Knowledge and education are not bound to books: PM Modi
Balanced development cannot be pursued without Innovation, says PM Modi
We should we not only educate students in the classrooms of colleges and universities, but also sync them with the expectations of our country: PM Modi
PM Modi says to improve the infrastructure of education, the RISE i.e. Revitalisation of Infrastructure and Systems in Education program has been started
We must realize that in today's world, no country, society or individual can sustain in an isolated state. It is crucial that we develop a vision of 'Global citizen and Global village': PM

मंच पर विराजमान इस कॉन्‍फ्रेंस के चेयरमैन श्रीराम राम बहादुर राय जी, मंत्रिपरिषद के मेरे सहयोगी श्री प्रकाश जावड़ेकर जी, डॉक्‍टर सत्‍यपाल सिंह जी, यूजीसी चेयरमैन डॉ. धीरेंद्र प्रताप सिंह जी, Researcher for Resurgence foundation के चेयरमैन डॉ. सचिदानंद जोशी, इग्‍नू के कुलपति डॉ. नागेश्‍वर राव, संगोष्‍ठी में केंद्रीय, राज्‍य और निजी विश्‍वविद्यालय से पधारे Chancellors, Vice Chancellors और Directors शिक्षा जगत के सभी अन्‍य महानुभाव, भाईयों और बहनों।

आज आप सभी Academic Leadership on Education for Resurgence के विषय पर एक सार्थक चर्चा करने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं। सबसे पहले मैं आप सबको इस महत्‍वपूर्ण विषयों को उठाने के लिए बधाई देता हूं। भविष्‍य के भारत के लिए नये भारत के लिए ऐेसे विषयों का मंथन बहुत ही आवश्‍यक भी है और समय की मांग भी है। साथियों, जब मैं Resurgence यानि पुनरूत्‍थान जैसे शब्‍द के बारे में सोचता हूं, तो मन-मस्तिष्‍क में पहले छवि स्‍वामी विवेकानंद जी की उभरकर आती है। स्‍वामी विवेकानंद ने ही दशकों पहले भारत के दर्शन की शक्ति का Resurgence दुनिया के सामने प्रस्‍तुत किया था।

यह उस समय की बात है जब दुनिया एक प्रकार से हमारे देश की क्षमताएं, हमारा सामर्थ्‍य, हमारा योगदान, हमारा पुरूषार्थ, हमारा पराक्रम सब कुछ भूल चुके थे, और भुला दिया गया था। स्‍वामी विवेकानंद जी की बात से ही मैं अपनी बात शुरू करना चाहता हूं। उन्‍होंने शिक्षा के बारे में एक बहुत महत्‍वपूर्ण बात कही थी, जो आज भी मैं समझता हूं हमारी आज की समिट का guiding principle हो सकता है। हमें ऐसी सर्वसम्‍पन्‍न शिक्षा चाहिए विवेकानंद जी ने कहा था हमें ऐसी सर्वसम्‍पन्‍न शिक्षा चाहिए जो हमें मनुष्‍य बना सके।

शिक्षा सिर्फ उस जानकारी का नाम नहीं है, जो आपके मस्तिष्‍क में भर दी गई है। हमें तो भावों या विचारों को इस प्रकार आत्‍मसात करना चाहिए, जिससे जीवन निर्माण हो, मानवता का प्रसार हो और चरित्र गठन हो। ये विवेकानंद जी की बातें हैं। और अगर आज मैं Resurgence की बात करूं तो मैं नहीं मानता हूं कि इसके बाहर कोई ज्‍यादा लेकिन फिर भी जब समय बदलता है तो कुछ चीजें जुड़ भी जाती है, लेकिन उसी मूल विचार के प्रकाश में ही जुड़ती है और यह तीन तत्‍व आज की शिक्षा के तीन स्‍तंभ है - जीवन निर्माण, मानवता और चरित्र गठन।

स्‍वामी जी के इन्‍हीं विचारों से प्रेरित हो करके मैं आज इसमें एक और स्‍तंभ जोड़ने का साहस करता हूं। क्‍योंकि समय की मांग है.. और वो है - नवोन्‍मेष, नव उनमेष Innovation। जब innovation अटक जाता है तो जिंदगी ठहर जाती है। कोई युग, कोई काल, कोई व्‍यवस्‍था ऐसी नहीं हो सकती है कि जो innovation के बिना चल सकती है। जीवंतता का भी अगर एक महत्‍वपूर्ण लक्ष्‍य है तो वो innovation है। और अगर innovation नहीं है तो जिंदगी को डोहना होता है। व्‍यवस्‍थाएं, विचार, जिंदगी परंपराएं ये सब बोझ बन जाती है। अगर हम इन चारों पहलुओं को लेकर अपनी उच्‍च शिक्षा के पुनरूत्‍थान के बारे में सोचेंगे, तो हमें एक सही दिशा दिखाई देती है।

शिक्षा की ऐसी दिशा जो व्‍यक्ति के जीवन से ले करके समाज की जरूरतों और राष्‍ट्र के निर्माण तक में काम आए। इतना ही नहीं शिक्षा की इस दिशा को गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने उसी कालखंड में अलग तरीके से समझाया था। तभी तो उन्‍होंने कहा था कि हर व्‍यक्ति का जन्‍म किसी न किसी लक्ष्‍य के साथ होता है। और उस लक्ष्‍य को पाने में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान होता है। मैं इसी बात को आगे बढ़ाते हुए भी कहूंगा कि जैसे व्‍यक्ति के जीवन में है हर संस्‍था का जन्‍म भी किसी ना किसी निर्धारित लक्ष्‍य के साथ होना चाहिए और फिर इसके लिए साधन और साध्‍य में एक सूत्रता भी होनी चाहिए।

