Redefine your role, move beyond controlling, regulating & managerial capabilities: PM Modi to Civil Servants
Let us create an atmosphere where everyone can contribute. The energy of 125 crore Indians will take the nation ahead: PM
Initiatives succeed when 'Jan Bhagidari' is embraced. Engaging with civil society is very important: PM
Our success lies in our experiences, knowledge and energy we possess: PM Modi
Let us assume every challenging situation as an opportunity to move forward: PM Modi
What you are doing is not a 'job'...it is a service: PM Modi to Civil Servants

मंत्री परिषद के मेरे सहयोगी ... उपस्थित सभी महानुभाव और साथियों,

Civil Service Day देश के जीवन में भी और हम सबके जीवन में भी और विशेषकर आपके जीवन में, सार्थक कैसे बने? क्‍या ये ritual बनना चाहिए? हर साल एक दिवस आता है। इतिहास की धरोहर को याद करने का अवसर मिलता है। यह अवसर अपने-आप में इस बात के लिए हमें प्रेरणा दे सकता है क्‍या कि हम क्‍यों चले थे, कहां जाना था, कितना चले, कहां पहुंचे, कहीं ऐसा तो नहीं था कि जहां जाना था वहां से कहीं दूर चले गए? कहीं ऐसा तो नहीं था कि जहां जाना था अभी वहां पहुंचना बहुत दूर बाकी है? ये सारी बातें हैं जो व्‍यक्ति को विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। और ऐसे अवसर होते हैं जो हमें जरा पीछे मुड़ करके और उस कदमों को, उस कार्यकाल को एक critical नजर से देखने का अवसर भी देते हैं। और उसके साथ-साथ, ये अवसर ही होते हैं कि जो नए संकल्‍प के लिए कारण बनते हैं। और ये जीवन में हर किसी का अनुभव होता है। सिर्फ हम यहां बैठे हैं इसलिए ऐसा नहीं है।

एक विद्यार्थी भी जब exam दे करके घर लौटता है, एक तरफ रिजल्‍ट का इंतजार करता है, साथ-साथ ये भी सोचता है कि अगले साल तो प्रारंभ से ही पढ़ूंगा। निर्णय कर लेता है कि अगले साल exam के समय पढ़ना नहीं है मैं बिल्‍कुल प्रारंभ से पढ़ंगा, नियमित हो जाऊंगा, ये खुद ही कहता है किसी को कहना नहीं पड़ता। क्‍योंकि वो परीक्षा का माहौल ऐसा रहता है कि उसका मन करता है कि अगले साल के लिए कुछ बदलाव लाऊंगा हृदय में। और जब स्‍कूल-कॉलेज खुल जाती हैं तो याद तो आता है कि हां, फिर सोचता है ऐसा करें आज रात को पढ़ने के बजाय सुबह जल्‍दी उठ करके पढ़ेंगे। सुबह नींद आ जाती है सोचता है कि शायद सुबह जल्‍दी उठ करके पढ़ना हमारे बस का रोग नहीं है। ऐसा करें रात को ही पढ़ेंगे। फिर कभी मां को कहता है, मां जरा जल्‍दी उठा देना। कभी मां को कहता है रात को ज्‍यादा खाना मत खिलाओ कुछ ऐसा खिलाओ ताकि मैं पढ़ पाऊं। तरह-तरह की चीजें खोजता रहता है। लेकिन अनुभव आता है कि प्रयोग तो बहुत होते हैं लेकिन वो ही हाल हो जाता है, फिर exam आ जाती है फिर देर रात तक पढ़ता है, फिर note एक्‍सचेंज करता है, फिर सोचता है कल सुबह क्‍या होगा? ये जीवन का एक क्रम बन जाता है। क्‍या हम भी उसी ritual से अपने-आपको बांधना चाहते हैं? मैं समझता हूं कि फिर सिर्फ रुकावट आती है ऐसा नहीं है, थकावट भी आती है। और कभी-कभी रुकावट जितना संकट पैदा नहीं करती हैं उतनी थकावट पैदा करती हैं। और जिंदगी वो जी सकते हैं जो कभी थकावट महसूस नहीं करते, रुकावट को एक अवसर समझते हैं, रुकावट को चुनौती समझते हैं, वो जिंदगी को कहीं ओर ले जा सकते हैं। लेकिन जिनके जीवन में एक बार थकावट ने प्रवेश कर दिया वो किसी भी बीमारी से बड़ी भयंकर होती है, उससे कभी बाहर नहीं निकल सकता है और थकावट, थकावट कभी शरीर से नहीं होती है, थकावट मन की अवस्‍था होती है जो जीने की ताकत खो देती है, सपने भी देखने का सामर्थ्‍य छोड़ देती है और तब जा करके जीवन में कुछ भी न करना, और कभी व्‍यक्ति के जीवन में कुछ न होना उसके अपने तक सीमित नहीं रहता है, वो जितने बड़े पद पर बैठता है उतना ज्‍यादा प्रभाव पैदा करता है। कभी-कभार बहुत ऊंचे पद पर बैठा हुआ व्‍यक्ति कुछ कर करके जितना प्रभाव पैदा कर सकता है उससे ज्‍यादा प्रभाव कुछ न करके नकारात्‍मक पैदा कर देता है। और इसलिए मैं अच्‍छा कर सकूं अच्‍छी बात है, न कर पाऊं तो भी ये तो मैं संकल्‍प करुं कि मुझे जितना करना था, उसमें तो कहीं थकावट नहीं आ रही है, जिसके कारण एक ठहराव तो नहीं आ गया? जिसके कारण रुकावट तो नहीं आ गई और कहीं मैं पूरी व्‍यवस्‍था को ऊर्जाहीन, चेतनाहीन, प्राणहीन, संकल्‍प विहीन, गति विहीन नहीं बनाए देता हूं? अगर ये मन की अवस्‍था रही तो मैं समझता हूं संकट बहुत बड़ा गहरा जाता है। और इसलिए हम लोगों के जीवन में जैसे-जैसे दायित्‍व बढ़ता है, हमारे अंदर नया करने ऊर्जा भी बढ़नी चाहिए। और ये अवसर होते हैं जो हमें ताकत देते हैं।

