आज ओपिनियन पोल, और कल?

प्रिय मित्रों,

उम्मीद है कि अपने परिवार और स्वजनों के साथ आपकी यह दिवाली बहुत अच्छी रही होगी।

कांग्रेस के मित्र ओपिनियन पोल (चुनावी सर्वेक्षण) पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। इससे संबंधित लेख बीते कुछ दिनों से मैं अखबार, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर पढ़ रहा हूं। इस सन्दर्भ में दो ट्विट्स ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया। बीजेडी के लोकसभा सांसद जय पांडा ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है कि, “अब अगला कदम- ओपिनियन (अभिव्यक्ति) पर प्रतिबंध।” इसी तरह चेतन भगत ने ट्वीट किया है, “ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध से तो ज्यादा अच्छा है कि ओपिनियन पर ही प्रतिबंध लगा दो और उससे भी कहीं ज्यादा अच्छा तो यह होगा कि पोल (चुनाव) पर ही प्रतिबंध लगा दो।”

 

मित्रों, इस कटाक्ष में निहितार्थ समाया है।

जिन लोगों ने आजादी के बाद भारतीय राजनीति और कांग्रेस के क्रियाकलापों का थोड़ा-बहुत अध्ययन किया है, उन्हें कांग्रेस की इस मांग से कोई आश्चर्य नहीं होगा। संवैधानिक संस्थाओं को कुचलने की कांग्रेस की वृत्ति और सत्ता के नशे में चूर होकर नागरिकों की वाणीस्वतंत्रता और उन्हें अपनी राय व्यक्त करने से रोकने की इस मुराद को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कह सकते हैं।

अभी उस बात को ज्यादा वक्त नहीं बीता, जब यूपीए सरकार ने ट्विटर हेण्डल सस्पेंड कर दिया था। ऐसा कर सरकार ने इस बात का परिचय दे दिया था कि, सोशल मीडिया पर होने वाली आलोचनाओं को लेकर वह कितनी असहिष्णु है। उस वक्त सोशल मीडिया पर वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर लोगों की भावनाओं से अपनी सहमति के प्रतीकस्वरूप मैं मेरे ट्विटर के डिस्प्ले पिक्चर पर काली पट्टी लगा रखी थी। २०११ में बाबा साहेब अम्बेडकर के निर्वाण दिवस पर कई केन्द्रीय मंत्रियों ने सोशल मीडिया पर नियंत्रण लादने की बात कही थी। विडंबना भी उस दिन शर्म से सौ बार मरी होगी। कुछ महीने पूर्व मुंबई की एक रेस्तरां ने सृजनात्मक तरीके से अपने बिल में यूपीए की नीतियों के खिलाफ अपनी राय व्यक्त की तो उसे धमकियां दी गई।

१५ अगस्त को प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस भाषण के टेलीविजन कवरेज को लेकर एक केन्द्रीय मंत्रालय द्वारा मीडियाकर्मियों को लिखा गया, और वह भी दो महीने बाद। आज, जब देश महंगाई की आग में झुलस रहा है और बेरोजगारी आसमान छू रही है, तब भी ऐसा बेशर्म नजारा देखने को मिल रहा है। यूपीए स्पष्ट तौर पर निहायत ही फिजुल बातों को प्रधानता दे रही है। राष्ट्रीय महत्व के आवश्यक मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाए यह सरकार उन मसलों पर अपनी ऊर्जा व्यर्थ कर रही है जो गंभीर कदापि नहीं हैं।

मैं मीडिया के अपने मित्रों से पूछना चाहता हूं कि अभिव्यक्ति की आजादी छीनने वाले इस प्रस्ताव को लेकर वे चुप क्यों हैं?

