Text of PM’s address at the Indian Community Reception in Shanghai

Published By : Admin | May 16, 2015 | 17:10 IST

भारत माता की जय, भारत माता की जय।

नमस्ते! आज हिंदुस्तान में और हिंदुस्तान के बाहर जो भारतवासी बस रहे हैं, उन सबके लिए एक बड़े आश्चर्य की घटना होगी कि चीन में इतनी बड़ी मात्रा में… वक्त कैसा बदल रहा है, वक्त‍ किस तेजी से बदल रहा है। कोई कल्पना कर सकता था कि चीन में भारतीय नागरिक किस प्यार मोहब्बत की जिंदगी जी रहे हैं, जिसे आज दुनिया देख रही है?



आज 16 मई है। ठीक एक साल पहले 16 मई 2014, यह जो ढाई घंटे का Time difference है न, उसने आपको सबसे ज्यादा परेशान किया था। बहुत जल्दी उठकर के, जबकि हिंदुस्तान में लोग सोए थे, आपने पूछना शुरू कर दिया था “result क्या आया?” अभी भारत में सूरज उगना बाकी था। लेकिन आप... आप व्याकुल थे कि जल्दी हिंदुस्तान में सूरज उग जाए, और खबरें तुरंत आपको मिले। ऐसा था कि नहीं था? आप लोग हिंदुस्तान के चुनाव के नतीजे जानने के लिए, पता था ढाई घंटे का difference है, फिर भी सुबह उठकर के तैयार हो गए थे या नहीं हो गए थे? खबर देर से आती थी तो परेशान होते थे कि नहीं होते थे?

दुनिया के कुछ भू-भाग के लोग रातभर सोए नहीं थे और उस समय जिस हालात में हिंदुस्तान में चुनाव हुआ था जिस परिपेक्ष्य में चुनाव हुआ था। 16 मई को एक साल पहले एक ही स्वर दुनिया भर से सुनाई दे रहा था – “दुख भरे दिन बीते रे भईया, दुख भरे दिन बीते रे भईया”।

आप तो विदेशों में रह रहे थे, कैसा समय बीता था? हिंदुस्तान के हो? ऐसा ही होता था - इंडिया से है, अरे चलो चलो यार। ऐसा ही होता था कि नहीं होता था? कोई पूछने को तैयार था क्या? कोई सुनने को तैयार था क्या? कोई देखने को तैयार था क्या? एक साल के भीतर-भीतर आप सीना तानकर, आंख मिलाकर के दुनिया से बात करते पाते हो कि नहीं कर पाते? दुनिया आपको आदर से देखती है कि नहीं देखती है? आपको स्वयं भारत की प्रगति के प्रति गर्व होता है कि नहीं होता है?

भाईयों-बहनों जनता जनार्दन ईश्वर का रूप होता है। जनता-जर्नादन ये परमात्मां का रूप होता है। जनता जर्नादन का एक तीसरा नेत्र होता है। सामूहिक विलक्षण बुद्धिशक्ति होती है। और वो अपने तत्काहलीन निजी हितों को छोड़कर भी “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय” संकल्पा लेकर के कदम उठाता है। हिंदुस्तान के कोटि-कोटि जनों ने एक सामूहिक शक्ति का परिचय दिया, हिंदुस्तान के कोटि-कोटि जनों ने सामूहिक इच्छा-शक्ति का परिचय दिया, कोटि-कोटि जनों ने एक सामूहिक संकल्प शक्ति का परिचय दिया। और सवा सौ करोड़ देशवासी अपना भाग्य बदलने के लिए कृत-संकल्प् हो गए थे। और तब जाकर के Polling Booth में बटन दबाकर के इतना बड़ा फैसला कर दिया।

लेकिन कोई कल्पना कर सकता है क्या? और चुनाव में मेरे प्रति जो अपप्रचार होता था, वो क्या होता था। मोदी को कौन जानता है? गुजरात के बाहर कौन पहचानता है? ठीक है गुजरात में उसकी गाड़ी चलती है, कौन जानता है? यही कहते थे न? सब लोग यही कहते थे। और जब विदेश की बात आती थी “अरे भई विदेश की तो इसको कुछ समझ ही नहीं है, क्या करेगा?” यही चर्चा सुनी थी न आपने? सुनी थी कि नहीं सुनी थी? वैसे मेरी जो आलोचना होती थी न, वो सही थी, वो सच बोल रहे थे। क्योंकि गुजरात के बाहर मेरा कोई ज्यादा जाना-आना भी नहीं था, मेरी कोई पहचान भी नहीं थी। और हिंदुस्तान के बाहर तो सवाल ही नहीं उठता है। लेकिन आलोचना सही थी, आशंका सही नहीं थी।

दुनिया में ऐसी बहुत घटनाएं हैं और भारत ने तो अपनी सूझ-बूझ का परिचय करवा दिया। वरना मेरा Bio-data देखकर के कोई मुझे प्रधानमंत्री बताएगा क्या? बनाएगा क्या? आपकी कंपनी में मुझे शेयर खरीदना है तो दोगे क्या? नहीं यार, यह चाय बैचेना वाला! न न रेल के डिब्बे में चाय बेचने वाला और वो प्रधानमंत्री? मेरा Bio-data देखकर के कोई मुझे पसंद नहीं करता। लेकिन यह हिंदुस्तान की जनता की ताकत है, भारत के संविधान की शक्ति है, डॉ. बाबा साहेव अंबेडकर का आशीर्वाद है, और हिंदुस्तान के कोटि-कोटि जनों की संकल्प शक्ति है कि एक गरीब मां का बेटा भी अगर समाज के लिए समर्पित भाव से संकल्प लेकर निकल पड़ता है तो जनता जनार्दन आशीर्वाद देती है।



आज मैं 16 मई एक साल के बाद, इस कोटि-कोटि जनों के सामने अपना सिर झुकाता हूं। उनको प्रणाम करता हूं, उनको नमन करता हूं। और मैं आज फिर एक बार 16 मई को, जो मैंने पिछली बार अहमदाबाद की धरती पर से कहा था, साबरमती के तट से कहा था, मैं दोबारा आज दोहराता हूं - वैसे राजनेता चीजें भुलाने में ज्यादा माहिर होते हैं। उनकी कोशिश रहती है कि यार अच्छा है लोग भूल जाए। न मैं भूलना चाहता हूं, न मैं भुलाने देना चाहता हूं। क्योंकि वही बातें हैं जो कार्य करने की प्रेरणा देती हैं। जीवन खपा देने की ताकत देती हैं। और मैंने उस समय कहा था कि देश की जनता ने मुझे जो दायित्व दिया है, मैं परिश्रम करने में कोई कमी नहीं रखूंगा। यह कहा था कि नहीं कहा था? एक दिन की भी छुट्टी ली है क्या? Vacation मना रहा हूं क्या? आराम कर रहा हूँ क्या? दिन-रात ईश्वर ने जितना समय दिया, जितनी शक्ति दी, मैंने ईमानदारी से उसका पालन किया है कि नहीं किया है? किया है कि नहीं किया है?

