PM's interview with Dainik Jagran

Published By : Admin | May 11, 2015 | 13:04 IST

मोदी सरकार का एक साल होने को है। क्या जनता की अभूतपूर्व अपेक्षाओं का दबाव महसूस हो रहा है?
(सहज मुस्कान के साथ) देश में 30 साल बाद पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है। सरकार बनने के पीछे करोड़ों देशवासियों की मनोस्थिति थी और देश की तत्कालीन स्थिति थी। चारों तरफ निराशा का माहौल था। आए दिन भ्रष्टाचार की एक नई खबर उजागर होती थी।

सरकार के अस्तित्व की कहीं अनुभूति नहीं होती थी। ऐसे घनघोर निराशा के माहौल में यह सरकार जन्मी। आज हर देशवासी गर्व के साथ कह सकता है कि बहुत कम समय में निराशा को न सिर्फ आशा में लेकिन विश्वास में तब्दील करने में हम सफल हुए हैं। एक समय था सरकार नहीं है, ऐसी चर्चा थी। आज चर्चा है, सरकार सबसे पहले पहुंच जाती है। एक समय था रोज नए भ्रष्टाचार की घटनाएं थीं।

आज एक साल में भ्रष्टाचार का कोई आरोप हमारे राजनीतिक विरोधियों ने भी नहीं लगाया। एक साल के अनुभव से कह सकता हूं कि दबाव का नामो-निशान नहीं है। हकीकत में तो जैसे-जैसे एक के बाद एक काम में सफलता मिलती जा रही है, एक के बाद एक अच्छे परिणाम मिलते जा रहे हैं, जनता का प्रेम और आशीर्वाद बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे हमारे काम करने की उमंग बढ़ती जा रही है।

भूमि अधिग्रहण बिल वक्त की मांग

2013 के कानून में किसान विरोधी जितनी बातें हैं, विकास विरोधी जो प्रावधान हैं, अफसरशाही को ब़़ढावा देने के लिए जो व्यवस्थाएं हैं, उनको ठीक करके किसान एवं देश को संरक्षित करना चाहिए। हम जो सुधार लाए हैं, अगर वो नहीं लाते तो किसानों के लिए सिंचाई योजनाएं असंभव बन जाती।

सरकार कुछ कर नहीं पा रही है, क्या एक साल में ऐसी धारणा नहीं बनी है?
(अर्थपूर्ण तरीके से हंसते हैं) चुनाव के पूर्व के इन दिनों को याद कीजिए। अपना खुद का अखबार निकाल लीजिए। उसमें क्या भरा प़़ड़ा था। अब गत एक वषर्ष के अखबार निकाल लीजिए। लोकसभा चुनाव से पहले आप देखेंगे दैनिक जागरण इन खबरों से भरा प़़ड़ा होता था कि ये घोटाला, वो घोटाला.. ये काम नहीं हुआ, वो काम नहीं हुआ.. इस बात का पता नहीं, उस बात का पता नहीं।

अब अभी के अखबार देखिए क्या छपा है? आपदा आई नेपाल में और भारत सरकार पहुंच गई। यमन में हम पहुंचे, कश्मीर की त्रासदी हो तो हम वहां थे। कोई घोटाला नहीं है। ओले गिरे तो सारे मंत्री खेतों में पहुंच गए। सबको दिख रहा है। पहले चर्चा होती थी 1.74 करो़ड़ का कोयला घोटाला। इस बार गौरव से खबरें आ रही हैं कि दो लाख करो़ड़ रुपये से ज्यादा सिर्फ दस फीसद कोयला ब्लॉक की नीलामी से आ गए।

तब खबरें थी कि महंगाई ब़ढ़ रही। अब आती है कि इतनी कम हो रही है। यही समाचार आ रहे हैं। पहले दुनिया के देशों में विदेश मंत्री जाते थे और दूसरे देश का भाषण प़ढ़कर आते थे। अब दुनिया के देश हिंदुस्तान की बात बोलने लगे हैं। बिजली उत्पादन पर आएं तो पिछले तीस साल में इतना ग्रोथ कभी नहीं हुआ। स़ड़क निर्माण पर आएं तो पिछले दस सालों में प्रति दिन दो किलोमीटर सड़क बनने का औसत था, जो अब 10 किलोमीटर से ज्यादा पहुंच गया है। एफडीआई और विदेशी पर्यटक के आने जैसे हर क्षेत्र में अच्छी खबरें हैं, आप कोई भी विषय ले लीजिए।
(फिर थोड़ा रुककर..) मोदी के राज में समय पर आफिस जाना पड़ता है। यही आलोचना होती है।

भविष्य के लिहाज से देश के सामने मुख्य चुनौतियां क्या हैं और इनसे पार पाने के लिए कितना समय चाहिए?
आपने हमारे इस साल का बजट पत्र देखा होगा। देश की ऐतिहासिक समस्याओं को 5-7 साल में दूर करने का हमने बी़ड़ा उठाया है। वह चाहे गरीबों को घर देने की बात हो, पानी, बिजली, स़ड़क की सुविधाएं पूर्ण करने की बात हो, कोई कारण नहीं है कि देश का एक ब़ड़ा तबका इन सारी सुविधाओं से वंचित रहे।

शिक्षा की बात हो। डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया से देश को प्रौद्योगिकी और हुनर देने की बात हो। हम एक युवा देश हैं और आधुनिक युग की जरूरतों के मुताबिक देश के नौजवानों को रोजगार के साथ-साथ विश्व के साथ आंख में आंख मिलाकर काम कर सकें, इस प्रकार तैयार करना जरूरी है।

मगर सरकार को गरीब विरोधी ठहराने में विपक्ष कामयाब दिख रहा है। भूमि अधिग्रहण पर कांग्रेस आक्रामक है, लगता है कहीं कोई कमी रह गई?
(पंचवटी में अचानक उठे मोरों के कलरव को सुनकर हम सभी थो़ड़ी देर चुप हो जाते हैं..फिर वह सहज भाव से कहते हैं) इसका पूरा इतिहास समझिए। भूमि अधिग्रहण विधेयक पर 120 साल बाद विचार हुआ। इतने पुराने कानून पर विचार के लिए 120 घंटे भी लगाए थे क्या? नहीं लगाए थे। और उसमें सिर्फ कांग्रेस पार्टी दोषी है, ऐसा नहीं है। हम भी भाजपा के तौर पर दोषी हैं क्योंकि हमने साथ दिया था।