साथियों, जब बात विद्या, विद्यालय, विद्यार्थी की हो रही हो तो मैं आपका ध्‍यान अपने देश की पुरातन गौरवशाली परंपरा की तरफ भी ले जाना चाहता हूं। हमारी संस्‍कृति का आधार स्‍तंभ वेद है। आप सभी इस बात को जानते है कि वेद संस्‍कृत भाषा के विद् शब्‍द से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ ज्ञानग्रंथ है। इसी विद् से विद्या शब्‍द विकसित हुआ है, यानि ज्ञान के बिना हमारे समाज, हमारे देश और तो और हमारे जीवन के आधार की भी कल्‍पना कतई नहीं की जा सकती है। साथियों, ज्ञान और शिक्षा सिर्फ किताबें नहीं हो सकती है। शिक्षा का मकसद व्‍यक्ति के हर आयाम को संतुलित विकास करने का हो, और आप सभी जानते है कि संतुलित विकास इसके लिए निरंतर innovation अनिवार्य होता है।

हमारे प्राचीन तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्‍वविद्यालयों में ज्ञान के साथ innovation पर भी जोर दिया जाता था। तभी तो ऐसे विद्या के मंदिरों से आचार्य चाणक्‍य, आर्य भट्ट, पाणिनी, धनवं‍तरि, चरक, सुश्रुत अनगिनत विद्यान उससे निकले थे। अगर इन्‍होंने सिर्फ किताबी ज्ञान को पर्याप्‍त मान लिया होता तो क्‍या दुनिया को राजनीतिशास्‍त्र, अर्थशास्‍त्र, खगोलविज्ञान, शल्‍य चिकित्‍सा, गणित और व्‍याकरण के नियम मिल पाते क्‍या? मैं नहीं मानता वो शायद मिलते। और इसलिए जब "Education for Resurgence" की बात होती है, तो सोच में, विचारों में, नवीनता के बिना काम नहीं चल सकता।

भाईयों-बहनों, शिक्षा और शिक्षा में किताबी ज्ञान को लेकर हमारे देश के आधुनिक इतिहास के तीन महापुरूषों के विचार एक जैसे थे। बाबा साहब भीमराव अम्‍बेडकर, दीनदयाल उपाध्‍याय और डॉ. राममनोहर लोहिया। इन्‍होंने शिक्षा में चरित्र और समाजहित का प्रतिबिम्‍ब देखा और बाबा साहब अम्‍बेडकर ने कहा - चरित्रहीन व विनयहीन सुशिक्षित व्‍यक्ति पशु से अधिक खतरनाक होता है। यदि सुशिक्षित व्‍यक्ति की शिक्षा गरीब जनता के हित विरोधी होगी, तो व्‍यक्ति समाज के लिए अभिशाप बन जाता है।

शिक्षा से अधिक महत्‍व चरित्र का है। यह शब्‍द डॉ. बाबा साहब अम्‍बेडकर के हैं। वहीं, पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जी ने भी शिक्षा के सामाजिक दायित्‍वों को जोड़ करके कहा था कि समाज को हर व्‍यक्ति को ढंग से शिक्षित करना होगा, तभी वह समाज के प्रति दायित्‍वों को पूरा करने में सक्षम होगा। यहां उन्‍होंने शिक्षा संस्‍थान तक सीमित नहीं रखा विचार, समाज ने ही समाज को शिक्षित करना, एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को संस्‍कार संक्रमण करती है उस विचार को आधुनिक स्‍वरूप में पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जी ने देखा था। देश के मनीषी डॉ. राममनोहर लोहिया भी कहते थे कि - शिक्षा शोध परक रिसर्च बेस्‍ड होनी चाहिए। उन्‍होंने कहा था कि शिक्षा व्‍यवस्‍था का स्‍वरूप ऐसा हो जो व्‍यक्ति, परिवार, समाज और राष्‍ट्र को एक सूत्र में बांध सके।

हम उस समाज की कल्‍पना नहीं कर सकते हैं कि एक सर्कल यानि व्‍यक्ति, दूसरा सर्कल यानि परिवार, तीसरा सर्कल यानि समाज, चौथा सर्कल यानि राज्‍य, पांचवा सर्कल यानि देश.. यह कल्‍पना हम नहीं कर सकते। हम तो व्‍यक्ति से चलते-चलते परिवार, परिवार से चलते-चलते एक ही धारा में एक ही सूत्र में विस्‍तार होता चले यह कल्‍पना लेकर चलने वाले लोग हैं, हम ऐसे सर्कल की कल्‍पना नहीं कर सकते कि एक सर्कल दूसरे से जुड़ा हुआ नहीं है। दोनों सर्कल अलग है तो समाज का वैचारिक विकास, विस्‍तार और संस्‍कार की प्रवृत्ति असंभव होगी। देश के इन तीन महान चिंतकों के विचारों से भी स्‍पष्‍ट है कि शिक्षा का अगर कोई लक्ष्‍य न हो तो वह खूंटी पर टंगे हुए सर्टिफिकेट से ज्‍यादा और कुछ नहीं होता है।

साथियों, हमें एक और वास्‍तविकता को स्‍वीकार करना होगा कि आज दुनिया में कोई भी देश समाज या व्‍यक्ति एकाकी isolate हो करके नहीं रह सकता। हमें Global Citizen और Global village के दर्शन पर सोचना ही होगा। और यह दर्शन तो हमारे संस्‍कारों में प्राचीनकाल से मौजूद है। जब हम वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वे भवन्तु सुखिनः की बात करते हैं तो हमारे दर्शन का हिस्‍सा यही विश्‍व परिवार Global Village का होता है। इसी विजन पर चलते हुए आज सरकार शिक्षा को लक्ष्‍य देने, उसे समाज से जोड़ने और शिक्षा की समस्‍याओं का हल ढूंढने की दिशा में लगातार प्रयास कर रही है, innovation भी कर रही है।