मैंने दूसरा कहा था कि मैं नया हूं, अनुभव नहीं है, लेकिन मैं हर बात को सीखने के लिए पूरी कोशिश करूंगा। कर रहा हूं कि नहीं कर रहा हूं? हर किसी के सीखने के प्रयास करता हूं कि नहीं करता हूं? हमारे आलोचकों से भी सीखना चाहता हूं कि नहीं चाहता हूं? दुनिया में जो अच्छा हो रहा है उससे भी सीखने की कोशिश करता हूं कि नहीं करता हूं? एक विद्यार्थी की तरह खुले मन से हर अच्छी बात का स्वागत करने का प्रयास करता हूं, और देश के लिए लागू करने का प्रयास करता हूं।

मैंने तीसरी बात कही थी और मैंने तीसरी बात यह कही थी कि अनुभव हीनता के कारण शायद मुझसे गलती हो सकती है लेकिन बद-इरादे से कोई गलत काम नहीं करूंगा।

और आज 16 मई, 2015 को हिंदुस्तान से दूर, चीन की धरती से जब मैं बात बता रहा हूं, इस संतोष के साथ बता रहा हूं कि पूरे सालभर में किसी ने हम पर यह आरोप नहीं लगाया कि हमने बद-इरादे से या निजी स्वार्थ से कोई गलत कदम उठाया हो, ऐसा कोई आरोप नहीं है। मुझे भी आज शंघाई की धरती पर मेरे सामने लघु हिंदुस्तान है। भारत का हर कौना यहां मौजूद है। शायद, यानी मंच पर आते वक्त मैंने भी नहीं सोचा था कि 16 मई, एक साल के बाद मुझे ऐसा अवसर मिलेगा, जो अवसर आज पूरा लघु भारत मेरे पास है, हर राज्य के प्रतिनिधि यहां हैं। आज मैं आपसे आशीर्वाद मांगने आया हूं, आप मुझे आशीर्वाद दें कि भारत की विकास यात्रा की ओर जो हमने कदम बढ़ाए हैं, उसे हम सफलतापूर्वक पार करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिए, जाने-अंजाने में भी... मैं यह आशीर्वाद आपसे मांग रहा हूँ क्योंकि यह मेरा conviction है - जनता जनार्दन ईश्वर का रूप होता है। और इसलिए मैं आशीर्वाद चाहता हूं। आप मुझे आशीर्वाद दें, मेरे से कोई गलती न हो जाए जिससे मेरे देश का कोई नुकसान हो जाए। दोनों हाथ ऊपर करके मुझे आर्शीवाद दीजिए। दोनों हाथ ऊपर करके मुझे आर्शीवाद दीजिए। आपका आशीर्वाद मेरी बहुत बड़ी ताकत है, बहुत बड़ी ताकत है।

भाईयों-बहनों चीन का यह मेरा आखिरी कार्यक्रम है। तीन दिन का मेरा चीन में भ्रमण हुआ, आज मैं यहां से, इसी कार्यक्रम से तुरंत मंगोलिया के लिए रवाना हो जाऊंगा। आप कल Sunday को छुट्टी मनाएंगे, मैं मंगोलिया में काम करूंगा। कोई कल्पना कर सकता है Sunday को छुट्टी के दिन मंगोलिया अपनी Parliament का एक सत्र बुलाए और भारत के एक व्यक्ति को रविवार की छुट्टी के दिन... वक्त बदल चुका है दोस्तों, वक्त बदल चुका है।

चीन के इतिहास में, मैं मानता हूं कि यह यात्रा एक नए सीमा चिन्ह के रूप में देखी जाएगी। वैश्विक संबंधों के विद्वान लोग इस यात्रा को बारीकी से देख रहे हैं। और मैं भी इसका महात्म्य पूरी तरह समझता हूं। चीन के इतिहास में पहली बार चीन के राष्ट्रपति बीजिंग के बाहर जाकर के किसी और शहर में किसी दूसरे देश के नेता का स्वागत करते हों, यह चीन के इतिहास में पहली बार है। मैं चीन के राष्ट्रपति जी का हृदय से अभिनंदन करता हूं, आभार व्यतक्त करता हूं कि उन्होंने बीजिंग में नहीं शियांग में आकर के भारत के प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया। देशवासियों, यह स्वागत नरेंद्र मोदी का नहीं था, यह स्वागत मेरे साथ आए हुए delegation का नहीं था, यह स्वागत सवा सौ करोड़ देशवासियों का था। और जो भी लोग यह जानते हैं, समझते हैं, उनको आश्चर्य होता है कि चीन में भारत के प्रति इतना मान-सम्मान का नज़रिया यह अपने आप में एक ऐसी मजबूत नींव का आरंभ है, जो आने वाले दिनों में भारत और चीन के घनिष्ठ संबंधों की मजबूत नींव का यह पर्व है।

चीन से भारत की दोस्ती, उससे चीन को क्या मिला, भारत को क्या मिला - उस तराजू से सिर्फ तोलने से काम नहीं चलेगा। चीन और भारत दुनिया की एक-तिहाई जनसंख्या है, एक-तिहाई। एक तरफ पूरा विश्व और एक तरफ हम दोनों। क्या कभी इस ताकत को हमने पहचाना? हम ही भूल गए थे, हम कहे छोड़ो यार हम तो बड़े गरीब देश है, छोड़ो यार। वक्त बदल चुका है दोस्तों। और इसलिए चीन और भारत मिलकर के न सिर्फ अपनी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, लेकिन वे दुनिया को भी अनेक संकटों से मुक्ति दिला सकते हैं।

आज से 10 साल पहले, 15 साल पहले, 20 साल पहले कोई सोच नहीं सकता था कि विश्व के मानचित्र पर कभी developing countries को कोई पूछेगा क्या? “Developing country” यह शब्द भी प्रयोग इसलिए होता था कि पिछड़े है यह बोलने से अच्छा‍ नहीं लगता था। और इसलिए शब्द प्रयोग दुनिया में आया “developing countries”, लेकिन दूसरे अर्थ में वो यही मानते थे कि गए गुज़रे लोग हैं, पिछड़े लोग हैं।

लेकिन आज विश्व के मानचित्र पर एक नई हवा, वक्त वहां भी बदला है। सारी दुनिया देख रही है कि developing countries विशेषकर के चीन और भारत मिलकर के विश्व को एक नया उमंग, नया उत्साह, नई गति देने के लिए सामर्थ्यवान है। और भारत ने ये दायित्व निभाना है और मैं देशवासियों को आपको ये विश्वास दिलाता हूं, हिंदुस्तान इसके लिए पूरी तैयारी कर रहा है। विश्व को देने के लिए हमारे पास बहुत कुछ है।

आतंकवाद जिस प्रकार से मानवता का दुश्मन बना हुआ है। आए दिन निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया जाता है, एक-दूसरे के लहू के प्यासे हुए हैं, विश्व का कोई भू-भाग ऐसा नहीं है जो आतंकवाद के कारण रक्त रंजित न हुआ हो। घावों से भरी हुई, गोलियों से छलनी हुई, विश्व जनता उसे मरहम कौन लगाएगा? इस संकट की घड़ी से जीने का विश्वास कौन देगा? वो ही दे सकता है, जिसके पूर्वजों ने वसुधैव कुटुंबकम का मंत्र दिया है। पूरा विश्व एक परिवार है, हम सब भाई हैं, भाषा भिन्न होगी, किसी की आंख का size एक होगा, किसी की नाक की size एक होगी, किसी की चमड़ी का रंग एक होगा, किसी के बाल की सजावट एक होगी लेकिन हम सब - वसुधैव कुटुंबकम। हजारों साल पहले हमारे पूर्वजों ने पूरे विश्व को एक परिवार माना था, ये शक्ति हमारी रगों में है, हमारे DNA में है। और हम विश्व को इसका परिचय कराएं, विश्व को इसकी अनुभूति कराएं, विश्व को संकट से बाहर आने के लिए, हम भी उंगली पकड़कर के साथ चलें, ये भारत से दुनिया की अपेक्षा है। और मैं कहता हूं, हिंदुस्तान इसके लिए तैयार हो रहा है।

