उपस्थित सभी महानुभाव 

श्रमेव जयते, हम सत्‍यमेव जयते से परिचित हैं। जितनी ताकत सत्‍यमेव जयते की है, उतनी ही ताकत राष्‍ट्र के विकास के लिए श्रमेव जयते की है। और इसलिए श्रम की प्रतिष्‍ठा कैसे बढ़े? दुर्भाग्‍य से हमारे देश में white collar job, उसका बड़ा गौरव माना गया। कोई कोट-पैंट टाई पहना हुआ व्‍यक्ति घर में दरवाजे पर आकर के बेल बजाता है, पूछने के लिए कि फलाने भाई हैं क्‍या, तो हम दरवाजा खोल कर कहते हैं, आइए-आइए, बैठिए-बैठिए। क्‍या काम था? लेकिन एक फटे कपड़े वाला, गरीब इंसान घंटी बजाए और पूछता है, फलाने हैं तो कहते हैं इस समय आने का समय है क्‍या? दोपहर को घंटी बजाते हो क्‍या? जाओ बाद में आना।

हमारा देखने का तरीका, सामान्‍य व्‍यक्ति की तरफ देखने का तरीका, क्‍यों, कि हमने श्रम को प्रतिष्ठित नहीं माना है। कुछ न कुछ कारणों से हमें उसे नीचे दर्जे का माना है। एक मनोवैज्ञानिक रूप से राष्‍ट्र को इस बात के लिए गंभीरता से सोचना भी होता है और स्थितियों को संभालने के लिए, सुधारने के लिए अविरत प्रयास करना भी आवश्‍यक होता है। उन्‍हीं प्रयासों की कड़ी में यह एक प्रयास है श्रमेव जयते।

श्रमयोगी, हमारा श्रमिक एक श्रमयोगी है। हमारी कितनी समस्‍याओं का समाधान, हमारी कितनी सारी आवश्‍यकताओं की पूर्ति एक श्रमयोगी के द्वारा होती है। इसलिए जब तक हम उसकी तरफ देखने का अपना दृष्टिकोण नहीं बदलते हैं, उसके प्रति हमारा भाव नहीं बदलता है, समाज में हम उसको प्रतिष्‍ठा नहीं दे सकते हैं। इसलिए शासन की व्‍यवस्‍थाओं में जिस तरह से समयानुकूल परिवर्तन की आवश्‍यकता है, काल बाह्य चीजों से मुक्ति की आवश्‍यकता होती है, नित्‍य नूतन प्राण के साथ प्रगति की राह निर्धारित करने की आवश्‍यकता होती है। उसी प्रकार से समाज जीवन में भी श्रम की प्रतिष्‍ठा, श्रमिक की प्रतिष्‍ठा, श्रमयोगी का गौरव, ये हम सब की सामूहिक जिम्‍मेवारी भी है और व्‍यवस्‍थाओं में परिवर्तन करने की आवश्‍यकता भी है। यह उस दिशा में एक प्रयास है।

हम जानते है एक बेरोजगार ग्रेजुएट हो या एक बेरोजगार पोस्ट ग्रेजुएट हो, तो ज्‍यादा से ज्‍यादा हम इस भाव से देखते हैं अच्‍छा, बेचारे को नौकरी नहीं मिल रही है। बेचारे को काम नहीं मिल रहा है। लेकिन गर्व करता है, नहीं ग्रेजुएट है, पोस्‍ट ग्रेजुएट है, डबल ग्रेजुएट है। काफी अच्‍छा पढ़ता था। लेकिन कोई ITI वाला मिले तो नहीं यार, ITI है। चलो यार, तुम ITI वाले हो, चलो। यानी, हमारी Technical Education का सबसे एक प्रकार का शिशु मंदिर है। सबसे छोटी ईकाई है। लेकिन हमने पता नहीं क्‍यों उसके प्रति इतना हीन भाव पैदा किया है। जो बच्‍चा ITI में, वह भी रेल में, बस में कहीं मिल जाता है, तो परिचय नहीं देता है कि कहां पढ़ता है। उसको संकोच होता है। ITI बोलना बुरा लगता है। आज हमने एक नया Initiative लिया है। और मैं इन सबको बधाई देता हूं, जो आज हमारे इस क्षेत्र के ambassador बने हैं।