साथियों, आज हमारे देश के करीब-करीब 900 विश्‍वविद्यालय और उच्‍च शिक्षण संस्‍थान साथ ही देश में लगभग 40 हजार कॉलेज हैं। आप सोच सकते हैं कि कितनी बड़ी शक्ति की बात हमारे जिम्‍मे है। यदि हम अपने गांवों और शहरों की समस्‍याओं को चुनौतियों से निपटने में इन शिक्षा संस्‍थानों का ज्‍यादा से ज्‍यादा सहयोग लें, तो स्थितियां कितनी भिन्‍न हो जाएगी। और मेरे कहने का मतलब है कि हम “Interlink Institutions to Innovate and Incubate” के दर्शन पर काम करे। एक ऐसी interlinking जो समाज और संस्‍थान को जोड़े और संस्‍थानों को भी आपस में जोड़े और सब मिला करके राष्‍ट्र के सपनों के साथ जुड़े। कल्‍पना कीजिए कि 20-22 वर्ष का छात्र अपनी डिग्री के लिए पढ़ाई करते समय जब समाज की जरूरत को ध्‍यान में रखते हुए अपना Thought process develop करेगा तो कितना फर्क पड़ सकता है। जो वो अपने प्रोजेक्‍ट्स पर काम करते हुए सोच भी रखेगा कि इसका इस्‍तेमाल समाज के काम आएगा, तो परिणाम निश्चित ही बहुत ही सकारात्‍मक होंगे।

साथियों, उच्‍च शिक्षा में हमें उच्‍च विचार, उच्‍च आचार, उच्‍च संस्‍कार और उच्‍च व्‍यवहार के साथ ही समाज की समस्‍याओं का उच्‍च समाधान भी उपलब्‍ध कराना है। मेरा आग्रह है कि विद्यार्थियों को college university के classroom में तो ध्‍यान दे ही, लेकिन उन्‍हें देश की आशाओं-आकांक्षाओं के साथ भी जोड़ना होगा। इसी मार्ग पर चलते हुए केंद्र सरकार की भी यही कोशिश है कि हम हर स्‍तर पर देश की आवश्‍यकताओं में शिक्षण संस्‍थानों को भागीदार बनाए। इसी विजन के साथ हमने जैसा अभी जावड़ेकर जी ने उल्‍लेख किया अटल टिंकर लैब की शुरूआत की है। इसमें स्‍कूली बच्‍चों में innovation की प्रवृत्ति बढ़ाने पर फोकस किया जा रहा है।

अब तक देश के 2000 से ज्‍यादा स्‍कूलों में ऐसी Atal Tinkering Lab की शुरूआत हो चुकी है और अगले कुछ महीनों में हम इसकी संख्‍या को बढ़ाकर 5000 तक करने जा रहे हैं। और मैंने बीच में एक बार टेक्‍नोलॉजी के माध्‍यम से video conferencing के माध्‍यम से देशभर के अलग-अलग कौने में Atal Tinkering Lab में काम करने वाले बच्‍चों के साथ बात की थी। 8वीं, 9वीं, 10वीं कक्षा के बच्‍चें थे। यानि मुझे उस कार्यक्रम को छोड़ने का मन नहीं करता था। मेरे उस कार्यक्रम के बाद ढ़ेर सारे कार्यक्रमों की पहुंच लगी हुई थी। लेकिन मैं उन बच्‍चों को सुनना, वो एक-एक प्रयोग दिखाते थे कि हमने लैब में ऐसा किया, हमने लैब में वैसा किया, यानि मैं चकित हो जा रहा था। यानि हमारे बच्‍चों में कितना potential है उनको थोड़ा सा अवसर दिया जाए, उनकी भीतर की शक्तियों को उभरने दिया जाए, कल्‍पना बाहर का परिणाम देते हैं। थोपा न जाए, समस्‍या वहीं पैदा होती है।

हमारी सरकार शिक्षा जगत में निवेश पर भी ध्‍यान दे रही है। जैसे शिक्षा का infrastructure बेहतर बनाने के लिए RISE यानि Revitalising of Infrastructure and Systems in Education इस कार्यक्रम को हमने व्‍यापक रूप से शुरू किया है। इसके जरिए 2022 जब भारत की आजादी के 75 साल होंगे। 2022 तक एक लाख करोड़ रुपये खर्च करने का हमारा इरादा है। सरकार ने HEFA यनि Higher Education Funding Agency की स्‍थापना भी की। जो उच्‍च शिक्षा संस्‍थान के गठन में आर्थिक सहायता मुहैया कराएगी। सरकार ने राष्‍ट्रीय उच्‍चतर शिक्षा अभियान का बजट भी तीन गुना बढ़ाने का निर्णय किया है। अभी प्रकाश जी आंकड़े दे रहे थे लेकिन मुझे और आगे जाना है। यह राज्‍यों में उच्‍च शिक्षा को मजबूत करने में प्रभावी कदम साबित होंगे।

भाइयों और बहनों, पिछले चार सालों में देश में बहुत सारे नये IIT, नये IIM, नये IISER और नये IIIT, नये केंद्रीय विश्‍वविद्यालय स्‍वीकृत किए हैं। सरकार एक नीति भी लाई है, जिसके अंतर्गत देश में 20 Institutes of Eminence setup करने की कोशिश की जा रही है। इसमें 10 public sector के और 10 private sector. इस नीति का मकसद देश के शिक्षा संस्‍थानों को दुनिया के सिद्ध संस्‍थानों की लिस्‍ट में शामिल करना है। आज हम विश्‍वस्‍तर की top 500 में बहुत कम मात्रा में नजर आते हैं। यह स्थिति हमें बदलनी है और इसके लिए सरकार public sector के प्रत्‍येक Institute पर लगभग एक हजार करोड़ रुपया अगले कुछ वर्षों में खर्च करेगी। आप इस बात से भी भलिभांति परिचित होंगे कि Global initiative for academic network यानि GYAN योजना के तहत हम भारतीय संस्‍थाओं में पढ़ाने के लिए दुनियाभर के सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षकों को आमंत्रित कर रहे हैं।

