मेरा मानना है कि रकार को व्यापार नहीं करना चाहिए। फोकस ‘मिनिमम गवर्मेंट एंड मैक्सिमम गवर्नेंस’ पर होना चाहिए :  नरेन्‍द्र  मोदी

दशकों से हमारे पास असाधारण रूप से विशाल सरकारें रही, हालांकि विडंबना ये है कि शासन की गुणवत्ता काफी ख़राब रही। सरकार के आकार पर तो बहुत ध्यान दिया गया, लेकिन गुणवत्ता पर इतना नहीं। इसलिए छोटी लेकिन प्रभावशाली सरकार का नरेन्‍द्र मोदी का मॉडल बेजोड़ है। नरेन्‍द्र मोदी का मानना है कि व्यावसायिक क्षेत्र में सरकार की भूमिका सुविधा प्रदान करने तक ही सीमित होना चाहिए ।

नरेन्‍द्र मोदी ने अपनी इस मान्यता को हकीकत में बदला है, नतीज़तन गुजरात आर्थिक आज़ादी के मामले में भारत का सबसे अव्वल राज्य है। आर्थिक आज़ादी सूचकांक दर्शाता है कि नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात राज्य में काफी छोटी सरकारी मशीनरी थी, और ये मशीनरी मानव जीवन तथा सम्पत्ति के साथ ही न्याय प्रणाली की गुणवत्ता, जिसमें न्यायधीशों की उपलब्धता और अदालतों में मुकदमों की निपटाव दर शामिल है, के लिहाज से बेहद प्रभावशाली थी।

इसके अलावा उनके नेतृत्व में राज्य में श्रमिकों की स्थिति बेहतरीन रही है। इस तरह नरेन्‍द्र मोदी ने दिखा दिया है कि छोटी और कम हस्तक्षेप करने वाली सरकार के साथ भी एक अच्छी न्याय प्रणाली और उद्यमियों के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार करना संभव है।

सुशासन के बारे में नरेन्‍द्र मोदी के नजरिए का एक और पहलू है, गांधीजी के स्वराज के सिद्धांत का पालन। महात्मा गांधी का स्वराज में विश्वास था और उनका मानना था कि हर गांव को स्थानीय मामलों का समाधान करने के लिए सक्षम बनाना ज़रूरी है। नरेन्‍द्र मोदी ने स्थानीय स्व-शासन को ज़्यादा प्रभावशाली बनाकर बापू का सपना साकार करने की ओर ठोस कदम उठाए हैं।  उन्होंने शासन के मॉडल के मूल स्तंभ को विकेंद्रित किया और लोगों को पर्याप्त शक्तियां दी।

गुजरात एक ऐसा राज्य था,जहां20% क्षेत्र के पास 71% जल संसाधन और शेष 80% क्षेत्र में स़िर्फ 29% जल संसाधन थे। जल संसाधनों का प्रबंध राज्य सरकार के सामने एक सबसे बड़ी चुनौती थी। अपनी राजनीतिक सूझबूझ से नरेन्‍द्र मोदी ने इस संकट को अवसर बदल दिया। ग्रामीण समुदायों को उनकी जलस्थिति से निपटने में सक्षम बनाने के लिए उन्होंने वर्ष 2002 में वासमो (जल और स्वच्छता प्रबंधन संगठन) नामक विशेष उद्देश्यीयकंपनी (एसपीवी) बनाई।

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ग्राम स्तरीय पानी समितियों ने ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाया। गांव से 10-12 सदस्यों के समूह बनाए गए,जिन्हें सरकार ने क्षमता निर्माण कार्यक्रमों द्वारा प्रशिक्षित किया और यह तय करने की अनुमति दी कि उनके क्षेत्रों में उपलब्ध जल संसाधनों का कैसे इस्तेमाल किया जाए। इन समितियों के सदस्यों को पूंजीगत लागत का दस प्रतिशत योगदान देने का निर्देश दिया गया,ताकि उनमें गांव के कल्याण के प्रति अधिकार और जिम्मेदारियों का अहसास हो।

पानी समितियों में महिलाओं के जुड़ाव को संस्थागत बनाया गया, जिससे स्वच्छता,स्वास्थ्य, पानी से होने वाली बीमारियों की रोकथाम तथा नीरसता में कमी आदि के लिहाज़ से सकारात्मक प्रभाव पड़ा। गुजरात में पानी समितियों की संख्या 2002 में 82 थी, जो ज़बर्दस्त ढंग से बढ़ते हुए 2012 में 18,076 हो गईं।

