Research and innovation vital for us: PM Modi
In 21st century, it is necessary to educate & skill our youth. They can take the country to greater heights: PM
NDA Government would never take steps that troubles innocent and honest people: PM Modi
Our Government would not spare those who are guilty: Prime Minister

 प्‍यारे भाइयो और बहनों,

मैं सबसे पहले उन सप्‍त ऋषि‍यों को नमन करता हूं। शि‍क्षक तो बहुत होते हैं। अच्‍छे शि‍क्षक होते हैं, उत्‍तम शि‍क्षक होते हैं, समर्पि‍त‍शि‍क्षक होते हैं लेकि‍न शायद इति‍हास में अमर शि‍क्षक शब्‍द का प्रयोग करना होगा तो इन सप्‍त ऋषि‍यों के लि‍ए अमल करना होगा। ऐसे शि‍क्षक 100 साल के बाद भी आज भी इस पीढ़ी को पढ़ा रहे हैं, शि‍क्षि‍त कर रहे हैं। शायद इति‍हास में कहीं पर भी ऐसी दुर्लभ घटना सुनने का सौभाग्‍य नहीं मि‍ल सकता जो इस KLE society के द्वारा सि‍द्ध हुआ है।

मैं देख रहा हूं मेरे सामने लाखों की तादाद में ये सारे नौजवान बैठे है। ये सब कुछ उन सप्‍त ऋषि‍यों की तपस्‍या का परि‍णाम है। लोकमान्‍य ति‍लक जी से प्रेरणा ली। संत बसवेश्‍वर जी ने सामाजि‍क क्रान्‍ति‍का जो बि‍गुल बजाया था उस सामाजि‍क क्रान्‍ति‍को शि‍क्षा के माध्‍यम से न सि‍र्फ जन-जन तक पहुंचाना लेकि‍न पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाना ये भगीरथ काम 100 साल पहले इस धरती पर हुआ। पूरे देश के लि‍ए, शि‍क्षा में विश्‍वास करने वाले हर कि‍सी के लि‍ए ये गर्व का वि‍षय है।

संस्‍थाएं बनती है, बि‍गड़ती है, बन्‍द भी हो जाती है लेकि‍न आप कल्‍पना करि‍ए उन सात ऋषि‍यों ने कैसी मजबूत नींव डाली होगी कि‍आज 100 साल के बाद भी ये फल रहा है, फूल रहा है और पूरे देश को प्रेरणा दे रहा है।

आज दुनि‍या के हर कोने में कोई न कोई तो होगा जो कहता होगा कि‍मैं KLE का वि‍द्यार्थी था और दुनि‍या में भी जब कि‍सी का इंटरव्‍यू होता होगा, नौकरी के लि‍ए पूछताछ होती होगी, जब वो बताता होगा, सारे सर्टि‍फि‍केट बताता होगा, अपने मार्क्‍स दि‍खाता होगा लेकि‍न जब वो कहता होगा कि‍साहब ये तो सब ठीक है, ये गुणांक, ये सर्टि‍फि‍केट, ये मार्क्‍स, ये ग्रेड लेकि‍न मेरे पास सबसे बड़ी चीज है, मैं KLE का वि‍द्यार्थी हूं। और जि‍स पल इंटरव्‍यू लेने वाला भी देखता होगा कि‍अच्‍छा KLE अरे भई आओ, आओ।

100 साल कि‍तनी पीढ़ि‍यों ने तपस्‍या की होगी, कि‍तने-कि‍तने लोगों ने योगदान कि‍या होगा। तब जाकर के ऐसी एक प्राणवान व्‍यवस्‍था का जन्‍म होता है और जो चलती है।

आज जब देश में शि‍क्षा के व्‍यापारि‍कीकरण की चर्चा हो रही है। बड़े-बड़े लोगों का भी मन करता है कि वि‍द्या के व्‍यापार में जुड़ने से कुछ मुनाफा मि‍ल जाएगा। ऐसे सब लोगों के लि‍ए सबक है वो सप्‍त ऋषि‍। 100 साल पहले उनकी तनख्‍वाह कि‍तनी होगी इन शि‍क्षकों की पगार शायद 30 रुपए, 35 रुपए 50 रुपए रही होगी। 100 साल पहले जि‍सकी 30 रुपए, 35 रुपए 50 रुपए पगार रही होगी, तनख्‍वाह मि‍ली होगी उन्‍होंने समाज के लि‍ए इतना बड़ा योगदान दे दि‍या। शि‍क्षा के क्षेत्र में सेवा करना चाहते हुए लोगों के लि‍ए यह एक मि‍साल है, प्रेरणा है।

भाइयो-बहनों, राजनीति‍क दल भी 100 साल नहीं चल पाते हैं। कि‍तने ही टुकड़े हो जाते हैं, परि‍वार भी नहीं बचते हैं। आप कल्‍पना कर सकते हैं कि‍100 साल तक एक संस्‍था चलना, लगातार वि‍कास होना, लोकतांत्रि‍क पद्धति‍से उसके management की रचना होना और जनता के ही पैसों से उसको आगे बढ़ाना, उसके भूतपूर्व वि‍द्यार्थि‍यों की मदद से उसको आगे बढ़ाना, ये अपने आप में पूरे देश के लि‍ए एक बहुत बड़ी मि‍साल है।

मैं खासकर के दि‍ल्‍ली में जो बड़े हमारे वि‍द्वान मि‍त्र है, मीडि‍या के लोग है, उनसे मैं आज सार्वजनि‍क रूप से प्रार्थना करना चाहता हूं कि‍कि‍सी व्‍यक्‍ति‍के 60 साल हो जाए तो अखबारों में बहुत बढ़ि‍या उनका article छप जाता है। कि‍सी सरकार के 100 दि‍न हो जाए तो भी अखबार में बहुत बढ़ि‍या article आ जाता है। कि‍सी व्‍यक्‍ति‍के 75 साल हो जाए तो भी जय-जयकार होती है। अच्‍छा होगा, पूरे हि‍न्‍दुस्‍तान की मीडि‍या में इन सप्‍त ऋषि‍यों ने जो काम कि‍या है, इसकी शताब्‍दी के वि‍षय में भी कुछ लि‍खा जाए और देश को पता चले। ये इसलि‍ए चलना चाहि‍ए कि‍देश के अलग-अलग कोने में भी जो शि‍क्षा को समर्पि‍त लोग हैं, समाज को समर्पि‍त लोग है, ऐसे लोगों को ऐसी घटना से प्रेरणा मि‍लती है, ताकत मि‍लती है और देश के और भी कोनों में ऐसा एक आंदोलन खड़ा हो सकता है।

भाइयो-बहनों, जब आजादी का आंदोलन चल रहा था तब महात्‍मा गांधी जी ने भी आजादी के सि‍पाही तैयार करने के लि‍ए गुजरात वि‍द्यापीठ नाम से शि‍क्षा संस्‍था को जन्‍म दि‍या था। लोकमान्‍य ति‍लक जी ने आजादी के सि‍पाही तैयार करने के लि‍ए और राष्‍ट्र को अपनी ताकत पर खड़ा करने के लि‍ए शि‍क्षा पर बल दि‍या था। 21वीं सदी में भी भारत को दुनि‍या में अगर अपना लोहा मनवाना है तो ये हमारी युवा पीढ़ी, उनका कौशल, उनकी शि‍क्षा वही मनवा सकती है।

भाइयो-बहनों, एक जमाना था जब भारत की पहचान दुनि‍या में क्‍या थी। ये तो सांप-सपेरे वाले लोग है, ये तो जादू-टोना करने वाले लोग है। सांप और चूहे से बाहर इनको कोई ज्ञान ही नहीं है, दुनि‍या में हि‍न्‍दुस्‍तान की ऐसी पहचान थी। लेकि‍न कुछ वर्षों से पहले भारत के 18-20 साल के नौजवान जब कंप्‍यूटर की की-बोर्ड पर अपनी उंगलि‍यां घुमाने लगे, सारी दुनि‍या घूमने लगी, सोच बदलने लग गई। दुनि‍या को भारत के लि‍ए सोचने का तरीका बदलना पड़ा, वि‍श्‍व को मानना पड़ा कि‍भारत के पास अद्भुत शक्‍ति‍है, अद्भुत सामर्थ्‍य है और उसका मूलाधार शि‍क्षा है। 100 साल में यहां के समाज जीवन में बदलाव लाने के लि‍ए, शि‍क्षा के द्वारा पूरे कर्नाटक के जीवन को ताकत देने में और उसके द्वारा पूरे देश को ताकत देने में आपका बहुत बड़ा योगदान रहा है।

