Honoured that all 54 African nations are participating in the #IAFS: PM Modi
Your friendship & faith is a source of great pride & strength for us: PM Modi at #IAFS
Partnership between India & Africa natural; our aspirations & challenges similar: PM at #IAFS
We will work with you to realize your vision of a prosperous Africa: PM Modi at #IAFS
India to focus on technology to transform lives of the weakest in the remotest parts of Africa: PM at #IAFS
We will give high priority to increase trade and investment flows between India and Africa: PM at #IAFS
Closer defence & security cooperation will be a key pillar of India-Africa partnership: PM at #IAFS
We should intensify our cooperation & collaboration to seek reforms of the United Nations: PM at #IAFS
Africa will remain at the centre of India's attention: PM Modi at #IAFS

महामहिम, महानुभावों मेरे साथ सह-अध्‍यक्षता कर रहे राष्‍ट्रपति मुगाबे, यह सही मायनों में ऐतिहासिक दिन रहा। हमें पूरे अफ्रीका की बात सुनने का अवसर मिला।

हमारे पहले दो शिखर सम्‍मेलन बांजुल फॉर्मूला के आधार पर कुछ देशों तक सीमित थे। आज हमें इस बात का गर्व है कि सभी 54 देश इसमें भाग ले रहे हैं।

आपकी प्रतिक्रिया इस बात की स्‍पष्‍ट पुष्टि है कि यह भारत और अफ्रीका के मिलने का सही प्रारूप है।

अपने विचार साझा करने के लिए मैं आप सभी का आभार प्रकट करता हूं।

आपके मित्रों के विवेक से ज्‍यादा आपको कोई नहीं सिखा सकता।

भारत में हम सभी अपने देश और अफ्रीका के प्रति आपकी महत्‍वाकांक्षाओं, विश्‍व के लिए आपके विजन, भारत के लिए आपकी भावनाओं, हमारी भागीदारी से आपकी अपेक्षाओं से प्रेरित हैं।

आपकी मैत्री और विश्‍वास हमारे लिए बहुत गौरव और ताकत का स्रोत है।

आपकी बात सुनकर यह विश्‍वास और मजबूत हुआ है कि भारत और अफ्रीका के बीच यह भागीदारी सहज है, क्‍योंकि नियतियां एक-दूसरे से निकटता से परस्‍पर सम्‍बद्ध हैं और हमारी महत्‍वाकांक्षाएं एवं चुनौतियां भी मिलती-जुलती हैं।

समावेशी वृद्धि, सशक्‍त नागरिकों और सतत विकास, एक एकीकृत एवं सांस्‍कृतिक रूप से जीवंत अफ्रीका और उचित वैश्विक स्‍थान और विश्‍व के लिए मजबूत भागीदार शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित अफ्रीका, पर आधारित समृद्ध अफ्रीका के आपके विजन को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए हम आपके साथ काम करेंगे।

हम अपनी सहभागिता को और ज्‍यादा प्रभावी कैसे बना सकते हैं, इस बारे में आपकी बातों को मैंने गौर से सुना।

आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव ऋण व्‍यवस्‍था की पुनर्संरचना में बहुत मददगार साबित होंगे। हम आपकी विशेष परिस्थितियों को ध्‍यान में रखेंगे और हम उनके उपयोग में ज्‍यादा तेज गति और पारदर्शिता सुनिश्चित करेंगे।

अफ्रीका में संस्‍थाओं की स्‍थापना करने की प्रक्रिया में हमने सीखा है। इससे हमें इन परियोजनाओं को ज्‍यादा प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद मिलेगी।

हम अपने छात्रवृत्ति कार्यक्रम को मिली प्रतिक्रिया से बहुत प्रोत्‍साहित हैं। हम इसमें और सुधार लाएंगे और भारत में रहने, पढ़ने और प्रशिक्षण के लिए ज्‍यादा सहयोगपूर्ण वातावरण तैयार करेंगे।

मैंने जाना कि प्रौद्योगिकी संबंधी भागीदारी को आप कितनी अहमियत देते हैं। भारत में, हम अफ्रीका के दूर-दराज के इलाकों के कमजोर से कमजोर लोगों के जीवन को परिवर्तित करने के लिए प्रौद्योगिकी पर ज्‍यादा ध्‍यान देंगे। 