साथियों हमारी सरकार शिक्षण संस्‍थानों में विचारों के खुले प्रवाह की पक्षधर है। हमने IIM जैसे संस्‍थानों को स्‍वायत्‍तता देकर इसकी शुरूआत कर दी है। मैं हैरान हूं देश में इस बात की चर्चा नहीं हो रही है। विद्वानजन भी पता नहीं चुप बैठे हैं। IIM जो reform किए गए शायद हिन्‍दुस्‍तान में जो reform की बड़ी-बड़ी वकालत करने वाले लोग थे, जो पिछले 20-25 साल से लिखते रहे होंगे, शायद उन्‍होंने भी सोचा नहीं होगा इतनी ताकत के साथ हमने.... लेकिन हो जाने के बाद कहीं अच्‍छा कहेंगे तो मोदी के खाते में चला जाएगा तो मुसीबत होगी लिखना बंद कर देंगे। और इसकी वजह से जो बदलाव आया है IIM को अपने course, अपना curriculum, teacher appointment यहां तक कि board member appointment, expansion खुद उन्‍हीं को तय करना है। आप कर लीजिए, मैंने यही कहा है, मुझे करके दिखाइये, सरकार कहीं नहीं आएगी, कोई बाबू आ करके नहीं बैठेगा। अब यह उनका जिम्‍मा है वो करके दिखाए।

भारत में उच्‍च शिक्षा से जुड़ा यह एक मैं समझता हूं एक अभूतपूर्व प्रयोग है और यह फैसला आगे हमें और institute की ओर ले जाना है। हाल ही में UGC ने Graded Economic Regulation भी जारी की है, जिससे युनिवर्सिटियों और कॉलेजों को autonomy दी गई। इसका उद्देश्‍य शिक्षा के स्‍तर को सुधारना तो है ही इससे उन्‍हें सर्वश्रेष्‍ठ बनाने में भी मदद मिलेगी। इस रेगुलेशन की वजह से देश में 60 Higher Education institute और Universities को Grade autonomy मिल चुकी है। इसमें से कई राज्‍यों की युनिवर्सिटिया भी इसका हिस्‍सा है।

सरकार की तरफ से किये जा रहे इन प्रयासों के बीच आप सभी का भी यह दायित्‍व बनता है कि सकारात्‍मक माहौल का जितना ज्‍यादा लाभ उठा सकते हैं, उठाए और उसमें जो अच्‍छाइयां हैं जो हमारे उत्‍तम-उत्‍तम सपनें थे उन सपनों का मेल बिठा करके इस समय को हम गवाने जाने न दें, इसको खोने न दे। आप में से ज्‍यादा लोगों का Tenure चार-पांच साल का होता है।

इन वर्षों के दौरान कार्य करते हुए आपको भी अपने लिए कुछ लक्ष्‍य निर्धारित करने चाहिए। आपको पहले दिन से यह सोचना होगा कि जब आपको कार्यकाल समाप्‍त होगा, तब आप क्‍या Legacy छोड़कर के जाएंगे। अनेक ऐसे विषय हैं जिन पर ध्‍यान देने की आवश्‍यकता है, जो उच्‍च शिक्षा के स्‍तर में resurgence के लिए बहुत आवश्‍यक है। और जैसे कि आप शिक्षण की नई पद्धत्तियों को विकसित करने में सहयोग दे सकते हैं। आज हर दिन एक नई टेक्‍नोलॉजी आती है। हम समय के साथ रहते हुए नई टेक्‍नोलॉजी का प्रयोग करके शिक्षण की व्‍यवस्‍था को और मजबूत कैसे कर सकते हैं। टीचर की ट्रेनिंग जो हमेशा से एक उपेक्षित क्षेत्र रहा है, उसे कैसे सुधार सकते हैं।

हम इस बात से सहमत होंगे कोई गरीब से गरीब भी हो या अमीर से अमीर भी हो अगर उसको जीवन की एक इच्‍छा पूछोगे, गरीब से गरीब पूछोगे ड्राइवर होगा, peon होगा, सामान्‍य जिंदगी गुजारा करने वाला मजदूर व्‍यक्ति होगा या अमीर से अमीर होगा। अगर उसको पूछोगे, तो एक सपना common होता है और वो होता है खुद के बच्‍चों की अच्‍छी शिक्षा। अमीर से अमीर व्‍यक्ति भी चाहता है कि भई मेरे बच्‍चों को संभालने वाला कोई अच्‍छा टीचर मिल जाए, कोई अच्‍छा स्‍कूल मिल जाए, गरीब से गरीब भी चाहता है कि मेरे बच्‍चे के लिए अच्‍छी शिक्षा की व्‍यवस्‍था हो जाए।

अब यह बिना टीचर संभव नहीं है, हर कोई अच्‍छा टीचर ढूंढता है और इसलिए हमारा फोकस इस बात पर भी होना चाहिए कि समाज को उत्‍तम शिक्षक कैसे मिले? और मिशनरी जीन वाले टीचर चाहिए। हमारी institution बहुत बढि़या-बढि़या CEO को पैदा करते हैं, दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों के CEO बन जाते हैं,हम बड़ा गर्व करते हैं कि मेरे देश की फलानी institution से निकला हुआ व्‍यक्ति उस देश के बड़े उद्योग या व्‍यापार जगत का वो CEO बन गया है, मुझे तो खुशी जब होगी, तब हम कहेंगे मेरे यहां से निकला हुआ टीचर उसने देश को 50 वैज्ञानिक दिए हैं, 50 डॉक्‍टर दिए हैं।

और मैं यह मानता हूं कि यह आज की बड़ी आवश्‍यकता है। अगर आप किसी अच्‍छी साहित्‍यकार से मिलेंगे कवि को सुनेगे, देखेंगे, तो पाएंगे कि उनके भीतर से जो चीजें निकली है चिंतन स्‍वयं का हो, कलम खुद की हो, शब्‍द स्‍वयं के होंगे, मां सरस्‍वती का आशीर्वाद होगा, लेकिन एक बात common होगी, वो यह होगी जो कुछ भी निकला होगा, वो जीवन के अनुभव से निकला होगा, समाज के प्रति संवेदना से निकला होगा, कुछ सपनों के कारण निकला होगा। य‍ह सिर्फ शब्‍दों का जोड़ नहीं होता, पूरा भाव-विश्‍व होता है जो इन शब्‍दों को गर्भाधान करवाता है और उस गर्भाधान में से कोई कविता बनकर कोई साहित्यिक रचना बन करके निकलती है।