कभी-कभार एक अच्‍छा विचार जितना सामर्थ्‍य देता है, उससे ज्‍यादा एक अच्‍छी सफलता, चाहे वो किसी और की क्‍यों न हो, वो हमारी हौसला बहुत बुलंद कर देती है। आज जो Award Winner हैं उनका कार्यक्षेत्र हिंदुस्‍तान की तुलना में बहुत छोटा होगा। इतने बड़े देश की समस्‍याओं के सामने एकाध चीज को उन्‍होंने हाथ लगाया होगा, हिसाब से लगाए तो वो बहुत छोटी होगी। लेकिन वो सफलता भी यहां बैठे हुए हर किसी को लगता होगा अच्‍छा, इसका ये भी परिणाम हो सकता है? अच्‍छा अनंतनाग में भी हो सकता है? आनंदपुर में भी हो सकता है? हर किसी के मन में विचार आंदोलित करने का काम एक सफल गाथा कर देती है।

और इसलिए Civil Service Day के साथ ये प्रधानमंत्री Award की जो परंपरा रही है उसको एक नया आयाम इस बार देने का प्रयास किया गया। कुछ Geographical कठिनाइयां हैं कुछ जनसंख्‍या की सीमाएं हैं। तो ऐसी विविधताओं से भरा हुआ देश है तो उसको तीन ग्रुप में कर करके कोशिश की लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इतनी भारी scrutiny भी हो सकती हैं सरकारी काम में। वरना तो पहले क्‍या था application लिख देते थे और कुछ लोगों को बहुत अच्‍छा रिपोर्ट बनाने का आता भी है तो jury को प्रभावित भी कर देते हैं। और इस बार प्रभावित करने वाला कोई दायरा ही नहीं था। क्‍योंकि call-center से सैंकड़ों फोन करके पूछा गया भई आपके यहां ये हुआ था क्‍या हुआ ? Jury ने physically वहां meeting की। Video Conferencing से यहीं से Viva किया गया। यानी अनेक प्रकार की कोशिश करने के बाद एक कुछ अच्‍छाइयों की ओर जाने का प्रयास हुआ है। लेकिन जो अच्‍छा होता है उसका आनंद होता है, इतनी बड़ी प्रक्रिया हुई जैसे।

लेकिन मेरे मन में एक विचार आया कि 600-650 से ज्‍यादा जिले हैं। हमारी चुनौती यहां शुरू होती है कि पहले से बहुत अच्‍छा हुआ, क्‍योंकि करीब 74 सफलता की गाथाएं short-list हुईं हैं। वो पहले से कई गुना ज्यादा है। और पहले से कई गुना ज्यादा होना, वो अपने आप में एक बहुत बड़ा समाधान का कारण है। लेकिन जिसके जीवन में थकावट नहीं है, रूकावट का वो सोच ही नहीं सकता है, वो दूसरे तरीके से सोचता है कि 650-700 जिलों में से 10% ही short-list हुए, 90% छूट गये! क्या ये 90% लोगों के लिए चुनौती बन सकती है? उस district के लिए चुनौती बन सकती है कि भले हम सफलता पाएं या न पाएं, पर short-list तक तो हम अपने जिलों को ला करके रहेंगे। अपनी पसंद की एक योजना पकड़ेंगे, इसी वर्ष से पकड़ लेंगे और उस स्तुइदेन्त की तरह नहीं करेंगे, आज इसी Civil Service Day को ही तय करेंगे की अगली बार इस मंच पर होंगे और हम award ले कर के जायेंगे। हिंदुस्तान के सभी 650 से भी अधिक districts के दिमाग में ये विश्वास पैदा होना चाहिए।

74 पहले की तुलना में बहुत बड़ा figure है, बहुत बड़ा प्रयास है, लेकि‍न अगर मैं उससे आगे जाने के लि‍ए सोचता हूं तो मतलब यह है कि‍ थकावट से मैं बंधन में बंधा हुआ नहीं हूं। मैं रूकावट को स्‍वीकार नहीं करता हूं, मैं कुछ और आगे करने के लि‍ए चाहता हूं। यह भाव, यह संकल्‍प भाव इस टीम में आता है और जो लोग वीडि‍यो कॉन्‍फ्रेन्‍स पर मुझे सुन रहे हैं अभी, कार्यक्रम में, उन सब अफसर साहब, उनके भी दि‍माग में भाव आएगा। वो राज्‍य में चर्चा करे कि‍ क्‍या कारण है कि‍ हमारा राज्‍य नजर नहीं आता है। उस district में भी बैठी हुई टीम भी सोचे कि‍ क्‍या कारण है कि‍ आज मेरे district का नाम नहीं चमका। एक healthy competition, क्‍योंकि‍ जब से सरकार में कुछ बातों को लेकर के मैं आग्रह कर रहा हूं। उसमें मैं एक बात कहता हूं, cooperative federalism लेकि‍न साथ-साथ मैं कहता हूं competitive cooperative federalism राज्‍यों के बीच वि‍कास की स्‍पर्धा हो, अच्‍छाई की स्‍पर्धा हो, good governance की स्‍पर्धा हो, best practices की स्‍पर्धा हो, values की स्‍पर्धा हो, integrity की स्‍पर्धा हो, accountability, responsibility की स्‍पर्धा बढ़े, minimum governance का सपना स्‍पर्धा के तहत आगे नि‍कल जाने का प्रयास हो। यह जो competitive की बात है वो district में भी feel होना चाहि‍ए। इस civil service day के लि‍ए हम संकल्‍प करें कि‍ हम भी दो कदम और जाएंगे।