हम भारत और अफ्रीका के बीच में व्‍यापार और निवेश का प्रवाह बढ़ाने को सर्वोच्‍च प्राथमिकता देंगे। हम अपने व्‍यापार को ज्‍यादा संतुलित बनाएंगे। हम भारतीय बाजारों तक अफ्रीका की पहुंच को सुगम बनाएंगे। हम 34 देशों को सीमा शुल्‍क मुक्‍त पहुंच पूर्ण एवं कारगर रूप से कार्यान्वित करना सुनिश्चित करेंगे।

कई देशों के साथ हमारा बेहतरीन रक्षा और सुरक्षा सहयोग है। हमने यह सहयोग द्विपक्षीय रूप से और बहुपक्षीय एवं क्षेत्रीय व्यवस्थाओं के माध्यम से किया है। निकट रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग, विशेषकर क्षमता विकास, भारत-अफ्रीकी सहभागिता का प्रमुख आधार होगा।

हम आतंकवाद के विरुद्ध अपना सहयोग बढ़ाएंगे और इसके खिलाफ समान ध्येय बनाने के लिए पूरे विश्व को एकजुट करेंगे।

महामहिम, हम विचार और कार्रवाई, मंशा और कार्यान्वयन के बीच की परछाई के प्रति सचेत हैं।

इस प्रकार, कार्यान्वयन भी परियोजनाओं को शुरू करने के समान ही महत्वपूर्ण होगा। हम अपनी निगरानी व्यवस्था को मजबूत बनाएंगे। इसमें अफ्रीकी संघ के साथ मिलकर संयुक्त निगरानी व्यवस्था बनाना शामिल होगा।

महामहिम, हमारी एकजुटता और एकता ज्यादा समावेशी, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था के ध्येय के लिए प्रमुख बल होगी। हम उसका मार्ग निर्धारण करने के निर्णायक दौर में हैं।

संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की मांग, वैश्विक व्यापार में अपने साझा लक्ष्यों की प्राप्ती के लिए, विकास एजेंडा 2030 के लिए वैश्विक भागीदारी तैयार करने के लिए और जलवायु परिवर्तन पर होने वाली पेरिस बैठक से हमारी अपेक्षाओं का अनुसरण करने के लिए हमें अपना सहयोग और सहकार्य और गहन बनाना होगा।

हमारे विजन और महत्वकांक्षाओं से आकार लेने वाला विश्व हम में से हरेक को कामयाबी पाने का बेहतर अवसर प्रदान करेगा।

आज हमने इस शिखर सम्मेलन के घोषणा पत्र और महत्वपूर्ण सहयोग के प्रारूप को स्वीकार किया है।

लेकिन, संख्या और दस्तावेजों से ज्यादा, सबसे बड़ा परिणाम हमारी नवीकृत मैत्री, सशक्त भागीदारी और व्यापक एकजुटता है।

महामहिम, हमारे शिखर सम्मेलन के आकार और हमारी सहभागिता के महत्वकांक्षी लक्ष्यों को देखते हुए, हम सब इस बात पर सहमत हुए हैं कि यह शिखर सम्मेलन हर पांच साल में होना चाहिए।

हालांकि, अफ्रीका हमेशा हमारे ध्यान का केंद्र बना रहेगा। अफ्रीका के साथ हमारे संबंध गहन और नियमित रहेंगे। मैं आप लोगों के यहां द्विपक्षीय यात्राओं पर आने की आशा करता हूं और मुझे आने वाले वर्षों में अफ्रीका के सभी क्षेत्रों के दौरे पर जाने की प्रतीक्षा रहेगी।

अन्त में, मैं आपका, आपके शिष्टमंडलों और अफ्रीका से आए अन्य विशिष्ट आगंतुकों का आभार व्यक्त करता हूं। आशा है कि आपने अपने प्रवास का आनंद उठाया होगा। दिल्ली में खुशगवार मौसम लाने के लिए आपका शुक्रिया। मुझे आशा है कि पेरिस में सीओपी-21 और सौर गठबंधन के दौरान आपसे भेंट होगी।

इस शिखर सम्मेलन को अपार सफलता दिलाने के लिए मैं अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों, अपने अधिकारियों और दिल्ली शहर का आभार व्यक्त करता हूं।

आज के ढलते दिन के साथ, हमारी भागीदारी को आपसे नई ऊर्जा और उद्देश्य प्राप्त हुआ है और दुनिया को इसके भविष्य पर नया विश्वास कायम होगा।

