उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि पीएम मोदी के सफल नेतृत्व में देश "वन इंडिया, ग्रेट इंडिया" के सपने को साकार करने के लिए एक साथ आ रहा है।

इस सृष्टि के निर्माता भगवान विश्वकर्मा की जयंती और श्रेष्ठ भारत के निर्माता हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री का जन्मदिन एक ही दिन है। कितना सुंदर संयोग है!

महान नेता न केवल खुद को एक बड़े लक्ष्य के लिए समर्पित करते हैं बल्कि उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संस्थानों और प्रणालियों का निर्माण भी करते हैं।

पिछले साढ़े नौ वर्षों में हमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में इस महानता के मूर्त रूप का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ है।

2014 से पहले, लंबे समय तक भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और भाई-भतीजावाद की जो सड़ांध पैदा हुई थी, उसके कारण लोगों में व्यवस्था के प्रति घृणा की भावना थी। सरकार की कल्याणकारी योजनाएं चयनात्मक थीं, 'समाजवाद' शब्द को 'परिवारवाद' और 'गरीबी हटाओ' का नारा 'गरीबों को हटाओ' तक सीमित कर दिया गया था।

इस निराशा के बीच, लोगों ने 2014 में मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार को चुनकर व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन लाने का फैसला किया। उन्होंने लोगों के उज्ज्वल भविष्य की आशा को फिर से जगाया और उनमें उन्होंने वह शक्ति देखी जो उनकी अपेक्षाओं को पूरा कर सकती है, उनकी आकांक्षाओं को पूरा कर सकती है और उनके सपनों को साकार कर सकती है।

निस्संदेह, यह भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरुआत थी। यह उनके नेतृत्व की विशेषता है कि मोदीजी ने सभी 140 करोड़ देशवासियों को अपने मिशन, अपने 'यज्ञ' का हिस्सा बनाया। प्रत्येक देशवासी को भारत की डेमोग्राफी, डेमोक्रेसी और डायवर्सिटी की 'त्रिमूर्ति' का महत्व समझाया गया। लोगों को भारत की सच्ची और अन्टैप्ट क्षमता से परिचित कराया गया।

राष्ट्रीय जागरण के इस 'यज्ञ' के परिणामस्वरूप ही 'नए भारत' का निर्माण संभव हुआ। यह मोदी जी के सफल नेतृत्व का चमत्कार है कि विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, मान्यताओं, भाषाओं और विचारों में बंटा भारत 'वन इंडिया, ग्रेट इंडिया' के सपने को साकार करने के लिए एक साथ आ रहा है।

आज भारत कश्मीर में धारा 370 के अभिशाप से मुक्त हो गया है। मुस्लिम बहनें तीन तलाक जैसी मध्ययुगीन घृणित कुप्रथा से मुक्त हैं। हर किसान की हर फसल का बीमा किया जाता है। हर गरीब को 'आयुष्मान' का आशीर्वाद और अपना घर होने की अनोखी खुशी है।

'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास' इस नई कार्य संस्कृति की आत्मा है। 'अंत्योदय से सर्वोदय' के मंत्र को आत्मसात करने वाली इस नई व्यवस्था में समाज के अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। पहली बार कृषि और किसान राजनीतिक चर्चा के केंद्र में हैं। आम लोगों में सरकार के प्रति विश्वास है। आम लोगों में सरकार के प्रति विश्वास है। संभवतः गोस्वामी तुलसीदास जी ने ऐसी ही व्यवस्था को 'राम राज्य' नाम दिया है।

जिस देश ने 70 साल तक वंशवादी राजनीति के रूप में राजशाही की छाया में गुजारे, वहां यह अकल्पनीय था कि कोई प्रधानमंत्री कभी सफाई कर्मचारियों के पैर धोएगा। लेकिन ये पूरे देश ने प्रयागराज में देखा जब मोदी जी ने कृतज्ञता के भाव से सफाई कर्मियों के पैर धोए।

कोविड जैसी महामारी में अपने नेता के हर आह्वान पर पूरा देश एक साथ आया और अनुशासित रहा। यह तभी संभव है जब जनता को अपने नेतृत्व की नीतियों और नियत पर अटूट विश्वास हो। आज़ादी के बाद के भारत में यह पूंजी अर्जित करने वाले मोदी जी एकमात्र नेता हैं। ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से पीएम का देशवासियों को 'मेरा परिवार' कहकर संबोधन हर भारतीय के मन को अपनेपन की भावना से भर देता है।

यदि हम मोदी जी के व्यक्तित्व को ध्यान से देखें तो व्यावहारिकता और आदर्शवादिता दोनों गुणों का सुंदर समन्वय झलकता है। वह एक राजनेता हैं और उनमें एक बच्चे की पवित्रता और मासूमियत भी है। उनकी यात्रा का हर कदम चुनौतियों और संघर्षों से भरा रहा है। यह मोदी जी का अद्वितीय व्यक्तित्व है जो उन्हें चुनौतियों को अवसर मानने, हर बाधा को पार करने और अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निरंतर आगे बढ़ने की क्षमता देता है।

आस्था और अर्थव्यवस्था का दृष्टिकोण रखने वाले हमारे प्रधानमंत्री की अवधारणा, विकास और विरासत को एक साथ लेकर चलने की रही है। 500 साल के इंतजार के बाद अवधपुरी में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर उद्घाटन के लिए तैयार है। आज श्री काशी विश्वनाथ धाम, केदारनाथ धाम के पुनरुद्धार के साथ-साथ उज्जैन में 'महाकाल का महालोक' जैसे बहुप्रतीक्षित कार्यों ने सदियों से आहत आस्था को फिर से पनपने का अवसर दिया है।

पीएम मोदी के नेतृत्व में बीता दशक भारत के गौरव की पुनर्स्थापना का कालखंड रहा है। हाल ही में देश में नए संसद भवन का उद्घाटन किया गया है।

पिछले साढ़े नौ वर्षों में न केवल हम भारतीय, बल्कि पूरा विश्व 'न्यू इंडिया' के निर्माण का साक्षी बना है और मंगल, चंद्रमा और सूर्य पर 'भारत उदय' को बड़ी उत्सुकता से देख रहा है।

आज जहां भी मानवीय संकट होता है, दुनिया पीएम मोदी की ओर आशा भरी नजरों से देखती है। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में हाल ही में संपन्न जी-20 की सफलता ने भारत को नई विश्व व्यवस्था के केंद्र में स्थापित कर दिया है।

उनके मार्गदर्शन में पूरे भारत ने अमृत काल के महान संकल्पों को अपनाया है। लाल किले की प्राचीर से घोषित 'पंच प्रण' (पांच प्रतिज्ञाएं) इन संकल्पों की आत्मा है। उनको पूरा करने के लिए पूरा देश एक स्वर से, एक भाव से आगे बढ़ रहा है। 'आत्मनिर्भर भारत' और 'विकसित भारत' का सपना अब हकीकत बनने के करीब है।

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September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)