चुनाव सामने थे और सत्र पूरा होना था, इसलिए जल्दबाजी में निर्णय हो गया। बाद में हर एक राज्यों को लगा कि ये तो ब़ड़ा संकट है। मुझे सरकार बनने के बाद करीब-करीब सभी मुख्यमंत्रियों ने एक ही बात कही कि भूमि अधिग्रहण विधेयक ठीक करना प़ड़ेगा, वरना हम काम नहीं कर पाएंगे। हमारे पास लिखित चिट्ठियां हैं।

जैसे सियासी हालत बने, उससे नहीं लगता कि भूमि अधिग्रहण विधेयक पर किसानों को समझाने में आपकी सरकार विफल रही है?

आपकी बात सही है। किसी न किसी राजनीतिक स्वार्थ के माहौल के कारण सत्य पहुंचाने में अनेक रुकावटें आई हैं। ये भ्रम फैलाने में हमारे विरोधी सफल हुए हैं कि भूमि अधिग्रहण विधेयक आने के बाद कारपोरेट घरानों के लिए जमीन ले ली जाएगी, जबकि हकीकत यह है कि कारपोरेट के लिए जमीन देने के मामले में हमने 2013 के विधेयक में मौजूद प्रावधान को रत्ती भर भी नहीं बदला है।

हमारे सुधारों के तहत किसी भी उद्योग घराने या कारपोरेट को कोई जमीन नहीं दी है और न ही ऐसा कोई इरादा है। हमने जो सुधार सूचित किए हैं उनसे एक इंच जमीन भी उद्योग को मिलने में सुविधा नहीं होगी। ये सरासर झूठ है लेकिन चलाया जा रहा है। भूमि अधिग्रहण विधेयक में बदलाव करना, ये न भाजपा का एजेंडा और न ही मेरी सरकार का एजेंडा है। करीब सभी राज्य सरकारों की तरफ से इसमें बदलाव का आग्रह था।

जल्दबाजी में बने हुए 2013 के कानून में किसान विरोधी जितनी बातें हैं, विकास विरोधी जो प्रावधान हैं, अफसरशाही को बढ़ावा देने के लिए जो व्यवस्थाएं हैं, उनको ठीक करके किसान एवं देश को संरक्षित करना चाहिए। हम जो सुधार लाए हैं, अगर वो नहीं लाते तो किसानों के लिए सिंचाई योजनाएं असंभव बन जातीं।

गांवों में किसानों को पक्के रास्ते नहीं मिलते। गांवों में गरीबों के लिए घर नहीं बना पाते। इसलिए गांव के विकास के लिए, किसान की भलाई के लिए कानून की जो कमियां थी वो दूर करनी जरूरी थीं और जिसकी राज्यों ने मांग की थीं। हमने किसान हित में एक पवित्र एवं प्रामाणिक प्रयास किया है। मुझे विश्वास है कि आने वाले दिनों में झूठ बेनकाब होगा और भ्रम से मुक्ति मिलेगी।

इस संवेदनशील मुद्दे पर भाजपा और सरकार के कई नेता भी हिचक रहे थे, फिर भी भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सरकार ने सियासी खतरा लिया?

जैसा मैनें कहा कि भूमि अधिग्रहण विधेयक में बदलाव करना, ये न भाजपा का एजेंडा है और न ही मेरी सरकार का। सभी मुख्यमंत्री तो इसमें बदलाव चाहते ही थे। इस बीच एक घटना ऐसी घटी कि कांग्रेस के वरिष्ठ और अनुभवी नेता रहे जेबी पटनायक असम के राज्यपाल थे। मैं राज्य के दौरे पर गया तो राजभवन में उन्होंने मुझसे दो बातें कहीं। पहली तो कि मोदी जी मेरी एक इच्छा है कि एक माह के बाद मेरा कार्यकाल खत्म हो रहा है, मेरे जाने से पहले उत्तराधिकारी आ जाए।

दूसरी बात उन्होंने ओडिशा के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने प्रशासनिक अनुभव के नाते कही। उन्होंने कहा कि हमने या हमारे लोगों ने परिपक्वता के अभाव में भूमि अधिग्रहण विधेयक लाए हैं, इसे मेहरबानी करके खत्म करो। इससे देश नहीं चलेगा। मैं वषर्षों तक आडिशा का मुख्यमंत्री रहा हूं, मेरा अनुभव कहता है कि ऐसा नहीं चल सकता। वह कांग्रेस के ब़़डे नेता और अनुभवी व्यक्ति थे।

रोजगार व अन्य मुद्दों पर भी आपकी सरकार सवालों के घेरे में है?

सरकार में रहते हुए विपक्ष ने स्वयं कुछ नहीं किया। जिन लोगों को पांच-पांच, छह-छह दशक तक इस देश में एक चक्री राज करने का हक मिला। उन लोगों की कमजोरी है कि वे सत्ता भी नहीं पचा पाए। अब आज घोर पराजय के बाद पराजय भी नहीं पचा पा रहे हैं।

हम भली-भांति जानते हैं कि इस देश में जातिवाद का जहर, सांप्रदायवाद का जहर, गरीबों के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाने की परंपरा इस देश ने लंबे अरसे से देखी है।
हम जिन संकल्पों को लेकर चल रहे हैं। उनके तहत आने वाले 5-7 सालों में देश की तस्वीर अलग होगी और यही बात उनको सोने नहीं दे रही है। इसलिए हमारे कामों में बाधा डालने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। अच्छी भावनाओं के साथ उठाए गए हमारे कदम भी वे लोग गरीब विरोधी और किसान विरोधी कहकर प्रस्तुत कर रहे हैं। लेकिन देश का गरीब और किसान समझदार है और हमारी नीयत और निष्ठा को जानता है।

हम गरीबों और किसानों की आमदनी बढ़े युवाओं को रोजगार मिले, इस दृष्टि से लगातार कदम उठा रहे हैं। मुझे विश्वास है कि देश की जनता हमारे साथ खड़ी रहेगी। जहां तक विपक्ष के हमें गरीब विरोधी ठहराने का सवाल है तो उसके लिए मुझे इतना ही कहना है कि अगर वे लोग गरीबों के हितैषषी थे तो देश में आज भी गरीबी क्यों है? किसने रोका था उन्हें गरीबी दूर करने से?

