*लेखक:* प्रेम कुमार धूमल, पूर्व मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश
*प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जीवन यात्रा* — एक समर्पित कार्यकर्ता से लेकर देश के सर्वोच्च नेतृत्व तक — भारत के विभिन्न अंचलों से उनके गहरे जुड़ाव की कहानी है। इन जुड़ावों में से एक विशेष व्यक्तिगत, राजनीतिक और आध्यात्मिक संबंध हिमाचल प्रदेश से रहा है। देवभूमि, वीरभूमि और अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य की धरती।
देश की बागडोर संभालने से बहुत पहले ही नरेन्द्र मोदी ने हिमाचल की पवित्र वादियों पर अपनी छाप छोड़ दी थी। मोदी का हिमाचल से औपचारिक जुड़ाव वर्ष 1994 में हुआ, जब उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश प्रभारी नियुक्त किया। नियुक्ति से पहले भी उनकी हिमाचल यात्राएँ आध्यात्मिक साधना और स्थानीय संस्कृति से गहरे संपर्क का माध्यम रही थीं।
वे शिमला के जाखू और संकटमोचन मंदिरों में अक्सर जाया करते थे और मार्ग में बंदरों को खिलाने के लिए चना और गुड़ अपने साथ रखते थे — यह उनके जीवों एवं प्रकृति के प्रति करुणाभाव का परिचायक था।
1998 का विधानसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व एवं हिमाचल से उनके ज़मीनी जुड़ाव का परिचायक रहा। उस दौर में न सोशल मीडिया था और न आधुनिक प्रचार साधन, फिर भी उन्होंने कई यात्राएँ निकालीं और जनसंपर्क के अभिनव तरीके खोज निकाले एवं कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाया। साथ ही स्थानीय संस्कृति को सम्मान देते हुए अनोखे स्वागत द्वार बनवाए।
चंबा में उनकी ही पहल पर बना 'गद्दी शॉल गेट' न सिर्फ स्थानीय गौरव का प्रतीक बना, बल्कि भाजपा का संदेश सीधे जनता के दिल तक पहुँचाने का प्रभावी माध्यम सिद्ध हुआ।
हिमाचल से नरेन्द्र मोदी का जुड़ाव केवल संगठन और राजनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यहाँ की प्रकृति और लोगों से उनका गहरा आत्मीय संबंध भी समय-समय पर सामने आया है। नरेन्द्र मोदी अक्सर हिमाचल प्रदेश में बिजली महादेव के दर्शन करने जाते थे, जो वहाँ के स्थानीय देवता हैं।
मार्ग में वह ग्रामीणों से सहजता से बातचीत करते और उनके अनुभवों व परिस्थितियों को समझने में रुचि दिखाते थे। मंदिर पहुँचने के बाद मोदी न केवल दर्शन करते, बल्कि आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद भी लिया करते थे।
उन्होंने हिमाचल भाजपा संगठन को मजबूती और नई ऊर्जा देने में अहम भूमिका निभाई। कार्यकर्ताओं को राजनीति में अधिक अनुशासित, संगठित और गंभीर बनाने का श्रेय भी उन्हें जाता है।
पुराने कार्यकर्ता याद करते हैं कि प्रभारी के रूप में उन्होंने सबसे पहले प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक, जो पहले आधे दिन की औपचारिक प्रक्रिया हुआ करती थी, उसे दो दिन की आवासीय पद्धति में बदल दिया। यही कदम संगठन को सशक्त करने की मजबूत नींव बना।
उन्होंने हिमाचल के भाजपा संगठन को मजबूत बनाने और उसमें नई ऊर्जा का संचार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कार्यकर्ताओं को राजनीति में अधिक व्यवस्थित और गंभीर दृष्टिकोण अपनाने के लिए तैयार किया।
एक वरिष्ठ कार्यकर्ता स्मरण करते हैं कि प्रभारी के रूप में आते ही उन्होंने प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक, जो पहले केवल आधे दिन की औपचारिकता होती थी, उसे दो दिन का आवासीय कार्यक्रम बनाकर संगठन को मजबूत करने की ठोस नींव रखी।
