में तेलंगाना में 'सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड-एससीसीएल' और विभिन्न कोयला खदानों को लेकर ऐसी ही अफवाहें फैलाई जा रही हैं। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि “तेलंगाना सरकार की एससीसीएल में 51% हिस्सेदारी है, जबकि केंद्र सरकार की 49% हिस्सेदारी है। केंद्र सरकार अपने स्तर पर एससीसीएल के निजीकरण से संबंधित कोई भी निर्णय नहीं ले सकती है।" उन्होंने दोहराया कि केंद्र सरकार के पास एससीसीएल के निजीकरण का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।

प्रधानमंत्री ने कोयला खदानों से जुड़े हज़ारों करोड़ रुपयों के अनगिनत घोटालों को याद किया जिन्होंने देश की नाक में दम कर दिया था। उन्होंने बताया कि हमारे देश के साथ-साथ श्रमिकों, गरीबों और उन क्षेत्रों को भारी नुकसान हुआ जहां ये खदानें स्थित थीं। उन्होंने कहा कि देश में कोयले की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पूरी पारदर्शिता के साथ कोयला खदानों की नीलामी की जा रही है। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार ने डीएमएफ यानी जिला खनिज कोष भी बनाया है ताकि जहां से खनिज निकाले जाते हैं उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को लाभ दिया जा सके। इस फंड के तहत राज्यों को हजारों करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।"

अपने संबोधन के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा, "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास – इस मंत्र का पालन करके हम तेलंगाना को आगे ले जाना चाहते हैं।"

इस अवसर पर तेलंगाना की राज्यपाल डॉ. तमिलिसाई सुंदरराजन, केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी, सांसद और विधायक उपस्थित थे। इस आयोजन से 70 विधानसभा क्षेत्रों के किसान जुड़े थे।

पृष्ठभूमि

प्रधानमंत्री ने रामागुंडम में उर्वरक संयंत्र राष्ट्र को समर्पित किया जिसकी रामागुंडम परियोजना की आधारशिला भी 7 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री द्वारा रखी गई थी। इस उर्वरक संयंत्र के पुनरुद्धार के पीछे की प्रेरक शक्ति दरअसल प्रधानमंत्री का विजन है कि यूरिया के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करनी है। रामागुंडम संयंत्र स्वदेशी नीम-कोटेड यूरिया का 12.7 एलएमटी उत्पादन प्रति वर्ष उपलब्ध कराएगा।

ये परियोजना रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (आरएफसीएल) के तत्वावधान में स्थापित की गई है, जो कि नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (एनएफएल), इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (ईआईएल) और फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एफसीआईएल) की एक संयुक्त उद्यम कंपनी है। आरएफसीएल को 6300 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश से नया अमोनिया-यूरिया संयंत्र स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। आरएफसीएल संयंत्र को गैस की आपूर्ति जगदीशपुर-फूलपुर-हल्दिया पाइपलाइन के माध्यम से की जाएगी।

ये संयंत्र तेलंगाना राज्य के साथ-साथ आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में किसानों को यूरिया उर्वरक की पर्याप्त और समयबद्ध आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। ये संयंत्र न सिर्फ उर्वरक की उपलब्धता में सुधार करेगा बल्कि इससे इस क्षेत्र के समग्र आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा जिसमें सड़क, रेलवे, सहायक उद्योगों जैसे बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है। इसके अलावा, इस कारखाने के लिए विभिन्न सामानों की आपूर्ति से एमएसएमई विक्रेताओं का विकास होगा जिससे इस क्षेत्र को लाभ होगा। आरएफसीएल का 'भारत यूरिया' न केवल आयात को कम करेगा बल्कि उर्वरकों और विस्तार सेवाओं की समय पर आपूर्ति के जरिए स्थानीय किसानों को प्रोत्साहन देकर अर्थव्यवस्था को जबरदस्त बढ़ावा देगा।

