Indian Constitution is greatest political venture: PM Narendra Modi
If there is something we turn to when we need guidance, inspiration it is the Constitution: PM Modi
Every person has made a positive contribution to the nation & that is how the nation was made: PM
This debate is special because we mark the 125th birth anniversary of Dr. Babasaheb Ambedkar: PM
Our nation cannot forget or ignore the exemplary contribution of Dr. Babasaheb Ambedkar: PM Modi
Constitution should be a celebration and the message of the Constitution must reach the future generations: PM
Our Constitution is not about laws only. It is a social document. We admire these facets of our Constitution: PM Modi
Dr. Babasaheb Ambedkar wanted India to industrialise: PM Narendra Modi
The reason behind celebrating our constitution was to make our young people aware of our great leaders of the past: PM Modi
Nation will progress if we work together: PM Narendra Modi in Rajya Sabha

सदन का आदरपूर्वक अभिवादन करता हूं। करीब 50 माननीय सदस्‍यों ने विस्‍तार से इस महत्‍वपूर्ण विषय पर अपने विचार रखे। बाबा साहब अम्‍बेडकर जी की 125 जयंती वर्ष पर एक अच्‍छा उपक्रम और जब सभी दलों के मुखियाओं के साथ सदन शुरू होने से पहले बैठे थे हर किसी ने इसको एक स्‍वर से स्‍वागत किया था, उसका अनुमोदन किया था। वैसे हम ये दावा नहीं करते कि ये मूल विचार कोई हमारा था, हो सकता है मेरी जानकारी के सिवाय भी कुछ हो, लेकिन 2008 में महाराष्‍ट्र में कांग्रेस सरकार ने, ये 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में आरंभ किया था। और एक अच्‍छा काम उन्‍होंने ये किया था कि स्‍कूलों में उसका preamble का पाठ बालकों से करवाते थे। जब मैं गुजरात में था तो मुझे ये प्रयोग अच्‍छा लगा था क्‍योंकि हम 15 अगस्‍त मनाते हैं, 26 जनवरी मनाते हैं। थोड़ा-बहुत तो 15 अगस्‍त को, आजादी के आंदोलनकारियों को, आजादी के दीवानों को हम भी याद करते हैं, टीवी वगैरह में भी चर्चा चलती है, अखबारों में भी रहती है। 26 जनवरी में उतना होता नहीं है, परेड पर ही ध्‍यान केंद्रित होता है। और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में एक बात निश्चित है कि अब हमारे लिए चलने-फिरने के लिए मार्गदर्शन के लिए कोई जगह है तो हमारा संविधान है। आगे बढ़ने के लिए कोई रास्‍ता है तो संविधान है। मुश्किलातों में भी साथ चलने के लिए, साथ जोड़ने के लिए हमारा संविधान है। हमारी आने वाली पीढि़यों को हम संविधान से परिचित करवाएं और इतना ही नहीं कि ये संविधान की धाराएं क्‍या हैं किस पार्श्‍व भूमि में संविधान का निर्माण हुआ, कैसे-कैसे महापुरुषों ने किस-किस प्रकार का योगदान दिया और वे दूर-दूर तक का कैसे देख पाते थे, इतने विविधता सभर इस देश को और वो भी गुलामी के कालखंड में अनेक समस्‍याएं नई उसमें उभारने का प्रयास भी हुआ था। इन सबको दरकिनार करके भारत की जो मूल आत्‍मा है, भारत की जो मूल चिंतनधारा, उसके प्रकाश में भारत के सामने जो चुनौतियां हैं, उन चुनौतियों को पार करने के लिए कोई व्‍यवस्‍था विकसित करनी थी। ये काम कितना महान था, ये संभव नहीं है कि सदन के सभी महापुरुषों का नाम दें, तभी उनको हम आदर देते हैं। ये कार्यक्रम अपने-आप में उन सभी ऋषियों को जो कि संविधान सभा में बैठे थे, उनको नमन करने के लिए बनाया है। उनका आदर करने के लिए बनाया है, और पहले किसी ने नहीं बनाया था तो उसने गुनाह किया मैं नहीं मानता। हमें विचार आया हमने किया है लेकिन करने का इरादा ये है कि इस राष्‍ट्र को आने वाले शतकों तक दिशा देने के लिए जिन महापुरुषों ने काम किया है हमारी आगे वाली पीढ़ी जाने तो, समझे तो, और इसलिए उसमें मेरी पार्टी का कोई सदस्‍य होता तभी मैं याद करूं, ऐसे देश नहीं चलता है। किस विचार के थे, किस दल के थे, उसके आधार पर हम निर्णय नहीं कर सकते हैं। ये देश हर किसी ने कोई न कोई सकारात्‍मक योगदान का परिणाम होता है और हर किसी के सकारात्‍मक योगदान को ही हमें जोड़ते चलना जाता है, तभी तो राष्‍ट्र सम्‍प्रभुत्‍व होता है और इसलिए 26 नवंबर के पीछे एक मन में कल्‍पना है कि सिर्फ धाराओं में देश सिमट न रहे, उसकी भावनाओं से भी देश जुड़े जो संविधान सभा में बैठे हुए लोगों की थीं। और हमें कोई शक नहीं है कि उसमें बैठने वाले लोगों की वि‍चारधारा, कांग्रेस से जुड़े हुए काफी लोग थे उसमें लेकिन हम में हिम्‍मत है गर्व करने की उनका। हममें हिम्‍मत है, हमारे संस्‍कार हैं कि उनका आदर कर सकते हैं, उनका अभिनंदन कर सकते हैं, ये हमारे संस्‍कार हें।