उन्होंने हिमाचल संगठन में कार्यकर्ताओं से सहयोग लेकर कार्य करने की परंपरा की शुरुआत की, जिसका जीवंत उदाहरण शिमला का कार्यालय 'दीपकमल' है। इसका निर्माण और उद्घाटन उनके प्रभारी काल में हुआ, जिसमें उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
उनकी माताजी उनको खर्च करने के लिए जो पैसे देती थीं, प्रदेश कार्यालय निर्माण के लिए उन्होंने वे पैसे पार्टी को दे दिए, जिसके कारण अन्य कार्यकर्ता भी योगदान देने के लिए प्रेरित हुए।
उन्होंने न केवल कार्यालय के निर्माण में मार्गदर्शन और सहयोग दिया, बल्कि हिमाचल के कार्यकर्ताओं को इसे कंप्यूटर के उपयोग के साथ आधुनिक स्वरूप देने के लिए भी प्रेरित और प्रशिक्षित किया।
जब 1998 में हिमाचल विधानसभा समय से पहले भंग हुई, तब मोदी की राजनीतिक सूझबूझ ने सबको चकित कर दिया। उन्होंने भाजपा और हिमाचल विकास कांग्रेस (एचवीसी) के बीच गठबंधन कराया, निर्दलीय विधायकों का समर्थन सुनिश्चित किया और यहाँ तक कि कांग्रेस नेता ठाकुर गुलाब सिंह को स्पीकर पद के चुनाव में उतरने के लिए तैयार कर लिया। इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस की संख्या घटी और प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा–एचवीसी सरकार का गठन संभव हो सका। यह उनके अद्वितीय रणनीतिक कौशल का प्रमाण था।
हिमाचल से उनका संबंध केवल राजनीति तक सीमित नहीं रहा। यहाँ से मिली सीख को उन्होंने आगे भी लागू किया। सोलन की मशरूम खेती को उन्होंने बाद में गुजरात में प्रोत्साहन दिया। विश्वविद्यालयों में रक्षा और सामरिक अध्ययन शुरू करने का सुझाव दिया, ताकि हिमाचल की सैनिक परंपरा को शैक्षिक आधार मिले। नरेन्द्र मोदी ने पैराग्लाइडिंग करना भी हिमाचल प्रदेश से ही सीखा। राजनीति से परे, मोदी सदैव हिमाचल को ‘देवभूमि’ मानते रहे। वे पहाड़ी मंदिरों में पेड़ों के नीचे बैठकर लंबे समय तक ध्यान-साधना करते थे। प्रकृति और ईश्वर के प्रति उनकी गहरी आस्था उनके जीवन और कार्यशैली दोनों में झलकती थी।
वे हिमाचली भोजन के विशेष शौकीन हैं—मंडी की सेपू बड़ी, चंबा का मधरा और कांगड़ा की धाम उनकी पसंदीदा व्यंजनों में गिने जाते हैं। स्थानीय संस्कृति के प्रति यह आत्मीयता उन्हें हिमाचलवासियों के और करीब लाती है। उनकी स्मरण शक्ति भी इस जुड़ाव को और विशेष बनाती है—वर्षों पुराने कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को वे आज भी नाम लेकर पहचानते हैं।
2017 में शिमला के एक कार्यक्रम में उन्होंने मंच से कई पुराने साथियों को नाम लेकर संबोधित किया और कार्यक्रम के बाद ‘इंडियन कॉफी हाउस’ पहुँचकर वहाँ की कॉफी का आनंद लिया, जिसका ज़िक्र उन्होंने अपने संबोधन में भी किया था। 2019 के लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान सोलन में उन्होंने मंच से पुराने दिनों को याद करते हुए मनोहर जी के चनों का भी उल्लेख किया। ऐसे प्रसंग यह दर्शाते हैं कि हिमाचल से नरेन्द्र मोदी का रिश्ता केवल कर्तव्य तक सीमित नहीं, बल्कि उनकी स्मृतियों, रुचियों और जीवन के अनुभवों का हिस्सा है—और इस रिश्ते के और भी पहलू समय-समय पर सामने आते रहते हैं।
आज प्रधानमंत्री के रूप में वे हिमाचल को विशेष प्राथमिकता देते हैं—चाहे वह रोहतांग टनल का निर्माण हो या पर्यटन एवं आधारभूत ढाँचे का सुदृढ़ीकरण। हिमाचल ने नरेन्द्र मोदी को अपनेपन, विश्वास और सीख दी, और बदले में मोदी ने हिमाचल को नई ऊर्जा, विकास और गौरव की पहचान दी। यही रिश्ता इस अनोखे अध्याय को पूर्णता भी देता है और भविष्य के लिए संभावनाओं का द्वार भी खोलता है।