दूसरी बात है, हम लोग जब civil service में आए होंगे। कुछ लोग तो परंपरागत रूप से आए होंगे, शायद family tradition रही होगी। तीन-चार पीढ़ी से इसी से गुजारा करते रहे होंगे, ऐसे कई लोग होंगे। कुछ लोगों को यह भी लगता होगा कि‍ बाकी छोड़ो साहब, यह है एक बार अंदर पाइपलाइन में जगह बना लो। फि‍र तो ऐसे ही चले जाएंगे। फि‍र तो वक्‍त ही ले जाता है, हमें कहीं जाना नहीं पड़ता है। 15 साल हुए तो यहां पहुंच गए, 20 साल हो गए तो यहां पहुंच गए, 22 साल हो गए तो यहां पहुंच गए और जब बाहर नि‍कलेंगे तो करीब-करीब तीन में से एक जगह पर तो होंगे ही होंगे। उसको नि‍श्‍चि‍त भवि‍ष्‍य लगता है। सत्‍ता है, रूतबा है तो आने का मन भी करता है और वो गलत है ऐसा मैं नहीं मानता हूं। मैं ऐसा मानने वालों में से नहीं हूं कि‍ गलत है, लेकि‍न सवा सौ करोड़ देशवासि‍यों में से कि‍तने है जि‍नको यह सौभाग्‍य मि‍लता है। अपने परि‍श्रम से मि‍ला है, अपने बलबूते पर मि‍ला है फि‍र भी, यह भी तो जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्‍य है कि‍ सवा सौ करोड़ में से हम एक-दो हजार, पाँच हजार, दस हजार, पंद्रह हजार लोग है जि‍नको यह सौभाग्‍य मि‍ला है। हम जो कुछ भी है। कोई एक ऐसी व्‍यवस्‍था है जि‍सने मुझे इन सवा सौ करोड़ के भाग्‍य को बदलने के लि‍ए मौका दि‍या है। इतने बड़े जीवन के सौभाग्‍य के बाद अगर कुछ कर दि‍खाने का इरादा नहीं होता तो यहां पहुंचने के बाद भी कि‍स काम का है और इसलि‍ए तो कभी न कभी जीवन में.. मुझे बराबर याद है मैं आज से 35-40 साल पहले.. मैं तो राजनीति‍ में बहुत देर से आया। सामाजि‍क जीवन में मैंने अपने आपको खपाया हुआ था। तो मैं कभी यूनि‍वर्सि‍टी के दोस्‍तों से गप्‍पे-गोष्‍ठी करने चला जाता था, मि‍लता था, उनसे बात करता था और एक बार मैंने उनसे पूछा क्‍या सोचा, आगे क्‍या करोगे? तो हर कोई बता रहा था, पढ़ाई के बाद सोचेंगे। कुछ बता रहे थे कि‍ नहीं ये पि‍ताजी का व्‍यवसाय है वहीं करूंगा। एक बार मेरा अनुभव है, एक नौजवान था, हाथ ऊपर कि‍या, उसने कहा मैं आईएएस अफसर बनना चाहता हूं। मैंने कहा क्‍यों भई तेरे मन में ऐसे कैसे वि‍चार आया? इसलि‍ए मैंने कहा, क्‍योंकि‍ वहां उनका जरा रूतबा होता है। बोले – नहीं, मुझे लगता है कि‍ मैं आईएएस अफसर बनूंगा तो मैं कइयों की जि‍न्‍दगी में बदलाव ला सकता हूं, मैं कुछ अच्‍छा कर सकता हूं। मैंने कहा राजनीति‍ में क्‍यों नहीं जाते हो, वहां से भी तुम कुछ कर सकते हो। नहीं बोले, वो तो temporary होता है। उसकी इतनी clarity थी। यह व्‍यवस्‍था में अगर मैं गया तो मैं एक लंबे अर्से तक sustainably काम कर सकता हूं। 


आप उस ताकत के लोग है और इसलि‍ए आप क्‍या कुछ नहीं कर सकते हैं वो आप भली-भांति‍ जानते हैं। उसका अहसास कराने की आवश्‍यकता नहीं होती। एक समय होगा, हालात भी ऐसे रहे होंगे। व्‍यवस्‍थाएं बनानी होगी, एक सोच भी रही होगी और ज्‍यादातर हमारा role एक regulator का रहा है। काफी एक-दो पीढ़ी ऐसी हमारी इस परंपरा की रही होगी कि‍ जि‍नका पूरा समय, शक्‍ति‍regulator के रूप में गया होता है। उसके बाद से शायद एक समय आया होगा जि‍नमें थोड़ा सा दायरा बदला होगा। administrator का रूप रहा होगा। administrator के साथ-साथ कुछ-कुछ controller का भी थोड़ा भाव आया होगा। उसके बाद थोड़ा कालखंड बदला होगा तो लगा होगा कि‍ भई अब हमारी भूमि‍का regulator की तो रही नहीं। Administrator या controller से आगे अब एक managerial skill develop करना जरूरी हो गया है क्‍योंकि‍ एक साथ कई चीजें manage करनी पड़ रही है।

हमारा दायि‍त्‍व बदलता गया है लेकि‍न क्‍या 21वीं सदी के इस कालखंड में यहीं हमारा रूप पर्याप्‍त है क्‍या? भले ही मैं regulator से बाहर नि‍कलकर के लोकतंत्र की spirit के अनुरूप बदलता-बदलता administrator से लेकर के managerial role पर पहुंचा हूँ। लेकि‍न मैं समझता हूं कि‍ 21वीं सदी जो पूरे वैश्‍वि‍क स्‍पर्धा का युग है और भारत अपेक्षाओं की एक बहुत बड़ी.. एक ऐसा माहौल बनाए जहां हर कि‍सी न कि‍सी को कुछ करना है, हर कि‍सी को कुछ न कुछ आगे बढ़ना है। हर कि‍सी को कुछ न कुछ पाना भी है। कुछ लोगों को इससे डर लगता होगा। मैं इसे अवसर मानता हूं। जब सवा सौ करोड़ देशवासि‍यों के अंदर एक जज़बा हो कि‍ कुछ करना है, कुछ पाना है, कुछ बनना है। वो अपने आप में देश को आगे बढ़ाने का कारण होता है। ठीक है यार, पि‍ताजी ऐसा छोड़ कर गए अब चलो भई, क्‍या करने की जरूरत है, शौचालय बनाने की क्‍या जरूरत है। अपने मॉ-बाप कहां शौचालय में, ऐसे ही गुजारा करके गए। अब वो सोच नहीं है, वो कहता है नहीं, जि‍न्‍दगी ऐसी नहीं, जि‍न्‍दगी ऐसी चाहि‍ए। देश को बढ़ने के लि‍ए यह अपने आप में एक बहुत बड़ा ऊर्जा तत्‍व है। और ऐसे समय हम administrator हो, हम controller हो, collector हो, यह sufficient नहीं है। अब समय की मांग है कि‍ व्‍यवस्‍था से जुड़ा हुआ हर पुर्जा, छोटी से छोटी इकाई से लेकर के बड़े से बड़े पद पर बैठा हुआ व्‍यक्‍ति‍ वो agent of change बनना समय की मांग है। उसने अपने आप को उस रूप से प्रस्तुत करना पड़ेगा, उस रूप से करना पड़ेगा ताकि‍ वो उसके होने मात्र से, सोचने मात्र से, करने मात्र से change का अहसास दि‍खाई दे और आज या तो कल दि‍खाई देगा, वो इंतजार होना नहीं है। हमें उस तेजी से change agent के रूप में काम करना पड़ेगा कि‍ हम परि‍स्‍थि‍ति‍यों को पलटे। चाहे नीति‍ में हो, चाहे रणनीति‍ में हो, हमें बदलाव लाने के लि‍ए काम करना पड़ेगा।