ऐसा नहीं है कि ओपिनियन पोल को लेकर मुझे कोई विशेष प्रेम है। इसकी सीमाओं से मैं बखूबी परिचित हूं। इन ज्ञानी विश्लेषकों ने तो बड़े आत्मविश्वास से कहा था कि, २००२ के चुनावों में गुजरात की जनता भाजपा के खिलाफ मतदान करेगी। २००७ और २०१२ में भी उन्होंने ऐसा ही कहा था। लेकिन जनता ने उन्हें गलत साबित कर दिया।

परन्तु एक महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रत्येक पार्टी और सरकार के लिए सच है। महाभारत के भीष्म से लेकर अर्थशास्त्र के कौटिल्य तक हमें यह सीखाया गया है कि जनता की राय से मेल बिठाना कितना जरूरी है। जो सरकार जनता के अभिप्राय की अवगणना करती है, वह निश्चित ही सत्ता से बेदखल हो जाती है।

भारत में ओपिनियन पोल का प्रदर्शन मिला-जुला रहा है। कभी उनकी भविष्यवाणी सच साबित होती है, तो कभी गलत। ओपिनियन पोल के नतीजों का क्या किया जाए यह हम राजनीतिक पार्टियों को तय करना है।

यदि ये नतीजे हमारे पक्ष में हो तो आत्मसंतोष के भाव के साथ बैठे रहने से हमें कोई रोकने वाला नहीं है, या फिर अतिविश्वास में रचे-पचे बिना प्रयत्न जारी रखने को भी हम आजाद हैं।

ठीक इसी तरह, यदि यह हमारे पक्ष में नहीं हो तो आंकड़ों को झुठलाने से हमें कोई रोक नहीं सकता, या फिर अपनी गलतियों में सुधार कर आवश्यक प्रयास करने के लिए भी हम स्वतंत्र हैं।

ओपिनियन पोल के नतीजों में हम जो सुनना चाहते हैं, यदि वह सुनने को न मिले तो इस तरह का आत्यंतिक कदम उठाना सर्वथा बचकानी हरकत है।

मेरी चिंता ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव तक ही सीमित नहीं है। कल को इसी तर्क के आधार पर कांग्रेस चुनाव के दौरान लेख, संपादकीय लेख और ब्लॉग पर भी प्रतिबंध लगा सकती है। यदि वह चुनाव हार जाए तो निर्वाचन आयोग पर प्रतिबंध लगाना चाहेंगे और यदि अदालत उन्हें सहयोग न दे तो कहेंगे कि अदालत पर भी प्रतिबंध लगा दो! आखिर में यह वही पार्टी है जिसने अदालत के एक कड़वे फैसले की वजह से देश पर आपातकाल थोप दिया था।

मुझे खुशी है कि मेरे साथी अरुण जेटली ने अपने एक लेख में भी इन्हीं मुद्दों को उठाया है।

यदि मुझसे पूछें तो इसका उपाय बहुत सरल है। कांग्रेस की ऐसी तानाशाही और विध्वंसकारी चालाकियों का सामना करने के बजाए अच्छा तो यही होगा कि लोकतंत्र-विरोधी कांग्रेस पार्टी को ओपिनियन पोल में तो खारिज करें हीं, इसके अलावा उस पोलिंग बूथ में भी उसे नकार दें, जिसका महत्व सर्वाधिक है।

जनता ही श्रेष्ठ न्यायाधीश है!

नरेन्द्र मोदी

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एकता का महाकुंभ, युग परिवर्तन की आहट
February 27, 2025

महाकुंभ संपन्न हुआ...एकता का महायज्ञ संपन्न हुआ। जब एक राष्ट्र की चेतना जागृत होती है, जब वो सैकड़ों साल की गुलामी की मानसिकता के सारे बंधनों को तोड़कर नव चैतन्य के साथ हवा में सांस लेने लगता है, तो ऐसा ही दृश्य उपस्थित होता है, जैसा हमने 13 जनवरी के बाद से प्रयागराज में एकता के महाकुंभ में देखा।

22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में मैंने देवभक्ति से देशभक्ति की बात कही थी। प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान सभी देवी-देवता जुटे, संत-महात्मा जुटे, बाल-वृद्ध जुटे, महिलाएं-युवा जुटे, और हमने देश की जागृत चेतना का साक्षात्कार किया। ये महाकुंभ एकता का महाकुंभ था, जहां 140 करोड़ देशवासियों की आस्था एक साथ एक समय में इस एक पर्व से आकर जुड़ गई थी।

तीर्थराज प्रयाग के इसी क्षेत्र में एकता, समरसता और प्रेम का पवित्र क्षेत्र श्रृंगवेरपुर भी है, जहां प्रभु श्रीराम और निषादराज का मिलन हुआ था। उनके मिलन का वो प्रसंग भी हमारे इतिहास में भक्ति और सद्भाव के संगम की तरह ही है। प्रयागराज का ये तीर्थ आज भी हमें एकता और समरसता की वो प्रेरणा देता है।