जब मैं पि‍छली बार आया तो हमारे प्रभाकर जी ने मुझे बताया कि‍32 साल से लोग मुझे ये काम देते रहते हैं। ये छोटी बात नहीं है प्रभाकर जी। आपको मैं बधाई देता हूं, आपकी पूरी टीम को बधाई देता हूं। और लोकतांत्रि‍क पद्धति‍से होता है। इतनी सारी पीढ़ि‍यों पर इतने लोगों ने काम कि‍या होगा लेकि‍न संस्‍था का भला, शि‍क्षा का भला, वि‍द्यार्थि‍यों का भला, इसमें कोई compromise नहीं कि‍या, ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है। लेकि‍न आज जब मैं इस उत्‍तम कार्य को अपनी आंखों के सामने देख रहा हूं तो मेरा भी मन करता है कि‍मैं भी आज आपसे कुछ मांगकर के ही जाऊं। मांग सकता हूं न, मि‍लेगा?

आप कहोगे यार देश का ऐसा प्रधानमंत्री कैसा है, मांगने आया है। ये प्रधानमंत्री है ही ऐसा जी, वो जनता से मांगकर के गुजारा करता है। मैं आज आपसे कुछ मांगना चाहता हूं और मुझे वि‍श्‍वास है, उन सप्‍त ऋषि‍यों पर मेरा वि‍श्‍वास है, आज की व्‍यवस्‍था पर वि‍श्‍वास है, ये लाखों नौजवान मेरे सामने बैठे हैं उन पर मेरा वि‍श्‍वास है, इसलि‍ए मांगने की हि‍म्‍मत कर रहा हूं। मांगू? जरा आवाज जोर से आनी चाहि‍ए, मांगू, सच में मांगू?


आप मुझे बताइए कि‍इस संस्‍था के पास सवा लाख वि‍द्यार्थी, इतने सारे Institution चलते हैं क्‍या हमारा KLE ये संकल्‍प कर सकता है कि‍2020 में जब टोक्‍यो में ओलंपि‍क होगा तो कुछ गोल्‍ड मेडल इस KLE के भी होंगे। कर सकते हो दोस्‍तों, कर सकते हो, संभव है दोस्‍तो, आपके लि‍ए संभव है। मेरे प्‍यारे नौजवानों मैं ये भी चाहूंगा कि‍innovation, innovation वि‍कास की जड़ी-बूटी है। अगर innovation नहीं होता है रि‍सर्च नहीं होती है तो जीवन में ठहराव आ जाता है और जो रि‍सर्च करते है वो आगे नि‍कल जाते हैं। हम सि‍र्फ उनके product के लि‍ए खरीददार बनकर रह जाते हैं। आपके पास मैंने पि‍छली बार आकर के देखा था। ऐसे उत्‍तम scientist है आपके पास, ऐसी उत्‍तम institutions है, ऐसे उत्‍तम technical knowledge वाले लोग है। हर वर्ष internationally recognized हो ऐसा कोई न कोई innovation मानव जाति‍के लि‍ए KLE दे सकता है, क्‍या दोगे? पक्‍का दोगे?

तीसरी बात, भाइयो-बहनों आज दुनि‍या में जो पहली 100 उत्‍तम यूनि‍वर्सि‍टी है। उसमें हम नहीं है। शर्मि‍न्‍दगी महसूस होती है। भारत सरकार ने इस बजट में एक महत्‍वपूर्ण फैसला कि‍या है। हमने कहा है कि‍सरकार की 10 यूनि‍वर्सि‍टी और 10 प्राइवेट यूनि‍वर्सि‍टी ये संकल्‍प करके आए कि‍हमें दुनि‍या की पहली 100 यूनि‍वर्सि‍टी में अपना स्‍थान बनाना है। जो इस काम के लि‍ए आगे आना चाहते हैं उनको सरकार की तरफ से वि‍शेष आर्थि‍क मदद दी जाएगी। जो इस काम को करने के लि‍ए आना चाहते हैं उनको सरकारी बाबुओं के जो बंधन होते हैं कि‍ये permission, वो permission, ये नि‍यम वो नि‍यम, उसमें भी मुक्‍ति‍दी जाएगी, खुला मैदान दि‍या जाएगा। मैं नि‍मंत्रि‍त करता हूं देश की 10 प्राइवेट यूनि‍वर्सि‍टी को, मैं नि‍मंत्रि‍त करता हूं देशी की 10 सरकारी यूनि‍वर्सि‍टी को, हि‍म्‍मत करि‍ए आइए। दुनि‍या में जो 100 पहली है, उनमें क्‍या है जो हमारे में नहीं है। हम करके दि‍खाए और देश तो मेरे, अब सि‍र्फ देश कल था और आज एक बढ़ गया, इतने से नहीं चलेगा, अब तो दुनि‍या में जो अच्‍छे से अच्‍छा है वहां पहुंचने का प्रयास होना, ये हि‍न्‍दुस्‍तान का सपना होना चाहि‍ए। उसको लेकर के चलना चाहि‍ए।

भाइयो-बहनों, आज मैं कर्नाटक की धरती पर आया हूं और टीवी के माध्‍यम से देश भी मेरी बात को सुन रहा है। तो मैं एक और वि‍षय की भी चर्चा करना चाहता हूं। करूं, आप सुनना चाहते हैं। 08 तारीख रात को 8 बजे आपने देखा। 2012, 2013, 2014 अखबारों में खबरें आती थी कि‍कोयले में इतने लाख करोड़ खा गए। 2जी स्‍कैम में इतने लाख करोड़ खा गए और 08 तारीख के बाद आपने उनका हाल देखा। 4000 रुपए के लि‍ए कतार में खड़ा रहना पड़ा। मेरे प्‍यारे देशवासि‍यों, ये सरकार ईमानदार इंसान को परेशान करना नहीं चाहती लेकि‍न मेरे प्‍यारे भाइयो-बहनों बेईमान को छोड़ना भी नहीं है। 17 साल हो गए। आप मुझे बताइए देश को लूटा गया है कि‍नहीं लूटा गया है। भ्रष्टाचार हुआ है कि‍नहीं हुआ है। बड़ी-बड़ी नोटों के ठप्‍पे घर पर लगे है कि‍नहीं लगे है। मैं हैरान हूं कि‍हमारे कांग्रेस के लोग कह रहे हैं कि‍आपने 1000 के नोट बंद क्‍यों कर दि‍ए, 500 के नोट बंद क्‍यों कर दि‍ए। भई आपने जब चवन्‍नी बंद की थी तो मैंने पूछा था। आपको मालूम है कांग्रेस पार्टी ने चवन्‍नी बंद की थी। इस देश ने तो कोई चि‍ल्‍लाहट नहीं की। ठीक है आपकी ताकत उतनी थी। बंद करने में तो आप भी सहमत थे लेकि‍न बड़े नोट बंद करने की आपकी ताकत नहीं थी। चवन्‍नी से गाड़ी चलानी थी और जो लोग आज मुझे सवाल पूछते है कि‍मोदी ने 1000 के नोट का जादू कि‍या है।

भाइयो-बहनों, जो लोग मेरा भाषण सुनते हैं, मेरी बातें सुनते हैं। ये बात मैं पहली बार नहीं बोला हूँ । पांच साल पहले सार्वजनि‍क सभा में मैंने कहा था कि‍कांग्रेस पार्टी में दम नहीं है, चवन्‍नी बंद कर रही है। मेरा चले तो मैं 1000 के नोट बंद कर दूं। आज भी उसका वीडि‍यो कहीं चलता होगा, देख सकते हैं आप लोग।