प्रधानमंत्री ने लगभग 1000 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित भद्राचलम रोड-सत्तुपल्ली रेल लाइन भी राष्ट्र को समर्पित की। उन्होंने 2200 करोड़ रुपये से अधिक की विभिन्न सड़क परियोजनाओं की आधारशिला भी रखी। ये परियोजनाएं हैं: - एनएच-765डीजी का मेडक-सिद्दीपेट-एलकाठुर्ति खंड; एनएच-161बीबी का बोधन-बसर-भैंसा खंड; एनएच-353सी का सिरोंचा से महादेवपुर खंड।

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Today, the world sees the Indian Growth Model as a model of hope: PM Modi
November 17, 2025
India is eager to become developed, India is eager to become self-reliant: PM
India is not just an emerging market, India is also an emerging model: PM
Today, the world sees the Indian Growth Model as a model of hope: PM
We are continuously working on the mission of saturation; Not a single beneficiary should be left out from the benefits of any scheme: PM
In our new National Education Policy, we have given special emphasis to education in local languages: PM

विवेक गोयनका जी, भाई अनंत, जॉर्ज वर्गीज़ जी, राजकमल झा, इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के सभी अन्य साथी, Excellencies, यहां उपस्थित अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों!

आज हम सब एक ऐसी विभूति के सम्मान में यहां आए हैं, जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र में, पत्रकारिता, अभिव्यक्ति और जन आंदोलन की शक्ति को नई ऊंचाई दी है। रामनाथ जी ने एक Visionary के रूप में, एक Institution Builder के रूप में, एक Nationalist के रूप में और एक Media Leader के रूप में, Indian Express Group को, सिर्फ एक अखबार नहीं, बल्कि एक Mission के रूप में, भारत के लोगों के बीच स्थापित किया। उनके नेतृत्व में ये समूह, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और राष्ट्रीय हितों की आवाज़ बना। इसलिए 21वीं सदी के इस कालखंड में जब भारत विकसित होने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, तो रामनाथ जी की प्रतिबद्धता, उनके प्रयास, उनका विजन, हमारी बहुत बड़ी प्रेरणा है। मैं इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप का आभार व्यक्त करता हूं कि आपने मुझे इस व्याख्यान में आमंत्रित किया, मैं आप सभी का अभिनंदन करता हूं।

साथियों,

रामनाथ जी गीता के एक श्लोक से बहुत प्रेरणा लेते थे, सुख दुःखे समे कृत्वा, लाभा-लाभौ जया-जयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व, नैवं पापं अवाप्स्यसि।। अर्थात सुख-दुख, लाभ-हानि और जय-पराजय को समान भाव से देखकर कर्तव्य-पालन के लिए युद्ध करो, ऐसा करने से तुम पाप के भागी नहीं बनोगे। रामनाथ जी आजादी के आंदोलन के समय कांग्रेस के समर्थक रहे, बाद में जनता पार्टी के भी समर्थक रहे, फिर जनसंघ के टिकट पर चुनाव भी लड़ा, विचारधारा कोई भी हो, उन्होंने देशहित को प्राथमिकता दी। जिन लोगों ने रामनाथ जी के साथ वर्षों तक काम किया है, वो कितने ही किस्से बताते हैं जो रामनाथ जी ने उन्हें बताए थे। आजादी के बाद जब हैदराबाद और रजाकारों को उसके अत्याचार का विषय आया, तो कैसे रामनाथ जी ने सरदार वल्‍लभभाई पटेल की मदद की, सत्तर के दशक में जब बिहार में छात्र आंदोलन को नेतृत्व की जरूरत थी, तो कैसे नानाजी देशमुख के साथ मिलकर रामनाथ जी ने जेपी को उस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए तैयार किया। इमरजेंसी के दौरान, जब रामनाथ जी को इंदिऱा गांधी के सबसे करीबी मंत्री ने बुलाकर धमकी दी कि मैं तुम्हें जेल में डाल दूंगा, तो इस धमकी के जवाब में रामनाथ जी ने पलटकर जो कहा था, ये सब इतिहास के छिपे हुए दस्तावेज हैं। कुछ बातें सार्वजनिक हुई, कुछ नहीं हुई हैं, लेकिन ये बातें बताती हैं कि रामनाथ जी ने हमेशा सत्य का साथ दिया, हमेशा कर्तव्य को सर्वोपरि रखा, भले ही सामने कितनी ही बड़ी ताकत क्‍यों न हो।