नरेन्‍द्र मोदी द्वारा एक और महत्वपूर्ण पहल है एटीवीटी (अपनो तालुको वाइब्रेंट तालुको) के रूप में प्रशासन का विकेंद्रीकरण। यह उप-ज़िला-केंद्रित नजरिये के ज़रिए विकास प्रक्रिया का मार्गदर्शन करने के लिए स्थानीय स्तर पर लोगों को सक्षम बनाने के लिए पेश किया गया था, जिसमें शासन और विकास ज़मीनी स्तर पर सक्रिय किए जाते हैं।

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नरेन्‍द्र मोदी चाहते थे किराज्य में 26 स्तंभों (26 ज़िलों) के बजाये इसमें 225 स्तंभ (225 तालुका) हो। एटीवीटी के अंतर्गत गुजरात के प्रत्येक तालुके को दो अंकों की विकास दर और सामाजिक विकास के लिए स्थानीय मंच प्रदान करने के लिए सक्षम बनाया गया है। उप-ज़िला (तालुका) स्तर तक प्रशासन के विकेंद्रीकरण से विकास को तेज़ गति मिली, वह ज़्यादा प्रभावी और पारदर्शी तथा नागरिक-केंद्रित हुआ। अब हर तालुका अपनी आवश्यकताओं और चुनौतियों के हिसाब से योजनाएं बनाता हैऔर उसके अनुसार ज़्यादा लाभ के लिए विकास योजनाओं का लक्ष्यित क्रियान्वयन करता है।

लालफीताशाही और मध्यस्थों द्वारा परेशान करने की प्रवृत्ति से छोटे कस्बों व गांवों के लोगों को बड़ी तकलीफ़ थी। इसे रोका गया। किसानों सहित अन्य लोगों को लंबा सफर तय करना पड़ता था। लेकिन अब वह एटीवीटी के माध्यम से सेवाओं का आसानी से लाभ उठा सकते हैं। यह नजरिया अनोखा, मुस्तैद और क्षेत्र की ज़रूरतों के अनुरूप हैं तथा ग्रामीणों के सामाजिक-आर्थिक जीवन का आइना है।

नरेन्‍द्र मोदी द्वारा अपनाई गई समरस ग्राम की अवधारणा एक और आकर्षक अभिनव पहल थी। कई बार पंचायत चुनाव विवादित हो सकते हैं और कड़वाहट के कारण विकास कार्यों में अवरोध आ सकता है। ऐसी बाधाएं दूर करने के लिए उन्होंने विकास के मद्देनज़र सहमति बनाने की ज़रूरत महसूस की। इस पहल के तहतसर्व-सम्मति से सरपंच चुनने वाले गांवों को आर्थिक लाभ व प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।

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ग्रामीण विकास के लिए समरस गांव भी वरदान साबित हुएक्योंकि सर्व-सम्मति से चुनी गई पंचायतें पूरे गांव का विश्वास जीतती हैं और ज़्यादा भरोसेमंद तथा ज़्यादा उत्साह से काम करती हैं। जब एक स्थानीय निकाय ऐसी सर्व-सम्मति से चुनी जाती है तो सुशासन प्रदान करने की जिम्मेदारी में बढ़ोतरी होती है।

ये तो स़िर्फ कुछ उदाहरण थेकि कैसे नरेन्‍द्र मोदी ने सरकारी हस्तक्षेप को कम किया और वास्तव में लोगों को सशक्त करते हुए उन्हें विकास यात्रा में भागीदार बनाया।

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जल जीवन मिशन के 6 साल: हर नल से बदलती ज़िंदगी
August 14, 2025
"हर घर तक पानी पहुंचाने के लिए जल जीवन मिशन, एक प्रमुख डेवलपमेंट पैरामीटर बन गया है।" - प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

पीढ़ियों तक, ग्रामीण भारत में सिर पर पानी के मटके ढोती महिलाओं का दृश्य रोज़मर्रा की बात थी। यह सिर्फ़ एक काम नहीं था, बल्कि एक ज़रूरत थी, जो उनके दैनिक जीवन का अहम हिस्सा थी। पानी अक्सर एक या दो मटकों में लाया जाता, जिसे पीने, खाना बनाने, सफ़ाई और कपड़े धोने इत्यादि के लिए बचा-बचाकर इस्तेमाल करना पड़ता था। यह दिनचर्या आराम, पढ़ाई या कमाई के काम के लिए बहुत कम समय छोड़ती थी, और इसका बोझ सबसे ज़्यादा महिलाओं पर पड़ता था।

2014 से पहले, पानी की कमी, जो भारत की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक थी; को न तो गंभीरता से लिया गया और न ही दूरदृष्टि के साथ हल किया गया। सुरक्षित पीने के पानी तक पहुँच बिखरी हुई थी, गाँव दूर-दराज़ के स्रोतों पर निर्भर थे, और पूरे देश में हर घर तक नल का पानी पहुँचाना असंभव-सा माना जाता था।