हमारी रणनीति है गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने की। हमें गरीबों को ही विश्वस्त साथी बना कर, कंधे से कंधा मिला करके गरीबी के खिलाफ लड़ाई ल़ड़नी है और जीतनी है। हमारा विश्वास है कि गरीबी के खिलाफ ये ल़़डाई जीतने के लिए गरीब ही सबसे शक्तिशाली माध्यम है और हमने उसी को अपना साथी बना कर गरीबी से मुक्ति की एक जंग आरंभ की है, जिसमें विजय निश्चित है।

आपकी सरकार ने वास्तव में गरीब, मध्य वर्ग और छोटे व्यापारियों के लिए 12 माह में कुछ किया है?

आपने बहुत अच्छा सवाल पूछा। आमतौर पर समाज का यह वर्ग सरकारों में अछूता रह जाता है। आज भारत के भविष्य को बनाने में मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकता है। हमने उस पर ध्यान केंद्रित किया है। हमारी जितनी भी योजनाएं हैं, वो गरीबों, किसानों, मध्य वर्ग को समर्पित हैं। लोकसभा चुनाव के पहले एवं सरकार बनने के बाद हमारा एक ही मंत्र रहा है कि युवा वर्ग के लिए रोजगार ब़ढ़ाना है। इसलिए हमनें देश को वैश्विक निर्माण हब बनाने की दिशा में काम शुरू किया।

उद्योग जगत की उम्मीदें धूमिल होने लगी हैं। वे लोग मानने लगे हैं कि सरकार कुछ ज्यादा उनके लिए नहीं कर रही है।

अपने पहले सवाल और इस सवाल को मिलाकर देखें तो खुद ही आरोपों में विरोधाभास नजर आएगा। एक तरफ विरोधियों का कहना है कि हम अमीरों के लिए काम करते हैं। और अमीर कहते हैं कि हमारे लिए कुछ नहीं करते हैं। कारपोरेट घरानों की हमारे लिए यह शिकायत स्वाभाविक है।

क्योंकि पिछली सरकार की तरह हम भाई-भतीजावाद के आधार पर प्रशासन नहीं चलाते। जो ईमानदारी से आगे ब़ढ़ना चाहता है, बड़ा बनना चाहता है, उसके लिए हमारी नीतियां स्पष्ट हैं। उसका लाभ कोई भी उठा सकता है। लेकिन अगर गलत रास्ते से किसी को कुछ पाना है तो यह इस सरकार में संभव नहीं है। शिकायत का एक कारण और भी है कि हमारे देशों में मजदूरों को उनके नसीब पर छोड़ दिया गया था।

मजदूरों का कोई रखवाला नहीं था। मजदूरों के हित में कोई सरकार निर्णय करने को तैयार नहीं थी। हमने श्रमेव जयते का अभियान चलाया। श्रमिक के सम्मान को प्राथमिकता दी। मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित की। मजदूरों को उनके हक का ईपीएफ का पैसा आवश्यक रूप से मिले, इसके लिए यूनिवर्सल एकाउंट नंबर (यूएएन) शुरू किया। अब स्वाभाविक है कि मजदूरों के लिए ये सब देना पड़ रहा है तो शिकायत रहेगी ही रहेगी।

क्या आपको लगता है कि औद्योगिक जगत की अनदेखी करके आप देश को आगे ले जा सकते हैं?
हम मानते हैं कि भारत एक युवा देश है। रोजगार अधिकतम लोगों को कैसे मिले, ये हमारी प्राथमिकता है। हम नए उद्योग भी चाहते हैं। जैसे कृषिष क्षेत्र में मूल्यवृद्घि कैसे हो ताकि किसान को ज्यादा लाभ मिले। कृषि आधारित उद्योगों का जाल कैसे बने।

दूसरा क्षेत्र है हमारी जो खनिज संपदा है, उसमें मूल्यवृद्घि कैसे हो। हम कधाा माल विदेश भेजें कि हम कधो माल के आधार पर उद्योग लगाएं और सामान बनाकर दुनिया को भेजें। और हमारी खनिज संपदा से मूल्यवृद्घि हो। हमारी कोशिश है कि अब देश से लौह अयस्क बाहर नहीं जाना चाहिए। स्टील क्यों नहीं तैयार होना चाहिए। हमारा कॉटन तो विश्व बाजार में जाकर फैब्रिक और फैशन बनता है। हम इसे देश में क्यों नहीं कर सकते, जिससे देश के नौजवान को रोजगार मिले।

हमने इस दिशा में पिछले 12 माह में बहुत प्रयास किए। व्यापार करने की सरलता के लिए बहुत काम हुआ है। जैसे कि कर पद्घति को सरल, स्थिर एवं पारदर्शी बनाया गया। बहुत से उत्पादों को इन्वर्टेड ड्यूटी के चलते देश में उत्पादन करने के बजाय आयात को बढ़ावा मिलता था, उसे हमने ठीक किया।

व्यापार उद्योग शुरू करने के लिए विभिन्न विभागों से जो मंजूरियां लेनी पड़ती थीं, ऐसे विषयों को ईबिज के आनलाइन प्लेटफार्म पर डाल दिया। बहुत से रक्षा उत्पादों को लाइसेंस लेने की अनिवार्यता से हटा दिया। औद्योगिक एवं शिपिंग लाइसेंसों की समयसीमा में बढोत्तरी कर दी। भारत सरकार ने निवेशकों को अभी तक कोई पूछने वाला नहीं होता था। हमने इनवेस्टर फैसिलिटेशन सेल बनाई है। लेबर से संबंधित बहुत सी प्रक्रियाओं को सरल करके आनलाइन कर दिया है।

क्या इन कदमों के नतीजे मिलने शुरू हुए?

