दो दिन की मेरी यात्रा आज समाप्त हो रही है। ये मेरा एक प्रकार से इस यात्रा का आखिरी कार्यक्रम है लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है कि सचमुच में अब यात्रा शुरू हो रही है। मेर इस दो दिन की यात्रा और बांग्लादेश के नागरिकों ने, बांग्लादेश सरकार ने, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति जी एवं मंत्रिगण ने जिस प्रकार से मेरा स्वागत किया, सम्मान किया, ये स्वागत सम्मान, नरेंद्र मोदी नाम के एक व्यक्ति का नहीं है, सवा सौ करोड़ भारतवासियों का है।
इस दो दिन की यात्रा के बाद न सिर्फ एशिया लेकिन पूरा विश्व बारीकी से post-mortem करेगा। कोई तराजू लेकर के बैठेंगे, क्या खोया-क्या पाया लेकिन अगर एक वाक्य में मुझे कहना है तो मैं कहूंगा कि लोग सोचते थे कि हम पास-पास हैं, लेकिन अब दुनिया को स्वीकार करना पड़ेगा कि हम पास-पास भी हें, साथ-साथ भी हैं।
मेरा बांग्लादेश के साथ एक emotional attachment है, और emotional attachment ये है कि मेरे जीवन में और राजनीतिक जीवन में, हम लोगों को जिनका मार्गदर्शन मिला, जिनकी उंगली पकड़कर के चलने का हमें सौभाग्य मिला, मेरी भारत मां से सपूत, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी को आज बांग्लादेश ने विशेष सम्मान दिया। और सम्मान मिला एक मुक्ति योद्धा राष्ट्रपति के हाथों से। सम्मान मिला बंग-बंधु की बेटी की उपस्थिति में। और सम्मान लेने का सौभाग्य उस व्यक्ति के पास था, जिसने जवानी में, कभी राजनीति से जिसका कोई लेना-देना नहीं था। मैं वो इंसान हूं, बहुत देर से राजनीति में आया हूं, करीब-करीब 90 के आसपास। लेकिन मुझे अपने जीवन में सबसे पहला कोई राजनीतिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने का सौभाग्य मिला, मैं युवा था, युवा राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ने का सौभाग्य मिला लेकिन उस समय अखबारों में पढ़ते थे, बांग्लादेश लड़ाई के संबंध में, मुक्ति योद्धाओं की लड़ाई के संबंध में, यहां पर हो रहे जुल्म के संबंध में। और जैसे आपका खून खौलता था, हमारा खून भी खौलता था। जुल्म के खिलाफ यहां जो आवाज उठ रही थी, वो हमारे कान में गूंजती थी और यहां से उठी वो आवाज, इस प्रकार से हमें प्रेरित किया और मैं जीवन में पहली बार गांव छोड़कर के दिल्ली में भारतीय जनसंघ के द्वारा बांग्लादेश की मान्यता के लिए जो सत्याग्रह चल रहा था, उस सत्याग्रही बनने का सौभाग्य मुझे मिला था।
मेरे जीवन की ये पहली राजनीतिक गतिविधि थी, उसके बाद भी कभी नहीं की, कई सालों तक नहीं की, मैं सामाजिक जीवन से जुड़ा था और उस अर्थ में शायद ऊपर वाले की इच्छा होगी कि वो नाता आज नये रूप में मुझे आपके साथ जोड़ दिया। दुनिया में समृद्ध देशों की गतिविधियों की चर्चा बहुत होती है, लेकिन हम जैसे गरीब देश उसकी गतिविधियों पर दुनिया की नजर बहुत कम जाती है। बांग्ला,देश ने इस संघर्ष में से निकल करके विकास की यात्रा को आरंभ किया। और इतने कम समय में.. और यहां पर राजनीतिक संकट बार-बार आए हैं, उतार-चढ़ाव बार-बार आए हैं। सिर्फ मुक्ति यौद्धाओं वाली उस लड़ाई के बाद भी कठिनाईयां रही है। प्राकृतिक आपदाएं आए दिन बांग्लाादेश में अपनी पहचान बनाती रहती है। इन संकटों के बावजूद भी बांग्लापदेश ने कई क्षेत्रों में अप्रतीम काम किया है। लोगों का ध्याटन यहां की Garments Industries की तरफ तो जाता है और वे बधाई के पात्र हैं सारे और मैं भी चीन गया था तो वहां की एक Readymade Garment के एक CEO मुझे बता रहे थे कि मोदी जी आपका तो सवा सौ करोड़ का देश है। आप कर क्याm रहे हो? मैंने कहा क्याे हुआ भाई। अरे बोले तुम्हाहरे बगल में 17 करोड़ का देश आज दुनिया में नम्बेर-2 पर खड़ा है Garment की दुनिया में।