साथियों,

रामनाथ जी के बारे में कहा जाता था कि वे बहुत अधीर थे। अधीरता, Negative Sense में नहीं, Positive Sense में। वो अधीरता जो परिवर्तन के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा कराती है, वो अधीरता जो ठहरे हुए पानी में भी हलचल पैदा कर देती है। ठीक वैसे ही, आज का भारत भी अधीर है। भारत विकसित होने के लिए अधीर है, भारत आत्मनिर्भर होने के लिए अधीर है, हम सब देख रहे हैं, इक्कीसवीं सदी के पच्चीस साल कितनी तेजी से बीते हैं। एक से बढ़कर एक चुनौतियां आईं, लेकिन वो भारत की रफ्तार को रोक नहीं पाईं।

साथियों,

आपने देखा है कि बीते चार-पांच साल कैसे पूरी दुनिया के लिए चुनौतियों से भरे रहे हैं। 2020 में कोरोना महामारी का संकट आया, पूरे विश्व की अर्थव्यवस्थाएं अनिश्चितताओं से घिर गईं। ग्लोबल सप्लाई चेन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा और सारा विश्व एक निराशा की ओर जाने लगा। कुछ समय बाद स्थितियां संभलना धीरे-धीरे शुरू हो रहा था, तो ऐसे में हमारे पड़ोसी देशों में उथल-पुथल शुरू हो गईं। इन सारे संकटों के बीच, हमारी इकॉनमी ने हाई ग्रोथ रेट हासिल करके दिखाया। साल 2022 में यूरोपियन क्राइसिस के कारण पूरे दुनिया की सप्लाई चेन और एनर्जी मार्केट्स प्रभावित हुआ। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा, इसके बावजूद भी 2022-23 में हमारी इकोनॉमी की ग्रोथ तेजी से होती रही। साल 2023 में वेस्ट एशिया में स्थितियां बिगड़ीं, तब भी हमारी ग्रोथ रेट तेज रही और इस साल भी जब दुनिया में अस्थिरता है, तब भी हमारी ग्रोथ रेट Seven Percent के आसपास है।

साथियों,

आज जब दुनिया disruption से डर रही है, भारत वाइब्रेंट फ्यूचर के Direction में आगे बढ़ रहा है। आज इंडियन एक्सप्रेस के इस मंच से मैं कह सकता हूं, भारत सिर्फ़ एक emerging market ही नहीं है, भारत एक emerging model भी है। आज दुनिया Indian Growth Model को Model of Hope मान रहा है।

साथियों,

एक सशक्त लोकतंत्र की अनेक कसौटियां होती हैं और ऐसी ही एक बड़ी कसौटी लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी की होती है। लोकतंत्र को लेकर लोग कितने आश्वस्त हैं, लोग कितने आशावादी हैं, ये चुनाव के दौरान सबसे अधिक दिखता है। अभी 14 नवंबर को जो नतीजे आए, वो आपको याद ही होंगे और रामनाथ जी का भी बिहार से नाता रहा था, तो उल्लेख बड़ा स्वाभाविक है। इन ऐतिहासिक नतीजों के साथ एक और बात बहुत अहम रही है। कोई भी लोकतंत्र में लोगों की बढ़ती भागीदारी को नजरअंदाज नहीं कर सकता। इस बार बिहार के इतिहास का सबसे अधिक वोटर टर्न-आउट रहा है। आप सोचिए, महिलाओं का टर्न-आउट, पुरुषों से करीब 9 परसेंट अधिक रहा। ये भी लोकतंत्र की विजय है।