यह सब और ऐसे बहुत सारे कदम हमने इस सोच के साथ उठाए कि प्रशासनिक जटिलताओं के चलते हम कब तक पिछड़े रहेंगे। हमारा गरीब कब तक बेघर रहेगा। गरीब को घर देना ये राष्ट्र की जिम्मेदारी है। साथ-साथ घर देने का कार्यक्रम एक बड़ा बुनियादी ढांचा तैयार करने का काम भी है। अगर देश में करोड़ों मकान बनते हैं तो करो़ड़ों नौजवानों को रोजगार भी मिलता है। रेलवे एक गरीब व्यक्ति का साधन है।

अगर गरीबों के लिए कुछ करना है तो रेलवे की उपेक्षा नहीं चल सकती, क्योंकि गरीब रेलवे में जाता है। हमारी रेल गंदी हो, रेल के समय का कोई ठिकाना न हो, ऐसा कब तक चलेगा? हम रेलवे को आधुनिक बनाना चाहते हैं। रेलवे की गति और इसके माध्यम से रोजगार और गरीब की सुविधा ब़़ढाना चाहते हैं। इस तरह उद्योग की अनदेखी का सवाल ही नहीं उठता है। लेकिन हम देश में उन उद्योगों का जाल बिछाना चाहते हैं जिसके कारण सर्वाधिक लोगों को रोजगार मिले। लेकिन रोजगार निर्माण की इस प्रक्रिया में उद्योग जगत के लिए बहुत सी संभावनायें खुलेंगी।
पिछले 12 माह का प्रयास सार्थक रहा है। विदेशी निवेश 38.75 फीसद ब़़ढा है। विदेशी निवेशकों
और विदेशी संस्थाओं का दृष्टिकोण भारत के प्रति संपूर्ण रूप से बदल गया है। विश्वबैंक हो या आइएमएफ सभी ने एक सुर में भारत की अर्थव्यवस्था की सही दिशा पर मुहर लगाई है। अभी कुछ ही दिन पहले वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने हमारी अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर रेटिंग दी है।

इन सारी बातों से स्वभाविक रूप से उद्योग जगत का मनोबल ब़़ढा है। मुझे आशा है कि इस बदले हुए वातावरण का उद्योग जगत लाभ उठाएगा और देश में औद्योगीकरण एवं रोजगारी निर्माण की दिशा में अपना कर्तव्य निभाएगा।

मेक इन इंडिया पर आपकी कल्पना क्या साकार होने की दिशा में कुछ आगे बढ़ी है?

वैश्विक अर्थव्यवस्था का युग है। हर कोई अपना माल दुनिया में बेचना चाहता है। सवा सौ करो़ड़ का देश, दुनिया की नजरों में एक बहुत बड़ा बाजार है और ये स्वाभाविक भी है। क्या हमें, हमारे देश को दुनिया भर के लोगों को माल बेचने का एक बाजार बनाए रखना है? क्या हमें सिर्फ बनी-बनाई चीजों को खरीद के गुजारा करना है? अगर उस रास्ते पर चलें तो भारत का कोई भविष्य है क्या?

हमारी युवा पी़़ढी का कोई भविष्य बचेगा क्या? इसलिए हर देशवासी का सपना होना चाहिए कि हम हिंदुस्तान को बाजार नहीं मैन्युफैक्चरिंग हब बनाएंगे। जिस देश के पास 80 करो़ड़ लोग 35 साल से कम उम्र के हों, उस देश का सामूहिक संकल्प होना चाहिए कि हम मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी अपना रतबा दिखाएंगे। इतने कम समय में पिछले साल की अपेक्षा विदेशी निवेश में 38.75 फीसद की वृद्घि इसका जीता-जागता उदाहरण है। पिछले दस साल में भारत के बहुत से उद्योगपति और भारत की कंपनियां, भारत के बाहर अपना पैर फैलाना जरूरी समझने लगी थीं।

कुछ लोगों ने बाहर जाने का मन बना लिया था। आज बाहर जाने की वो भावना पूर्णतया खत्म हो गई है। इतना ही नहीं, भारत का अमूल्य शिक्षित मानवधन, जो भारत में कोई भविष्य न होने के कारण विदेशों में अपना कैरियर बनाने में लगा था वह भारत मां की होनहार संतान, भारत वापस आने के लिए उत्साहित नजर आते हैं। तो मेक इन इंडिया के जरिये भारत ने अपने साम‌र्थ्य का प्रभाव फैलाया है। जितना भारत में उसका प्रभाव है, उससे ज्यादा भारत के बाहर दिखता है।

भारत में कृषि संकट में है। लेकिन आपकी सरकार ने कोई ठोस कदम उठाए हों, ऐसा नजर नहीं आता है, क्या कारण है?

आपकी चिंता सही है कि बदलते हुए युग में हमारी कृषिष को वैज्ञानिक और आधुनिक बनाने पर बल देना चाहिए था। समय रहते ये होना चाहिए था। परिवार बढ़ रहे हैं। पी़ढ़ी दर पीढ़़ी जमीन टुक़़डों में बंटती चली जा रही है। लागत भी लगातार ब़़ढ रही है। एक समय था जब देश का किसान भारत के विकास में 60फीसद योगदान करता था। आज उतने ही किसान सिर्फ 15 फीसद योगदान दे पा रहे हैं।

खेत मजदूरों को तो कभी कोई पूछता भी नहीं है। इसलिए भारत में कृषिष को आधुनिक बनाने की जरूरत है। वैज्ञानिक बनाने की आवश्यक्ता है। प्रति एक़़ड उत्पादकता कैसे ब़़ढे? ताकि कम जमीन में भी किसान को आर्थिक रूप से लाभ मिले। हमने सोइल ([जमीन)] हेल्थ कार्ड लागू करने का काम शुरू किया है, जिससे किसान के खेत में लागत कम हो और उत्पादकता ब़़ढे। प्रधानमंत्री कृषिष सिंचाई योजना के जरिए सिंचाई की व्यवस्था को सुदृ़ढ़ बनाने का प्रयास है। यूरिया में नीम की कोटिंग करने पर बल दिया है, जिससे किसानों को मिलने वाली यूरिया बिचौलिये न बेच खाएं।

किसानों के ऋण को लेकर बहुत सारी समस्यायें हैं। साहूकारों से किसानों को मुक्ति कैसे मिलेगी?