पूरा विश्व एक और चिंता में डूबा हुआ है। सब दूर एक ही चर्चा हैं - Global warming, Climate change, प्रकृति का संकट। ये स्थिति किसी और ने पैदा नहीं की है, ये स्थिति इंसान ने पैदा की है, ये स्थिति अगर पैदा इंसान ने की है तो उससे मुक्ति भी इंसान ही दिला सकता है। और उसके लिए प्रकृति को प्रेम करना पड़ेगा। सारे विश्व में हम ही लोग हैं, जिनको सदियों से जबकि प्रकृति पर कोई संकट नहीं था, पेड़-पौधों को संकट नहीं था, हवा में कार्बन डाइऑक्साइड नहीं था, पानी गंदा नहीं था, सब कुछ अच्छा था, उसके बावजूद भी हमारे दीर्घदृष्टा ऋषि-मुनियों ने हमें कहा था, प्रकृति से प्रेम करना सिखाया था। और हम लोग बचपन में, घर में बिस्तर पर से पैर नीचे रखते थे तो मां कहती थी, कि “देखो बेटे सुबह उठकर के बिस्तर पर से पैर जमीन पर रखते हो न तो पृथ्वी माता की क्षमा मांगो।“ आप में से कोई ऐसा नही होगा, जिसकी अपनी मां ने बचपन में ये न बताया हो। आज Global warming की चर्चा करने वालों को पता है कि मेरी रगों में ये भाव है कि पृथ्वी मेरी माता है। ये पृथ्वी मेरी मां है, उसकी रक्षा मां के बेटे के नाते, जितनी मां के लिए मेरा दायित्व होता है उतना ही मेरी पृथ्वी माता के लिए होता है, ये हमें सिखाया गया है। इतना ही नहीं हमें बचपन में ये सिखाया गया सिर्फ पृथ्वी नहीं पूरा ब्रह्माण्ड तुम्हारा परिवार है, ये सिखाया गया है, पूरा ब्रह्माण्ड तुम्हारा परिवार है। बचपन में हम सबको अपनी मां सिखाती थी कि “देखो बेटे ये जो चंदा है न, ये तेरा मामा है।“ कहा था कि नहीं कहा था? “ये सूरज है, ये तेरा दादा है”, वो जरा तपता है न। पूरे ब्राहमांड को अपना परिवार, ये जिस धरती पर से कल्पना निकली हो, क्या दुनिया को Global warming से बचने के लिए, प्रकृति को प्रेम करने से उत्तम कोई मार्ग नहीं हो सकता और हम ही लोग हैं, जिन्होंने कहा, Exploitation of nature is a crime, प्रकृति का दोहन ही हमें allowed है, प्रकृति का शोषण allowed नहीं है। “Milking of nature” - इससे अधिक हम नहीं ले सकते हैं।

आज विश्व को समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए जिस महान तत्व ज्ञान के हम धनी हैं, महान सांस्कृतिक विरासत के धनी हैं, हम अपने आप को भूल गए हैं, एक बार हम अपने सामर्थ्य को जान लेंगे, हम उस दिशा में चल पड़ेंगे, शक्ति के साथ चल पडेंगे और पूरी दुनिया को हमारे में समेट करने का सामर्थ्य हमारे में पैदा होगा।



भारत आज एक नई भूमिका की ओर आगे बढ़ा रहा है और उस भूमिका को विश्व स्वीकार करने लगा है। मैं पिछले एक वर्ष में दुनिया के 50 से अधिक महत्वपूर्ण सभी राज्यों के मुखिया को मिला हूं। कभी-कभार कम काम करना, इसकी आलोचना तो मैं समझ सकता हूं। कोई सोता रहे, काम न करे, इसकी आलोचना तो मैं समझ सकता हूं। लेकिन मेरा तो दुर्भाग्य ऐसा है कि मैं ज्यादा काम करता हूं, उसकी आलोचना होती है। “मोदी इतने देशों में क्यों गए? इतने लोगों से क्यों मिले?” अगर ज्यादा काम करना, ज्यादा शक्ति लगाना, ये अगर गुनाह है तो सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए ये गुनाह करना मुझे मंजूर है। क्योंकि मेरा संकल्प है, मेरे समय का प्रत्येक पल, मेरे शरीर का प्रत्येक कण, सिर्फ और सिर्फ सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए है।

और मुझे विश्वास है, एक साल में जो बोया है उसे खाद-पानी डालने के लिए भी तो मेरे पास time चाहिए कि नहीं चाहिए? अगर ये ही काम मैं पाचंवे साल में करता तो लोग क्या कहते? “अरे यार ये तो रहने वाले नहीं है, पता नहीं चुनाव के बाद क्या होगा, कैसा होगा, कौन विश्वास करता?” दुनिया मुझ पर ज्यादा विश्वास इसलिए करती है क्योंकि पूर्ण बहुमत वाली सरकार का ये पहला वर्ष है और 30 साल से हिंदुस्तान में पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं थी, उसके कारण विश्व का भारत पर भरोसा नहीं था। जिन लोगों को लगता है कि मोदी एक साल में इतना सारा क्यों किया, मोदी ने शरीर से भले ही एक साल में किया हो लेकिन दरअसल मोदी ने 30 साल के पुराने काम को पूरा करने का प्रयास किया है।

आज देखिए, चीन में कैसा बदलाव आया है, आमतौर पर शासन व्यवस्था में protocol होते हैं, कार्यक्रम होते हैं। लेकिन कोई देश अपनी युवा पीढ़ी को दूसरे देश के नेता से जब मिलवाता है तब उसका अर्थ बदल जाता है। कोई देश अपने देश के राजनेताओं से मिलवाए, अपने देश के उद्योगकारों को मिलवाए, इसका एक मूल्य है। लेकिन कोई देश अपने देश की युवा पीढ़ी को किसी से मिलवाता है, इसका मतलब ये हुआ कि उस देश को समझ है कि भविष्य के लिए पूंजी निवेश कहां करना चाहिए और ये पूंजी निवेश dollar, pound वाला नहीं है, ये पूंजी निवेश अपनी युवा पीढ़ी को वो तैयार कर रहे हैं, भारत की तरफ देखने का नजरिया कैसा हो। और इसलिए चीन के मेरे तीन दिन के प्रवास में दो Universities में जाकर के विद्यार्थियों को मिलने का कार्यक्रम, ये अपने आप में मेरी पूरी यात्रा का सबसे अद्भुत कार्यक्रम मैं मानता हूं, जहां मुझे युवा पीढ़ी से मिलने दिया गया है। युवा पीढ़ी से मुझे बातचीत करने का अवसर मिला है और चीन की युवा पीढ़ी अगर भारत को जान ले तो फिर पूछना ही क्या है! कहीं रूकना नहीं होगा! और मैं, मेरी यात्रा में जो शियान गया, शायद यहां बहुत कम लोगों को मालूम होगा। मैं बता दूं आपको, यहां कोई समय सीमा है क्या? आपकी तो कल छुट्टी है, मुझे नहीं है।

देखिए, शियान का जो मेरा कार्यक्रम बना, उसकी बड़ी एक विशेषता है। हम लोग सब बचपन में पढ़ते थे इतिहास कि ह्येन सांग नाम का एक Philosopher आया था हिंदुस्तान, China से और भारत भ्रमण किया था और उसने बहुत कुछ लिखा था, दार्शनिक थे। मेरा जन्म जिस गांव में हुआ है, महेसाना जिला में वडनगर में पैदा हुआ था, गुजरात में, तो ह्येन सांग ने जो लिखा है, उसमें उसने मेरे गांव का वर्णन लिखा है। और वो वहां जाकर के रहे थे और हम समान्य रूप से सोचते हैं कि भगवान बुद्ध Eastern part of India में थे। बिहार और उस क्षेत्र के पास। लेकिन ह्येन सांग ने लिखा है कि भगवान बुद्ध का प्रभाव Western India में भी उतना ही था। और उन्होंने लिखा था कि वडनगर में, जो कि मेरा जन्म स्थान है, वहां पर बौद्ध भिक्षुओं की शिक्षा-दीक्षा के लिए एक बड़ा educational institute था, हजारों बालकों के रहने का hostel था, वो उसने लिखा है कि मैंने देखा वहां, वो भी काफी समय वहां रहे थे। जब मैं मुख्यमंत्री बना तो मुझे मन में विचार आया कि भई ह्येन सांग लिखकर के गए हैं तो जरा देखें तो क्या है। तो मैंने सरकार को कहा कि जरा खुदाई करो भाई। अब कोई अपने यहां खुदाई करवाए, क्यों करेगा? लेकिन मैं ऐसा ही हूं, मैंने खुदाई करवा दी और आश्चर्य है कि मेरे गांव में से वो सारी चीजें मिलीं खुदाई करने से, वो hostels मिले हैं, सारी चीजें ध्यान में आईं, ह्येन सांग ने जो लिखा है सब।