साथियों,

बिहार के नतीजों ने फिर दिखाया है कि भारत के लोगों की आकांक्षाएं, उनकी Aspirations कितनी ज्यादा हैं। भारत के लोग आज उन राजनीतिक दलों पर विश्वास करते हैं, जो नेक नीयत से लोगों की उन Aspirations को पूरा करते हैं, विकास को प्राथमिकता देते हैं। और आज इंडियन एक्सप्रेस के इस मंच से मैं देश की हर राज्य सरकार को, हर दल की राज्य सरकार को बहुत विनम्रता से कहूंगा, लेफ्ट-राइट-सेंटर, हर विचार की सरकार को मैं आग्रह से कहूंगा, बिहार के नतीजे हमें ये सबक देते हैं कि आप आज किस तरह की सरकार चला रहे हैं। ये आने वाले वर्षों में आपके राजनीतिक दल का भविष्य तय करेंगे। आरजेडी की सरकार को बिहार के लोगों ने 15 साल का मौका दिया, लालू यादव जी चाहते तो बिहार के विकास के लिए बहुत कुछ कर सकते थे, लेकिन उन्होंने जंगलराज का रास्ता चुना। बिहार के लोग इस विश्वासघात को कभी भूल नहीं सकते। इसलिए आज देश में जो भी सरकारें हैं, चाहे केंद्र में हमारी सरकार है या फिर राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें हैं, हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता सिर्फ एक होनी चाहिए विकास, विकास और सिर्फ विकास। और इसलिए मैं हर राज्य सरकार को कहता हूं, आप अपने यहां बेहतर इंवेस्टमेंट का माहौल बनाने के लिए कंपटीशन करिए, आप Ease of Doing Business के लिए कंपटीशन करिए, डेवलपमेंट पैरामीटर्स में आगे जाने के लिए कंपटीशन करिए, फिर देखिए, जनता कैसे आप पर अपना विश्वास जताती है।

साथियों,

बिहार चुनाव जीतने के बाद कुछ लोगों ने मीडिया के कुछ मोदी प्रेमियों ने फिर से ये कहना शुरू किया है भाजपा, मोदी, हमेशा 24x7 इलेक्शन मोड में ही रहते हैं। मैं समझता हूं, चुनाव जीतने के लिए इलेक्शन मोड नहीं, चौबीसों घंटे इलेक्शन मोड में रहना जरूरी होता है, इमोशनल मोड में रहना जरूरी होता है, इलेक्शन मोड में नहीं। जब मन के भीतर एक बेचैनी सी रहती है कि एक मिनट भी गंवाना नहीं है, गरीब के जीवन से मुश्किलें कम करने के लिए, गरीब को रोजगार के लिए, गरीब को इलाज के लिए, मध्यम वर्ग की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, बस मेहनत करते रहना है। इस इमोशन के साथ, इस भावना के साथ सरकार लगातार जुटी रहती है, तो उसके नतीजे हमें चुनाव परिणाम के दिन दिखाई देते हैं। बिहार में भी हमने अभी यही होते देखा है।

साथियों,

रामनाथ जी से जुड़े एक और किस्से का मुझसे किसी ने जिक्र किया था, ये बात तब की है, जब रामनाथ जी को विदिशा से जनसंघ का टिकट मिला था। उस समय नानाजी देशमुख जी से उनकी इस बात पर चर्चा हो रही थी कि संगठन महत्वपूर्ण होता है या चेहरा। तो नानाजी देशमुख ने रामनाथ जी से कहा था कि आप सिर्फ नामांकन करने आएंगे और फिर चुनाव जीतने के बाद अपना सर्टिफिकेट लेने आ जाइएगा। फिर नानाजी ने पार्टी कार्यकर्ताओं के बल पर रामनाथ जी का चुनाव लड़ा औऱ उन्हें जिताकर दिखाया। वैसे ये किस्सा बताने के पीछे मेरा ये मतलब नहीं है कि उम्मीदवार सिर्फ नामांकन करने जाएं, मेरा मकसद है, भाजपा के अनगिनत कर्तव्य़ निष्ठ कार्यकर्ताओं के समर्पण की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना।