कोई creative चीज बनकरके निकलती होगी। शायद कलम से निकले, कम्‍प्‍यूटर से निकले लेकिन उसके मूल में समाज के प्रति वो संवेदना होती है। जिंदगी के अनुभव का एक निचोड़ होता है, तब जा करके निकलता है। और इसलिए समाज के सुख-दुख को समझना उसे जमीन पर रह करके महसूस करना यह हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था का अंग कैसे बने यह समय की मांग है। यह तब होता है जब शिक्षा का विस्‍तार class room की चौखट से बाहर भी हो। अब जैसे पुराने समय में गुरूकुल में विद्यार्थियों को लकड़ी काटने के लिए भेजा गया।

राजा महाराजाओं के बेटे गुरूकुल में पढ़ते थे। अब उस संस्‍था के लिए लकड़ी मंगवाना कोई मुश्किल काम नहीं था, लेकिन संस्‍कार करने के लिए, जीवन का अनुभव करने के लिए राजा का बेटा भी अगर गुरूकुल में पढ़ता है तो उसको लकड़ी काटने के लिए जाना पड़ता था। और इसलिए उसके पीछे मकसद यह होता था कि छात्र बाहर जाए, समाज, उसकी चुनौतियों को देखें, समझे। इसी तरह विद्यार्थियों को दी जाने वाली शिक्षा का विस्‍तार class room के दायरे से बाहर होना बहुत अनिवार्य है।

वो आसपास के किसी महोल्‍ले में जाए, अपने आसपास देखे कि कैसे झुग्‍गी-झोपडि़यों में कुपोषण की समस्‍या है। कुछ बच्‍चों को पर्यापत टीके नहीं लगे हैं। ड्रग्‍स धीरे-धीरे करके गरीब परिवार में भी घुसता चला जा रहा है। क्‍या कारण है बच्‍चे स्‍कूल छोड़ करके ऐसे ही भटक रहे हैं। समाज की इस तस्‍वीर से उनका परिचय भी बहुत आवश्‍यक है।

आप सोचिए अगर कॉलेज में पढ़ने वाले युवा अपने आसपास के इलाके में जा करके सिर्फ एक बात का प्रचार करे, एक बात के प्रति जागरूकता फैलाएं, सब बच्‍चों को कहें झुग्‍गी झोपड़ी में, गरीबों में अरे भई देखों बच्‍चें हाथ धोए बिना खाना नहीं खाना है। बार-बार कहें, आप कल्‍पना कर सकते हैं कि इतना बड़ा बदलाव आएगा, चीज़ छोटी है। मैं वो बातें नहीं कर रहा हूं कि बजट लगाओ, बिटिंग करो, reform करो form भरो, वो नहीं कह रहा हूं। मैं जुड़ने की बात कर रहा हूं। जुटने की बात कर रहा हूं। जागरूकता के तरीके innovative हो सकते हैं। creative हो सकते हैं। ऐसे अभियान न सिर्फ विद्यार्थियों का खुद का जीवन सदृढ़ बनाएंगे बल्कि अनेक गरीब बच्‍चों के जीवन की रक्षा भी करेंगे।

मैं अभी कुछ दिन पहले बनारस गया था, मेरा लोकसभा का क्षेत्र है। और मेरी वहां मुलाकात काशी विश्‍वविद्यालय के कुछ नौजवानों के साथ हई। मैं नहीं जानता हूं उनके Vice Chancellor उनको कभी मिले हैं कि नहीं मिले हैं, लेकिन मुझे मिलने का मौका मिला। इन युवाओं ने चार-पांच साल पहले एक संस्‍था शुरू की Try to fight. Try to fight के नाम से। शुरू में ये तीन-चार लड़के थे और अब तो ये बहुत बड़ा ग्रुप बन गया है, लड़के-लड़कियां सब इकट्ठे आए हैं।

इन युवाओं ने जो कचरा बीनने वाले बच्‍चे होते हैं, उन पर उनका ध्‍यान गया और उनका मन कर गया कि इन बच्‍चों की शिक्षा होनी चाहिए। और उन्‍होंने अपनी शिक्षा के समय में से समय निकाल करके इन कचरा बीनने वाले बच्‍चों को स्‍कूल ले जाने की दिशा में मेहनत की, कुछ पढ़ाना शुरू किया, कुछ समय देने लगे, मतलब मेहनत करने लगे। आज बनारस में ये युवा संस्‍था 1000 से ज्‍यादा गरीब बच्‍चों को शिक्षा देने का काम कर रही है।

मैं उन बच्‍चों को भी मिला, उन नौजवानों से भी मिला और परिवार में ऐसे ही बच्‍चे पैदा हुए, मां अपने काम में है, बाप अपने काम में है। बच्‍चों की दुनिया अलग है। ऐसी गलत आदतों में फंसे हुए थे, उन सबको बाहर निकाल करके आए। एक बच्‍ची की मैंने देखा इतना बढ़िया पेंटिंग था, उसकी ताकत थी, भगवान ने उसको गिफ्ट दी थी। उन्‍होंने जब मुझे उसको गिफ्ट किया, उस बच्‍ची ने; मैं हैरान था। फिर मैंने उसको पूछा, बेटा तुम्‍हारे परिवार में किसी ने, नहीं-नहीं बोली, मैं ऐसे ही करती थी और ये जब साहब लोग आए, तो उन्‍होंने फिर मेरे लिए कागज लाए, कलम लाए, अब मैं उसी पर कर रही हूं।