अब इस क्षेत्र में ambassador के लिए किसी बहुत पढ़े-लिखे व्‍यक्ति को ला सकते थे, किसी नट-नटी को ला सकते थे, किसी नेता को रख सकते थे। लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। जो स्‍वयं निर्धन अवस्‍था में बड़े हुए हैं, ITI से ज्‍यादा जिनको शिक्षा प्राप्‍त करने का सौभाग्‍य नहीं मिला, लेकिन उसी ITI की शिक्षा के बलबूते पर आज वो इतनी ऊंचाईयों को पार कर गए कि खुद भी हजारों लोगों को रोजगार देने लगे हैं। ये वो लोग हैं, जिन्‍होने ITI में प्रशिक्षण पाया, लेकिन उसी बदौलत अपनी जिंदगी को बना दिया। हर ITI में पढ़ने वाला, हर श्रमिक, भले ही आज उसकी जिंदगी की शुरूआत किसी न किसी सामाजिक आर्थिक कारणों से अति सामान्‍य अवस्‍था से हुई हो, लेकिन उसका भी हौसला बुलंद होना चाहिए कि भाई ठीक है। यह कोई end of the journey नहीं है। It’s a beginning. 

देखिए कितने लोग हैं, बहुत आगे निकले हैं। जब तक हमारे सामान्‍य से सामान्‍य नागरिक के अंदर भीतर विश्‍वास नहीं पैदा होता है, वो अपने आप को कोसता रहता है तो उसकी जिंदगी खुद के लिए बोझ बनती है, परिवार के लिए बोझ बनती है। देश के लिए भी बोझ बनती है। लेकिन उसके पास जो कुछ भी उपलब्‍ध है, उसमें भी गौरव के साथ अगर जीता है, तो वह औरों को भी प्रेरणा देता है। इसलिए, एक युवा पीढ़ी में विश्‍वास और भरोसा पैदा करने के लिए, self confidence को create करने के लिए एक ऐसे प्रयास को हमने प्रारंभ किया है। और बाहर का कोई व्‍यक्ति उपदेश दे तो ठीक है साहब, आप तो बहुत बड़े व्‍यक्ति बन गए। और मेरा हौसला बुलंद कर रहे थे। लेकिन उसी में से कोई बड़ा बनता है, तब जाकर कहता है कि अच्‍छा भाई वह भी बना था। वह आईटीआई में टर्नर था। और वह भी लाखों लोगों को रोजगार देता है। ठीक है, मैं भी कोशिश करूंगा।

आखिरकर यही सबसे बड़ी ताकत होती है। और उस ताकत को जगाने के लिए ये ambassadors, मैं तो चाहूंगा कि ऐसे सफल लोग, हर राज्‍य में होंगे, हर राज्‍य में ऐसे सफल लोगों के गाथाओं की किताब निकले। Portal पर उनके जीवन रखा जाए कि कभी ITI में पढ़े थे, लेकिन आज जीवन में इतने सफल रहे है। इस क्षेत्र में काम करने वाले करोड़ों लोग हैं गरीब, उनका विश्‍वास पैदा होता है। और हर बार ऐसे लोगों को सम्‍मानित करना।

कोई ताल्‍लुका का brand ambassador हो सकता है, कोई जिले का brand ambassador हो सकता है, कोई राज्‍य का brand ambassador हो सकता है, कोई राष्‍ट्र का। धीरे-धीरे इस परंपरा को विकसित करना है मुझे। नीचे तक उसको percolate करना है, उसको expand करना है। एकदम से horizontal इसको spread करना है। मैं चाहूंगा सब राज्‍य से, हमारे मंत्री महोदय आए हैं, वो इस दिशा में उनकी प्रतिष्‍ठा के लिए कुछ न कुछ करेंगे।