इसको हमें सकारात्‍मक रूप में लेना चाहिए और सुझाव ये भी चाहिए कि भले इस चर्चा में ज्‍यादा नहीं आए हैं, लेकिन अलग से भी, क्‍योंकि ये सदन है उससे ज्‍यादा अपेक्षाएं हैं कि यहां हम पक्ष और विपक्ष, पक्ष और विपक्ष, उससे ऊपर कभी-कभी निष्‍पक्ष भी तो होने चाहिए। और हम हमारी आने वाली पीढ़ी को हमारे संविधान की मूल भावनाओं से परिचित कैसे करवाते रहें, संविधान के प्रति उनकी आस्‍था कैसे दृढ़ होती चले, निराशा के दिनों में भी उसको लगना चाहिए हां भई कुछ लोग ऐसे आ गए हैं, गड़बड़ हो रही है लेकिन ये एक जगह है जिससे कभी न कभी तो सूरज चमकेगा। ये भाव हमारी आने वाली पीढ़ियों में भरना निरंतर आवश्‍यक होता है और इसलिए, इसलिए ये संवाद करने का प्रयास हुआ है और यहां अगर होता है तो फिर नीचे percolate भी जल्‍दी किया जा सकता है।

सरकार में बैठे हुए हम लोगों काये इरादा नहीं है कि हर बार इस प्रकार की debate हो, न हमने ऐसा कहा है। 125 वर्ष, बाबा साहब अम्‍बेडकर और उनका योगदान हम कम नहीं आंक सकते। हमने उपेक्षा भी बहुत देखी उनकी, हमने उनका उपहास भी बहुत देखा और मजबूरन उनकी स्‍वीकृति को भी हमने देखा है। और में यहां शब्‍दों पर हम करता हूं, आप और मैं की भाषा मैं नहीं बोलता। नीचे से दबाव आया है, कि आज ये देश बाबा साहब अम्‍बेडकर के उस महान कामों को नकार नहीं सकेगा। इस सच्‍चाई को हमें स्‍वीकार करना होगा और इसलिए 125वीं जयंती संविधान की चर्चा हो, बाबा साहब अम्‍बेडकर की हो लेकिन साथ-साथ संविधान सभा के उन सभी महापुरुषों के प्रति हम नमन करते हैं, आदर करते हैं, बाबा साहब अम्‍बेडकर समेत सभी को नमन करते हैं, सभी को आदर करते हैं और इसी भूमिका से हम आगे बढ़ना चाहते हैं।

एक बात सही है हमारे यहां परिवारों में भी ये बात बताई जाती है, समाज जीवन में भी बताई जाती है, लोककथाओं में भी कही जाती है, अच्‍छी चीजों को बार-बार स्‍मरण करना चाहिए। अच्‍छी स्थिति में भी करना चाहिए और बुरे हालत में भी करना चाहिए। समाज जीवन के लिए अनिवार्य होता है। बेटा कितना ही बड़ा क्‍यों न हो गया हो, लेकिन जब अपने गांव से शहर जाता है, दस बार जाता होगा तो भी मां तो कहेगी जाते-जाते, बेटा, चालू गाड़ी में चढ़ना मत, खिड़ेकी के बाहर देखना मत। बेटा बड़ा हो गया है, दस बार पहले गया है तब भी सुन चुका है लेकिन मां का मन करता है कि बेटे को जरा याद करा दूं बेटा इतना संभालना। ये हमारी पंरपरा रही है और इसके लिए तो डॉक्‍टर कर्णसिंह जी यहां बैठे हैं, बहुत सारे ढेर संस्‍कृत के श्‍लोक लाकर हमारे सामने रख देंगे क्‍योंकि हमारे यहां किस प्रकार से कहा गया है। लेकिन हमारे यहां कहा जाता था

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान ।
रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निसान ।।



कुएं में जो रस्‍सी से बांध करके पानी निकालते हैं, रस्‍सी में इतनी ताकत तो नहीं होती है कि वो पत्‍थर के खिलाफ लड़ाई लड़ सके, लेकिन निरंतर अभ्‍यास का परिणाम होता है कि उस पत्‍थर पर भी नए आकार आकृतिक हो जाते हैं और इसलिए हमारे लिए संविधान एक जशन होना चाहिए, संविधान एक उत्‍सव होना चाहिए, संविधान की हर भावना के प्रति हमारा आदर-सत्‍कार पीढि़यों तक चलते रहना चाहिए। ये संस्‍कार विरासतें, ये हम लोगों का दायित्‍व होता है। ये सिर्फ तू-तू, मैं-मैं करने से ये देश नहीं चलता है, देश कभी साथ-साथ मिल करके भी चलने से चलता है और इसलिए सविधान एक ऐसी शक्ति है जो हमें तू और मैं की भाषा से बाहर निकाल सकती है। संविधान एक भावना है जो हमें जोड़ने की ताकत देती है, और ये सदन ऐसा है कि जहां पक्ष और विपक्ष से ऊपर निष्‍पक्ष का भी एक massage हिंदुस्‍तान को जाने की ताकत रखता है और इसलिए इस सदन का मैं अतिश्‍य आदर करता हूं।

हमें मूल्‍यों का सम्मान करना होता है, यत्‍न करना होता है। हमारे संविधान की ऊंचाई दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, और संविधान सभा जब चलती थी उस समय के अखबार आज भी हम देख सकते हैं। बहुत आशंकाएं थी कि भई ये गाड़ी चलेगी क्‍या, ये लोग कर पाएंगे क्‍या और अंग्रेजों को भी उसमें interest था, इस बात को जरा बल देने में। और इसलिए लोगों को नहीं लगता था लेकिन हमने अनेक बाधाओं के बीच भी इतने साल जो बिताए हैं हमारे उन महापुरुषों ने कितना उत्‍तम हमें एक मार्गदर्शनपूर्ण संविधान दिया है, जो हमें ताकत देता रहा है, निरंतर ताकत देता रहता है। और इसलिए हमें उसका गौरव गान करते हें।

अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक थे, भारत के संविधान के संबंध में कहा था, Granville Austin .....Granville Austin (ग्रैनविल ऑस्टिन) ने जो बात कही थी, उसने कहा – “Perhaps the greatest political venture since that which originated at Philadelphia in 1787.”