देखिए, उस कॉलेज के छात्र, वे हुडदंग में भी जा सकते हैं, यूनियनबाजी में जा सकते हैं, आंदोलन में जा सकते थे, लेकिन उन्‍होंने रास्‍ता ये चुना और 1000 बच्‍चों की जिंदगी को बदल दिया और मैं मानता हूं सिर्फ उन हजार लड़कों की जिंदगी नहीं बदली, उन युवाओं की जिंदगी ज्‍यादा बदली है, जिन्‍होंने संवेदना को समझा है।

समाज के हित में काम करने वाली ऐसी संस्‍थाओं ने जितने ज्‍यादा युवा जुड़ेंगे, इस तरह के अभिनव प्रयोग करेंगे उतना ही गरीब-वंचित बच्‍चों को लाभ मिलेगा। इन सब कार्यों में बहुत बज‍ट या आर्थिक सहायता की आवश्‍यकता नहीं होती है लेकिन ऐसे कार्य कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों और किसी झुग्‍गी-झोंपड़ी में रहने वाले छोटे बच्‍चों, दोनों को ही प्रेरणा देने का काम करेंगे। उनमें आपस में भी एक connect साबित होगा, लेकिन हमारे देश का एक दुर्भाग्‍य भी है। क्षमा करना, कोई बुरा मत मानना।

हम लोग स्‍कूल में पढ़ते थे, तब स्‍कूल में टीचर कहते थे कि आज कोई सेवा कार्य किया हो तो note लिख करके आना। शायद आप लोगों को भी होगा ऐसा, आज कौन सा सेवा कार्य किया ऐसा लिख करके और 100 में से 90 बच्‍चे लिखते थे कि आज रास्‍ते में एक अंधजन मिला, उसको मैंने रास्‍ता cross करवाया। आप देख लीजिए, 90 बच्‍चे यही लिखते थे। यानी एक तो वो झूठ लिखने की आदत डालते थे, झूठा करने की आदत डालते थे और हम उसको टोकते भी नहीं थे कि ये छोटा सा गांव है यहां रास्‍ता cross करने की नौबत कहां से आई यार, बस चलती है गाड़ी। पहले से चली आ रही है, हमारी भी चलती है, आज भी चलता होगा शायद।

मेरा कहने का तात्‍पर्य है ये सारा innovation न होने का परिणाम है। ये शुरू इसलिए हुआ होगा कि उस बच्‍चों को समाज सेवा के संस्‍‍कार हों, लेकिन बाद में वो एक ritual बन गया, प्राणहीन हो गया क्‍योंकि लिखना है, तुम लिख करके लाए हो, पेज भर गया है, टीचर को समय नहीं है पढ़ने के लिए। पूरा पेज लिखा है फिर अंदर कुछ भी लिखा हो, लिखा तो है।

मैं समझता हूं इसमें बदलाव जरूरी है। और मैं मानता हूं आप में से बहुत से लोग इन बातों से परिचित होंगे कि इस सरकार में आने के बाद मैंने एक और प्रयास शुरू किया है। मेरी कोशिश रहती है कि जहां कहीं भी यूनिवर्सिटी के convocation में जाता हूं, यहां शायद कुछ बैठे होंगे जिनकी यूनिवर्सिटी में जाने का मौका मिला, तो मैंने एक नियम बनाया है। मेरे ऑफिस में से चिट्ठी जाती है कि मैं उस convocation में आऊंगा लेकिन वहां मेरे स्‍पेशल गेस्‍ट होंगे पचास। उनके लिए बैठने की आगे के row में स्‍पेशल व्‍यवस्‍था चाहिए। ये मेरा आग्रह रहता है और वो 50 कौन होते हैं- उस इलाके के सरकारी स्‍कूल के झुग्‍गी-झोंपड़ी वाले बच्‍चे जो पढ़ते हैं, वो सातंवी, आठवीं, नौंवी, दसवीं के बच्‍चे मेरे Chief guest होते हैं।

उनको मैं परिचय करवाता हूं उस पूरे audience में convocation में। क्‍यों, मैं उन बच्‍चों को संस्‍कार करना चाहता हूं and seeing is believing, वो जब बैठता है बच्‍चा, उसने तो बेचारा अपना झुग्‍गी–झोंपड़ी देखी हैं, स्‍कूल के वो जो environment देखा है, इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी के campus में आता है। बैठा है, सब अलग-अलग, बराबर और वो पहन करके बच्‍चे आते हैं, टोपी में और जब सर्टिफिकेट लेते हैं, उसके अंदर भी एक बीज अंकुरित होने लगता है कि कभी मैं भी। मैं भी कभी इस dias पर जाऊंगा और मुझे भी कोई इस प्रकार से देगा, ये सपने बोने का काम होता है।

चीज छोटी होती है, बदलाव बजट से आते हैं ऐसा नहीं है जी। बदलने के इरादे से आते हैं, जुड़ने के साथ शुरू होते हैं और जूझने से सफलता भी मिलती है, ये संकल्‍प ले करके चलना है। और इसलिए जब भी मैं शिक्षा जगत के विद्वानों के बीच जाता हूं तो एक बात पर जरूर मैं बल देता हूं। और ये विषय है city based excellent centers. हर संस्‍थान को ये भी जिम्‍मेदारी लेनी होगी कि वह अपने आसपास के education और problem solution eco system को सही रूप से तैयार करे। और इसके लिए मैं आपको कुछ उदाहरण देना चाहता हूं।

हमारे विद्यार्थियों को जिम्‍मेदारी दी जा सकती है कि वह अपने आसपास के लोगों को digital literate बनाने का काम करें। वे अपने आसपास के लोगों को आयुष्‍मान भारत, उजाला, स्‍वच्‍छ भारत मिशन जैसी योजनाओं से परिचित कराएं। वो उनके जीवन को आसान बना सकते हैं। विद्यार्थी अपनी locality में जल संरक्षण, पर्यावरण और बिजली बचाने की सीख दें।