बीते 45 दिन, प्रतिदिन, मैंने देखा, कैसे देश के कोने-कोने से लाखों-लाख लोग संगम तट की ओर बढ़े जा रहे हैं। संगम पर स्नान की भावनाओं का ज्वार, लगातार बढ़ता ही रहा। हर श्रद्धालु बस एक ही धुन में था- संगम में स्नान। मां गंगा, यमुना, सरस्वती की त्रिवेणी हर श्रद्धालु को उमंग, ऊर्जा और विश्वास के भाव से भर रही थी।

प्रयागराज में हुआ महाकुंभ का ये आयोजन, आधुनिक युग के मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के लिए, प्लानिंग और पॉलिसी एक्सपर्ट्स के लिए, नए सिरे से अध्ययन का विषय बना है। आज पूरे विश्व में इस तरह के विराट आयोजन की कोई दूसरी तुलना नहीं है, ऐसा कोई दूसरा उदाहरण भी नहीं है।

पूरी दुनिया हैरान है कि कैसे एक नदी तट पर, त्रिवेणी संगम पर इतनी बड़ी संख्या में करोड़ों की संख्या में लोग जुटे। इन करोड़ों लोगों को ना औपचारिक निमंत्रण था, ना ही किस समय पहुंचना है, उसकी कोई पूर्व सूचना थी। बस, लोग महाकुंभ चल पड़े...और पवित्र संगम में डुबकी लगाकर धन्य हो गए।

मैं वो तस्वीरें भूल नहीं सकता...स्नान के बाद असीम आनंद और संतोष से भरे वो चेहरे नहीं भूल सकता। महिलाएं हों, बुजुर्ग हों, हमारे दिव्यांग जन हों, जिससे जो बन पड़ा, वो साधन करके संगम तक पहुंचा।

और मेरे लिए ये देखना बहुत ही सुखद रहा कि बहुत बड़ी संख्या में भारत की आज की युवा पीढ़ी प्रयागराज पहुंची। भारत के युवाओं का इस तरह महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए आगे आना, एक बहुत बड़ा संदेश है। इससे ये विश्वास दृढ़ होता है कि भारत की युवा पीढ़ी हमारे संस्कार और संस्कृति की वाहक है और इसे आगे ले जाने का दायित्व समझती है और इसे लेकर संकल्पित भी है, समर्पित भी है।

इस महाकुंभ में प्रयागराज पहुंचने वालों की संख्या ने निश्चित तौर पर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन इस महाकुंभ में हमने ये भी देखा कि जो प्रयाग नहीं पहुंच पाए, वो भी इस आयोजन से भाव-विभोर होकर जुड़े। कुंभ से लौटते हुए जो लोग त्रिवेणी तीर्थ अपने साथ लेकर गए, उस जल की कुछ बूंदों ने भी करोड़ों भक्तों को कुंभ स्नान जैसा ही पुण्य दिया। कितने ही लोगों का कुंभ से वापसी के बाद गांव-गांव में जो सत्कार हुआ, जिस तरह पूरे समाज ने उनके प्रति श्रद्धा से सिर झुकाया, वो अविस्मरणीय है।

ये कुछ ऐसा हुआ है, जो बीते कुछ दशकों में पहले कभी नहीं हुआ। ये कुछ ऐसा हुआ है, जो आने वाली कई-कई शताब्दियों की एक नींव रख गया है।

प्रयागराज में जितनी कल्पना की गई थी, उससे कहीं अधिक संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंचे। इसकी एक वजह ये भी थी कि प्रशासन ने भी पुराने कुंभ के अनुभवों को देखते हुए ही अंदाजा लगाया था। लेकिन अमेरिका की आबादी के करीब दोगुने लोगों ने एकता के महाकुंभ में हिस्सा लिया, डुबकी लगाई। 

आध्यात्मिक क्षेत्र में रिसर्च करने वाले लोग करोड़ों भारतवासियों के इस उत्साह पर अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि अपनी विरासत पर गौरव करने वाला भारत अब एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है। मैं मानता हूं, ये युग परिवर्तन की वो आहट है, जो भारत का नया भविष्य लिखने जा रही है।