कभी-कभार एक ढांचे में जब बैठते हैं तब experiment करने से बहुत डरते हैं। कहीं फेल हो जाएंगे, कहीं गलत हो जाएगा। अगर हम experiment करना ही छोड़ देंगे, फि‍र तो व्‍यवस्‍था में बदलाव आ ही नहीं सकता है और experiment कोई circular नि‍काल करके नहीं होता है। एक भीतर से वो आवाज उठती है जो हमें कहीं ले जाती है और जि‍नको लगता है कि‍ भई कहीं कोई risk न हो, वो experiment तो ठीक है। बि‍ना risk के जो experiment होता है वो experiment नहीं होता है, वो तो plan होता है जी। Plan और experiment में बहुत बड़ा अंतर होता है। Plan का तो आपको पता है कि‍ ऐसा होना है, यहां जाना है, experiment का plan थोड़ी होता है और मैं हमेशा experiment को पुरस्‍कृत करता हूं। ज़रा हटके। ये करने का जो कुछ लोग करते हैं और उनको एक संतोष भी होता है कि‍ भई पहले ऐसा चलता था, मैंने ये कर दि‍या। उसकी एक ताकत होती है।

इतने बड़े देश को हम 20-25-30 साल या पि‍छली शताब्‍दी के सोच और नि‍यमों से नहीं चला सकते हैं। technology ने मनुष्‍य जीवन को कि‍तना बदल दि‍या है लेकि‍न technology से बदली हुई जीवन व्‍यवस्‍था, शासन व्‍यवस्‍था में अगर प्रति‍बिंबि‍‍त नहीं होती है तो दायरा कि‍तना बढ़ जाएगा। और हम सबने अनुभव कि‍या है कि‍ योजनाएं तो आती हैं, सरकार में योजनाएं कोई नई चीजें नहीं होती हैं, लेकि‍न सफलता तो सरकारी दायरे से बाहर नि‍कलकर के जन सामान्‍य से जोड़ने से ही मि‍लती हैं। यह हम सबका अनुभव है। जब भी जन भागीदारी बढ़ी है आपकी योजनाएं सफल होती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि‍ हमारे लि‍ए अनि‍वार्य है कि‍ अगर मैं civil servant हूं तो civil society के साथ engagement, ये मेरे लि‍ए बहुत अनि‍वार्य है। मैं अपने दायरे में, अपने चैम्‍बर में, अपनी फाइलों के बीच देश और दुनि‍या को चलाना चाहता हूं, तो मुझे जन सहयोग कम मि‍लता है। जि‍नको जरूरत है वो तो इसका फायदा उठा लेंगे, आ जाएंगे लेकि‍न कुछ जागरूक लोगों की भलाई से देश बनता नहीं है। सामान्‍य मानवि‍की जो कि‍ जागरूक नहीं है तो भी उसके हि‍त की बात उस तक पहुंचती हैं और वो जब हि‍स्‍सेदार बन जाता है तो स्‍थि‍ति‍यां पलट जाती हैं।

और इसलि‍ए शौचायल बनाना कोई इसी सरकार ने थोड़ी कि‍या है। जि‍तनी सरकारें बनी होंगी सभी सरकारों ने सोचा होगा। लेकि‍न वो जन आंदोलन नहीं बना। हम लोगों का काम है और सरकारी दफ्तर में बैठे हुए व्‍यक्‍ति‍यों का भी काम है कि‍ हम इन चीजों में, हमारी कार्यशैली में जनसामान्‍य, civil society से engagement, हम यह कैसे बढ़ाएं, हम उन दायरों को कैसे पकड़े। आप देखि‍ए, उसमें से आपको एक बहुत सरलीकरण नई चीजें भी हाथ लगेगी। और नई चीजें चीजों को करने का कारण भी बन जाती हैं और वही कभी-कभी स्‍वीकृति‍ बन जाती है, नीति‍यों का हि‍स्‍सा बन जाती है और इसलि‍ए हमारे लि‍ए कोशि‍श रहनी चाहि‍ए।

अब यह जरूर याद रखे कि‍ हम.. हमारे साथ दो प्रकार के लोग हम जानते हैं भली-भांति‍। कुछ लोगों को पूछते हैं तो वो कहते हैं कि‍ मैं जॉब करता हूं। कुछ लोगों को पूछते हैं तो कहते हैं कि‍ service करता हूं। वो भी आठ घंटे यह भी आठ घंटे, वो भी तनख्‍वाह लेता है यह भी तनख्‍वाह लेता है। लेकि‍न वो जॉब कहता है यह service कहता है। यह फर्क जो है न, हमें कभी भूलना नहीं चाहि‍ए, हम जॉब नहीं कर रहे हैं, हम service कर रहे हैं। यह कभी नहीं भूलना चाहि‍ए और हम सि‍र्फ service शब्‍द से जुड़े हुए नहीं हैं, हम civil service से जुड़े हुए हैं और इसलि‍ए हम civil society के अभि‍न्‍न अंग है। मैं और civil society, मैं और civil society को कुछ देने वाला, मैं और civil society के लि‍ए कुछ करने वाला, जी नहीं! वक्‍त बदल चुका है। हम सब मैं और civil society, हम बनकर के चीजों को बदलेंगे। यह समय की मांग रहती है। और इसलि‍ए मैं एक service के भाव से और जीवन में संतोष एक बात का है कि‍ मैंने कुछ सेवा की है। देश की सेवा की है, department के द्वारा सेवा की है, उस project के द्वारा सेवा की है लेकि‍न सेवा ही। हमारे यहां तो कहा गया है - सेवा परमोधर्म:। जि‍सकी रग-रग में इस बात की घुट्टी पि‍लाई गई हो कि‍ जहां पर सेवा परमोधर्म है, आपको तो व्‍यवस्‍था के तहत सेवा का सौभाग्‍य मि‍ला है और वहीं मैं समझता हूं कि‍ एक अवसर प्रदान हुआ है।