जब मैं चुनाव जीत के आया और राष्ट्रपति जी का जब मुझे टेलीफोन आया तो उन्होंने टेलीफोन के अंदर इस बात का उल्लेख किया है, उन्होंने बराबर अध्ययन करके रखा था कि मोदी आखिर चीज क्या है। और उन्होंने मुझे फोन पर मेरे जन्म स्थान का वर्णन किया। मुझे बड़ा आश्चर्य और आनंद भी हुआ। बाद में वो भारत आए तो उनकी इच्छा थी मेरे गांव जाने की लेकिन वो गुजरात आए, गांव तक तो नहीं जा पाए थे क्योंकि वो अहमदाबाद से 80-90 किलोमीटर दूर है, समय का आभाव था। लेकिन उन्होंने मुझे एक और बात बताई है। उन्होंने कहा, तुम्हें मालूम है? मैंने कहा क्या? बोले ह्येन सांग जो हिंदुस्तान में रहे, तुम्हारे गांव में रहे औऱ वहां से जब वो वापिस आए तो वे मेरे गांव में आए थे, शियान में आए थे। और वहां पर एक बहुत बड़ा बुद्ध मंदिर बना हुआ है और कल वो मुझे वहां ले गए और ले जाकर के ह्येन सांग की जो लिखी हुई किताब थी, वो मुझे दिखाई और उसमें वो उन्होंने निकालकर के रखा था कि देखो ये तुम्हारे गांव का नाम है, चीनी भाषा में लिखा हुआ था और ये तुम्हारे गांव का वर्णन है।

दो देशों के मुखिया इतनी आत्मीयता, इतनी निकटता, इतना भाईचारा, ये अपने आप में जो परंपरागत रूप से वैश्विक संबंधों की चर्चा होती है, उससे plus one है और ये plus one समझने के लिए कइय़ों को अभी समय लगेगा। और मैं मानता हूं कि मानवजाति के कल्याण के लिए चीन और भारत का एक विशेष दायित्व है, चीन और भारत ने, मानवजाति के इस दायितव को निभाने के लिए अपनों को भी सजग करना पडेगा और कंधे से कंधे मिलाकर के चलना भी पड़ेगा।

आप लोग यहां रहते हैं, आप यहां आए नहीं थे, उसके पहले चीन की विषय में आपकी धारणाएं क्या-क्या थीं? कैसा सोचते थे? पता नहीं वो क्या खाते हैं? पता नहीं वो क्या पीते होंगे? यहां आने के बाद धारणा बदली की नहीं बदली? और मैं मानता हूं कि आप लोग इस काम को एक बहुत बड़ी सेवा करके कर सकते हो। चीन के लोगों में भारत के प्रति जिज्ञासा है, उत्सुकता है। लेकिन उस उत्सकुता को, जिज्ञासा को, हकीकत में बदलने का काम न नरेंद्र मोदी कर सकता है, न यहां की Embassy कर सकती है, न यहां के ambassador कर सकते हैं। अगर वो उत्तम से उत्तम काम कर सकता है तो मेरे देश का नागरिक कर सकता है, आप लोग कर सकते हो। आप भारत का सही चित्र, हर चीनी नागरिक में कैसे पहुंचाए, उसकी जो जिज्ञासा है उसको, हमारी शक्ति का परिचय कैसे कराया जाए, हमारी सांस्कृतिक विरासत परिचय का कैसा कराया जाए।

और दुनिया को इन बातों का आश्चर्य होता है, IT के माध्यम से, विश्व में भारत की पहचान बनाने में, हमारे professional 20-22 साल के नौजवानों ने बहुत बड़ा कमाल का काम किया है। सारी दुनिया को अजूबा हुआ कि ये हिंदुस्तान के पास talent है! और अभी जब Mars mission सफलतापूर्वक पार किया, मंगलयान पर भारत के युवकों को जो सफलता मिली है उसके कारण विश्व हमारी युवा शक्ति, talent के प्रति आकर्षित हुआ है। लेकिन समय की मांग है, भारत के नागरिक चीन को अधिकतम समझें, चीन के नागरिकों को समझें और चीन के लोग अधिकतम भारत को समझें, भारत के नागरिकों को समझें। चीन के लोग जितनी संख्या में हिंदुस्तान में रहते हैं, उससे ज्यादा संख्या में भारतीय लोग चीन में रहते हैं। और इसलिए भारतीय नागरिकों की जिम्मेवारी ज्यादा है। हम दोनों को जोड़ने के लिए हजारों वर्ष की सांस्कृतिक विरासत है, हम अलग नहीं रह सकते, जितना people to people contact बढ़ेगा, उतनी हमारी ताकत बढ़ेगी। राज व्यवस्था, शासन व्यवस्था, शासक उनका एक दायरा अलग है लेकिन people to people contact का दायरा अलग है, उसकी ताकत अलग है। और मैं उस ताकत को पहचानता हूं हमें उस ताकत को जोड़ना है, उसे जानना भी है, जोड़ना भी है।



आज पूरे विश्व में tourism का बड़ी ही बोलबाला है, सामान्य व्यक्ति भी दुनिया के दो-चार देश तो ऐसे ही देखने चला जाता है। भारत में tourism के लिए बहुत संभावनाएं हैं। दुनिया में tourism का three trillion का business है, छोटा नहीं है। हम भारत के नागरिक के नाते, हम यहां जो लोग काम करते हैं, हम कोई बड़े उद्योगकार नहीं हैं, हम professionals हैं। अच्छी जिंदगी जी सकते हैं, अपने बच्चों को अच्छी पढ़ाई करा सकते हैं। लेकिन हमको हिंदुस्तान में जाकर के 200-500-1000 करोड़ का कारखाना नहीं लगा सकते हैं क्योंकि हम उसी background से यहां पहुंचे हैं। तो क्या देश की सेवा करने के रास्ते बंद हो गए क्या? नहीं हुए हैं। ज्यादा नहीं आप सिर्फ हर साल पांच चीनी नागरिकों को हिंदुस्तान देखने के लिए धक्का मारो, बस। उनको कहो “चलो भई अपना गांव दिखाता हूं, हमारे यहां शादी है, देखो कैसे होता है।“

आप कल्पना कर सकते हैं कि अकेले भारतीयों के द्वारा चीन की कितनी बड़ी मात्रा में यात्री आ सकते हैं अगर एक ह्येन सांग 1400 साल पहले आने के बाद, एशिया के अंदर चीन और भारत को जोड़ देता है तो आप तो हजारों की तादाद में हैं, लाखों लोगों को ले जा सकते हैं, क्या कमाल कर सकते हैं! भारत का tourism तो बढ़ेगा ही बढ़ेगा लेकिन चीन में भारत को समझने की एक नई दृष्टि बनेगी, नया अनुभव मिलेगा। और हम जितनी मात्रा में... क्योंकि अगर हम हमारी विरासत पर गर्व न करें, हमारी शक्ति पर गर्व न करें तो दुनिया में कोई नहीं करेगा। कोई मां मौहल्ले में अपने बेटे को दिन-रात डांटती रहे, कहीं भी खड़ा है, मां आकर डांट दे, कहीं खेल रहा है तो मां आकर के डांट दे, तो मौहल्ले के बच्चे, उस बच्चे को कभी स्वीकार करेंगे क्या? स्वीकार करेंगे क्या? जिस बच्चे को उसकी मां ही दिन-रात डांटती है, उस बच्चे को दोस्त लोग भी स्वीकार नहीं करते हैं। दुनिया भी हमें तब स्वीकार करेगी, जब हम खुद भी तो अपने देश का गौरव गान करना शुरू करेंगे।

हम ही अगर हमारे देश को कोसते रहेंगे, हम तो ऐसे हैं, हम तो वैसे हैं, हमारा तो ऐसा था, अरे छोड़ो यार, देश ऐसे नहीं चलता, दोस्तों। हर समाज की अपनी कमियां होती हैं, हर समाज की अपनी कठिनाइयां होती हैं, हर देश की अपनी मुसीबतें होती हैं लेकिन हर कोई आगे तब बढ़ते हैं, जिसके अंदर आगे बढ़ने का माजा होता है और वो माजा हमारे में है, सवा सौ करोड़ देशवासियों में है। और इसलिए मेरे भाईयों-बहनों चीन में रहते हुए, चीनी भाषा को भी सीखने का प्रयास करते ही होंगे, क्योंकि एशिया की सदी है, 21वीं सदी है, मान के चलो। इसमें कोई dispute नहीं है दुनिया में, सारी दुनिया मानती है कि 21वीं सदी, एशिया की सदी है तो फिर तो यहीं कि भाषाएं ही चलने वाली हैं, उन भाषाओं के माध्यम से भी हम अपनी भूमिका अदा कर सकते हैं, एक नई ताकत को संजो सकते हैं।

आप देखिए एक साल के अंदर चाहे World Bank हो, IMF हो, दुनिया की कोई भी रेटिंग एजेंसी हो -एक स्वर से दुनिया ने क्या कहा है? भारत का सात प्रतिशत से भी ज्यादा growth. सारी दुनिया कह रही है कि इंडिया आज विश्व का सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाला देश है। यह मैं नहीं कह रहा हूं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं कह रही हैं, जिनकी इस प्रकार के शब्दों की ताकत होती है। एक साल के भीतर-भीतर, “छोड़ो यार, डूब गए, कुछ होगा नहीं, अरे भगवान बचाए। पता नहीं पिछले जन्म में क्या पाप किए कि हम हिंदुस्तान में पैदा हुए।“ यही जो मनोभाव था उसमें से आज दुनिया कह रही है कि विश्व का सबसे तेज गति से कोई आगे बढ़ने वाला देश है, उस देश का नाम हिंदुस्तान है, मेरे देशवासियों!