किसी को यह लगता होगा कि उस समय मोदी को क्यात लगा होगा। मैं दिल से कहता हूं, मुझे इतना आनंद आया, इतना आनंद आया... और आनंद इस बात का था कि हम जो कि Developing Countries की रेखा में जीने वाले लोग हैं वहां हमारा एक साथी, मेरा पडोसी, यह इतना बड़ा पराक्रम करें तो हमें आनंद आना स्वाेभाविक है। सूरज पहले यहां निकलता है लेकिन बाद में किरणें हमारे यहां भी तो पहुंचती है और इसलिए यहां जितना विकास होगा, जितनी ऊंचाईयां प्राप्तो करेंगे, वो रोशनी हम तक आने ही वाली है, यह मुझे पूरा भरोसा है। और इस अर्थ में, मैं कहता हूं आज Infant Mortality Rate हमारे देश में कई राज्यों को बांग्लाऊदेश से सीखने जैसा है कि उन्हों ने जिस प्रकार से Infant Mortality Rate के संबंध में, nutrition के संबंध में even girl child education के संबंध में... यह बातें हैं जो स्वामभाविक रूप से... क्योंेकि जब बांग्लाeदेश आता है न तो हमें इस बात का हमेशा गर्व होता है कि मेरे भी देश का कोई जवान था, जिसने अपना रक्तब दिया था इस बांग्लारदेश के लिए।
जिस बांग्लाादेश के सपनों को मेरे देश के जवानों ने खून से सींचा हो, उस बांग्लारदेश की तरक्कीभ - हम लोगों के लिए इससे बड़े कोई आनंद का विषय नहीं हो सकता। इससे बड़ा कोई गौरव का विषय नहीं हो सकता।
मैं प्रधानमंत्री जी को विशेष रूप से बधाई देना चाहता हूं। उन्हों ने एकमात्र अपना गोल बनाया है – Development, विकास। और लगातार 6% Growth कोई छोटी बात नहीं है। यह छोटा achievement नहीं है और इसके कारण जो बांग्लाऔदेश की आर्थिक व्यhवस्थाा की मजबूत नींव तैयार हो रही है, जो आने वाले दिनों में यहां के भविष्य को बनाने वाली है। यह मैं साफ-साफ देख सकता हूं। भारत और बांग्ला देश दोनों एक विषय में बड़े भाग्यहशाली है। भारत के पास भी 65% Population 35 साल से कम उम्र की है और बांग्लामदेश के पास भी 65% Population 35 साल से कम उम्र की है। यह जवानी से भरा हुआ देश है। उसके सपने भी जवान है। जिस देश के पास ऐसा सामर्थ्य हो और विकास को समर्पित नेतृत्वे हो, कुछ कर-गुजरने की उमंग हो, मैं विश्वायस से कहता हूं अब बांग्लाददेश की विकास यात्रा कभी रूक नहीं सकती है।
आज वक्तत बदल चुका है, दुनिया बदल चुकी है कोई एक कालखंड था, जब विस्तारवाद देशों की शक्ति की पहचान माना जाता था, कौन कितना फैलता है, कौन कहां-कहां तक पहुंचता है, कौन कितना सितम और जुल्म कर सकता है, उसके आधार पर दुनिया की ताकत नापी जाती थी। आज वक्त बदल चुका है, इस युग में, इस समय विस्तारवाद को कोई स्थान नहीं है, आज दुनिया को विकासवाद चाहिए, विस्तारवाद नहीं विकास वाद का युग है और यही मूलभूत चिंतन है।
बहुत कम लोग इस बात का मूल्यांकन कर पाए हैं कि भारत और बांग्लादेश के बीच Land boundary agreement क्या ये सिर्फ जमीन विवाद का समझौता हुआ है? अगर किसी को ये लगता है कि दो-चार किलोमीटर जमीन इधर गई और दो-चार किलोमीटर जमीन उधर गई, ये वो समझौता नहीं है, ये समझौता दिलों को जोड़ने वाला समझौता है। दुनिया में सारे युद्ध जमीन के लिए हुए हैं और ये एक देश है, बांग्लादेश भी गर्व करता है। मुझे आज आपके Tourism Minister मिले थे, वो कह रहे थे, हम बुद्ध circuit शुरू करना चाहते हैं Tourism के लिए। भारत भी, बुद्ध के बिना भारत अधूरा है और जहां बुद्ध है, वहां युद्ध नहीं हो सकता है और इसलिए दुनिया जमीन के लिए लड़ती हो, मरती हो लेकिन हम दो देश हैं जो जमीन को ही हमारे संबंधों का सेतु बनाकर के खड़ा कर देते हैं।
मैंने आज यहां एक अखबार में, यहां के किसी एक writer ने लिखा था, मैं पूरा तो पढ़ नहीं पाया हूं लेकिन एक headline पढ़ी, उन्होंने बांग्लादेश और भारत के जमीन के समझौते को Berlin की दीवार गिरने की घटना के साथ तुलना की है। मैं कहता हूं कि उन्होंने बड़ी सोच के साथ रखा है। यही घटना दुनिया के किसी और भू-भाग में होता तो विश्व में बड़ी चर्चा हो जाती, पता नहीं Nobel Prize देने के लिए रास्ते खोले जाते, हमें कोई नहीं पूछेगा क्योंकि हम गरीब देश के लोग हैं लेकिन गरीब होने के बाद भी अगर हम मिलके चलेंगे, साथ-साथ चलेंगे, अपने सपनों को संजोने के लिए कोशिश करते रहेंगे, दुनिया हमें स्वीकार करे या न करे, दुनिया को ये बात को मानना पड़ेगा कि यही लोग हैं जो अपने बल-बूते पर दुनिया में अपना रास्ता खोजते हैं, रास्ता बनाते हैं, रास्ते पर चल पड़ते हैं।
यहां के नौजवान के सपने हैं। वक्त बहुत बदल चुका है, आप किसी भी नौजवान को पूछिए, उसके expression को पूछिए, आज 20 साल, 25 साल पहले जो हम सोचते थे, वो जवाब आज नहीं मिलेगा, वो कुछ और सोचता है, वो दुनिया को अपनी बाहों में कर लेना चाहता है, वो जगत के साथ जुड़ना चाहता है, वक्त बदल चुका है। ये हम लोगों का दायित्व है कि हमारी युवा पीढ़ी को विकास के लिए हम अवसर दें, शिक्षा के लिए अवसर दें, नई चीजों को प्राप्त करने के लिए अवसर दें। आज में जिस Dhaka University में आया हूं और मुझे आपने निमंत्रित किया है, यही तो Dhaka University है, जिसने बांग्लादेश को ज्ञान से संवारा है, बुद्धि से संवारा है। व्यक्ति-व्यक्ति में ज्ञान दीप जलाने का काम इस University ने किया है।