मेरा अुनभव है। मुझे एक लंबे अरसे तक मुख्‍यमंत्री के नाते सेवा करने का मौका मि‍ला। पि‍छले दो साल से आप लोगों के बीच बहुत कुछ सीख रहा हूं। मैं अनुभव से कह सकता हूं, बड़े वि‍श्‍वास से कह सकता हूं। हमारे पास ये देव दुर्लभ टीम है, सामर्थ्‍यवान लोग है। एक-एक से बढ़कर के काम करने की ताकत रखने वाले लोग है। अगर उनके सामने कोई जि‍म्‍मेवारी आ जाती है तो मैंने देखा है कि‍ वो Saturday-Sunday भी भूल जाते हैं। बच्‍चे का जन्‍मदि‍न तक भूल जाते हैं। ऐसे मैंने अफसर देखे हैं और इसलि‍ए यह देश गर्व करता है कि‍ हमारे पास ऐसे-ऐसे लोग हैं जो पद का उपयोग देश को कहीं आगे ले जाने के लि‍ए कर रहे हैं।

अभी नीति‍ आयोग की तरफ से एक presentation हुआ। बहुत कम लोगों को मालूम होगा। इस स्‍तर के अधि‍कारि‍यों ने, जब उनको ये काम दि‍या गया और जैसा बताया गया, मैंने पहले दि‍न presentation दि‍या था और बाद में मैंने उनको समय दि‍या था और मैंने कहा था कि‍ मैं आपसे फि‍र.. इसके light में मुझे बताइए और कुछ नया भी बताइए। और मैं आज गर्व से कह सकता हूं। कोई circular था, उसके साथ कोई discipline के बंधन नहीं थे। अपनी स्‍वेच्‍छा से करने वाला काम था और शायद हि‍न्‍दुस्‍तान के लोगों को जानकर के अचंभा होगा कि‍ इन अफसरों ने 10 thousand man hour लगाए। यह छोटी घटना नहीं है और मेरी जानकारी है कि‍ कुछ group जो बने थे, 8, 10-10, 12-12 बजे तक काम करते थे। कुछ group बने थे जि‍न्‍होंने अपना Saturday-Sunday छोड़ दि‍या था और नि‍यम यह था कि‍ office में अगर शाम को छह बजे के बाद काम करना है। शाम को office hours के बाद ten thousand hours लगाकर के यह चिंतन कर-करके यह कार्य रचना तय की गई है। इससे बड़ी घटना क्‍या हो सकती है जी, इससे बड़ा गर्व क्‍या हो सकता है? मैंने उस दि‍न भी कहा था और आज भी नीति‍ आयोग की तरफ से कहा गया है कि‍ हमें एक बहुत बड़े वि‍द्वान, consultant जो जानकारि‍यां देते हैं। लेकि‍न जो 25-30 साल इसी धरती से काम करते-करते नि‍कले हुए लोग जब सोचते हैं तो कि‍तनी ताकतवर चीजें दे सकते हैं, उसका यह उत्‍तम उदाहरण है। अनुभव से नि‍कली हुई चीज है और उसको वहां छोड़ा नहीं। यह चिंतन की chain के रूप में उसको एक बार फि‍र से follow up के नाते reverse gear में ले जाया गया। वो बैठे गए, वो अलग बैठा गया और उस वक्‍त हमने अपने-अपने department ने अपना action plan बनाया। जि‍स action plan का बजट के अंदर भी reflection दि‍खाई दे रहा था। बजट की कई बातें ऐसी हैं जो इस चिंतन में से नि‍कली थी। Political thinking process से नहीं आई थी। यह बहुत छोटी बात नहीं है जी। इतना बड़ा involvement decision making में एक नया work culture है, नई कार्यशैली है।

मैं कभी अफसरों से नि‍राश नहीं हुआ। इतने बड़े लंबे तजुर्बे के बाद मैं वि‍श्‍वास से कहता हूं कि‍ मैं कभी अफसरों से नि‍राश नहीं हुआ। मेरे जीवन में कभी मुझे कि‍सी अफसर को डांटने की नौबत नहीं आई, ऊंची आवाज में बोलने की नौबत नहीं आई है। मैं zero experience के साथ शासन व्‍यवस्‍था में आया था। मुझे पंचायत का भी अनुभव नहीं था। पहले दि‍न से आज तक मुझे कभी कोई कटु अनुभव नहीं आया। मैंने यह सामर्थ्‍य देखा है। क्‍यों? मैंने अपनी सोच बनाई हुई है कि‍ हर व्‍यक्‍ति‍ के अंदर परमात्‍मा ने उत्‍तम से उत्‍तम ताकत दी है। हर व्‍यक्‍ति‍ में परमात्‍मा ने जहां है, वहां से ऊपर उठने का सामर्थ्‍य दि‍या है। हर व्‍यक्‍ति‍ के अंदर परमात्‍मा है। एक ऐसा इरादा दि‍या है कि‍ कुछ अच्‍छा करके जाना है। कि‍तना ही बुरा कोई व्‍यक्‍ति‍ क्‍यों न हो वो भी मन में कुछ अच्‍छा करके जाने के लि‍ए सोचता है। हमारा काम यही है कि‍ इस अच्‍छाई को पकड़ने का प्रयास करे और मुझे हमेशा अनुभव आया है कि‍ जब हरेक की शक्‍ति‍यों को मैं देखता हूं तो अपरमपार मुझे शक्‍ति‍यों का भंडार दि‍खाई देता है और तभी मैं आशावादी हूं कि‍ मेरे राष्‍ट्र का कल्‍याण सुनि‍श्‍चि‍त है, उसको कोई रोक नहीं सकता है। इस भाव को लेकर के मैं चल पाता।

जि‍सके पास इतनी बढ़ि‍या टीम हो, देश भर में फैले हुए, हर कोने में बैठे हुए लोग हो, उसे नि‍राश होने का कारण क्‍या हो सकता है। उसी आशा और वि‍श्‍वास के साथ, इसी टीम के भरोसे, जि‍न सपनों को लेकर के हम चले हैं। वक्‍त गया होगा, शायद गति‍ कम रही होगी। diversion भी आए होंगे, divisions भी आए होंगे। लेकि‍न उसके बावजूद भी हमारे पास जो अनुभव का सामर्थ्‍य है, उस अनुभव के सामर्थ्‍य से हम गति‍ भी बढ़ा सकते हैं, व्याप्ति भी बढ़ा सकते हैं, output-outlay की दुनि‍या से बाहर नि‍कलकर के हम outcome पर concentration भी कर सकते हैं। हम परि‍णाम को प्राप्‍त कर सकते हैं।