उसी प्रकार से ITI एक ऐसी व्‍यवस्‍था नहीं हैं, जो कि प्राणहीन हो। कभी-कभार कागजी लिखा-पट्टी में जो विफल रहते हैं, उनको एक ऐसा software परमात्‍मा ने दिया होता है, कि mechanical work में, Technical work में वो बहुत innovative होते हैं। हमारी ITIs में ऐसे जो होनहार लोग होते हैं, उनको अवसर मिलना चाहिए। अगर 2 घंटे बाद में उसको मशीन पे बैठ के काम करना है तो उनको अवसर मिलना चाहिए। यहां कुछ लोगों को इसके लिए award दिया गया है कि अपना Temperament होने के कारण इस व्‍यवस्‍था का उपयोग करते हुए उन्‍होंने कोई न कोई चीज innovation के लिए कोशिश की। कुछ नया प्रयास किया। एक disciple में गया लेकिन multiple disciple को grasp करने की ताकत थी। ये जो किताबी दुनिया से बाहर, इंसान की अपनी बहुत बड़ी शक्ति होती है। हमारे ITIs इसको पहचाने। उस दिशा में प्रयास करने का एक प्रयास हुआ है, और उस प्रयास का लाभ मिलेगा।

उसी प्रकार से जब हम पढ़ते हैं, 27,000 करोड़ रुपये ऐसे ही पड़े हैं, तब ज्‍यादा से ज्‍यादा अख़बार में दो-चार दिन अखबार में आ जाता है, सरकार सोई पड़ी है, नेता क्‍या कर रहे हैं। सिर्फ भाषण दे रहे हैं। वगैरह-वगैरह। लेकिन उसका 27,000 करोड़ रुपये का कोई उपाय नहीं निकलता है। पड़ा है, क्‍या करें साहब, लेने वाला कोई नहीं है।

मैं हैरान हूं, हमारे देश में मोबाईल फोन, आप स्‍टेट बदलो तो नंबर चल जाता है, आप दूसरे देश चले जाओ तो नंबर बदल जाता है। service provider, इस राज्‍य में है, दूसरे राज्‍य में नया service provider है तो वो provider आपको connectivity दे देता है। मोबाईल फोन वाले के लिए सबसे सब सुविधाएं हो सकती हैं, एक गरीब इंसान नौकरी छोड़ करके दूसरी नौकरी पर जाएं, उसको वो लिंक क्‍यों नहीं मिलना चाहिए ? इसी सवाल ने मुझे झकझोरा और उसी में से रास्‍ता निकला है कि अगर उसके साथ एक Permanent नंबर लग जाएगा, वो कहीं पर भी जाएं, account उसके साथ चलता चला जाएगा। फिर उसका पैसा कभी कहीं नहीं जाएगा। इस प्रयत्‍न के कारण, ये 27 हजार करोड़ रूपये जो पड़े हैं न, ये किसी न किसी गरीब के पसीने के पैसे हैं, वो सरकार के मालिकी के पैसे नहीं हैं। मुझे उन गरीबों को पैसा वापस देना है और इसलिए मैंने खोज शुरू की है इस account नंबर से।

वैसे कोई सरकार 27 हजार करोड़ की scheme लगा दे तो सालों भर चलता है, वाह कैसी योजना लाए ! कैसी योजना लाए ! लेकिन योजना का क्‍या हुआ कोई पूछता नहीं है। ये ऐसा काम है.. जो दुनिया कहती है न, मोदी का क्‍या विजन है? उनको दिखेगा नहीं इसमें। क्‍योंकि विजन देखते-देखते उनके चश्‍मे के नंबर आ गए हैं, इसलिए उनको नहीं दिखाई देगा। लेकिन इससे बड़ा कोई विजन नहीं हो सकता है कि 27 हजार करोड़ रुपए गरीब का पड़ा है, गरीब की जेब में वापस जाए। इसके लिए कहीं तो शुरू करें। हो सकता है कुछ लोग नहीं होंगे जिनका .. रहे नहीं होंगे। एक सही दिशा में प्रयास है जिसमें बैंकिंग को जोड़ा है, industrial houses को जोड़ा है और उस व्‍यक्ति को भी उसका मिल रहा है।