आखिरकर 30 साल में China कैसे बदला? रातो-रात नहीं बदला 30 साल लगे हैं और 30 साल तक उनका विकास दर दुनिया में सबसे तेज गति से था। उस growth का परिणाम था कि चीन आज नई ऊंचाईयों पर अपने आप को ले गया। भारत को भी विकास दर को आगे बढा़ना होगा। भारत को भी आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाना होगा। भारत को Technology में आगे बढ़ना होगा। भारत को Research & Analysis में आगे बढ़ना पड़ेगा और एक बार इस नये युग की ओर हम आगे बढ़ेंगे हम दुनिया को बहुत कुछ दे पाएंगे। इस विश्वास के साथ हम कदम उठा रहे हैं।



लेकिन जैसे हमारे सपने हैं, वैसे हमारे पैर जमीन पर भी है। शुरू में लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मोदी clean India का movement लेकर क्यों चला है? स्वच्छता अभियान क्यों चला रहा है? यह प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लाल किले पर से Toilet की बात करता है? बहुतों को आश्चर्य हुआ, लेकिन मैं मानता हूं कि मुझे वहीं से शुरू करना है। और मैं इसे छोटा नहीं मानता, मैं इस काम को छोटा नहीं मानता। क्योंकि मुझे दुनिया के सामने सवा सौ करोड़ का देश, इतनी बड़ी सांस्कृतिक विरासत, इतना सामर्थ्य जिसके पास 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 से कम आयु की हो, वो देश सीना तानकर के खड़ा होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? क्यों रूकना चाहिए, क्यों झुकना चाहिए? और इसलिए मेरे भाईयों-बहनों देश को चाहे सामाजिक जीवन हो, आर्थिक जीवन हो, शैक्षणिक जीवन हो, वैश्विक संबंध हो हर प्रकार से इस देश को नई ऊंचाईयों पर ले जाने का संकल्प लेकर के हम आगे बढ़ रहे हैं। और आज चीन के इतिहास की एक अद्भुत घटना है। यह मैं नजारा देख रहा हूं, जहां भी मेरी नजर जा रही है, माथे ही माथे मुझे नजर आ रहे हैं।

आप लोगों ने इतने बड़े कार्यक्रम की रचना की है मैं आपको सौ-सौ सलाम करता हूं दोस्तो , सौ-सौ सलाम करता हूं। चीन में यह विशाल जनसागर, यह विशाल जनसागर सिर्फ चीन में ही नहीं पूरी दुनिया में संदेश देगा, यह लिखकर के रखिए - यह घटना छोटी नहीं है। यह सिर्फ एक भाषण नहीं है, यह वक्त बदल रहा है इसका सबूत है। वक्त कैसे बदल रहा है इसका जीता-जागता उदाहरण है।

मैं फिर एक बार.. और यह मेरे लिए आनंद का विषय है कि 16 मई, 2015 आपके बीच आनंद भरे पल बिताने को मिले। मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं और मुझे विश्वास है कि अगली बार आप जब आएंगे... और वैसे भी 2016 चाइना को हिंदुस्तान आने का वर्ष है। 2015 हिंदुस्तान को China आने का वर्ष है, 2016 China को हिंदुस्तान जाने का वर्ष है। आप सर्वाधिक लोगों को China से हिंदुस्तान ले आइये, हिंदुस्तान का नजारा दिखाइये। आप देखिए भारत और चीन मिलकर के मानव कल्याण के लिए नई ऊंचाईयों को पार कर सकते हैं। इसी एक विश्वास के साथ मैं फिर एक बार आप सबको नमन करता हूं, आप सबको प्रणाम करता हूं, आप सबका अभिनंदन करता हूं। और आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यंवाद करता हूं, इस समारोह की योजना के लिए और चीन के अंदर इतना बड़ा समारोह अपने आप में इतिहास की एक नई मंजिल की ओर ले जाता है।

बहुत-बहुत बधाई, बहुत-बहुत धन्यवाद।

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Today, the entire country and entire world is filled with the spirit of Bhagwan Shri Ram: PM Modi at Dhwajarohan Utsav in Ayodhya

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Text of PM’s address at the Hindustan Times Leadership Summit
December 06, 2025
India is brimming with confidence: PM
In a world of slowdown, mistrust and fragmentation, India brings growth, trust and acts as a bridge-builder: PM
Today, India is becoming the key growth engine of the global economy: PM
India's Nari Shakti is doing wonders, Our daughters are excelling in every field today: PM
Our pace is constant, Our direction is consistent, Our intent is always Nation First: PM
Every sector today is shedding the old colonial mindset and aiming for new achievements with pride: PM

आप सभी को नमस्कार।

यहां हिंदुस्तान टाइम्स समिट में देश-विदेश से अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित हैं। मैं आयोजकों और जितने साथियों ने अपने विचार रखें, आप सभी का अभिनंदन करता हूं। अभी शोभना जी ने दो बातें बताई, जिसको मैंने नोटिस किया, एक तो उन्होंने कहा कि मोदी जी पिछली बार आए थे, तो ये सुझाव दिया था। इस देश में मीडिया हाउस को काम बताने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता। लेकिन मैंने की थी, और मेरे लिए खुशी की बात है कि शोभना जी और उनकी टीम ने बड़े चाव से इस काम को किया। और देश को, जब मैं अभी प्रदर्शनी देखके आया, मैं सबसे आग्रह करूंगा कि इसको जरूर देखिए। इन फोटोग्राफर साथियों ने इस, पल को ऐसे पकड़ा है कि पल को अमर बना दिया है। दूसरी बात उन्होंने कही और वो भी जरा मैं शब्दों को जैसे मैं समझ रहा हूं, उन्होंने कहा कि आप आगे भी, एक तो ये कह सकती थी, कि आप आगे भी देश की सेवा करते रहिए, लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स ये कहे, आप आगे भी ऐसे ही सेवा करते रहिए, मैं इसके लिए भी विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं।

साथियों,

इस बार समिट की थीम है- Transforming Tomorrow. मैं समझता हूं जिस हिंदुस्तान अखबार का 101 साल का इतिहास है, जिस अखबार पर महात्मा गांधी जी, मदन मोहन मालवीय जी, घनश्यामदास बिड़ला जी, ऐसे अनगिनत महापुरूषों का आशीर्वाद रहा, वो अखबार जब Transforming Tomorrow की चर्चा करता है, तो देश को ये भरोसा मिलता है कि भारत में हो रहा परिवर्तन केवल संभावनाओं की बात नहीं है, बल्कि ये बदलते हुए जीवन, बदलती हुई सोच और बदलती हुई दिशा की सच्ची गाथा है।

साथियों,

आज हमारे संविधान के मुख्य शिल्पी, डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर जी का महापरिनिर्वाण दिवस भी है। मैं सभी भारतीयों की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