कभी-कभार हम senior बन जाते हैं। कभी-कभार क्‍या, बन ही जाते हैं, व्‍यवस्‍था ही ऐसी है। तो हमें लगता है और ये सहज प्रकृति‍ है। पि‍ता अपने बेटे को कि‍तना ही प्‍यार क्‍यों न करते हो, उनको मालूम है कि‍ उनका बेटा उनसे ज्‍यादा होनहार है, बहुत कुछ कर रहा है लेकि‍न पि‍ता की सोच तो यही रहती है कि‍ तेरे से मुझे ज्‍यादा मालूम है। हर पि‍ता यही सोचता है कि‍ तेरे से मैं ज्‍यादा जानता हूं और इसलि‍ए हम जो यहां बैठे हैं तो जूनि‍यर अफसर से हम ज्‍यादा जानते हैं, वि‍चार आना। वो हम जन्‍म से ही सीखते आए हैं। उसमें कोई आपका दोष नहीं है। मुझे भी यही होगा, आपको भी यही होगा। लेकि‍न जो सत्‍य है, अनुभव होने के बावजूद भी क्‍या बदलाव नहीं आ जाता। आज स्‍थि‍ति‍ ऐसी है कि‍ पीढ़ि‍यों का अंतर हमें अनुभव करना होगा। हम जब छोटे होंगे तब हमारी जानकारि‍यों का दायरा और समझ और आज के बच्‍चे में जमीन-आसमान का अंतर है। मतलब हमारे बाद जो पीढ़ी तैयार होकर के आज system में आई है। भले ही हमें इतना अनुभव नहीं होगा लेकि‍न हो सकता है वो ज्ञान में हमसे ज्‍यादा होगा। जानकारि‍यों में हमसे ज्‍यादा होगा। हमारी सफलता इस बात में नहीं है कि‍ तेरे से मैं ज्‍यादा जानता हूं, हमारी सफलता इस बात में है कि‍ मेरा अनुभव और तेरा ज्ञान, मेरा अनुभव और तेरी ऊर्जा, आओ यार मि‍ला ले, देश का कुछ कल्‍याण हो जाएगा। यह रास्‍ता हम चुन सकते हैं। आप देखि‍ए ऊर्जा बदल जाएगी, दायरा बदल जाएगा। हमें एक नई ताकत मि‍लेगी।

मैं कभी-कभी कहता हूं कि‍ जब आप कंप्‍यूटर पर काम करना सीखते हैं और ऐसी दुनि‍या है कि‍ अंदर उतरते-उतरते चले ही जाते हैं। Communication world इतना बड़ा है। लेकि‍न अगर आपकी मॉं देखती है तो वो कहती है, अच्‍छा बेटा! तुझे इतना सारा आ गया, बहुत सीख लि‍या तूने। लेकि‍न अगर आपका भतीजा देखता है तो कहता है क्‍या अंकल आपको इतना भी नहीं आता। यह तो छोटे बच्‍चों को आता है, आपको नहीं आता है। इतना बड़ा फर्क है। एक ही घर में तीन पीढ़ी है तो ऊपर एक अनुभव आएगा और नीचे दूसरा अनुभव आएगा। क्‍या हम सीनि‍यर होने के नाते इस बदली हुई सच्‍चाई को स्‍वीकार कर सकते हैं क्‍या? हमारे पास वो नहीं है जो आज नई पीढ़ी के पास है, तो मानना पड़ेगा। उसके सोचने के तरीके बदल गए हैं। जानकारि‍यां पाने के उसके रास्‍ते अलग हैं। एक चीज को खोजने के लि‍ए आप घंटों तक ढूंढते रहते हैं यार क्‍या हुआ था। वो पल भर में यूं लेकर के आ जाता है कि‍ नहीं-नहीं साहब ऐसा था।

हमारे लि‍ए यह सबसे बड़ी आवश्‍यकता है कि‍ हम Civil Service Day पर यह संकल्‍प करे कि‍ नई पीढ़ी जो हमारी व्‍यवस्‍था में आई है, से एक दम जूनियर अफसर होंगे, उनके पास हमसे कुछ ज्‍यादा है। उसको अवसर देने के लिए मैं अपना मन बना सकता हूं। उसको मैं मेरे अंदर internalize करने के लिए कुछ व्‍यवस्‍था कर सकता हूं? आप देखिए आपके department की ताकत बहुत बदल जाएगी, बहुत बदल जाएगी। आपने जो निर्णय किए हैं उस निर्णयों को आप बड़ी, बहुत उत्‍सव के साथ, उमंग के साथ भरपूर कर पाएंगे।

और भी एक बात है, सारी समस्‍याओं की जड़ में है Contradiction and conflict, ये इरादतन नहीं आए हैं, कुल मिला करके हमारी कार्यशैली जो विकसित हुई है उसने हमें यहां ला करके छोड़ा है। Simple word में कोई कह देते हैं कि silo में काम करने का तरीका। कुछ लोगों के लिए silo में काम करना Performance के रूप में ठीक हो जाता है, कर लेता है। लेकिन इससे परिणाम नहीं मिलता है। अकेले जितना करे, उससे ज्‍यादा टीम से बहुत परिणाम मिलता है, बहुत परिणाम मिलता है। टीम की ताकत बहुत होती है। कंधे से कंधा मिला करके जैसे department की सफलताएं साथियों के साथ करना जरूरी है, वैसे राष्‍ट्र के निर्माण के लिए department to department कंधे से कंधे मिलना बहुत जरूरी है। अगर silo न होता तो अदालतों में हमारी सरकार के इतने cases न होते। एक department दूसरे department के साथ Supreme Court में लड़ रहा है, क्‍यों। इस department को लगता है मेरा सही है, दूसरे department को लगता है मेरा सही है, अब Supreme Court तय करेगी ये दोनों departments ठीक हैं कि नहीं हैं। ये इसलिए नहीं हुआ कि कोई किसी को परास्‍त करना चाहता था, वहां बैठा हुआ अफसर को किसी से झगड़ा था, क्‍योंकि ये केस चलता हो गया, चार अफसर उसके बाद तो बदल चुके होंगे। लेकिन क्‍योंकि silo में काम करने के कारण और को समझने का अवसर नहीं मिलता हैं। पिछले दिनों जो ये ग्रुप बना, इसका सबसे बड़ा फायदा ये हुआ है, उस department के अफसर उसमें नहीं थे, और जो अफसर मुझे मिले में उनसे पूछता था, मैं सिर्फ बातों को ऐसे official तरीके से काम करना मुझे आता भी नहीं है। भगवान बचाए, मुझे सीखना भी नहीं है। लेकिन मैं बातें भोजन के लिए सब अफसरों के साथ बैठता था, मैं उसमें बड़ा आग्रह रखता था कि मेरे टेबल पर कौन आए हैं। मैं सुझाव देता था और फिर मैं उनको पूछता था ये तो ठीक है आपने रिपोर्ट-विपोर्ट बनाया। लेकिन आप बैठते थे तो क्‍या लगता? अधिकतम लोगों ने ये कहा कि साहब हम एक batch mate रहे हैं लेकिन सालों से अलग-अलग काम करते पता ही नहीं था कि मेरे batch mate में इतना ताकत है इतना talent है। बोले तो ये बैठे तो पता चला। हमें पता भी नहीं था कि मेरे इस साथी में इस प्रकार की extra ordinary energy है। बोले साथ बैठे तो पता चला। हमें ये भी पता नहीं कि था कि उसको समोसा पंसद है कि पकौड़ा पंसद है। साथ बैठे तो पता चला कि उसको समोसा पसंद है तो हम अगली मीटिंग में कहते कि यार तुम उसके लिए समोसा ले आना। चीजें छोटी होती हैं, लेकिन टीम बनाने के लिए बहुत आवश्‍यक होती हैं।