यह स्थिति 2019 में बदलनी शुरू हुई, जब भारत सरकार ने जल जीवन मिशन (JJM) शुरू किया। यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य हर ग्रामीण घर तक सक्रिय घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) पहुँचाना है। उस समय केवल 3.2 करोड़ ग्रामीण घरों में, जो कुल संख्या का महज़ 16.7% था, नल का पानी उपलब्ध था। बाकी लोग अब भी सामुदायिक स्रोतों पर निर्भर थे, जो अक्सर घर से काफी दूर होते थे।

जुलाई 2025 तक, हर घर जल कार्यक्रम के अंतर्गत प्रगति असाधारण रही है, 12.5 करोड़ अतिरिक्त ग्रामीण परिवारों को जोड़ा गया है, जिससे कुल संख्या 15.7 करोड़ से अधिक हो गई है। इस कार्यक्रम ने 200 जिलों और 2.6 लाख से अधिक गांवों में 100% नल जल कवरेज हासिल किया है, जिसमें 8 राज्य और 3 केंद्र शासित प्रदेश अब पूरी तरह से कवर किए गए हैं। लाखों लोगों के लिए, इसका मतलब न केवल घर पर पानी की पहुंच है, बल्कि समय की बचत, स्वास्थ्य में सुधार और सम्मान की बहाली है। 112 आकांक्षी जिलों में लगभग 80% नल जल कवरेज हासिल किया गया है, जो 8% से कम से उल्लेखनीय वृद्धि है। इसके अतिरिक्त, वामपंथी उग्रवाद जिलों के 59 लाख घरों में नल के कनेक्शन किए गए, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि विकास हर कोने तक पहुंचे। महत्वपूर्ण प्रगति और आगे की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय बजट 2025–26 में इस कार्यक्रम को 2028 तक बढ़ाने और बजट में वृद्धि की घोषणा की गई है।

2019 में राष्ट्रीय स्तर पर शुरू किए गए जल जीवन मिशन की शुरुआत गुजरात से हुई है, जहाँ श्री नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में सुजलाम सुफलाम पहल के माध्यम से इस शुष्क राज्य में पानी की कमी से निपटने के लिए काम किया था। इस प्रयास ने एक ऐसे मिशन की रूपरेखा तैयार की जिसका लक्ष्य भारत के हर ग्रामीण घर में नल का पानी पहुँचाना था।

हालाँकि पेयजल राज्य का विषय है, फिर भी भारत सरकार ने एक प्रतिबद्ध भागीदार की भूमिका निभाई है, तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करते हुए राज्यों को स्थानीय समाधानों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने का अधिकार दिया है। मिशन को पटरी पर बनाए रखने के लिए, एक मज़बूत निगरानी प्रणाली लक्ष्यीकरण के लिए आधार को जोड़ती है, परिसंपत्तियों को जियो-टैग करती है, तृतीय-पक्ष निरीक्षण करती है, और गाँव के जल प्रवाह पर नज़र रखने के लिए IoT उपकरणों का उपयोग करती है।

जल जीवन मिशन के उद्देश्य जितने पाइपों से संबंधित हैं, उतने ही लोगों से भी संबंधित हैं। वंचित और जल संकटग्रस्त क्षेत्रों को प्राथमिकता देकर, स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों और स्वास्थ्य केंद्रों में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करके, और स्थानीय समुदायों को योगदान या श्रमदान के माध्यम से स्वामित्व लेने के लिए प्रोत्साहित करके, इस मिशन का उद्देश्य सुरक्षित जल को सभी की ज़िम्मेदारी बनाना है।

इसका प्रभाव सुविधा से कहीं आगे तक जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि JJM के लक्ष्यों को प्राप्त करने से प्रतिदिन 5.5 करोड़ घंटे से अधिक की बचत हो सकती है, यह समय अब शिक्षा, काम या परिवार पर खर्च किया जा सकता है। 9 करोड़ महिलाओं को अब बाहर से पानी लाने की ज़रूरत नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह भी अनुमान है कि सभी के लिए सुरक्षित जल, दस्त से होने वाली लगभग 4 लाख मौतों को रोक सकता है और स्वास्थ्य लागत में 8.2 लाख करोड़ रुपये की बचत कर सकता है। इसके अतिरिक्त, आईआईएम बैंगलोर और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, JJM ने अपने निर्माण के दौरान लगभग 3 करोड़ व्यक्ति-वर्ष का रोजगार सृजित किया है, और लगभग 25 लाख महिलाओं को फील्ड टेस्टिंग किट का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया गया है।

रसोई में एक माँ का साफ़ पानी से गिलास भरते समय मिलने वाला सुकून हो, या उस स्कूल का भरोसा जहाँ बच्चे बेफ़िक्र होकर पानी पी सकते हैं; जल जीवन मिशन, ग्रामीण भारत में जीवन जीने के मायने बदल रहा है।