किसान को ऋण साहूकार से न लेना प़़डे उसका प्रबंध होना चाहिए। इसके लिए हमने जनधन योजना के तहत ओवड्राफ्ट की व्यवस्था की है। उसी प्रकार सहकारी बैंकों के कामकाज में सुधार करने का काम हमने हाथ में लिया है। फसलों की बीमा योजनाओं को और वैज्ञानिक व सुदृ़ढ़ बनाने की व्यवस्था हम कर रहे हैं। किसानों को मिलने वाले ऋण के लक्ष्य में हमने अपने उत्तरोत्तर दो बजट में वृद्घि की है। किसान संपूर्ण रूप से देश की बैंकिंग व्यवस्था के साथ जु़ड़े, इस दिशा में हम निरंतर प्रयासरत हैं।

एमएसपी के संबंध में जो कुछ हो रहा है, उससे आप संतुष्ट हैं क्या?

यहां आने के बाद मैंने देखा कि ये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जो कि हर किसान के मुंह से सुनने को मिलता है, उसके निर्धारण की कोई वैज्ञानिक पद्घति नहीं है। हर राज्य का अपना तौर-तरीका है। और मैं तो जानकर हैरान हुआ कि पूर्वी हिंदुस्तान में तो इसकी काफी उपेक्षा है। सबसे पहले एमएसपी का लाभ अधिकतम किसान को कैसे मिले? सभी राज्यों में कैसे एक सूत्रता हो और समय रहते हस्तक्षेप कैसे हो? ये प्राथमिक बातें हमें ही करनी प़़डेगी, ऐसा मुझे लगता है।

पिछले वर्ष कॉटन की कीमतों को लेकर चिंता थी। हमने बहुत ब़़डे पैमाने पर कॉटन की खरीद एमएसपी के आधार पर कराई। पूर्वी भारत में होने वाले अन्न उत्पादन को भी एमएसपी का लाभ मिले, उसके लिए हम व्यवस्था कर रहे हैं। उसी प्रकार से एमएसपी में अन्न लेने के बाद, धान खरीदने के बाद उसका प्रबंधन भी ब़़डी मात्रा में करना प़़डेगा। किसान को अगर अपनी फसल रखने की उचित व्यवस्था मिल जाए तो उसके सस्ते दाम पर अपना माल बेचने के लिए मजबूर नहीं होना प़ड़ेगा। इन सारे विषषयों पर हम गंभीरता से एक के बाद एक कदम उठा रहे हैं, जिसका लाभ आने वाले दिनों में मिलेगा।

आप दूसरी हरित क्रांति की बात करते हैं, आपकी क्या कल्पना है?

पहली हरित क्रांति में भी पूर्वी भारत एक प्रकार से अछूता रह गया। जहां पानी बहुत है, जमीन भी विपुल है। औद्योगिकीकरण नहीं हुआ है। मेहनतकश किसान हैं। हमारी सरकार इस पूर्वी भारत में आर्थिक विकास के लिए कृषि पर सर्वाधिक बल देना चाहती है। चाहे ये पूर्वी राज्य उत्तर प्रदेश हो, बिहार हो, ओडिशा, पश्चिम बंगाल या पूर्व के राज्य हों। ये सब राज्य दूसरी हरित क्रांति का नेतृत्व करेंगे।

पिछले माह बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि से फसलों को बहुत नुकसान हुआ। आपकी सरकार राहत के लिए क्या कर पाई?

हमारे देश के किसी न किसी हिस्से में हर साल प्राकृतिक आपदा से किसानों का नुकसान होता रहा है। ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के समय पहले बातों से ज्यादा किसानों को कुछ नहीं मिलता था। मैं स्वयं गुजरात में मुख्यमंत्री था। ऐसी अनेक आपदाएं हमनें झेलीं, लेकिन कभी केंद्र सरकार से कोई विशेष लाभ हम किसानों के लिए नहीं ले पाए थे।

जबकि इस बार इस आपदा के समय सरकार की सक्रियता, मंत्रियों की आपदाग्रस्त किसानों से सीधी बातचीत, मंत्रियों का क्षेत्र भ्रमण, सरकारी अधिकारियों की टोलियों को पहुंचाने का काम और सर्वेक्षण का काम तेज गति से हुआ है। राज्यों की वषर्षों पुरानी मांगों पर हमने नीतिगत निर्णय कर लिए हैं। भारत सरकार ने प्रभावित किसानों की मदद के लिए अभी तक के नियमों में बदलाव किया है। उन किसानों को भी राहत दी जा रही है, जिनका नुकसान 33 फीसद था। अभी तक यह मापदण्ड 50 प्रतिशत तक था।

इतना ही नहीं, हमने अभी तक की व्यवस्था परिवर्तन करके किसानों को प्रति हेक्टेयर मिलने वाली सहायता की राशि डे़़ढ गुणा कर दी है। वषर्षा एवं ओले से नुकसानग्रस्त फसलों से पैदा होने वाले अनाज की गुणवत्ता में कोई क्षति हो तो उसकी खरीद भी एमएसपी पर ही की जाए। इसके लिए अनाज की औसत गुणवत्ता के मानकों को शिथिल किया गया है। जिन भी राज्यों ने भारत सरकार को प्रतिवेदन दिए हैं, वहां भारत सरकार की टीम जा चुकी है और अग्रिम कार्रवाई हो रही है।

आपने कहा था कि मनरेगा को कमजोर नहीं किया जाएगा, लेकिन कार्यदिवस घटने के बाद अब मनरेगा को ले कर आशंका गहरा रही है?

हमने मनरेगा बंद करने की अफवाहों का खण्डन किया है। हम इसे चालू रखने वाले हैं। बजट में इसके लिए संपूर्ण प्रावधान किया गया है। कार्यदिवस घटने या ब़़ढने की समस्या सरकार से संबंधित नहीं है, जिसे भी मनरेगा के तहत रोजगार के लिए काम की जरूरत होगी, उसके लिए विकल्प खुले हैं।

इस योजना के तहत मेरा स्वप्न है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लंबे समय तक टिकने वाली जनउपयोगी सुविधायें ख़़डी हों। जैसे कि किसानों की मदद हो सके, कृषिष की उत्पादकता ब़़ढे और जल प्रबंधन हो। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में वनीकरण को ब़़ढावा देकर हरियाली क्षेत्र ब़़ढाया जाए। तभी किसानों को वास्तविक लाभ मिलेगा, गांव में रोजगार ब़़ढेगा और गांवों की लंबे समय की समृद्घि और खुशहाली के रास्ते खुलेंगे।

राज्यसभा सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गई है? सरकार कई विधेयक पारित कराने में सफल तो रही है, लेकिन फ्लोर प्रबंधन में क्या कुछ खामी नजर नहीं आती?