ये दायरो को तोड़ करके, बंधनों को छोड़ करके, टीम के रूप में बैठते हैं तो ताकत बहुत बन जाती हैं। कभी-कभार department में एक से ज्‍यादा जोड़ दें तो दो हो जाते हैं लेकिन एक department एक के साथ एक मिल जाता है तो ग्‍यारह हो जाते हैं। टीम की अपनी ताकत है, आप अकेले खाने के लिए खाने बैठे हैं तो कोई आग्रह करेगा तो एकाध दो रोटी ज्‍यादा खाएंगे लेकिन छह दोस्‍त खाना खा रहे हैं तो पता तक नहीं चलता तीन-चार रोटी ऐसे ही पेट में चली जाती हैं, टीम का एक माहौल होता है। आवश्‍यकता है कि हमें टीम के रूप में silo से बाहर निकल करके समस्‍या हैं तो अपने साथी को सीधा फोन करके क्‍यों न पूछें। उसके चैम्‍बर में क्‍यों न चले जाएं। वो मेरे से जूनियर होगा तो भी चले जाओ अरे भाई क्‍या बात है फाइल तुम्‍हारे यहां सात दिन से आई है, तुम देखो जरा noting करते हो तो जरा ये चीजें ध्‍यान रखो ।

आप देखिए चीजें गति बन जाएगी। और इसलिए reform to transform, ये जो मैं मंत्र ले करके चल रहा हूं, लेकिन ये बात सही है कि reform से transform होता है, ऐसा नहीं है। Reform to perform to transform, perform वाली बात जब तक हमारे, और वो हमारे बस में है। और इसलिए हम लोगों के लिए, हम वो लोग हैं जिनके लिए Reform to perform to transform, ये perform करना हमारे लिए, मैं नहीं मानता हूं आज vision में कोई कमी है, दिशा में कोई कमी है। दो साल हुए इस सरकार की किसी नीति गलत होने का अभी तक कोई आरोप नहीं लगा है। किसी ने उस पर कोई ये चुनौती नहीं की है, ज्‍यादा से ज्‍यादा ये हुआ भई गति तेज नहीं है, कोई ये शिकायत करता है। कोई कहता है impact नहीं आ रहा है। कोई कहता है परिणाम नहीं दिखता है। कोई ये नहीं कहता है गलत कर रहे हो। मतलब ये हुआ कि जो आलोचना होती है उस आलोचना को गले लगा करके हमने perform को हम कैसे बढ़ोतरी बना सकें ताकि हमारा transform संकल्‍प है, वो पूरा हो सके।

Reform कोई कठिन काम नहीं है, कठिन अगर है तो perform है। और perform हो गया तो transform के लिए कोई नाप पट्टी ले करके बैठना नहीं पड़ता है, अपने-आप नजर आता है यहां transformation हो रहा है। और मैं देख रहा हूं कि बदलाव आ रहा है। आज समय-सीमा में सरकार काम करने की आदत बनी है। हर चीज मोबाइल फोन पर, app पर monitor होने लगी है। ये अपने-आप में अच्‍छी चीजें आपने स्‍वीकार की हैं, ये थोपी नहीं गई हैं। Department ने खुद ने तय किया है, इतने दिन में ये करेंगे, इतने दिन में करेंगे। हम इतनी solar energy करेंगे, हम इतना पानी पहुंचाएंगे, हम इतनी बिजली पहुंचाएंगे, हम इतने जन-धन एकाउंट खोलेंगे, आपने तय किया है, आप पर थोपा नहीं गया है।

और जो आपने तय किया है वो भी इतना ताकतवार है, इतना प्रेरक है कि मैं मानता हूं देश को कोई कमी नहीं रह सकती है, हम perform करके दिखा दें बस। और मुझे विश्‍वास है कि ऐसी टीम मिलना बहुत मुश्किल होता है। मैं बहुत भाग्‍यशाली हूं कि मुझे ऐसी अनुभवी ऐसी टीम मिली है। देश भर में फैले हुए ऊर्जावान नौजवान व्‍यवस्‍था में आ रहे हैं। वे भी पूरी ताकत से कर रहे हैं। हर किसी को लगता है गांव के जीवन को बदलना है।