देखा होगा आपने, योजना दिया जला करके launch नहीं की गई है। योजना किसी किताब का Folder खोलकर नहीं की गई है। actually योजना में उन सबको SMS चला गया है, लाखों लोगों को और योजना लागू हो गई है। यानी मेहनत पहले पूरी कर दी गई है, बाद में उसको लाया गया है। work culture कैसे बदला जाता है, उसका ये नमूना है वरना क्‍या होता, आज हम launch करते उसके फिर चार-छह महीने के बाद review करते, एकाध साल के बाद हम आते। अब हो गया है। तो योजना वहीं की वहीं रह जाती। तो पहले पूरा करो, लोगों के पास ले जाओ, ये प्रयास किया है। मैं इसके लिए मंत्रालय को और उसकी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं कि advance में उन्‍होंने काम किया है।

उसी प्रकार से हमारे देश की एक सबसे बड़ी समस्‍या यह है कि हम, जो सरकार में बैठे हैं, हम मानते हैं कि हम से ज्‍यादा कोई जानता ही नहीं है, हम से ज्‍यादा समझ किसी को नहीं है, हम से ज्‍यादा ईमानदार कोई नहीं है, हम से ज्‍यादा देश की परवाह किसी को नहीं है। ये गलत सोच है। सवा सौ करोड़ देशवासियों पर हम भरोसा करें। सरकार आशंकाओं से नहीं चलती है। सरकार प्रारंभ भरोसे से करती है और इसलिए आपने देखा होगा, अंग्रेजों के जमाने से एक व्‍यवस्‍था चलती थी कि आपको किसी certificate को Zerox करके कहीं भेजना है तो गजेटेड officer का साइन लेना पड़ता था। हमने कहा, मुझे यह समझ में नहीं आती है कि तुम तो बेईमान हो, गजेटेड officer ईमानदार है, किसने तय किया है ? ये किसने तय किया है ? और इसलिए मैंने कहा कि तुम खुद ही लिख के दे दो कि तुम्‍हारा certificate सही है और वो मान्‍य हो जाएगा। ये self certification! 

ये वो बड़े विजन में नहीं आया होगा क्‍योंकि 60 साल में वो विजन किसी को दिखाई नहीं दिया है, लेकिन घटना भले ही छोटी हो, लेकिन उस इंसान को विश्‍वास पैदा होता है, हां! ये देश मुझ पर भरोसा करता है। मेरा certificate है और मैं कह रहा हूं, मेरा है तो मानो न। जब नौकरी देते हों, तब original certificate देख लेना। इसके कारण जो बेचारे नौजवानों को रोजगार लिया है, कुछ लेना है तो अपना copy certify कराने के लिए इतना दौड़ना पड़ता था, हमने निकाल दिया।

इसमें भी हमने उद्योगकारों को कहा है, जो employer हैं, बड़े-बड़े उद्योगकार नहीं, छोटे-छोटे लोग हैं, छोटे-छोटे उद्योग हैं, किसी के यहां तीन employee हैं, 5 हैं, 7 हैं, 11 हैं, 18 हैं, और पचासों प्रकार डिपार्टमेंट उसका गला पकड़ते हैं। पचासों प्रकार के उसको फार्म भरने पड़ते हैं। दुनिया बदल चुकी है। आखिरकर मैंने मंत्रालय को कहा कि भाई मुझे ये सब बदलना है। मैंने तो इतना ही कहा था, बदलना है। लेकिन क्‍या बदलना है, मंत्रालय ने मेहनत की, अफसरों ने लगातार काम किया। और आज 16 में से, 16 अलग-अलग प्रकार के फार्म है, एक एक फार्म शायद 4-4, 5-5 पेज का होगा, सबको हटाकर के एक बना दिया गया, वह भी online और अब किसी और जरूरत होगी, उस नंबर पर जांच करेगा तो सब वहां उपलब्‍ध होगा। अब वह बार-बार पूछने नहीं जाएगा क्‍या करोगे? 

ये जो सुविधाएं है, और यही तो maximum governance है। minimum government, maximum governance का मतलब क्‍या है? यही है कि आप, उनकी सारी झंझटें खत्‍म हो गई। उन्‍होंने कह, यह है हमारा, हो गया। एक बड़ी समस्‍या रहती है कि Inspector राज। ये ऐसा शब्‍द है जो, मैं जब छोटा था, तब से सुनते आया हूं। मुझे लगता था कि शायद पुलिस वालों के लिए यह कहते हैं। तब मुझे मालूम नहीं था, Inspector है ना, तो उसे पुलिस समझते थे। धीरे-धीरे बड़े होने लगे, समझने लगे, तब पता चला कि यह दुनिया तो बहुत है भई। हर गली-मोहल्‍ले में है। 

