Quote“Dr Manmohan Singh will figure in every discussion of the democracy of our nation”
Quote“This House is a diverse university of six years, shaped by experiences”

आदरणीय सभापति जी,

हर दो वर्ष के बाद इस सदन में इस प्रकार का प्रसंग आता है, लेकिन ये सदन निरन्तरता का प्रतीक है। लोकसभा 5 साल के बाद नए रंग-रूप के साथ सज जाती है। ये सदन हर 2 वर्ष के बाद एक नई प्राण शक्ति प्राप्त करता है, एक नई ऊर्जा प्राप्त करता है, एक नए उमंग और उत्साह का वातावरण भर देता है। और इसलिए हर 2 साल में जो होने वाली विदाई है, वो विदाई एक प्रकार से विदाई नहीं होती है। वो ऐसी स्मृतियों को यहां छोड़कर के जाते हैं, जो स्मृतियां आने वाली जो नई बैच होती है, उनके लिए ये अनमोल विरासत होती है। जिस विरासत को वो यहां अपने कार्यकाल के दरम्‍यान और अधिक मूल्यवान बनाने का प्रयास करते हैं।

जो आदरणीय सांसदगण अपने, कुछ लोग जा रहे हैं, हो सकता है कुछ लोग आने के लिए ही जा रहे हो, और कुछ लोग जाने के लिए जा रहे हो। मैं विशेष रूप से माननीय डॉ. मनमोहन सिंह जी का स्मरण करना चाहूंगा। 6 बार इस सदन में वो अपने मूल्यवान विचारों से और नेता के रूप में भी और प्रतिपक्ष में भी नेता के रूप में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। वैचारिक मतभेद कभी बहस में छींटाकशी, वो तो बहुत अल्पकालीन होता है। लेकिन इतने लंबे अरसे तक जिस प्रकार से उन्होंने इस सदन का मार्गदर्शन किया है, देश का मार्गदर्शन किया है, वो हमेशा-हमेशा जब भी हमारे लोकतंत्र की चर्चा होगी, तो कुछ माननीय सदस्यों की जो चर्चा होगी, उसमें माननीय डॉ. मनमोहन सिंह की योगदान की चर्चा जरूर होगी।

और मैं सभी सांसदों से चाहे इस सदन में हो या उस सदन में हो, जो आज है वो शायद भविष्य में आने वाले हो, मैं उनसे जरूर कहूंगा कि ये जो माननीय सांसद होते हैं किसी भी दल के क्यों न हो। लेकिन जिस प्रकार से उन्होंने अपने जीवन को conduct किया होता है। जिस प्रकार की प्रतिभा के दर्शन उन्होंने अपने कार्यकाल में कराए होते हैं, उसका हमें एक गाइडिंग लाइट के रूप में सीखने के लिए प्रयास करना चाहिए।

मुझे याद है, उस सदन के अंदर लास्ट कुछ दिनों में एक वोटिंग का अवसर था, विषय तो छूट गया मेरा, लेकिन पता था कि विजय ट्रेजरी बैंक की होने वाली है, अंतर भी बहुत था। लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह जी व्हीलचेयर में आए, वोट किया, एक सांसद अपने दायित्व के लिए कितना सजग है, इसका वो उदाहरण थे, वो प्रेरक उदाहरण था। इतना ही नहीं मैं देख रहा था कभी कमेटी के चुनाव हुए, कमिटी मेम्बर्स के, वो व्हीलचेयर पर वोट देने आए। सवाल ये नहीं है कि वो किसको ताकत देने के लिए आए थे, मैं मानता हूं वो लोकतंत्र को ताकत देने आए थे। और इसलिए आज विशेष रूप से मैं उनके दीर्घायु के लिए हम सब की तरफ से प्रार्थना करता हूं, वे निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते रहे, हमें प्रेरणा देते रहे।