1787 में फिलाडेल्फिया में जिस political venture उत्पत्ति हुई, संभवतः उसके बाद का महान political venture हुआ है तो भारत का संविधान है,
ये बात उस समय कही गई थी। यानी हम कह सकते हैं कि हमारे पास अब कभी-कभी हम यहां, हमारा मुख्‍य काम है कानून बनाना। इसी के लिए लोगों ने हमें भेजा है और हम लोग अनुभवी हैं, जानकार हैं लेकिन हम देखते हैं कितनी बड़ी कमी है हमारे बीच और आत्‍मलोकन करना पड़ेगा। और संविधान सभा के लोगों की दीर्घदृष्टि और सामर्थ्‍य कितना था, उसको याद कर-करके हम देखेंगे तो हमें अभी कितना ऊपर उठने की जरूरत है, इसका हमें अहसास होगा।

संविधान सभा में बैठे हुए लोगों ने 50 साल, 60 साल, 70 साल के बाद कभी ऐसी परिस्थिति पैदा हो तो क्‍या हो, उसके safeguard की चिंता की है। हम आज कानून बनाते हैं, और हमने देखा होगा इसमें उनका दोष और इनका दोष, ये मुद्दा नहीं है। हमारी कुल मिला करके स्थिति है कि हम कानून बनाते हैं और दूसरे ही सत्र में आना पड़ता है कि यार पिछली बार बनाया, लेकिन ये दो शब्‍द रह गए, जरा फिर से एक बार संशोधन करना पड़ेगा। कितनी मर्यादाएं हैं हमारी, और मर्यादाओं का मूल कारण ये नहीं है कि ईश्‍वर ने हमें विधा नहीं दी है, उसका मूल कारण है कि हम लगातार संविधान के प्रकाश में चीजों को नहीं सोचते हैं। कभी राजनीतिक स्थितियां हम पर हावी हो जाती हैं, कभी-कभार तत्‍कालीन लाभ लेने के इरादे हावी हो जाते हैं और उसी के कारण हम समस्‍याओं को राजनीतिकरण करके जोड़ते हैं तब जाकर करके हम मूल व्‍यवस्‍थाओं को नहीं करीब कर पाते, जो शताब्दियों तक काम आए और इसलिए संविधान सभा में बैठे हुए लोगों की ऊंचाई हम सोचें, हम उनसे प्रेरणा लें, उनसे प्रेरणा लें कि उन्‍होंने कितना सोचा। क्‍या दबाव नहीं आए होंगे, क्‍या आग्रह नहीं हुए होंगे, क्‍या बिल्‍कुल विपरीत विचार नहीं रखे गए होंगे, सब कुछ हुआ होगा। लेकिन सहमति से एक document बना जो आज भी हमें प्रेरणा देता रहता है और इसलिए हम जो भी धारा बनाते हैं, हम लोगों का दायित्‍व बनता है कि हम इस काम को करें। और उसमें भी मैं राज्‍यसभा का इसे विशेष महत्‍व देता हूं, ये ऊपरी सदन का इसे विशेष महत्‍व देता हूं क्‍योंकि हमारे यहां शास्‍त्रों में कहा गया है,



न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा,
वृद्धा न ते यो न वदन्ति धर्मम्।
धर्मः स नो यत्र न सत्य मस्ति,
सत्यं न तद् यत् छलम भ्युपैति।



संविधान सभा में हम ये जब यानी ऐसी कोई चर्चा नहीं हो सकती कि जिसमें वृद्ध जन न हों, वृद्धजनों में धर्म न हो, धर्म वो न हो जिसमें सत्‍य न हो, ये वो सभा है। और इसलिए मैं समझता हूं राज्‍यसभा का अपना एक महत्‍व है। उसकी एक विशेष भूमिका है, और संविधान सभा की बहस में गोपालस्‍वामी अयंगर ने जो बात कही थी, वो मैं यहां उदृधत करना चाहता हूं, “दुनियाभर में जहां कहीं भी कोई भी महत्‍वपूर्ण संघीय व्‍यवस्‍था है, वहां दूसरे सदन की व्‍यावहारिक आवश्‍यकता महसूस हुई है। कुल मिला करके हम इस पर यह जानने के लिए विचार कर रहे हैं कि हर कोई उपयोगी कार्यकर्ता है या नहीं? दूसरे सदन से हमारी अपेक्षा संभवत: केवल इतनी है कि महत्‍वपूर्ण विषयों पर गरिमापूर्ण बहस कराएं और संभवत: क्षणिक भावावेश के परिणामस्‍वरूप सामने आने वाले उस कानून को तब तब लंबित रखना जब तक वह भावावेश शांत न हो जाए और विधायिका के समक्ष आने वाले उपायों पर शांतिपूर्वक विचार न कर लिया जाए और संविधान में यह प्रावधान करते समय हमें यह ध्‍यान रखना होगा कि जब कभी किसी महत्‍वपूर्ण विषय पर विशेषकर वित्‍त से संबंधित मामले पर लोकसभा तथा राज्‍यसभा के बीच कोई विवाद हो तो लोकसभा का मत ही मान्‍य होगा। इसलिए इस दूसरे सदन की मौजूदगी में हमें केवल वह साधन प्राप्‍त होता है जिससे हम उस कार्यवाही को विलंब में करते हैं जो संभवत: जल्‍दबाजी में शुरू की गई हो और शायद हम उस अनुभवी व्‍यक्‍ति को एक अवसर देना चाहते हैं जो संभवत: गहन राजनीतिक विवाद में न रहता हो, लेकिन जो उस ज्ञान व महत्‍व के साथ उस बहस में हिस्‍सा लेना चाहता हो। जिसे हम सामान्‍यत: लोकसभा के साथ नहीं जोड़ते हैं। यही सभी बातें दूसरे सदन के संबंधित प्रस्‍तावित है। मुझे लगता है कि कुल मिलाकर विचार करने के बाद ज्‍यादातर लोग एक ऐसा सदन बनाने और यह सावधानी रखने के पक्ष में है कि वह कानून अथवा प्रशासन के रास्‍ते में अड़ंगा सिद्ध न हो”, यह गोपालस्‍वामी अयंगर ने संविधान सभा में कहा था। मैं समझता हूं, हम इस सदन के लोगों के लिए इससे बड़ा कोई मार्गदर्शक सिद्धांत नहीं हो सकता।