पिछली बार मैंने आप सबों से कहा था कि बहुत साल हो गए होंगे तो एक बारी जहां पहले duty किया था वहां हो आइए न क्‍या हुआ। और सभी अफसर गए हैं और उनका जो अनुभव हैं बड़े प्रेरक हैं। कुछ नहीं कहना पड़ा, वो देख करके आया कि मैं आज से 30 साल पर जहां पहली job की थी, पहली बार मेरी duty लगी थी, आज 30 साल के बाद वहां गया, मैं तो बहुत बदल चुका, कहां से कहां पहुंच गया, लेकिन जिन्‍हें छोड़ करके आया था वहीं का वहीं रह गया। ये सोच अपने-आप में मुझे कुछ कर गुजरने की ताकत दे देती है। किसी के भाषण की जरूरत नहीं पड़ती है, किसी किताब से कोई सुवाक्‍यों की जरूरत नहीं पड़ती है, अपने-आप प्रेरणा मिलती है। ये ही तो जगह है, 30 साल पहले मैं इसी गांव में रहा था? इसी दफ्तर में रहा था? ये ही लोगों का हाल था? मैं वहां पहुंच गया, वो यहीं रह गए, मेरी तो यात्रा चल पड़ी उनकी नहीं चल पड़ी। ये सोच अगर मन में रहती है, उन लोगों को याद कीजिए जहां से आपने अपने carrier की शुरूआत की थी। उस इलाके को याद करिए, उन लोगों को याद कीजिए, आप देखिए आपको लगेगा कि अब तो निवृत्ति का समय भले ही दो, चार, पांच साल में आने वाला हो लेकिन कुछ करके जाना है। ये कुछ करके जाना है, वो ही तो सबसे बड़ी ताकत आती है और वो ही तो देश को एक नई शक्ति देती है। और मुझे विश्‍वास है इस टीम के द्वारा और वैश्विक परिवेश में काम करना है। अब हम न department silo में रह सकता है न देश silo में रह सकता है। Inter-dependent world बन चुका है। और इसलिए हम लोगों को उसमें अपने-आपको भी जोड़ना पड़ेगा। हर बदलती हुई परिस्थिति को चुनौती के रूप में स्‍वीकार करते हुए, अवसर में पलटते हुए काम करने का संकल्‍प करें।

मनरेगा में इतना पैसा जाता है। मैं जानता हूं सूखे की स्थिति है, पानी की कमी है, लेकिन ये भी तो है कि अगला वर्ष अच्‍छी वर्षा का वर्ष आ रहा है, ऐसा अनुमान किया गया है तो मेरे पास अप्रैल, मई, जून जितना भी समय बचा है, क्‍या मैं मनरेगा के पैसों से जल संचय का एक सफल अभियान चला सकता हूं? अगर आज पानी संचय की मेरी इतनी व्‍यवस्‍था है तो desilting करके, नए तालाब खोद करके, नए canal साफ कर-करके, मैं पूरी व्‍यवस्‍था से इस शक्ति का उपयोग जल संचय में करूं, हो सकता है बारिश कम भी आ जाए तो भी गुजारा करने के लिए काम आ आती है। मैं मानता हूं कि बहुत बड़ी ताकत है और जन भागीदारी से सब संभव है, सब संभव है। इन चीजों को हम करने का संकल्‍प ले करके चलें।

जिन जिलों ने ये जो सफलता पाई उन जिलों की टीमों को मैं हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं और मैं देश भर के जिलों के अधिकारियों से आग्रह करुंगा कि अब जिले की हर टीम ने कहीं न कहीं participation करना चाहिए। कुछ ही लोग participation करें ऐसा नहीं, आप भी इस competition में आइए, आप भी अपने जिले में सपनों के अनुकूल कोई चीज कर करके जाने का संकल्‍प करें। इसी एक अपेक्षा के साथ आप सबको Civil Service Day पर हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। आपने जो किया है देश उसके लिए गर्व करता है, आप बहुत कुछ कर पाएंगे, देश सीना तान करके आगे बढ़ेगा, इस विश्‍वास के साथ बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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PM chairs Semiconductor Executives’ Roundtable
September 10, 2024
Semiconductor is the basis of the Digital Age: PM
PM emphasises that democracy and technology together can ensure the welfare of humanity
PM underscores that India has the capability to become a trusted partner in a diversified semiconductor supply chain
PM assures that the government will follow a predictable and stable policy regime
CEOs appreciate the suitable environment for the industry in country saying centre of gravity of the semiconductor industry is starting to shift towards India
Expressing confidence in the business environment, CEOs say there is unanimous consensus in the industry that India is the place to invest
CEOs mention that enormous opportunities present in India today were never seen earlier

Prime Minister Shri Narendra Modi chaired the Semiconductor Executives’ Roundtable at his residence at 7, Lok Kalyan Marg earlier today.

During the meeting, Prime Minister said that their ideas will not only shape their business but also India’s future. Mentioning that the coming time will be technology driven, Prime Minister said semiconductor is the basis of the Digital Age and the day is not far when the semiconductor industry will be the bedrock for even our basic necessities.

Prime Minister emphasised that democracy and technology together can ensure the welfare of humanity and India is moving ahead on this path recognizing its global responsibility in the semiconductor sector.

Prime Minister talked about the pillars of development which include developing social, digital and physical infrastructure, giving boost to inclusive development, reducing compliance burden and attracting investment in manufacturing and innovations. He underscored that India has the capability to become a trusted partner in a diversified semiconductor supply chain.

Prime Minister talked about India’s talent pool and the immense focus of the government on skilling to ensure that trained workforce is available for the industry. He said that India’s focus is to develop products which are globally competitive. He highlighted that India is a great market for investing in hi-tech infrastructure and said the excitement shared by the leaders of the semiconductor sector today will motivate the government to work harder for this sector.

Prime Minister assured the leaders that the Indian government will follow a predictable and stable policy regime. With the focus of Make In India and Make for the World, Prime Minister said that the government will continue to support the industry at every step.

The CEOs appreciated India’s commitment to the growth of the semiconductor sector and said that what has transpired today is unprecedented wherein leaders of the entire semiconductor sector have been brought under one roof. They talked about the immense growth and future scope of the semiconductor industry. They said the centre of gravity of the semiconductor industry is starting to shift towards India, adding that the country now has a suitable environment for the industry which has put India on the global map in the semiconductor sector. Expressing their belief that what is good for India will be good for the world, they said India has amazing potential to become a global power house in raw materials in the semiconductor sector.

Appreciating the business friendly environment in India, they said that in the world of complex geopolitical situation, India is stable. Mentioning their immense belief in India’s potential, they said there is unanimous consensus in the industry that India is the place to invest. They recalled the encouragement given by the Prime Minister in the past as well and said the enormous opportunities present in India today were never seen earlier and they are proud to partner with India.

The meeting was attended by CEOs, Heads and representatives of various organisations including SEMI, Micron, NXP, PSMC, IMEC, Renesas, TEPL, Tokyo Electron Ltd, Tower, Synopsys, Cadence, Rapidus, Jacobs, JSR, Infineon, Advantest, Teradyne, Applied Materials, Lam Research, Merck, CG Power and Kaynes Technology. Also present in the meeting were Professors from Stanford University, University of California San Diego and IIT Bhubaneswar.