बीते हुए कल को हम इससे जुड़े थे, हमारे यहां भी जो लोग हैं, वो यहीं से शिक्षा-दीक्षा लेके आए थे, हर एक का नाम हम गर्व से कहते हैं और उसी प्रकार से आने वाले दिनों में भी जैसे अभी Vice Chancellor जी बताए थे cosmography के लिए Dhaka University के साथ मिलकर के काम करने वाले हैं क्योंकि Blue Economy ये आने वाले समय का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है, उस Blue Economy पर कैसे हम मिलकर के बल दें, हमारी सामुद्रिक शक्ति, हम सार्क देश में से पांच देश ऐसे हैं, जो समुद्र से सटे हुए हैं। अगर हम समुद्र से सटे हुए देश हैं, हम Blue Economy को एक सामूहिक ताकत बनकर के काम काम करें, हम दुनिया को बहुत कुछ दे सकते हें और हमारी आने वाली पीढ़ी को विकास को नए अवसर दे सकते हैं, हमारा उस दिशा में प्रयास होना चाहिए।
हम पिछले दिनों नेपाल में मिले थे सार्क summit था, उस समय एक विषय पर मैंने बहुत बल दिया था, हम एक प्रस्ताव पारित करना चाहता थे और प्रस्ताव था connectivity का, हम सार्क देश एक-दूसरे से, हमारी connectivity हो, openness हो, आना-जाना सरल हो, उस पर कुछ फैसले करना चाहता था खैर हर कोई तो बांग्लादेश होता नहीं है, हमारी गाड़ी पटरी पर नहीं चढ़ी लेकिन अब पटरी पर नहीं चढ़ी तो हम इंतजार करके बैठे क्या? आज मैं गर्व के साथ कहता हूं जो काम हम सार्क में विधिवत रूप से नहीं कर पाए थे लेकिन आज बांग्लादेश, भारत, नेपाल और भूटान, चार देशों ने अपनी connectivity की priority तय कर ली है और ये हम मान के चलें सारे European Union की बात करते हैं, European Union की economy में जो बदलाव आया, उसके मूल में एक कारण ये है easy connectivity, सार्क देश भी इसी प्रकार से आगे बढ़ सकते हैं। सब चले या न चलें, कुछ तो चल पड़े हैं और इसलिए बांग्लादेश-भारत हम connectivity के लिए आज निर्णय लिए हैं।
रेल मार्ग हो, road मार्ग हो, हवाई मार्ग हो और अब तो निर्णय़ कर लिया समुद्री मार्ग का भी, वरना हमारा क्या हाल था, हिंदुस्तान में कुछ भेजना था तो via सिंगापुर भेजते थे। अब हिंदुस्तान और बांग्लादेश आमने-सामने ले जाओ, वो कहेगा भई ले जाओ और इसलिए मैं कहता हूं कितना बड़ा बदलाव आ रहा है ये हम साफ देख सकते हैं और ये बात निश्चित है, आज कोई भी देश कितना ही सामर्थ्यवान क्यों न हो, उसके पास धन-बल हो, जन-बल हो, शस्त्रों का बल हो तो भी आज वो अकेला कुछ नहीं कर सकता है। पूरी दुनिया inter dependent हो गई है, एक-दूसरे के सहारे के बिना अब विश्व नहीं चल सकता है और इसलिए भारत और बांग्लादेश ने इस भविष्य को पहचाना है, जाना है।
भारत और बांग्लादेश का vision साफ है और इसलिए हमने 22 जो निर्णय किए हैं, ये 22 निर्णय नंबर की दृष्टि से संतोष हो, ये बात नहीं है, एक से बढ़कर के एक सारे निर्णय़ आने वाले भविष्य का बदलाव करने के लिए बहुत बड़ी ताकत के रूप में उभरने वाले हैं, ये मैं आज विश्वास से कहकर के जाता हूं और मैं इसके लिए बांग्लादेश के दीर्घ दृष्टा नेतृत्व का अभिनंदन करता हूं, उनका धन्यवाद करता हूं कि हम इस प्रकार के महत्वपूर्ण फैसले कर पाए हैं। आज अगर हम satellite के द्वारा photo लें तो आप देखेंगे, ये सार्क के ही देश ऐसे हैं including India, जहां अभी भी अंधेरा नजर आता है, क्या हमारे यहां उजाला नहीं होना चाहिए? क्या हमारे यहां गरीब के घर में भी बिजली का दीया जलना चाहिए कि नहीं जलना चाहिए? और अगर ये जलना है तो बिजली चाहिए और बिजली प्राप्त होना, हम अगर मिलकर के काम करें, नेपाल हो, भूटान हो, भारत हो, बांग्लादेश हो - मैं नहीं मानता हूं कि फिर कभी इस इलाके में अंधेरा रह सकता है और साथ-साथ जब मैं कहता हूं, जब हमने त्रिपुरा में बिजली का कारखाना लगाया, अब वो बिजली कारखाने के बड़े-बड़े यंत्र ले जाने थे, बांग्लादेश की मदद नहीं मिलती तो हम वहां नहीं ले जा सकते थे। बांग्लादेश ने हमारी मदद की, समुद्री मार्ग से हमें जाने दिया और आज वहां बिजली का कारखाना शुरू हो गया और 100 मेगावाट बिजली बांग्लादेश को आना शुरू हो गया। 500 मेगावाट बिजली देने का हमने वादा किया था, कल हमने तय किया हे, 1000 मेगावाट बिजली बांग्लादेश को हम देंगे।