भाइयो-बहनों, मैंने देश के साथ कुछ छुपाया नहीं है। मैंने पहले ही दि‍न, मेरे प्‍यारे भाइयो-बहनों अगर मैं झूठ बोलूं तो आपको मुझ पर गुस्‍सा करने का पूरा हक देता हूं। मैंने पहले ही दि‍न कहा था कि‍इस काम के लि‍ए मुझे 50 दि‍न दीजि‍ए, 30 दि‍सम्‍बर तक का समय दीजि‍ए। कहा था कि‍नहीं कहा था। मैंने पहले ही दि‍न कहा था कि‍30 दि‍सम्‍बर तक थोड़ी तकलीफ रहेगी, कहा था कि‍नहीं कहा था। भाइयो-बहनों, मैंने देश को वि‍श्‍वास में लेकर के काम कि‍या है। देश में ईमानदारी, करोड़ों लोग है जो ईमानदारी के लि‍ए जीते हैं, ईमानदारी के कारण सहते हैं। आप मुझे बताइए कि‍सरकार का ईमानदारों की रक्षा करने का काम है कि‍नहीं है। ईमानदारों की रक्षा होनी चाहि‍ए कि‍नहीं होनी चाहि‍ए। और अगर बेइमानों को सजा देने के लि‍ए 50 दि‍न थोड़ी तकलीफ रहेगी तो आप मेरी मदद करोगे कि‍नहीं करोगे। दोनों हाथ ऊपर करके बताओं भाइयो और बहनों। तालि‍यों की गड़गड़ाहट से बताइए, ये देश देख रहा है हर हि‍न्‍दुस्‍तान का नौजवान, हर हि‍न्‍दुस्‍तानी। ये दृश्‍य देख लीजि‍ए, जि‍नको शक है। एयरकंडीशन कमरे में बैठ करके बेइमानों की वकालत करने वाले देख लीजि‍ए, जनता-जनार्दन क्‍या चाहती है।


भाइयो-बहनों, हम जानते हैं हमारे देश में चुनाव होता है। मतदाता सूची, ये तो कोई secret काम नहीं है। नोट प्रति‍बंध करना तो मेरे लि‍ए बहुत जरूरी था कि‍वो secret रहे। अगर वो लीक हो जाता तो ये बेईमान लोगों की ताकत ऐसी है कि‍कहीं पर भी जाकर अपना काम कर लेते। देश खुश है। 08 तारीख को हि‍न्‍दुस्‍तान का गरीब चैन से सो रहा था और अमीर नींद की गोलि‍यां खरीदने के लि‍ए बाजार गया पर कोई देने वाला नहीं था।

भाइयो-बहनों, चुनाव में मतदाता सूची बनती है, कोई secret नहीं होता। सरकार लगती है, टीचर लगते हैं आशा worker लगते हैं, सारी सरकार लग जाती है। हर पार्टी के worker कभी लग जाते हैं। उसके बावजूद भी जि‍स दि‍न मतदान होता है, शि‍कायत आती है कि‍नहीं आती है। मेरा नाम रह गया, मेरे मोहल्‍ले का नाम रह गया, मेरे परि‍वार का नाम रह गया, मेरी सोसायटी का नाम रह गया, बताइए ये तकलीफ आती है कि‍नहीं आती है। इतना बड़ा काम खुला चलता है तो भी कुछ न कुछ कमी रह जाती है कि‍नहीं रह जाती है। आप देखि‍ए हि‍न्‍दुस्‍तान का जब चुनाव होता है पूरे देश का, करीब-करीब तीन महीने चलता है। 90 दि‍न तक सारा कारोबार ठप्‍प हो जाता है। सारे अफसर, हर कि‍सी को चुनाव का ही काम करना पड़ता है। कि‍सी भी department में क्‍यों न हो। भाइयो-बहनों, चुनाव में सरकार की इतनी ताकत लगती है, पॉलि‍टि‍कल पार्टि‍यों की लगती है, मीडि‍या की मदद मि‍लती है तो भी 60-70 प्रति‍शत मतदान होता है और 90 दि‍न तक गाड़ी चलती है। मेरे प्‍यारे देशवासि‍यों, मैंने तो आपसे सि‍र्फ 50 दि‍वस मांगा है। मेरे भाइयो देश के लि‍ए मांगा है।

भाइयो-बहनों आपने देखा होगा कि‍इस बार बजट में हमने एक योजना की थी। जो लोग मेरे ‘मन की बात’ सुनते हैं, उसमें भी मैंने कहा था कि‍भ्रष्‍टाचार से लड़ाई लड़ने का एक उपाय है cashless society. ये नकदी नोट रुपए देने वाला कारोबार धीरे-धीरे कम होना चाहि‍ए। क्रेडि‍ट कार्ड, डेबि‍ट कार्ड, प्‍लास्‍टि‍क करेंसी, इस पर ‍जाना चाहि‍ए। इसलि‍ए भारत सरकार ने अपने बजट में क्रेडि‍ट कार्ड, डेबि‍ट कार्ड के ऊपर टैक्‍स लगता था, वो टैक्‍स हमने हटाया था और सरकारी वि‍भागों को कहा था कि‍आप भी इसको कम कीजि‍ए या हटाइए। कई वि‍भागों ने कम भी कि‍या है और कुछ वि‍भागों ने हटाया भी है। ये इसलि‍ए कि‍या कि‍मुझे आज ये करना था। मैंने जब प्रधानमंत्री जन-धन account खोले, गरीबों के खाते खोले उसके साथ उनको एक क्रेडि‍ट कार्ड दि‍या है, डेबि‍ट कार्ड दि‍या है, रूपे कार्ड। 20 करोड़ लोगों को दि‍या है ताकि‍धीरे-धीरे गरीब आदमी को भी उस कार्ड के द्वारा अपना कारोबार कराने की आदत लग जाए धीरे-धीरे। समय लगेगा लेकि‍न ये काम दो साल पहले कि‍या है भाइयो। मैंने अचानक नहीं कि‍या है। ये बात सही है कि‍बीमारी इतनी गहरी है। इतनी 70 साल की पुरानी बीमारी है भई और हर कि‍सी को ये बीमारी लग गई है। भाइयो-बहनों, मैं दवाइयों का dose बढ़ा रहा था, पहल एक dose देता था फि‍र दूसरा dose दि‍या, अभी जरा बड़ा dose दि‍या है और बेईमान लोग और बेईमान लोगों की रक्षा करने वाले लोग, ये भी कान खोलकर के सुन ले कि‍30 दि‍संबर के बाद मोदी अटकने वाला नहीं है। जो लोग गंगा जी में चवन्‍नी नहीं डालते थे आज वो नोट डाल रहे हैं। मैं एक दि‍न देख रहा था कि‍कूड़ा-कचरा साफ करने वाली एक महि‍ला, कहते है कि‍कि‍57,000 रुपए उसको कूड़े-कचरे में मि‍ला वो बेचारी पुलि‍स थाने में जमा करवाने चली गई कि‍साहब इतने रुपए मि‍ले हैं। मैं अभी आया तो यहां स्‍वागत में मेरे प्रभाकर जी ने लोगों पर फूल की पंखुड़ि‍यां डाल रहे थे। मैंने कहा वो दि‍न दूर नहीं होगा जब कोई नेता आएंगे तो लोग 1000-1000 के नोटों की कतरन करके डालेंगे।

भाइयो-बहनों, सफाई करना जरूरी है और इसलि‍ए मुझे आपकी मदद चाहि‍ए। तकलीफ पड़ेगी, मैंने ये कभी नहीं कहा था कि‍तकलीफ नहीं पड़ेगी। मेरी पूरी कोशि‍श हो। आप देखि‍ए जी, मैं कल देख रहा था कि‍बैंकों में बैंक के कर्मचारि‍यों ने एक साल में जि‍तना काम करते है न, उससे ज्‍यादा काम ये दि‍नों में कि‍या है। हम सब सभी बैंक के कर्मचारि‍यों के लि‍ए तालि‍यां बजाइए । इतना अच्‍छा काम कर रहे हैं आज बैंक के लोग हमारे। उनका अभि‍नंदन करे।