साथियों,

महाकुंभ की इस परंपरा से, हजारों वर्षों से भारत की राष्ट्रीय चेतना को बल मिलता रहा है। हर पूर्णकुंभ में समाज की उस समय की परिस्थितियों पर ऋषियों-मुनियों, विद्वत् जनों द्वारा 45 दिनों तक मंथन होता था। इस मंथन में देश को, समाज को नए दिशा-निर्देश मिलते थे। 

इसके बाद हर 6 वर्ष में अर्धकुंभ में परिस्थितियों और दिशा-निर्देशों की समीक्षा होती थी। 12 पूर्णकुंभ होते-होते, यानि 144 साल के अंतराल पर जो दिशा-निर्देश, जो परंपराएं पुरानी पड़ चुकी होती थीं, उन्हें त्याग दिया जाता था, आधुनिकता को स्वीकार किया जाता था और युगानुकूल परिवर्तन करके नए सिरे से नई परंपराओं को गढ़ा जाता था। 

144 वर्षों के बाद होने वाले महाकुंभ में ऋषियों-मुनियों द्वारा, उस समय-काल और परिस्थितियों को देखते हुए नए संदेश भी दिए जाते थे। अब इस बार 144 वर्षों के बाद पड़े इस तरह के पूर्ण महाकुंभ ने भी हमें भारत की विकासयात्रा के नए अध्याय का संदेश दिया है। ये संदेश है- विकसित भारत का। 

जिस तरह एकता के महाकुंभ में हर श्रद्धालु, चाहे वो गरीब हों या संपन्न हों, बाल हो या वृद्ध हो, देश से आया हो या विदेश से आया हो, गांव का हो या शहर का हो, पूर्व से हो या पश्चिम से हो, उत्तर से हो दक्षिण से हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी विचारधारा का हो, सब एक महायज्ञ के लिए एकता के महाकुंभ में एक हो गए। एक भारत-श्रेष्ठ भारत का ये चिर स्मरणीय दृश्य, करोड़ों देशवासियों में आत्मविश्वास के साक्षात्कार का महापर्व बन गया। अब इसी तरह हमें एक होकर विकसित भारत के महायज्ञ के लिए जुट जाना है।

साथियों,

आज मुझे वो प्रसंग भी याद आ रहा है जब बालक रूप में श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को अपने मुख में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। वैसे ही इस महाकुंभ में भारतवासियों ने और विश्व ने भारत के सामर्थ्य के विराट स्वरूप के दर्शन किए हैं। हमें अब इसी आत्मविश्वास से एक निष्ठ होकर, विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए आगे बढ़ना है।

भारत की ये एक ऐसी शक्ति है, जिसके बारे में भक्ति आंदोलन में हमारे संतों ने राष्ट्र के हर कोने में अलख जगाई थी। विवेकानंद हों या श्री ऑरोबिंदो हों, हर किसी ने हमें इसके बारे में जागरूक किया था। इसकी अनुभूति गांधी जी ने भी आजादी के आंदोलन के समय की थी। आजादी के बाद भारत की इस शक्ति के विराट स्वरूप को यदि हमने जाना होता, और इस शक्ति को सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की ओर मोड़ा होता, तो ये गुलामी के प्रभावों से बाहर निकलते भारत की बहुत बड़ी शक्ति बन जाती। लेकिन हम तब ये नहीं कर पाए। अब मुझे संतोष है, खुशी है कि जनता जनार्दन की यही शक्ति, विकसित भारत के लिए एकजुट हो रही है।

वेद से विवेकानंद तक और उपनिषद से उपग्रह तक, भारत की महान परंपराओं ने इस राष्ट्र को गढ़ा है। मेरी कामना है, एक नागरिक के नाते, अनन्य भक्ति भाव से, अपने पूर्वजों का, हमारे ऋषियों-मुनियों का पुण्य स्मरण करते हुए, एकता के महाकुंभ से हम नई प्रेरणा लेते हुए, नए संकल्पों को साथ लेकर चलें। हम एकता के महामंत्र को जीवन मंत्र बनाएं, देश सेवा में ही देव सेवा, जीव सेवा में ही शिव सेवा के भाव से स्वयं को समर्पित करें।