धन्यवाद। बहुत बहुत धन्यवाद

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“वंदे मातरम्” का सार भारत और माँ भारती की भावना में समाया है: पीएम मोदी
November 07, 2025
The essence of Vande Mataram is Bharat, Maa Bharati, the eternal idea of Bharat: PM
औपनिवेशिक काल में, “वन्दे मातरम्” उस संकल्प का उद्घोष बन गया कि भारत स्वतंत्र होगा और माँ भारती के हाथों से गुलामी की बेड़ियाँ टूट जाएँगी- पीएम मोदी
“वन्दे मातरम्” भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आवाज बन गया, हर क्रांतिकारी के होठों पर एक जयघोष, हर भारतीय की भावनाओं को व्यक्त करने वाली आवाज- पीएम मोदी
“वन्दे मातरम्” हमें न केवल यह याद दिलाता है कि हमारी स्वतंत्रता कैसे प्राप्त हुई, बल्कि यह भी कि हमें इसकी रक्षा कैसे करनी चाहिए- पीएम मोदी
Whenever the national flag unfurls, these words rise instinctively from our hearts— Bharat Mata ki Jai! Vande Mataram!: PM

वंदे मातरम!

वंदे मातरम!

वंदे मातरम!

वंदे मातरम, ये शब्द एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक स्वप्न है, एक संकल्प है। वंदे मातरम, ये एक शब्द मां भारती की साधना है, मां भारती की आराधना है। वंदे मातरम, ये एक शब्द हमें इतिहास में ले जाता है। ये हमारे आत्मविश्वास को, हमारे वर्तमान को, आत्मविश्वास से भर देता है, और हमारे भविष्य को ये नया हौंसला देता है कि ऐसा कोई संकल्प नहीं, ऐसा कोई संकल्प नहीं जिसकी सिद्धि न हो सके। ऐसा कोई लक्ष्य नहीं, जो हम भारतवासी पा ना सकें।

साथियों,

वंदे मातरम के सामूहिक गान का ये अद्भुत अनुभव, ये वाकई अभिव्यक्ति से परे है। इतनी सारी आवाजों में एक लय, एक स्वर, एक भाव, एक जैसा रोमांच, एक जैसा प्रवाह, ऐसा तारतम्य, ऐसी तरंग, इस ऊर्जा ने ह्दय को स्पंदित कर दिया है। भावनाओं से भरे इसी माहौल में, मैं अपनी बात को आगे बढ़ा रहा हूं। मंच पर उपस्थित कैबिनेट के मेरे सहयोगी गजेंद्र सिंह शेखावत, दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना, मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जी, अन्य सभी महानुभाव, भाइयों और बहनों।

आज हमारे साथ देश के सभी कोने से लाखों लोग जुड़े हुए हैं, मैं उनको भी मेरी तरफ से वंदे मातरम से शुभकामनाएं देता हूं। आज 7 नवंबर का दिन बहुत ऐतिहासिक है, आज हम वंदे मातरम के 150वें वर्ष का महाउत्सव मना रहे हैं। ये पुण्य अवसर हमें नई प्रेरणा देगा, कोटि-कोटि देशवासियों को नई ऊर्जा से भर देगा। इस दिन को इतिहास की तारीख में अंकित करने के लिए आज वंदे मातरम पर एक विशेष कॉइन और डाक टिकट भी जारी किए गए हैं। मैं देश के लक्ष्यावदी महापुरुषों को, मां भारती के संतानों को वंदे मातरम, इस मंत्र के लिए जीवन खपाने के लिए आज श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं, और देशवासियों को इस अवसर पर बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं सभी देशवासियों को वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं भी देता हूं।