मैं समझता हूं कि देशहित में विचार करने वाले नागरिकों में यह विचार आना बहुत स्वाभाविक है। लेकिन इसके लिए सरकार को कठघरे में रखने की जो परंपरा बनी है, वह उचित नहीं है। हम सब भलीभांति जानते हैं कि राज्यसभा में हमारा बहुमत नहीं है। हम यह भी जानते हैं कि राज्यसभा में जो दल हैं उनके अपने अपने राजनीतिक विचार हैं।

और इसीलिए सरकार की कोशिश है सबको साथ लेकर चलना। रास्ते निकालना और देश हित में आगे ब़़ढना। मुझे खुशी है कि इतने कम समय में 40 से अधिक विधेयक हम पारित करवा चुके हैं। और इसके लिए विपक्ष का भी धन्यवाद। हम सबका प्रयास रहे कि लोकसभा मे जिन भावनाओं को प्रकट किया हो, राज्यसभा भी उन भावनाओं का आदर करते हुए देशहित के निर्णयों को आगे ब़़ढाए।

इन दिनों एक बहुत ही आनंददायक काम हुआ है। भारत और बंग्लादेश के बीच सीमा समझौते को संसद में सर्वसम्मति से समर्थन मिला। उसके लिए मैं सभी दलों का आभार व्यक्त करता हूं। सात दशकों से यह सीमा विवाद था, हमने शांति और सौहा‌र्द्र से इसको हल किया। सीमा विवाद भी शांति से हल हो सकते हैं। यह संकेत हमने भारत को ही नहीं, पूरी दुनिया को दिया है। हमें विश्वास है कि इस समझौते से अंतरराष्ट्रीय सीमा पर शांति और स्थिरता का माहौल कायम करने में सहयोग मिलेगा।

क्या आपको कई बार ऐसा नहीं लगता कि सरकार की तैयारी विपक्ष के सामने कमतर पड़ जाती है?

मैं समझता हूं की शालीनता, भद्रता, विवेक, नम्रता इन चीजों को कमजोरी नहीं मानना चाहिए। हम तत्वत: मानते हैं कि अगर जनता ने हमें शासन की बागडोर दी है तो सबसे अधिक नम्रता और शालीनता हमारी जिम्मेदारी है। इसलिए कभी सदन में हम संख्या बल में पीछे भी रह जाएं तो मैं इसे डिस्क्रेडिट नहीं मानता। हम ईंट का जवाब पत्थर से नहीं देते हैं। जहां तक सदन चलाने का सवाल है।

शासक दल के नाते हमारी भूमिका सबको साथ लेकर चलने की होनी चाहिए। उसी का परिणाम हुआ कि 40 बिल इतने कम समय में पारित हो गए। बांग्लादेश सीमा विधेयक का निर्णय ऐतिहासिक है। इसलिए मेरे तराजू अलग हैं। सदन में जीत या हार का मुद्दा ही नहीं होता है। विवादों और भाषषणों में, किसके आरोप अच्छे, किसके कमेंट शार्प थे, इससे ज्यादा जरूरी है कि लोकतंत्र मजबूत होना चाहिए और लोगों के लिए ज्यादा से ज्यादा काम किया जा सके।

फिर भी सदन में आपको कुछ रिक्तता महसूस नहीं होती?

मुझे जो कमी महसूस होती है वह व्यंग्य और विनोद की होती है। संसदीय लोकतंत्र की जीवंतता के लिए यह जरूरी है। यदि अंतरराष्ट्रीय राजनीति या विदेश नीति पर आएं तो 12 माह से कम समय में 16 देशों की यात्रा..
(हाथ के इशारे से रोककर बोलते हैं.) जब भी मेरी आलोचना होती थी, उसमें दो बातों में बिल्कुल सच्चाई थी। एक आलोचना कि मोदी को गुजरात के बाहर कौन जानता है? दूसरी आलोचना यह होती थी कि मोदी विदेश को क्या समझता है? विदेश नीति को ले कर मेरा मजाक उ़़डाया जाता था।

मेरे बारे में बहुत ही मजाकिया बयान आते थे। मगर जब सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में मैंने सार्क देशों को बुलाने का निर्णय किया तो विदेश विषषयों के जितने पंडित थे, उनको आश्चर्य हुआ। लेकिन मैं एक बात का अनुभव करता था कि यह कैसा मनोविज्ञान था दिल्ली का, जिसमें राज्यों को सहभागी मानने का स्वभाव नहीं था। सबको समझना होगा कि ये देश एक पिलर से ख़़डा नहीं हो सकता है। वन प्लस ट्वेंटी नाइन पिलर से ही देश ख़़डा हो सकता है।

आप कुछ दिनों पहले तीन देशों की यात्रा से लौटे हैं। इसके पहले दर्जनों देशों के साथ संवाद प्रक्रिया तेज हुई। इस दिशा में आपकी रणनीति क्या है?

हम जानते हैं कि 21 वीं सदी की शुरूआत में पूरे विश्व में भारत के प्रति बहुत आशाएं थीं। लेकिन गत एक दशक में पूरे विश्व में भारत के प्रति निराशा का माहौल बन गया। 21वीं सदी के आरंभ में पांच तेजी से विकास करने वाले देशों के बारे में ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन, दक्षिण अफ्रीका) की कल्पना आई।

ऐसा माना जाता था कि इस सदी में ये देश ड्राइव करेंगे। देखते ही देखते विश्व में चर्चा होने लगी कि ब्रिक्स में इंडिया कमजोर प़़ड रहा है। ब्रिक्स का कंसेप्ट ही डंवाडोल हो गया। ऐसी स्थिति में मेरी सरकार की जिम्मेवारी बनी। मैं जानता था कि चुनौतियां बहुत ब़़डी हैं। विश्व मेरे लिए भी नया था। विश्व में भारत के लिए नजरिया बदले, ये अनिवार्य था और इसके लिए मैंने चुनौती को स्वीकार किया खुद जाऊंगा!