साथियों, 

जब मैं काशी चुनाव के लिए गया था, तो मेरे अंतरमन के भाव शब्दों में प्रकट हुए थे, और मैंने कहा था- मां गंगा ने मुझे बुलाया है। इसमें एक दायित्व बोध भी था, हमारी मां स्वरूपा नदियों की पवित्रता को लेकर, स्वच्छता को लेकर। प्रयागराज में भी गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर मेरा ये संकल्प और दृढ़ हुआ है। गंगा जी, यमुना जी, हमारी नदियों की स्वच्छता हमारी जीवन यात्रा से जुड़ी है। हमारी जिम्मेदारी बनती है कि नदी चाहे छोटी हो या बड़ी, हर नदी को जीवनदायिनी मां का प्रतिरूप मानते हुए हम अपने यहां सुविधा के अनुसार, नदी उत्सव जरूर मनाएं। ये एकता का महाकुंभ हमें इस बात की प्रेरणा देकर गया है कि हम अपनी नदियों को निरंतर स्वच्छ रखें, इस अभियान को निरंतर मजबूत करते रहें।

मैं जानता हूं, इतना विशाल आयोजन आसान नहीं था। मैं प्रार्थना करता हूं मां गंगा से...मां यमुना से...मां सरस्वती से...हे मां हमारी आराधना में कुछ कमी रह गई हो तो क्षमा करिएगा...। जनता जनार्दन, जो मेरे लिए ईश्वर का ही स्वरूप है, श्रद्धालुओं की सेवा में भी अगर हमसे कुछ कमी रह गई हो, तो मैं जनता जनार्दन का भी क्षमाप्रार्थी हूं।

साथियों,

श्रद्धा से भरे जो करोड़ों लोग प्रयाग पहुँचकर इस एकता के महाकुंभ का हिस्सा बने, उनकी सेवा का दायित्व भी श्रद्धा के सामर्थ्य से ही पूरा हुआ है। यूपी का सांसद होने के नाते मैं गर्व से कह सकता हूं कि योगी जी के नेतृत्व में शासन, प्रशासन और जनता ने मिलकर, इस एकता के महाकुंभ को सफल बनाया। केंद्र हो या राज्य हो, यहां ना कोई शासक था, ना कोई प्रशासक था, हर कोई श्रद्धा भाव से भरा सेवक था। हमारे सफाईकर्मी, हमारे पुलिसकर्मी, नाविक साथी, वाहन चालक, भोजन बनाने वाले, सभी ने पूरी श्रद्धा और सेवा भाव से निरंतर काम करके इस महाकुंभ को सफल बनाया। विशेषकर, प्रयागराज के निवासियों ने इन 45 दिनों में तमाम परेशानियों को उठाकर भी जिस तरह श्रद्धालुओं की सेवा की है, वह अतुलनीय है। मैं प्रयागराज के सभी निवासियों का, यूपी की जनता का आभार व्यक्त करता हूं, अभिनंदन करता हूं।

साथियों, 

महाकुंभ के दृश्यों को देखकर, बहुत प्रारंभ से ही मेरे मन में जो भाव जगे, जो पिछले 45 दिनों में और अधिक पुष्ट हुए हैं, राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य को लेकर मेरी आस्था, अनेक गुना मजबूत हुई है।

140 करोड़ देशवासियों ने जिस तरह प्रयागराज में एकता के महाकुंभ को आज के विश्व की एक महान पहचान बना दिया, वो अद्भुत है।

देशवासियों के इस परिश्रम से, उनके प्रयास से, उनके संकल्प से अभीभूत मैं जल्द ही द्वादश ज्योतिर्लिंग में से प्रथम ज्योतिर्लिंग, श्री सोमनाथ के दर्शन करने जाऊंगा और श्रद्धा रूपी संकल्प पुष्प को समर्पित करते हुए हर भारतीय के लिए प्रार्थना करूंगा।

महाकुंभ का स्थूल स्वरूप महाशिवरात्रि को पूर्णता प्राप्त कर गया है। लेकिन मुझे विश्वास है, मां गंगा की अविरल धारा की तरह, महाकुंभ की आध्यात्मिक चेतना की धारा और एकता की धारा निरंतर बहती रहेगी।