और पंडित नेहरु ने अपने विचार रखते हुए एक बड़ी महत्‍वपूर्ण बात कही थी। उन्‍होंने कहा था, हमारे संविधान का सफल क्रियान्‍वयन किसी भी लोकतांत्रिक संरचना की भांति दोनों सदनों के बीच आपसी सहयोग पर निर्भर करता है और इसलिए हमारे लिए आवश्‍यक बन जाता है कि हम किस प्रकार से मिल-जुल करके इस बात को आगे चलाए और जैसा मैंने पहले ही शास्‍त्र में कहा था कि वो कोई सभा नहीं है जिसमें अनुभवी लोग शामिल न हो और वो वरिष्‍ठ नहीं है जो धर्म की बात न करता हो और वह धर्म नहीं है जिसमें सत्‍य न कहा जाए और वह सत्‍य नहीं होता है, जिसमें कोई छल-कपट और धोखाधड़ी हो। मैं समझता हूं कि हमारे लिए यह अत्‍यंत आवश्‍यक है।

उसी प्रकार से देश हमारी तरफ देखता है। यह ठीक है कि कालक्रम में हम लोगों की हालत क्‍या है हमारी बिरादरी की क्‍या हालत है, उसको हम भली-भांति जानते हैं। लेकिन यह सही है कि अभी भी हमारे लिए कुछ जिम्‍मेवारियां हैं और उस जिम्‍मेवारियों को निभाना एक सदस्‍य के रूप में भी, हमारे संविधान में हमें काफी कुछ कहा गया है लेकिन हमारे शास्‍त्रों ने जो कहा है, वो भी हमारे लिए उतना ही महत्‍वपूर्ण है,



यद् यद् आचरति श्रेष्ठः तत्त देवतरो जनाः
स यत् प्रमाणम कुरूते लोकस तत अनुवर्तते।



श्रेष्‍ठ लोग जैसा आचरण करते हैं अन्‍य सभी उसका अनुपालन करते हैं। वो जो भी मापदंड स्‍थित करते हैं, लोग उन्‍हीं मानकों का अनुसरण करते हैं।

अंबेडकर जी ने 1946 में Edmund Burke को उद्धृत करते हुए कहा था, "It is easy to give power, it is difficult to give wisdom. और पूरा मैं अनुवाद पढ़ देता हूं। शक्‍ति हाथ में लेना जितना आसान है, बुद्धि, विवेक धरोहर में पाना उतना ही कठिन है। आइए हम अपने आचरण से प्रमाणित करें कि यदि इस सभा ने अपने आपको कुछ सार्वभौमिक शक्‍तियां दी हैं तो उन शक्‍तियों का उचित प्रयोग भी बुद्धि, विवेक से ही होगा। हम केवल इसी मार्ग से सभी को साथ लेकर आगे बढ़ सकेंगे। एकता की दिशा पर चलने के लिए यही मात्र रास्‍ता है।“

आदरणीय सभापति जी, हमारे संविधान निर्माताओं ने इतना सारा सोचा, लेकिन एक बात उनको सोचने की जरूरत नहीं लगी और ऐसा क्‍या हुआ कि हमें उस रास्‍ते पर चलना पड़ा। दोष उनका नहीं था। उनका हम पर भरोसा था और इसलिए उन्‍होंने इस दिशा में नहीं सोचा और तब जाकर के इसी सदन को चाहे ऊपरी सदन हो, चाहे लोकसभा हो हम लोगों को Ethics Committe का निर्माण करना पड़ा। संविधान सभा के सदस्‍यों को यह जरूरी नहीं लगा होगा कि कभी Ethics Committe का निर्माण करना पड़े। इस सदन को Ethics Committe का निर्माण करना पड़ा। और ये Ethics Committe के पीछे मैं समझता हूं मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा हूं किसी तरह। हम राजनीति में जो लोग हैं, हमारी एक जिम्‍मेवारी का संदेश भी देते हैं। जब हमारे यहां कुछ सदस्‍यों के द्वारा छोटी-मोटी हरकतें हुई तो यही सदन की हिम्‍मत है कि उन्‍होंने सदन की मर्यादा, लेकिन यह आवश्‍यक है। सभापति जी, मैं आग्रह करूंगा, यह आवश्‍यक है कि हमारे सभी सदस्‍यों को बार-बार Ethics Committe के जो उसूल है, जो निर्माण हुआ है बार-बार उनको कहते रहना पड़ेगा, उनको बताते रहना पड़ेगा क्‍योंकि हम सब कोई गलती न कर बैठे और ये तो हमारा दायित्‍व बनता है। लेकिन इसके संबंध में मैं कहना चाहूंगा

14 अगस्‍त, 1947, डॉ. राधाकृष्‍णन् जी ने जो कहा है। उन्‍होंने जो कहा है वो मैं समझता हूं हम लोगों की जिम्‍मेवारी है। डॉ. राधाकृष्‍णन् जी ने कहा, 14 अगस्‍त को “अगली सुबह से आज रात के बाद हम Britishers को दोष नहीं दे सकते, हम जो कुछ भी करेंगे उसके लिए हम स्‍वयं जिम्‍मेदार होंगे। स्‍वतंत्र भारत को उस तरीके से आंका जाएगा जिस तरीके से भोजन, कपड़े, घर और सामाजिक सेवाओं से जुड़े मुद्दों पर आम आदमी के हितों की पूर्ति की जाएगी। जब तक हम ऊंचे पदों पर मौजूदा भ्रष्‍टाचार को खत्‍म नहीं करेंगे, भाई-भतीजावाद, सत्‍ता की चाह, मुनाफाखोरी और कालाबाजारी को जड़ से नहीं उखाड़ेंगे जिसने हार के समय में इस महान देश की छवि को खराब किया है, तब तक हम प्रशासन, उत्‍पादन और जीवन से जुड़ी वस्‍तुओं के वितरण में कार्यकुशलता नहीं बढ़ा पाएंगे।“ ये 2015, 01 दिसम्‍बर का भाषण नहीं है, ये 1947, 14 अगस्‍त को डॉ. राधाकृष्‍णन् जी देख रहे थे कि कैसे-कैसे संकटों से हमें गुजरना है और इसलिए इन महापुरुषों का स्‍मरण करना हमारे लिए आवश्‍यक होता है कि क्‍या हुआ ये बातें छूट गई। दुबारा हम पुन: स्‍मरण करे, फिर संकल्‍प करे, फिर चल पड़े, अभी-भी देर नहीं हुई है। सवा सौ करोड़ का देश, 800 मिलियन 65 से कम आयु की जनसंख्‍या हो, उस देश को निराश होने का कोई कारण नहीं है। हमारे पास ऐसे महान पुरुषों की विरासत भी है और हमारे पास उन नौजवानों के सामर्थ्‍य के अवसर भी है। उन दोनों को मिलाकर के हम कैसे करे, उसकी ओर हमने आगे देखना है।