मैंने देखा कि‍75 साल की उम्र के, 70 साल की उम्र के, 60 साल की उम्र के जो बैंक में से रि‍टायर्ड हुए है ऐसे लोग बैंकों में गए। उन्‍होंने कहा कि‍साहब इस समय में मुफ्त में भी हमारी सेवा चाहि‍ए तो हम काम करने के लि‍ए तैयार हैं, हमारे पास बैंक का अनुभव है। देश में ऐसा हुआ है। मैंने ऐसे नौजवान देखे जो कतार में senior citizen खड़े थे उनके लि‍ए अपने घर से कुर्सि‍यां उठाकर के लाए, उनके बैठने की व्‍यवस्‍था की। मैंने ऐसी माताएं-बहनें देखी जो कतार में खड़े हुए लोगों को घर से लाकर के पानी पि‍ला रही हैं। भाइयो-बहनों सि‍नेमा थि‍येटर के बाहर टि‍कट लेने के लि‍ए कभी-कभी झगड़ा हो जाता है। इतना बड़ा हि‍न्‍दुस्‍तान शान्‍ति‍से कतार में खड़ा है और अपने नंबर का इंतजार कर रहा है। देश बेईमानी से थक चुका है।

भाइयो-बहनों pain है, मैं मानता हूं मेरे इस निर्णय के कारण pain है लेकि‍न देश को gain ज्‍यादा है। और मैं आपको वि‍श्‍वास दि‍लाता हूं कि‍मैं आपके साथ खड़ा रहूंगा। मैं ईमानदार लोगों से कहना चाहता हूं कि‍आप कि‍सी बेईमान को अपनी 500 या 1000 की कमाई का नोट जल्‍दबाजी में मत दीजि‍ए। 30 दि‍संबर तक आपके पास समय है। कोई 400 में लेने वाला नि‍कल जाएगा, कोई 800 में 1000 की नोट लेने वाला नि‍कल जाएगा। आपके 500 रुपए मतलब कि‍four hundred ninety nine and hundred paisa पूरा का पूरा 500 का आपका हक है और सरकार आपको देने के लि‍ए बंधी हुई है। 1000 का आपका ईमानदारी का नोट आपका हक है। सरकार बंधी हुई है। 30 दि‍संबर तक ये प्रक्रि‍या चलने वाली है। प्रक्रि‍या संतोषजनक होने वाली है। हो सकता है कुछ गंगा में बहा देंगे, कुछ कूड़े-कचरे में डाल देंगे, कतरन बना देंगे। खुद तो शायद बच जाएंगे नोट जाएंगे उसके, 200 करोड़-400 करोड़ जाएंगे। लेकि‍न कोई दूसरे रास्‍ते से। बैंक में जमा करके ईमानदारी का खेल करने गया तो देश आजाद हुआ तब से अब तक का सारा चि‍ट्ठा खोलकर के रख दूंगा। 200% लगने वाले पर 200% दंड लगाउंगा। बहुत लूटा है।

मेरे प्‍यारे देशवासि‍यों, लूटने वालों को आपने देख लि‍या है। 70 साल देश लूटा गया है, मुझे 70 महीने दीजि‍ए मैं देश को साफ करके रख दूंगा। मोदी ने क्‍या कि‍या। जरा 08 तारीख रात 8 बजे का टीवी खोलकर के देख लो कि‍मोदी ने क्‍या कि‍या।

मेरे प्‍यारे देशवासि‍यों, मेरे कर्नाटक के भाइयो-बहनों और इसमें ज्‍यादातर गांव के लोग है, मेरी आपसे एक प्रार्थना है कि‍ये जो मैं पवि‍त्र काम करने नि‍कला हूं, देश में ईमानदारी के लि‍ए नि‍कला हूं। अगर आपको मेरे ईमान पर भरोसा है, अगर आपको मेरे काम में भरोसा है। ये जो नोटों की सफाई का मैंने अभि‍यान चलाया है। अगर आपको मेरी बात पर भरोसा है मुझे आपका आशीर्वाद चाहि‍ए। आपसे मेरी वि‍नती है कि‍अपनी जगह पर खड़े होकर के दोनों हाथ से ताली बजाकर के मुझे आशीर्वाद दीजि‍ए। ये ईमान और पवि‍त्रता के काम को मैं आप सब से प्रार्थना करता हूं कि‍आप खड़े होकर के ताली बजाकर के ये एयरकंडीशन कमरों में बैठ करके दि‍न-रात हमारे बाल नोंचने वालों, ये गांव के लोग है, ये पढ़े-लि‍खे लोग है। ये ईमानदारी के लि‍ए कष्‍ट झेलने वाले लोग हैं। ये मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं। ये आपका आशीर्वाद देश में सफाई करके रहेगा। मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। मैं आपका बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं। मेरे लि‍ए खुशी की बात है। आम तौर पर पत्रकार लोग अपनी कुर्सी पर से खड़े नहीं होते हैं। मैं आज देख रहा हूं कि‍पत्रकार भी खड़े हो गए। मैं आज सौ सलाम करता हूं, इन पत्रकारों को मैं आज सौ सलाम करता हूं। बहुत बड़ी बात की है जी। मैं बहुत आभार व्‍यक्‍त करता हूं, बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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'Vande Mataram' rekindled an idea deeply rooted in India for thousands of years: PM Modi in Lok Sabha
December 08, 2025
Vande Mataram energised our freedom movement: PM
It is a matter of pride for all of us that we are witnessing 150 years of Vande Mataram: PM
Vande Mataram is the force that drives us to achieve the dreams our freedom fighters envisioned: PM
Vande Mataram rekindled an idea deeply rooted in India for thousands of years: PM
Vande Mataram also contained the cultural energy of thousands of years, it also had the fervor for freedom and the vision of an independent India: PM
The deep connection of Vande Mataram with the people reflects the journey of our freedom movement: PM
Vande Mataram gave strength and direction to our freedom movement: PM
Vande Mataram was the all-encompassing mantra that inspired freedom, sacrifice, strength, purity, dedication, and resilience: PM

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

मैं आपका और सदन के सभी माननीय सदस्यों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं कि हमने इस महत्वपूर्ण अवसर पर एक सामूहिक चर्चा का रास्ता चुना है, जिस मंत्र ने, जिस जय घोष ने देश की आजादी के आंदोलन को ऊर्जा दी थी, प्रेरणा दी थी, त्याग और तपस्या का मार्ग दिखाया था, उस वंदे मातरम का पुण्य स्मरण करना, इस सदन में हम सब का यह बहुत बड़ा सौभाग्य है। और हमारे लिए गर्व की बात है कि वंदे मातरम के 150 वर्ष निमित्त, इस ऐतिहासिक अवसर के हम साक्षी बना रहे हैं। एक ऐसा कालखंड, जो हमारे सामने इतिहास के अनगिनत घटनाओं को अपने सामने लेकर के आता है। यह चर्चा सदन की प्रतिबद्धता को तो प्रकट करेगी ही, लेकिन आने वाली पीढियां के लिए भी, दर पीढ़ी के लिए भी यह शिक्षा का कारण बन सकती है, अगर हम सब मिलकर के इसका सदुपयोग करें तो।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

यह एक ऐसा कालखंड है, जब इतिहास के कई प्रेरक अध्याय फिर से हमारे सामने उजागर हुए हैं। अभी-अभी हमने हमारे संविधान के 75 वर्ष गौरवपूर्व मनाए हैं। आज देश सरदार वल्लभ भाई पटेल की और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती भी मना रहा है और अभी-अभी हमने गुरु तेग बहादुर जी का 350वां बलिदान दिवस भी बनाया है और आज हम वंदे मातरम की 150 वर्ष निमित्त सदन की एक सामूहिक ऊर्जा को, उसकी अनुभूति करने का प्रयास कर रहे हैं। वंदे मातरम 150 वर्ष की यह यात्रा अनेक पड़ावों से गुजरी है।

लेकिन आदरणीय अध्यक्ष जी,

वंदे मातरम को जब 50 वर्ष हुए, तब देश गुलामी में जीने के लिए मजबूर था और वंदे मातरम के 100 साल हुए, तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। जब वंदे मातरम 100 साल के अत्यंत उत्तम पर्व था, तब भारत के संविधान का गला घोट दिया गया था। जब वंदे मातरम 100 साल का हुआ, तब देशभक्ति के लिए जीने-मरने वाले लोगों को जेल के सलाखों के पीछे बंद कर दिया गया था। जिस वंदे मातरम के गीत ने देश को आजादी की ऊर्जा दी थी, उसके जब 100 साल हुए, तो दुर्भाग्य से एक काला कालखंड हमारे इतिहास में उजागर हो गया। हम लोकतंत्र के (अस्पष्ट) गिरोह में थे।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