क्‍या इसका कोई समाधान हो सकता है और इसी में से Technology intervention हम लगाए। और मैं मानता हूं – e-governance, easy governance है, effective governance है। economical governance भी है, at the same time, e-governance transparency के लिए भी कुल मिलाकर के एक विश्‍वास पैदा करता है। अब computer draw तय करेगा कि कल तुम्‍हें Inspection कहाँ करना है और कंप्यूटर से ड्रा होगा कि इतने बजे ड्रा हुआ, इंस्पेक्शन कितने बजे किया, वहां से SMS जाएगा, पता चलेगा कि महाशय जी कब पहुंचे और 72 hours में उन्‍हें जो भी रिपोर्ट करना है, उसको online कर देना पड़ेगा।

मैं नहीं मानता हूं कि जो harassment वाला मामला है, वह भी रहेगा। कुछ लोग ऐसे होते हैं कि गलती खूब करते हैं, चोरी खूब करते हैं। फिर गाली Inspector को देते हैं कि वह आके हमें परेशान करते हैं। तो दोनों तरफ से गड़बड़ी होती है, ये दोनों तरफ की गड़बड़ी का निराकरण है इसमें। स्‍वाभाविक है, इसके कारण एक well spread activity होगी। मुझे अभी भी कोई समझ नहीं है।

मैं कभी सोचता हूं, हम कार खरीदते हैं। हमारी कार का ब्रेक ठीक है कि नहीं है, एक्‍सीलेटर ठीक है कि नहीं, गियर बराबर काम करता है कि नहीं है। वह कोई सरकारी अफसर आकर के Inspect करता है क्‍या? हमीं करते हैं न। मुझे मालूम है कि मुझे जीना, मरना है तो गाड़ी को मेरी ठीक रखूंगा। ऐसे factory वाले को भी मालूम है कि boiler, में ऐसे थोड़े ही रखूंगा कि मैं मर जाऊं तो हम उसमें भरोसा करें। तुम अपने boiler का certificate लेकर के सरकार के पास जमा करा दो। तुम्‍हारा boiler ठीक है, तुम आके बता दो बस।

मैं तो हैरान हूं। कभी किसी जमाने में एक बड़े शहर में एक या दो lift हुआ करते थे। बड़े शहरों में, जिस जमाने में lift शुरू हुआ था। अब सरकार ने, lift का inspection municipality ने अपने पास रखा। अब हर जगह पर lift होने लगी और inspector एक है। और lift का परीक्षण उसको करना पड़ता है। वह कहां से करेगा। society वाले को बोलो कि तुम छह महीने में एक बार lift को चेक कराओ और उसको चि‍ट्ठी लिख दो कि किससे चेक किया। और तुम्‍हारा satisfaction letter भेज दो। क्‍योंकि वो भी नहीं चाहता है, lift में मरना।

हम उसको जितना जोड़ेंगे, उस पर जितना भरोसा करेंगे, हमारी व्‍यवस्‍थाएं कम होती जाएंगी और लोग अपने आप Responsible बनते जाते हैं। उस दिशा में काम करने का एक महत्‍वपूर्ण प्रयास ये सुविधा पोर्टल के माध्‍यम से किया गया है। इंसपेक्‍टर के Inspection की नई Technology added व्‍यवस्‍था की गई है। उसके कारण मुझे विश्‍वास है कि हम जो Ease of Business की बात करते हैं, आखिर कर make in India को सफल करना है। Ease of Business, सबसे पहली requirement है । Ease of Business प्रमुखतया शासन की जिम्‍मेवारी होती है। उसकी कानूनी व्‍यवस्‍थाएं, उसका Infrastructure, उसकी speed ये सारी बातें उसके साथ जुड़ी हुई हैं। और इसलिए ease of Business Make In India की प्राथमिकता है। 