दुनिया को भारत के प्रति, इसकी शक्ति के संबंध में, भारत की संभावनाओं के संबंध में संवाद करूंगा, बराबरी से बात करूंगा। आज मुझे इस बात का संतोषष है कि विश्व में भारत की तरफ देखने का नजरिया बहुत ही सकारात्मक हुआ है।

पड़ोसी देश आपकी प्राथमिकता में रहे हैं। दौरे भी हुए लेकिन पाकिस्तान छूट गया। पाकिस्तान की ओर से आप किस माहौल का इंतजार करेंगे? आप की उम्मीदें क्या हैं?

पाकिस्तान से एकमात्र उम्मीद है कि वह शांति एवं अहिंसा के मार्ग पर चले, बाकी कोई अ़़डचन नहीं है। हिंसा का मार्ग न तो उनके लिए और न हमारे लिए लाभदायक है।

जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार से आप कितने संतुष्ट हैं?

सवा सौ करो़ड़ देशवासियों के दिल में स्वयं के राज्य के प्रति जितना लगाव है, उससे ज्यादा हर हिंदुस्तानी का कश्मीर के प्रति लगाव है। इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने एक नए प्रयोग के लिए साहस किया। राजनीतिक विचारधारा की दृष्टि से देखें तो पीडीपी और भाजपा के बीच उत्तर और दक्षिण ध्रुव जितना अंतर है। जम्मू-कश्मीर की जनता ने दोनो दलों को साथ चलने के लिए जनादेश दिया।

और जनादेश का सम्मान करते हुए दोनों दल अपने राजनीतिक विचारों को पीछे रखते हुए राज्य के विकास के एजेंडे को लेकर साथ आए हैं। भारत के अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर का विकास हो, वहां के नौजवानों को रोजगार के अवसर मिलें, पहले की तरह देश-विदेश के टूरिस्ट आने लगें, इसके लिए जो भी कदम उठाने चाहिए, उसका प्रयास चल रहा है। हम आशा करते हैं कि ये प्रयोग सफल हो और करो़ड़ों देशवासियों की आशाएं- आकांक्षाएं पूरी हों।

हाल के दिनों में अल्पसंख्यक समाज के बहुत सारे प्रतिनिधि आपसे मिल रहे हैं। इसे कैसे देखा जाए?

न तो ये राजनीति है और न ही रणनीति है। अगर है तो सिर्फ राष्ट्रनीति है। इस देश के हर नागरिक का इस सरकार और सरकार के मुखिया के नाते मुझ पर समान अधिकार है। कोई भी संप्रदाय के हों, कोई भी जाति के हों, कोई भी भाषषा के लोग हों, गरीब हों या अनप़़ढ हों, हरेक का सरकार पर पूरा हक है।

और अपनी बात बताने का भी पूरा हक है। मेरी ये जिम्मेवारी है कि मुझे समाज के सभी तबके के लोगों को मिलना भी चाहिए और उनको सुनना-समझना भी चाहिए। उनके सुझावों पर ध्यान देना चाहिए और यह प्रयास मैं निरंतर करता रहता हूं।

आपकी पार्टी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। इसका कारण क्या मानते हैं?

मैं भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान टीम को और उनके अध्यक्ष अमित भाई शाह का अभिनंदन करता हूं कि उन्होंने इतना ब़़डा अभियान चलाया। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की जिम्मेवारी है कि वे नागरिकों का राजनीतिक प्रशिक्षण करते रहें, निरंतर करते रहें, इससे लोकतंत्र की ज़़डें मजबूत होती हैं। सदस्यता अभियान भी उसी दिशा में एक अहम कदम है।

भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता के नाते इससे आनंददायक तो कुछ हो नहीं सकता है कि मेरी पार्टी विश्व की सबसे ब़़डी पार्टी है। दुर्भाग्य से देश में कई राजनीतिक दल पारिवारिक पार्टी बन गए हैं। आजादी का आंदोलन चलाने वाला कांग्रेस जैसा महान दल भी दुर्भाग्य से आज पारिवारवाद में सिकु़ड़ता चला जा रहा है।

चुनाव की दृष्टि से अगली चुनौती बिहार है। आपकी रणनीति क्या होगी?
राजनीतिक दलों के लिए हर चुनाव चुनौती होती है और जनता के पास जाकर लोकशिक्षा करने का अवसर भी होता है। देश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी के प्रति अपार विश्वास जताया है। भरपूर आशीर्वाद दिया है। आने वाले चुनाव मे भी यह सिलसिला बरकरार रहेगा ऐसा हमें पूरा विश्वास है।

गुजरात से दिल्ली. अब एक साल बाद दोनों जगह की संस्कृति और आबो-हवा में क्या फर्क महसूस कर रहे हैं और दिनचर्या किस तरह बदली है?

(ठहाके के साथ ) मेरी दिनचर्या में कोई फर्क नहीं है। मैं पहले की तरह वही पांच बजे उठता हूं। विदेश जाता हूं तब भी उतने बजे उठता हूं। लगता है कि मेरा बाडी क्लाक ही ऐसे वर्क करता है। वर्कहोलिक हूं काम बहुत करता हूं। बाकी रही फर्क की बात तो..मुझे इन चीजों से रूबरू होने का अवसर ही नहीं मिलता है। वहां भी मेरा जेलखाना था, यहां भी मेरा जेलखाना है। अब, उस प्रकार से सहज जीवन से रूबरू होना, फिर जांचना संभव नहीं होता है। थो़ड़ा-बहुत होता है तो किसी शादी-ब्याह में चला जाता हूं। तो वहां भी मैं बहुत सहज नहीं होता हूं। जाता हूं और चला आता हूं।

दिल्ली अब आपके लिए कितनी पुरानी या नई रह गई है?