साथियों,

हर गीत, हर काव्य का अपना एक मूल भाव होता है, उसका अपना एक मूल संदेश होता है। वंदे मातरम का मूल भाव क्या है? वंदे मातरम का मूल भाव है- भारत, मां भारती। भारत की शाश्वत संकल्पना, वो संकल्पना जिसने मानवता के प्रथम पहर से खुद को गढ़ना शुरू कर दिया। जिसने युगों-युगों को एक-एक अध्याय के रूप में पढ़ा। अलग-अलग दौर में अलग-अलग राष्ट्रों का निर्माण, अलग-अलग ताकतों का उदय, नई-नई सभ्यताओं का विकास, शून्य से शिखर तक उनकी यात्रा, और शिखर से पुनः शून्य में उनका विलय, बनता बिगड़ता इतिहास, दुनिया का बदलता भूगोल, भारत ने ये सब कुछ देखा है। इंसान की इस अनंत यात्रा से हमने सीखा और समय-समय पर नए निष्कर्ष निकाले। हमने उनके आधार पर अपनी सभ्यता के मूल्यों और आदर्शों को तराशा, उसे गढ़ा। हमने, हमारे पूर्वजों ने, हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने, हमारे आचार्यों ने, भगवंतों ने, हमारे देशवासियों ने अपनी एक सांस्कृतिक पहचान बनाई। हमने ताकत और नैतिकता के संतुलन को बराबर समझा। और तब जाकर, भारत एक राष्ट्र के रूप में वो कुन्दन बनकर उभरा जो अतीत की हर चोट सहता भी रहा और सहकर भी अमरत्व को प्राप्त कर गया।

भाइयों-बहनों,

भारत की ये संकल्पना, उसके पीछे की वैचारिक शक्ति है। उठती-गिरती दुनिया से अलग अपना स्वतंत्र अस्तित्व बोध, ये उपलब्धि, और लयबद्ध, लिपिबद्ध होना, लयबद्ध होना, और तब जाकर के ह्दय की गहराई से, अनुभवों के निचोंड़ से, संवेदनाओं की असीमता को प्राप्त कर करके वंदे मातरम जैसी रचना मिलती है। और इसलिए, गुलामी के उस कालखंड में वंदे मातरम इस संकल्प का उद्घोष बन गया था, और वो उद्घोष था- भारत की आज़ादी का। माँ भारती के हाथों से गुलामी की बेड़ियाँ टूटेंगी, और उसकी संताने स्वयं अपने भाग्य की भाग्य विधाता बनेंगी।

साथियों,

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था- “बंकिमचंद्र की आनंदमठ केवल उपन्यास नहीं है, ये स्वाधीन भारत का एक स्वप्न है”। आप देखिए, आनंदमठ में वंदे मातरम का प्रसंग, वंदे मातरम की एक-एक पंक्ति के, बंकिम बाबू के एक-एक शब्द के, उसके हर भाव के, अपने गहरे निहितार्थ थे, निहितार्थ हैं। ये गीत गुलामी के कालखंड में रचना तो जरूर हो गई उस समय, लेकिन उसके शब्द कुछ वर्षों की गुलामी के साये में कभी भी कैद नहीं रहें। वो गुलामी की स्मृतियों से आज़ाद रहें। इसलिए, वंदे मातरम हर दौर में, हर कालखंड में प्रासंगिक है, इसने अमरता को प्राप्त किया है। वंदे मातरम की पहली पंक्ति है- “सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम्, सस्यश्यामलाम् मातरम्।” अर्थात्, प्रकृति के दिव्य वरदान से सुशोभित हमारी सुजलाम् सुफलाम् मातृभूमि को नमन।

साथियों,

यही तो भारत की हजारों साल पुरानी पहचान रही है। यहाँ की नदियां, यहाँ के पहाड़, यहाँ के वन, वृक्ष और यहां की उपजाऊ मिट्टी, ये धरती हमेशा सोना उगलने की ताकत रखती है। सदियों तक दुनिया भारत की समृद्धि की कहानियाँ सुनती रही थी। कुछ ही शताब्दी पहले तक, ग्लोबल GDP का करीब एक चौथाई हिस्सा भारत के पास था।

लेकिन भाइयों-बहनों,

जब बंकिम बाबू ने वंदे मातरम की रचना की थी, तब भारत अपने उस स्वर्णिम दौर से बहुत दूर जा चुका था। विदेशी आक्रमणकारियों ने, उनके हमले, लूटपाट अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियाँ, उस समय हमारा देश गरीबी और भुखमरी के चंगुल में कराह रहा था। तब भी, बंकिम बाबू ने, उस बुरे हालात के स्थितियों में भी, चारों तरफ दर्द था, विनाश था, शोक था, सबकुछ डूबता हुआ नज़र आ रहा था, ऐसे समय बंकिम बाबू ने समृद्ध भारत का आह्वान किया। क्योंकि, उन्हें विश्वास था कि मुश्किलें कितनी भी क्यों ना हों, भारत अपने स्वर्णिम दौर को पुनर्जीवित कर सकता है। और इसलिए उन्होंने आह्वान किया, वंदे मातरम।