इसलिए Ease of business, make in India की priority है। उसी प्रकार से हम उद्योगकारों पर कहने पर, उनके आग्रह पर या उनकी सुविधा के लिए labour के लिए सोचते रहेंगे तो कभी labour को हम न्‍याय नहीं दे पाएंगे। हमने labour समस्‍या को labour की नजर से ही देखना है। श्रमिक की आंखों से ही श्रमिक समस्‍या देखनी चाहिए। उद्योगकार की आंखों से श्रमिक की समस्‍या नहीं देख सकते और इसलिए श्रमिक की आंखों से श्रमिक की समस्‍या देख करके, उसके जीवन में सुविधाएं कैसे बढ़े, वो अपने हकों की रक्षा कैसे कर पाएं.. अब देखिए परंपरागत रूप से हमारे यहां कुछ लोगों को बहुत काम आता है, लेकिन वो किसी व्‍यवस्‍था से नहीं निकला है इसलिए उसके पास कोई certificate नहीं है। क्‍यों न हम उसे अपने तरीके से, अपनी मर्जी से कुछ सिखाएं।

मान लीजिए कोई किसी के यहां peon के नाते काम करता है, लेकिन peon का काम करते करते उसने driving सीख ली है। आ गई है ड्राइविंग, लेकिन चूंकि उसके पास certified व्‍यवस्‍था नहीं है, कहां सीखा क्‍या सीखा, proper license की व्‍यवस्‍था नहीं है इसलिए कोई उसको driver रखता नहीं है। सब पूछते हैं कि पहले कहीं ड्राइवरी की थी क्‍या ? तो, मिलता नहीं। क्‍यों न हम इस प्रकार के लोगों के लिए कोई व्‍यवस्‍था खड़ी करें कि जो अपनी ताकत से, अपने बल पर उन्‍होंने ज्ञान अर्जित किया है, परंपरा से किया है, उसके value addition के लिए काम किया है, हम उस दिशा में काम करें! ताकि वो फिर एक authority के रूप में जाएगा। हां भई! Construction में इन चार कामों में मास्‍टरी है मेरी, मेरा इतने साल का experience है, यहां यहां काम किया है और जो authority है, authority ने मुझे दिया हुआ है, वरना वो क्‍या होगा, unskilled labor में बेचारा जिंदगी काटता रहता है, जबकि है skilled labor! उसके पास किताबी ज्ञान से ज्‍यादा Skill है।

ये जो unskilled में से skilled में लाना, ये जो bridge है, वो इंसान खुद नहीं निकाल सकता। उसके लिए सरकार ने एक लंबी सोच के साथ.. चिंता करनी पड़ेगी। उस चिंता को पूरा करने का हमारा प्रयास, इन प्रयासों के साथ जुड़ा हुआ है और इसलिए .. अब आप मुझे बताइए.. हमारे देश के नौजवान को रोजगार चाहिए, उद्योगकारों को लोग चाहिए। हम चाहते हैं, नौजवान बेचारा जो फ्रैश निकला है, उसको कहीं न कहीं तो exposure मिलना चाहिए, practical होना चाहिए। उद्योगकार उसको घुसने नहीं देता है, क्‍यों ? labour inspector आ जाएगा। तुम बाहर रहो भई। तुम आओगे तो मेरी किताब में ऐसा भरा जाएगा, मैं कहीं का नहीं रहूंगा, मैं उसमें से बाहर ही नहीं निकलूंगा। वो सरकारी डर से आने नहीं देता। आने नहीं देता, करता है, तो कभी बेईमानी से करता है। क्‍यों न उसके लिए हम ऐसी व्‍यवस्‍था करें ताकि हमारे जो apprentice जो हैं, हमारे नौजवानों को अवसर मिले।

एक बार अवसर मिलेगा तो जो quality man power है, वो अपने आप ऊपर आएगा, उनको अच्‍छा स्‍कोप मिल जाएगा और देश की जो requirement है, वो requirement पूरी होगी और इसीलिए .. जैसा मंत्री जी ने बताया, Parliament में इस बात को कहा कि चार लाख apprentice हैं। अब आप बताइए कितने लोगों को ऐसे छोटे, छोटे, छोटे hurdles हैं, उनको भी अगर smoothen up कर दिया जाए तो हम किस प्रकार से गति दे सकते हैं, ये हम अनुभव कर रहे हैं। इसलिए सरकार ही देश चलाए, उस मिजाज से हमें बाहर आना है, देश के सब मिल करके देश चलाएं, उस दिशा में हमें जाना है और इसी के लिए सबकी भागीदारी के साथ, सबको साथ जोड़ करके काम करने की दिशा में हम आगे बढ़ना चाहते हैं।