आदरणीय सभापति जी,

जो हमारे साथी नए दायित्व की ओर आगे बढ़ रहे हैं, इस सीमित विस्तार से एक बड़े विस्तार की तरफ जा रहे हैं, राज्यसभा से निकलकर के जनसभा में जा रहे हैं। तो मैं मानता हूं उनका साथ, यहां का अनुभव, इतने बड़े मंच पर जा रहे हैं तब, देश के लिए एक बहुत बड़ी पूंजी बनकर के निकलेगा। किसी यूनिवर्सिटी में भी 3-4 साल के बाद एक नया व्यक्तित्व बाहर निकलता है, ये तो 6 साल की विविधताओं से भरी हुई है, अनुभव से गढ़ी हुई एक ऐसी यूनिवर्सिटी है, जहां 6 साल रहने के बाद कोई भी व्यक्ति ऐसा निखरकर के निकलता है, ऐसा तेजस्वी बनकर के जाता है, वो जहां भी रहता है, जिस भूमिका से रहता है, वो अवश्य हमारे कार्य को अधिक ताकतवर बनाएगा, राष्ट्र के काम को गति देने का सामर्थ्य देगा।

ये जो माननीय सांसद जा रहे हैं, एक प्रकार से वो वैसे ग्रुप हैं, जिनको दोनों सदन में रहने का पुराने वाले संसद के भवन में भी और नए वाले संसद के भवन में भी उनको रहने का अवसर मिला। ये साथी जा रहे हैं, तो आजादी के 75 वर्ष अमृतकाल का उसके नेतृत्‍व का साक्षी बन करके जा रहे हैं और ये साथी जो जा रहे हैं, हमारे संविधान के 75 साल उसकी भी शोभा बढ़ाते हुए आज सभी के यहाँ से जा रहे हैं, तो अनेक स्‍मृतियां ले करके जा रहे हैं।

हम वो दिन भूल नहीं सकते कि कोविड के कठिन कालखंड में हम सबने परिस्थितियों को समझा, परिस्थितियों के अनुरूप अपने-आप को गढ़ा। यहां बैठने के लिए कहा तो यहां बैठो, वहां बैठने के लिए कहा तो वहां बैठो, उस कमरे में बैठने के लिए कहा, किसी भी दल के किसी भी सांसद ने ऐसे विषयों को ले करके देश के काम को रुकने नहीं दिया। पर कोरोना का वो कालखंड जीवन और मौत का खेल था। घर से बाहर निकले पता नहीं कि क्‍या होगा। उसके बाद भी माननीय सांसदों ने सदन में आ करके देश की जिम्‍मेदारियों को निभाया। देश को आगे बढ़ाया। और इसलिए मैं समझता हूं कि उस कालखंड ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। संकटों के बीच भी भारत की संसद में बैठे हुए व्‍यक्ति कितने बड़े दायित्‍व को निभाने के लिए कितना बड़ा रिस्‍क भी लेते हैं और कितनी कठिनाइयों के बीच में काम भी करते हैं, इसका अनुभव भी हमें हुआ।

सदन में खट्टे-मीठे अनुभव भी रहे। हमारी कुछ दुखद घटनाएं भी रहीं। कोविड के कारण हमारे कुछ साथी हमें छोड़कर चले गए, आज वो हमारे बीच में नहीं हैं। वो भी सदन के इसी कालखंड की कुछ प्रतिभाएं थी, जो हमारे बीच से चली गईं। उस एक दुखद घटना को हम स्‍वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहे। और भी कुछ ऐसी घटनाएं हुई, कभी-कभी फैशन परेड का भी हमने दृश्‍य देखा, काले कपड़ों में सदन को फैशन शो का भी लाभ मिला। तो ऐसी विविधताओं के अनुभव के बीच हमारा कार्यकाल बीता। और मैं तो अब खड़गे जी आ गए हैं तो मेरा ये धर्म तो निभाना ही पड़ता है मुझे।

कभी-कभी कुछ काम इतने अच्‍छे होते हैं, जो बहुत लम्‍बे समय तक उपयोगी होते हैं। हमारे यहां कोई बच्‍चा कुछ अच्‍छी चीज कर लेता है, कोई बच्‍चा अच्‍छे कपड़े-वपड़े पहनकर जब अवसर के लिए तैयार होता है तो परिवार में एकाध सज्‍जन आ जाता है...अरे किसी की नजर लग जाएगी, चलो काला टीका कर देते हैं, तो ऐसे काला टीका कर देते हैं।