दिल्ली का स्वभाव हो या गठबंधन की सरकारों का स्वभाव हो या फिर पूर्ण बहुमत का अभाव हो, हर विभाग अपने में सरकार बन गया था। अब ये आते ही जेहन में आ गया। सरकार एक होती है सारे अंगउपांग होते हैं। सारे भागों को मिलकर चलना होता है।
जहां तक दिल्ली स्थित भारत सरकार का सवाल है उसमें हमने पिछले 12 महीनों में कार्य संस्कृति बदलने के लिए बहुत काम किया है और अनुभव भी अच्छे रहे हैं। साथ ही पहले यहां सब कुछ एक खोल के अंदर चलता था और फाइलें एक खोल से दूसरे खोल तक जाने में महीनों लग जाते थे।

इससे मुक्ति दिलाकर एकरसता और सौहा‌र्द्र से भरा माहौल बनाने का प्रयास किया। काफी हद तक सफलता मिली है। आज मिलबैठकर तेजी से निर्णय हो रहे हैं। मंत्रालयों और विभागों ने देश के प्रति समर्पण की भावना से काम करना शुरू किया है। सरकार अब एक आर्गेनिक एंटिटी की तरह दिखनी शुरू हुई है। इसके अच्छे परिणाम देश को मिलेंगे। यह मेरे लिए काफी संतोषष का विषषय है।

प्रधानमंत्री पद के दायित्व के साथ भाजपा संगठन से कितना और कैसा संबंध रख पाते हैं?

जहां तक संगठन का सवाल है, मैं पहले भी दिल्ली स्तर पर सक्रिय रूप से जु़ड़ा हुआ था। यह मेरे लिए नया
नहीं था। संगठन का समर्थन मुझे पहले भी था और आज भी है। संगठन और देश का समर्थन न होता मैं आज यहां कैसे होता?

मुझे गंगा ने बुलाया है? आपका यह वाक्य देशवासियों के जेहन में ताजा है। काशी के घाटों की साफ-सफाई पर जरूर प्रभाव पड़ा है, लेकिन निर्मल और पावन गंगा की दिशा में कब तक कुछ दिखना शुरू होगा?
(सहमति में सिर हिलाते हुए) देखिए, ये गंगा स्वच्छता का विषषय 84 से चल रहा है। हजारों करोड़़ रुपये खर्च किए गए। लेकिन परिणाम नहीं निकले। मुझे पहले यह खोजना है कि गलती क्या हुई और बर्बादी क्या हुई। अगर मैं भी वही गलती दोहराऊंगा तो फिर करोड़ों रुपये बर्बाद हो जाएंगे।

दूसरा, मेरा मत है कि हमें दुनिया की सर्वश्रेष्ठ तकनीक लानी चाहिए। लगातार हम प्रयास कर रहे हैं। तीसरा, केंद्र सरकार की इच्छा से होने वाला कार्यक्रम नहीं है। इसमें पांच राज्य आते हैं। पांचों राज्यों को पूरी तरह कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा। इन सभी मुख्यमंत्रियों की बैठक मैंने ली। जब तक इन सभी राज्यों की सहमति वाल निर्णय नहीं होता है, तब तक आप कुछ भी चीज थोपकर परिणाम नहीं ला सकते हैं। मुझे विश्वास है कि हमने जो मनोमंथन किया और रास्ता ढूंढा है, उससे हम पिछले 30 साल में जो रुपये, समय व गंगा बर्बाद होती गई, उससे हम बाहर निकलेंगे।

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Bharatiya Antariksh Station (BAS) Our own Space Station for Scientific research to be established with the launch of its first module in 2028
September 18, 2024
Cabinet approved Gaganyaan Follow-on Missions and building of Bharatiya Antariksh Station: Gaganyaan – Indian Human Spaceflight Programme revised to include building of first unit of BAS and related missions
Human space flight program to continue with more missions to space station and beyond

The union cabinet chaired by the Prime Minister Shri Narendra Modi has approved the building of first unit of the Bharatiya Antariksh Station by extending the scope of Gaganyaan program. Approval by the cabinet is given for development of first module of Bharatiya Antariksh Station (BAS-1) and undertake missions to demonstrate and validate various technologies for building and operating BAS. To revise the scope & funding of the Gaganyaan Programme to include new developments for BAS & precursor missions, and additional requirements to meet the ongoing Gaganyaan Programme.

Revision in Gaganyaan Programme to include the scope of development and precursor missions for BAS, and factoring one additional uncrewed mission and additional hardware requirement for the developments of ongoing Gaganyaan Programme. Now the human spaceflight program of technology development and demonstration is through eight missions to be completed by December 2028 by launching first unit of BAS-1.

The Gaganyaan Programme approved in December 2018 envisages undertaking the human spaceflight to Low Earth Orbit (LEO) and to lay the foundation of technologies needed for an Indian human space exploration programme in the long run. The vision for space in the Amrit kaal envisages including other things, creation of an operational Bharatiya Antariksh Station by 2035 and Indian Crewed Lunar Mission by 2040. All leading space faring nations are making considerable efforts & investments to develop & operationalize capabilities that are required for long duration human space missions and further exploration to Moon and beyond.

Gaganyaan Programme will be a national effort led by ISRO in collaboration with Industry, Academia and other National agencies as stake holders. The programme will be implemented through the established project management mechanism within ISRO. The target is to develop and demonstrate critical technologies for long duration human space missions. To achieve this goal, ISRO will undertake four missions under ongoing Gaganyaan Programme by 2026 and development of first module of BAS & four missions for demonstration & validation of various technologies for BAS by December, 2028.

The nation will acquire essential technological capabilities for human space missions to Low Earth Orbit. A national space-based facility such as the Bharatiya Antariksh Station will boost microgravity based scientific research & technology development activities. This will lead to technological spin-offs and encourage innovations in key areas of research and development. Enhanced industrial participation and economic activity in human space programme will result in increased employment generation, especially in niche high technology areas in space and allied sectors.

With a net additional funding of ₹11170 Crore in the already approved programme, the total funding for Gaganyaan Programme with the revised scope has been enhanced to ₹20193 Crore.

This programme will provide a unique opportunity, especially for the youth of the country to take up careers in the field of science and technology as well as pursue opportunities in microgravity based scientific research & technology development activities. The resulting innovations and technological spin-offs will be benefitting the society at large.