साथियों,

भारतीय जनता पार्टी के लाखों-करोड़ों कार्यकर्ताओं ने अपने पसीने से भाजपा की जड़ों को सींचा है और आज भी सींच रहे हैं। और इतना ही नहीं, केरला, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, ऐसे कुछ राज्यों में हमारे सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अपने खून से भी भाजपा की जड़ों को सींचा है। जिस पार्टी के पास ऐसे समर्पित कार्यकर्ता हों, उनके लिए सिर्फ चुनाव जीतना ध्येय नहीं होता, बल्कि वो जनता का दिल जीतने के लिए, सेवा भाव से उनके लिए निरंतर काम करते हैं।

साथियों,

देश के विकास के लिए बहुत जरूरी है कि विकास का लाभ सभी तक पहुंचे। दलित-पीड़ित-शोषित-वंचित, सभी तक जब सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचता है, तो सामाजिक न्याय सुनिश्चित होता है। लेकिन हमने देखा कि बीते दशकों में कैसे सामाजिक न्याय के नाम पर कुछ दलों, कुछ परिवारों ने अपना ही स्वार्थ सिद्ध किया है।

साथियों,

मुझे संतोष है कि आज देश, सामाजिक न्याय को सच्चाई में बदलते देख रहा है। सच्चा सामाजिक न्याय क्या होता है, ये मैं आपको बताना चाहता हूं। 12 करोड़ शौचालयों के निर्माण का अभियान, उन गरीब लोगों के जीवन में गरिमा लेकर के आया, जो खुले में शौच के लिए मजबूर थे। 57 करोड़ जनधन बैंक खातों ने उन लोगों का फाइनेंशियल इंक्लूजन किया, जिनको पहले की सरकारों ने एक बैंक खाते के लायक तक नहीं समझा था। 4 करोड़ गरीबों को पक्के घरों ने गरीब को नए सपने देखने का साहस दिया, उनकी रिस्क टेकिंग कैपेसिटी बढ़ाई है।

साथियों,

बीते 11 वर्षों में सोशल सिक्योरिटी पर जो काम हुआ है, वो अद्भुत है। आज भारत के करीब 94 करोड़ लोग सोशल सिक्योरिटी नेट के दायरे में आ चुके हैं। और आप जानते हैं 10 साल पहले क्या स्थिति थी? सिर्फ 25 करोड़ लोग सोशल सिक्योरिटी के दायरे में थे, आज 94 करोड़ हैं, यानि सिर्फ 25 करोड़ लोगों तक सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ पहुंच रहा था। अब ये संख्या बढ़कर 94 करोड़ पहुंच चुकी है और यही तो सच्चा सामाजिक न्याय है। और हमने सोशल सिक्योरिटी नेट का दायरा ही नहीं बढ़ाया, हम लगातार सैचुरेशन के मिशन पर काम कर रहे हैं। यानि किसी भी योजना के लाभ से एक भी लाभार्थी छूटे नहीं। और जब कोई सरकार इस लक्ष्य के साथ काम करती है, हर लाभार्थी तक पहुंचना चाहती है, तो किसी भी तरह के भेदभाव की गुंजाइश भी खत्म हो जाती है। ऐसे ही प्रयासों की वजह से पिछले 11 साल में 25 करोड़ लोगों ने गरीबी को परास्त करके दिखाया है। और तभी आज दुनिया भी ये मान रही है- डेमोक्रेसी डिलिवर्स।

साथियों,

मैं आपको एक और उदाहरण दूंगा। आप हमारे एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम का अध्ययन करिए, देश के सौ से अधिक जिले ऐसे थे, जिन्हें पहले की सरकारें पिछड़ा घोषित करके भूल गई थीं। सोचा जाता था कि यहां विकास करना बड़ा मुश्किल है, अब कौन सर खपाए ऐसे जिलों में। जब किसी अफसर को पनिशमेंट पोस्टिंग देनी होती थी, तो उसे इन पिछड़े जिलों में भेज दिया जाता था कि जाओ, वहीं रहो। आप जानते हैं, इन पिछड़े जिलों में देश की कितनी आबादी रहती थी? देश के 25 करोड़ से ज्यादा नागरिक इन पिछड़े जिलों में रहते थे।