कभी-कभार हम डॉ. बाबा साहेब आम्‍बेडकर को जब याद करते हैं, तो मैं कुछ बातें ये कहना चाहता हूं संविधान के द्वारा, और ये बात सही है कि हमारा संविधान एक सिर्फ कानूनी मार्गदर्शन की व्‍यवस्‍था तक ही सीमित नहीं है। वो एक सामाजिक दस्‍तावेज भी है और जितने उसकी कानूनी सामर्थ्‍य की हम सराहना करते हैं उतनी ही उसके सामाजिक दस्‍तावेज की ताकत की भी सराहना और उसको जी करके दिखाना, ये हम लोगों का दायित्‍व बनता है।

बाबा साहेब ने जो हमें संविधान दिया उस संविधान में कानूनी एक व्‍यवस्‍था तो है जो समता के सिद्धांत का पालन कराता है, social justice की वकालत करता है, सामाजिक न्‍याय की चर्चा करता है। लेकिन अगर हम संविधान के दायरे में अटक जाएंगे तो हो सकता है समता तो आ जाएगी, लेकिन अगर समाज अपने आप को बदलने के लिए तैयार नहीं होगा, सैंकड़ों वर्षों की बुराइयों से मुक्‍ति पाने का अगर समाज संकल्‍प नहीं करता है। जो पाप हमारे पूर्वजों के द्वारा हुए हैं, उन पापों का प्रक्षालन करने के लिए हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां तैयारी नहीं करती है तो बाबा साहेब आंबेडकर का social justice की ताकत हो, समता की ताकत हो, वो पूर्ण करने का दायित्‍व एक समाज के नाते भी हमको उठाना पड़ेगा।

और इसलिए बंधारण हमें अगर समता की ताकत देता है तो समाज की संस्‍कार सरिता हमें ममता की ताकत देता है। अगर समता हमें बंधारण के निहित ताकतों से प्राप्‍त होती है तो समाज को भी तैयार करना पड़ेगा कि जैसे समभाव जरूरी है, वैसी ही समाज में ममभाव भी जरूरी है और देश तब चलेगा जहां समता भी हो, ममता भी हो; समभाव भी हो, ममभाव भी हो। ये सवा सौ करोड़ देशवासी दलित माता की कोख से पैदा हुआ बेटा भी मेरा भाई है। ईश्‍वर ने मुझे जितनी शक्‍ति दी है, परमात्‍मा ने उसको भी उतनी ही शक्‍ति दी है। मुझे तो अवसर मिला, लेकिन उसको अवसर नहीं मिला। उसको अवसर मिले ये हमारा दायित्‍व बनता है और इसलिए सिर्फ बंधारण की सीमाओं में नहीं है, समाज जागरूण भी उतना ही अनिवार्य है। न हिन्‍दू पतितो भवेत, इस संकल्‍प को लेकर के आगे बढ़ने की आवश्‍यकता है और ये बात इस सदन से उठनी चाहिए, ये बात सदन से पहुंचनी चाहिए। आज भी समाज में किसी के साथ इस प्रकार का अत्‍याचार होता है तो ये हमारे लिए कलंक है, एक समाज के नाते कलंक है, एक देश के नाते कलंक है। इस दर्द को हमें अनुभव करना चाहिए और इस दर्द को हमें नीचे तक समाज की संवेदना जगाने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए।

बाबा साहेब आंबेडकर ने, यह बात सही है कि जब हम सरदार पटेल को याद करते हैं तो भारत की एकता के साथ जुड़ा हुआ है। लेकिन हम सरदार साहब ने देश एक किया, सरदार साहब ने देश एक किया.. इस पर अटक जाएंगे तो बात बनेगी नहीं। एकता का मंत्र भारत जैसे देश में केन्‍द्रस्‍थ होना चाहिए। बिखरने के लिए तो बहुत बहाने मिल सकते हैं, जुड़ने के अवसर खोजना हमारा दायित्‍व होता है और इसलिए बिखरने के बहाने तो मिल जाएंगे, सवा सौ करोड़ का देश है कहीं किसी कोने से मिल सकता है। लेकिन कुछ लोग है जिनका दायित्‍व है कि बिखरने के बहानों के बीच भी जुड़ने के अवसर खोजे, लोगों को प्रेरित करे और जोड़ने की ताकत दे, ये हम लोगों का दायित्‍व है। देश की एकता और अखंडता के लिए, और यही तो हमारे पूर्वजों ने कहा है, राष्‍ट्रीयम जागरीयम व्‍यम। Eternal vigilance is the price of liberty. ये बात हमारी रगों में भरी पड़ी हुई है और इसलिए देश की एकता और अखंडता के मंत्र को हमने निरंतर मंत्र को आगे बढ़ाना पड़ेगा।