हम दोनों देश एक प्रकार से भाग्यशाली हैं और हम पर तपते सूरज की बड़ी कृपा है, अब तक तो वो परेशानी का कारण था लेकिन वही सूरज अब शक्ति का कारण बन गया है, Solar energy हमारी बहुत बड़ो वो दौलत हो सकती है। भारत और बांग्लादेश दोनों Solar energy के क्षेत्र में बहुत ही aggressively आगे बढ़ना चाहते हैं और दुनिया जो climate change के लिए चर्चा करती रहती है, हम धरती पर उसका अंत, जवाब ढूंढते हैं और जवाब पाकर के रहेंगे, हम उस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं। मेरा कहना का तात्पर्य ये है कि हम यहां की जो युवा शक्ति है, यहां का जो talent है, भारत के पास जो शक्ति है, भारत के पास जो talent है, इसे जोड़कर के आगे बढ़ना चाहते हैं।
कल प्रधानमंत्री जी कह रही थीं कि space में अब हम जाना चाहते हैं, हम बंग-बंधु एक satellite की ओर जाना चाहते हैं, मैं उनसे ऐसे ही मजाक में कहा कि बंग-बंधु हमारे बिना कैसे हो सकते हैं, बंग- बंधु के साथ भारत बंधु भी तो रहेगा और मैंने कहा, हम आपके space programme में जुड़ना चाहते हैं। भारत ने space की ताकत परिचित करवा दी है अपनी दुनिया में, हमारी वो शक्ति है, वो बांग्लादेश के काम आनी चाहिए, मैंने कल सामने से offer किया है और हमने, मैंने सार्क देशों को कहा था, हम एक सार्क satellite छोड़ेंगे 2016 तक उस काम को हम सफलतापूर्वक करना चाहते हैं। उन सार्क satellite के द्वारा इन सार्क देशों को, यहां के किसानों को weather के संबंध में जानकारी मिले, कोई सामुद्रिक तुफान की संभावना हो, कोई हवा तेज चलने वाली हो, cyclone आने वाले हो, उसका पूर्वानुमान हो, शिक्षा के लिए काम आए, health के लिए काम आए, ये सार्क satellite भारत, सार्क देशों के लिए मतलब बांग्लादेश के लिए आने वाले दिनों में लाने वाला है।
यानि विकास की जो हमारी कल्पना है, हम जिस रूप में आगे बढ़ना चाहते हैं और इसलिए मैं कहता हूं, हम पास-पास भी हैं, साथ-साथ भी हैं। बांग्लादेश ने अनेक खासकर के women empowerment के लिए जो काम किए हैं, मैं समझता हूं वो काबिले-दाद हैं। यहां के पुरुषों को कभी ईर्ष्या आती होगी कि प्रधानमंत्री महिला, Speaker महिला, leader of the opposition महिला, opposition party की leader महिला है और यहां की Pro Vice Chancellor महिला - ये सुनकर के गर्व होता है जी। हम Asian countries आज भी दुनिया के कुछ देशों में महिला के प्रमुख के रूप में स्वीकार करने की मानसिकता कम है, ये भू-भाग दुनिया में ऐसा है कि जहां पर नारी को राष्ट्र का नेतृत्व करने का अवसर बार-बार मिला है। चाहे हिंदुस्तान हो, बांग्लादेश हो, पाकिस्तान हो, इंडोनेशिया हो, आयरलैंड हो। अब देखिए इस भू-भाग में श्रीलंका, ये विशेषता है हमारी लेकिन फिर भी हम कहीं और होते तो दुनिया में जय-जयकार होता लेकिन हम गरीब हैं, हम पिछड़े हैं, कोई हमारी ओर देखने को तैयार नहीं, हम सम्मान से, गर्व से खड़े हो कि दुनिया को दिखाने के लिए हमारे पास ये ताकत है, दुनिया को मानना पड़ेगा कि women empowerment में भी हम दुनिया से कम नहीं हैं।
मैं दो दिन से यहां इधर-उधर जा रहा हूं तो मैं एक bill board देख रहा था और एक बिटिया, उसकी बड़ी तस्वीर लगी है और लिखा है, I am Made in Bangladesh आपकी महिला क्रिकेटर सलमा खातून को वो चेहरा - ये women empowerment है, ये youth की power का परिचय करवाता है और ये जब सुनते हैं तो कितना गर्व होता है। हमारे यहां, अभी-अभी क्रिकेट का दौर समाप्त हुआ और जब बांग्लादेश का नौजवान अल हसन, देखिए बांग्लादेश विकास करने की उसकी गति कितनी तेज है, क्रिकेट की दुनिया में बांग्लादेश की entry जरा देर से हुई लेकिन आज हिंदुस्तान समेत सभी क्रिकेट टीमों को बांग्लादेश की क्रिकेट टीम को कम आंकने की हिम्मत नहीं है। देर से आए लेकिन आप ने उन प्रमुख देशों में अपनी जगह बना ली है, ये बांग्लादेश की ताकत है।