150 वर्ष उस महान अध्याय को, उस गौरव को पुनः स्थापित करने का अवसर है और मैं मानता हूं, सदन ने भी और देश ने भी इस अवसर को जाने नहीं देना चाहिए। यही वंदे मातरम है, जिसने 1947 में देश को आजादी दिलाई। स्वतंत्रता संग्राम का भावनात्मक नेतृत्व इस वंदे मातरम के जयघोष में था।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

आपके समक्ष आज जब मैं वंदे मातरम 150 निमित्त चर्चा के लिए आरंभ करने खड़ा हुआ हूं। यहां कोई पक्ष प्रतिपक्ष नहीं है, क्योंकि हम सब यहां जो बैठे हैं, एक्चुअली हमारे लिए ऋण स्वीकार करने का अवसर है कि जिस वंदे मातरम के कारण लक्ष्यावादी लोग आजादी का आंदोलन चला रहे थे और उसी का परिणाम है कि आज हम सब यहां बैठे हैं और इसलिए हम सभी सांसदों के लिए, हम सभी जनप्रतिनिधियों के लिए वंदे मातरम के ऋण स्वीकार करने का यह पावन पर्व है। और इससे हम प्रेरणा लेकर के वंदे मातरम की जिस भावना ने देश की आजादी का जंग लड़ा, उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम पूरा देश एक स्वर से वंदे मातरम बोलकर आगे बढ़ा, फिर से एक बार अवसर है कि आओ, हम सब मिलकर चलें, देश को साथ लेकर चलें, आजादी का दीवानों ने जो सपने देखे थे, उन सपनों को पूरा करने के लिए वंदे मातरम 150 हम सब की प्रेरणा बने, हम सब की ऊर्जा बने और देश आत्मनिर्भर बने, 2047 में विकसित भारत बनाकर के हम रहें, इस संकल्प को दोहराने के लिए यह वंदे मातरम हमारे लिए एक बहुत बड़ा अवसर है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

दादा तबीयत तो ठीक है ना! नहीं कभी-कभी इस उम्र में हो जाता है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

वंदे मातरम की इस यात्रा की शुरुआत बंकिम चंद्र जी ने 1875 में की थी और गीत ऐसे समय लिखा गया था, जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज सल्तनत बौखलाई हुई थी। भारत पर भांति-भांति के दबाव डाल रहे थी, भांति-भांति के ज़ुल्म कर रही थी और भारत के लोगों को मजबूर किया जा रहा था अंग्रेजों के द्वारा और उस समय उनका जो राष्ट्रीय गीत था, God Save The Queen, इसको भारत में घर-घर पहुंचाने का एक षड्यंत्र चल रहा था। ऐसे समय बंकिम दा ने चुनौती दी और ईट का जवाब पत्थर से दिया और उसमें से वंदे मातरम का जन्म हुआ। इसके कुछ वर्ष बाद, 1882 में जब उन्होंने आनंद मठ लिखा, तो उस गीत का उसमें समावेश किया गया।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

वंदे मातरम ने उस विचार को पुनर्जीवित किया था, जो हजारों वर्ष से भारत की रग-रग में रचा-बसा था। उसी भाव को, उसी संस्कारों को, उसी संस्कृति को, उसी परंपरा को उन्होंने बहुत ही उत्तम शब्दों में, उत्तम भाव के साथ, वंदे मातरम के रूप में हम सबको बहुत बड़ी सौगात दी थी। वंदे मातरम, यह सिर्फ केवल राजनीतिक आजादी की लड़ाई का मंत्र नहीं था, सिर्फ हम अंग्रेज जाएं और हम खड़े हो जाएं, अपनी राह पर चलें, इतनी मात्र तक वंदे मातरम प्रेरित नहीं करता था, वो उससे कहीं आगे था। आजादी की लड़ाई इस मातृभूमि को मुक्त कराने का भी जंग था। अपनी मां भारती को उन बेड़ियों से मुक्ति दिलाने का एक पवित्र जंग था और वंदे मातरम की पृष्ठभूमि हम देखें, उसके संस्कार सरिता देखें, तो हमारे यहां वेद काल से एक बात बार-बार हमारे सामने आई है। जब वंदे मातरम कहते हैं, तो वही वेद काल की बात हमें याद आती है। वेद काल से कहा गया है "माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः" अर्थात यह भूमि मेरी माता है और मैं पृथ्वी का पुत्र हूं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

यही वह विचार है, जिसको प्रभु श्री राम ने भी लंका के वैभव को छोड़ते हुए कहा था "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"। वंदे मातरम, यही महान सांस्कृतिक परंपरा का एक आधुनिक अवतार है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

बंकिम दा ने जब वंदे मातरम की रचना की, तो स्वाभाविक ही वह स्वतंत्रता आंदोलन का स्वर बन गया। पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण वंदे, मातरम हर भारतीय का संकल्प बन गया। इसलिए वंदे मातरम की स्‍तुति में लिखा गया था, “मातृभूमि स्वतंत्रता की वेदिका पर मोदमय, मातृभूमि स्वतंत्रता की वेदिका पर मोदमय, स्वार्थ का बलिदान है, ये शब्द हैं वंदे मातरम, है सजीवन मंत्र भी, यह विश्व विजयी मंत्र भी, शक्ति का आह्वान है, यह शब्द वंदे मातरम। उष्ण शोणित से लिखो, वक्‍तस्‍थलि को चीरकर वीर का अभिमान है, यह शब्द वंदे मातरम।”

आदरणीय अध्यक्ष जी,

कुछ दिन पूर्व, जब वंदे मातरम 150 का आरंभ हो रहा था, तो मैंने उस आयोजन में कहा था, वंदे मातरम हजारों वर्ष की सांस्‍कृतिक ऊर्जा भी थी। उसमें आजादी का जज्बा भी था और आजाद भारत का विजन भी था। अंग्रेजों के उस दौर में एक फैशन हो गई थी, भारत को कमजोर, निकम्मा, आलसी, कर्महीन इस प्रकार भारत को जितना नीचा दिखा सकें, ऐसी एक फैशन बन गई थी और उसमें हमारे यहां भी जिन्होंने तैयार किए थे, वह लोग भी वही भाषा बोलते थे। तब बंकिम दा ने उस हीन भावना को भी झंकझोरने के लिए और सामर्थ्य का परिचय कराने के लिए, वंदे मातरम के भारत के सामर्थ्यशाली रूप को प्रकट करते हुए, आपने लिखा था, त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,कमला कमलदलविहारिणी, वाणी विद्यादायिनी। नमामि त्वां नमामि कमलाम्, अमलाम् अतुलां सुजलां सुफलां मातरम्॥ वन्दे मातरम्॥ अर्थात भारत माता ज्ञान और समृद्धि की देवी भी हैं और दुश्मनों के सामने अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाली चंडी भी हैं।

अध्यक्ष जी,

यह शब्द, यह भाव, यह प्रेरणा, गुलामी की हताशा में हम भारतीयों को हौसला देने वाले थे। इन वाक्यों ने तब करोड़ों देशवासियों को यह एहसास कराया की लड़ाई किसी जमीन के टुकड़े के लिए नहीं है, यह लड़ाई सिर्फ सत्ता के सिंहासन को कब्जा करने के लिए नहीं है, यह गुलामी की बेड़ियों को मुक्त कर हजारों साल की महान जो परंपराएं थी, महान संस्कृति, जो गौरवपूर्ण इतिहास था, उसको फिर से पुनर्जन्म कराने का संकल्प इसमें है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

वंदे मातरम, इसका जो जन-जन से जुड़ाव था, यह हमारे स्वतंत्रता संग्राम के एक लंबी गाथा अभिव्यक्त होती है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