साथियों,

अगर ये पिछड़े जिले पिछड़े ही रहते, तो भारत अगले 100 साल में भी विकसित नहीं हो पाता। इसलिए हमारी सरकार ने एक नई रणनीति के साथ काम करना शुरू किया। हमने राज्य सरकारों को ऑन-बोर्ड लिया, कौन सा जिला किस डेवलपमेंट पैरामीटर में कितनी पीछे है, उसकी स्टडी करके हर जिले के लिए एक अलग रणनीति बनाई, देश के बेहतरीन अफसरों को, ब्राइट और इनोवेटिव यंग माइंड्स को वहां नियुक्त किया, इन जिलों को पिछड़ा नहीं, Aspirational माना और आज देखिए, देश के ये Aspirational Districts, कितने ही डेवलपमेंट पैरामीटर्स में अपने ही राज्यों के दूसरे जिलों से बहुत अच्छा करने लगे हैं। छत्तीसगढ़ का बस्तर, वो आप लोगों का तो बड़ा फेवरेट रहा है। एक समय आप पत्रकारों को वहां जाना होता था, तो प्रशासन से ज्यादा दूसरे संगठनों से परमिट लेनी होती थी, लेकिन आज वही बस्तर विकास के रास्ते पर बढ़ रहा है। मुझे नहीं पता कि इंडियन एक्सप्रेस ने बस्तर ओलंपिक को कितनी कवरेज दी, लेकिन आज रामनाथ जी ये देखकर बहुत खुश होते कि कैसे बस्तर में अब वहां के युवा बस्तर ओलंपिक जैसे आयोजन कर रहे हैं।

साथियों,

जब बस्तर की बात आई है, तो मैं इस मंच से नक्सलवाद यानि माओवादी आतंक की भी चर्चा करूंगा। पूरे देश में नक्सलवाद-माओवादी आतंक का दायरा बहुत तेजी से सिमट रहा है, लेकिन कांग्रेस में ये उतना ही सक्रिय होता जा रहा था। आप भी जानते हैं, बीते पांच दशकों तक देश का करीब-करीब हर बड़ा राज्य, माओवादी आतंक की चपेट में, चपेट में रहा। लेकिन ये देश का दुर्भाग्य था कि कांग्रेस भारत के संविधान को नकारने वाले माओवादी आतंक को पालती-पोसती रही और सिर्फ दूर-दराज के क्षेत्रों में जंगलों में ही नहीं, कांग्रेस ने शहरों में भी नक्सलवाद की जड़ों को खाद-पानी दिया। कांग्रेस ने बड़ी-बड़ी संस्थाओं में अर्बन नक्सलियों को स्थापित किया है।

साथियों,

10-15 साल पहले कांग्रेस में जो अर्बन नक्सली, माओवादी पैर जमा चुके थे, वो अब कांग्रेस को मुस्लिम लीगी- माओवादी कांग्रेस, MMC बना चुके हैं। और मैं आज पूरी जिम्मेदारी से कहूंगा कि ये मुस्लिम लीगी- माओवादी कांग्रेस, अपने स्वार्थ में देशहित को तिलांजलि दे चुकी है। आज की मुस्लिम लीगी- माओवादी कांग्रेस, देश की एकता के सामने बहुत बड़ा खतरा बनती जा रही है।