कुछ वर्ष पहले मैंने जब निषाद मजूमदार और वासपिया, भूल तो नहीं गए न आप लोग, गरीब परिवार को दो बिटियां, गरीब परिवार से आईं और एवरेस्ट जाकर के आ गईं, ये बांग्लादेश की ताकत है और मुझे गर्व है कि मैं उस बांग्लादेश के साथ-साथ चलने के लिए आया हूं।
ये सामर्थ्य होता है कि हमें नई शक्ति मिलती है, कुछ बातें हैं जो अभी भी करनी है, ऐसा नहीं कि भई मैं यहां 40 घंटे में सबकुछ करके निकल जाऊंगा.. न... कुछ करना बाकी है। क्योंबकि मुझे सवा सौ करोड़ का देश है, अनेक राज्ये हैं, सबको साथ लेकर चलना होता है और बांग्ला देश के साथ-साथ चलता हूं तो मेरे राज्यों के भी तो साथ-साथ चलना होता है।
और जबस भी बांग्ला देश आया तो स्वाोभाविक है, तिस्ताथ के पानी की चर्चा होना बड़ा स्वाोभाविक है। गंगा और ब्रह्मपुत्र के पानी के संबंध में हम साथ चले हैं। और मुझे भरोसा है, और मेरा तो मत है - पंछी, पवन और पानी - तीन को वीजा नहीं लगता है। और इसलिए पानी यह राजनीतिक मुद्दा नहीं हो सकता है, पानी यह मानवता के आधार पर होता है, मानवीय मूल्योंी के आधार पर होता है। और उसको मानवीय मूल्यों के आधार पर समस्याै का समाधान करने का आधार हम मिलकर के करेंगे मुझे विश्वासस है रास्ते निकलेंगे, मैं विश्वाकस दिलाता हूं। कोशिश जारी रहनी चाहिए। विश्वातस टूटना नहीं चाहिए, विश्वागस डिगना नहीं चाहिए.. परिणाम मिलकर के रहता है।
कभी-कभार सीमा पर कुछ घटनाएं ऐसी हो जाती हैं कि दोनों तरफ तनाव हो जाता है। किसी भी निर्दोष की मौत हर किसी के लिए पीड़ादायी होती है। गोली यहां से चली या वहां से चली, उसका महत्व नहीं है, मरने वाला गरीब होता है, इंसान होता है। और इसलिए हमारी सीमा पर ऐसी वारदात न हो, और उसके कारण हमारे बीच तनाव पैदा करना चाहने वाले तत्वोंी को ताकत न मिलें यह हम दोनों देशों की जिम्मे दारी है और हम निभाएंगे, निभाते रहेंगे। ऐसा मुझे विश्वा स है।
इस बार कई महत्व्पूर्ण निर्णय हुए Human Trafficking के संबंध में कठोरता से काम लेने के लिए दोनों देशों ने निर्णय लिया है। illegal movement जो होता है, उसके कारण भारत में भी कई राज्यों में उसके कारण तनाव पैदा होता है। हमने दोनों ने मिलकर के इसकी चिंता व्यकक्त की। Fake Currency करे कोई, खाएं कोई और बदनामी बांग्लाादेश को मिले? अब बांग्ला देश सरकार इस प्रकार की चीजों को चलने देना नहीं चाहती है। मैं बांग्ला देश सरकार की तारीफ करता हूं, उनका अभिनंदन करता हूं। यही तो चीजें हैं जो हमें साथ-साथ चलने के लिए हमारा हौसला बुलंद करते हैं और आज साथ-साथ चलते हैं, कल साथ-साथ दौड़ना भी शुरू कर देंगे। इसी से तो ताकत आती है, और उसी ताकत को लेकर के हम आगे बढ़ना चाहते हैं।
इतना ही नहीं, विकास की जब नई ऊंचाइयों को जब हमें पार करना है Defense के क्षेत्र में हम सहयोग कर रहे हैं, सहयोग करना चाहते हैं, सहयोग बढ़ाने चाहते हैं। इस बार हमने line of credit two billion dollar किया है। और यह करने का हमारा हौंसला बुलंद इसलिए हुआ है कि पहले जो line of credit दी थी अगर बहुत बढि़या ढंग से उसको किसी ने उपयोग किया तो बांग्लाeदेश ने किया है। और इसलिए यह नया जो line of credit का हमारा निर्णय है मुझे पूरा भरोसा है कि बांग्लाादेश उसका सही-सही उपयोग करेगा। हमने एक बड़ा महत्वणपूर्ण निर्णय किया है India SEZ बनाने का। भारत के लोग यहां आए पूंजी निवेश करे, यहां के नौजवानों को रोजगार दे। यहां का जो कच्चान माल है, उसको मूल्यं वृद्धि करे। यहां की economy को लाभ हो और भारत और बांग्ला्देश में trade deficit का जो फासला है, उसको कम करने में बहुत बड़ी ताकत बन जाएगा। हम नहीं चाहते कि बांग्ला्देश हिंदुस्ता न से तो माल लेता रहे और बांग्लाकदेश से कम सामान हिंदुस्ताेन आए, नहीं.. हम बराबरी चाहते हैं। हम भी चहाते हैं बांग्लाशदेश का माल हिंदुस्ता न में बिकना चाहिए। हम बराबरी से आपके मित्र राष्ट्र के रूप में खड़े हैं आपके साथ। और इसलिए हमारी भूमिका यही है कि हम किस प्रकार से आगे बढ़े, किस प्रकार से हम साथ चले, उसी को लेकर के हम चलना चाहते हैं।