साथियों,

गुलामी के उस कालखंड में भारत को नीचा और पिछड़ा बताकर जिस तरह अंग्रेज़ अपनी हुकूमत को justify करते थे, इस प्रथम पंक्ति ने उस दुष्प्रचार को पूरी तरह से ध्वस्त करने का काम किया। इसलिए, वंदे मातरम केवल आज़ादी का गान ही नहीं बना, बल्कि आज़ाद भारत कैसा होगा, वंदे मातरम ने वो ‘सुजलाम सुफलाम सपना’ भी करोड़ों देशवासियों के सामने प्रस्तुत किया।

साथियों,

आज ये दिन हमें वंदे मातरम की असाधारण यात्रा और उसके प्रभाव को जानने का अवसर भी देता है। जब सन् 1875 में बंकिम बाबू ने बंगदर्शन में “वंदे मातरम्” प्रकाशित किया था, तो कुछ लोगों को लगता था कि ये तो केवल एक गीत है। लेकिन, देखते ही देखते वंदे मातरम भारत के स्वतंत्रता संग्राम का, कोटि-कोटि जनों का स्वर बन गया। एक ऐसा स्वर, जो हर क्रांतिकारी की जबान पर था, एक ऐसा स्वर, जो हर भारतीय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा था। आप देखिए, आज़ादी की लड़ाई का शायद ही ऐसा कोई अध्याय होगा, जिससे वंदे मातरम किसी न किसी रूप से जुड़ा नहीं था। 1896 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कलकत्ता अधिवेशन में वंदे मातरम गाया। 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ। ये देश को बांटने का अंग्रेजों का एक खतरनाक एक्सपेरिमेंट था। लेकिन, वंदे मातरम उन मंसूबों के आगे चट्टान बनकर के खड़ा हो गया। बंगाल के विभाजन के विरोध में सड़कों पर एक ही आवाज़ थी- वंदे मातरम।

साथियों,

बरिसाल अधिवेशन में जब आंदोलनकारियों पर गोलियाँ चलीं, तब भी उनके होंठों पर वही मंत्र था, वही शब्द थे- वंदे मातरम! भारत के बाहर रहकर आज़ादी के लिए काम कर रहे वीर सावरकर जैसे स्वतंत्र सेनानी, वो जब आपस में मिलते थे, तो उनका अभिवादन वंदे मातरम से ही होता था। कितने ही क्रांतिकारियों ने फांसी के तख्त पर खड़े होकर भी वंदे मातरम बोला था। ऐसी कितनी ही घटनाएँ, इतिहास की कितनी ही तारीखें, इतना बड़ा देश, अलग-अलग प्रांत और इलाके, अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोग, उनके आंदोलन, लेकिन जो नारा, जो संकल्प, जो गीत हर जबान पर था, जो गीत हर स्वर में था, वो था- वंदे मातरम।

इसलिए, भाइयों-बहनों,

1927 में महात्मा गांधी ने कहा था- "वंदे मातरम हमारे सामने संपूर्ण भारत का ऐसा चित्र उपस्थित कर देता है, जो अखंड है।"श्री अरबिंदो ने वंदे मातरम को एक गीत से भी आगे, उसे एक मंत्र कहा था। उन्होंने कहा- ये एक ऐसा मंत्र है जो आत्मबल जगाता है। भीकाजी कामा ने भारत का जो ध्वज तैयार करवाया था, उसमें बीच में भी लिखा था- “वंदे मातरम”

साथियों,

हमारा राष्ट्र ध्वज समय के साथ कई बदलावों से गुजरा, लेकिन तब से लेकर आज तक हमारे तिरंगे तक, देश का झण्डा जब भी फहरता है, तो हमारे मुंह से अनायास निकलता है- भारत माता की जय! वंदे मातरम! इसीलिए, आज जब हम उस राष्ट्रगीत के 150 वर्ष मना रहे हैं, तो ये देश के महान नायकों के प्रति हमारी श्रद्धांजलि है। और ये उन लाखों बलिदानियों को भी श्रद्धापूर्वक नमन है, जो वंदे मारतम का आह्वान करते हुए, फांसी के तख्त पर झूलते हुए, जो वंदे मातरम बोलते हुए, कोड़ों की मार सहते रहे, जो वंदे मातरम का मंत्र जपते हुए बर्फ की सिल्लियों पर अडिग रहे।