Friends,

आज हम उस मुकाम पर खड़े हैं, जब 21वीं सदी का एक चौथाई हिस्सा बीत चुका है। इन 25 सालों में दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। फाइनेंशियल क्राइसिस देखी हैं, ग्लोबल पेंडेमिक देखी हैं, टेक्नोलॉजी से जुड़े डिसरप्शन्स देखे हैं, हमने बिखरती हुई दुनिया भी देखी है, Wars भी देख रहे हैं। ये सारी स्थितियां किसी न किसी रूप में दुनिया को चैलेंज कर रही हैं। आज दुनिया अनिश्चितताओं से भरी हुई है। लेकिन अनिश्चितताओं से भरे इस दौर में हमारा भारत एक अलग ही लीग में दिख रहा है, भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है। जब दुनिया में slowdown की बात होती है, तब भारत growth की कहानी लिखता है। जब दुनिया में trust का crisis दिखता है, तब भारत trust का pillar बन रहा है। जब दुनिया fragmentation की तरफ जा रही है, तब भारत bridge-builder बन रहा है।

साथियों,

अभी कुछ दिन पहले भारत में Quarter-2 के जीडीपी फिगर्स आए हैं। Eight परसेंट से ज्यादा की ग्रोथ रेट हमारी प्रगति की नई गति का प्रतिबिंब है।

साथियों,

ये एक सिर्फ नंबर नहीं है, ये strong macro-economic signal है। ये संदेश है कि भारत आज ग्लोबल इकोनॉमी का ग्रोथ ड्राइवर बन रहा है। और हमारे ये आंकड़े तब हैं, जब ग्लोबल ग्रोथ 3 प्रतिशत के आसपास है। G-7 की इकोनमीज औसतन डेढ़ परसेंट के आसपास हैं, 1.5 परसेंट। इन परिस्थितियों में भारत high growth और low inflation का मॉडल बना हुआ है। एक समय था, जब हमारे देश में खास करके इकोनॉमिस्ट high Inflation को लेकर चिंता जताते थे। आज वही Inflation Low होने की बात करते हैं।

साथियों,

भारत की ये उपलब्धियां सामान्य बात नहीं है। ये सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, ये एक फंडामेंटल चेंज है, जो बीते दशक में भारत लेकर आया है। ये फंडामेंटल चेंज रज़ीलियन्स का है, ये चेंज समस्याओं के समाधान की प्रवृत्ति का है, ये चेंज आशंकाओं के बादलों को हटाकर, आकांक्षाओं के विस्तार का है, और इसी वजह से आज का भारत खुद भी ट्रांसफॉर्म हो रहा है, और आने वाले कल को भी ट्रांसफॉर्म कर रहा है।

साथियों,

आज जब हम यहां transforming tomorrow की चर्चा कर रहे हैं, हमें ये भी समझना होगा कि ट्रांसफॉर्मेशन का जो विश्वास पैदा हुआ है, उसका आधार वर्तमान में हो रहे कार्यों की, आज हो रहे कार्यों की एक मजबूत नींव है। आज के Reform और आज की Performance, हमारे कल के Transformation का रास्ता बना रहे हैं। मैं आपको एक उदाहरण दूंगा कि हम किस सोच के साथ काम कर रहे हैं।

साथियों,

आप भी जानते हैं कि भारत के सामर्थ्य का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय तक untapped रहा है। जब देश के इस untapped potential को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलेंगे, जब वो पूरी ऊर्जा के साथ, बिना किसी रुकावट के देश के विकास में भागीदार बनेंगे, तो देश का कायाकल्प होना तय है। आप सोचिए, हमारा पूर्वी भारत, हमारा नॉर्थ ईस्ट, हमारे गांव, हमारे टीयर टू और टीय़र थ्री सिटीज, हमारे देश की नारीशक्ति, भारत की इनोवेटिव यूथ पावर, भारत की सामुद्रिक शक्ति, ब्लू इकोनॉमी, भारत का स्पेस सेक्टर, कितना कुछ है, जिसके फुल पोटेंशियल का इस्तेमाल पहले के दशकों में हो ही नहीं पाया। अब आज भारत इन Untapped पोटेंशियल को Tap करने के विजन के साथ आगे बढ़ रहा है। आज पूर्वी भारत में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी और इंडस्ट्री पर अभूतपूर्व निवेश हो रहा है। आज हमारे गांव, हमारे छोटे शहर भी आधुनिक सुविधाओं से लैस हो रहे हैं। हमारे छोटे शहर, Startups और MSMEs के नए केंद्र बन रहे हैं। हमारे गाँवों में किसान FPO बनाकर सीधे market से जुड़ें, और कुछ तो FPO’s ग्लोबल मार्केट से जुड़ रहे हैं।

साथियों,

भारत की नारीशक्ति तो आज कमाल कर रही हैं। हमारी बेटियां आज हर फील्ड में छा रही हैं। ये ट्रांसफॉर्मेशन अब सिर्फ महिला सशक्तिकरण तक सीमित नहीं है, ये समाज की सोच और सामर्थ्य, दोनों को transform कर रहा है।

साथियों,

जब नए अवसर बनते हैं, जब रुकावटें हटती हैं, तो आसमान में उड़ने के लिए नए पंख भी लग जाते हैं। इसका एक उदाहरण भारत का स्पेस सेक्टर भी है। पहले स्पेस सेक्टर सरकारी नियंत्रण में ही था। लेकिन हमने स्पेस सेक्टर में रिफॉर्म किया, उसे प्राइवेट सेक्टर के लिए Open किया, और इसके नतीजे आज देश देख रहा है। अभी 10-11 दिन पहले मैंने हैदराबाद में Skyroot के Infinity Campus का उद्घाटन किया है। Skyroot भारत की प्राइवेट स्पेस कंपनी है। ये कंपनी हर महीने एक रॉकेट बनाने की क्षमता पर काम कर रही है। ये कंपनी, flight-ready विक्रम-वन बना रही है। सरकार ने प्लेटफॉर्म दिया, और भारत का नौजवान उस पर नया भविष्य बना रहा है, और यही तो असली ट्रांसफॉर्मेशन है।

साथियों,

भारत में आए एक और बदलाव की चर्चा मैं यहां करना ज़रूरी समझता हूं। एक समय था, जब भारत में रिफॉर्म्स, रिएक्शनरी होते थे। यानि बड़े निर्णयों के पीछे या तो कोई राजनीतिक स्वार्थ होता था या फिर किसी क्राइसिस को मैनेज करना होता था। लेकिन आज नेशनल गोल्स को देखते हुए रिफॉर्म्स होते हैं, टारगेट तय है। आप देखिए, देश के हर सेक्टर में कुछ ना कुछ बेहतर हो रहा है, हमारी गति Constant है, हमारी Direction Consistent है, और हमारा intent, Nation First का है। 2025 का तो ये पूरा साल ऐसे ही रिफॉर्म्स का साल रहा है। सबसे बड़ा रिफॉर्म नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी का था। और इन रिफॉर्म्स का असर क्या हुआ, वो सारे देश ने देखा है। इसी साल डायरेक्ट टैक्स सिस्टम में भी बहुत बड़ा रिफॉर्म हुआ है। 12 लाख रुपए तक की इनकम पर ज़ीरो टैक्स, ये एक ऐसा कदम रहा, जिसके बारे में एक दशक पहले तक सोचना भी असंभव था।

साथियों,

Reform के इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अभी तीन-चार दिन पहले ही Small Company की डेफिनीशन में बदलाव किया गया है। इससे हजारों कंपनियाँ अब आसान नियमों, तेज़ प्रक्रियाओं और बेहतर सुविधाओं के दायरे में आ गई हैं। हमने करीब 200 प्रोडक्ट कैटगरीज़ को mandatory क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर से बाहर भी कर दिया गया है।

साथियों,

आज के भारत की ये यात्रा, सिर्फ विकास की नहीं है। ये सोच में बदलाव की भी यात्रा है, ये मनोवैज्ञानिक पुनर्जागरण, साइकोलॉजिकल रेनसां की भी यात्रा है। आप भी जानते हैं, कोई भी देश बिना आत्मविश्वास के आगे नहीं बढ़ सकता। दुर्भाग्य से लंबी गुलामी ने भारत के इसी आत्मविश्वास को हिला दिया था। और इसकी वजह थी, गुलामी की मानसिकता। गुलामी की ये मानसिकता, विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में एक बहुत बड़ी रुकावट है। और इसलिए, आज का भारत गुलामी की मानसिकता से मुक्ति पाने के लिए काम कर रहा है।