साथियों,

आज जब भारत, विकसित बनने की एक नई यात्रा पर निकल पड़ा है, तब रामनाथ गोयनका जी की विरासत और भी प्रासंगिक है। रामनाथ जी ने अंग्रेजों की गुलामी से डटकर टक्कर ली, उन्होंने अपने एक संपादकीय में लिखा था, मैं अंग्रेज़ों के आदेश पर अमल करने के बजाय, अखबार बंद करना पसंद करुंगा। इसी तरह जब इमरजेंसी के रूप में देश को गुलाम बनाने की एक और कोशिश हुई, तब भी रामनाथ जी डटकर खड़े हो गए थे और ये वर्ष तो इमरजेंसी के पचास वर्ष पूरे होने का भी है। और इंडियन एक्सप्रेस ने 50 वर्ष पहले दिखाया है, कि ब्लैंक एडिटोरियल्स भी जनता को गुलाम बनाने वाली मानसिकता को चुनौती दे सकते हैं।

साथियों,

आज आपके इस सम्मानित मंच से, मैं गुलामी की मानसिकता से मुक्ति के इस विषय पर भी विस्तार से अपनी बात रखूंगा। लेकिन इसके लिए हमें 190 वर्ष पीछे जाना पड़ेगा। 1857 के सबसे स्वतंत्रता संग्राम से भी पहले, वो साल था 1835, 1835 में ब्रिटिश सांसद थॉमस बेबिंगटन मैकाले ने भारत को अपनी जड़ों से उखाड़ने के लिए एक बहुत बड़ा अभियान शुरू किया था। उसने ऐलान किया था, मैं ऐसे भारतीय बनाऊंगा कि वो दिखने में तो भारतीय होंगे लेकिन मन से अंग्रेज होंगे। और इसके लिए मैकाले ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन नहीं, बल्कि उसका समूल नाश कर दिया। खुद गांधी जी ने भी कहा था कि भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था एक सुंदर वृक्ष थी, जिसे जड़ से हटा कर नष्ट कर दिया।

साथियों,

भारत की शिक्षा व्यवस्था में हमें अपनी संस्कृति पर गर्व करना सिखाया जाता था, भारत की शिक्षा व्यवस्था में पढ़ाई के साथ ही कौशल पर भी उतना ही जोर था, इसलिए मैकाले ने भारत की शिक्षा व्यवस्था की कमर तोड़ने की ठानी और उसमें सफल भी रहा। मैकाले ने ये सुनिश्चित किया कि उस दौर में ब्रिटिश भाषा, ब्रिटिश सोच को ज्यादा मान्यता मिले और इसका खामियाजा भारत ने आने वाली सदियों में उठाया।

साथियों,

मैकाले ने हमारे आत्मविश्वास को तोड़ दिया दिया, हमारे भीतर हीन भावना का संचार किया। मैकाले ने एक झटके में हजारों वर्षों के हमारे ज्ञान-विज्ञान को, हमारी कला-संस्कृति को, हमारी पूरी जीवन शैली को ही कूड़ेदान में फेंक दिया था। वहीं पर वो बीज पड़े कि भारतीयों को अगर आगे बढ़ना है, अगर कुछ बड़ा करना है, तो वो विदेशी तौर तरीकों से ही करना होगा। और ये जो भाव था, वो आजादी मिलने के बाद भी और पुख्ता हुआ। हमारी एजुकेशन, हमारी इकोनॉमी, हमारे समाज की एस्पिरेशंस, सब कुछ विदेशों के साथ जुड़ गईं। जो अपना है, उस पर गौरव करने का भाव कम होता गया। गांधी जी ने जिस स्वदेशी को आज़ादी का आधार बनाया था, उसको पूछने वाला ही कोई नहीं रहा। हम गवर्नेंस के मॉडल विदेश में खोजने लगे। हम इनोवेशन के लिए विदेश की तरफ देखने लगे। यही मानसिकता रही, जिसकी वजह से इंपोर्टेड आइडिया, इंपोर्टेड सामान और सर्विस, सभी को श्रेष्ठ मानने की प्रवृत्ति समाज में स्थापित हो गई।