साथियों,

आज हम 140 करोड़ देशवासी ऐसे सभी नाम-अनाम-गुमनाम राष्ट्र के लिए जीने-मरने वालों को श्रद्धांजलि देते हैं। जो वंदे मारतम कहते हुए देश के लिए बलिदान हो गए, जिनके नाम इतिहास के पन्नों में कभी दर्ज ही नहीं हो पाए।

साथियों,

हमारे वेदों ने हमें सिखाया है- "माता भूमिः, पुत्रोऽहं पृथिव्याः"॥ अर्थात्, ये धरती हमारी माँ है, ये देश हमारी माँ है। हम इसी की संतानें हैं। भारत के लोगों ने वैदिक काल से ही राष्ट्र की इसी स्वरूप में कल्पना की, इसी स्वरूप में आराधना की है। इसी वैदिक चिंतन से वंदे मातरम ने आज़ादी की लड़ाई में नई चेतना फूंकी।

साथियों,

राष्ट्र को एक geopolitical entity मानने वालों के लिए राष्ट्र को माँ मानने का विचार हैरानी भरा हो सकता है। लेकिन, भारत अलग है। भारत में माँ जननी भी है, और माँ पालनहारिणी भी है। अगर संतान पर संकट आ जाए, तो माँ संहारकारिणी भी है। इसलिए, वंदे मातरम कहता है- अबला केन मा एत बले। बहुबल-धारिणीं नमामि तारिणीं रिपुदल-वारिणीं मातरम्॥ वंदे मातरम, अर्थात् अपार शक्ति धारण करने वाली भारत माँ, संकटों से पार भी कराने वाली, और शत्रुओं का विनाश भी कराने वाली है। राष्ट्र को माँ, और माँ को शक्ति स्वरूपा नारी मानने का ये विचार, इसका एक प्रभाव ये भी हुआ कि हमारा स्वतन्त्रता संग्राम, स्त्री-पुरुष, सबकी भागीदारी का संकल्प बन गया। हम फिर से ऐसे भारत का सपना देख पाये, जिसमें महिलाशक्ति राष्ट्र निर्माण में सबसे आगे खड़ी दिखाई देगी।

साथियों,

वंदे मातरम, आज़ादी के परवानों का तराना होने के साथ ही, इस बात की भी प्रेरणा देता है कि हमें इस आज़ादी की रक्षा कैसे करनी है, बंकिम बाबू के पूरे मूल गीत की पंक्तियाँ हैं- त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरण-धारिणी कमला कमल-दल-विहारिणी वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम् नमामि कमलाम् अमलां अतुलाम् सुजलां सुफलाम् मातरम्, वंदेमातरम! अर्थात्, भारत माता विद्यादायिनी सरस्वती भी है, समृद्धि दायिनी लक्ष्मी भी हैं, और अस्त्र-शास्त्रों को धारण करने वाली दुर्गा भी हैं। हमें ऐसे ही राष्ट्र का निर्माण करना है, जो ज्ञान, विज्ञान और टेक्नोलॉजी में शीर्ष पर हो, जो विद्या और विज्ञान की ताकत से समृद्धि के शीर्ष पर हो, और जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भर भी हो।

साथियों,

बीते वर्षों में दुनिया भारत के इसी स्वरूप का उदय देख रही है। हमने विज्ञान और टेक्नोलॉजी की फील्ड में अभूतपूर्व प्रगति की। हम दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभरे। और, जब दुश्मन ने आतंकवाद के जरिए भारत की सुरक्षा और सम्मान पर हमला करने का दुस्साहस किया, तो पूरी दुनिया ने देखा, नया भारत मानवता की सेवा के लिए अगर कमला और विमला का स्वरूप है, तो आतंक के विनाश के लिए ‘दश प्रहरण-धारिणी दुर्गा’ भी बनना जानता है।