मेरे मन में एक कार्यक्रम चल रहा है। मैं आशा करूंगा कि आप में जो सोच लेते हैं, समय हैं वे भी कुछ नए ideas देंगे तो उसको और अच्‍छा बनाने का प्रयास करेंगे। “एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत”, कल्‍पना मेरे मन में ये चल रही है। मैं ऐसे ही विचार छोड़ रहा हूं, अभी तो मैंने कोई डिजाइन बनाई नहीं है। हमारे देश में हमने बहुत लड़ लिया। दक्षिण के लोगों को लगता है हिन्‍दी हम पर थोपते रहो तुम। और मैंने देखा है यहां भाषण में कहीं-कहीं आता है। लेकिन एक और भी तरीका है देश को समझने का, जानने का, आगे बढ़ने का और मैंने 31 अक्‍तूबर को सरदार साहब की जन्‍म जयंती के दिन इस पर थोड़ा सा उल्‍लेख किया था। क्‍या हम राज्‍यों को प्रेरित कर सकते हैं कि नहीं? जिसमें आग्रह किया जाएगा कि भई मान लीजिए छत्‍तीसगढ़ राज्‍य है। वो तय करे कि 2016 में हम केरल महोत्‍सव मनाएंगे और छत्‍तीसगढ़ राज्‍य में मलयालम भाषा के alphabets बच्‍चों को परिचित करवाए जाए। 100 वाक्‍य, ज्‍यादा नहीं 100 sentences. स्‍कूलों में बच्‍चों को सहज कैसे हो, चाय पिया कर.. वो मजाक-मजाक में चलता रहेगा, वो सीख जाएंगे। कभी मलयालम फिल्‍म फेस्‍टिवल छत्‍तीसगढ़ में क्‍यों न हो, क्‍यों न वहां का खान-पान, वहां के लोग, वहां के नाट्य यहां आएं, लोग देखें। उसी प्रकार से, कोई और राज्‍य किसी और.. एक राज्‍य एक साल के लिए दूसरे राज्‍य के साथ अपने आप को जोड़े। यहां से उस साल जितने बच्‍चे टूरिस्‍ट के नाते जाएंगे, तो उसी राज्‍य में जाएंगे। हम धीरे-धीरे करके अगर हिन्‍दुस्‍तान के सभी राज्‍य हर वर्ष एक राज्‍य मनाना शुरू कर दे और ज्‍यादा नहीं एक-पांच गीत। अब देखिए, हम सब लोग वैष्‍णव जन से परिचित है। ‘वैष्‍णव जन तो तेने रे कहिए’ सब परिचित है। हम ‘वैष्‍णव जन तो तेने रे कहिए’ जब सुनते हैं, गाते हैं हमें पराया नहीं लगता है। कभी याद नहीं आता है कि किस भाषा में लिखा गया है। वो इतना हमारे साथ जुड़ गया है। क्‍यों न हम हमारे देश की सब भाषा के चार-पांच अच्‍छे गीत हमारे देश की नई पीढ़ी को गाने की आदत डाले। हमें संस्‍कार बढ़ाने होंगे और मुझे लगता है कि संविधान की जो भावना है उस भावना को आदर करते हुए हमें इस बात को करना चाहिए।

बाबा साहेब आम्‍बेडकर जी का जो आर्थिक चिंतन था। अपने आर्थिक चिंतन की उनकी विशेषताएं रही थी और वे औद्योगीकरण के पक्ष में थे और सबसे बड़ी बात वो कहते थे, मैं चाहूंगा कि सदन, मैं लंबा नहीं कहूंगा लेकिन भाव मेरा सदन समझ जाएगा। बाबा साहेब आम्‍बेडकर कहा करते थे कि हिन्दुस्‍तान में औद्योगीकरण होना जरूरी है और वो कहते थे कि दलितों के पास जमीन नहीं है, वो जमीन के मालिक नहीं है। उनको अगर रोजगार दिलाना है तो जिसके पास जमीन नहीं है वो कहां जाएगा। औद्योगीकरण इसलिए भी होना चाहिए कि समाज के दलित, पीड़ित, शोषित, वंचितों के रोजगार के अवसर पैदा हो और इसलिए बाबा साहेब आंबेडकर के विचार, आज कुछ लोगों को बड़ा आश्‍चर्य होगा वो क्‍या कहा था। उन्‍होंने आर्थिक चिंतन करके और मैं मानता हूं आज जो हम विवाद करते हैं, उस समय क्‍या सोच बाबा साहेब की थी वो हमारे लिए एक दिशा दर्शक रहेगी। डॉ. बाबा साहेब आम्‍बेडकर ने कहा था, “राज्‍य का दायित्‍व है कि वह लोगों के आर्थिक जीवन की ऐसी योजना बनाए जो उच्‍च उत्‍पादकता की ओर ले जाए, लेकिन ऐसा करते समय दूसरे अवसर बंद नहीं होने चाहिए। इसके अलावा, वह उद्यम उपलब्‍ध कराए तथा जो कुछ लाभ हासिल हो, उसका सबको बराबर वितरण करे।“

डॉ. बाबा साहेब ने कहा था कि “कृषि क्षेत्र में उत्‍पादकता बढ़ाई जा सकती है लेकिन इसके लिए पूंजी और मशीनरी में बढ़ोतरी के साथ-साथ कृषि के क्षेत्र में श्रम में कटौती करनी पड़ेगी, ताकि भूमि और श्रम की उत्‍पादकता बढ़ाई जा सके। अतिरिक्‍त श्रमिकों को गैर-कृषि उत्‍पादक क्षेत्रों में लगाने से कृषि क्षेत्र पर पड़ने वाला दबाव एकदम से कम हो जाएगा और भारत में उपलब्‍ध भूमि पर अत्‍यधिक presure भी खत्‍म हो जाएगा। इसके अलावा, जब इन श्रमिकों को कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र में उत्‍पादक कार्यों में लगाया जाएगा तो वे न केवल अपनी आजीविका कमा लेंगे बल्‍कि अधिक उत्‍पादन करेंगे और अधिक उत्‍पादन का अर्थ है, अधिक पूंजी। संक्षेप में, हालांकि यह चाहे जितना विचित्र लगे परन्‍तु भारत का औद्योगीकरण ही भारत की कृषि समस्‍याओं का सबसे कारगर उपचार है।“ बाबा साहेब आम्‍बेडकर ने एक और जगह पर कहा था कि “भारत चिमटी की दो फलकों के बीच फंसा हुआ है। जिसका एक फलक आबादी का बढ़ता हुआ दबाव और दूसरा फलक है, उसकी जरूरतों की तुलना में भूमि की सीमित उपलब्‍धता। इसका परिणाम यह होता है कि हर दशक के अंत में हमारे सामने आबादी और उत्‍पादन का नकारात्‍मक संतुलन पैदा हो जाता है और जीवन स्‍तर गिर जाता है और गरीबी बढ़ जाती है। बढ़ती जनसंख्‍या के कारण भूमिहीन और बिखरे परिवारों की संख्‍या भी विशाल होती जा रही है। औद्योगीकरण के पक्ष में एक गंभीर अभियान चलाने के अलावा कृषि को लाभकारी बनाने की संभावनाएं न के बराबर है।“ बाबा साहेब आम्‍बेडकर ने 60 साल पहले हम किन समस्‍याओं को झेलेंगे, हमें कैसी समस्‍याओं को जूझना पड़ेगा, हमारा आर्थिक चिंतन क्‍या होना चाहिए। उस समय बाबा साहेब आम्‍बेडकर ने हमारे सामने रखा था।