साथियों,

अंग्रेज़ों को अच्छी तरह से पता था कि भारत पर लंबे समय तक राज करना है, तो उन्हें भारतीयों से उनके आत्मविश्वास को छीनना होगा, भारतीयों में हीन भावना का संचार करना होगा। और उस दौर में अंग्रेजों ने यही किया भी। इसलिए, भारतीय पारिवारिक संरचना को दकियानूसी बताया गया, भारतीय पोशाक को Unprofessional करार दिया गया, भारतीय त्योहार-संस्कृति को Irrational कहा गया, योग-आयुर्वेद को Unscientific बता दिया गया, भारतीय अविष्कारों का उपहास उड़ाया गया और ये बातें कई-कई दशकों तक लगातार दोहराई गई, पीढ़ी दर पीढ़ी ये चलता गया, वही पढ़ा, वही पढ़ाया गया। और ऐसे ही भारतीयों का आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया।

साथियों,

गुलामी की इस मानसिकता का कितना व्यापक असर हुआ है, मैं इसके कुछ उदाहरण आपको देना चाहता हूं। आज भारत, दुनिया की सबसे तेज़ी से ग्रो करने वाली मेजर इकॉनॉमी है, कोई भारत को ग्लोबल ग्रोथ इंजन बताता है, कोई, Global powerhouse कहता है, एक से बढ़कर एक बातें आज हो रही हैं।

लेकिन साथियों,

आज भारत की जो तेज़ ग्रोथ हो रही है, क्या कहीं पर आपने पढ़ा? क्या कहीं पर आपने सुना? इसको कोई, हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कहता है क्या? दुनिया की तेज इकॉनमी, तेज ग्रोथ, कोई कहता है क्या? हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कब कहा गया? जब भारत, दो-तीन परसेंट की ग्रोथ के लिए तरस गया था। आपको क्या लगता है, किसी देश की इकोनॉमिक ग्रोथ को उसमें रहने वाले लोगों की आस्था से जोड़ना, उनकी पहचान से जोड़ना, क्या ये अनायास ही हुआ होगा क्या? जी नहीं, ये गुलामी की मानसिकता का प्रतिबिंब था। एक पूरे समाज, एक पूरी परंपरा को, अन-प्रोडक्टिविटी का, गरीबी का पर्याय बना दिया गया। यानी ये सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि, भारत की धीमी विकास दर का कारण, हमारी हिंदू सभ्यता और हिंदू संस्कृति है। और हद देखिए, आज जो तथाकथित बुद्धिजीवी हर चीज में, हर बात में सांप्रदायिकता खोजते रहते हैं, उनको हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ में सांप्रदायिकता नज़र नहीं आई। ये टर्म, उनके दौर में किताबों का, रिसर्च पेपर्स का हिस्सा बना दिया गया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने भारत में मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम को कैसे तबाह कर दिया, और हम इसको कैसे रिवाइव कर रहे हैं, मैं इसके भी कुछ उदाहरण दूंगा। भारत गुलामी के कालखंड में भी अस्त्र-शस्त्र का एक बड़ा निर्माता था। हमारे यहां ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज़ का एक सशक्त नेटवर्क था। भारत से हथियार निर्यात होते थे। विश्व युद्धों में भी भारत में बने हथियारों का बोल-बाला था। लेकिन आज़ादी के बाद, हमारा डिफेंस मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम तबाह कर दिया गया। गुलामी की मानसिकता ऐसी हावी हुई कि सरकार में बैठे लोग भारत में बने हथियारों को कमजोर आंकने लगे, और इस मानसिकता ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े डिफेंस importers के रूप में से एक बना दिया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री के साथ भी यही किया। भारत सदियों तक शिप बिल्डिंग का एक बड़ा सेंटर था। यहां तक कि 5-6 दशक पहले तक, यानी 50-60 साल पहले, भारत का फोर्टी परसेंट ट्रेड, भारतीय जहाजों पर होता था। लेकिन गुलामी की मानसिकता ने विदेशी जहाज़ों को प्राथमिकता देनी शुरु की। नतीजा सबके सामने है, जो देश कभी समुद्री ताकत था, वो अपने Ninety five परसेंट व्यापार के लिए विदेशी जहाज़ों पर निर्भर हो गया है। और इस वजह से आज भारत हर साल करीब 75 बिलियन डॉलर, यानी लगभग 6 लाख करोड़ रुपए विदेशी शिपिंग कंपनियों को दे रहा है।

साथियों,

शिप बिल्डिंग हो, डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग हो, आज हर सेक्टर में गुलामी की मानसिकता को पीछे छोड़कर नए गौरव को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने एक बहुत बड़ा नुकसान, भारत में गवर्नेंस की अप्रोच को भी किया है। लंबे समय तक सरकारी सिस्टम का अपने नागरिकों पर अविश्वास रहा। आपको याद होगा, पहले अपने ही डॉक्यूमेंट्स को किसी सरकारी अधिकारी से अटेस्ट कराना पड़ता था। जब तक वो ठप्पा नहीं मारता है, सब झूठ माना जाता था। आपका परिश्रम किया हुआ सर्टिफिकेट। हमने ये अविश्वास का भाव तोड़ा और सेल्फ एटेस्टेशन को ही पर्याप्त माना। मेरे देश का नागरिक कहता है कि भई ये मैं कह रहा हूं, मैं उस पर भरोसा करता हूं।

साथियों,

हमारे देश में ऐसे-ऐसे प्रावधान चल रहे थे, जहां ज़रा-जरा सी गलतियों को भी गंभीर अपराध माना जाता था। हम जन-विश्वास कानून लेकर आए, और ऐसे सैकड़ों प्रावधानों को डी-क्रिमिनलाइज किया है।

साथियों,

पहले बैंक से हजार रुपए का भी लोन लेना होता था, तो बैंक गारंटी मांगता था, क्योंकि अविश्वास बहुत अधिक था। हमने मुद्रा योजना से अविश्वास के इस कुचक्र को तोड़ा। इसके तहत अभी तक 37 lakh crore, 37 लाख करोड़ रुपए की गारंटी फ्री लोन हम दे चुके हैं देशवासियों को। इस पैसे से, उन परिवारों के नौजवानों को भी आंत्रप्रन्योर बनने का विश्वास मिला है। आज रेहड़ी-पटरी वालों को भी, ठेले वाले को भी बिना गारंटी बैंक से पैसा दिया जा रहा है।

साथियों,

हमारे देश में हमेशा से ये माना गया कि सरकार को अगर कुछ दे दिया, तो फिर वहां तो वन वे ट्रैफिक है, एक बार दिया तो दिया, फिर वापस नहीं आता है, गया, गया, यही सबका अनुभव है। लेकिन जब सरकार और जनता के बीच विश्वास मजबूत होता है, तो काम कैसे होता है? अगर कल अच्छी करनी है ना, तो मन आज अच्छा करना पड़ता है। अगर मन अच्छा है तो कल भी अच्छा होता है। और इसलिए हम एक और अभियान लेकर आए, आपको सुनकर के ताज्जुब होगा और अभी अखबारों में उसकी, अखबारों वालों की नजर नहीं गई है उस पर, मुझे पता नहीं जाएगी की नहीं जाएगी, आज के बाद हो सकता है चली जाए।