जब भी जैसे किसी नदी की चर्चा होती है, चाहे सिंधु हो, सरस्वती हो, कावेरी हो, गोदावरी हो, गंगा हो, यमुना हो, उस नदी के साथ एक सांस्कृतिक धारा प्रवाह, एक विकास यात्रा का धारा प्रवाह, एक जन-जीवन की यात्रा का प्रवाह, उसके साथ जुड़ जाता है। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि आजादी जंग के हर पड़ाव, वो पूरी यात्रा वंदे मातरम की भावनाओं से गुजरता था। उसके तट पर पल्लवित होता था, ऐसा भाव काव्य शायद दुनिया में कभी उपलब्ध नहीं होगा।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

अंग्रेज समझ चुके थे कि 1857 के बाद लंबे समय तक भारत में टिकना उनके लिए मुश्किल लग रहा था और जिस प्रकार से वह अपने सपने लेकर के आए थे, तब उनको लगा कि जब तक, जब तक भारत को बाटेंगे नहीं, जब तक भारत को टुकडों में नहीं बाटेंगे, भारत में ही लोगों को एक-दूसरे से लड़ाएंगे नहीं, तब तक यहां राज करना मुश्किल है और अंग्रेजों ने बाटों और राज करो, इस रास्ते को चुना और उन्होंने बंगाल को इसकी प्रयोगशाला बनाया क्यूंकि अंग्रेज़ भी जानते थे, वह एक वक्त था जब बंगाल का बौद्धिक सामर्थ्‍य देश को दिशा देता था, देश को ताकत देता था, देश को प्रेरणा देता था और इसलिए अंग्रेज भी चाहते थे कि बंगाल का यह जो सामर्थ्‍य है, वह पूरे देश की शक्ति का एक प्रकार से केंद्र बिंदु है। और इसलिए अंग्रेजों ने सबसे पहले बंगाल के टुकड़े करने की दिशा में काम किया। और अंग्रेजों का मानना था कि एक बार बंगाल टूट गया, तो यह देश भी टूट जाएगा और वो यावच चन्द्र-दिवाकरौ राज करते रहेंगे, यह उनकी सोच थी। 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया, लेकिन जब अंग्रेजों ने 1905 में यह पाप किया, तो वंदे मातरम चट्टान की तरह खड़ा रहा। बंगाल की एकता के लिए वंदे मातरम गली-गली का नाद बन गया था और वही नारा प्रेरणा देता था। अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन के साथ ही भारत को कमजोर करने के बीज और अधिक बोने की दिशा पकड़ ली थी, लेकिन वंदे मातरम एक स्वर, एक सूत्र के रूप में अंग्रेजों के लिए चुनौती बनता गया और देश के लिए चट्टान बनता गया।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

बंगाल का विभाजन तो हुआ, लेकिन एक बहुत बड़ा स्वदेशी आंदोलन खड़ा हुआ और तब वंदे मातरम हर तरफ गूंज रहा था। अंग्रेज समझ गए थे कि बंगाल की धरती से निकला, बंकिम दा का यह भाव सूत्र, बंकित बाबू बोलें अच्छा थैंक यू थैंक यू थैंक यू आपकी भावनाओं का मैं आदर करता हूं। बंकिम बाबू ने, बंकिम बाबू ने थैंक यू दादा थैंक यू, आपको तो दादा कह सकता हूं ना, वरना उसमें भी आपको ऐतराज हो जाएगा। बंकिम बाबू ने यह जो भाव विश्व तैयार किया था, उनके भाव गीत के द्वारा, उन्होंने अंग्रेजों को हिला दिया और अंग्रेजों ने देखिए कितनी कमजोरी होगी और इस गीत की ताकत कितनी होगी, अंग्रेजों ने उसको कानूनी रूप से प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा था। गाने पर सजा, छापने पर सजा, इतना ही नहीं, वंदे मातरम शब्द बोलने पर भी सजा, इतने कठोर कानून लागू कर दिए गए थे। हमारे देश की आजादी के आंदोलन में सैकड़ों महिलाओं ने नेतृत्व किया, लक्ष्यावधि महिलाओं ने योगदान दिया। एक घटना का मैं जिक्र करना चाहता हूं, बारीसाल, बारीसाल में वंदे मातरम गाने पर सर्वाधिक जुल्म हुए थे। वो बारीसाल आज भारत का हिस्सा नहीं रहा है और उस समय बारीसाल के हमारे माताएं, बहने, बच्चे मैदान उतरे थे, वंदे मातरम के स्वाभिमान के लिए, इस प्रतिबंध के विरोध में लड़ाई के मैदान में उतरी थी और तब बारीसाल कि यह वीरांगना श्रीमती सरोजिनी घोष, जिन्होंने उस जमाने में वहां की भावनाओं को देखिए और उन्होंने कहा था की वंदे मातरम यह जो प्रतिबंध लगा है, जब तक यह प्रतिबंध नहीं हटता है, मैं अपनी चूड़ियां जो पहनती हूं, वो निकाल दूंगी। भारत में वह एक जमाना था, चूड़ी निकालना यानी महिला के जीवन की एक बहुत बड़ी घटना हुआ करती थी, लेकिन उनके लिए वंदे मातरम वह भावना थी, उन्होंने अपनी सोने की चूड़ियां, जब तक वंदे मातरम प्रतिबंध नहीं हटेगा, मैं दोबारा नहीं धारण करूंगी, ऐसा बड़ा व्रत ले लिया था। हमारे देश के बालक भी पीछे नहीं रहे थे, उनको कोड़े की सजा होती थी, छोटी-छोटी उम्र में उनको जेल में बंद कर दिया जाता था और उन दिनों खास करके बंगाल की गलियों में लगातार वंदे मातरम के लिए प्रभात फेरियां निकलती थी। अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था और उस समय एक गीत गूंजता था बंगाल में जाए जाबे जीवोनो चोले, जाए जाबे जीवोनो चोले, जोगोतो माझे तोमार काँधे वन्दे मातरम बोले (In Bengali) अर्थात हे मां संसार में तुम्हारा काम करते और वंदे मातरम कहते जीवन भी चला जाए, तो वह जीवन भी धन्य है, यह बंगाल की गलियों में बच्चे कह रहे थे। यह गीत उन बच्चों की हिम्मत का स्वर था और उन बच्चों की हिम्मत ने देश को हिम्मत दी थी। बंगाल की गलियों से निकली आवाज देश की आवाज बन गई थी। 1905 में हरितपुर के एक गांव में बहुत छोटी-छोटी उम्र के बच्चे, जब वंदे मातरम के नारे लगा रहे थे, अंग्रेजों ने बेरहमी से उन पर कोड़े मारे थे। हर एक प्रकार से जीवन और मृत्यु के बीच लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। इतना अत्याचार हुआ था। 1906 में नागपुर में नील सिटी हाई स्कूल के उन बच्चों पर भी अंग्रेजों ने ऐसे ही जुल्म किए थे। गुनाह यही था कि वह एक स्वर से वंदे मातरम बोल करके खड़े हो गए थे। उन्होंने वंदे मातरम के लिए, मंत्र का महात्म्य अपनी ताकत से सिद्ध करने का प्रयास किया था। हमारे जांबाज सपूत बिना किसी डर के फांसी के तख्त पर चढ़ते थे और आखिरी सांस तक वंदे मातरम वंदे मातरम वंदे मातरम, यही उनका भाव घोष रहता था। खुदीराम बोस, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, रोशन सिंह, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामकृष्ण विश्वास अनगिनत जिन्होंने वंदे मातरम कहते-कहते फांसी के फंदे को अपने गले पर लगाया था। लेकिन देखिए यह अलग-अलग जेलों में होता था, अलग-अलग इलाकों में होता था। प्रक्रिया करने वाले चेहरे अलग थे, लोग अलग थे। जिन पर जुल्म हो रहा था, उनकी भाषा भी अलग थी, लेकिन एक भारत, श्रेष्ठ भारत, इन सबका मंत्र एक ही था, वंदे मातरम। चटगांव की स्वराज क्रांति जिन युवाओं ने अंग्रेजों को चुनौती दी, वह भी इतिहास के चमकते हुए नाम हैं। हरगोपाल कौल, पुलिन विकाश घोष, त्रिपुर सेन इन सबने देश के लिए अपना बलिदान दिया। मास्टर सूर्य सेन को 1934 में जब फांसी दी गई, तब उन्होंने अपने साथियों को एक पत्र लिखा और पत्र में एक ही शब्द की गूंज थी और वह शब्द था वंदे मातरम।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हम देशवासियों को गर्व होना चाहिए, दुनिया के इतिहास में कहीं पर भी ऐसा कोई काव्य नहीं हो सकता, ऐसा कोई भाव गीत नहीं हो सकता, जो सदियों तक एक लक्ष्य के लिए कोटि-कोटि जनों को प्रेरित करता हो और जीवन आहूत करने के लिए निकल पड़ते हों, दुनिया में ऐसा कोई भाव गीत नहीं हो सकता, जो वंदे मातरम है। पूरे विश्व को पता होना चाहिए कि गुलामी के कालखंड में भी ऐसे लोग हमारे यहां पैदा होते थे, जो इस प्रकार के भाव गीत की रचना कर सकते थे। यह विश्व के लिए अजूबा है, हमें गर्व से कहना चाहिए, तो दुनिया भी मनाना शुरू करेगी। यह हमारी स्वतंत्रता का मंत्र था, यह बलिदान का मंत्र था, यह ऊर्जा का मंत्र था, यह सात्विकता का मंत्र था, यह समर्पण का मंत्र था, यह त्याग और तपस्या का मंत्र था, संकटों को सहने का सामर्थ्य देने का यह मंत्र था और वह मंत्र वंदे मातरम था। और इसलिए गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने लिखा था, उन्होंने लिखा था, एक कार्ये सोंपियाछि सहस्र जीवन—वन्दे मातरम् (In Bengali) अर्थात एक सूत्र में बंधे हुए सहस्त्र मन, एक ही कार्य में अर्पित सहस्त्र जीवन, वंदे मातरम। यह रविंद्रनाथ टैगोर जी ने लिखा था।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