यह बात सही है कि हम में से किसी की देशभक्‍ति में, सवा सौ करोड़ देशवासियों की भक्‍ति में न कोई शक कर सकता है, न शक करने का कोई कारण हो सकता है और न ही किसी को किसी की देशभक्‍ति के लिए सुबह-शाम अपने सबूत देने पड़ेंगे। समाज, हम सब भारत के संविधान से बंधे हुए लोग हैं। भारत के महान संस्‍कार और परंपराओं से बंधे हुए लोग हैं। दुनिया हमें कैसी देखती थी और दुनिया भारत का किस प्रकार से गौरवगान करती थी आज जब हम उन महापुरुषों ने संविधान निर्माण किया वो कौन सा माहौल होगा, जिनसे उनको इस प्रकार से लिए गए होंगे। मैं आज आखिरी शब्‍द कुछ कह करके अपनी बात को समाप्‍त करूंगा।

आदरणीय सभापति जी, मैं Max Muller को आज quote करना चाहता हूं, उन्‍होंने क्‍या कहा था। Max Mueller कहते हैं, “अगर मैं ऐसा देश ढूंढने के लिए पूरी दुनिया को देखूं जहां प्रकृति ने धन, शक्‍त‍ि और सौंदर्य की सबसे ज्‍यादा छटा बखेरी हो तो – पृथ्‍वी पर असल में स्‍वर्ग है – तो मैं भारत की ओर इशारा करूंगा। अगर मुझसे पूछा जाए कि‍ किस आसमान के नीचे मानव मस्‍तिष्‍क ने अपने पसंदीदा उपहारों में से कुछ को सबसे ज्‍यादा पूरी तरह विकसित किया है, जीवन की बड़ी से बड़ी समस्‍याओं पर गहराई से विचार किया है, और उनमें से कुछ का समाधान भी निकाला है, जो उनका भी ध्‍यान आर्कषित करेगी जिन्‍होंने प्‍लूटो और कांट को पढ़ा है तो – मेरा इशारा भारत की ओर होगा। अगर मैं अपने आप से पूंछू कि हम किस साहित्‍य से, यहां यूरोप में, वे जिनका पालन-पोषण लगभग पूरी तरह से ग्रीक और रोमंस तथा एक यहूदी जाति, ज्‍यूस के विचारों पर हुआ है, सही की पहचान कर सकते हैं जो कि अपने आंतरिक जीवन को और उत्‍तम, और विस्‍तृत तथा और अधिक विश्‍वव्‍यापी और वास्‍तव में एक सच्‍चा इंसान बनने के लिए जरूरी है, केवल इसी जीवन के लिए ही नहीं अपितु इस रूपान्‍तरित और अविनाशी जीवन के लिए – तो फिर से मेरा इशारा भारत की ओर ही होगा।”

ये बात मैं Max Mueller ने कही है। इस महान विरासत के हम धनी हैं। और उसी धन विरासत सर्वासव हम सबकी ताकत है। आइए हम उसका गौरवगान करें और हम संकल्‍प करें कि संविधान के प्रकाश में हमारे महापुरुषों के त्‍याग और तपस्‍या के प्रकाश में जो उत्‍तम है, उसको ले करके हम चलें। जो काल वाहय हैं उसको तो काल भी स्‍वीकार नहीं करता है, जो नित्‍य नूतन होता है उसी को स्‍वीकार करता है। उस नित्‍य नूतन को ले करके महान राष्‍ट्र के निर्माण में हम सभी सदस्‍य अपना योगदान करेंगे।

मैं फिर एक बार सभी आदरणीय सदस्‍यों का हृदय से आभार व्‍यक्‍त करता हूं। सभापति जी मैं आपका भी आभार व्‍यक्‍त करता हूं और संविधान की इस चर्चा के जो उत्‍तम बिन्‍दु निकले हैं, उन उत्‍तम बिन्‍दुओं के प्रकाश में हम कानूनों का निर्माण करें तब भी, संसद में आचरण करें तब भी, समाज का नेतृत्‍व करें तब भी, समाज को आगे ले जाने का प्रयास करें तब भी उसी बातों को ले करके चलेंगे, उस विश्‍वास के साथ मैं फिर एक बार इस सदन को उत्‍तम प्रवचनों से लाभान्वित कराने वाले सभी आदरणीय सदस्‍यों का हृदय से अभिनंदन करता हूं। बाबा साहब अम्‍बेडकर और उस महापुरुष के साथ काम करने वाले उन सभी महानुभावों को नमन करता हूं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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India is set to play a major role in driving the global semiconductor industry: PM Modi at SEMICON India
September 11, 2024
“India’s semiconductor sector is on the brink of a revolution, with breakthrough advancements set to transform the industry”
“Today's India inspires confidence in the world… When the chips are down, you can bet on India”
“India's semiconductor industry is equipped with special diodes where energy flows in both directions”
“India holds a three-dimensional power namely the present reformist government, the country’s growing manufacturing base and the nation’s aspirational market which is aware of the technological trends”
“This small chip is doing big things to ensure last-mile delivery in India”
“Our dream is that every device in the world will have an Indian-made chip”
“India is set to play a major role in driving the global semiconductor industry”
“Our goal is that 100% of electronic manufacturing should happen in India”
“Whether it is mobile manufacturing, electronics, or semiconductors, our focus is clear—we want to build a world that doesn’t stop or pause in times of crisis but keeps moving forward”

The Chief Minister of Uttar Pradesh, Yogi Adityanath ji, my colleagues in the Union Cabinet, Ashwini Vaishnaw and Jitin Prasada, all the giants associated with the global semiconductor industry, all the partners from the education, research, and innovation world, other distinguished guests, ladies and gentlemen! Namaskar to all!

I extend a special welcome to all the associates of SEMI. Bharat is the eighth country in the world to host this grand event related to the global semiconductor industry. And I can say that this is the right time to be in India. You are at the right time, at the right place. In the 21st-century Bharat, the chips are never down! And it’s not just that, today’s Bharat assures the world — When the chips are down, you can bet on India!