ऐसे अनेक कार्यों की लिस्‍ट बनाकर, pool बनाकर शिक्षा संस्‍थान एक-दूसरे से साझा भी कर सकते हैं। मैं तो ये भी कहता हूं कि इस काम में सिर्फ शिक्षक और छात्र ही नहीं, अभिभावक और alumni को भी जोड़ना चाहिए। जब शिक्षा से इस कार्य हर स्‍तर पर समाज का जुड़ाव होगा तो हमारे युवाओं का सामर्थ्‍य और उनकी समझ में कितनी बढ़ोत्‍तरी होगी इसका आप अंदाज लगा सकते हैं।

भाइयो और बहनों, देश के युवाओं ने अपनी क्षमता से Brand India को वैश्विक पहचान दिलवाई है। देश के तमाम विश्‍वविद्यालयों, अलग-अलग संस्‍थानों से जैसे IIT, IIM, मेडिकल कॉलेज में पढ़े छात्रों ने विदेश में जाकर भारत का नाम रोशन किया है। कई तो दुनिया की बड़ी कम्‍पनियां चला रहे हैं। हम सब इस बात से भी भलीभांति परिचित हैं कि देश के युवाओं के पास विचारों की कमी नहीं है। अगर हमारे पास millions of million problem भी हैं तो billion solution भी हैं, ये विश्‍वास है।

ये भी सच है कि आज की दुनिया की सबसे बड़ी कं‍पनियां कभी न कभी start up ही होती थीं। इसी को ध्‍यान में रखते हुए सरकार Start up India, Stand up India, Skill India जैसी योजनाएं चला रही है। मैं इस बात को ले करके भी आश्‍वस्‍त हूं कि आने वाले दिनों में artificial intelligence, machine learning, 5G technology, block chain, big date analysis जैसे क्षेत्रों में हमारे युवा, ये world leader बन सकते हैं। बनाने हैं हमें। हम सब ये जानते हैं कि हमारा देश technical human resource में दुनिया का बहुत बड़ा pool है। हम Start up में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा eco system हैं। Innovative index में लगातार प्रगति कर रहे हैं।

ये सारी स्थितियां हमारे देश के नौजवानों और शिक्षा संस्‍थानों, दोनों के ही अनुकूल हैं और इसलिए हम सभी को मिलकर देश के युवाओं में social scientific और innovative temper इसका विकसित करने की दिशा में हम लोगों ने काम करने की बहुत आवश्‍यकता है।

साथियों, Resurgence तभी संभव है जब हम सब एक कदम आगे बढ़ें। वैसे भी Research से Resurgence खामियों को खत्‍म कर आगे बढ़ने का तो प्रयास है ही, लेकिन साथ-साथ नए युग के अनुकूल बदलाव लाना, ये उसमें निहित होना चाहिए।

मेरी कमियां दूर करो, उतना नहीं हो, मैं बीमार हूं इसलिए बीमारी से मुक्‍त हो जाऊं, इतना नहीं है, मुझे तंदुरूस्‍त भी होना है, ये भी मेरा इरादा होना चाहिए। शिक्षा जगत के आप सभी दिग्‍गज New India के निर्माण के लिए देश की नींव को और मजबूत करें। देश के नौजवानों में और आत्‍मविश्‍वास पैदा करें।

इसी कामना के साथ मैं फिर एक बार इस महत्‍वपूर्ण imitative के लिए आप सबको हृदय से बहुत बधाई देता हूं। आप यहां से जो मंथन करेंगे, जो चिंतन करेंगे, जो चीजें उसमें से उजागर हो करके आएंगी, मुझे भरोसा है कि आप वो लोग हैं जो धरती से जुड़े हुए हैं, जो बीते हुए कल से जुड़े हैं। वो लोग हैं जो आने वाले उत्‍तम कल के सपने संजो करके जिंदगी खपाने वाले लोग हैं। जहां ऐसा समूह होता है, वो बहुत कुछ दे सकता है।

मुझे विश्‍वास है कि ये चिंतन, ये मनन, ये प्रयास देश के आने वाले समय के लिए कुछ न कुछ महत्‍वपूर्ण चीजें दे करके जाएगा। इस अपेक्षा के साथ फिर एक बार इस प्रयास के लिए बधाई देते हुए मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

धन्‍यवाद।

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PM chairs Fifth National Conference of Chief Secretaries in Delhi
December 28, 2025
Viksit Bharat is synonymous with quality and excellence in governance, delivery and manufacturing: PM
PM says India has boarded the ‘Reform Express’, powered by the strength of its youth
PM highlights that India's demographic advantage can significantly accelerate the journey towards Viksit Bharat
‘Made in India’ must become a symbol of global excellence and competitiveness: PM
PM emphasises the need to strengthen Aatmanirbharta and strengthen our commitment to 'Zero Effect, Zero Defect’
PM suggests identifying 100 products for domestic manufacturing to reduce import dependence and strengthen economic resilience
PM urges every State must to give top priority to soon to be launched National Manufacturing Mission
PM calls upon states to encourage manufacturing, boost ‘Ease of Doing Business’ and make India a Global Services Giant
PM emphasises on shifting to high value agriculture to make India the food basket of the world
PM directs States to prepare roadmap for creating a global level tourism destination

Prime Minister Narendra Modi addressed the 5th National Conference of Chief Secretaries in Delhi, earlier today. The three-day Conference was held in Pusa, Delhi from 26 to 28 December, 2025.

Prime Minister observed that this conference marks another decisive step in strengthening the spirit of cooperative federalism and deepening Centre-State partnership to achieve the vision of Viksit Bharat.

Prime Minister emphasised that Human Capital comprising knowledge, skills, health and capabilities is the fundamental driver of economic growth and social progress and must be developed through a coordinated Whole-of-Government approach.

The Conference included discussions around the overarching theme of ‘Human Capital for Viksit Bharat’. Highlighting India's demographic advantage, the Prime Minister stated that nearly 70 percent of the population is in the working-age group, creating a unique historical opportunity which, when combined with economic progress, can significantly accelerate India's journey towards Viksit Bharat.