उसी कालखंड में वंदे मातरम की रिकॉर्डिंग दुनिया के अलग-अलग भागों में पहुंची और लंदन में जो क्रांतिकारियों की एक प्रकार से तीर्थ भूमि बन गया था, वह लंदन का इंडिया हाउस वीर सावरकर जी ने वहां वंदे मातरम गीत गाया और वहां यह गीत बार-बार गूंजता था। देश के लिए जीने-मरने वालों के लिए वह एक बहुत बड़ा प्रेरणा का अवसर रहता था। उसी समय विपिन चंद्र पाल और महर्षि अरविंद घोष, उन्होंने अखबार निकालें, उस अखबार का नाम भी उन्होंने वंदे मातरम रखा। यानी डगर-डगर पर अंग्रेजों के नींद हराम करने के लिए वंदे मातरम काफी हो जाता था और इसलिए उन्होंने इस नाम को रखा। अंग्रेजों ने अखबारों पर रोक लगा दी, तो मैडम भीकाजी कामा ने पेरिस में एक अखबार निकाला और उसका नाम उन्होंने वंदे मातरम रखा!

आदरणीय अध्यक्ष जी,

वंदे मातरम ने भारत को स्वावलंबन का रास्ता भी दिखाया। उस समय माचिस के डिबिया, मैच बॉक्स, वहां से लेकर के बड़े-बड़े शिप उस पर भी वंदे मातरम लिखने की परंपरा बन गई और बाहरी कंपनियों को चुनौती देने का एक माध्यम बन गया, स्वदेशी का एक मंत्र बन गया। आजादी का मंत्र स्वदेशी के मंत्र की तरह विस्तार होता गया।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

मैं एक और घटना का जिक्र भी करना चाहता हूं। 1907 में जब वी ओ चिदंबरम पिल्लई, उन्होंने स्वदेशी कंपनी का जहाज बनाया, तो उस पर भी लिखा था वंदेमातरम। राष्ट्रकवि सुब्रमण्यम भारती ने वंदे मातरम को तमिल में अनुवाद किया, स्तुति गीत लिखे। उनके कई तमिल देशभक्ति गीतों में वंदे मातरम की श्रद्धा साफ-साफ नजर आती है। शायद सभी लोगों को लगता है, तमिलनाडु के लोगों को पता हो, लेकिन सभी लोगों को यह बात का पता ना हो कि भारत का ध्वज गीत वी सुब्रमण्यम भारती ने ही लिखा था। उस ध्वज गीत का वर्णन जिस पर वंदे मातरम लिखा हुआ था, तमिल में इस ध्वज गीत का शीर्षक था। Thayin manikodi pareer, thazhndu panintu Pukazhnthida Vareer! (In Tamil) अर्थात देश प्रेमियों दर्शन कर लो, सविनय अभिनंदन कर लो, मेरी मां की दिव्य ध्वजा का वंदन कर लो।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

मैं आज इस सदन में वंदे मातरम पर महात्मा गांधी की भावनाएं क्या थी, वह भी रखना चाहता हूं। दक्षिण अफ्रीका से प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्रिका निकलती थी, इंडियन ओपिनियन और और इस इंडियन ओपिनियन में महात्मा गांधी ने 2 दिसंबर 1905 जो लिखा था, उसको मैं कोट कर रहा हूं। उन्होंने लिखा था, महात्मा गांधी ने लिखा था, “गीत वंदे मातरम जिसे बंकिम चंद्र ने रचा है, पूरे बंगाल में अत्यंत लोकप्रिय हो गया है, स्वदेशी आंदोलन के दौरान बंगाल में विशाल सभाएं हुईं, जहां लाखों लोग इकट्ठा हुए और बंकिम का यह गीत गाया।” गांधी जी आगे लिखते हैंं, यह बहुत महत्वपूर्ण है, वह लिखते हैं यह 1905 की बात है। उन्होंने लिखा, “यह गीत इतना लोकप्रिय हो गया है, जैसे यह हमारा नेशनल एंथम बन गया है। इसकी भावनाएं महान हैं और यह अन्य राष्ट्रों के गीतों से अधिक मधुर है। इसका एकमात्र उद्देश्य हम में देशभक्ति की भावना जगाना है। यह भारत को मां के रूप में देखता है और उसकी स्तुति करता है।”

अध्यक्ष जी,

जो वंदे मातरम 1905 में महात्मा गांधी को नेशनल एंथम के रूप में दिखता था, देश के हर कोने में, हर व्यक्ति के जीवन में, जो भी देश के लिए जीता-जागता, जिस देश के लिए जागता था, उन सबके लिए वंदे मातरम की ताकत बहुत बड़ी थी। वंदे मातरम इतना महान था, जिसकी भावना इतनी महान थी, तो फिर पिछली सदी में इसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों हुआ? वंदे मातरम के साथ विश्वासघात क्यों हुआ? यह अन्याय क्यों हुआ? वह कौन सी ताकत थी, जिसकी इच्छा खुद पूज्‍य बापू की भावनाओं पर भी भारी पड़ गई? जिसने वंदे मातरम जैसी पवित्र भावना को भी विवादों में घसीट दिया। मैं समझता हूं कि आज जब हम वंदे मातरम के 150 वर्ष का पर्व बना रहे हैं, यह चर्चा कर रहे हैं, तो हमें उन परिस्थितियों को भी हमारी नई पीडिया को जरूर बताना हमारा दायित्व है। जिसकी वजह से वंदे मातरम के साथ विश्वासघात किया गया। वंदे मातरम के प्रति मुस्लिम लीग की विरोध की राजनीति तेज होती जा रही थी। मोहम्मद अली जिन्ना ने लखनऊ से 15 अक्टूबर 1937 को वंदे मातरम के विरुद्ध का नारा बुलंद किया। फिर कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा। बजाय कि नेहरू जी मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों को तगड़ा जवाब देते, करारा जवाब देते, मुस्लिम लीग के बयानों की निंदा करते और वंदे मातरम के प्रति खुद की भी और कांग्रेस पार्टी की भी निष्ठा को प्रकट करते, लेकिन उल्टा हुआ। वो ऐसा क्यों कर रहे हैं, वह तो पूछा ही नहीं, न जाना, लेकिन उन्होंने वंदे मातरम की ही पड़ताल शुरू कर दी। जिन्ना के विरोध के 5 दिन बाद ही 20 अक्टूबर को नेहरू जी ने नेताजी सुभाष बाबू को चिट्ठी लिखी। उस चिट्ठी में जिन्ना की भावना से नेहरू जी अपनी सहमति जताते हुए कि वंदे मातरम भी यह जो उन्होंने सुभाष बाबू को लिखा है, वंदे मातरम की आनंद मठ वाली पृष्ठभूमि मुसलमानों को इरिटेट कर सकती है। मैं नेहरू जी का क्वोट पढ़ता हूं, नेहरू जी कहते हैं “मैंने वंदे मातरम गीत का बैकग्राउंड पड़ा है।” नेहरू जी फिर लिखते हैं, “मुझे लगता है कि यह जो बैकग्राउंड है, इससे मुस्लिम भड़केंगे।”