Friends,

Your association with the semiconductor world inevitably involves diodes. And as you know, energy flows in only one direction in a diode. But special diodes are used in Bharat’s semiconductor industry. Here our energy flows in both directions. You might wonder how? And this is very interesting, you invest and create value. Meanwhile, the government provides you with stable policies and ease of doing business. Your semiconductor industry is linked with ‘Integrated Circuits’. Bharat also provides you with an ‘integrated ecosystem’. You are well aware of the immense talent of Bharat’s designers. Bharat contributes 20 percent of the talent in the world of designing, and it is continually expanding. We are preparing a semiconductor workforce of 85,000 technicians, engineers, and R&D experts. Bharat’s focus is on making its students and professionals ready for the semiconductor industry. Just yesterday, the first meeting of the Anusandhan National Research Foundation was held. This foundation will provide a new direction and new energy to Bharat’s research ecosystem. Additionally, Bharat has also created a special research fund of one trillion rupees.

Friends,

Such initiatives will greatly expand the scope of innovations in the semiconductor and science sectors. We are also focusing heavily on semiconductor-related infrastructure. Moreover, you have a three dimensional power —first, Bharat’s current reformist government, second, the growing manufacturing base in Bharat, and third Bharat’s aspirational market. A market that understands the taste of technology. For you, the Three-D Power semiconductor industry base is something that is hard to find elsewhere.

Friends,

Bharat’s aspirational and tech-oriented society is very unique. For Bharat, a chip is not just a technology. For us, it is a means to fulfil millions of aspirations. Today, Bharat is a major consumer of chips. We have built the world’s best digital public infrastructure on this chip. This small chip is playing a significant role in ensuring last-mile delivery in Bharat. When even the strongest banking systems in the world faltered during the Corona pandemic, banks in Bharat continued to operate uninterrupted. Whether it is Bharat’s UPI, RuPay card, Digi Locker, or Digi Yatra, various digital platforms have become part of everyday life for the people of Bharat. Today, Bharat is increasing manufacturing in every sector to become self-reliant. Today, Bharat is undergoing a significant green transition. The demand for data centres in Bharat is continuously rising. This means that Bharat is going to play a major role in driving the global semiconductor industry.

Friends,

There has been an old saying — ‘Let the chips fall where they may’. Meaning, let things happen as they will. Today’s young and aspirational Bharat does not follow this attitude. Bharat’s mantra today is —‘Increasing the number of chips produced in India’. And that’s why we have taken many steps to advance semiconductor manufacturing. The Indian government is providing 50 percent support for setting up semiconductor manufacturing facilities in Bharat. State governments are also providing additional support in this regard. Due to these policies, more than 1.5 trillion rupees of investments have already been made in Bharat in this sector in a short time. And today, many projects are in the pipeline. The Semicon India Program is also an excellent initiative. Under this program, financial support is being provided for front-end fabs, display fabs, semiconductor packaging, compound semiconductors, sensors, and display manufacturing. In other words, work is being done with a 360-degree approach in Bharat. Our government is advancing the entire semiconductor supply chain ecosystem in Bharat. I mentioned from the Red Fort this year that our dream is for every device in the world to have an Indian-made chip. Bharat will do whatever is necessary to become a semiconductor powerhouse.

Friends,

We recently announced the Critical Mineral Mission for domestic production and overseas acquisition of critical minerals. Work is underway on customs duty exemptions for critical minerals, mining block auctions, and more. Additionally, we are working on setting up a semiconductor research centre at the Indian Institute of Space Sciences. We are partnering with IITs so that our engineers not only develop high-tech chips for today but also research next-gen chips. We are also advancing international collaborations. You may have heard of oil diplomacy; today’s era is that of silicon diplomacy. This year, Bharat was elected Vice Chair of the Indo-Pacific Economic Framework's Supply Chain Council. We are also a significant partner in the QUAD Semiconductor Supply Chain Initiative and have recently signed agreements with several countries including Japan and Singapore. Bharat is also continuously increasing its cooperation with the United States in this sector.

Friends,

You are all familiar with Bharat’s semiconductor mission. Some people question why Bharat is focusing on this. Such individuals should study our Digital India Mission. The goal of the Digital India Mission was to provide the country with transparent, effective, and leakage-free governance. Today, we are experiencing its multiplier effect. We needed affordable mobile handsets and data for the success of Digital India. Accordingly, we implemented necessary reforms and built essential infrastructure. We were among the major importers of mobile phones a decade ago. Today, we are the world’s second-largest producer and exporter. A recent report shows that Bharat is now the second-largest market for 5G handsets. Just two years ago, we started the 5G rollout. Look at where we have reached today. Today, Bharat’s electronics sector has grown to over 150 billion dollars. And our goal is even bigger. We want to grow our electronics sector to 500 billion dollars by the end of this decade. This will create about 6 million jobs for the youth of Bharat. Bharat’s semiconductor sector will also benefit greatly from this. Our goal is for 100 percent of electronic manufacturing to be done in Bharat. This means Bharat will not only make semiconductor chips but also their finished goods.

Friends,

Bharat’s semiconductor ecosystem provides solutions not only to domestic challenges but also to global ones. You might have heard a metaphor related to designing. This metaphor is — ‘single point of failure’. Designing students are taught to avoid this flaw. The aim is to ensure that the system does not depend on just one component. This lesson is not limited to designing alone. It applies equally to our lives, especially in the context of supply chains. Be it COVID or wars, no industry has been spared from supply chain disruptions in the recent past. Hence, resilience in supply chains is crucial. Therefore, I am pleased that Bharat is a significant part of the mission to create resilience in various sectors. And we must remember one more thing. When democratic values are coupled with technology, the positive energy of technology becomes stronger. Conversely, when democratic values are removed from technology, it can quickly become harmful. Therefore, whether it is mobile manufacturing, electronics manufacturing, or semiconductors, our focus is clear. We want to create a world that continues to operate without stopping, even in times of crisis. With this confidence that you will strengthen Bharat’s efforts in this regard, I wish you all the very best. Thank you very much!