“लोकतंत्र भारत के लिए केवल एक व्यवस्था नहीं है। लोकतंत्र हमारे स्वभाव और भारत में जीवन के हिस्से में निहित है"
"सभी राज्यों की भूमिका भारत की संघीय व्यवस्था में 'सबका प्रयास' का बड़ा आधार है"
"कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई 'सबका प्रयास' का एक बेहतरीन उदाहरण है"
"क्या हम साल में 3-4 दिन सदन में उन जनप्रतिनिधियों के लिए आरक्षित कर सकते हैं, जो समाज के लिए कुछ खास कर रहे हैं, देश को उनके सामाजिक जीवन के इस पहलू के बारे में बता रहे हैं"
सदन में गुणवत्तापूर्ण बहस के लिए स्वस्थ समय, स्वस्थ दिन का प्रस्ताव
संसदीय प्रणाली को आवश्यक तकनीकी बढ़ावा देने और देश की सभी लोकतांत्रिक इकाइयों को जोड़ने के लिए 'एक राष्ट्र एक विधायी मंच' का प्रस्ताव

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज यहां 82वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया। इस अवसर पर लोकसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश और राज्यसभा के उपसभापति भी उपस्थित थे।

उपस्थितजनों को सम्बोधित करते हुये प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लिये लोकतंत्र सिर्फ एक व्यवस्था नहीं है। लोकतंत्र तो भारत का स्वभाव है, भारत की सहज प्रकृति है। उन्होंने जोर देते हुये कहा, “हमें आने वाले वर्षों में, देश को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाना है। यह संकल्प ‘सबके प्रयास’ से ही पूरे होंगे” और लोकतंत्र में, भारत की संघीय व्यवस्था में जब हम ‘सबका प्रयास’ की बात करते हैं, तो सभी राज्यों की भूमिका उसका बड़ा आधार होती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि चाहे पूर्वोत्तर की दशकों पुरानी समस्याओं का समाधान हो, दशकों से अटकी-लटकी विकास की तमाम बड़ी परियोजनाओं को पूरा करना हो, ऐसे कितने ही काम हैं जो देश ने बीते सालों में किये हैं, सबके प्रयास से ही किये हैं। उन्होंने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई को ‘सबका प्रयास’ के वृहद उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया।

प्रधानमंत्री ने दृढ़तापूर्वक कहा कि हमारे सदन की परंपरायें और व्यवस्थायें स्वभाव से भारतीय हों। उन्होंने आह्वान किया कि हमारी नीतियां और हमारे कानून भारतीयता के भाव को, ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प को मजबूत करने वाले हों। उन्होंने कहा, “सबसे महत्त्वपूर्ण, सदन में हमारा खुद का भी आचार-व्यवहार भारतीय मूल्यों के हिसाब से हो। यह हम सबकी जिम्मेदारी है।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारा देश विविधताओं से भरा है। उन्होंने कहा, “अपनी हजारों वर्ष की विकास यात्रा में हम इस बात को अंगीकृत कर चुके हैं कि विविधता के बीच भी, एकता की भव्य और दिव्य अखंड धारा बहती है। एकता की यही अखंड धारा, हमारी विविधता को संजोती है, उसका संरक्षण करती है।”

प्रधानमंत्री ने प्रस्ताव किया कि क्या साल में तीन-चार दिन सदन में ऐसे रखे जा सकते हैं, जिसमें समाज के लिये कुछ विशेष कर रहे जनप्रतिनिधि अपना अनुभव बतायें। अपने सामाजिक जीवन के इस पक्ष के बारे में देश को बतायें। उन्होंने कहा कि इससे दूसरे जनप्रतिनिधियों के साथ ही समाज के अन्य लोगों को भी कितना कुछ सीखने को मिलेगा।

प्रधानमंत्री ने यह प्रस्ताव भी रखा कि हम बेहतर चर्चा के लिये अलग से समय निर्धारित कर सकते हैं क्या? उन्होंने कहा कि ऐसी चर्चा, जिसमें मर्यादा का, गंभीरता का पूरी तरह से पालन हो, कोई किसी पर राजनीतिक छींटाकशी न करे। उन्होंने कहा कि एक तरह से वह सदन का सबसे ‘स्वस्थ समय’ हो, ‘स्वस्थ दिवस’ हो।

प्रधानमंत्री ने ‘एक राष्ट्र, एक विधायी मंच’ का विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “एक ऐसा पोर्टल हो, जो न केवल हमारी संसदीय व्यवस्था को जरूरी तकनीकी गति दे, बल्कि देश की सभी लोकतांत्रिक इकाइयों को जोड़ने का भी काम करे।”

प्रधानमंत्री ने जोर देते हुये कहा कि अगले 25 वर्ष, भारत के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने सांसदों से आग्रह किया कि वे एक ही मंत्र को जीवन में उतारें – कर्तव्य, कर्तव्य, कर्तव्य।

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Prime Minister shares Sanskrit Subhashitam highlighting the power of collective effort
December 17, 2025

The Prime Minister, Shri Narendra Modi, shared a Sanskrit Subhashitam-

“अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका।

तृणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिनः॥”

The Sanskrit Subhashitam conveys that even small things, when brought together in a well-planned manner, can accomplish great tasks, and that a rope made of hay sticks can even entangle powerful elephants.

The Prime Minister wrote on X;

“अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका।

तृणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिनः॥”