साथियों,

इसके बाद कांग्रेस की तरफ से बयान आया कि 26 अक्टूबर से कांग्रेस कार्यसमिति की एक बैठक कोलकाता में होगी, जिसमें वंदे मातरम के उपयोग की समीक्षा की जाएगी। बंकिम बाबू का बंगाल, बंकिम बाबू का कोलकाता और उसको चुना गया और वहां पर समीक्षा करना तय किया। पूरा देश हतप्रभ था, पूरा देश हैरान था, पूरे देश में देशभक्तों ने इस प्रस्ताव के विरोध में देश के कोने-कोने में प्रभात फेरियां निकालीं, वंदे मातरम गीत गाया लेकिन देश का दुर्भाग्य कि 26 अक्टूबर को कांग्रेस ने वंदे मातरम पर समझौता कर लिया। वंदे मातरम के टुकड़े करने के फैसले में वंदे मातरम के टुकड़े कर दिए। उस फैसले के पीछे नकाब ये पहना गया, चोला ये पहना गया, यह तो सामाजिक सद्भाव का काम है। लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए और मुस्लिम लीग के दबाव में किया और कांग्रेस का यह तुष्टीकरण की राजनीति को साधने का एक तरीका था।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

तुष्टीकरण की राजनीति के दबाव में कांग्रेस वंदे मातरम के बंटवारे के लिए झुकी, इसलिए कांग्रेस को एक दिन भारत के बंटवारे के लिए झुकना पड़ा। मुझे लगता है, कांग्रेस ने आउटसोर्स कर दिया है। दुर्भाग्य से कांग्रेस के नीतियां वैसी की वैसी ही हैं और इतना ही नहीं INC चलते-चलते MMC हो गया है। आज भी कांग्रेस और उसके साथी और जिन-जिन के नाम के साथ कांग्रेस जुड़ा हुआ है सब, वंदे मातरम पर विवाद खड़ा करने की कोशिश करते हैं।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

किसी भी राष्ट्र का चरित्र उसके जीवटता उसके अच्छे कालखंड से ज्यादा, जब चुनौतियों का कालखंड होता है, जब संकटों का कालखंड होता है, तब प्रकट होती हैं, उजागर होती हैं और सच्‍चे अर्थ में कसौटी से कसी जाती हैं। जब कसौटी का काल आता है, तब ही यह सिद्ध होता है कि हम कितने दृढ़ हैं, कितने सशक्त हैं, कितने सामर्थ्यवान हैं। 1947 में देश आजाद होने के बाद देश की चुनौतियां बदली, देश के प्राथमिकताएं बदली, लेकिन देश का चरित्र, देश की जीवटता, वही रही, वही प्रेरणा मिलती रही। भारत पर जब-जब संकट आए, देश हर बार वंदे मातरम की भावना के साथ आगे बढ़ा। बीच का कालखंड कैसा गया, जाने दो। लेकिन आज भी 15 अगस्त, 26 जनवरी की जब बात आती है, हर घर तिरंगा की बात आती है, चारों तरफ वो भाव दिखता है। तिरंगे झंडे फहरते हैं। एक जमाना था, जब देश में खाद्य का संकट आया, वही वंदे मातरम का भाव था, मेरे देश के किसानों के अन्‍न के भंडार भर दिए और उसके पीछे भाव वही है वंदे मातरम। जब देश की आजादी को कुचलना की कोशिश हुए, संविधान की पीठ पर छुरा घोप दिया गया, आपातकाल थोप दिया गया, यही वंदे मातरम की ताकत थी कि देश खड़ा हुआ और परास्त करके रहा। देश पर जब भी युद्ध थोपे गए, देश को जब भी संघर्ष की नौबत आई, यही वंद मातरम का भाव था, देश का जवान सीमाओं पर अड़ गया और मां भारती का झंडा लहराता रहा, विजय श्री प्राप्त करता रहा। कोरोना जैसा वैश्विक महासंकट आया, यही देश उसी भाव से खड़ा हुआ, उसको भी परास्त करके आगे बढ़ा।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

यह राष्ट्र की शक्ति है, यह राष्ट्र को भावनाओं से जोड़ने वाला सामर्थ्‍यवान एक ऊर्जा प्रवाह है। यह चेतना परवाह है, यह संस्कृति की अविरल धारा का प्रतिबिंब है, उसका प्रकटीकरण है। यह वंदे मातरम हमारे लिए सिर्फ स्मरण करने का काल नहीं, एक नई ऊर्जा, नई प्रेरणा का लेने का काल बन जाए और हम उसके प्रति समर्पित होते चलें और मैंने पहले कहा हम लोगों पर तो कर्ज है वंदे मातरम का, वही वंदे मातरम है, जिसने वह रास्ता बनाया, जिस रास्ते से हम यहां पहुंचे हैं और इसलिए हमारा कर्ज बनता है। भारत हर चुनौतियों को पार करने में सामर्थ्‍य है। वंदे मातरम के भाव की वो ताकत है। वंदे मातरम यह सिर्फ गीत या भाव गीत नहीं, यह हमारे लिए प्रेरणा है, राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों के लिए हमें झकझोरने वाला काम है और इसलिए हमें निरंतर इसको करते रहना होगा। हम आत्मनिर्भर भारत का सपना लेकर के चल रहे हैं, उसको पूरा करना है। वंदे मातरम हमारी प्रेरणा है। हम स्वदेशी आंदोलन को ताकत देना चाहते हैं, समय बदला होगा, रूप बदले होंगे, लेकिन पूज्य गांधी ने जो भाव व्यक्त किया था, उस भाव की ताकत आज भी हमें मौजूद है और वंदे मातरम हमें जोड़ता है। देश के महापुरुषों का सपना था स्वतंत्र भारत का, देश की आज की पीढ़ी का सपना है समृद्ध भारत का, आजाद भारत के सपने को सींचा था वंदे भारत की भावना ने, वंदे भारत की भावना ने, समृद्ध भारत के सपने को सींचेगा वंदे मातरम के भवना, उसी भावनाओं को लेकर के हमें आगे चलना है। और हमें आत्मनिर्भर भारत बनाना, 2047 में देश विकसित भारत बन कर रहे। अगर आजादी के 50 साल पहले कोई आजाद भारत का सपना देख सकता था, तो 25 साल पहले हम भी तो समृद्ध भारत का सपना देख सकते हैं, विकसित भारत का सपना देख सकते हैं और इस सपने के लिए अपने आप को खपा भी सकते हैं। इसी मंत्र और इसी संकल्प के साथ वंदे मातरम हमें प्रेरणा देता रहे, वंदे मातरम का हम ऋण स्वीकार करें, वंदे मातरम की भावनाओं को लेकर के चलें, देशवासियों को साथ लेकर के चलें, हम सब मिलकर के चलें, इस सपने को पूरा करें, इस एक भाव के साथ यह चर्चा का आज आरंभ हो रहा है। मुझे पूरा विश्वास है कि दोनों सदनों में देश के अंदर वह भाव भरने वाला कारण बनेगा, देश को प्रेरित करने वाला कारण बनेगा, देश की नई पीढ़ी को ऊर्जा देने का कारण बनेगा, इन्हीं शब्दों के साथ आपने मुझे अवसर दिया, मैं आपका बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद!

वंदे मातरम!

वंदे मातरम!

वंदे मातरम!