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज देश के बैंकों में, हमारे ही देश के नागरिकों का 78 thousand crore रुपया, 78 हजार करोड़ रुपए Unclaimed पड़ा है बैंको में, पता नहीं कौन है, किसका है, कहां है। इस पैसे को कोई पूछने वाला नहीं है। इसी तरह इन्श्योरेंश कंपनियों के पास करीब 14 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। म्यूचुअल फंड कंपनियों के पास करीब 3 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। 9 हजार करोड़ रुपए डिविडेंड का पड़ा है। और ये सब Unclaimed पड़ा हुआ है, कोई मालिक नहीं उसका। ये पैसा, गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों का है, और इसलिए, जिसके हैं वो तो भूल चुका है। हमारी सरकार अब उनको ढूंढ रही है देशभर में, अरे भई बताओ, तुम्हारा तो पैसा नहीं था, तुम्हारे मां बाप का तो नहीं था, कोई छोड़कर तो नहीं चला गया, हम जा रहे हैं। हमारी सरकार उसके हकदार तक पहुंचने में जुटी है। और इसके लिए सरकार ने स्पेशल कैंप लगाना शुरू किया है, लोगों को समझा रहे हैं, कि भई देखिए कोई है तो अता पता। आपके पैसे कहीं हैं क्या, गए हैं क्या? अब तक करीब 500 districts में हम ऐसे कैंप लगाकर हजारों करोड़ रुपए असली हकदारों को दे चुके हैं जी। पैसे पड़े थे, कोई पूछने वाला नहीं था, लेकिन ये मोदी है, ढूंढ रहा है, अरे यार तेरा है ले जा।

साथियों,

ये सिर्फ asset की वापसी का मामला नहीं है, ये विश्वास का मामला है। ये जनता के विश्वास को निरंतर हासिल करने की प्रतिबद्धता है और जनता का विश्वास, यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। अगर गुलामी की मानसिकता होती तो सरकारी मानसी साहबी होता और ऐसे अभियान कभी नहीं चलते हैं।

साथियों,

हमें अपने देश को पूरी तरह से, हर क्षेत्र में गुलामी की मानसिकता से पूर्ण रूप से मुक्त करना है। अभी कुछ दिन पहले मैंने देश से एक अपील की है। मैं आने वाले 10 साल का एक टाइम-फ्रेम लेकर, देशवासियों को मेरे साथ, मेरी बातों को ये कुछ करने के लिए प्यार से आग्रह कर रहा हूं, हाथ जोड़कर विनती कर रहा हूं। 140 करोड़ देशवसियों की मदद के बिना ये मैं कर नहीं पाऊंगा, और इसलिए मैं देशवासियों से बार-बार हाथ जोड़कर कह रहा हूं, और 10 साल के इस टाइम फ्रैम में मैं क्या मांग रहा हूं? मैकाले की जिस नीति ने भारत में मानसिक गुलामी के बीज बोए थे, उसको 2035 में 200 साल पूरे हो रहे हैं, Two hundred year हो रहे हैं। यानी 10 साल बाकी हैं। और इसलिए, इन्हीं दस वर्षों में हम सभी को मिलकर के, अपने देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहना चाहिए।

साथियों,

मैं अक्सर कहता हूं, हम लीक पकड़कर चलने वाले लोग नहीं हैं। बेहतर कल के लिए, हमें अपनी लकीर बड़ी करनी ही होगी। हमें देश की भविष्य की आवश्यकताओं को समझते हुए, वर्तमान में उसके हल तलाशने होंगे। आजकल आप देखते हैं कि मैं मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान पर लगातार चर्चा करता हूं। शोभना जी ने भी अपने भाषण में उसका उल्लेख किया। अगर ऐसे अभियान 4-5 दशक पहले शुरू हो गए होते, तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती। लेकिन तब जो सरकारें थीं उनकी प्राथमिकताएं कुछ और थीं। आपको वो सेमीकंडक्टर वाला किस्सा भी पता ही है, करीब 50-60 साल पहले, 5-6 दशक पहले एक कंपनी, भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने के लिए आई थी, लेकिन यहां उसको तवज्जो नहीं दी गई, और देश सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में इतना पिछड़ गया।

साथियों,

यही हाल एनर्जी सेक्टर की भी है। आज भारत हर साल करीब-करीब 125 लाख करोड़ रुपए के पेट्रोल-डीजल-गैस का इंपोर्ट करता है, 125 लाख करोड़ रुपया। हमारे देश में सूर्य भगवान की इतनी बड़ी कृपा है, लेकिन फिर भी 2014 तक भारत में सोलर एनर्जी जनरेशन कपैसिटी सिर्फ 3 गीगावॉट थी, 3 गीगावॉट थी। 2014 तक की मैं बात कर रहा हूं, जब तक की आपने मुझे यहां लाकर के बिठाया नहीं। 3 गीगावॉट, पिछले 10 वर्षों में अब ये बढ़कर 130 गीगावॉट के आसपास पहुंच चुकी है। और इसमें भी भारत ने twenty two गीगावॉट कैपेसिटी, सिर्फ और सिर्फ rooftop solar से ही जोड़ी है। 22 गीगावाट एनर्जी रूफटॉप सोलर से।

साथियों,

पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना ने, एनर्जी सिक्योरिटी के इस अभियान में देश के लोगों को सीधी भागीदारी करने का मौका दे दिया है। मैं काशी का सांसद हूं, प्रधानमंत्री के नाते जो काम है, लेकिन सांसद के नाते भी कुछ काम करने होते हैं। मैं जरा काशी के सांसद के नाते आपको कुछ बताना चाहता हूं। और आपके हिंदी अखबार की तो ताकत है, तो उसको तो जरूर काम आएगा। काशी में 26 हजार से ज्यादा घरों में पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के सोलर प्लांट लगे हैं। इससे हर रोज, डेली तीन लाख यूनिट से अधिक बिजली पैदा हो रही है, और लोगों के करीब पांच करोड़ रुपए हर महीने बच रहे हैं। यानी साल भर के साठ करोड़ रुपये।

साथियों,

इतनी सोलर पावर बनने से, हर साल करीब नब्बे हज़ार, ninety thousand मीट्रिक टन कार्बन एमिशन कम हो रहा है। इतने कार्बन एमिशन को खपाने के लिए, हमें चालीस लाख से ज्यादा पेड़ लगाने पड़ते। और मैं फिर कहूंगा, ये जो मैंने आंकडे दिए हैं ना, ये सिर्फ काशी के हैं, बनारस के हैं, मैं देश की बात नहीं बता रहा हूं आपको। आप कल्पना कर सकते हैं कि, पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना, ये देश को कितना बड़ा फायदा हो रहा है। आज की एक योजना, भविष्य को Transform करने की कितनी ताकत रखती है, ये उसका Example है।

वैसे साथियों,

अभी आपने मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग के भी आंकड़े देखे होंगे। 2014 से पहले तक हम अपनी ज़रूरत के 75 परसेंट मोबाइल फोन इंपोर्ट करते थे, 75 परसेंट। और अब, भारत का मोबाइल फोन इंपोर्ट लगभग ज़ीरो हो गया है। अब हम बहुत बड़े मोबाइल फोन एक्सपोर्टर बन रहे हैं। 2014 के बाद हमने एक reform किया, देश ने Perform किया और उसके Transformative नतीजे आज दुनिया देख रही है।

साथियों,

Transforming tomorrow की ये यात्रा, ऐसी ही अनेक योजनाओं, अनेक नीतियों, अनेक निर्णयों, जनआकांक्षाओं और जनभागीदारी की यात्रा है। ये निरंतरता की यात्रा है। ये सिर्फ एक समिट की चर्चा तक सीमित नहीं है, भारत के लिए तो ये राष्ट्रीय संकल्प है। इस संकल्प में सबका साथ जरूरी है, सबका प्रयास जरूरी है। सामूहिक प्रयास हमें परिवर्तन की इस ऊंचाई को छूने के लिए अवसर देंगे ही देंगे।

साथियों,

एक बार फिर, मैं शोभना जी का, हिन्दुस्तान टाइम्स का बहुत आभारी हूं, कि आपने मुझे अवसर दिया आपके बीच आने का और जो बातें कभी-कभी बताई उसको आपने किया और मैं तो मानता हूं शायद देश के फोटोग्राफरों के लिए एक नई ताकत बनेगा ये। इसी प्रकार से अनेक नए कार्यक्रम भी आप आगे के लिए सोच सकते हैं। मेरी मदद लगे तो जरूर मुझे बताना, आईडिया देने का मैं कोई रॉयल्टी नहीं लेता हूं। मुफ्त का कारोबार है और मारवाड़ी परिवार है, तो मौका छोड़ेगा ही नहीं। बहुत-बहुत धन्यवाद आप सबका, नमस्कार।