आज देश पिछले दस साल में समृद्धि के नए-नए शिखर पर पहुँच रहा है। एक भव्‍य–दिव्‍य वातावरण बना है, उसको नजर न लग जाए, इसलिए काला टीका करने का एक प्रयास हुआ है। मैं उसके लिए भी खड़गे जी का बहुत धन्‍यवाद करता हूं ताकि इस हमारी प्रगति की यात्रा को कोई नजर न लग जाए। कोई न नजर न लग जाए, इसलिए आज आपने जो काला टीका किया है मैं तो सोच रहा था सब काले कपड़ों में आएंगे, लेकिन शायद काला जो जो खीचते खीचते खीचते ब्लैंक पेपर तक चला गया है। लेकिन फिर भी मैं उसका भी स्‍वागत करता हूं, क्‍योंकि जब भी अच्‍छी बात होती है, काला टीका नजर न लग जाए, इसलिए बहुत जरूरी होता है और उस पवित्र काम को और आप जिस उम्र के हैं वो व्‍यक्ति जब ये काम करता है तो जरा अच्‍छा रहता है। तो मैं इसके लिए भी आपका आभार व्यक्त करता हूं।

आदरणीय सभापति जी,

ये विषय कोई लंबा बोलने का तो है नहीं, लेकिन हमारे यहां शास्‍त्रों में एक बहुत बढ़िया बात कही गई है, शायद हमारे सब साथी जा रहे हैं तो जो कमी भी हमें महसूस होगी उनकी क्‍योंकि उनके विचारों का लाभ, जो आ जाएंगे वापिस वो तो और तेज-तर्रार हो करके आएंगे, जिनको हमला करना है, वो भी मजेदार हमले करेंगे और जिसको रक्षा कवच बनाना है वो भी बढ़िया बनाएंगे, वो अपना काम चलता रहेगा।

हमारे यहां शास्‍त्रों में कहा गया है-

"गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति, ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।

आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः, समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेया।।"

इसका मतलब है- गुण गुणी लोगों के बीच रहकर गुण होते हैं, जो गुणी लोगों के बीच रहने का मौका मिला तो उनके साथ रहने से हमारे भी गुणों में बढ़ोतरी होती है, निर्गुण को प्राप्त करके वो दोषयुक्त हो जाते हैं। अगर गुणियों के बीच में बैठते हैं तो गुण तो बढ़ जाता है लेकिन गुण ही नहीं है तो दोष बढ़ जाते हैं। और आगे कहा है- नदियों के जल तभी तक पीने योग्‍य होता है जब तक वो बहता रहता है।

सदन में भी हर दो साल के बाद नया प्रवाह आता है, .और जब तक बहता रहता है, लेकिन नदी कितनी ही मीठी क्‍यों न हो, पानी कितना ही स्वादिष्ट क्यों न हो, लेकिन जैसे ही समुद्र से मिल जाती है, वो किसी काम की रहती नहीं है, उसमें दोष आ जाते हैं, दोषयुक्‍त हो जाते हैं, और इसलिए समुद्र को प्राप्‍त करने के बाद पीने योग्‍य नहीं रहता। मैं समझता हूं ये संदेश हरेक के जीवन में प्रेरक रहेगा।

इसी भावना के साथ जो साथी समाज जीवन के एक बहुत बड़े फलक पर जा रहे हैं। इस जीवंत यूनिवर्सिटी से अनुभव प्राप्‍त करके जा रहे हैं। उनका मार्गदर्शन, उनका कर्तृत्व राष्‍ट्र के काम आएगा, नई पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा। मैं सभी साथियों को हृदय से अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

  • Jitendra Kumar May 13, 2025

    ❤️🇮🇳🙏
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    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏
  • krishangopal sharma Bjp July 19, 2024

    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏
  • krishangopal sharma Bjp July 19, 2024

    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏
  • JBL SRIVASTAVA May 27, 2024

    मोदी जी 400 पार
  • Pawan Jain April 13, 2024

    नमो नमो
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Sikkim Governor meets Prime Minister
June 13, 2025

The Governor of Sikkim, Shri Om Prakash Mathur met the Prime Minister, Shri Narendra Modi in New Delhi today.

The Prime Minister’s Office handle posted on X:

“Governor of Sikkim, Shri @OmMathur_Raj, met Prime Minister @narendramodi.”