skill development भारत के लिए बहुत बड़ी opportunity है। पूरे विश्‍व को Twenty Twenty तक करोड़ों करोड़ों लोगों की जरूरत है। दुनिया के work force को provide करने का सामर्थ्‍य हमारे पास है। हमारे पास नौजवान हैं, लेकिन अगर वो skilled man power नहीं होगा तो जगत में उसको कहीं स्‍थान नहीं मिलेगा और इसलिए हमें एक तो वो तैयार करना है, generation को, नई generation को, जो job creator हो, और दूसरी वो generation हो जो job creator नहीं बन सकती है लेकिन कम से कम लोग उसको job के लिए ढूंढते आ जाएं, इतनी capacity वाला वो नौजवान तैयार हों। उन बातों को ले करके अगर हम चलते हैं .. और इस प्रकार का एक skilled work force जो पूरे विश्‍व की requirement है, आने वाले दिनों में .. उसी को हम आज से ही तैयारी करते हैं। हम उस requirement को पूरा कर सकते हैं।

मैंने देखा है, मैं कई ITI के ऐसे students को जानता हूं जिनको विदेशों में, खास करके gulf countries में एक एक, दो दो लाख के पैकेज पर काम करते हैं। बड़ी बड़ी कंपनियों में, क्‍येांकि इस प्रकार के work Force की बहुत Requirement बढ़ती चली जा रही है। हम इन बातों पर ध्‍यान देंगे। हमारी कोशिश ये है कि हमने उस दिशा में प्रयास शुरू किया है। और आज एक साथ, ये एक-एक योजना ऐसी है कि हर महीने एक-एक लांच कर दें तो भी एक बड़ा काम दिखता। लेकिन 5 साल में काफी काम करने है। इसलिए मैं एक-एक दिन में 5-5 काम निबटा रहा हूं।

जिनको आज पुरस्‍कार मिला है, उनका मैं अभिनंदन करता हूं और मैं आशा करता हूं कि आप स्‍वयं में, ये ITI के नौजवानों में विश्‍वास करिये। आप बात कीजिए उनसे मिलिये। आप देखिए, क्‍या, कहां बुलंदी पर पहुंच सकते हैं। हम श्रमिक का सम्‍मान करना सीखेंगे। कभी-कभार मुझे विचार आ रहा है, कोई बढि़या सा शर्ट खरीदा, पहन करके दफ्तर आए या समारोह में गए। 5-10 दोस्‍त ने कहा, क्‍या बढि़या शर्ट है। कॉलेज में गए हैं, बहुत बढि़या T-shirt पहन कर गए हैं।, वाह सब लड़के देखते हैं,वाह क्‍या बढि़या T-shirt है तो सेल्‍फी भी निकाल देता है। circulate भी कर देता है। लेकिन क्‍या सोचा है, क्‍या मेरे जेब में पैसे थे, इसलिए शर्ट आया है। क्‍या मेरे पिताजी ने 2-4 हजार रुपये मेरे पॉकेट खर्च के लिए दिए थे, उसके लिए शर्ट आया है? नहीं मेरे पैसे के कारण मेरा शर्ट नहीं आया है।

मेरा शर्ट इसलिए आया है, कि किसी गरीब किसान ने मई-जून की भयंकर गर्मी में खेत जोता होगा। कपास बोया होगा। बारिश में भी रात-भर काम किया होगा। तब जाकर कपास हुआ। किसी गरीब मजदूर ने उसमें से धागा बनाया होगा। किसी बुनकर ने उसको कपड़े में परिवर्तित किया होगा। किसी रंगरेज ने अपनी जिंदगी के रंग की परवाह किए बिना अपने शरीर के रंग की परवाह किये बिना हाथ कितने ही रंग से रंग क्‍यों न जाएं, उस कपड़े को अच्‍छे से रंग से रंगा होगा। कोई दर्जी होगा, जिसने उसकी सिलाई की होगी। कोई गरीब विधवा होगी, जिसको अपनी बेटी की शादी करवानी है, इसलिए रात-रात भर बुढ़ापे में भी उन कपड़ों पर काज-बटन किया होगा। कोई धोबी होगा जो कपड़ों पर बढि़या सा प्रेस किया होगा। कोई पैकेजिंग करने वाला बच्‍चा मजदूर होगा जिसने कि जाके पैकेजिंग का काम किया होगा, तब जाकर के एक shirt बाजार में आके मेरे शरीर पर आया होगा। मेरे पैसों के कारण नहीं आया।