आज दुनिया में कुछ संकटों का सामना भी हमें करना है। आने वाले दिनों में United Nation अपनी 70वीं सालग्रिहा मनाने जा रहा है। 70 साल की यात्रा कम नहीं होती। प्रथम और दूसरे विश्वर युद्ध की छाया में United Nation का जन्मय हुआ। तब दुनिया की स्थिति अलग थी, उस समय Industrial Revolution हुआ। आज Internet Revolution का कालखंड है। वक्तर बदल चुका है, लेकिन UN वहीं का वहीं है। आज भी UN पिछली शताब्दीं के कानून से चलता है, कई शताब्दी बदल चुकी, लेकिन UN नहीं बदला है। हम जो गरीब देश हैं उन्होंेने मिल बैठ करके United Nation भी अपनी 70वीं सालगिरहा बनाते समय विश्वह को नये नजरिए से देखे। बांग्लाiदेश जैसे छोटे-छोटे देश भारत बांग्ला देश जैसे गरीबी से लड़ रहे देश सार्क के देश जो गरीबी से जूझ रहे हैं, लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी समस्यासओं की ओर विश्वे ध्या न दे।
और इसलिए ऐसे सभी देशों ने मिलकर के हमारी दुनिया को, युद्ध होता है तो कैसे काम करना है यह तो आता है, सीमा पर लड़ाई कैसे होगी, सेना क्याे करेगी, वायु सेना क्याक करेगी सब आता है। लेकिन Terrorism से कैसे निपटना अभी तक दुनिया को समझ नहीं आ रहा है कि रास्ते क्याि है? और UN भी गाइड नहीं कर पा रहा है। मुझे खुशी की बात है कि बांग्ला देश की प्रधानमंत्री महिला होने के बावजूद भी डंके की चोट पर कह रही है कि terrorism के संबंध में मेरा जीरो tolerance है। मैं शेख हसीना जी को अभिनंदन करता हूं जो हिम्म त के साथ यह कहे कि terrorism के साथ मेरा जीरो tolerance है। Terrorism इसको कोई सीमा नहीं हैं, भू-भाग नहीं है। भारत तो पिछले 40 साल से इसके कारण परेशान है। कितने निर्दोष लोगों की जिंदगी तबाह हो जाती है, कितना रक्तस बह रहा है और Terrorism से जुड़े हुए लोग क्याह पाया उन्होंरने? क्यास दिया दुनिया को उन्हों ने? और इसलिए Terrorism का रूप ऐसा है, जिसे कोई सीमाएं नहीं है। कोई भूभाग नहीं है। न उसके कोई आदर्श है, न कोई मूल्यई है, न कोई संस्कृ ति है, न कोई परंपरा है। अगर है तो उनका एक ही इरादा है और वो है मानवता की दुश्म नी। Terrorism मानवता का दुश्मोन है और इसलिए हम किसी भी पंत साम्प्रददाय के क्योंr न हो, किसी भी पूजा पद्धति को क्यों न मानते हो। हम पूजा-पद्धति में विश्वा्स करते हो या न करते हो। हम ईश्वतर या अल्ला ह में विश्वापस करते हो या न करते हो, लेकिन मानवता के खिलाफ यह जो लड़ाई चली है मानवतावादी शक्तियों का एक होना बहुत आवश्यतक है, जो भी मानवता में विश्वाचस करते हैं उन सभी देशों को एक होना बहुत अनिवार्य हुआ है। और हम इस आतंकवाद इस आतंकवादी मानसिकता इसको Isolate करे, उसको निहत्थेआ करे और मानवता की रक्षा के लिए हम आगे बढ़े। और इस काम में बांग्लावदेश की सरकार ने जीरो tolerance यह जो संकल्पे किया है मैं उनका गौरव करता हूं, मैं उनका अभिनंदन करता हूं।
और मैं साफ मानता हूं बांग्लाकदेश और भारत के बीच न सिर्फ बांग्लांदेश और भारत के बीच सार्क देशों में भी हमें Tourism को बढ़ावा देना चाहिए। Tourism को हमने बढ़ावा देना चाहिए। और Tourism है, Tourism Unites the World, Terrorism divides the World. हम एक दूसरे को जाने, पहचाने नई पीढ़ी मिले-जुले, बात करें, गर्व करें। और इसलिए terrorism के सामने लड़ने के लिए हमारा मेल-जोल जितना बढ़ेगा, एक दूसरे को पहचानने का अवसर जितना मिलेगा, एक नई शक्ति उसमें से उभर कर आती हैं। उस नई शक्ति को हमने आगे बढ़ाना है। और देश की दिशा में हमने प्रयास किया है।
UN Security Council में अभी भी हिंदुस्ता न को जगह नहीं मिली रही है। Permanent Membership नहीं मिल रही है। आप कल्पcना कर सकते हैं दुनिया की 1/6 Population - हर छठा व्यैक्ति हिंदुस्ता नी है, लेकिन उसको दुनिया की शांति के संबंध में चर्चा करने का हक नहीं है। कैसी सोच है? और वो देश...और मैं डंके की चोट पर दुनिया के सामने आंख मिलाकर के कह रहा हूं, वक्तो बदल चुका है, समय से पहले जान जाइये। हिंदुस्तानन वो देश है जो कभी जमीन के लिए किसी पर हमला नहीं किया है न कभी लड़ाई लड़ी है। हम प्रथम विश्वद युद्ध में 13 लाख हिंदुस्ताैन की सेना के जवान प्रथम विश्वु युद्ध में जुड़े, अपने लिए नहीं। भारत की सत्ताए बचाने के लिए नहीं है, भारत का भू-भाग बढ़ाने के लिए नहीं है। किसी और के लिए लड़े किसी और के लिए मरे और करीब-करीब 75 हजार लोग शहीद हुए, 75 हजार लोग, प्रथम विश्व युद्ध में। उसके बावजूद भी दुनिया में पूछ रही है शांति के लिए? हम विश्व की शांति के लिए उपयोगी है या नहीं, उसके लिए हमें सबूत देने पड़ रहे हैं?
द्वितीय विश्वि युद्ध हुआ 15 लाख से भी ज्याूदा हिंदुस्ता न की फौज किसी के लिए लड़ी, किसी के लिए मरी, किसी दुनिया के देश में जाकर के मरी। और उस समय हम सब एक थे, बांग्ला देश के भी बच्चेि थे उसमें जिन्हों ने द्वितीय विश्वं युद्ध में बलिदान दिए। तब विभाजन नहीं हुआ था, हम सब एक थे। करीब 90 हजार हमारे नौजवान उस युद्ध में शहीद हुए। आज भी United Nations बड़े गर्व से कहता है कि Peace keeping force उसमें अगर सबसे उत्तथम काम है तो भारत की सेना का होता है, उनके discipline का होता है। उसके बावजूद भी security council में permanent सीट के लिए भारत को तरसना पड़ता है।
इतना ही नहीं मैं दुनिया में क्या कभी कोई घटना मिल सकती है कि बांग्लाादेश में जब मुक्ति योद्धा अपना रक्तc बहा रहे थे अपनी जवानी जान की बाजी मुक्ति योद्धा लगा रहे थे। पता नहीं था कि कभी बांग्लानदेश बनेगा, कभी सत्ताा के सिंहासन पर जाने का अवसर मिलेगा। “एक अमार सोनार बांग्लाा” की प्रेरणा थी, बंगबंधू का नेतृत्वव था और हर बंगाली मरने के लिए तैयार हुआ था। उन दिनों को याद करें। हमारी आने वाली पीढ़ी को बताएं कि हम ही तो वो लोग थे। वो एक-एक मुक्ति योद्धा यहां बैठे हैं, मैं उनको नमन करता हूं और उनके साथ कंधे से कंधे मिलाकर के हिंदुस्तादन की फौज ने अपना रक्तब बहाया। और कोई कह नहीं सकता था कि यह रक्ता मुक्ति योद्धा का है। यह रक्तअ भारत की सेना के जवान का है। कोई फर्क महसूस नहीं होता था वो भावना की प्रबल उमंग थी।
और इतिहास देखिए 90 हजार जिन लोगों ने बांग्लातदेश के नागरिकों पर जुल्म किया था, ऐसे 90 हजार सेना को आत्मोसमर्पण के लिए भारत की सेना ने मजबूर किया था। आप कल्पनना कर सकते हैं जो पाकिस्ताकन आए दिन हिंदुस्तानन को परेशान करता रहता है, नाको दम ला देता है, terrorism को बढ़ावा की घटनाएं घटती रहती है। 90 हजार सैन्यज उसके कब्जेप में था, अगर विकृत मानसिकता होती तो पता नहीं निर्णय क्या करता। आज एक हवाई जहाज को कोई हाइजैक कर दे न, तो 25, 50, 100 Passenger के बदले में दुनिया भर की मांगे मनवा ले सकता है। भारत के पास 90 हजार सैनिक पाकिस्तारन के कब्जेा में थे, लेकिन यह हिंदुस्ता न का चरित्र देखिए, हिंदुस्ताजन की सेना का चरित्र देखिए। हमने बांग्लाजदेश के विकास की चिंता की, बांग्ला्देश के स्वा0भिमान की चिंता की, बांग्लादेश की धरती का उपयोग हमने पाकिस्तािन पर गोलियां चलाने के लिए नहीं किया। हमने बांग्ला देश के स्वािभिमान के लिए, मुक्ति यौद्धाओं के लिए लड़ाई लड़ी लेकिन उन 90 हजार का blackmail करके पाकिस्ताान के खिलाफ लड़ने के लिए हमने बांग्ला देश की भूमि का उपयोग नहीं किया है। क्यों्? हम चाहते थे कि बांग्लागदेश बंगबंधू के नेतृत्व9 में आगे बढ़े, विकास की नई ऊंचाईयों को पार करे। यह हमारा सपना था और इसलिए हमने हमारे सपनों को चूर कर दिया। हमारी मुसीबतों को हमने दफना दिया। और हमने 90 हजार सैनिक वापस दे दिए, 90 हजार सैनिक वापस देने की एकमात्र घटना की ताकत इतनी है कि पूरे विश्व ने भारत की शांति के प्रति प्रतिबद्धता कितनी है, विश्व शांति के लिए प्रतिबद्धता कितनी है, इसको नापने के लिए ये एक घटना काफी है और भारत को permanent membership के लिए रास्ते खुल जाने चाहिए. लेकिन मुझे मालूम है गरीब देशों को, developing countries को, हम जैसे इस इलाके में दूर-सदूर पड़े हुए लोगों को मिल बैठकर के लड़ाईय़ां पड़ेंगी। विश्व के रंगमंच पर हम सबको एक ताकत बनकर के उभरना पड़ेगा, हमारी समस्याओं का समाधान करने के लिए हम अपने आप कंधे से कंधा मिलाकर के समस्याओं का समाधान कर सकते हें। किसी की मदद से अगर दो साल में हो सकता है तो किसी की मदद के बिना 5 साल में भी तो होकर के रहेगा, हम झुकने वाले नहीं हैं।
विकास के रास्ते पर हमें चलना है, साथ मिलकर के चलना है और मेरी तो पहले दिन, हमारे यहां एक कहावत है हिंदुस्तान में, “पुत्र के लक्षण पालने में” यानि के जन्मते ही झूले में जो बच्चा होता है उसी से ही पता चला जाता है कि आगे चलकर के क्या होगा, ऐसी कहावत है शायद बांग्ला में भी होगी। मेरी सरकार का जन्म नहीं हुआ था, अभी तो जन्म होना बाकी था लेकिन हमने सार्क देशों के नेताओं को शपथ समारोह में बुलाया, सभी सार्क देशों को निमंत्रित किया, सम्मानपूर्वक निमंत्रित किया और शपथ उनके साक्ष्य में लिया, पहले ही दिन हमने संदेश दे दिया था कि हम सार्क देशों के साथ, मित्रता के साथ-साथ चलने के लिए निर्णायक हैं और हम चलना चाहते हैं ये भूमिका लेकर के हम चलते हैं, पहले ही दिन हमने परिचय करवा दिया है।
ये एक ऐसा भू-भाग है जिसके पास दुनिया को बहुत कुछ देने की ताकत है और उसी ताकत के भरोसे, हमारे पास क्या नहीं है? हमारे बीच एकता से हमें जोड़ने वाली ताकत कितनी तेज हैं, कला, संस्कृति, खान-पान, सब चीज, कोई ये सोच सकता है कि एक ही कवि दो देश के राष्ट्रगीत का रचियता हो? है, ये ही तो है, हमारे एकत्व को जोड़ता है, हम हमें जोड़ने वाली चीजों को उजागर करें, हमें जोड़ने वाली चीजों को लेकर के चलें और हम एक शक्ति बनकर के उभरें और विकास के मार्ग पर चलें और खुशी की बात है आपके प्रधानमंत्री जी और मेरी सोच perfectly match होती है, हमारे दिमाग में एक ही विषय है, विकास, विकास, विकास, उनके दिमाग में भी एक ही विषय है विकास, विकास, विकास। उन्होंने कहा हम 2021, जब बांग्लादेश अपनी golden jubilee बनाएगी तब हम अपनी आर्थिक स्थिति को वहां पहुंचाना चाहते हैं और इसलिए लगे हुए हैं।
आपकी इमारत कितनी ही मजबूत क्यों न हो लेकिन आपकी दिवार से सटी हुई पड़ोसी की इमारत अगर कच्ची हो जाए तो आपकी कितनी ही पक्की इमारत टिक सकती है क्या? कभी नहीं टिक सकती है और इसलिए भारत की इमारत कैसी ही क्यों न हो लेकिन बांग्लादेश की ताकत, भारत की ताकत समान होनी चाहिए, समान शक्ति से दोनों आगे बढ़ने चाहिए ताकि कभी कोई संकट न आए।
मेरा ये जो प्रवास रहा, समय तो जरा कम पड़ गया लेकिन मेरे लिए ये यात्रा यादगार रही है और उस यादगार यात्रा के साथ मैं आज जब भारत लौट रहा हूं, मन में जरूर रहेगा, मैं जब आज आया तो, मुझे कई लोग कह रहे थे, मोदी जी जरा ज्यादा दिन आ जाते, अच्छा होता, कुछ हमारे ग्रामीण इलाकों में जाते तो अच्छा होता, कई सारे सुझाव मेरे पास आए हैं। मुझे भी लगता है, कुछ कम रह गया, कुछ कम पड़ गया, अच्छा होता और मुझे कल हमारे ममता जी कह रही थीं, मोदी जी बांग्लादेश की मेहमाननवाजी आप कभी भूल नहीं सकते हैं. और मैंने अनुभव किया ऐसी उत्तम मेहमाननवाजी लेकिन आखिरकर मेरे जिम्मे भी कुछ duty है तो मेहमाननवाजी कितने दिन मै भुगतु यहां?
लेकिन मैं जरूर कभी न कभी चाहूंगा कि मैं फिर से एक बार जब बांग्लादेश आऊं, तब आप के आरोंग के समय मैने सुना है, handicraft के संबंध में काफी बड़ी नामना है। कभी आरोंग जाने का मन कर जाता है, कभी मन करता है नवाखली चला जाऊं जहां महात्मा गांधी का म्यूजिम बना हुआ है, बापू का आश्रम है, कभी नवाखली चला जाऊं। मेरा मन ये भी करता है कि हो सके तो मैं कुटिबाड़ी जा पाऊं और वहां ठाकुरबाड़ी देखूं फिर पौधा नदी में नाव के ऊपर, आप में से कुछ नौजवानों के साथ विशेषकर युवा मित्रों के साथ उस क्षेत्र के देखूं और वो भी अड्डा करते हुए, बिना अड्डा बांग्लादेश की यात्रा अधूरी रहती है और आज मैं मेरी इस यात्रा के आखिरी कार्यक्रम करके मैं सीधा ही यहां से हवाई अड्डे जा रहा हूं तो मैं यहीं आपके ही कवि के शब्दों के साथ में अपनी बात को समाप्त करूंगा, “आबार आशिबो, आबार आशिबो, फिरे धान सिदिंटिर तीरे, आऐ बांग्लाय, फिरे धान सिदिंटिर तीरे, आऐ बांग्लाय”।
मैं फिर एक बार आपके प्यार के लिए, इन गहरे संबंधों के लिए, भारत और बांग्लादेश के नौजवानों के सपनों के लिए इस यात्रा को हम एक नई ताकत के साथ आगे बढ़ाएंगे। जो सपने आपने संजोए हैं, वही सपने मेरे हैं, मैं जो सपने मेरे देश के लिए देखता हूं, वही सपने मैं आपके लिए भी देखता हूं। हम दोनों देश के युवा पीढ़ी की ताकत के भरोसे उन सपनों को संजोते हुए आगे बढ़ें, इसी शुभकामनाओं के साथ जय बांग्ला, जय हिंद।


Excellencies,
Distinguished delegates, Dear friends, Namaskar.
Welcome to the International Conference on Disaster Resilient Infrastructure 2025. This conference is being hosted in Europe for the very first time. I thank my friend, President Macron and the Government of France for their support. I also extend my wishes for the upcoming United Nations Oceans Conference.
Friends,
The theme of this conference is ‘Shaping a Resilient Future for Coastal Regions'. Coastal regions and islands are at great risk due to natural disasters and climate change. In recent times, we saw: Cyclone Remal in India and Bangladesh, Hurricane Beryl in the Caribbean, Typhoon Yagi in South-east Asia, Hurricane Helene in the United States, Typhoon Usagi in Philippines and Cyclone Chido in parts of Africa. Such disasters caused damage to lives and property.
Friends,
India also experienced this pain during the super-cyclone of 1999 and the tsunami of 2004. We adapted and rebuilt, factoring in resilience. Cyclone shelters were constructed across vulnerable areas. We also helped build a tsunami warning system for 29 countries.
Friends,
The Coalition for Disaster Resilient Infrastructure is working with 25 Small Island Developing States. Resilient homes, hospitals, schools, energy, water security and early warning systems are being built. Given the theme of this conference, I am glad to see friends from the Pacific, Indian Ocean and the Caribbean here. Further, I am happy that the African Union has also joined the CDRI.
Friends,
I would like to draw your attention to some important global priorities.
First: Courses, modules and skill development programmes on disaster resilience need to become part of higher education. This will build a skilled workforce that can tackle future challenges.
Second: Many countries face disasters and rebuild with resilience. A global digital repository of their learnings and best practices would be beneficial.
Third: Disaster resilience requires innovative financing. We must design actionable programmes and ensure developing nations have access to finance.
Fourth: We consider Small Island Developing States as Large Ocean Countries. Due to their vulnerability, they deserve special attention.
Fifth: Strengthening early warning systems and coordination is crucial. This helps timely decisions and effective last-mile communication. I am sure that discussions in this conference will consider these aspects.
Friends,
Let us build infrastructure that stands firm against time and tide. Let us build a strong and resilient future for the world.
Thank You.