Prime Minister said that India has boarded the “Reform Express”, driven primarily by the strength of its young population, and empowering this demographic remains the government’s key priority. Prime Minister noted that the Conference is being held at a time when the country is witnessing next-generation reforms and moving steadily towards becoming a major global economic power.

He further observed that Viksit Bharat is synonymous with quality and excellence and urged all stakeholders to move beyond average outcomes. Emphasising quality in governance, service delivery and manufacturing, the Prime Minister stated that the label "Made in India' must become a symbol of excellence and global competitiveness.

Prime Minister emphasised the need to strengthen Aatmanirbharta, stating that India must pursue self-reliance with zero defect in products and minimal environmental impact, making the label 'Made in India' synonymous with quality and strengthen our commitment to 'Zero Effect, Zero Defect.’ He urged the Centre and States to jointly identify 100 products for domestic manufacturing to reduce import dependence and strengthen economic resilience in line with the vision of Viksit Bharat.

Prime Minister emphasised the need to map skill demand at the State and global levels to better design skill development strategies. In higher education too, he suggested that there is a need for academia and industry to work together to create high quality talent.

For livelihoods of youth, Prime Minister observed that tourism can play a huge role. He highlighted that India has a rich heritage and history with a potential to be among the top global tourist destinations. He urged the States to prepare a roadmap for creating at least one global level tourist destination and nourishing an entire tourist ecosystem.

PM Modi said that it is important to align the Indian national sports calendar with the global sports calendar. India is working to host the 2036 Olympics. India needs to prepare infrastructure and sports ecosystem at par with global standards. He observed that young kids should be identified, nurtured and trained to compete at that time. He urged the States that the next 10 years must be invested in them, only then will India get desired results in such sports events. Organising and promoting sports events and tournaments at local and district level and keeping data of players will create a vibrant sports environment.

PM Modi said that soon India would be launching the National Manufacturing Mission (NMM). Every State must give this top priority and create infrastructure to attract global companies. He further said that it included Ease of Doing Business, especially with respect to land, utilities and social infrastructure. He also called upon states to encourage manufacturing, boost ‘Ease of Doing Business’ and strengthen the services sector. In the services sector, PM Modi said that there should be greater emphasis on other areas like Healthcare, education, transport, tourism, professional services, AI, etc. to make India a Global Services Giant.

Prime Minister also emphasized that as India aspires to be the food basket of the world, we need to shift to high value agriculture, dairy, fisheries, with a focus on exports. He pointed out that the PM Dhan Dhanya Scheme has identified 100 districts with lower productivity. Similarly, in learning outcomes States must identify the lowest 100 districts and must work on addressing the issues around the low indicators.

PM also urged the States to use Gyan Bharatam Mission for digitization of manuscripts. He said that States may start a Abhiyan to digitize such manuscripts available in States. Once these manuscripts are digitized, Al can be used for synthesizing the wisdom and knowledge available.

Prime Minister noted that the Conference reflects India’s tradition of collective thinking and constructive policy dialogue, and that the Chief Secretaries Conference, institutionalised by the Government of India, has become an effective platform for collective deliberation.

Prime Minister emphasised that States should work in tandem with the discussions and decisions emerging from both the Chief Secretaries and the DGPs Conferences to strengthen governance and implementation.

Prime Minister suggested that similar conferences could be replicated at the departmental level to promote a national perspective among officers and improve governance outcomes in pursuit of Viksit Bharat.

Prime Minister also said that all States and UTs must prepare capacity building plan along with the Capacity Building Commission. He said that use of Al in governance and awareness on cyber security is need of the hour. States and Centre have to put emphasis on cyber security for the security of every citizen.

Prime Minister said that the technology can provide secure and stable solutions through our entire life cycle. There is a need to utilise technology to bring about quality in governance.

In the conclusion, Prime Minister said that every State must create 10-year actionable plans based on the discussions of this Conference with 1, 2, 5 and 10 year target timelines wherein technology can be utilised for regular monitoring.

The three-day Conference emphasised on special themes which included Early Childhood Education; Schooling; Skilling; Higher Education; and Sports and Extracurricular Activities recognising their role in building a resilient, inclusive and future-ready workforce.

Discussion during the Conference

The discussions during the Conference reflected the spirit of Team India, where the Centre and States came together with a shared commitment to transform ideas into action. The deliberations emphasised the importance of ensuring time-bound implementation of agreed outcomes so that the vision of Viksit Bharat translates into tangible improvements in citizens’ lives. The sessions provided a comprehensive assessment of the current situation, key challenges and possible solutions across priority areas related to human capital development.

The Conference also facilitated focused deliberations over meals on Heritage & Manuscript Preservation and Digitisation; and Ayush for All with emphasis on integrating knowledge in primary healthcare delivery.

The deliberations also emphasised the importance of effective delivery, citizen-centric governance and outcome-oriented implementation to ensure that development initiatives translate into measurable on-ground impact. The discussions highlighted the need to strengthen institutional capacity, improve inter-departmental coordination and adopt data-driven monitoring frameworks to enhance service delivery. Focus was placed on simplifying processes, leveraging technology and ensuring last-mile reach so that benefits of development reach every citizen in a timely, transparent and inclusive manner, in alignment with the vision of Viksit Bharat.

The Conference featured a series of special sessions that enabled focused deliberations on cross-cutting and emerging priorities. These sessions examined policy pathways and best practices on Deregulation in States, Technology in Governance: Opportunities, Risks & Mitigation; AgriStack for Smart Supply Chain & Market Linkages; One State, One World Class Tourist Destination; Aatmanirbhar Bharat & Swadeshi; and Plans for a post-Left Wing Extremism future. The discussions highlighted the importance of cooperative federalism, replication of successful State-level initiatives and time-bound implementation to translate deliberations into measurable outcomes.

The Conference was attended by Chief Secretaries, senior officials of all States/Union Territories, domain experts and senior officers in the centre.