शर्ट मेरे पैसों से नहीं निकलता है अच्‍छी साड़ी हो, शर्ट हो, कपड़े हो, किसी न किसी गरीब के परिश्रम का प्रयास है और इसलिए समाज के इन श्रमिक वर्ग के प्रति उस संवेदना के साथ, उस गौरव के साथ अगर देखना हमारा स्‍वभाव बनता है, तो मुझे विश्‍वास है कि सच्‍चे अर्थ में ये श्रमयोगी राष्‍ट्रयोगी बनेगा। ये श्रमयोगी राष्‍ट्र निर्माता बनेगा। और उसी दिशा में एक बहुत बड़ी जिम्‍मेवारी के साथ आज एक अहम कदम की और आगे बढ़ रहे हैं जो Make in India के सपने को पूरा करेगा। विश्‍व वो भारत में लाने का निमंत्रण देने के लिए मेरा श्रमिक खुद भी एक शक्ति बन जाएगा।

इसी विश्‍वास के साथ सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। 

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East Asia Summit is a key pillar of India’s Act East Policy: PM Modi in Vientiane
October 11, 2024

Your Majesty,

Excellencies,

NAMASKAR.

First of all, I express my deep condolences to those affected by "Typhoon Yagi."

During this challenging time, we have provided humanitarian assistance through Operation Sadbhav.

Friends,

India has consistently supported the unity and centrality of ASEAN. ASEAN is also pivotal to India's Indo-Pacific vision and Quad cooperation. There are important similarities between India’s "Indo-Pacific Oceans Initiative" and the "ASEAN Outlook on Indo-Pacific." A free, open, inclusive, prosperous, and rules-based Indo-Pacific is crucial for the peace and progress of the entire region.

The peace, security, and stability in the South China Sea are in the interest of the entire Indo-Pacific region.

We believe that maritime activities should be conducted in accordance with UNCLOS. Ensuring freedom of navigation and airspace is essential. A robust and effective Code of Conduct should be developed. And, it should not impose restrictions on the foreign policies of regional countries.

Our approach should focus on development and not expansionism.

Friends,

We endorse ASEAN's approach to the situation in Myanmar and support the Five-Point Consensus. Furthermore, we believe it is crucial to sustain humanitarian assistance and implement suitable measures for the restoration of democracy. We believe that, Myanmar should be engaged rather than isolated in this process.

As a neighbouring country, India will continue to uphold its responsibilities.

Friends,

The most negatively affected countries, due to ongoing conflicts in various parts of the world, are those from the Global South. There is a collective desire for the restoration of peace and stability in regions such as Eurasia and the Middle East as soon as possible.

I come from the land of Buddha, and I have repeatedly stated that this is not the age of war. Solutions to problems cannot be found in the battlefield.

It is essential to respect sovereignty, territorial integrity, and international laws. With a humanitarian perspective, we must place a strong emphasis on dialogue and diplomacy

In fulfilling its responsibilities as a VISHWABANDHU, India will continue to make every effort to contribute in this direction.

Terrorism also poses a serious challenge to global peace and security. To combat it, forces that believe in humanity must come together and work in tandem.

And, we must strengthen mutual cooperation in the areas of cyber, maritime, and space.

Friends,

The revival of Nalanda was a commitment we made at the East Asia Summit. This June, we fulfilled that commitment by inaugurating the new campus of Nalanda University. I invite all the countries present here to participate in the 'Heads of Higher Education Conclave' to be held at Nalanda.

Friends,

The East Asia Summit is a key pillar of India’s Act East Policy.

I extend my heartfelt congratulations to Prime Minister Sonexay Siphandone for the excellent organisation of today's summit.

I extend my best wishes to Malaysia as the next Chair and assure them of India's full support for a successful presidency.

Thank you very much.