साथियों,

वंदे मातरम से जुड़ा एक और विषय है, जिसकी चर्चा करना उतना ही आवश्यक है। आज़ादी की लड़ाई में वंदे मातरम की भावना ने पूरे राष्ट्र को प्रकाशित किया था। लेकिन दुर्भाग्य से, 1937 में वंदे मातरम के महत्वपूर्ण पदों को, उसकी आत्मा के एक हिस्से को अलग कर दिया गया था। वंदे मातरम को तोड़ दिया गया था, उसके टुकड़े किए गए थे। वंदे मातरम के इस विभाजन ने देश के विभाजन के बीज भी बो दिये थे। राष्ट्र निर्माण का ये महामंत्र, इसके साथ ये अन्याय क्यों हुआ? ये आज की पीढ़ी को भी जानना जरूरी है। क्योंकि वही विभाजनकारी सोच देश के लिए आज भी चुनौती बनी हुई है।

साथियों,

हमें इस सदी को भारत की सदी बनाना है। ये सामर्थ्य भारत में है, ये सामर्थ्य भारत के 140 करोड़ लोगों में है। हमें इसके लिए खुद पर विश्वास करना होगा। इस संकल्प यात्रा में हमें पथभ्रमित करने वाले भी मिलेंगे, नकारात्मक सोच वाले लोग हमारे मन में शंका-संदेह पैदा करने का प्रयास भी करेंगे। तब हमें आनंद मठ का वो प्रसंग याद करना है, आनंद मठ में जब संतान भवानंद वंदे मातरम गाता है, तो एक दूसरा पात्र तर्क-वितर्क करता है। वह पूछता है कि तुम अकेले क्या कर पाओगे? तब वंदे मातरम से प्रेरणा मिलती है, जिस माता के इतने करोड़ पुत्र-पुत्री हों, उसके करोड़ों हाथ हों, वो माता अबला कैसे हो सकती है? आज तो भारत माता की 140 करोड़ संतान हैं। उसके 280 करोड़ भुजाएं हैं। इनमें से 60 प्रतिशत से भी ज्यादा तो नौजवान हैं। दुनिया का सबसे बड़ा डेमोग्राफिक एडवांटेज हमारे पास है। ये सामर्थ्य इस देश का है, ये सामर्थ्य माँ भारती का है। ऐसा क्या है, जो आज हमारे लिए असंभव है? ऐसा क्या है, जो हमें वंदे मातरम के मूल सपने को पूरा करने से रोक सकता है?

साथियों,

आज आत्मनिर्भर भारत के विज़न की सफलता, मेक इन इंडिया का संकल्प, और 2047 में विकसित भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ते हमारे कदम, देश जब ऐसे अभूतपूर्व समय में नई उपलब्धियां हासिल करता है, तो हर देशवासी के मुंह से निकलता है- वंदे मातरम! आज जब भारत चंद्रमा के साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश बनता है, जब नए भारत की आहट अंतरिक्ष के सुदूर कोनों तक सुनाई देती है, तो हर देशवासी कह उठता है- वंदे मातरम! आज जब हम हमारी बेटियों को स्पेस टेक्नोलॉजी से लेकर स्पोर्ट्स तक में शिखर पर पहुँचते देखते हैं, आज जब हम बेटियों को फाइटर जेट उड़ाते देखते हैं, तो गौरव से भरा हर भारतीय का नारा होता है- वंदे मातरम!

साथियों,

आज ही हमारे फौज के जवानों के लिए वन रैंक वन पेंशन लागू होने के 11 वर्ष हुए हैं। जब हमारी सेनाएं, दुश्मन के नापाक इरादों को कुचल देती हैं, जब आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवादी आतंक की कमर तोड़ी जाती है, तो हमारे सुरक्षाबल एक ही मंत्र से प्रेरित होते हैं, और वो मंत्र है – वंदे मातरम!

साथियों,

मां भारती के वंदन की यही स्पिरिट हमें विकसित भारत के लक्ष्य तक ले जाएगी। मुझे विश्वास है, वंदे मातरम का मंत्र, हमारी इस अमृत यात्रा में, माँ भारती की कोटि-कोटि संतानों को निरंतर शक्ति देगा, प्रेरणा देगा। मैं एक बार फिर सभी देशवासियों को वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर ह्दय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। और देशभर से मेरे साथ जुड़े हुए आप सबसे बहुत-बहुत धन्यवाद करते हुए, मेरे साथ खड़े होकर के पूरी ताकत से, हाथ ऊपर करके बोलिए–

वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम!

बहुत-बहुत धन्यवाद!