मुझे जानकर आनंद हुआ कि बेटी के जन्म पर एक वृक्ष बोना चाहिए, मेरी यह ट्विट कई लोगों को पसन्द आई। पर्यावरण की रक्षा के लिए उनमें दिलचस्पी है, यह बात सराहनीय है। आपको इस बात में दिलचस्पी है तो चलिए मैं आपको बागवानी या खेती करते समय पानी की बचत करने के बारे में एक बढि़या टिप देता हूं।
ग्लेज किए बिना का एक मटका लीजिए। इसमें पानी भरकर ढंक दीजिए और इसे वृक्ष की जड़ के पास जमीन के भीतर रख दीजिए। एकाध सप्ताह तक आपको पौधे में पानी डालने की आवश्यकता नहीं रहेगी। मटका टपक सिंचाई के एक साधन के रूप में काम करेगा।
याद रखिए, आपको मटके में छेद करने की आवश्यकता नहीं है, और इससे ज्यादा अच्छा परिणाम हासिल करना हो तो मिट्टी से बर्तन मांजने के बाद जो पानी बचा हो उसे मटके में भर दो। इस पद्घति का उपयोग गुजरात के कई भागों में होता है। अगर हम संकल्प करें तो इतना छोटा काम भी बड़ा परिणाम दे सकता है।
मुझे एक दूसरा हृदयस्पर्शी मौका याद आता है। किसी ने मुझे एक बार पत्र लिखकर यह घटना बतलाई थी। घटना है सौराष्ट्र के वेरावल के नजदीक के एक गांव की। गांव की एक शाला के शिक्षक और विद्यार्थियों के द्वारा वृक्ष बोने के लिए एक अनोखा प्रयोग किया गया। क्षेत्र में पानी की कमी थी इसलिए वहां वृक्षों के लिए पानी हासिल करना भी एक समस्या था। इसलिए शिक्षक ने विद्यार्थियों से कहा कि उनकी माता मिट्टी से बर्तन मांज ले, उसके बाद वह मिट्टी वाला पानी बोतल में भरकर ले आएं।
प्रत्येक विद्यार्थी रोजाना मिट्टी वाला पानी बोतल में घर से भर कर लाता । शिक्षक ने विद्यार्थियों को यह पानी वृक्षों को पिलाने के लिए कहा। दिन बीतते गए और शाला के सामने एक हरा-भरा बगीचा तैयार हो गया। एक शिक्षक के छोटे से प्रयोग ने अनुपयोगी पानी के उपयोग से सूखे क्षेत्र में हरियाली बिखेर दी। और तो और इस प्रयोग के माध्यम से शिक्षक ने विद्यार्थियों को प्रकृति माता के साथ मित्रता करना भी सिखा दिया। मुझे इस घटना ने छू लिया। आशा है कि आपको भी छुएगी।
पर्यावरण की रक्षा के लिए इस प्रकार की टिप्स और प्रयोगों की जानकारी एक दुसरे को देते रहिये।चलिए, हम सभी पर्यावरण की सुरक्षा में अपना योगदान दें।