साथियों,

जब आप अपने देश को सम्मान नहीं देते हैं, तो आप स्वदेशी इकोसिस्टम को नकारते हैं, मेड इन इंडिया मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम को नकारते हैं। मैं आपको एक और उदाहरण, टूरिज्म की बात करता हूं। आप देखेंगे कि जिस भी देश में टूरिज्म फला-फूला, वो देश, वहां के लोग, अपनी ऐतिहासिक विरासत पर गर्व करते हैं। हमारे यहां इसका उल्टा ही हुआ। भारत में आज़ादी के बाद, अपनी विरासत को दुत्कारने के ही प्रयास हुए, जब अपनी विरासत पर गर्व नहीं होगा तो उसका संरक्षण भी नहीं होगा। जब संरक्षण नहीं होगा, तो हम उसको ईंट-पत्थर के खंडहरों की तरह ही ट्रीट करते रहेंगे और ऐसा हुआ भी। अपनी विरासत पर गर्व होना, टूरिज्म के विकास के लिए भी आवश्यक शर्त है।

साथियों,

ऐसे ही स्थानीय भाषाओं की बात है। किस देश में ऐसा होता है कि वहां की भाषाओं को दुत्कारा जाता है? जापान, चीन और कोरिया जैसे देश, जिन्होंने west के अनेक तौर-तरीके अपनाए, लेकिन भाषा, फिर भी अपनी ही रखी, अपनी भाषा पर कंप्रोमाइज नहीं किया। इसलिए, हमने नई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई पर विशेष बल दिया है और मैं बहुत स्पष्टता से कहूंगा, हमारा विरोध अंग्रेज़ी भाषा से नहीं है, हम भारतीय भाषाओं के समर्थन में हैं।

साथियों,

मैकाले द्वारा किए गए उस अपराध को 1835 में जो अपराध किया गया 2035, 10 साल के बाद 200 साल हो जाएंगे और इसलिए आज आपके माध्यम से पूरे देश से एक आह्वान करना चाहता हूं, अगले 10 साल में हमें संकल्प लेकर चलना है कि मैकाले ने भारत को जिस गुलामी की मानसिकता से भर दिया है, उस सोच से मुक्ति पाकर के रहेंगे, 10 साल हमारे पास बड़े महत्वपूर्ण हैं। मुझे याद है एक छोटी घटना, गुजरात में लेप्रोसी को लेकर के एक अस्पताल बन रहा था, तो वो सारे लोग महात्‍मा गांधी जी से मिले उसके उद्घाटन के लिए, तो महात्मा जी ने कहा कि मैं लेप्रोसी के अस्पताल के उद्घाटन के पक्ष में नहीं हूं, मैं नहीं आऊंगा, लेकिन ताला लगाना है, उस दिन मुझे बुलाना, मैं ताला लगाने आऊंगा। गांधी जी के रहते हुए उस अस्पताल को तो ताला नहीं लगा था, लेकिन गुजरात जब लेप्रोसी से मुक्त हुआ और मुझे उस अस्पताल को ताला लगाने का मौका मिला, जब मैं मुख्यमंत्री बना। 1835 से शुरू हुई यात्रा 2035 तक हमें खत्म करके रहना है जी, गांधी जी का जैसे सपना था कि मैं ताला लगाऊंगा, मेरा भी यह सपना है कि हम ताला लगाएंगे।

साथियों,

आपसे बहुत सारे विषयों पर चर्चा हो गई है। अब आपका मैं ज्यादा समय लेना नहीं चाहता हूं। Indian Express ग्रुप देश के हर परिवर्तन का, देश की हर ग्रोथ स्टोरी का साक्षी रहा है और आज जब भारत विकसित भारत के लक्ष्य को लेकर चल रहा है, तो भी इस यात्रा के सहभागी बन रहे हैं। मैं आपको बधाई दूंगा कि रामनाथ जी के विचारों को, आप सभी पूरी निष्ठा से संरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं। एक बार फिर, आज के इस अद्भुत आयोजन के लिए आप सभी को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं। और, रामनाथ गोयनका जी को आदरपूर्वक मैं नमन करते हुए मेरी बात को विराम देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद!