India gave the message of good governance, non violence & Satyagraha: PM

Published By : Admin | April 29, 2017 | 13:13 IST
QuoteIndia’s history is not only about defeat, poverty or colonialism: PM
QuoteIndia gave the message of good governance, non-violence and Satyagraha: PM
QuoteMuslim community shouldn’t look at “triple talag” issue through a political lens: PM
QuoteFruits of development such as housing, electricity and roads should reach one and all, without distinction: PM

आप सभी को भगवान बसेश्वर की जयंती पर अनेक अनेक शुभ कामनाएं। बासवा समिति भी अपने 50 वर्ष पूरे कर एक उत्तम कार्य के द्वारा भगवान बसेश्वर के वचनों का प्रसार करने में एक अहम भूमिका निभाई है। मैं हृदय से उनका अभिनन्दन करता हूं।

मैं हमारे पूर्व उपराष्ट्रपति श्रीमान जती साहब को भी इस समय आदर पूर्वक स्मरण करना चाहूंगा। उन्होंने इस पवित्र कार्य को आरंभ किया आगे बढ़ाया। मैं आज विशेष रूप से इसके मुख्य संपादक रहे और आज हमारे बीच नहीं हैं। ऐसे कलबुर्गी जी को भी नमन करता हूं। जिन्होंने इस कार्य के लिये अपने आपको खपा दिया था। आज वो जहां होंगे उनको सबसे ज्यादा संतोष होता होगा। जिस काम को उन्होंने किया था। वो आज पूर्णता पर पहुंच चुका है। हम सब लोग राजनीति से आए दलदल में डूबे हुए लोग हैं। कुर्सी के इर्द-गिर्द हमारी दुनिया चलती है। और अक्सर हमनें देखा है कि जब कोई राजनेता जब कोई रापुरुष उनका स्वर्गवास होता है बिदाई लेता है, तो बड़ी गंभीर चेहरे के साथ उनके परिवारजन जनता जनार्दन के सामने कहते हैं कि मैं अपने पिताजी के अधूरे काम पूरा करूंगा। अब आप भी जानते हैं मैं भी जानता हूं जब राजनेता का बेटा कहता है कि उनके अधूरा काम पूरा करूंगा मतलब क्या करूंगा। राजनीतिक दल के लोग भी जानते हैं कि इसने जब कह दिया कि अधूरा काम पूरा करूंगा, तो इसका मतलब क्या होता है। लेकिन मैं अरविंद जी को बधाई देता हूं की सच्चे अर्थ में ऐस काम कैसे पूरे किये जाते हैं। इस देश के उपराष्ट्रपति पद पर गौर्वपूर्ण जिसने जीवन बिताया, देश जिनको याद करता है। उनका बेटा पिता के अधूरे काम पूरा करने का मतलब होता है। भगवान बसवाराज की बात को जन जन तक पहुंचाना। हिन्दुस्तान के कोने कोने तक पहुंचाना। आने वाली पीढ़ियों के पास पहुंचाना। जति साहब स्वयं तो हमारे सामने बहुत आदर्श की बातें रख कर गए हैं। लेकिन भाई अरविंद भी अपने इस उत्तम कार्य के द्वारा खासकर के राजनीतिक परिवारों के लिये। एक उत्तम आदर्श प्रस्तुत किया है। मैं इसके लिये उनका अभिनन्दन करता हूं।

समिति के 50 वर्ष पूरे होने पर इस काम में दो दो पीढ़ी खप गई होगी। अनेक लोगों ने अपना समय दिया होगा। शक्ति लगाई होगी। 50 साल दरमियान जिन जिन लोगों ने जो जो योगदान दिया है। उन सबका भी मैं आज हृदय से अभिनन्दन करना चाहता हूं। उनको बधाई देना चाहता हूं।

मेरे प्यारे भाइयों बहनों भारत का इतिहास सिर्फ हार का इतिहास नहीं है प्राजय का इतिहास नहीं है। सिर्फ गुलामी का इतिहास नहीं है। सिर्फ जुल्म अत्याचार झेलने वालों का इतिहास नहीं है। सिर्फ गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा और सांप और नेवले की लड़ाई का इतिहास नहीं भी नहीं है। समय के साथ अलग अलग कालखंडों में देश में कुछ चुनौतियां आती हैं। कुछ यहीं पैर जमा कर बैठ भी गईं। लेकिन ये समस्याएं ये कमियां ये बुराइयां ये हमारी पहचान नहीं हैं। हमारी पहचान है इन समस्याओं से निपटने का हमारा तरीका हमारा Approach भारत वो देश है, जिसने पूरे विश्व को मनवता का, लोकतंत्र का, Good Governance का, अहिंसा का, सत्याग्रह का संदेश दिया है। अलग अलग समय पर हमारे देश में ऐसी महान आत्माएं अवतरित होती रहीं, जिन्होंने सम्पूर्ण मानवता को, अपने विचारों से अपने जीवन से दिशा दिखाई। जब दुनिया के बड़े बड़े देशों ने पश्चिम के बड़े बड़े जानकारों ने लोकतंत्र को, सबको बराबरी के अधिकार को एक नए नजरिये के तौर पर देखना शुरू किया उससे भी सदियों पहले और कोई भी हिन्दुस्तानी इस बात को गर्व के साथ कह सकता है। उससे भी सदियों पहले भारत ने इन मूल्यों का न सिर्फ आत्मसार किया बल्कि अपनी शासन पद्धति में शामिल भी किया था। 11वीं शताब्दि में भगवान बसेश्वसर ने भी एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का सृजन किया। उन्होंने अनुभव मंडप नाम की एक ऐसी व्यवस्था विकसित की जिनमें हर तरह के लोग गरीब हो, दलित हो, पीड़ित हो, शोषित हो, वंचित हो वहां आकर के सबके सामने अपने विचार रख सकते हैं। ये तो लोकतंत्र कि कितनी बड़ी अद्भुत शक्ति थी। एक तरह से यह देश की पहली संसद थी। यहां हर कोई बराबर के थे। कोई ऊंच नहीं भेदभाव नहीं मेरा तेरा कुछ नहीं। भगवान बसवेश्वर का वचन। वो कहते थे, जब विचारों का आदान प्रदान न हो, जब तर्क के साथ बहस न हो, तब अनुभव गोष्टी भी प्रासंगिक नहीं रह जाती और जहां ऐसा होता है, वहां ईश्वर का वास भी नहीं होता है। यानी उन्होंने विचारों के इस मंथन को ईश्वर की तरह शक्तिशाली और ईश्वर की तरह ही आवश्यक बताया था। इससे बड़े ज्ञान की कल्पना कोई कर सकता है। यानी सैकड़ों साल पहले विचार का सामर्थ ज्ञान का सामर्थ ईश्वर की बराबरी का है। ये कल्पना आज शायद दुनिया के लिये अजूबा है। अनुभव मंडप में अपने विचारों के साथ महिलाओं को खुल कर के बोलने की स्वतंत्रता थी। आज जब ये दुनिया हमें woman empowerment के लिये पाठ पढ़ाती है। भारत को नीचा दिखाने के लिये ऐसी ऐसी कल्पना विश्व में प्रचारित की जाती है। लेकिन ये सैंकड़ों साल पुराना इतिहास हमारे सामने मौजूद है कि भगवान बसवेश्वर ने woman empowerment equal partnership कितनी उत्तम व्यवस्था साकार की सिर्फ कहा नहीं व्यवस्था साकार की। समाज के हर वर्ग से आई महिलाएँ अपने विचार व्यक्त करती थीं। कई महिलाएं ऐसी भी होती थीं जिन्हें सामान्य समाज की बुराइयों के तहत तृस्कृत समझा जाता था। जिनसे अपेक्षा नहीं जाती थी। जो उस समय के तथाकथित सभ्य समाज बीच में आए। कुछ बुराइयां थी हमारे यहां। वैसी महिलाओं को भी आकर के अनुभव मंडप में अपनी बात रखने का पूरा पूरा अधिकार था। महिला सशक्तिकरण को लेकर उस दौर में कितना बड़ा प्रयास था, कितना बड़ा आंदोलन था हम अंदाजा लगा सकते हैं। और हमारे देश की विशेषता रही है। हजारों साल पुराना हमारी परम्परा है, तो बुराइयां आई हैं। नहीं आनी चाहिए। आई, लेकिन उन बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का माददा भी हमारे भीतर ही पैदा हुआ है। जिस समय राजाराम मोहन राय ने विध्वा विवाह की बात रखी होगी। उस समय के समाज ने कितना उनकी आलोचना की होगी। कितनी कठिनाइयां आई होगी। लेकिन वो अड़े रहे। माताओं बहनों के साथ ये घोर अन्याय है। अपराध है समाज का ये जाना चाहिए। कर के दिखाया।

और इसलिये मैं कभी कभी सोचता हूं। तीन तलाक को लेकर के आज इतनी बड़ी बहस चल रही है। मैं भारत की महान परम्परा को देखते हुए। मेरे भीतर एक आशा का संचार हो रहा है। मेरे मन में एक आशा जगती है कि इस देश में समाज के भीतर से ही ताकतवर लोग निकलते हैं। जो कानबाह्य परम्पराओं को तोड़ते हैं। नष्ट करते हैं। आधुनिक व्यवस्थाओं को विकसित करते हैं। मुसलमान समाज में से भी ऐसे प्रबुद्ध लोग पैदा होंगे। आगे आएंगे और मुस्लिम बेटियों को उनके साथ जो गुजर रही है जो बीत रही है। उसके खिलाफ वो खुद लड़ाई लड़ेंगे और कभी न कबी रास्ता निकालेंगे। और हिन्दुस्तान के ही प्रबुद्ध मुसलमान निकलेंगे जो दुनिया के मुसलमानों को रास्ता दिखाने की ताकत रखते हैं। इस धरती की ये ताकत है। और तभी तो उस कालखंड में ऊंच नीच, छूत अछूत चलता होगा। तब भी भगवान बसवेश्वर कहते थे नहीं उस अनुभव मंडप में आकर के उस महिला को भी अपनी बात कहने का हक है। सदियों पहले ये भारत की मिट्टी की ताकत है कि तीन तलाक के संकट से गुजर रहे हमारी माता बहनों को भी बचाने के लिये उसी समाज से लोग आएंगे। और मैं मुसलमान समाज के लोगों से भी आग्रह करूंगा कि इस मसले को राजनीति के दायरे में मत जाने दीजिये। आप आगे आइये इस समस्या का समाधान कीजिए। और वो समाधान का आनन्द कुछ और होगा आने वाले पीढ़ियां तक उससे ताकत लेगी।

साथियों भगवान बसवेश्वर के वचनों से उनकी सिक्षाओं से बने सात सिद्धांत इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह आज भी इस जगह को एक छोर से दूसरे छोर तक जोड़े हुए है। आस्था किसी के भी प्रति हो किसी की भी हो हर किसी का सम्मान हो। जाती प्रथा, छू अछूत जैसी बुराइयां न हों सबको बराबरी का अधिकार मिले इसका वे पुरजोर समर्थन करते रहते थे। उन्होंने हर मानव में भगवान को देखा था। उन्होंने कहा था। देह वे एकल, अर्थात ये शरीर एक मंदिर है। जिसमें आत्मा ही भगवान है। समाज में ऊंच नीच का भेद भाव खत्म हो। सब का सम्मान हो। तर्क और वैज्ञानिक आधार पर समाज की सोच विकसित की जाए। और ये हर व्यक्ति का सशक्तिकरण हो। ये सिद्धांत किसी भी लोकतंत्र किसी भी समाज के लिये एक मजबूत Foundation की तरह है मजबूत नीव की तरह है। वो कहते हैं ये मत पूछो कि आदमी किस जात मत का है इब या रब ये कहो कि यूं नमव। ये आदमी हमारा है। हम सभी के बीच में से एक है। इसी नीव पर एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण हो रहा है। यही सिद्धांत एक राष्ट्र के लिये नीति निर्देशन का काम करते हैं। हमारे लिये ये बहुत ही गौरव का विषय है की भारत की धरती पर 800 वर्ष पहले इन विचारों को भगवान बसवेश्वर ने जन भावना और जनतंत्र का आधार बनाया था। सभी को साथ लेकर चलने की उनके वचनों ने वही प्रतिध्वनि है जो इस सरकार के सबका साथ सबका विकास का मंत्र है। बिना भेद भाव कोई भेद भाव नहीं बिना भेद भाव इस देस के हर व्यक्ति को अपना घर होना चाहिए। भेदभाव नहीं होना चाहिए। बिना भेद भाव हर किसी को 24 घंटे बिजली मिलनी चाहीए। बिना भेद भाव हर गांव में गांव तक सड़क होना चाहिए। बिना भेद भाव हर किसान को सींचाई को लिये पानी मिलना चाहिए। खाद मिलना चाहिए, फसल का बीमा मिलना चाहिए। यही तो है सबका साथ सबका विकास। सबको सात लेकर और ये देश में बहुत आवश्यक है। सबको सात लेकर के सब के प्रयास से सबके प्रयत्न से सबका विकास किया जा सकता है।

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आप सबने भारत सरकार की मुद्रा योजना के बारे में सुना होगा। यह योजना देश के नौजवानों को बिना भेदभाव बिना बैंक गारंटी अपने पैरों पर खड़े होने के लिये अपने रोजगार के लिये कर्ज देने के लिये शुरु की गई है। without guaranty, अब तक, अब तक देश के साढ़े तीन करोड़ो लोगों को इस योजना के तहत तीन लाख करोड़ से ज्यादा कर्ज दिया जा चुका है। आप ये जानकर के हैरान हो जाएंगे कि इस योजना के तहत कर्ज लेने वालों में और आज 800 साल के बाद भगवान बसवेश्वर को खुशी होती होगी कि ये कर्ज लेने वालों में 76% महिलाएं हैं। सच कहूं तो जब ये योजना शुरू की गई थी, तो हम सबको भी ये उम्मीद नहीं थी कि महिलाएं इतनी बड़ी संख्या में आगे आएंगी इससे जुड़ेंगी। और स्वयं entrepreneur बनने की दिशा में काम करेंगी। आज ये योजना महिला सशक्तिकरण में एक बहुत अहम भूमिका निभा रही है। गांव में, गलियों में छोटे छोटे कस्बों में मुद्रा योजना महिला उद्यमियों का एक प्रकार से बड़ा तांता लग रहा है। भाइयों बहनों भगवान बसवेशर का वचन सिर्फ जीवन का ही सत्य नहीं है। ये सुशासन, गवर्नेन्स, राजकर्ताओं के लिये भी ये उतने ही उपयोगी है। वो कहते थे कि ज्ञान के बल से अज्ञान का नाश है। ज्योति के बल से अंधकार का नाश है। सत्य के बल से असत्य का नाश है। पारस के बल से लोहत्व का नाश है। व्यवस्था से असत्य को ही दूर करना है तो सुशासन होता है वही तो गुड गवर्नेन्स है। जब गरीब व्यक्ति को मूल्य वाली सब्सिडी सही हाथों में जाती है, जब गरीब व्यक्ति का राशन उसी के पास पहुंचता है, जब नियुक्तियों में सिफारिशें बंद होती हैं। जब गरीब व्यक्ति को भ्रष्टाचार और काले धन से मुक्ति के प्रयास किये जाते हैं, तो व्यवस्था में सत्यता का ही मार्ग बढ़ता है और वही तो भगवान बसवेश्वर ने बताया है। जो झूठा ह गलत है, उसे हटाना पारदर्शिता लाना Transparency वही तो good governance है।

भगवान बसवेश्वर कहते थे, मनुष्य जीवन निस्वार्थ कर्म योग से ही प्रकाशित होता है। निस्वार्थ कर्मयोग। शिक्षामंत्री जी। वे मानते थे समाज में निस्वार्थ कर्मयोग जितना बढ़ेगा उतना समाज से भ्रष्ट आचरण भी कम होगा। भ्रष्ट आचरण एक ऐसा दीमक है, जो हमारे लोकतंत्र को हमारी सामाजिक व्यवस्था को भीतर से खोखला कर रहा है। ये मनुष्य से बराबरी का अधिकार छीन लेता है। एक व्यक्ति जो मेहनत करके ईमानदारी से कमा रहा है, जब वो देखता है कि भ्रष्टाचार करके कम मेहनत से दूसरे ने अपने लिये जिन्दगी आसान कर ली है। तो एक पल के लिये एक पल ही क्यों न हो लेकिन वो ठिठक कर सोचता जरूर है शायद वो रास्ता तो सही नहीं है। सच्चाई का मार्ग छोड़ने के लिये कभी कभी मजबूर हो जाता है। गैर बराबरी के इस एहसास को मिटाना हम सभी का कर्तव्य है। और इसलिये अब सरकार की नीतियों को निर्णयों को भली भांति देख सकते हैं कि निस्वार्थ कर्मयोग को ही हमारी यहां प्राथमिकता है और निस्वार्थ पाएंगे। हर पल अनुभव करेंगे। आज बसवाचार्यजी के ये वचन उनके विचारों का प्रवाह कर्नाटक की सीमाओं से बाहर लंदन की Thames नदी तक दिखाई दे रहा है।



मेरा सौभाग्य है कि मुझे लंदन में बसवाचार्य जी की प्रतिमा का अनावर्ण करने का अवसर मिला जिस देश के बारे में कहा जाता था कि इसमें कभी सूर्यास्त नहीं होता। वहां की संसद के सामने लोकतंत्र को संकल्पित करने वाली बसवाचार्यजी की प्रतिमा किसी तीर्थस्थल से कम नहीं है। मुझे आज भी याद है। उस समय कितनी बारिश हो रही था और जब बसवाचार्य जी की प्रतिमा लगाई जा रही थी, तो स्वयं मेघराजा भी अमृत बरसा रहे थे। और ठंड भी थी। लेकिन उसके बाद भी इतने मनोयोग से लोग भगवान बसवेश्वर के बारे में सुन रहे थे उनको कौतुक हो रहा था कि सदियों पहले हमारे देश में लोकतंत्र, woman empowerment, equality इसके विषय में कितनी चर्चा थी। मैं समझता हूं उनके लिये बड़ा अजूबा था। साथियों अब ये हमारी शिक्षा व्यवस्था की खामियां मानिये या फिर अपने ही इतिहास को भुला देने की कमजोरी मानिये। लेकिन आज भी हमारे देश में लाखों करोड़ों युवाओं को इस बारे में पता नहीं होगा कि 800 – 900 साल पहले हजार साल पहले हमारे देश में सामाजिक मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिये जन जागरती का कैसा दौर चला था। कैसा आंदोलन चला था हिन्दुस्तान के हर कोने में कैसे चला था। समाज में व्याप्त बुराइयों को खत्म करने के लिये उस काल खंड में 800 हजार साल पहले की बात कर रहा हूं। गुलामी के वो दिन थे। हमारे ऋषियों ने संत आत्माओं ने जन आंदोलन की नीव रखी थी । उन्होंने जन आंदोलन को भक्ति से जोड़ा था। भक्ति ईश्वर के प्रति और भक्ति समाज के प्रति दक्षिण से शूरू होकर भक्ति आंदोलन का विस्तार महाराष्ट्र और गुजरात होते हुए उत्तर भारत तक हो गया। इस दौरान अलग अलग भाषाओं में अलग वर्गों के लोगों ने समाज में चेतना जगाने का प्रयास किया। इन्होंने समाज के लिये एक आईने की तरह काम किया। जो अच्छाइयां थी जो बुराइयां थी वो न सिर्फ शीशे की तरह लोगों के सामने रखीं बल्कि बुराइयों से भक्ति का रास्ता भी दिखाया। मुक्ति के मार्ग में भक्ति का मार्ग अपनाया। कितने ही नाम हम सुनते हैं। रामानुजा कार्य, मधवाचार्य, निम्बकाचार्य, संत तुका राम, मीरा बाई, नरसिंह मेहता, कबीरा, कबीर दास, संत रैय दास, गुरुनानक देव, चैतन्य महाप्रभु अनेक अनेक महान व्यक्तियों के समागम से। भक्ति आंदोलन मजबूत हुआ। इन्हीं के प्रभाव से देश एक लंबे कालखंड में अपनी चेतना को स्थिर रखता है। अपनी आत्मा को बचा पाया। सारी विपत्तियां गुलामी के कालखंड के बीच में हम अपने आप को बचा पाए थे, बढ़ पाए थे। एक बात और आप ध्यान देंगे, तो आप पाएंगे कि सभी ने बहुत ही सरल सहज भाषा में समाज तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास किया। भक्ति आंदोलन के दौरान धर्म, दर्शन, साहित्य की ऐसी त्रिवेणी स्थापित हुई जौ आज भी हम सभी को प्रेरणा देती है। उनके दोहे उनके वचन उनकी चौपई उनकी कविताएं, उनके गीत, आज भी हमारे समाज के लिये उतने ही मूल्यवान है। उनका दर्शन उनकी फ्लोशॉफी, किसी भी समय की कसौटी पर पूरी तरह फिट बैठती है। 800 साल पहले बसवेश्वर जी ने जो कहा, आज भी सही लगता है कि नहीं लगता है।

साथियों आज भक्ति आंदोलन के उस भाव को उस दर्शन को पूरे विश्व में प्रचारित किये जाने की आवश्यकता है। मुझे खुशी है कि 23 भाषाओं में भगवान बसवेश्वर के वचनों का कार्य आज पूरा किया गया है। अनुवाद के कार्य में जुटे सभी लोगों का मैं अभिनन्दन करता हूं। आपके प्रयास से भगवान बसवेश्वर के वचन अब घर-घर पहुंचेंगे। आज इस अवसर पर मैं बसवा समिति से भी कुछ आग्रह करूंगा। करुं न, लोकतंत्र में जनता को पूछ कर के करना अच्छा रहता है। एक काम हम कर सकते हैं क्या इन वचनों के आधार पर एक quiz bank बनाई जाए। questions और सारे वचन डिजीटली ऑनलाइन हो और हर वर्ष अलग अलग आयु के लोग इस quiz कॉम्पीटीशन में ऑनलाइन हिस्सा लें। तहसील पर डिस्टिक लेवल पे स्टेट इन्टरस्टेट, इन्टरनेशनल लेवल पर एक कॉम्पीटीशन साल भर चलता रहे। कोशिश करें पचास लाख एक करोड़ लोग आएं। quiz competition में भाग लें। उसके लिये उसको वचनामृत का एक स्टूडेंट की तरह अध्ययन करना पड़ेगा। quiz competition में हिस्सा लेना पड़ेगा। और मैं मानता हूं अरविंद जी, इस काम को आप अवश्य कर सकते हैं। वरना क्या होगा इन चीजों को हम भूल जाएंगे। मैं जिस दिन पार्लियामेंट में मेरी मुलाकात हुई। जैसा उन्होंने कहा कि उन दिनों नोट बंदी को लेकर चर्चा थी। लोग जेब में हाथ लगाकर घूम रहे थे। जो पहले दूसरों के जेब में हाथ डालते थे, उस दिन अपने जेब में हाथ डालकर। और उस समय अरविंदजी ने मुझे बसवाचार्य जी का एक कोटेशन मुझे सुनाया था। इतना परफेक्ट था। अगर वो मुझे 7 तारीख को मिल गया होता तो मेरे आठ तारीख को जो बोला जरूर उसका उल्लेख करता। और फिर कर्नाटक में क्या क्या कुछ बाहर आता आप अंदाजा लगा सकते हैं। और इसलिये मैं चाहूंगा कि इस काम को आगे बढ़ाया जाए। इसे यहां रोका ना जाए। और आज जो नई जनरेशन है जो इनका तो गूगल गुरू है। तो उनके लिये रास्ता सही है उनको, बहुत बड़ी मात्रा में इसको, दूसरा ये भी कर सकते हैं कि इस वचन अमृत और आज के विचार दोनों के सार्थकता के quiz competition हो सकता है। तो लोगों को लगेगा कि विश्व के किसी भी बड़े महापुरुषों के वाक्य के बराबरी से भी ज्यादा शार्पनेश 800-900 पहले हमारी धरती के संतान में थी। हम इस पर सोच सकते हैं। और एक काम मैं यहां सदन में जो लोग हैं वो जो देश दुनिया में जो भी इस कार्यक्रम को देख रहे हैं वो भी। 2022 हमारे देश की आजादी के 75 साल हो रहे हैं। 75 साल जैसे बीत गए क्या वैसे ही उस वर्ष को भी बिता देना है। एक और साल एक और समारोह ऐसा ही करना है क्या। जी नहीं, आज से ही हम तय करेंगे। 2022 तक कहां पहुंचना है। व्यक्ति हो संस्था हो, परिवार हो, अपना गांव हो, नगर हो, शहर हो, हर किसी का संकल्प होना चाहिए। देश की आजादी के लिये जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी, जेलों में अपनी जिन्दगी बिता दी देश के लिये अर्पित कर दी। उनके सपने अधूरे हैं उन्हें पूरा करना हम सबका दायित्व बनता है अगर सवा सौ करोड़ देश वासी 2022 को देश को यहां ले जाना है मेरे अपने प्रयत्न से ले जाना है। वरना सलाह देने वाले तो बहुत मिलेंगे। हां सरकार को ये करना चाहिए सरकार को ये नहीं करना चाहिए। जी नहीं सवा सौ करोड़ देशवासी क्या करेगा। और तय करे और तय करके चल पड़े कौन कहता है दुनिया में बसवाचार्य जी का सपने वाला जो देश है , दुनिया है वो बनाने में हम कम रह सकते हैं, वो ताकत लेकर के हम साथ चलें। और इसलिये मैं आपसे आग्रह कर रहा हूं कि आप इस समिति के द्वारा जिन्होंने इन विचारों को लेकर काम बहुत उत्तम किया है आज मुझे उन सभी सरस्वती के पुत्रों से भी मिलने का दर्शन करने का सौभाग्य मिला। जिन्होंने इसको पूर्ण करने में उन्होंने रात दिन खपाई हैं। कनड भाषा सीखी होगी उसमें से किसी ने गुजराती किया होगा, किसी ने सनिया किया होगा, उर्दू किया होगा, उन सबको मुझे आज मिलने का अवसर मिला मैं उन सबका भी हृदय से बहुत बहुत अभिनन्दन करता हूं। इस काम को उन्होंने परिपूर्ण करने के लिये अपना समय दिया, शक्ति दिया, अपना ज्ञान का अर्चन उस काम के लिये किया। मैं फिर एक बार इस पवित्र समारोह में आपके बीच आने का मुझे सौभाग्य मिला। उन महान वचनों को सुनने का अवसर मिला और इस बहाने मुझे इसकी ओर जाने का मौका मिला। मैं भी धन्य हो गया, मुझे मिलने का सौभाग्य मिला मैं फिर आप सबका एक बार धन्यवाद करता हूं बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

  • Kishor choudhari January 03, 2024

    जय हो
  • Munna Mushar November 15, 2023

    मुन्ना8303244598
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Prime Minister hails India's Youth-Led Tech Innovation as Nation Strengthens Self-Reliance
June 12, 2025
QuotePrime Minister highlights the transformation brought about in lives of people through 11 years of Digital India

The Prime Minister, Shri Narendra Modi today lauded India’s young innovators for their pivotal role in advancing technology and driving the nation’s self-reliance. Over the past 11 years, Digital India has empowered the youth to harness innovation, reinforcing India’s position as a global technology powerhouse.

Shri Modi also remarked that over the past 11 years, leveraging the power of technology has brought innumerable benefits for people of India. He added that Service delivery and transparency have been greatly boosted.

Responding to posts on X by MyGovIndia, Shri Modi stated:

“Powered by the youth of India, we are making remarkable progress in innovation and application of technology. It is also strengthening our efforts to become self-reliant and a global tech powerhouse.

#11YearsOfDigitalIndia”

“Leveraging the power of technology has brought innumerable benefits for people. Service delivery and transparency have been greatly boosted. Furthermore, technology has become a means of empowering the lives of the poorest of poor.

#11YearsOfDigitalIndia”